Class 9 Hindi Padya Sahitya ka itihas Bhaktikal abhunik kal ” हिंदी साहित्य में पद्य साहित्य का विशेष महत्व है। यह साहित्य की वह विधा है, जिसमें छंद, रस, अलंकार और भावों का समन्वय होता है। हिंदी पद्य साहित्य का इतिहास अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण है, जो विभिन्न कालखंडों में अपने स्वरूप और विषयवस्तु के आधार पर विकसित हुआ। हिंदी साहित्य को सामान्यतः चार प्रमुख कालों में विभाजित किया जाता है: आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल, और आधुनिक काल। इस लेख में भक्तिकाल और आधुनिक काल (छायावाद, प्रगतिवाद, नई कविता) का सामान्य परिचय प्रस्तुत किया जाएगा, जो कक्षा 9 के पाठ्यक्रम के अनुरूप है।
पद्य साहित्य का इतिहास एवं काल विभाजन: सामान्य परिचय
भक्तिकाल
भक्तिकाल हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग माना जाता है, जो लगभग 14वीं से 17वीं शताब्दी (1375 ई. से 1700 ई. तक) तक विस्तृत है। यह काल भक्ति भावना, आध्यात्मिकता और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। इस काल में कवियों ने ईश्वर भक्ति को केंद्र में रखकर रचनाएँ कीं, जो जनमानस को आध्यात्मिक और नैतिक दिशा प्रदान करती थीं। भक्तिकाल की कविता में सगुण और निर्गुण दोनों प्रकार की भक्ति धाराएँ प्रमुख थीं।
विशेषताएँ
- सगुण और निर्गुण भक्ति: सगुण भक्ति में राम और कृष्ण जैसे साकार ईश्वर की उपासना की गई, जबकि निर्गुण भक्ति में निराकार ईश्वर की भक्ति पर बल दिया गया।
- आध्यात्मिकता और समरसता: कवियों ने जाति, वर्ण और धर्म के भेदभाव को नकारकर सामाजिक एकता पर जोर दिया।
- सरल भाषा: भक्ति कवियों ने अवधी, ब्रज और खड़ी बोली का प्रयोग किया, जो जनसामान्य के लिए सुलभ थी।
- छंद और रस: दोहा, चौपाई, सवैया जैसे छंदों का प्रयोग हुआ, और भक्ति रस की प्रधानता रही।
- सामाजिक सुधार: भक्तिकाल की रचनाएँ कर्मकांड और अंधविश्वास के खिलाफ थीं।
प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ
- कबीर: निर्गुण भक्ति के प्रमुख कवि, जिनकी साखियाँ और सबद सामाजिक सुधार और आध्यात्मिकता के लिए प्रसिद्ध हैं।
- तुलसीदास: सगुण भक्ति के कवि, जिनकी रचना रामचरितमानस हिंदी साहित्य की अमर कृति है।
- सूरदास: कृष्ण भक्ति के कवि, जिनके सूरसागर में भक्ति और शृंगार रस का समन्वय है।
- मलिक मुहम्मद जायसी: सूफी परंपरा के कवि, जिनकी रचना पद्मावत प्रेम और भक्ति का प्रतीक है।
- ललद्यद: कश्मीर की संत कवयित्री, जिनकी वाखें निर्गुण भक्ति और आत्म-जागृति को दर्शाती हैं।
भक्तिकाल का महत्व
भक्तिकाल ने हिंदी साहित्य को जनसामान्य तक पहुँचाया और सामाजिक सुधारों को प्रोत्साहित किया। इस काल की रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि वे आध्यात्मिकता, समानता और नैतिकता का संदेश देती हैं।
आधुनिक काल
आधुनिक काल हिंदी साहित्य का वह काल है, जो 19वीं शताब्दी के मध्य से वर्तमान तक विस्तृत है। यह काल सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों का साक्षी रहा। आधुनिक काल में हिंदी कविता ने नए विषयों, शैलियों और विचारधाराओं को अपनाया। इस काल को कई उप-कालों में विभाजित किया जाता है, जिनमें भारतेन्दु युग, द्विवेदी युग, छायावाद, प्रगतिवाद, और नई कविता प्रमुख हैं। यहाँ छायावाद, प्रगतिवाद और नई कविता का सामान्य परिचय दिया गया है।
छायावाद
छायावाद हिंदी कविता का एक महत्वपूर्ण आंदोलन है, जो 1920 से 1936 तक प्रभावी रहा। यह कविता व्यक्तिवादी भावनाओं, प्रकृति सौंदर्य और रहस्यवाद से युक्त थी। छायावादी कवियों ने सूक्ष्म भावनाओं और कल्पनाशीलता को अपनी रचनाओं का आधार बनाया।
विशेषताएँ
- प्रकृति और प्रेम: प्रकृति को मानव भावनाओं के साथ जोड़ा गया, और प्रेम को सूक्ष्म और आध्यात्मिक रूप में चित्रित किया गया।
- रहस्यवाद: कविताओं में जीवन, मृत्यु और ईश्वर जैसे गहन विषयों पर चिंतन था।
- शृंगार और शांत रस: शृंगार रस की प्रधानता रही, साथ ही शांत रस भी प्रकट हुआ।
- मुक्त छंद: पारंपरिक छंदों के साथ-साथ मुक्त छंद का प्रयोग हुआ।
- बिंब और प्रतीक: कविताओं में नवीन बिंबों और प्रतीकों का उपयोग किया गया।
प्रमुख कवि और रचनाएँ
- जयशंकर प्रसाद: कामायनी और अन्य कविताएँ, जो रहस्यवाद और प्रकृति सौंदर्य को दर्शाती हैं।
- सुमित्रानंदन पंत: पल्लव और गुंजन, जो प्रकृति और मानव भावनाओं का चित्रण करते हैं।
- महादेवी वर्मा: नीहार, रश्मि, और दीपशिखा, जो प्रेम और वेदना को व्यक्त करती हैं।
- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’: जुही की कली और राम की शक्ति पूजा, जो छायावाद और प्रगतिवाद का मिश्रण हैं।
महत्व
छायावाद ने हिंदी कविता को आधुनिक और व्यक्तिवादी दृष्टिकोण प्रदान किया। इसने कविता को भावनात्मक गहराई और सौंदर्यबोध से समृद्ध किया।
प्रगतिवाद
प्रगतिवाद हिंदी कविता का वह आंदोलन है, जो 1936 से 1950 तक प्रभावी रहा। यह मार्क्सवादी विचारधारा और सामाजिक यथार्थवाद से प्रेरित था। प्रगतिवादी कवियों ने समाज की विसंगतियों, शोषण और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई।
विशेषताएँ
- सामाजिक यथार्थ: कविताएँ समाज के शोषित वर्गों, मजदूरों और किसानों की समस्याओं पर केंद्रित थीं।
- क्रांतिकारी स्वर: सामाजिक परिवर्तन और क्रांति का आह्वान किया गया।
- वीर और रौद्र रस: कविताओं में वीर रस और रौद्र रस की प्रधानता थी।
- सामान्य भाषा: जनसामान्य की भाषा का प्रयोग हुआ।
- वर्ग संघर्ष: पूँजीवाद और सामंतवाद के खिलाफ विचार व्यक्त किए गए।
प्रमुख कवि और रचनाएँ
- नागार्जुन: बादल को घेरते देखा है, जो प्रकृति और क्रांति का मिश्रण है।
- केदारनाथ अग्रवाल: राम का सपना, जो सामाजिक यथार्थ को दर्शाती है।
- शमशेर बहादुर सिंह: उषा, जो प्रगतिशील विचारों को व्यक्त करती है।
- मुक्तिबोध: अंधेरे में, जो सामाजिक और व्यक्तिगत संघर्ष को चित्रित करती है।
महत्व
प्रगतिवाद ने हिंदी कविता को सामाजिक जिम्मेदारी और यथार्थवाद से जोड़ा। इसने साहित्य को समाज के शोषित वर्गों की आवाज बनाया।
नई कविता
नई कविता हिंदी साहित्य का वह आंदोलन है, जो 1950 के दशक से 1970 तक प्रभावी रहा। यह व्यक्तिवाद, यथार्थवाद और आधुनिक जीवन की जटिलताओं पर केंद्रित थी। नई कविता ने छायावाद की भावुकता और प्रगतिवाद की विचारधारा से हटकर नए विषयों को अपनाया।
विशेषताएँ
- व्यक्तिगत अनुभव: कविताएँ व्यक्तिगत अनुभवों, मनोवैज्ञानिक जटिलताओं और आधुनिक जीवन पर आधारित थीं।
- यथार्थवादी दृष्टिकोण: सामाजिक और व्यक्तिगत यथार्थ को सूक्ष्मता से चित्रित किया गया।
- मुक्त छंद: कविताओं में मुक्त छंद और नवीन शैलियों का प्रयोग हुआ।
- नवीन बिंब: आधुनिक जीवन के प्रतीकों और बिंबों का उपयोग किया गया।
- विश्लेषणात्मक दृष्टि: जीवन और समाज की गहन पड़ताल की गई।
प्रमुख कवि और रचनाएँ
- अज्ञेय: हरी घास पर क्षण भर, जो व्यक्तिगत अनुभवों को दर्शाती है।
- मुक्तिबोध: चाँद का मुँह टेढ़ा है, जो आधुनिक समाज की विडंबनाओं को उजागर करती है।
- शमशेर बहादुर सिंह: मैंने देखा एक बूँद, जो सूक्ष्म भावनाओं को व्यक्त करती है।
- रघुवीर सहाय: हँसो हँसो जल्दी हँसो, जो सामाजिक व्यंग्य को दर्शाती है।
महत्व
नई कविता ने हिंदी कविता को आधुनिक जीवन की जटिलताओं और व्यक्तिगत अनुभवों से जोड़ा। इसने कविता को विचारशील और विश्लेषणात्मक बनाया।
निष्कर्ष
भक्तिकाल और आधुनिक काल (छायावाद, प्रगतिवाद, नई कविता) हिंदी पद्य साहित्य के महत्वपूर्ण पड़ाव हैं। भक्तिकाल ने भक्ति और सामाजिक समरसता को बढ़ावा दिया, जबकि आधुनिक काल ने कविता को व्यक्तिवाद, यथार्थवाद और सामाजिक जिम्मेदारी से समृद्ध किया। इन कालों की रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि वे मानव जीवन, समाज और प्रकृति के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं।
अभ्यास प्रश्न
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
- भक्तिकाल का समयकाल क्या है?
a) 10वीं से 12वीं शताब्दी
b) 14वीं से 17वीं शताब्दी
c) 18वीं से 19वीं शताब्दी
d) 20वीं शताब्दी
उत्तर: b) 14वीं से 17वीं शताब्दी - कबीर किस भक्ति धारा के कवि थे?
a) सगुण
b) निर्गुण
c) सूफी
d) कृष्ण भक्ति
उत्तर: b) निर्गुण - छायावाद की कविता में किस रस की प्रधानता थी?
a) वीर रस
b) शृंगार रस
c) रौद्र रस
d) हास्य रस
उत्तर: b) शृंगार रस - प्रगतिवाद का प्रमुख विषय क्या था?
a) प्रकृति सौंदर्य
b) सामाजिक यथार्थ और शोषण
c) धार्मिक भक्ति
d) व्यक्तिगत प्रेम
उत्तर: b) सामाजिक यथार्थ और शोषण - नई कविता का प्रमुख कवि कौन था?
a) तुलसीदास
b) अज्ञेय
c) सूरदास
d) जायसी
उत्तर: b) अज्ञेय
रिक्त स्थान पूर्ति
- भक्तिकाल में ______ और ______ भक्ति धाराएँ प्रमुख थीं।
उत्तर: सगुण, निर्गुण - तुलसीदास की प्रमुख रचना ______ है।
उत्तर: रामचरितमानस - छायावाद का समयकाल ______ से ______ तक था।
उत्तर: 1920, 1936 - प्रगतिवादी कवि ______ ने “बादल को घेरते देखा है” लिखा।
उत्तर: नागार्जुन - नई कविता में ______ छंद का प्रयोग हुआ।
उत्तर: मुक्त
स्तंभ मिलान
कॉलम A (काल/कवि) | कॉलम B (रचना/विशेषता) |
---|---|
1. भक्तिकाल | a) व्यक्तिगत अनुभव |
2. छायावाद | b) रामचरितमानस |
3. प्रगतिवाद | c) कामायनी |
4. नई कविता | d) बादल को घेरते देखा है |
5. तुलसीदास | e) सगुण और निर्गुण भक्ति |
उत्तर:
1-e, 2-c, 3-d, 4-a, 5-b
लघु उत्तरीय प्रश्न
- भक्तिकाल की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:- सगुण और निर्गुण भक्ति धाराओं की प्रधानता।
- सामाजिक समरसता और कर्मकांड विरोधी भावना।
- छायावाद का प्रमुख विषय क्या था?
उत्तर: छायावाद का प्रमुख विषय प्रकृति सौंदर्य, प्रेम, रहस्यवाद और व्यक्तिगत भावनाएँ था। - प्रगतिवादी कविता की एक विशेषता बताइए।
उत्तर: प्रगतिवादी कविता सामाजिक यथार्थ और शोषित वर्गों की समस्याओं पर केंद्रित थी। - नई कविता में किस प्रकार के छंद का प्रयोग हुआ?
उत्तर: नई कविता में मुक्त छंद का प्रयोग हुआ। - तुलसीदास की एक रचना का नाम बताइए।
उत्तर: रामचरितमानस।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
- भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएँ और इसके महत्व को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
भक्तिकाल (14वीं से 17वीं शताब्दी) हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग है, जिसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:- सगुण और निर्गुण भक्ति: सगुण भक्ति में राम और कृष्ण की उपासना (जैसे तुलसीदास की रामचरितमानस) और निर्गुण भक्ति में निराकार ईश्वर की भक्ति (जैसे कबीर की साखियाँ) की गई।
- सामाजिक समरसता: कवियों ने जाति और धर्म के भेदभाव को नकारकर समानता का संदेश दिया।
- सरल भाषा: अवधी और ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ, जो जनसामान्य के लिए सुलभ थी।
- छंद और रस: दोहा, चौपाई और भक्ति रस की प्रधानता रही।
उदाहरण: कबीर की साखी “कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूँढे बन माहि” आत्म-जागृति और ईश्वर की खोज का संदेश देती है।
महत्व: भक्तिकाल ने हिंदी साहित्य को जनसामान्य तक पहुँचाया, सामाजिक सुधारों को प्रोत्साहित किया और आध्यात्मिकता को बढ़ावा दिया। इसकी रचनाएँ आज भी नैतिकता और समानता का संदेश देती हैं।
- छायावादी कविता की विशेषताएँ और इसके योगदान को एक कवि के उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
छायावाद (1920-1936) हिंदी कविता का एक महत्वपूर्ण आंदोलन है, जिसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:- प्रकृति और प्रेम: प्रकृति को मानव भावनाओं के साथ जोड़ा गया, जैसे पंत की कविताएँ।
- रहस्यवाद: जीवन और मृत्यु जैसे गहन विषयों पर चिंतन।
- शृंगार और शांत रस: सौंदर्य और शांति की अभिव्यक्ति।
- मुक्त छंद और बिंब: नवीन शैली और प्रतीकों का प्रयोग।
उदाहरण: जयशंकर प्रसाद की कामायनी में प्रकृति, प्रेम और मानव जीवन के दर्शन का चित्रण है, जो छायावाद की गहराई को दर्शाता है।
योगदान: छायावाद ने हिंदी कविता को आधुनिक और व्यक्तिवादी बनाया, सौंदर्यबोध और भावनात्मक गहराई प्रदान की। इसने हिंदी साहित्य को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई।
- प्रगतिवाद की विशेषताएँ और इसके सामाजिक प्रभाव को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
प्रगतिवाद (1936-1950) मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित काव्य आंदोलन है, जिसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:- सामाजिक यथार्थ: शोषित वर्गों (मजदूर, किसान) की समस्याओं का चित्रण।
- क्रांतिकारी स्वर: सामाजिक परिवर्तन और अन्याय के खिलाफ आवाज।
- वीर और रौद्र रस: संघर्ष और क्रोध की अभिव्यक्ति।
- सामान्य भाषा: जनसामान्य के लिए सुलभ।
उदाहरण: नागार्जुन की कविता बादल को घेरते देखा है प्रकृति और क्रांति का मिश्रण है, जो शोषण के खिलाफ आवाज उठाती है।
सामाजिक प्रभाव: प्रगतिवाद ने साहित्य को समाज के शोषित वर्गों की आवाज बनाया, सामाजिक जागरूकता बढ़ाई और क्रांतिकारी विचारों को प्रोत्साहित किया।
- नई कविता की विशेषताएँ और इसके महत्व को एक रचना के उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
नई कविता (1950-1970) आधुनिक जीवन और व्यक्तिगत अनुभवों पर केंद्रित आंदोलन है, जिसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:- व्यक्तिगत अनुभव: मनोवैज्ञानिक जटिलताओं और व्यक्तिगत भावनाओं का चित्रण।
- यथार्थवाद: आधुनिक समाज की विडंबनाओं का विश्लेषण।
- मुक्त छंद: नवीन शैली और संरचना।
- नवीन बिंब: आधुनिक जीवन के प्रतीकों का उपयोग।
उदाहरण: मुक्तिबोध की चाँद का मुँह टेढ़ा है आधुनिक समाज की विसंगतियों और व्यक्तिगत संघर्ष को दर्शाती है।
महत्व: नई कविता ने हिंदी कविता को आधुनिक जीवन से जोड़ा, विचारशील और विश्लेषणात्मक बनाया। इसने साहित्य को समकालीन चुनौतियों के प्रति संवेदनशील बनाया।
- भक्तिकाल और आधुनिक काल की तुलना उनके विषयों और शैली के आधार पर कीजिए।
उत्तर:
भक्तिकाल और आधुनिक काल हिंदी पद्य साहित्य के दो महत्वपूर्ण काल हैं, जिनकी तुलना निम्नलिखित आधार पर की जा सकती है:- विषय:
- भक्तिकाल: भक्ति, आध्यात्मिकता और सामाजिक समरसता प्रमुख थी। उदाहरण: तुलसीदास की रामचरितमानस में राम भक्ति और नैतिकता का चित्रण।
- आधुनिक काल: प्रकृति, प्रेम, सामाजिक यथार्थ और व्यक्तिगत अनुभव। उदाहरण: प्रसाद की कामायनी (छायावाद) और मुक्तिबोध की अंधेरे में (प्रगतिवाद/नई कविता)।
- शैली:
- भक्तिकाल: दोहा, चौपाई, सवैया जैसे पारंपरिक छंद और सरल भाषा (अवधी, ब्रज)।
- आधुनिक काल: मुक्त छंद, बिंबात्मक और प्रतीकात्मक शैली, खड़ी बोली का प्रयोग।
- उद्देश्य:
- भक्तिकाल: आध्यात्मिक जागृति और सामाजिक सुधार।
- आधुनिक काल: सौंदर्यबोध, सामाजिक जागरूकता और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति।
- प्रभाव: भक्तिकाल ने जनसामान्य को एकजुट किया, जबकि आधुनिक काल ने कविता को वैश्विक और विचारशील बनाया।
निष्कर्ष: भक्तिकाल ने आध्यात्मिक और सामाजिक आधार प्रदान किया, जबकि आधुनिक काल ने कविता को विविध विषयों और शैलियों से समृद्ध किया। दोनों ने हिंदी साहित्य को अनूठा योगदान दिया।
- विषय:
MP Board Class 9th Hindi Syllabus माध्यमिक शिक्षा मण्डल, मध्यप्रदेश भोपाल – हाई स्कूल परीक्षा 2025-26
1 thought on “Class 9 Hindi Padya Sahitya ka itihas Bhaktikal abhunik kal: “ पद्य साहित्य का इतिहास- भक्तिकाल , आधुनिक काल”