अध्याय 8: जीव जनन कैसे करते है : MP Board 10th Science chapter 8 jiv janan kaise karte hai

MP Board 10th Science chapter 8 jiv janan kaise karte hai

अध्याय 8: जीव जनन कैसे करते है

8. जीव जनन कैसे करते हैं

जीवों की जनन क्रिया-विधि पर चर्चा करने से पहले, आइए हम एक मूलभूत प्रश्न पर विचार करें – जीव जनन क्यों करते हैं?

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पोषण, श्वसन या उत्सर्जन जैसे आवश्यक जैव-प्रक्रमों की तुलना में किसी जीव (व्यष्टि) को जीवित रहने के लिए जनन आवश्यक नहीं है। इसके विपरीत जीव को संतति उत्पन्न करने के लिए अत्यधिक ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है। फिर जीव उस प्रक्रम में अपनी ऊर्जा क्यों व्यर्थ करे जो उसके जीवित रहने के लिए आवश्यक नहीं है? इस प्रश्न के संभावित उत्तर कक्षा में खोजना अत्यंत रोचक होगा।

इस प्रश्न का जो भी उत्तर हो, यह स्पष्ट है कि हमें विभिन्न जीव इसीलिए दिखाई देते हैं क्योंकि वे जनन करते हैं। यदि कोई जीव अकेला होता और जनन द्वारा अपने जैसे व्यष्टि उत्पन्न नहीं करता, तो संभव है कि हमें उसके अस्तित्व का पता भी नहीं चलता। किसी स्पीशीज़ में पाए जाने वाले जीवों की विशाल संख्या ही हमें उसके अस्तित्व का ज्ञान कराती है।

हमें कैसे पता चलता है कि दो व्यष्टि एक ही स्पीशीज़ के सदस्य हैं? सामान्यतः हम ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि वे एकसमान दिखाई देते हैं। अतः, जनन करने वाले जीव संतति का सृजन करते हैं जो बहुत सीमा तक उनके समान दिखते हैं।

8.1 क्या जीव पूर्णतः अपनी प्रतिकृति का सृजन करते हैं?

विभिन्न जीवों की अभिकल्प (design), आकार एवं आकृति समान होने के कारण ही वे सदृश प्रतीत होते हैं। शरीर का अभिकल्प समान होने के लिए उनका ब्लूप्रिंट भी समान होना चाहिए। अतः, अपने आधारभूत स्तर पर, जनन जीव के अभिकल्प का ब्लूप्रिंट तैयार करता है।

कक्षा 9 में आप पढ़ चुके हैं कि कोशिका के केंद्रक में पाए जाने वाले गुणसूत्रों के डी.एन.ए. (DNA – डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल) के अणुओं में आनुवंशिक गुणों का संदेश होता है, जो जनक (माता-पिता) से संतति (संतान) पीढ़ी में जाता है। कोशिका के केंद्रक के डी.एन.ए. में प्रोटीन संश्लेषण (protein synthesis) हेतु सूचना निहित होती है। इस संदेश के भिन्न होने की अवस्था में बनने वाली प्रोटीन भी भिन्न होगी। विभिन्न प्रोटीन के कारण अंततः शारीरिक अभिकल्प में भी विविधता होगी।

अतः: जनन की मूल घटना डी.एन.ए, (DNA) की प्रतिकृति बनाना है। डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनाने के लिए कोशिकाएँ विभिन्‍न रासायनिक क्रियाओं का उपयोग करती हैं। जनन कोशिका में इस प्रकार डी.एन.ए, की दो प्रतिकृतियाँ बनती हैं तथा उनका एक-दूसरे से अलग होना आवश्यक है। परंतु डी.एन.ए. की एक प्रतिकृति को मूल कोशिका में रखकर दूसरी प्रतिकृति को उससे बाहर निकाल देने से काम नहीं चलेगा

क्योंकि दूसरी प्रतिकृति के पास जैव-प्रक्रमों के अनुरक्षण हेतु संगठित कोशिकीय संरचना तो नहीं होगी। इसलिए डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनने के साथ-साथ दूसरी कोशिकीय संरचनाओं का सृजन भी होता रहता है, इसके बाद डी.एन.ए. की प्रतिकृतियाँ विलग हो जाती हैं। परिणामत: एक कोशिका विभाजित होकर दो कोशिकाएँ बनाती है।यह दोनों कोशिकाएँ यद्यपि एकसमान हैं, परंतु कया वे पूर्णरूपेण समरूप हैं? इस प्रश्न का उत्तर इस बात पर निर्भर करता है कि प्रतिकृति की प्रक्रियाएँ कितनी यथार्थता से संपादित होती हैं। कोई भी जैव-रासायनिक प्रक्रिया पूर्रूपेण विश्वसनीय नहीं होती।

अतः: यह अपेक्षित है कि डी.एन.ए, प्रतिकृति की प्रक्रिया में कुछ विभिन्‍नता आएगी। परिणामतः , बनने वाली डी.एन.ए. प्रतिकृतियाँ एकसमान तो होंगी, परंतु मौलिक डी.एन.ए. का समरूप नहीं होंगी। हो सकता है कि कुछ विभिन्‍नताएँ इतनी उग्र हों कि डी.एन.ए, की नयी प्रतिकृति अपने कोशिकीय संगठन के साथ समायोजित नहीं हो पाए।

इस प्रकार की संतति कोशिका मर जाती है। दूसरी ओर डी.एन.ए, प्रतिकृति की अनेक विभिन्‍नताएँ इतनी उग्र नहीं होतीं। अत: संतति कोशिकाएँ समान होते हुए भी किसी न किसी रूप में एक दूसरे से भिन्न होती हैं। जनन में होने वाली यह विभिन्‍नताएँ जैव-विकास का आधार हैं, जिसकी चर्चा हम अगले अध्याय में करेंगे।

8.1.1 विभिन्‍नता का महत्व

अपनी जनन क्षमता का उपयोग कर जीवों की समष्टि पारितंत्र में स्थान अथवा निकेत ग्रहण करते हैं। जनन के दौरान डी.एन.ए, प्रतिकृति का अविरोध जीव की शारीरिक संरचना एवं डिज़ाइन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो उसे विशिष्ट निकेत के योग्य बनाती है। अतः किसी प्रजाति (स्पीशीज़) की समष्टि के स्थायित्व का संबंध जनन से है। परंतु, निकेत में अनेक परिवर्तन आ सकते हैं जो जीवों के नियंत्रण से बाहर हैं।

पृथ्वी का ताप कम या अधिक हो सकता है, जल स्तर में परिवर्तन अथवा किसी उल्का पिंड का टकराना इसके कुछ उदाहरण हैं। यदि एक समष्टि अपने निकेत के अनुकूल है तथा निकेत में कुछ उग्र परिवंतन आते हैं तो ऐसी अवस्था में समष्टि का समूल विनाश भी संभव है। परंतु, यदि समष्टि के जीवों में कुछ विभिन्‍नता होगी तो उनके जीवित रहने की कुछ संभावना है। अत: यदि शीतोष्ण जल में पाए जाने वाले जीवाणुओं की कोई समष्टि है तथा वैश्विक ऊष्मीकरण (global warming) के कारण जल का ताप बढ़ जाता है तो अधिकतर जीवाणु व्यष्टि मर जाएँगे, परंतु उष्ण प्रतिरोधी क्षमता वाले कुछ परिवर्त ही जीवित रहते हैं तथा वृद्धि करते हैं। अत: विभिन्‍नताएँ स्पीशीज की उत्तरजीविता बनाए रखने में उपयोगी हैं।

जनन की मूल घटना: DNA की प्रतिकृति

जनन की मूल घटना डी.एन.ए. (DNA) की प्रतिकृति बनाना है। इस प्रक्रिया में कोशिकाएँ विभिन्न रासायनिक क्रियाओं का उपयोग करती हैं। जनन कोशिका में इस प्रकार डी.एन.ए. की दो प्रतिकृतियाँ बनती हैं, जिनका एक-दूसरे से अलग होना ज़रूरी है।

हालांकि, डी.एन.ए. की एक प्रतिकृति को मूल कोशिका में रखकर दूसरी को बाहर निकालने से काम नहीं चलेगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि दूसरी प्रतिकृति के पास जैव-प्रक्रमों को बनाए रखने के लिए ज़रूरी संगठित कोशिकीय संरचना नहीं होगी। इसलिए, डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनने के साथ-साथ दूसरी कोशिकीय संरचनाओं का निर्माण भी होता रहता है। इसके बाद, डी.एन.ए. की प्रतिकृतियाँ अलग हो जाती हैं। परिणामस्वरूप, एक कोशिका विभाजित होकर दो कोशिकाएँ बनाती है।

प्रतिकृति में भिन्नता

ये दोनों कोशिकाएँ यद्यपि एकसमान दिखती हैं, पर क्या वे पूर्णरूपेण समरूप (identical) होती हैं? इसका उत्तर इस बात पर निर्भर करता है कि प्रतिकृति की प्रक्रिया कितनी यथार्थता (accuracy) से होती है। कोई भी जैव-रासायनिक प्रक्रिया पूरी तरह विश्वसनीय नहीं होती। इसलिए, यह अपेक्षित है कि डी.एन.ए. प्रतिकृति की प्रक्रिया में कुछ भिन्नता (variation) आएगी।

परिणामस्वरूप, बनने वाली डी.एन.ए. प्रतिकृतियाँ एकसमान तो होंगी, लेकिन मौलिक डी.एन.ए. के समरूप नहीं होंगी। हो सकता है कि कुछ भिन्नताएँ इतनी तीव्र हों कि डी.एन.ए. की नई प्रतिकृति अपने कोशिकीय संगठन के साथ समायोजित न हो पाए। ऐसी संतति कोशिकाएँ मर जाती हैं। दूसरी ओर, डी.एन.ए. प्रतिकृति की अनेक भिन्नताएँ इतनी तीव्र नहीं होतीं। अतः, संतति कोशिकाएँ समान होते हुए भी किसी न किसी रूप में एक-दूसरे से भिन्न होती हैं। जनन में होने वाली यह भिन्नताएँ ही जैव-विकास का आधार हैं, जिसकी चर्चा अगले अध्याय में की जाएगी।

8.1.1 भिन्नता का महत्व

जीव अपनी जनन क्षमता का उपयोग कर पारितंत्र में अपना स्थान या निकेत (niche) ग्रहण करते हैं। जनन के दौरान डी.एन.ए. प्रतिकृति की स्थिरता जीव की शारीरिक संरचना और डिज़ाइन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, जो उसे एक विशिष्ट निकेत के योग्य बनाती है। इसलिए, किसी प्रजाति (स्पीशीज़) की समष्टि (population) के स्थायित्व का संबंध जनन से है।

हालांकि, निकेत में अनेक परिवर्तन आ सकते हैं जो जीवों के नियंत्रण से बाहर होते हैं। पृथ्वी का ताप कम या अधिक होना, जल स्तर में परिवर्तन, या किसी उल्का पिंड का टकराना इसके कुछ उदाहरण हैं। यदि एक समष्टि अपने निकेत के अनुकूल है और निकेत में कुछ तीव्र परिवर्तन आते हैं, तो ऐसी स्थिति में उस समष्टि का पूरी तरह से विनाश भी संभव है।

परंतु, यदि समष्टि के जीवों में कुछ भिन्नताएँ होंगी, तो उनके जीवित रहने की कुछ संभावना होती है। उदाहरण के लिए, यदि शीतोष्ण जल में पाए जाने वाले जीवाणुओं की कोई समष्टि है और वैश्विक ऊष्मीकरण (global warming) के कारण जल का ताप बढ़ जाता है, तो ज़्यादातर जीवाणु मर जाएँगे। लेकिन, उष्ण प्रतिरोधी क्षमता वाले कुछ परिवर्तित जीवाणु ही जीवित रहते हैं और वृद्धि करते हैं। अतः, भिन्नताएँ स्पीशीज़ की उत्तरजीविता (survival) बनाए रखने में उपयोगी हैं।

8.2.1 विखंडन

‘एककोशिक जीवों में कोशिका विभाजन अथवा विखंडन द्वारा नए जीवों की उत्पत्ति होती  है। विखंडन के अनेक तरीके प्रेक्षित किए गए। अनेक जीवाणु तथा प्रोटोजोआ की  कोशिका विभाजन द्वारा मान्यत: दो बराबर भागों में विभक्‍्त हो जाती है। अमीबा जैसे जीवों में कोशिका विभाजन किसी भी तल से  सकता है।

प्रश्नोत्तर

  1. डी.एन.ए. प्रतिकृति का प्रजनन में क्या महत्त्व है? डी.एन.ए. प्रतिकृति प्रजनन की मूल घटना है। यह सुनिश्चित करती है कि जनक के आनुवंशिक गुण अगली पीढ़ी में जाएँ। डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनने के साथ-साथ नई कोशिकीय संरचनाओं का भी निर्माण होता है, जिससे एक कोशिका विभाजित होकर दो नई कोशिकाएँ बनाती है, जो मूल कोशिका के समान होती हैं। यह जीवों के अभिकल्प (डिजाइन) को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
  2. जीवों में भिन्नता स्पीशीज़ के लिए तो लाभदायक है परंतु व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है, क्यों? जीवों में भिन्नता स्पीशीज़ की उत्तरजीविता (survival) के लिए महत्वपूर्ण है। यदि किसी पारितंत्र में अचानक कोई बड़ा परिवर्तन (जैसे तापमान में वृद्धि) आता है, तो भिन्नता रखने वाले कुछ जीव उस बदली हुई परिस्थिति के अनुकूल ढल पाते हैं और जीवित रहते हैं, जिससे स्पीशीज़ का अस्तित्व बना रहता है। हालाँकि, एक व्यष्टि (व्यक्तिगत जीव) के लिए, डी.एन.ए. प्रतिकृति के दौरान होने वाली कोई भी उग्र भिन्नता उसके लिए हानिकारक हो सकती है और वह समायोजित न होने के कारण मर भी सकता है। इसलिए, यह व्यष्टि के लिए सीधे तौर पर आवश्यक नहीं है, बल्कि स्पीशीज़ के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है।

8.2 एकल जीवों में प्रजनन की विधि

आइए, हम विभिन्न जीवों में प्रजनन की विधि को समझने के लिए कुछ क्रियाकलाप देखें।

  • 100 mL जल में लगभग 10 g चीनी को घोलिए।
  • एक परखनली में इस विलयन का 20 mL लेकर उसमें एक चुटकी यीस्ट पाउडर डालिए।
  • परखनली के मुख को रूई से ढककर किसी गर्म स्थान पर रखिए।
  • 1 या 2 घंटे पश्चात, परखनली से यीस्ट-संवर्ध की एक बूंद स्लाइड पर लेकर उस पर कवर-स्लिप रखिए।
  • सूक्ष्मदर्शी की सहायता से स्लाइड का प्रेक्षण कीजिए।
  • डबल रोटी के एक टुकड़े को जल में भिगोकर ठंडे, नम तथा अँधेरे स्थान पर रखिए।
  • आवर्धक लेंस की सहायता से स्लाइस की सतह का निरीक्षण कीजिए।
  • अपने एक सप्ताह के प्रेक्षण कॉपी में रिकॉर्ड कीजिए।

तुलना: यीस्ट की वृद्धि और दूसरी क्रियाकलाप में कवक (फंगस) की वृद्धि के तरीके की तुलना कीजिए तथा ज्ञात कीजिए कि इनमें क्या अंतर है।

इस चर्चा के बाद कि जनन किस प्रकार कार्य करता है, आइए, हम जानें कि विभिन्न जीव वास्तव में किस प्रकार जनन करते हैं। विभिन्न जीवों के जनन की विधि उनके शारीरिक अभिकल्प पर निर्भर करती है।

8.2.1 विखंडन (Fission)

  • एककोशिकीय जीवों में कोशिका विभाजन अथवा विखंडन द्वारा नए जीवों की उत्पत्ति होती है।
  • विखंडन के अनेक तरीके देखे गए हैं।
  • अनेक जीवाणु तथा प्रोटोजोआ की कोशिका विभाजन द्वारा सामान्यतः दो बराबर भागों में विभक्त हो जाती है।
  • अमीबा जैसे जीवों में कोशिका विभाजन किसी भी तल से हो सकता है।

विखंडन के विभिन्न प्रकार

  • अमीबा की स्थायी स्लाइड का सूक्ष्मदर्शी की सहायता से प्रेक्षण कीजिए।
  • इसी प्रकार अमीबा के द्विखंडन की स्थायी स्लाइड का प्रेक्षण कीजिए।
  • अब दोनों स्लाइडों की तुलना कीजिए।

परंतु, कुछ एककोशिक जीवों में शारीरिक संरचना अधिक संगठित होती है।

  • उदाहरणत: कालाज़ार के रोगाणु, लेस्मानिया में कोशिका के एक सिरे पर कोड़े के समान सूक्ष्म संरचना होती है। ऐसे जीवों में द्विखंडन एक निर्धारित तल से होता है। (चित्र 8.1 (b) लेस्मानिया में द्विखंडन को दर्शाता है।)
  • मलेरिया परजीवी, प्लाज्मोडियम जैसे अन्य एककोशिक जीव एक साथ अनेक संतति कोशिकाओं में विभाजित हो जाते हैं, जिसे बहुखंडन कहते हैं। (चित्र 8.2 प्लाज्मोडियम में बहुखंडन को दर्शाता है।)

दूसरी ओर, यीस्ट कोशिका से छोटे मुकुल उभरकर कोशिका से अलग हो जाते हैं तथा स्वतंत्र रूप से वृद्धि करते हैं, जैसा कि हम क्रियाकलाप 8.1 में देख चुके हैं।

8.2.2 खंडन (Fragmentation)

  • किसी झील अथवा तालाब जिसका जल गहरा हरा दिखाई देता हो और जिसमें तंतु के समान संरचनाएँ हों, उससे कुछ जल एकत्र कीजिए।
  • एक स्लाइड पर एक अथवा दो तंतु रखिए।
  • इन तंतुओं पर ग्लिसरीन की एक बूंद डालकर कवर-स्लिप से ढक दीजिए।
  • सूक्ष्मदर्शी के नीचे स्लाइड का प्रेक्षण कीजिए।
  • क्या आप स्पाइरोगाइरा तंतुओं में विभिन्न ऊतक पहचान सकते हैं?

सरल संरचना वाले बहुकोशिक जीवों में जनन की सरल विधि कार्य करती है।

  • उदाहरणतः स्पाइरोगाइरा सामान्यतः विकसित होकर छोटे-छोटे टुकड़ों में खंडित हो जाता है। ये टुकड़े अथवा खंड वृद्धि कर नए जीव (व्यष्टि) में विकसित हो जाते हैं। क्रियाकलाप 8.4 के प्रेक्षण के आधार पर क्या हम इसका कारण खोज सकते हैं?

परंतु यह सभी बहुकोशिक जीवों के लिए सत्य नहीं है। वे सरल रूप से कोशिका-दर-कोशिका विभाजित नहीं होते। ऐसा क्यों है?

इसका कारण है कि अधिकतर बहुकोशिक जीव विभिन्न कोशिकाओं का समूह मात्र ही नहीं हैं। विशेष कार्य हेतु विशिष्ट कोशिकाएँ संगठित होकर ऊतक का निर्माण करती हैं तथा ऊतक संगठित होकर अंग बनाते हैं। शरीर में इनकी स्थिति भी निश्चित होती है। ऐसी सजग व्यवस्थित परिस्थिति में कोशिका-दर-कोशिका विभाजन अव्यावहारिक है। अतः, बहुकोशिक जीवों को जनन के लिए अपेक्षाकृत अधिक जटिल विधि की आवश्यकता होती है।

बहुकोशिक जीवों द्वारा प्रयुक्त एक सामान्य युक्ति यह है कि विभिन्‍न प्रकार की कोशिकाएँ विशिष्ट कार्य के लिए दक्ष होती हैं। इस सामान्य व्यवस्था का परिपालन करते हुए इस प्रकार के जीवों में जनन के लिए विशिष्ट प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं। क्या जीव अनेक प्रकार की कोशिकाओं का बना होता है? इसका उत्तर है कि जीव में कुछ ऐसी कोशिकाएँ होनी चाहिए जिनमें वृद्धि, क्रम, प्रसरण तथा उचित परिस्थिति में विशेष प्रकार की कोशिका बनाने की क्षमता हो।

8.2.3 पुनरूद्भवन ( पुनर्जनन )

पूर्णरूपेण विभेदित जीवों में अपने कायिक भाग से नए जीव के निर्माण की क्षमता होती है। अर्थात यदि किसी कारणवश जीव क्षत-विक्षत हो – जाता है अथवा कुछ टुकड़ों में टूट जाता है तो इसके अनेक टुकड़े ही वृद्धि कर नए जीव में विकसित हो जाते हैं। उदाहरणत: हाइड्रा तथा प्लेनेरिया जैसे सरल प्राणियों को यदि कई टुकड़ों में काट दिया जाए 2 तो प्रत्येक टुकड़ा विकसित होकर पूर्णजीव का निर्माण कर देता है। यह लता कं पुनरुदभवन कहलाता है (चित्र 8.3)। पुनरुदभवन (पुनर्जनन) विशिष्ट

कोशिकाओं द्वारा संपादित होता है। इन कोशिकाओं के क्रमप्रसरण से N & अनेक कोशिकाएँ बन जाती हैं। कोशिकाओं के इस समूह से परिवर्तन के दौरान विभिन्‍न प्रकार की कोशिकाएँ एवं ऊतक बनते हैं। यह परिवर्तन बहुत व्यवस्थित रूप एवं क्रम से होता है जिसे परिवर्धन कहते हैं। परंतु पुनरुदभवन जनन के समान नहीं है इसका मुख्य कारण यह चित्र 8.3 प्लेनेरिया में पुनरुदभवन है कि प्रत्येक जीव के किसी भी भाग को काट कर सामान्यतः नया जीव उत्पन्न नहीं होता।

8.2.4 मुकुलन

हाइड्रा जैसे कुछ प्राणी पुनर्जनन की क्षमता वाली कोशिकाओं का उपयोग मुकुलन के लिए करते हैं। हाइड्रा में कोशिकाओं के नियमित विभाजन के कारण एक स्थान पर उभार विकसित हो जाता है। यह उभार (मुकुल) वृद्धि करता हुआ नन्हे जीव में बदल जाता है तथा पूर्ण विकसित होकर जनक से अलग होकर स्वतंत्र जीव बन जाता है।

बहुकोशिकीय जीवों द्वारा प्रयुक्त एक सामान्य युक्ति यह है कि विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ विशिष्ट कार्य के लिए दक्ष (efficient) होती हैं। इस सामान्य व्यवस्था का पालन करते हुए, इस प्रकार के जीवों में जनन के लिए विशिष्ट प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं।

क्या जीव अनेक प्रकार की कोशिकाओं का बना होता है? इसका उत्तर है कि जीव में कुछ ऐसी कोशिकाएँ होनी चाहिए जिनमें वृद्धि, क्रमप्रसरण (proliferation) तथा उचित परिस्थिति में विशेष प्रकार की कोशिका बनाने की क्षमता हो।

8.2.3 पुनरुद्भवन (पुनर्जनन – Regeneration)

पूर्णरूपेण विभेदित (differentiated) जीवों में अपने कायिक भाग (body part) से नए जीव के निर्माण की क्षमता होती है।

  • अर्थात यदि किसी कारणवश जीव क्षत-विक्षत हो जाता है अथवा कुछ टुकड़ों में टूट जाता है, तो इसके अनेक टुकड़े ही वृद्धि कर नए जीव में विकसित हो जाते हैं।
  • उदाहरणत: हाइड्रा तथा प्लेनेरिया जैसे सरल प्राणियों को यदि कई टुकड़ों में काट दिया जाए तो प्रत्येक टुकड़ा विकसित होकर पूर्ण जीव का निर्माण कर देता है।
  • यह प्रक्रिया पुनरुद्भवन कहलाती है (चित्र 8.3)। (चित्र 8.3 प्लेनेरिया में पुनरुद्भवन को दर्शाता है, जिसमें एक कटे हुए प्लेनेरिया के टुकड़े नए पूर्ण जीव में विकसित हो रहे हैं।)

पुनरुद्भवन (पुनर्जनन) विशिष्ट कोशिकाओं द्वारा संपादित होता है। इन कोशिकाओं के क्रमप्रसरण (proliferation) से अनेक कोशिकाएँ बन जाती हैं। कोशिकाओं के इस समूह से परिवर्तन के दौरान विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ एवं ऊतक बनते हैं। यह परिवर्तन बहुत व्यवस्थित रूप एवं क्रम से होता है जिसे परिवर्धन (development) कहते हैं।

परंतु, पुनरुद्भवन जनन के समान नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि प्रत्येक जीव के किसी भी भाग को काटकर सामान्यतः नया जीव उत्पन्न नहीं होता।

8.2.4 मुकुलन (Budding)

हाइड्रा जैसे कुछ प्राणी पुनर्जनन की क्षमता वाली कोशिकाओं का उपयोग मुकुलन के लिए करते हैं।

  • हाइड्रा में कोशिकाओं के नियमित विभाजन के कारण एक स्थान पर उभार (मुकुल) विकसित हो जाता है।
  • यह उभार वृद्धि करता हुआ नन्हे जीव में बदल जाता है तथा पूर्ण विकसित होकर जनक से अलग होकर स्वतंत्र जीव बन जाता है। (चित्र 8.4 हाइड्रा में मुकुलन को दर्शाता है, जिसमें एक मुकुल विकसित होकर नए हाइड्रा में बदल रहा है और अंततः जनक से अलग हो जाता है।)

8.2.5 कायिक प्रवर्धन

ऐसे बहुत से पौधे हैं जिनमें कुछ भाग जैसे जड़, तना तथा पत्तियाँ उपयुक्त परिस्थितियों में विकसित होकर नया पौधा उत्पन्न करते हैं। अधिकतर जंतुओं के विपरीत, एकल पौधे इस क्षमता का उपयोग जनन की विधि के रूप में करते हैं। परतन, कलम अथवा रोपण जैसी कायिक प्रवर्धन की तकनीक का उपयोग कृषि में भी किया जाता है। गन्ना, गुलाब अथवा अंगूर इसके कुछ उदाहरण हैं। कायिक प्रवर्धन द्वारा उगाए गए पौधों में बीज द्वारा उगाए पौधों की अपेक्षा पुष्प एवं फल कम समय में लगने लगते हैं। यह पद्धति केला, संतरा, गुलाब एवं चमेली जैसे उन पौधों को उगाने के लिए उपयोगी है जो बीज उत्पन्न करने की क्षमता खो चुके हैं। कायिक प्रवर्धन का दूसरा लाभ यह भी है कि इस प्रकार उत्पन्न सभी पौधे आनुवांशिक रूप से जनक पौधे के समान होते हैं।

8.2.5 कायिक प्रवर्धन (Vegetative Propagation)

बहुत से ऐसे पौधे हैं जिनमें कुछ भाग जैसे जड़, तना तथा पत्तियाँ उपयुक्त परिस्थितियों में विकसित होकर नया पौधा उत्पन्न करते हैं। अधिकतर जंतुओं के विपरीत, एकल पौधे इस क्षमता का उपयोग जनन की विधि के रूप में करते हैं।

कायिक प्रवर्धन की तकनीकें, जैसे कि पर्तन (layering), कलम (cutting) अथवा रोपण (grafting), का उपयोग कृषि में भी किया जाता है। गन्ना, गुलाब अथवा अंगूर इसके कुछ उदाहरण हैं।

कायिक प्रवर्धन के लाभ:

  • कायिक प्रवर्धन द्वारा उगाए गए पौधों में बीज द्वारा उगाए पौधों की अपेक्षा पुष्प एवं फल कम समय में लगने लगते हैं।
  • यह पद्धति केला, संतरा, गुलाब एवं चमेली जैसे उन पौधों को उगाने के लिए उपयोगी है जो बीज उत्पन्न करने की क्षमता खो चुके हैं।
  • कायिक प्रवर्धन का दूसरा लाभ यह भी है कि इस प्रकार उत्पन्न सभी पौधे आनुवंशिक रूप से जनक पौधे के समान होते हैं।

क्रियाकलाप: आलू में कायिक प्रवर्धन

  • एक आलू लेकर उसकी सतह का निरीक्षण कीजिए। क्या इसमें कुछ गर्त (आँखें या कलिकाएँ) दिखाई देते हैं?
  • आलू को छोटे-छोटे टुकड़ों में इस प्रकार काटिए कि कुछ में तो ये गर्त हों और कुछ में नहीं।
  • एक ट्रे में रूई की पतली पर्त बिछाकर उसे गीला कीजिए। कलिका (गर्त) वाले टुकड़ों को एक ओर तथा बिना गर्त वाले टुकड़ों को दूसरी ओर रख दीजिए।
  • अगले कुछ दिनों तक इन टुकड़ों में होने वाले परिवर्तनों का प्रेक्षण कीजिए। ध्यान रखिए कि रूई में नमी बनी रहे।
  • वे कौन से टुकड़े हैं जिनसे हरे प्ररोह तथा जड़ विकसित हो रहे हैं?

इसी प्रकार, ब्रायोफिलम (पत्थरचट्टा) की पत्तियों की कोर पर कुछ कलिकाएँ विकसित होकर मृदा में गिर जाती हैं तथा नए पौधे में विकसित हो जाती हैं (चित्र 8.5)। (चित्र 8.5 ब्रायोफिलम की पत्तियों की कोर पर कलिकाओं के लगने और उनसे नए पौधे के विकास को दर्शाता है।)

क्रियाकलाप: ब्रायोफिलम में कायिक प्रवर्धन

  • एक ब्रायोफिलम पत्ती लीजिए।
  • इसे कुछ टुकड़ों में इस प्रकार काटिए कि प्रत्येक में कम से कम एक पत्ती अवश्य हो।
  • दो पत्तियों के मध्य वाले भाग के कुछ टुकड़े काटिए।
  • सभी टुकड़ों के एक सिरे को जल में डुबोकर रखिए तथा अगले कुछ दिनों तक उनका अवलोकन कीजिए।
  • कौन से टुकड़ों में वृद्धि होती है तथा नई पत्तियाँ निकली हैं?
  • आप अपने प्रेक्षणों से क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं?

प्रश्न…

1. … द्विखंडन बहुखंडन से किस प्रकार भिन्न है?

2. … बीजाणु द्वारा जनन से जीव किस प्रकार लाभान्वित होता है?

3. .. क्या आप कुछ कारण सोच सकते हैं जिससे पता चलता हो कि जटिल संरचना वाले जीव

पुनरुद्भवन द्वारा नयी संतति उत्पन्न नहीं कर सकते?

4. कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है?

5. … डी.एन.ए, की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक क्यों है?

8.2.6 बीजाणु समासंघ (Spore Formation)

अनेक सरल बहुकोशिकीय जीवों में भी विशिष्ट जनन संरचनाएँ पाई जाती हैं।

  • क्रियाकलाप 8.2 में ब्रेड पर धागे के समान कुछ संरचनाएँ विकसित हुई थीं। यह राइजोपस (Rhizopus) का कवक जाल (hyphae) है। ये जनन के भाग नहीं हैं।
  • परंतु, ऊर्ध्व तंतुओं पर सूक्ष्म गुच्छ (गोल) संरचनाएँ जनन में भाग लेती हैं। ये गुच्छ बीजाणुधानी (sporangia) हैं, जिनमें विशेष कोशिकाएँ अथवा बीजाणु (spores) पाए जाते हैं (चित्र 8.6)।
  • ये बीजाणु वृद्धि करके राइजोपस के नए जीव उत्पन्न करते हैं।
  • बीजाणु के चारों ओर एक मोटी भित्ति होती है जो प्रतिकूल परिस्थितियों में उसकी रक्षा करती है। नम सतह के संपर्क में आने पर वे वृद्धि करने लगते हैं। (चित्र 8.6 राइजोपस में बीजाणु समासंघ को दर्शाता है, जिसमें बीजाणुधानी से बीजाणु बाहर निकल रहे हैं।)
  • अब तक जनन की जिन विधियों की हमने चर्चा की उन सभी में नई पीढ़ी का सृजन केवल एकल जीव द्वारा होता है। इसे अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) कहते हैं।

प्रश्न:

  1. द्विखंडन बहुखंडन से किस प्रकार भिन्न है?
  2. बीजाणु द्वारा जनन से जीव किस प्रकार लाभान्वित होता है?
  3. क्या आप कुछ कारण सोच सकते हैं जिससे पता चलता हो कि जटिल संरचना वाले जीव पुनरुद्भवन द्वारा नई संतति उत्पन्न नहीं कर सकते?
  4. कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है?
  5. डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक क्यों है?

8.3 लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)

हम जनन की उस विधि से भी परिचित हैं जिसमें नई संतति उत्पन्न करने हेतु दो व्यष्टि (एकल जीवों) की भागीदारी होती है। न तो एकल बैल संतति बछड़ा पैदा कर सकता है, और न ही एकल मुर्गी से नए चूजे उत्पन्न हो सकते हैं। ऐसे जीवों में नवीन संतति उत्पन्न करने हेतु नर एवं मादा दोनों लिंगों की आवश्यकता होती है।

8.3.1 लैंगिक जनन प्रणाली क्यों?

‘एकल (पैत्रक) कोशिका से दो संतति कोशिकाओं के बनने में डी.एन.ए, की प्रतिकृति बनना एवं कोशिकीय संगठन दोनों ही आवश्यक हैं। जैसा कि हम जान चुके हैं कि डी.एन.ए, प्रतिकृति की तकनीक पूर्णतः यथार्थ नहीं है, परिणामी त्रुटियाँ जीव की समष्टि में विभिन्‍नता का स्रोत हैं। जीव की प्रत्येक व्यष्टि विभिन्‍नताओं द्वारा संरक्षित नहीं हो सकती, परंतु स्पीशीज़ की समष्टि में पाई जाने वाली विभिन्‍नता उस स्पीशीज़ के अस्तित्व को बनाए रखने में सहायक है। अतः जीवों में जनन की कोई ऐसी विधि अधिक सार्थक होगी जिसमें अधिक विभिन्‍नता उत्पन्न हो सके। यद्यपि डी.एन.ए, प्रतिकृति की प्रणाली पूर्णरूपेण यथार्थ नहीं है वह इतनी परिशुद्ध अवश्य है जिसमें विभिन्‍नता अत्यंत धीमी गति से उत्पन्न होती है। यदि डी.एन.ए,. प्रतिकृति की क्रियाविधि कम परिशुद्ध होती, तो बनने वाली डी.एन.ए. प्रतिकृतियाँ कोशिकीय संरचना के साथ सामंजस्य नहीं रख पातीं। परिणामत: कोशिका की मृत्यु हो जाती। अतः परिवर्त उत्पन्न करने के प्रक्रम को किस प्रकार गति दी जा सकती है? प्रत्येक डी.एन.ए. प्रतिकृति में नयी विभिन्‍नता के साथ-साथ पूर्व पीढ़ियों की विभिन्‍नताएँ भी संग्रहित होती रहती हैं।

अतः समष्टि के दो जीवों में संग्रहित विभिन्‍नताओं के पैटर्न भी काफी भिन्न होंगे। क्योंकि यह सभी विभिन्‍नताएँ जीवित व्यष्टि में पाई जा रही हैं, अत: यह सुनिश्चित ही है कि यह विभिन्‍नताएँ हानिकारक नहीं हैं। दो अथवा अधिक एकल जीवों की विभिन्‍नताओं के संयोजन से विभिन्‍नताओं के नए संयोजन उत्पन्न होंगे। क्योंकि इस प्रक्रम में दो विभिन्‍न जीव भाग लेते हैं अतः प्रत्येक संयोजन अपने आप में अनोखा होगा। लैंगिक जनन में दो भिन्न जीवों से प्राप्त डी.एन.ए. को समाहित किया जाता है। परंतु इससे एक और समस्या पैदा हो सकती है। यदि संतति पीढ़ी में जनक जीवों के डी.एन.ए, का युग्मन होता रहे, तो प्रत्येक पीढ़ी में डी.एन.ए. की मात्रा पूर्व पीढ़ी की अपेक्षा दोगुनी होती जाएगी। इससे डी.एन.ए,. द्वारा कोशिकी संगठन पर नियंत्रण टूटने की अत्यधिक संभावना है। इस समस्या के समाधान के लिए हम कितने तरीके सोच सकते हैं?

हम पहले ही जान चुके हैं कि जैसे-जैसे जीवों की जटिलता बढ़ती जाती है वैसे-वैसे ऊतकों की विशिष्टता बढ़ती जाती है। उपरोक्त समस्या का समाधान जीवों ने इस प्रकार खोजा जिसमें विशिष्ट अंगों में कुछ विशेष प्रकार की कोशिकाओं की परत होती है जिनमें जीव की कायिक कोशिकाओं की अपेक्षा गुणसूत्रों की संख्या आधी होती है तथा डी.एन.ए. की मात्रा भी आधी होती है। यह कोशिका विभाजन की प्रक्रिया जिसे अर्द्धसूत्री विभाजन कहते हैं, के द्वारा प्राप्त किया जाता है। अतः दो भिन्‍न जीवों की यह युग्मक कोशिकाएँ लैंगिक जनन में युग्मन द्वारा युग्मनज (जायगोट) बनाती हैं तो संतति में गुणसूत्रों की संख्या एवं डी.एन.ए. की मात्रा पुरर्स्थापित हो जाती है।

जनन की सार्थकता और अलैंगिक जनन की सीमाएँ

जनन की सार्थकता यह है कि यह किसी स्पीशीज़ के अस्तित्व को बनाए रखने और उसकी निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। जनन के बिना कोई भी स्पीशीज़ विलुप्त हो जाएगी। यह जीवों को अपनी संख्या बढ़ाने और बदलते पर्यावरण के अनुकूल ढलने में मदद करता है।

हाँ, अलैंगिक जनन की कुछ सीमाएँ हैं जिनकी चर्चा हम पहले कर चुके हैं:

  • कम भिन्नता: अलैंगिक जनन में केवल एक ही जनक शामिल होता है, जिससे डी.एन.ए. प्रतिकृति में होने वाली त्रुटियों के अलावा कोई खास भिन्नता (variation) उत्पन्न नहीं होती।
  • अनुकूलन में कमी: कम भिन्नता के कारण, यदि पर्यावरण में कोई बड़ा या अचानक बदलाव आता है, तो पूरी समष्टि के लिए अनुकूलन करना मुश्किल हो जाता है, जिससे उनके समूल विनाश का खतरा बढ़ जाता है।
  • अधिक जोखिम: क्योंकि सभी जीव आनुवंशिक रूप से समान होते हैं, एक ही रोग या पर्यावरणीय कारक पूरी समष्टि को एक साथ प्रभावित कर सकता है।

8.3.1 लैंगिक जनन प्रणाली क्यों?

एकल (पैतृक) कोशिका से दो संतति कोशिकाओं के बनने में डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनना और कोशिकीय संगठन दोनों ही आवश्यक हैं। जैसा कि हम जान चुके हैं कि डी.एन.ए. प्रतिकृति की तकनीक पूर्णतः यथार्थ नहीं है, और परिणामस्वरूप होने वाली त्रुटियाँ जीव की समष्टि में भिन्नता का स्रोत हैं। जीव की प्रत्येक व्यष्टि भिन्नताओं द्वारा संरक्षित नहीं हो सकती, परंतु स्पीशीज़ की समष्टि में पाई जाने वाली भिन्नता उस स्पीशीज़ के अस्तित्व को बनाए रखने में सहायक है। अतः, जीवों में जनन की कोई ऐसी विधि अधिक सार्थक होगी जिसमें अधिक भिन्नता उत्पन्न हो सके।

यद्यपि डी.एन.ए. प्रतिकृति की प्रणाली पूर्णरूपेण यथार्थ नहीं है, वह इतनी परिशुद्ध अवश्य है जिसमें भिन्नता अत्यंत धीमी गति से उत्पन्न होती है। यदि डी.एन.ए. प्रतिकृति की क्रियाविधि कम परिशुद्ध होती, तो बनने वाली डी.एन.ए. प्रतिकृतियाँ कोशिकीय संरचना के साथ सामंजस्य नहीं रख पातीं, परिणामस्वरूप कोशिका की मृत्यु हो जाती।

तो, प्रश्न यह है कि परिवर्तन उत्पन्न करने के प्रक्रम को किस प्रकार गति दी जा सकती है? प्रत्येक डी.एन.ए. प्रतिकृति में नई भिन्नता के साथ-साथ पूर्व पीढ़ियों की भिन्नताएँ भी संग्रहित होती रहती हैं। अतः, समष्टि के दो जीवों में संग्रहित भिन्नताओं के पैटर्न भी काफी भिन्न होंगे। क्योंकि ये सभी भिन्नताएँ जीवित व्यष्टि में पाई जा रही हैं, अतः यह सुनिश्चित ही है कि ये भिन्नताएँ हानिकारक नहीं हैं। दो अथवा अधिक एकल जीवों की भिन्नताओं के संयोजन से भिन्नताओं के नए संयोजन उत्पन्न होंगे। क्योंकि इस प्रक्रम में दो भिन्न जीव भाग लेते हैं, अतः प्रत्येक संयोजन अपने आप में अनोखा होगा। लैंगिक जनन में दो भिन्न जीवों से प्राप्त डी.एन.ए. को समाहित किया जाता है।

गुणसूत्रों की संख्या का समाधान

परंतु इससे एक और समस्या पैदा हो सकती है: यदि संतति पीढ़ी में जनक जीवों के डी.एन.ए. का युग्मन होता रहे, तो प्रत्येक पीढ़ी में डी.एन.ए. की मात्रा पूर्व पीढ़ी की अपेक्षा दोगुनी होती जाएगी। इससे डी.एन.ए. द्वारा कोशिकीय संगठन पर नियंत्रण टूटने की अत्यधिक संभावना है।

इस समस्या के समाधान के लिए, जीवों ने एक तरीका खोजा है। इसमें विशिष्ट अंगों में कुछ विशेष प्रकार की कोशिकाओं की परत होती है, जिनमें जीव की कायिक कोशिकाओं की अपेक्षा गुणसूत्रों की संख्या आधी होती है तथा डी.एन.ए. की मात्रा भी आधी होती है। यह कोशिका विभाजन की प्रक्रिया, जिसे अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis) कहते हैं, के द्वारा प्राप्त किया जाता है। अतः, दो भिन्न जीवों की ये युग्मक कोशिकाएँ (Gametes) लैंगिक जनन में युग्मन द्वारा युग्मनज (Zygote) बनाती हैं, तो संतति में गुणसूत्रों की संख्या एवं डी.एन.ए. की मात्रा पुनर्स्थापित हो जाती है।

यदि युग्मनज वृद्धि एवं परिवर्धन द्वारा नए जीव में विकसित होता है तो इसमें ऊर्जा का भंडार भी पर्याप्त होना चाहिए। अति सरल संरचना वाले जीवों में प्राय: दो जनन कोशिकाओं (युग्मकों) की आकृति एवं आकार में विशेष अंतर नहीं होता अथवा वे समाकृति भी हो सकते हैं। परंतु जैसे ही शारीरिक डिजाइन अधिक जटिल होता है, जनन कोशिकाएँ भी विशिष्ट हो जाती हैं। एक जनन-कोशिका अपेक्षाकृत बड़ी होती है एवं उसमें भोजन का पर्याप्त भंडार भी होता है जबकि दूसरी अपेक्षाकृत छोटी एवं अधिक गतिशील होती है। गतिशील जनन-कोशिका को नर युग्मक तथा जिस जनन कोशिका में भोजन का भंडार संचित होता है, उसे मादा युग्मक कहते हैं। अगले कुछ अनुभागों में हम देखेंगे कि इन दो प्रकार के युग्मकों के सृजन की आवश्यकता ने नर एवं मादा व्यष्टियों (जनकों) में विभेद उत्पनन किए हैं तथा कुछ जीवों में नर एवं मादा में शारीरिक अंतर भी स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं।

8.3.2 पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन

आवृतबीजी (एंजियोस्पर्म) के जननांग पुष्प में अवस्थित होते हैं। आप पुष्प के विभिन्‍न भागों के विषय में पहले ही पढ़ चुके हैं-बाहयदल, दल (पंखुड़ी) , पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर। पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर पुष्प के जनन भाग हैं जिनमें जनन-कोशिकाएँ होती हैं।

पंखुड़ी एवं बाहयदल के क्या कार्य हो सकते हैं?

यदि युग्मनज वृद्धि एवं परिवर्धन द्वारा नए जीव में विकसित होता है तो इसमें ऊर्जा का पर्याप्त भंडार होना चाहिए। बहुत ही सरल संरचना वाले जीवों में अक्सर दो जनन कोशिकाओं (युग्मकों) की आकृति एवं आकार में विशेष अंतर नहीं होता, या वे समान आकृति के भी हो सकते हैं।

परंतु जैसे-जैसे शारीरिक डिज़ाइन अधिक जटिल होता है, जनन कोशिकाएँ भी विशिष्ट हो जाती हैं। एक जनन-कोशिका अपेक्षाकृत बड़ी होती है और उसमें भोजन का पर्याप्त भंडार भी होता है, जबकि दूसरी अपेक्षाकृत छोटी एवं अधिक गतिशील होती है। गतिशील जनन-कोशिका को नर युग्मक तथा जिस जनन कोशिका में भोजन का भंडार संचित होता है, उसे मादा युग्मक कहते हैं।

अगले कुछ अनुभागों में हम देखेंगे कि इन दो प्रकार के युग्मकों के सृजन की आवश्यकता ने नर एवं मादा व्यष्टियों (जनकों) में भेद उत्पन्न किए हैं तथा कुछ जीवों में नर एवं मादा में शारीरिक अंतर भी स्पष्ट दिखाई देते हैं।

8.3.2 पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन

आवृतबीजी (एंजियोस्पर्म) के जननांग पुष्प में स्थित होते हैं। आप पुष्प के विभिन्न भागों के विषय में पहले ही पढ़ चुके हैं – बाह्यदल, दल (पंखुड़ी), पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर। पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर पुष्प के जनन भाग हैं जिनमें जनन-कोशिकाएँ होती हैं। पंखुड़ी एवं बाह्यदल के क्या कार्य हो सकते हैं?

  • जब पुष्प में पुंकेसर अथवा स्त्रीकेसर में से कोई एक जननांग उपस्थित होता है तो पुष्प एकलिंगी कहलाते हैं (जैसे पपीता, तरबूज)।
  • जब पुष्प में पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर दोनों उपस्थित होते हैं (जैसे सरसों, गुड़हल) तो उन्हें उभयलिंगी पुष्प कहते हैं।
  • पुंकेसर नर जननांग है जो परागकण बनाते हैं। परागकण सामान्यतः पीले हो सकते हैं। आपने देखा होगा कि जब आप किसी पुष्प के पुंकेसर को छूते हैं तब हाथ में एक पीला पाउडर लग जाता है।
  • स्त्रीकेसर पुष्प के केंद्र में स्थित होता है तथा यह पुष्प का मादा जननांग है (चित्र 8.7)। यह तीन भागों से बना होता है:
    • आधार पर उभरा-फूला भाग अंडाशय है।
    • मध्य में लंबा भाग वर्तिका है।
    • शीर्ष भाग वर्तिकाग्र है जो प्रायः चिपचिपा होता है।
  • अंडाशय में बीजांड होते हैं तथा प्रत्येक बीजांड में एक अंड-कोशिका (मादा युग्मक) होती है।

(चित्र 8.7 पुष्प की अनुदैर्घ्य काट को दर्शाता है जिसमें बाह्यदल, दल (पंखुड़ी), पुंकेसर और स्त्रीकेसर के विभिन्न भाग जैसे वर्तिकाग्र, वर्तिका, अंडाशय और बीजांड स्पष्ट रूप से दिखाए गए हैं।)

परागकण द्वारा उत्पादित नर युग्मक अंडाशय की अंडकोशिका (मादा युग्मक) से संलयित हो जाता है। जनन कोशिकाओं के इस युग्मन अथवा निषेचन से युग्मनज बनता है जिसमें नए पौधे में विकसित होने की क्षमता होती है।

अतः, परागकणों को पुंकेसर से वर्तिकाग्र तक स्थानांतरण की आवश्यकता होती है।

  • यदि परागकणों का यह स्थानांतरण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर होता है तो यह स्वपरागण कहलाता है।
  • परंतु, एक पुष्प के परागकण दूसरे पुष्प पर स्थानांतरित होते हैं, तो उसे परपरागण कहते हैं।
  • एक पुष्प से दूसरे पुष्प तक परागकणों का यह स्थानांतरण वायु, जल अथवा प्राणी जैसे वाहक द्वारा संपन्न होता है।

यदि युग्मनज वृद्धि एवं परिवर्धन द्वारा नए जीव में विकसित होता है तो इसमें ऊर्जा का भंडार भी पर्याप्त होना चाहिए। अति सरल संरचना वाले जीवों में प्राय: दो जनन कोशिकाओं (युग्मकों) की आकृति एवं आकार में विशेष अंतर नहीं होता अथवा वे समाकृति भी हो सकते हैं। परंतु जैसे ही शारीरिक डिजाइन अधिक जटिल होता है, जनन कोशिकाएँ भी विशिष्ट हो जाती हैं। एक जनन-कोशिका अपेक्षाकृत बड़ी होती है एवं उसमें भोजन का पर्याप्त भंडार भी होता है जबकि दूसरी अपेक्षाकृत छोटी एवं अधिक गतिशील होती है। गतिशील जनन-कोशिका को नर युग्मक तथा जिस जनन कोशिका में भोजन का भंडार संचित होता है, उसे मादा युग्मक कहते हैं। अगले कुछ अनुभागों में हम देखेंगे कि इन दो प्रकार के युग्मकों के सृजन की वश्यकता ने नर एवं मादा व्यष्टियों (जनकों) में विभेद उत्पनन किए हैं तथा कुछ जीवों में नर एवं मादा में शारीरिक अंतर भी स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं।

8.3.2 पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन

आवृतबीजी (एंजियोस्पर्म) के जननांग पुष्प में स्थित होते हैं। आपने पुष्प के विभिन्न भागों के विषय में पहले ही पढ़ लिया है – बाह्यदल, दल (पंखुड़ी), पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर। पुंकेसर और स्त्रीकेसर पुष्प के जनन भाग हैं जिनमें जनन-कोशिकाएँ होती हैं। पंखुड़ी एवं बाह्यदल के क्या कार्य हो सकते हैं?

  • जब पुष्प में पुंकेसर अथवा स्त्रीकेसर में से कोई एक जननांग उपस्थित होता है तो पुष्प एकलिंगी कहलाते हैं (उदाहरण के लिए, पपीता, तरबूज)।
  • जब पुष्प में पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर दोनों उपस्थित होते हैं (जैसे सरसों, गुड़हल) तो उन्हें उभयलिंगी पुष्प कहते हैं।
  • पुंकेसर नर जननांग है जो परागकण बनाते हैं। परागकण आमतौर पर पीले हो सकते हैं। आपने देखा होगा कि जब आप किसी पुष्प के पुंकेसर को छूते हैं तब हाथ में एक पीला पाउडर लग जाता है।
  • स्त्रीकेसर पुष्प के केंद्र में स्थित होता है तथा यह पुष्प का मादा जननांग है (चित्र 8.7)। यह तीन भागों से बना होता है:
    • आधार पर उभरा-फूला भाग अंडाशय है।
    • मध्य में लंबा भाग वर्तिका है।
    • शीर्ष भाग वर्तिकाग्र है जो अक्सर चिपचिपा होता है।
  • अंडाशय में बीजांड होते हैं और प्रत्येक बीजांड में एक अंड-कोशिका (मादा युग्मक) होती है।

(चित्र 8.7 पुष्प की अनुदैर्घ्य काट को दर्शाता है जिसमें बाह्यदल, दल (पंखुड़ी), पुंकेसर और स्त्रीकेसर के विभिन्न भाग जैसे वर्तिकाग्र, वर्तिका, अंडाशय और बीजांड स्पष्ट रूप से दिखाए गए हैं।)

परागकण द्वारा उत्पादित नर युग्मक अंडाशय की अंडकोशिका (मादा युग्मक) से संलयित हो जाता है। जनन कोशिकाओं के इस युग्मन अथवा निषेचन से युग्मनज बनता है जिसमें नए पौधे में विकसित होने की क्षमता होती है।

अतः, परागकणों को पुंकेसर से वर्तिकाग्र तक स्थानांतरण की आवश्यकता होती है।

  • यदि परागकणों का यह स्थानांतरण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर होता है तो यह स्वपरागण कहलाता है।
  • परंतु, यदि एक पुष्प के परागकण दूसरे पुष्प पर स्थानांतरित होते हैं, तो उसे परपरागण कहते हैं।
  • एक पुष्प से दूसरे पुष्प तक परागकणों का यह स्थानांतरण वायु, जल अथवा प्राणी जैसे वाहक द्वारा संपन्न होता है।

निषेचन के पश्चात पुष्प में परिवर्तन

परागकणों के उपयुक्त वर्तिकाग्र पर पहुँचने के पश्चात्, नर युग्मक को अंडाशय में स्थित मादा-युग्मक तक पहुँचना होता है। इसके लिए परागकण से एक नलिका विकसित होती है और यह वर्तिका से होती हुई बीजांड तक पहुँचती है।

निषेचन के पश्चात्, युग्मनज में अनेक विभाजन होते हैं तथा बीजांड में भ्रूण विकसित होता है। बीजांड से एक कठोर आवरण विकसित होता है तथा यह बीज में परिवर्तित हो जाता है। अंडाशय तीव्रता से वृद्धि करता है तथा परिपक्व होकर फल बनाता है। इस अंतराल में बाह्यदल, पंखुड़ी, पुंकेसर, वर्तिका एवं वर्तिकाग्र प्रायः मुरझाकर गिर जाते हैं। क्या आपने कभी पुष्प के किसी भाग को फल के साथ स्थायी रूप से जुड़े हुए देखा है?

सोचिए, बीजों के बनने से पौधे को क्या लाभ है? बीज में भावी पौधा अथवा भ्रूण होता है, जो उपयुक्त परिस्थितियों में नवोद्भिद (seedling) में विकसित हो जाता है। इस प्रक्रम को अंकुरण (germination) कहते हैं।

क्रियाकलाप: बीज का अंकुरण और संरचना

  • चने के कुछ बीजों को एक रात तक जल में भिगो दीजिए।
  • अधिक जल को फेंक दीजिए तथा भीगे हुए बीजों को गीले कपड़े से ढक कर एक दिन के लिए रख दीजिए। ध्यान रहे कि बीज सूखें नहीं।
  • बीजों को सावधानी से खोलकर उसके विभिन्न भागों का प्रेक्षण कीजिए।
  • अपने प्रेक्षण की तुलना चित्र 8.9 से कीजिए, क्या आप सभी भागों को पहचान सकते हैं? (चित्र 8.9 बीज के अंकुरण की अवस्था को दर्शाता है, जिसमें मूल (जड़), प्ररोह (तना), और बीजपत्र (खाद्य संग्रह) जैसे भाग दिखाए गए हैं।)

8.3.3 मानव में लैंगिक जनन

अब तक हम विभिन्न स्पीशीज़ में जनन की विभिन्न प्रणालियों की चर्चा करते रहे हैं। आइए, अब हम उस स्पीशीज़ के विषय में जानें जिसमें हमारी सर्वाधिक रुचि है, वह है मनुष्य। मानव में लैंगिक जनन होता है। यह प्रक्रम किस प्रकार कार्य करता है?

आइए, अब स्थूल रूप से एक असंबद्ध बिंदु से प्रारंभ करते हैं। हम सभी जानते हैं कि आयु के साथ-साथ हमारे शरीर में कुछ परिवर्तन आते हैं। आपने पहले भी कक्षा 8 में शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में सीखा। कक्षा 1 से 10 तक पहुँचते-पहुँचते हमारी लंबाई एवं भार बढ़ जाता है। हमारे दाँत जो गिर जाते हैं, दूध के दाँत कहलाते हैं तथा नए दाँत निकल आते हैं। इन सभी परिवर्तनों को एक सामान्य प्रक्रम वृद्धि में समूहबद्ध कर सकते हैं जिसमें शारीरिक वृद्धि होती है।

परंतु किशोरावस्था के प्रारंभिक वर्षों में, कुछ ऐसे परिवर्तन होते हैं जिन्हें मात्र शारीरिक वृद्धि नहीं कहा जा सकता। जबकि, शारीरिक सौष्ठव ही बदल जाता है। शारीरिक अनुपात बदलता है, नए लक्षण आते हैं तथा संवेदना में भी परिवर्तन आते हैं।

इनमें से कुछ परिवर्तन तो लड़के एवं लड़कियों में एकसमान होते हैं। हम देखते हैं कि शरीर के कुछ नए भागों जैसे कि काँख एवं जाँघों के मध्य जननांगी क्षेत्र में बाल-गुच्छ निकल आते हैं तथा उनका रंग भी गहरा हो जाता है। पैर, हाथ एवं चेहरे पर भी महीन रोम आ जाते हैं। त्वचा अक्सर तैलीय हो जाती है तथा कभी-कभी मुँहासे भी निकल आते हैं। हम अपने और दूसरों के प्रति अधिक सजग हो जाते हैं।


1. डी.एन.ए. प्रतिकृति का प्रजनन में क्या महत्त्व है?

डी.एन.ए. प्रतिकृति प्रजनन की मूल घटना है क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि:

  • आनुवंशिक जानकारी का स्थानांतरण: जनक (माता-पिता) के आनुवंशिक गुण (लक्षण) हूबहू अगली पीढ़ी (संतति) में जाएँ।
  • शारीरिक अभिकल्प का अनुरक्षण: डी.एन.ए. में ही जीव की कोशिकीय संरचना और शारीरिक बनावट के लिए आवश्यक सभी ‘ब्लूप्रिंट’ या निर्देश निहित होते हैं। डी.एन.ए. की सटीक प्रतिकृति से यह सुनिश्चित होता है कि नई कोशिकाएँ और जीव मूल जीव के समान शारीरिक अभिकल्प वाले होंगे।
  • कोशिका विभाजन का आधार: डी.एन.ए. प्रतिकृति के बाद ही एक कोशिका विभाजित होकर दो नई कोशिकाओं का निर्माण कर पाती है, जिसमें दोनों कोशिकाओं को डी.एन.ए. का पूर्ण और समान सेट प्राप्त होता है।

संक्षेप में, डी.एन.ए. प्रतिकृति के बिना, आनुवंशिक जानकारी का सटीक हस्तांतरण संभव नहीं होगा और जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।

2. जीवों में भिन्नता स्पीशीज़ के लिए तो लाभदायक है परंतु व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है, क्यों?

  • स्पीशीज़ के लिए लाभदायक:
    • अनुकूलन और उत्तरजीविता: भिन्नताएँ किसी स्पीशीज़ को बदलते पर्यावरण के प्रति अनुकूलन में मदद करती हैं। यदि पर्यावरण में कोई अचानक और बड़ा परिवर्तन आता है (जैसे तापमान में अत्यधिक वृद्धि या कमी, जल स्तर में बदलाव), तो भिन्नता रखने वाले कुछ जीव उन नई परिस्थितियों के अनुकूल ढल पाते हैं और जीवित रहते हैं। इससे पूरी स्पीशीज़ का विनाश नहीं होता और उसका अस्तित्व बना रहता है। यह जैव-विकास का आधार भी है, जिससे समय के साथ स्पीशीज़ और बेहतर ढंग से अपने वातावरण के अनुकूल हो पाती हैं।
    • रोग प्रतिरोधक क्षमता: भिन्नता से स्पीशीज़ के भीतर रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। यदि कोई नया रोग आता है, तो भिन्नता के कारण कुछ जीव उसके प्रति प्रतिरोधी हो सकते हैं, जिससे पूरी स्पीशीज़ को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है।
  • व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं:
    • तत्काल अस्तित्व के लिए गैर-आवश्यक: एक व्यक्तिगत जीव (व्यष्टि) के जीवित रहने के लिए पोषण, श्वसन और उत्सर्जन जैसे जैव-प्रक्रम सीधे तौर पर आवश्यक हैं, न कि भिन्नता। एक जीव भिन्नता के बिना भी अपने जीवन काल को पूरा कर सकता है।
    • संभावित हानिकारक प्रभाव: डी.एन.ए. प्रतिकृति में होने वाली कुछ भिन्नताएँ इतनी उग्र (severe) हो सकती हैं कि वे जीव के कोशिकीय संगठन या कार्यप्रणाली को बाधित कर दें, जिससे उस व्यक्तिगत जीव की मृत्यु भी हो सकती है। ऐसी भिन्नताएँ व्यष्टि के लिए हानिकारक साबित हो सकती हैं।

इसलिए, जबकि प्रत्येक व्यष्टि के लिए भिन्नता सीधे तौर पर जीवन-रक्षक नहीं होती, स्पीशीज़ के एक समूह के रूप में दीर्घकालिक अस्तित्व और निरंतरता के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।

पुष्पी पौधों में निषेचन और बीज निर्माण

परागकणों के उपयुक्त वर्तिकाग्र पर पहुँचने के बाद, नर युग्मक को अंडाशय में स्थित मादा-युग्मक तक पहुँचना होता है। इसके लिए, परागकण से एक पराग नली विकसित होती है जो वर्तिका से होती हुई बीजांड तक पहुँचती है।

निषेचन के पश्चात्, युग्मनज में कई विभाजन होते हैं और बीजांड में भ्रूण विकसित होता है। बीजांड से एक कठोर आवरण विकसित होता है और यह बीज में बदल जाता है। अंडाशय तेज़ी से बढ़ता है और परिपक्व होकर फल बनाता है। इस दौरान, बाह्यदल, पंखुड़ी, पुंकेसर, वर्तिका और वर्तिकाग्र अक्सर मुरझाकर गिर जाते हैं। क्या आपने कभी किसी पुष्प के किसी भाग को फल के साथ स्थायी रूप से जुड़ा हुआ देखा है?

सोचिए, बीजों के बनने से पौधे को क्या लाभ होता है। बीज में भविष्य का पौधा या भ्रूण होता है जो उपयुक्त परिस्थितियों में नवोद्भिद (seedling) में विकसित हो जाता है। इस प्रक्रिया को अंकुरण कहते हैं।

क्रियाकलाप: बीज का अंकुरण और संरचना

  • चने के कुछ बीजों को एक रात के लिए पानी में भिगो दें।
  • अगले दिन, अतिरिक्त पानी फेंक दें और भीगे हुए बीजों को एक गीले कपड़े से ढक कर एक दिन के लिए रख दें। ध्यान रहे कि बीज सूखें नहीं।
  • बीजों को सावधानी से खोलें और उनके विभिन्न भागों का अवलोकन करें।
  • अपने अवलोकन की तुलना चित्र 8.9 से करें और देखें कि क्या आप सभी भागों को पहचान सकते हैं। (चित्र 8.9 अंकुरित बीज की संरचना को दर्शाता है, जिसमें मूल, प्ररोह और बीजपत्र (जो खाद्य संग्रह का काम करते हैं) जैसे भाग होते हैं।)

8.3.3 मानव में लैंगिक जनन

अब तक हमने विभिन्न प्रजातियों में जनन की अलग-अलग प्रणालियों पर चर्चा की है। आइए, अब हम उस प्रजाति के बारे में जानें जिसमें हमारी सबसे अधिक रुचि है: मनुष्य। मानव में लैंगिक जनन होता है। यह प्रक्रिया कैसे काम करती है?

आइए, एक सामान्य बिंदु से शुरू करते हैं। हम सभी जानते हैं कि उम्र के साथ-साथ हमारे शरीर में कुछ बदलाव आते हैं। आपने कक्षा 8 में भी शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में पढ़ा होगा। कक्षा 1 से 10 तक पहुँचते-पहुँचते हमारी लंबाई और भार बढ़ जाता है। हमारे जो दाँत गिर जाते हैं, उन्हें दूध के दाँत कहते हैं और उनकी जगह नए दाँत निकल आते हैं। इन सभी परिवर्तनों को वृद्धि नामक एक सामान्य प्रक्रिया में समूहबद्ध किया जा सकता है, जिसमें शारीरिक वृद्धि होती है।

लेकिन किशोरावस्था के शुरुआती वर्षों में कुछ ऐसे बदलाव होते हैं जिन्हें केवल शारीरिक वृद्धि नहीं कहा जा सकता। इस दौरान शारीरिक बनावट बदल जाती है, शारीरिक अनुपात में परिवर्तन आता है, नए लक्षण विकसित होते हैं और संवेदनाओं में भी बदलाव आता है।

इनमें से कुछ परिवर्तन लड़के और लड़कियों दोनों में समान होते हैं। हम देखते हैं कि शरीर के कुछ नए हिस्सों, जैसे कि काँख और जाँघों के बीच के जननांगी क्षेत्र में बाल उग आते हैं और उनका रंग भी गहरा हो जाता है। पैर, हाथ और चेहरे पर भी महीन बाल आ जाते हैं। त्वचा अक्सर तैलीय हो जाती है और कभी-कभी मुँहासे भी निकल आते हैं। हम अपने और दूसरों के प्रति अधिक जागरूक हो जाते हैं।

यौवनारंभ: लैंगिक परिपक्वता के लक्षण

दूसरी ओर, कुछ ऐसे भी परिवर्तन हैं जो लड़कों और लड़कियों में भिन्न होते हैं:

  • लड़कियों में: स्तनों के आकार में वृद्धि होने लगती है और स्तनाग्र की त्वचा का रंग भी गहरा होने लगता है। इसी समय लड़कियों में रजोधर्म (menstruation) शुरू हो जाता है।
  • लड़कों में: चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ निकल आती है और उनकी आवाज़ फटने लगती है (गहरी हो जाती है)। साथ ही, दिवास्वप्न (दिन के सपने) या रात में शिश्न (penis) भी अक्सर विवर्धन (enlargement) के कारण ऊर्ध्व (erect) हो जाता है।

ये सभी परिवर्तन महीनों और वर्षों की अवधि में धीरे-धीरे होते हैं। ये परिवर्तन सभी व्यक्तियों में एक ही समय या एक निश्चित आयु में नहीं होते। कुछ व्यक्तियों में ये परिवर्तन कम आयु में और तेज़ी से होते हैं, जबकि अन्य में धीरे-धीरे होते हैं। प्रत्येक परिवर्तन तेज़ी से पूरा भी नहीं होता। उदाहरण के लिए, लड़कों के चेहरे पर पहले कुछ छितराए हुए मोटे बाल दिखाई देते हैं, और धीरे-धीरे यह वृद्धि एक जैसी हो जाती है। फिर भी, इन सभी परिवर्तनों में विभिन्न व्यक्तियों के बीच विविधता दिखती है। जैसे कि हमारे नाक-नक्श अलग-अलग हैं, उसी प्रकार इन बालों की वृद्धि का पैटर्न, स्तन अथवा शिश्न की आकृति एवं आकार भी भिन्न होते हैं। ये सभी परिवर्तन शरीर की लैंगिक परिपक्वता के पहलू हैं।

लैंगिक परिपक्वता का महत्व

इस आयु में शरीर में लैंगिक परिपक्वता क्यों दिखती है? हम बहुकोशिकीय जीवों में विशिष्ट कार्यों को करने के लिए विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं की आवश्यकता की बात कर चुके हैं। लैंगिक जनन में भाग लेने के लिए जनन कोशिकाओं (gametes) का उत्पादन इसी प्रकार का एक विशिष्ट कार्य है, और हम देख चुके हैं कि पौधों में भी इसके लिए विशेष प्रकार की कोशिकाएँ और ऊतक विकसित होते हैं। प्राणियों, जैसे कि मानव, भी इस कार्य के लिए विशिष्ट ऊतक विकसित करते हैं।

हालांकि किसी व्यक्ति के शरीर में युवावस्था के आकार तक वृद्धि होती है, लेकिन शरीर के संसाधन मुख्य रूप से इस वृद्धि को प्राप्त करने की ओर लगे रहते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान जनन ऊतक की परिपक्वता मुख्य प्राथमिकता नहीं होती। अतः, जैसे-जैसे शरीर की सामान्य वृद्धि दर धीमी होनी शुरू होती है, जनन-ऊतक परिपक्व होना प्रारंभ करते हैं। किशोरावस्था की इस अवधि को यौवनारंभ (puberty) कहा जाता है।

जनन प्रक्रिया और लैंगिक परिपक्वता का संबंध

तो, वे सभी परिवर्तन जिनकी हमने चर्चा की, जनन-प्रक्रम से किस प्रकार संबंधित हैं? हमें याद रखना चाहिए कि लैंगिक जनन प्रणाली का अर्थ है कि दो भिन्न व्यक्तियों की जनन कोशिकाओं का आपस में संलयन।

यह जनन कोशिकाओं के बाह्य-मोचन (external release) द्वारा हो सकता है, जैसा कि पुष्पी पौधों में होता है। अथवा, दो जीवों के परस्पर संबंध द्वारा जनन कोशिकाओं के आंतरिक स्थानांतरण (internal transfer) द्वारा भी हो सकता है, जैसा कि अनेक प्राणियों में होता है। यदि जंतुओं को संगम (mating) के इस प्रक्रम में भाग लेना हो, तो यह आवश्यक है कि दूसरे जीव उनकी लैंगिक परिपक्वता की पहचान कर सकें। यौवनारंभ की अवधि में बालों का नया पैटर्न जैसे अनेक परिवर्तन इस बात का संकेत हैं कि लैंगिक परिपक्वता आ रही है।

दूसरी ओर, दो व्यक्तियों के बीच जनन कोशिकाओं के वास्तविक स्थानांतरण के लिए विशिष्ट अंग/संरचना की आवश्यकता होती है; उदाहरण के लिए शिश्न के ऊर्ध्व होने की क्षमता। स्तनधारियों जैसे कि मानव में शिशु माँ के शरीर में लंबी अवधि तक गर्भस्थ रहता है। और जन्म के बाद स्तनपान करता है। इन सभी स्थितियों के लिए मादा के जननांगों एवं स्तनों का परिपक्व होना आवश्यक है। आइए, अब जनन तंत्र के विषय में जानें।

8.3.3 (a) नर जनन तंत्र

जनन कोशिका उत्पादित करने वाले अंग और जनन कोशिकाओं को निषेचन के स्थान तक पहुँचाने वाले अंग, संयुक्त रूप से, नर जनन तंत्र (चित्र 8.10) बनाते हैं।

  • शुक्राशय (Seminal Vesicle)
  • मूत्र नलिका (Ureter)
  • प्रोस्टेट ग्रंथि (Prostate Gland)
  • मूत्रमार्ग (Urethra)
  • शिश्न (Penis)
  • वृषण कोष (Scrotum)
  • वृषण (Testis)
  • शुक्रवाहिका (Vas Deferens)

नर जनन-कोशिका अथवा शुक्राणु का निर्माण वृषण में होता है। ये उदर गुहा के बाहर वृषण कोष में स्थित होते हैं। इसका कारण यह है कि शुक्राणु उत्पादन के लिए आवश्यक ताप शरीर के ताप से कम होता है। टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन के उत्पादन एवं स्रवण (secretion) में वृषण की भूमिका की चर्चा हम पिछले अध्याय में कर चुके हैं। शुक्राणु उत्पादन के नियंत्रण के अतिरिक्त, टेस्टोस्टेरॉन लड़कों में यौवनावस्था के लक्षणों का भी नियंत्रण करता है।

उत्पादित शुक्राणुओं का मोचन शुक्रवाहिकाओं द्वारा होता है। ये शुक्रवाहिकाएँ मूत्राशय से आने वाली नली से जुड़कर एक संयुक्त नली बनाती हैं। अतः, मूत्रमार्ग (urethra) शुक्राणुओं एवं मूत्र दोनों के प्रवाह के लिए उभय मार्ग (common passage) है। प्रोस्ट्रेट तथा शुक्राशय अपने स्राव शुक्रवाहिका में डालते हैं जिससे शुक्राणु एक तरल माध्यम में आ जाते हैं। इसके कारण इनका स्थानांतरण सरलता से होता है, साथ ही यह स्राव उन्हें पोषण भी प्रदान करता है। शुक्राणु सूक्ष्म संरचनाएँ हैं जिसमें मुख्यतः आनुवंशिक पदार्थ होते हैं तथा एक लंबी पूँछ होती है जो उन्हें मादा जनन-कोशिका की ओर तैरने में सहायता करती है।

8.3.3 (b) मादा जनन तंत्र

मादा जनन-कोशिकाओं अथवा अंड-कोशिका का निर्माण अंडाशय में होता है। वे कुछ हार्मोन भी उत्पादित करती हैं। चित्र 8.11 को ध्यानपूर्वक देखिए तथा मादा जनन तंत्र के विभिन्न अंगों को पहचानिए।

  • अंडवाहिका (Oviduct/Fallopian Tube)
  • अंडाशय (Ovary)
  • गर्भाशय (Uterus)
  • ग्रीवा (Cervix)
  • योनि (Vagina)

(चित्र 8.11 मानव के मादा जनन तंत्र को दर्शाता है, जिसमें सभी प्रमुख अंग लेबल किए गए हैं।)

लड़की के जन्म के समय ही अंडाशय में हजारों अपरिपक्व अंड (eggs) होते हैं। यौवनारंभ में इनमें से कुछ परिपक्व होने लगते हैं। दो में से एक अंडाशय द्वारा प्रत्येक माह एक अंड परिपक्व होता है। महीन अंडवाहिका अथवा फेलोपियन ट्यूब द्वारा यह अंडकोशिका गर्भाशय तक ले जाए जाते हैं। दोनों अंडवाहिकाएँ संयुक्त होकर एक लचीली थैलेनुमा संरचना का निर्माण करती हैं जिसे गर्भाशय कहते हैं। गर्भाशय ग्रीवा द्वारा योनि में खुलता है।

निषेचन, भ्रूण विकास और प्रसव

मैथुन के समय शुक्राणु योनि मार्ग में स्थापित होते हैं, जहाँ से वे ऊपर की ओर यात्रा करके अंडवाहिका तक पहुँचते हैं। अंडवाहिका में शुक्राणु अंडकोशिका से मिल सकते हैं। निषेचित अंडा विभाजित होकर कोशिकाओं की गेंद जैसी संरचना या भ्रूण बनाता है। भ्रूण गर्भाशय में स्थापित हो जाता है, जहाँ यह लगातार विभाजित होकर वृद्धि करता है और अंगों का विकास करता है।

हम पहले पढ़ चुके हैं कि माँ का शरीर गर्भधारण और उसके विकास के लिए विशेष रूप से अनुकूलित होता है। अतः, गर्भाशय प्रत्येक माह भ्रूण को ग्रहण करने और उसके पोषण हेतु तैयारी करता है। इसकी आंतरिक परत मोटी होती जाती है तथा भ्रूण के पोषण हेतु रुधिर प्रवाह भी बढ़ जाता है।

भ्रूण को माँ के रुधिर से ही पोषण मिलता है। इसके लिए एक विशेष संरचना होती है जिसे प्लेसेंटा (placenta) कहते हैं। यह एक तश्तरीनुमा संरचना है जो गर्भाशय की भित्ति में धँसी होती है। इसमें भ्रूण की ओर के ऊतक में प्रवर्ध (finger-like projections) होते हैं। माँ के ऊतकों में रक्तस्थान (blood spaces) होते हैं जो इन प्रवर्धों को आच्छादित करते हैं। यह माँ से भ्रूण को ग्लूकोज, ऑक्सीजन एवं अन्य पदार्थों के स्थानांतरण हेतु एक बड़ा क्षेत्र प्रदान करते हैं। विकासशील भ्रूण द्वारा अपशिष्ट पदार्थ उत्पन्न होते हैं जिनका निपटान उन्हें प्लेसेंटा के माध्यम से माँ के रुधिर में स्थानांतरण द्वारा होता है। माँ के शरीर में गर्भ को विकसित होने में लगभग 9 मास का समय लगता है। गर्भाशय की पेशियों के लयबद्ध संकुचन से शिशु का जन्म होता है।

8.3.3 (c) क्या होता है जब अंड का निषेचन नहीं होता?

यदि अंडकोशिका का निषेचन नहीं होता, तो यह लगभग एक दिन तक जीवित रहती है। क्योंकि अंडाशय प्रत्येक माह एक अंड का मोचन करता है, अतः निषेचित अंड की प्राप्ति हेतु गर्भाशय भी प्रति माह तैयारी करता है। अतः, इसकी अंतःभित्ति मांसल एवं स्पोंजी (मांसल और स्पंजी) हो जाती है। यह अंड के निषेचन होने की अवस्था में उसके पोषण के लिए आवश्यक है।

परंतु, निषेचन न होने की अवस्था में इस परत की भी आवश्यकता नहीं रहती। अतः, यह परत धीरे-धीरे टूटकर योनि मार्ग से रुधिर एवं म्यूकस (mucus) के रूप में निष्कासित होती है। इस चक्र में लगभग एक मास (महीना) का समय लगता है तथा इसे ऋतुस्राव अथवा रजोधर्म (menstruation) कहते हैं। इसकी अवधि लगभग 2 से 8 दिनों की होती है।

8.3.3 (d) जनन स्वास्थ्य

जैसा कि हम देख चुके हैं, लैंगिक परिपक्वता एक क्रमिक प्रक्रम है तथा यह उस समय होता है जब शारीरिक वृद्धि भी होती रहती है। अतः, किसी सीमा तक लैंगिक परिपक्वता का अर्थ यह नहीं है कि शरीर अथवा मस्तिष्क जनन क्रिया अथवा गर्भधारण योग्य हो गए हैं।

हम यह निर्णय किस प्रकार ले सकते हैं कि शरीर एवं मस्तिष्क इस मुख्य उत्तरदायित्व के योग्य हो गया है? इस विषय पर हम सभी पर किसी न किसी प्रकार का दबाव होता है। इस क्रिया के लिए हमारे मित्रों का दबाव भी हो सकता है, भले ही हम चाहें या न चाहें। विवाह एवं संतानोत्पत्ति के लिए पारिवारिक दबाव भी हो सकता है। संतानोत्पत्ति से बचकर रहने का, सरकारी तंत्र की ओर से भी दबाव हो सकता है। ऐसी अवस्था में कोई निर्णय लेना काफी मुश्किल हो सकता है।

यौन क्रियाओं के स्वास्थ्य पर प्रभाव

यौन क्रियाओं के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के विषय में भी हमें सोचना चाहिए। हम कक्षा 9 में पढ़ चुके हैं कि एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को रोगों का संचरण (transmission) कई प्रकार से हो सकता है। चूंकि यौन क्रिया में गहन शारीरिक संबंध स्थापित होते हैं, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि अनेक लैंगिक संचरित रोग (Sexually Transmitted Diseases – STDs) भी हो सकते हैं।

इसमें शामिल हैं:

  • जीवाणु जनित रोग: जैसे गोनोरिया (Gonorrhea) तथा सिफलिस (Syphilis)।
  • वायरस संक्रमण: जैसे मस्सा (Wart) तथा एच.आई.वी.-एड्स (HIV-AIDS)।

क्या लैंगिक क्रियाओं के दौरान इन रोगों के संचरण को रोकना संभव है? शिश्न के लिए आवरण अथवा कंडोम के प्रयोग से इनमें से अनेक रोगों के संचरण का कुछ सीमा तक निरोध संभव है।

गर्भधारण और गर्भनिरोध के तरीके

यौन (लैंगिक) क्रिया द्वारा गर्भधारण की संभावना हमेशा बनी रहती है। गर्भधारण की अवस्था में स्त्री के शरीर एवं भावनाओं की माँगें और आपूर्ति बढ़ जाती हैं, और यदि वह इसके लिए तैयार नहीं है तो इसका उसके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अतः, गर्भधारण रोकने के अनेक तरीके खोजे गए हैं।

ये गर्भरोधी (Contraceptive) तरीके कई प्रकार के हो सकते हैं:

  1. यांत्रिक अवरोध: यह एक तरीका है जिससे शुक्राणु अंडकोशिका तक नहीं पहुँच पाते। इसमें शिश्न को ढकने वाले कंडोम अथवा योनि में रखने वाली अनेक युक्तियों (जैसे डायाफ्राम) का उपयोग किया जा सकता है।
  2. हार्मोन संतुलन में परिवर्तन: दूसरा तरीका शरीर में हार्मोन संतुलन को बदलना है, जिससे अंड का मोचन ही नहीं होता, अतः निषेचन नहीं हो सकता। ये दवाएँ सामान्यतः गोली के रूप में ली जाती हैं। परंतु ये हार्मोन संतुलन को परिवर्तित करती हैं, अतः इनके कुछ विपरीत प्रभाव भी हो सकते हैं।
  3. गर्भाशय में युक्तियाँ स्थापित करना: गर्भधारण रोकने के लिए कुछ अन्य युक्तियाँ जैसे कि लूप अथवा कॉपर-टी (Copper-T) को गर्भाशय में स्थापित करके भी किया जाता है। परंतु गर्भाशय के उत्तेजन से भी कुछ विपरीत प्रभाव हो सकते हैं।
  4. शल्यक्रिया तकनीक:
    1. यदि पुरुष की शुक्रवाहिकाओं (vas deferens) को अवरुद्ध कर दिया जाए तो शुक्राणुओं का स्थानांतरण रुक जाएगा (इसे नसबंदी/वैसिक्टोमी कहते हैं)।
    1. यदि स्त्री की अंडवाहिनी अथवा फेलोपियन नलिका को अवरुद्ध कर दिया जाए तो अंड (डिंब) गर्भाशय तक नहीं पहुँच सकेगा (इसे नलबंदी/ट्यूबेक्टोमी कहते हैं)।
    1. दोनों ही अवस्थाओं में निषेचन नहीं हो पाएगा। शल्यक्रिया तकनीक द्वारा इस प्रकार के अवरोध उत्पन्न किए जा सकते हैं। यद्यपि शल्य तकनीक भविष्य के लिए पूरी तरह सुरक्षित है, परंतु असावधानीपूर्वक की गई शल्यक्रिया से संक्रमण अथवा दूसरी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

गर्भपात और लिंग अनुपात

शल्यक्रिया द्वारा अनचाहे गर्भ को हटाया भी जा सकता है (चिकित्सीय गर्भ समापन – MTP)। इस तकनीक का दुरुपयोग उन लोगों द्वारा किया जा सकता है जो किसी विशेष लिंग का बच्चा नहीं चाहते। ऐसा गैरकानूनी कार्य अधिकतर मादा गर्भ के चयनात्मक गर्भपात हेतु किया जा रहा है। एक स्वस्थ समाज के लिए, मादा-नर लिंग अनुपात बनाए रखना आवश्यक है। यद्यपि हमारे देश में भ्रूण लिंग निर्धारण एक कानूनी अपराध है। हमारे समाज की कुछ इकाइयों में मादा भ्रूण की निर्मम हत्या के कारण हमारे देश में शिशु लिंग अनुपात तेज़ी से घट रहा है जो चिंता का विषय है।

जनसंख्या वृद्धि

हमने पहले देखा कि जनन एक ऐसा प्रक्रम है जिसके द्वारा जीव अपनी समष्टि की वृद्धि करते हैं। एक समष्टि में जन्मदर एवं मृत्युदर उसके आकार का निर्धारण करते हैं। जनसंख्या का विशाल आकार बहुत लोगों के लिए चिंता का विषय है। इसका मुख्य कारण…

यह है कि बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्रत्येक व्यक्ति के जीवन स्तर में सुधार लाना एक कठिन कार्य है। यदि सामाजिक असमानता हमारे समाज के निम्न जीवन स्तर के लिए उत्तरदायी है, तो जनसंख्या के आकार का महत्व इसके लिए अपेक्षाकृत कम हो जाता है। यदि हम अपने आसपास देखें, तो क्या आप जीवन के निम्न स्तर के लिए उत्तरदायी सबसे महत्वपूर्ण कारण की पहचान कर सकते हैं?

प्रश्नोत्तर

  1. परागण क्रिया निषेचन से किस प्रकार भिन्न है?
    1. परागण: यह परागकणों का परागकोश से वर्तिकाग्र तक स्थानांतरण की प्रक्रिया है। यह वायु, जल, या कीटों जैसे वाहकों द्वारा संपन्न होता है। परागण केवल परागकणों को सही स्थान तक पहुँचाता है, जिससे निषेचन की संभावना बनती है।
    1. निषेचन: यह नर युग्मक (परागकण में) और मादा युग्मक (अंडकोशिका में) के संलयन की प्रक्रिया है। निषेचन के परिणामस्वरूप युग्मनज (zygote) बनता है, जिससे नए जीव का विकास शुरू होता है। परागण निषेचन के लिए एक आवश्यक पूर्व-शर्त है, लेकिन स्वयं निषेचन नहीं है।
  2. शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि की क्या भूमिका है?

शुक्राशय और प्रोस्टेट ग्रंथि दोनों ही नर जनन तंत्र के सहायक ग्रंथियाँ हैं, जिनकी मुख्य भूमिकाएँ निम्नलिखित हैं:

  • ये ग्रंथियाँ अपने स्राव (fluid) को शुक्रवाहिका में डालते हैं।
    • यह स्राव शुक्राणुओं को एक तरल माध्यम प्रदान करता है, जिससे उनका स्थानांतरण (movement) सरलता से होता है।
    • यह स्राव शुक्राणुओं को पोषण भी प्रदान करता है, जिससे वे सक्रिय और जीवित रह सकें।
  • यौवनारंभ के समय लड़कियों में कौन से परिवर्तन दिखाई देते हैं?

यौवनारंभ (puberty) के समय लड़कियों में कई शारीरिक परिवर्तन दिखाई देते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

  • स्तनों के आकार में वृद्धि और स्तनाग्र की त्वचा का गहरा होना।
    • रजोधर्म (मासिक धर्म) का शुरू होना।
    • काँख (underarms) और जननांगी क्षेत्र में बालों का उगना और उनका रंग गहरा होना।
    • पैर, हाथ और चेहरे पर महीन रोमों का आना।
    • त्वचा का तैलीय होना और कभी-कभी मुँहासे (pimples) निकलना।
  • माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रूण को पोषण किस प्रकार प्राप्त होता है?

माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रूण को पोषण प्लेसेंटा (Placenta) नामक एक विशेष संरचना के माध्यम से प्राप्त होता है।

  • प्लेसेंटा एक तश्तरीनुमा संरचना है जो गर्भाशय की भित्ति में धँसी होती है।
    • इसमें भ्रूण की ओर के ऊतक में प्रवर्ध (finger-like projections) होते हैं, और माँ के ऊतकों में रक्तस्थान (blood spaces) होते हैं जो इन प्रवर्धों को घेरे रहते हैं।
    • यह व्यवस्था माँ के रुधिर से ग्लूकोज, ऑक्सीजन और अन्य आवश्यक पोषक पदार्थों को भ्रूण तक स्थानांतरित करने के लिए एक बड़ा सतह क्षेत्र प्रदान करती है।
    • साथ ही, विकासशील भ्रूण द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों का निपटान भी प्लेसेंटा के माध्यम से माँ के रुधिर में स्थानांतरण द्वारा होता है।
  • यदि कोई महिला कॉपर-टी का प्रयोग कर रही है तो क्या यह उसकी यौन-संचरित रोगों से रक्षा करेगा?

नहीं, यदि कोई महिला कॉपर-टी (Copper-T) का प्रयोग कर रही है तो यह उसकी यौन-संचरित रोगों (STDs) से रक्षा नहीं करेगा।

  • कॉपर-टी गर्भनिरोध का एक तरीका है जो गर्भाशय में शुक्राणुओं की गतिशीलता को प्रभावित करके और निषेचन को रोककर गर्भधारण को रोकता है।
    • यह शारीरिक संपर्क के दौरान जीवाणु या वायरस जैसे रोगाणुओं के स्थानांतरण को नहीं रोकता है, जो यौन-संचरित रोगों का कारण बनते हैं। यौन-संचरित रोगों से बचाव के लिए कंडोम जैसे अवरोधक तरीकों का उपयोग करना आवश्यक है।

मुख्य बिंदु (सारांश)

  • जैव प्रक्रमों के विपरीत, किसी जीव के अपने अस्तित्व के लिए जनन आवश्यक नहीं है।
  • जनन में एक कोशिका द्वारा डी.एन.ए. प्रतिकृति का निर्माण तथा अतिरिक्त कोशिकीय संगठन का सृजन होता है।
  • विभिन्न जीवों द्वारा अपनाई जाने वाली जनन की प्रणाली उनके शारीरिक अभिकल्प पर निर्भर करती है।
  • द्विखंडन विधि में जीवाणु एवं प्रोटोजोआ की कोशिका विभाजित होकर दो या अधिक संतति कोशिका का निर्माण करती है।
  • पुनरुद्भवन (पुनर्जनन) में हाइड्रा जैसे जीवों का शरीर कई टुकड़ों में विलग हो जाए तो प्रत्येक भाग से नए जीव विकसित हो जाते हैं। इनमें कुछ मुकुल भी उभरकर नए जीव में विकसित हो जाते हैं।
  • कुछ पौधों में कायिक प्रवर्धन द्वारा जड़, तना अथवा पत्ती से नए पौधे विकसित होते हैं।
  • उपरोक्त सभी अलैंगिक जनन के उदाहरण हैं जिसमें संतति की उत्पत्ति एक एकल जीव (व्यष्टि) द्वारा होती है।
  • लैंगिक जनन में संतति उत्पादन हेतु दो जीव भाग लेते हैं।
  • डी.एन.ए. प्रतिकृति की तकनीक से भिन्नता उत्पन्न होती है जो स्पीशीज़ के अस्तित्व के लिए लाभप्रद है। लैंगिक जनन द्वारा अधिक भिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • पुष्पी पौधों में जनन प्रक्रम में परागकण परागकोश से स्त्रीकेसर के वर्तिकाग्र तक स्थानांतरित होते हैं जिसे परागण कहते हैं। इसका अनुगमन निषेचन द्वारा होता है।
  • यौवनारंभ में शरीर में अनेक परिवर्तन आते हैं, उदाहरण के लिए लड़कियों में स्तन का विकास तथा लड़कों के चेहरे पर नए बालों का आना, लैंगिक परिपक्वता के चिह्न हैं।

मानव जनन तंत्र का सारांश

  • मानव में नर जनन तंत्र में वृषण, शुक्राणुवाहिनी (शुक्रवाहिका), शुक्राशय, प्रोस्टेट ग्रंथि, मूत्रमार्ग तथा शिश्न होते हैं। वृषण शुक्राणु उत्पन्न करते हैं।
  • मानव के मादा जनन तंत्र में अंडाशय, डिंबवाहिनी (अंडवाहिका), गर्भाशय तथा योनि पाए जाते हैं।
  • मानव में लैंगिक जनन प्रक्रिया में शुक्राणुओं का स्त्री की योनि में स्थानांतरण होता है तथा निषेचन डिंबवाहिनी में होता है।
  • गर्भनिरोधी युक्तियाँ अपनाकर गर्भधारण रोका जा सकता है। कंडोम, गर्भनिरोधी गोलियाँ, कॉपर-टी तथा अन्य युक्तियाँ इसके उदाहरण हैं।

अभ्यास प्रश्न

1. अलैंगिक जनन मुकुलन द्वारा होता है।

(a) अमीबा

(b) **यीस्ट**

(c) प्लैज्मोडियम

(d) लेस्मानिया

2. निम्न में से कौन मानव में मादा जनन तंत्र का भाग नहीं है?

(a) अंडाशय

(b) गर्भाशय

(c) **शुक्रवाहिका**

(d) डिंबवाहिनी

3. परागकोश में होते हैं –

(a) बाह्यदल

(b) अंडाशय

(c) अंडप

(d) **पराग कण**

4. अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन के क्या लाभ हैं?

लैंगिक जनन के कई लाभ हैं जो अलैंगिक जनन में नहीं मिलते:

  • अधिक भिन्नता: लैंगिक जनन में दो अलग-अलग जनकों से आनुवंशिक सामग्री का मिश्रण होता है, जिससे नई भिन्नताएँ (variations) उत्पन्न होती हैं। यह भिन्नताएँ स्पीशीज़ को बदलते पर्यावरण के प्रति अनुकूलन करने में मदद करती हैं।
  • उत्तरजीविता में वृद्धि: अधिक भिन्नता के कारण, किसी स्पीशीज़ में कुछ जीव बदलते परिवेश या नए रोगों के प्रति प्रतिरोधी हो सकते हैं, जिससे स्पीशीज़ का अस्तित्व बना रहता है।
  • जैव-विकास का आधार: भिन्नताएँ जैव-विकास के लिए कच्चा माल प्रदान करती हैं, जिससे स्पीशीज़ समय के साथ अधिक विकसित और बेहतर अनुकूलित होती जाती हैं।

5. मानव में वृषण के क्या कार्य हैं?

मानव में वृषण के दो मुख्य कार्य हैं:

  • शुक्राणु उत्पादन: वृषण नर युग्मक या शुक्राणु (sperms) का उत्पादन करते हैं। शुक्राणु उत्पादन के लिए शरीर के सामान्य तापमान से कम तापमान की आवश्यकता होती है, इसीलिए वृषण उदर गुहा के बाहर वृषण कोष में स्थित होते हैं।
  • हार्मोन उत्पादन: वृषण टेस्टोस्टेरॉन (testosterone) नामक नर लैंगिक हार्मोन का उत्पादन करते हैं। यह हार्मोन शुक्राणु उत्पादन को नियंत्रित करने के साथ-साथ लड़कों में यौवनारंभ (puberty) के लक्षणों (जैसे दाढ़ी-मूंछ का आना, आवाज़ का गहरा होना) के विकास और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार होता है।

6. ऋतुस्राव क्यों होता है?

ऋतुस्राव (Menstruation) तब होता है जब मादा अंडकोशिका का निषेचन नहीं होता। हर महीने, गर्भाशय एक निषेचित अंडे को प्राप्त करने और उसके पोषण के लिए खुद को तैयार करता है। इसके लिए, गर्भाशय की आंतरिक परत मोटी और मांसल (स्पंजी) हो जाती है, जिसमें रक्त प्रवाह बढ़ जाता है।

यदि अंडकोशिका का निषेचन नहीं होता, तो इस मोटी परत की कोई आवश्यकता नहीं रहती। ऐसी स्थिति में, यह परत धीरे-धीरे टूट जाती है और रक्त तथा म्यूकस (श्लेष्मा) के रूप में योनि मार्ग से शरीर से बाहर निकल जाती है। इसी प्रक्रिया को ऋतुस्राव या मासिक धर्म कहते हैं, जो आमतौर पर 2 से 8 दिनों तक चलता है।

7. पुष्प की अनुदैर्ध्य काट का नामांकित चित्र बनाइए।

एक पुष्प की अनुदैर्ध्य काट के नामांकित चित्र में निम्नलिखित प्रमुख भाग दर्शाए जाने चाहिए:

  • बाह्यदल (Sepal): पुष्प का सबसे बाहरी, हरा भाग।
  • दल/पंखुड़ी (Petal): रंगीन और अक्सर सुगंधित भाग।
  • पुंकेसर (Stamen): नर जनन अंग। इसके दो भाग होते हैं:
    • परागकोश (Anther): ऊपरी भाग जहाँ परागकण बनते हैं।
    • पुतंतु (Filament): परागकोश को सहारा देने वाला डंठल।
  • स्त्रीकेसर (Pistil/Carpel): मादा जनन अंग। इसके तीन भाग होते हैं:
    • वर्तिकाग्र (Stigma): सबसे ऊपरी, चिपचिपा भाग जहाँ परागकण चिपकते हैं।
    • वर्तिका (Style): वर्तिकाग्र और अंडाशय को जोड़ने वाला लंबा डंठल।
    • अंडाशय (Ovary): सबसे निचला, फूला हुआ भाग जिसके अंदर बीजांड (ovules) होते हैं।
  • बीजांड (Ovule): अंडाशय के अंदर अंडकोशिका वाला भाग जो निषेचन के बाद बीज बनता है।
  • पुष्पवृंत (Pedicel): पुष्प का डंठल।

8. गर्भनिरोधन की विभिन्न विधियाँ कौन सी हैं?

गर्भनिरोधन की विभिन्न विधियाँ हैं:

  • यांत्रिक अवरोध विधियाँ: ये शुक्राणुओं को अंडकोशिका तक पहुँचने से रोकती हैं। उदाहरण: कंडोम (पुरुष और महिला दोनों के लिए), डायाफ्राम (Diaphragm), सर्वाइकल कैप (Cervical Cap)
  • रासायनिक विधियाँ (हार्मोनल विधियाँ): ये शरीर के हार्मोन संतुलन को बदलती हैं ताकि अंड का मोचन न हो या निषेचन असंभव हो जाए। उदाहरण: गर्भनिरोधी गोलियाँ (Oral Contraceptive Pills), इंजेक्शन, इम्प्लांट (Implant), वैजाइनल रिंग (Vaginal Ring)
  • अंतर्गर्भाशयी युक्तियाँ (Intrauterine Devices – IUDs): ये छोटी युक्तियाँ होती हैं जिन्हें गर्भाशय में स्थापित किया जाता है। उदाहरण: कॉपर-टी (Copper-T), लूप (Loop)। ये शुक्राणुओं की गतिशीलता को प्रभावित करती हैं या गर्भाशय के वातावरण को निषेचन के लिए प्रतिकूल बनाती हैं।
  • शल्य क्रिया विधियाँ (स्थायी विधियाँ): ये स्थायी गर्भनिरोध के तरीके हैं।
    • पुरुष नसबंदी (Vasectomy): पुरुष में शुक्रवाहिकाओं को अवरुद्ध कर दिया जाता है ताकि शुक्राणु मूत्रमार्ग तक न पहुँचें।
    • महिला नलबंदी (Tubectomy): महिला में अंडवाहिकाओं (फेलोपियन ट्यूब्स) को अवरुद्ध कर दिया जाता है ताकि अंडकोशिका गर्भाशय तक न पहुँच सके और शुक्राणु अंड तक न पहुँच सकें।
  • प्राकृतिक विधियाँ: इसमें यौन संबंध के समय को नियंत्रित करना शामिल है (जैसे आवधिक संयम, कोइटस इंटरप्टस), लेकिन ये कम विश्वसनीय होती हैं।
  • आपातकालीन गर्भनिरोधक (Emergency Contraception): असुरक्षित यौन संबंध के बाद गर्भावस्था को रोकने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं।

9. एक-कोशिक एवं बहुकोशिक जीवों की जनन पद्धति में क्या अंतर है?

एक-कोशिक और बहुकोशिक जीवों की जनन पद्धतियों में मुख्य अंतर उनके शारीरिक संगठन और कार्यप्रणाली के कारण होता है:

विशेषताएक-कोशिक जीव (जैसे अमीबा, यीस्ट, जीवाणु)बहुकोशिक जीव (जैसे स्पाइरोगाइरा, हाइड्रा, मानव, पौधे)
संरचना की जटिलतासरल, पूरा शरीर एक ही कोशिका से बना होता है।जटिल, शरीर कई प्रकार की कोशिकाओं, ऊतकों और अंगों से बना होता है जो विशिष्ट कार्य करते हैं।
जनन में भाग लेने वाली कोशिकाएँपूरा जीव या उसकी कोई भी कोशिका जनन में भाग ले सकती है।जनन के लिए विशिष्ट जनन कोशिकाएँ (युग्मक) या विशिष्ट जनन अंग/ऊतक होते हैं।
जनन विधिमुख्य रूप से अलैंगिक जनन (जैसे द्विखंडन, बहुखंडन, मुकुलन)। सरल विखंडन संभव है।अलैंगिक जनन (जैसे खंडन, मुकुलन, कायिक प्रवर्धन, बीजाणु समासंघ) भी हो सकता है, लेकिन लैंगिक जनन अधिक आम और जटिल होता है।
भिन्नताअलैंगिक जनन के कारण कम भिन्नता उत्पन्न होती है (केवल DNA प्रतिकृति की त्रुटियों से)।लैंगिक जनन के कारण अधिक भिन्नता उत्पन्न होती है, जो स्पीशीज़ के अनुकूलन के लिए महत्वपूर्ण है।
प्रजनन की गतिआमतौर पर बहुत तेज़।एक-कोशिक जीवों की तुलना में धीमी, खासकर लैंगिक जनन में।

10. जनन किसी स्पीशीज़ की समष्टि के स्थायित्व में किस प्रकार सहायक है?

जनन किसी स्पीशीज़ की समष्टि (population) के स्थायित्व में निम्नलिखित तरीकों से सहायक है:

  • संख्या का अनुरक्षण: जनन यह सुनिश्चित करता है कि जीव लगातार नई संतति उत्पन्न करते रहें, जिससे मृत्यु दर के बावजूद समष्टि की संख्या बनी रहती है या बढ़ती है। यदि जनन न हो तो स्पीशीज़ विलुप्त हो जाएगी।
  • निरंतरता और पीढ़ी-दर-पीढ़ी अस्तित्व: जनन के माध्यम से आनुवंशिक जानकारी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होती रहती है, जिससे स्पीशीज़ की निरंतरता बनी रहती है।
  • अनुकूलन और भिन्नता: लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न भिन्नताएँ स्पीशीज़ को बदलते पर्यावरण (जैसे जलवायु परिवर्तन, नए रोग, शिकारी दबाव) के प्रति अनुकूलन करने में मदद करती हैं। यदि समष्टि में पर्याप्त भिन्नता हो, तो कुछ जीव इन परिवर्तनों के बावजूद जीवित रह सकते हैं और प्रजनन कर सकते हैं, जिससे स्पीशीज़ का अस्तित्व बना रहता है।
  • पर्यावरण में स्थान बनाए रखना: जीव जनन क्षमता का उपयोग कर पारितंत्र में अपने निकेत (niche) को बनाए रखते हैं और अपनी भूमिका निभाते हैं।

11. गर्भनिरोधक युक्तियाँ अपनाने के क्या कारण हो सकते हैं?

गर्भनिरोधक युक्तियाँ अपनाने के कई महत्वपूर्ण कारण हो सकते हैं, जिनमें व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों पहलू शामिल हैं:

  • अनचाहे गर्भ से बचाव: यह सबसे प्राथमिक कारण है ताकि व्यक्ति अपनी इच्छा के विरुद्ध गर्भधारण से बच सकें।
  • स्वास्थ्य संबंधी कारण:
    • माँ के स्वास्थ्य को बनाए रखना: बार-बार या कम अंतराल पर गर्भधारण से महिला के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। गर्भनिरोधक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं।
    • गर्भावस्था से संबंधित जटिलताओं से बचना: कुछ महिलाओं के लिए गर्भावस्था जानलेवा हो सकती है; गर्भनिरोधक ऐसी स्थितियों से बचने में मदद करते हैं।
  • परिवार नियोजन: व्यक्तियों को अपने परिवार का आकार और बच्चों के जन्म के बीच का अंतराल तय करने की स्वतंत्रता देना। इससे माता-पिता अपने बच्चों को बेहतर परवरिश और संसाधन प्रदान कर पाते हैं।
  • जनसंख्या नियंत्रण: बड़े पैमाने पर, गर्भनिरोधक जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं, जिससे संसाधनों पर दबाव कम होता है और जीवन स्तर में सुधार हो सकता है।
  • यौन-संचारित रोगों (STDs) से बचाव: कुछ गर्भनिरोधक विधियाँ (जैसे कंडोम) यौन-संचारित रोगों के प्रसार को रोकने में भी सहायक होती हैं।
  • सामाजिक और आर्थिक कारक: व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने, करियर बनाने और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने का अवसर प्रदान करना, जिससे उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।
  • भावनात्मक और मानसिक तैयारी: यह सुनिश्चित करना कि माता-पिता बनने के लिए भावनात्मक और मानसिक रूप से तैयार हों।

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