Class 9 Hindi Kshitij Chapter Wakh : कक्षा 9 हिन्दी क्षितिज, भाग-1 के पाठ “ वाख ” के महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

Class 9 Hindi Kshitij Chapter Wakh: कक्षा 9 के एनसीईआरटी हिंदी पाठ्यपुस्तक (क्षितिज, भाग-1) के पाठ “वाख” के लिए प्रश्नों और उत्तरों का एक व्यापक संग्रह दिया गया है, जिसमें बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs), रिक्त स्थान पूर्ति, स्तंभ मिलान, लघु उत्तरीय प्रश्न, और दीर्घ उत्तरीय प्रश्न शामिल हैं। प्रश्न पाठ की सामग्री के अनुरूप डिज़ाइन किए गए हैं, जो ललद्यद (लल्लेश्वरी) की वाखों पर केंद्रित हैं, और पाठ्यपुस्तक की भाषा के अनुसार हिंदी में प्रस्तुत किए गए हैं। उत्तर सटीक और विस्तृत हैं, जो कक्षा 9 के छात्रों के लिए उपयुक्त हैं।


बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)

  1. ललद्यद की वाखों का मुख्य विषय क्या है?
    a) सांसारिक प्रेम
    b) भक्ति और आत्म-जागृति
    c) प्रकृति वर्णन
    d) सामाजिक क्रांति
    उत्तर: b) भक्ति और आत्म-जागृति
  2. वाख सं. 1 में ललद्यद ने किसे ‘शिव’ कहा है?
    a) सूर्य
    b) सर्वव्यापी ईश्वर
    c) अग्नि
    d) नदी
    उत्तर: b) सर्वव्यापी ईश्वर
  3. वाख सं. 2 में ललद्यद ने आत्म-खोज के लिए क्या सुझाया है?
    a) तीर्थयात्रा
    b) मन की शुद्धता
    c) कर्मकांड
    d) धन संचय
    उत्तर: b) मन की शुद्धता
  4. वाख सं. 3 में ललद्यद ने संसार की तुलना किससे की है?
    a) स्वप्न
    b) सागर
    c) पर्वत
    d) वृक्ष
    उत्तर: a) स्वप्न
  5. ललद्यद की वाखों में भक्ति का स्वरूप कैसा है?
    a) सगुण
    b) निर्गुण
    c) कर्मकांडी
    d) सामाजिक
    उत्तर: b) निर्गुण

रिक्त स्थान पूर्ति

  1. ललद्यद की वाखों में ______ को सर्वत्र व्याप्त बताया गया है।
    उत्तर: शिव
  2. वाख सं. 2 में ललद्यद कहती हैं कि ______ को शुद्ध करके ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है।
    उत्तर: मन
  3. वाख सं. 3 में संसार को ______ के समान मिथ्या कहा गया है।
    उत्तर: स्वप्न
  4. ललद्यद की भक्ति ______ भक्ति है, जो बाह्य कर्मकांडों से मुक्त है।
    उत्तर: निर्गुण
  5. ललद्यद कहती हैं कि सच्चा साधक वह है जो ______ में ईश्वर को खोजता है।
    उत्तर: हृदय

स्तंभ मिलान

कॉलम A (वाख/पंक्ति)कॉलम B (संदेश/विषय)
1. शिव छति सर्वत्रa) संसार की मिथ्या प्रकृति
2. मन तेरा मंदिरb) आत्म-जागृति और मन की शुद्धता
3. स्वप्न सम संसारc) ईश्वर की सर्वव्यापकता
4. साधना साधक कीd) सच्चे साधक की पहचान
5. हृदय में हरिe) हृदय में ईश्वर की खोज

उत्तर:
1-c, 2-b, 3-a, 4-d, 5-e


लघु उत्तरीय प्रश्न

  1. वाख सं. 1 में ललद्यद ने शिव की क्या विशेषता बताई है?
    उत्तर: ललद्यद कहती हैं कि शिव सर्वत्र व्याप्त है। वह हर जगह, हर रूप में मौजूद है, और उसे बाहरी पूजा की आवश्यकता नहीं है।
  2. वाख सं. 2 में ललद्यद ने आत्म-खोज के लिए क्या उपाय सुझाया है?
    उत्तर: ललद्यद कहती हैं कि मन को मंदिर मानकर उसे शुद्ध करना चाहिए। मन की शुद्धता से ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है।
  3. वाख सं. 3 में संसार को मिथ्या क्यों कहा गया है?
    उत्तर: ललद्यद संसार को स्वप्न के समान मिथ्या कहती हैं, क्योंकि यह क्षणभंगुर और अस्थायी है, जो सत्य नहीं है।
  4. ललद्यद की भक्ति की एक विशेषता बताइए।
    उत्तर: ललद्यद की भक्ति निर्गुण है, जो बाह्य कर्मकांडों से मुक्त और हृदय की शुद्धता पर आधारित है।
  5. वाख सं. 4 में साधक की क्या विशेषता बताई गई है?
    उत्तर: ललद्यद कहती हैं कि सच्चा साधक वह है जो साधना के माध्यम से अपने मन को नियंत्रित करता है और ईश्वर की खोज करता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

  1. ललद्यद की वाखों का मुख्य विषय क्या है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
    उत्तर:
    ललद्यद की वाखों का मुख्य विषय भक्ति, आत्म-जागृति, और ईश्वर की सर्वव्यापकता है। वे निर्गुण भक्ति को महत्व देती हैं और बाह्य कर्मकांडों (जैसे मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा) का विरोध करती हैं। उनकी वाखें मनुष्य को आत्म-निरीक्षण और सत्य की खोज की प्रेरणा देती हैं।
    उदाहरण: वाख सं. 1 में ललद्यद कहती हैं:
    \begin{quote} शिव छति सर्वत्र, तू कहाँ खोजे उसको।
    \end{quote} इस वाख में वे बताती हैं कि शिव (ईश्वर) हर जगह व्याप्त है। उसे बाहर मंदिरों या तीर्थों में खोजने की आवश्यकता नहीं, बल्कि हृदय में उसका साक्षात्कार किया जा सकता है। यह वाख भक्ति की सरलता और ईश्वर की सर्वव्यापकता को दर्शाती है। ललद्यद की वाखें इस प्रकार समाज को आध्यात्मिक जागृति की ओर प्रेरित करती हैं।
  2. वाख सं. 2 में ललद्यद ने आत्म-खोज के लिए क्या संदेश दिया है? व्याख्या कीजिए।
    उत्तर:
    वाख सं. 2 में ललद्यद कहती हैं:
    \begin{quote} मन तेरा मंदिर, तू तहाँ बैठी देख।
    शुद्ध कर तू मन को, तभी हरि को पेख।।
    \end{quote} ललद्यद ने आत्म-खोज के लिए निम्नलिखित संदेश दिया है:
    • मन को मंदिर मानें: वे कहती हैं कि सच्चा मंदिर मनुष्य का मन है, न कि बाहरी भौतिक मंदिर।
    • मन की शुद्धता: आत्म-खोज और ईश्वर की प्राप्ति के लिए मन को विकारों (लालच, क्रोध, अहंकार) से मुक्त करना आवश्यक है।
    • आंतरिक भक्ति: ललद्यद बाहरी कर्मकांडों के बजाय आंतरिक शुद्धता और भक्ति पर जोर देती हैं।
      इस वाख के माध्यम से ललद्यद मनुष्य को आत्म-निरीक्षण और सादगीपूर्ण भक्ति की ओर प्रेरित करती हैं। यह संदेश आज के समाज में भी प्रासंगिक है, जहाँ लोग बाह्य दिखावे में उलझे रहते हैं।
  3. वाख सं. 3 में ललद्यद ने संसार की मिथ्या प्रकृति को कैसे व्यक्त किया है? उदाहरण सहित समझाइए।
    उत्तर:
    वाख सं. 3 में ललद्यद कहती हैं:
    \begin{quote} स्वप्न सम संसार यह, जाग तू लाल।
    मिथ्या है सब माया, सत्य हरि को पाल।।
    \end{quote} ललद्यद ने संसार की मिथ्या प्रकृति को निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया है:
    • संसार एक स्वप्न: वे संसार को स्वप्न के समान मिथ्या और क्षणभंगुर बताती हैं, जो स्थायी नहीं है।
    • जागृति का आह्वान: ललद्यद मनुष्य को माया के मोह से जागने और सत्य (ईश्वर) की खोज करने का आह्वान करती हैं।
    • आध्यात्मिक संदेश: वे कहती हैं कि सांसारिक सुख और भौतिक वस्तुएँ असत्य हैं, और सच्चा सुख ईश्वर भक्ति में है।
      इस वाख के माध्यम से ललद्यद मनुष्य को संसार की नश्वरता के प्रति जागरूक करती हैं और आत्मिक उत्थान की ओर प्रेरित करती हैं। यह आज के भौतिकवादी समाज में भी लोगों को सत्य की खोज के लिए प्रेरित कर सकता है।
  4. ललद्यद की वाखों में व्यक्त भक्ति भाव की विशेषताएँ क्या हैं? एक वाख के आधार पर समझाइए।
    उत्तर:
    ललद्यद की वाखों में व्यक्त भक्ति भाव की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:
    • निर्गुण भक्ति: ललद्यद निराकार, सर्वव्यापी ईश्वर की भक्ति करती हैं, सगुण पूजा का विरोध करती हैं।
    • आंतरिक खोज: वे कहती हैं कि ईश्वर हृदय में मिलता है, बाहरी मंदिरों में नहीं।
    • सादगी और सच्चाई: उनकी भक्ति कर्मकांडों से मुक्त और सच्चे मन पर आधारित है।
    • आत्म-जागृति: उनकी भक्ति मनुष्य को माया से मुक्त कर आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाती है।
    • सर्वसमावेशिता: उनकी भक्ति जाति, धर्म, या सामाजिक भेदभाव से परे है।
      उदाहरण: वाख सं. 1 में वे कहती हैं:
      \begin{quote} शिव छति सर्वत्र, तू कहाँ खोजे उसको।
      \end{quote} इस वाख में ललद्यद बताती हैं कि शिव (ईश्वर) हर जगह व्याप्त है। भक्ति के लिए बाहरी पूजा या तीर्थयात्रा की आवश्यकता नहीं, बल्कि हृदय में ईश्वर को खोजना चाहिए। यह उनकी निर्गुण भक्ति और सादगी को दर्शाता है। उनकी यह भक्ति आज भी लोगों को आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित करती है।
  5. ललद्यद की वाखों का आज के समाज पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? विस्तार से समझाइए।
    उत्तर:
    ललद्यद की वाखें आज के समाज पर निम्नलिखित प्रभाव डाल सकती हैं:
    • आध्यात्मिक जागृति: ललद्यद की वाखें बाह्य कर्मकांडों से हटकर हृदय की शुद्धता और ईश्वर की खोज की प्रेरणा देती हैं। आज के भौतिकवादी और तनावपूर्ण समाज में यह मानसिक शांति और संतुलन प्रदान कर सकता है।
    • सामाजिक समानता: उनकी भक्ति जाति, धर्म, और सामाजिक भेदभाव से मुक्त है, जो आज के समाज में समरसता और एकता को बढ़ावा दे सकती है।
    • आत्म-निरीक्षण: वाखें मनुष्य को माया के मोह से मुक्त होकर आत्म-जागृति की ओर प्रेरित करती हैं। यह आज के युवाओं को सही मार्ग चुनने में मदद कर सकता है।
    • सादगी और सत्य: ललद्यद की सादगीपूर्ण भक्ति आज के दिखावे और उपभोक्तावादी संस्कृति में लोगों को सच्चाई और सादगी की ओर ले जा सकती है।
    • प्रासंगिकता: उनकी वाखें सरल और सार्वभौमिक हैं, जो आधुनिक समाज में तनाव, अहंकार, और भौतिकवाद से जूझ रहे लोगों को आध्यात्मिक दिशा प्रदान कर सकती हैं।
      उदाहरण: वाख सं. 3 में संसार को स्वप्न के समान मिथ्या बताकर ललद्यद लोगों को सत्य की खोज के लिए प्रेरित करती हैं। यह आज के उपभोक्तावादी समाज में भौतिक सुखों के पीछे भागने वालों को आत्म-चिंतन की ओर ले जा सकता है।
      इस प्रकार, ललद्यद की वाखें आध्यात्मिकता, सामाजिक समानता, और आत्म-जागृति का मार्ग दिखाकर आधुनिक समाज को प्रेरित और दिशा प्रदान कर सकती हैं।

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