MP Board Class 12 Chemistry Unit 1 Solubility
1.3 विलेयता (Solubility)
किसी अवयव की विलेयता (solubility) एक निश्चित ताप पर विलायक की निश्चित मात्रा में घुली हुई उस पदार्थ की अधिकतम मात्रा होती है। यह विलेय (solute) एवं विलायक (solvent) की प्रकृति तथा ताप (temperature) एवं दाब (pressure) पर निर्भर करती है।
आइए हम इन कारकों के प्रभाव का अध्ययन ठोस अथवा गैस की द्रवों में विलेयता पर करें।
1.3.1 ठोसों की द्रवों में विलेयता (Solubility of Solids in Liquids)
- विलेय और विलायक की प्रकृति का प्रभाव:
- प्रत्येक ठोस दिए गए द्रव में नहीं घुलता। जैसे:
- सोडियम क्लोराइड (NaCl) व शर्करा (sugar) जल में आसानी से घुल जाते हैं।
- जबकि नैफ़्थैलीन (naphthalene) और ऐन्थ्रासीन (anthracene) जल में नहीं घुलते।
- दूसरी ओर, नैफ़्थैलीन व ऐन्थ्रासीन बेन्ज़ीन (benzene) में आसानी से घुल जाते हैं, जबकि सोडियम क्लोराइड व शर्करा नहीं घुलते।
- “समान-समान को घोलता है” (Like dissolves like): यह देखा गया है कि ध्रुवीय (polar) विलेय, ध्रुवीय (polar) विलायकों में घुलते हैं जबकि अध्रुवीय (non-polar) विलेय, अध्रुवीय (non-polar) विलायकों में। सामान्यतः एक विलेय विलायक में घुल जाता है, यदि दोनों में अंतराआण्विक अन्योन्यक्रियाएं (intermolecular interactions) समान हों।
- प्रत्येक ठोस दिए गए द्रव में नहीं घुलता। जैसे:
- विलीनीकरण और क्रिस्टलीकरण (Dissolution and Crystallization):
- जब एक ठोस विलेय, द्रव विलायक में डाला जाता है तो यह उसमें घुलने लगता है। यह प्रक्रिया विलीनीकरण (dissolution) कहलाती है। इससे विलयन में विलेय की सांद्रता बढ़ने लगती है।
- इसी समय, विलयन में से कुछ विलेय के कण ठोस विलेय के कणों के साथ संघट्ट (collide) कर विलयन से अलग हो जाते हैं। यह प्रक्रिया क्रिस्टलीकरण (crystallization) कहलाती है।
- गतिक साम्य (Dynamic Equilibrium): एक ऐसी स्थिति आती है, जब दोनों प्रक्रियाओं (विलीनीकरण और क्रिस्टलीकरण) की गति समान हो जाती है। इस परिस्थिति में विलयन में जाने वाले विलेय कणों की संख्या विलयन से पृथक्कारी विलेय के कणों की संख्या के बराबर होगी और गतिक साम्य की प्रावस्था पहुँच जाएगी। इस स्थिति में दिए गए ताप व दाब पर विलयन में उपस्थित विलेय की सांद्रता स्थिर रहेगी। विलेय+विलायक⇌विलयन
- संतृप्त विलयन (Saturated Solution): ऐसा विलयन जिसमें दिए गए ताप एवं दाब पर और अधिक विलेय नहीं घोला जा सके, संतृप्त विलयन कहलाता है। यह विलयन बिना घुले विलेय के साथ गतिक साम्य में होता है। ऐसे विलयनों में विलेय की सांद्रता उसकी विलेयता कहलाती है।
- असंतृप्त विलयन (Unsaturated Solution): वह विलयन जिसमें उसी ताप पर और अधिक विलेय घोला जा सके, असंतृप्त विलयन कहलाता है।
- ताप का प्रभाव (Effect of Temperature):
- ठोसों की द्रवों में विलेयता पर ताप परिवर्तन का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। गतिक साम्य होने के कारण इसे ले-शातैलिये नियम (Le-Chatelier’s Principle) का पालन करना चाहिए।
- उष्माशोषी प्रक्रिया (Endothermic, ΔrH>0): यदि घुलने की प्रक्रिया उष्माशोषी हो तो ताप के बढ़ने पर विलेयता बढ़नी चाहिए।
- उष्माक्षेपी प्रक्रिया (Exothermic, ΔrH<0): यदि घुलने की प्रक्रिया उष्माक्षेपी हो तो विलेयता कम होनी चाहिए। यह प्रयोगात्मक रूप से भी देखा गया है।
- दाब का प्रभाव (Effect of Pressure):
- ठोसों की द्रवों में विलेयता पर दाब का कोई सार्थक प्रभाव नहीं होता।
- कारण: ठोस एवं द्रव अत्यधिक असंपीड्य (highly incompressible) होते हैं एवं दाब परिवर्तन से सामान्यतः अप्रभावित रहते हैं।
1.3.2 गैसों की द्रवों में विलेयता (Solubility of Gases in Liquids)
- बहुत सी गैसें जल में घुल जाती हैं।
- उदाहरण: ऑक्सीजन जल में बहुत कम मात्रा में घुलती है, लेकिन यह घुली हुई मात्रा जलीय जीवन को जीवित रखती है। दूसरी ओर, हाइड्रोजन क्लोराइड गैस (HCl) जल में अत्यधिक घुलनशील होती है।
- गैसों की द्रवों में विलेयता ताप (temperature) एवं दाब (pressure) द्वारा बहुत अधिक प्रभावित होती है।
- दाब का प्रभाव (Effect of Pressure):
- दाब बढ़ने पर गैसों की विलेयता बढ़ती जाती है।
- स्पष्टीकरण:
- जब गैस को द्रवीय विलायकों में घोला जाता है, तो विलयन के ऊपर गैस के कण होते हैं।
- यदि गैस के कुछ आयतन को संपीडित कर विलयन पर दाब बढ़ाया जाए, तो विलयन के ऊपर उपस्थित गैसीय कणों की संख्या प्रति इकाई आयतन में बढ़ जाती है।
- इससे गैसीय कणों की, विलयन की सतह में प्रवेश करने के लिए, उससे टकराने की दर भी बढ़ जाती है।
- इससे गैस की विलेयता तब तक बढ़ेगी जब तक कि एक नया साम्य स्थापित न हो जाए।
- अतः, विलयन पर दाब बढ़ने से गैस की विलेयता बढ़ती है।
- हेनरी नियम (Henry’s Law):
- सर्वप्रथम गैस की विलायक में विलेयता तथा दाब के मध्य मात्रात्मक संबंध हेनरी (Henry) ने दिया।
- हेनरी नियम के अनुसार: स्थिर ताप पर किसी गैस की द्रव में विलेयता द्रव अथवा विलयन की सतह पर पड़ने वाले गैस के आंशिक दाब के समानुपाती होती है।
- डाल्टन का योगदान: डाल्टन, जो हेनरी के समकालीन था, ने भी स्वतंत्र रूप से निष्कर्ष निकाला कि किसी द्रवीय विलयन में गैस की विलेयता गैस के आंशिक दाब पर निर्भर करती है।
- मोल-अंश के रूप में हेनरी नियम: यदि हम विलयन में गैस के मोल-अंश (X) को उसकी विलेयता का माप मानें तो, “किसी गैस का वाष्प अवस्था में आंशिक दाब (p), उस विलयन में गैस के मोल-अंश (X) के समानुपाती होता है।” p=KHX यहाँ KH, हेनरी स्थिरांक (Henry’s Constant) है।
- KH का महत्व:
- समान ताप पर विभिन्न गैसों के लिए KH का मान भिन्न-भिन्न होता है, जिससे निष्कर्ष निकलता है कि KH का मान गैस की प्रकृति पर निर्भर करता है।
- दिए गए दाब पर KH का मान जितना अधिक होगा, द्रव में गैस की विलेयता उतनी ही कम होगी।
- ताप का प्रभाव (Effect of Temperature) – गैसों के लिए:
- ताप के बढ़ने पर किसी गैस की द्रवों में विलेयता घटती है।
- कारण: जब गैस के अणु द्रव प्रावस्था में विलीन होते हैं, तो यह प्रक्रिया संघनन (condensation) के समकक्ष मानी जा सकती है, और इस प्रक्रिया में ऊर्जा उत्सर्जित होती है (यह एक उष्माक्षेपी प्रक्रिया (exothermic process) है)।
- ले-शातैलिये नियम के अनुसार, यदि विलीनीकरण एक उष्माक्षेपी प्रक्रिया है, तो ताप बढ़ाने पर साम्य विपरीत दिशा में विस्थापित होगा, जिससे विलेयता कम हो जाएगी। यही कारण है कि जलीय स्पीशीज़ (aquatic species) के लिए गर्म जल की तुलना में ठंडे जल में रहना अधिक आरामदायक होता है (क्योंकि ठंडे जल में ऑक्सीजन अधिक घुली होती है)।
- हेनरी नियम के अनुप्रयोग (Applications of Henry’s Law):
- सोडा-जल एवं शीतल पेय: CO
की विलेयता बढ़ाने के लिए बोतल को अधिक दाब पर बंद किया जाता है। जब बोतल खोली जाती है, तो दाब कम होता है और CO
तेज़ी से बाहर निकलती है, जिससे बुलबुले बनते हैं।
- गहरे समुद्र में गोताखोर (Scuba Divers):
- अधिक बाहरी दाब के कारण श्वास के साथ ली गई वायुमंडलीय गैसों (विशेषकर नाइट्रोजन) की विलेयता रुधिर में अधिक हो जाती है।
- जब गोताखोर सतह की ओर आते हैं, बाहरी दाब धीरे-धीरे कम होने लगता है। इसके कारण घुली हुई गैसें (विशेषकर नाइट्रोजन) बाहर निकलती हैं, जिससे रुधिर में नाइट्रोजन के बुलबुले बन जाते हैं।
- यह केशिकाओं (capillaries) में अवरोध उत्पन्न कर देता है और एक चिकित्सीय अवस्था उत्पन्न कर देता है जिसे बेंड्स (Bends) कहते हैं। यह अत्यधिक पीड़ादायक एवं जानलेवा होता है।
- उपाय: बेंड्स से तथा नाइट्रोजन की रुधिर में अधिक मात्रा के जहरीले प्रभाव से बचने के लिए, गोताखोरों द्वारा श्वास लेने के लिए उपयोग किए जाने वाले टैंकों में, हीलियम मिलाकर तनु की गई वायु को भरा जाता है (11.7% हीलियम, 56.2% नाइट्रोजन तथा 32.1% ऑक्सीजन)। हीलियम कम घुलनशील होती है।
- अधिक ऊँचाई वाली जगहें (High Altitudes):
- अधिक ऊँचाई वाली जगहों पर ऑक्सीजन का आंशिक दाब सतही स्थानों से कम होता है।
- अतः, इन जगहों पर रहने वाले लोगों एवं आरोहकों (climbers) के रुधिर और ऊतकों में ऑक्सीजन की सांद्रता निम्न हो जाती है।
- इसके कारण आरोहक कमज़ोर हो जाते हैं और स्पष्टतया सोच नहीं पाते। इन लक्षणों को एनॉक्सिया (Anoxia) कहते हैं।
- सोडा-जल एवं शीतल पेय: CO
सारणी 1.2 – जल में कुछ गैसों के लिए हेनरी स्थिरांक () का मान
गैस | ताप/K | ![]() | गैस | ताप/K | ![]() |
---|---|---|---|---|---|
He | 293 | 144.97 | आर्गन | 298 | 40.3 |
H2 | 293 | 69.16 | CO2 | 298 | 1.67 |
N2 | 293 | 76.48 | फ़ॉर्मेल्डिहाइड | 298 | ![]() |
N2 | 303 | 88.84 | मेथेन | 298 | 0.413 |
O2 | 293 | 34.86 | वाइनिल क्लोराइड | 298 | 0.611 |
O2 | 303 | 46.82 |
उदाहरण 1.4: N₂ गैस की विलेयता की गणना
उदाहरण 1.4 यदि N2 गैस को 293 K पर जल में से प्रवाहित किया जाए तो एक लीटर जल में कितने मिलीमोल N2 गैस विलेय होगी? N2 का आंशिक दाब 0.987 bar तथा 293 K पर N2 के लिए KH का मान 76.48 kbar है।
हल : किसी गैस की विलेयता जलीय विलयन में उसके मोल-अंश से संबंधित होती है। विलयन में गैस के मोल-अंश की गणना हेनरी नियम से की जा सकती है। अतएव–
एक लीटर जल में उसके 55.5 मोल होते हैं (क्योंकि )। माना कि विलयन में N2 के मोलों की संख्या
है।
चूँकि भिन्न के हर में की तुलना में
का मान बहुत कम है अतः इसे छोड़ दिया गया है।
इस प्रकार–
मिलीमोल में बदलने पर:
पाठ्यनिहित प्रश्न: विलेयता से संबंधित गणनाएँ
1.6 सड़े हुए अंडे जैसी गंध वाली विषैली गैस H2S गुणात्मक विश्लेषण में उपयोग की जाती है। यदि H2S गैस की जल में STP पर विलेयता 0.195 M हो तो हेनरी स्थिरांक की गणना कीजिए।
हल : दिया गया है:
- H2S की विलेयता (सांद्रता)
- STP पर ताप
- STP पर आंशिक दाब (p)
(माना H2S का आंशिक दाब 1 bar है, क्योंकि STP पर गैसों के लिए मानक दाब 1 bar माना जाता है)
माना विलयन का आयतन
H2S के मोल
जल के मोल (विलायक):
चूँकि H2S विलयन तनु है, हम मान सकते हैं कि विलयन का आयतन लगभग जल के आयतन के बराबर है।
जल का द्रव्यमान
H2S का मोल-अंश ():
हेनरी नियम के अनुसार:
अतः,
अतः, H2S के लिए हेनरी स्थिरांक लगभग 285.87 bar है।
1.7 298 K पर CO2 गैस की जल में विलेयता के लिए हेनरी स्थिरांक का मान है। 500 mL सोडा जल 2.5 atm दाब पर बंद किया गया। 298 K ताप पर घुली हुई CO2 की मात्रा की गणना कीजिए।
हल : दिया गया है:
- हेनरी स्थिरांक (
)
- दाब (
)
- सोडा जल का आयतन
दाब को पास्कल (Pa) में बदलें:
हेनरी नियम के अनुसार,
अतः, CO2 का मोल-अंश () =
जल के मोल:
माना 500 mL सोडा जल में लगभग 500 mL जल है (तनु विलयन के लिए)।
जल का द्रव्यमान
CO2 का मोल-अंश () =
चूँकि CO2 बहुत कम मात्रा में घुलती है,
अतः,
CO2 का मोलर द्रव्यमान
घुली हुई CO2 का द्रव्यमान = मोलों की संख्या मोलर द्रव्यमान
अतः, 500 mL सोडा जल में लगभग 1.8524 g CO2 घुली होगी।