MP Board Class 12 Chemistry Colligative Properties and Calculation of Molar Mass

MP Board Class 12 Chemistry Colligative Properties and Calculation of Molar Mass

1.6 अणुसंख्य गुण धर्म एवं आण्विक द्रव्यमान की गणना (Colligative Properties and Calculation of Molar Mass)

खंड 1.4.3 में हमने जाना कि जब एक अवाष्पशील विलेय विलायक में डाला जाता है तो विलयन का वाष्प दाब घटता है। विलयन के कई गुण वाष्प दाब के अवनमन से संबंधित हैं, वे हैं:

  1. विलायक के वाष्प दाब का आपेक्षिक अवनमन
  2. विलायक के हिमांक का अवनमन
  3. विलायक के क्वथनांक का उन्नयन
  4. विलयन का परासरण दाब

ये सभी गुण विलयन में उपस्थित कुल कणों की संख्या तथा विलेय कणों की संख्या के अनुपात पर निर्भर करते हैं न कि विलेय कणों की प्रकृति पर। ऐसे गुणों को अणुसंख्य गुण धर्म (Colligative Properties) कहते हैं। ‘अणुसंख्य’ (colligative) शब्द लैटिन भाषा से आया है, जिसमें “को” का अर्थ है ‘एक साथ’ और “लिगेर” का अर्थ है ‘आबंधित’। निम्नलिखित खंडों में हम एक-एक करके इन गुणों की विवेचना करेंगे।

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1.6.1 वाष्प दाब का आपेक्षिक अवनमन (Relative Lowering of Vapour Pressure)

खंड 1.4.3 में हमने सीखा कि किसी विलायक का विलयन में वाष्प दाब शुद्ध विलायक के दाब से कम होता है। राउल्ट ने सिद्ध किया कि वाष्प दाब का अवनमन केवल विलेय कणों के सांद्रण पर निर्भर करता है, उनकी प्रकृति पर नहीं।

खंड 1.4.3 में दिया गया समीकरण 1.20 विलयन के वाष्प दाब (p_1), विलायक के वाष्प दाब (p_1^0) एवं मोल-अंश (X_1) से संबंध स्थापित करता है, अर्थात:

    \[p_1 = X_1 p_1^0 \quad (1.22)\]

विलायक के वाष्प दाब में अवनमन (\Delta p_1), को निम्न प्रकार से दिया जाता है:

    \[\Delta p_1 = p_1^0 - p_1\]

समीकरण (1.22) से p_1 का मान रखने पर:

    \[\Delta p_1 = p_1^0 - p_1^0 X_1\]

    \[\Delta p_1 = p_1^0 (1 - X_1) \quad (1.23)\]

यह ज्ञात है कि X_1 = 1 - X_2 (जहाँ X_1 विलायक का मोल-अंश है और X_2 विलेय का मोल-अंश है), अतः समीकरण 1.23 निम्न प्रकार से बदल जाता है:

    \[\Delta p_1 = p_1^0 X_2 \quad (1.24)\]

जिस विलयन में कई अवाष्पशील विलेय होते हैं, उसके वाष्प दाब का अवनमन विभिन्न विलेयों के मोल-अंश के योग पर निर्भर करता है (अर्थात, X_{\text{total solute}} = X_2 + X_3 + \dots)।

समीकरण 1.24 को इस प्रकार लिख सकते हैं:

    \[\frac{\Delta p_1}{p_1^0} = X_2 \quad (1.25)\]

पहले ही बताया जा चुका है कि समीकरण में बाईं ओर लिखा गया पद **वाष्प दाब का आपेक्षिक अवनमन (Relative Lowering of Vapour Pressure)** कहलाता है तथा इसका मान विलेय के मोल-अंश (X_2) के बराबर होता है। अतः उपरोक्त समीकरण को इस प्रकार लिख सकते हैं:

    \[\frac{p_1^0 - p_1}{p_1^0} = X_2 = \frac{n_2}{n_1 + n_2} \quad (1.26)\]

यहाँ n_1 और n_2 क्रमशः विलयन में उपस्थित विलायक और विलेय के मोलों की संख्या है।

तनु विलयन के लिए, n_2 का मान n_1 की तुलना में बहुत कम होता है (n_2 \ll n_1), अतः हर में से n_2 को छोड़ देने पर समीकरण (1.26) निम्न प्रकार से सरल हो जाता है:

    \[\frac{p_1^0 - p_1}{p_1^0} = \frac{n_2}{n_1} \quad (1.27)\]

हम जानते हैं कि n_1 = \frac{w_1}{M_1} और n_2 = \frac{w_2}{M_2} (जहाँ w द्रव्यमान और M मोलर द्रव्यमान है)। इन मानों को समीकरण (1.27) में प्रतिस्थापित करने पर:

    \[\frac{p_1^0 - p_1}{p_1^0} = \frac{w_2/M_2}{w_1/M_1}\]

    \[\frac{p_1^0 - p_1}{p_1^0} = \frac{w_2 \times M_1}{M_2 \times w_1} \quad (1.28)\]

यहाँ w_1 और w_2 तथा M_1 और M_2 क्रमशः विलायक और विलेय की मात्रा (द्रव्यमान) और मोलर द्रव्यमान हैं (नोट: मूल टेक्स्ट में ‘मात्रा’ के स्थान पर ‘द्रव्यमान’ अधिक उपयुक्त है)।

समीकरण (1.28) में उपस्थित अन्य सभी मात्राएं ज्ञात होने पर विलेय के मोलर द्रव्यमान (M_2) को परिकलित किया जा सकता है।




1.6.2 क्वथनांक का उन्नयन (Elevation in Boiling Point)

1.6.2 क्वथनांक का उन्नयन (Elevation in Boiling Point)

किसी द्रव का ताप बढ़ने पर उसका वाष्प दाब बढ़ता है। द्रव उस ताप पर उबलता है जिस पर उसका वाष्प दाब वायुमंडलीय दाब के बराबर हो जाता है। उदाहरण के लिए, जल 373.15 K (100°C) पर उबलता है क्योंकि इस ताप पर जल का वाष्प दाब 1.013 bar (1 वायुमंडल) है। हमने पिछले खंड में जाना कि अवाष्पशील विलेय की उपस्थिति से विलायक का वाष्प दाब कम हो जाता है।

चित्र 1.7 (यहाँ चित्र प्रदर्शित नहीं है, लेकिन मूल पाठ में इसका उल्लेख है) शुद्ध विलायक और विलयन के वाष्प दाब का ताप के साथ परिवर्तन प्रदर्शित करता है। उदाहरण के लिए, सुक्रोस के जलीय विलयन का वाष्प दाब 373.15 K पर 1.013 bar से कम है। इस विलयन को उबालने के लिए ताप को शुद्ध विलायक (जल) के क्वथनांक से अधिक बढ़ाकर विलयन का वाष्प दाब 1.013 bar तक बढ़ाना पड़ेगा। अतः, किसी भी विलयन का क्वथनांक शुद्ध विलायक, जिसमें विलयन बनाया गया है, के क्वथनांक से हमेशा अधिक होता है जैसा चित्र 1.7 में दिखाया गया है।

वाष्प दाब के अवनमन के समान ही, क्वथनांक का उन्नयन भी विलेय के अणुओं की संख्या पर निर्भर करता है न कि उसकी प्रकृति पर। एक मोल सुक्रोस का 1000 g जल में विलयन 1 वायुमंडलीय दाब पर 373.52 K पर उबलता है।

क्वथनांक उन्नयन की परिभाषा

यदि T_b^0 शुद्ध विलायक का क्वथनांक है और T_b विलयन का क्वथनांक है, तो \Delta T_b = T_b - T_b^0 को क्वथनांक का उन्नयन (Elevation in Boiling Point) कहा जाता है।

क्वथनांक उन्नयन और मोललता के बीच संबंध

प्रयोग दर्शाते हैं कि तनु विलयन में क्वथनांक का उन्नयन (\Delta T_b) विलयन में उपस्थित विलेय की मोलल सांद्रता (m) के समानुपाती होता है। अतः:

    \[\Delta T_b \propto m \quad (1.29)\]

    \[\Delta T_b = K_b m \quad (1.30)\]

यहाँ:

  • m (मोललता) 1 kg विलायक में विलीन विलेय के मोलों की संख्या है।
  • K_b **क्वथनांक उन्नयन स्थिरांक** या **मोलल उन्नयन स्थिरांक (Ebullioscopic Constant)** कहलाता है। K_b की इकाई K kg mol^{-1} है।

कुछ प्रचलित विलायकों के K_b का मान सारणी 1.3 में दिया गया है (सारणी यहाँ प्रदर्शित नहीं है)।

विलेय के मोलर द्रव्यमान की गणना

यदि M_2 मोलर द्रव्यमान वाले विलेय के w_2 ग्राम, w_1 ग्राम विलायक में उपस्थित हों तो विलयन की मोललता (m) निम्न पद द्वारा व्यक्त की जाती है:

    \[m = \frac{\text{विलेय के मोल}}{\text{विलायक का द्रव्यमान (kg)}} = \frac{w_2/M_2}{w_1/1000}\]

    \[m = \frac{1000 \times w_2}{M_2 \times w_1} \quad (1.31)\]

समीकरण (1.30) में मोललता (m) का मान रखने पर:

    \[\Delta T_b = K_b \times \frac{1000 \times w_2}{M_2 \times w_1} \quad (1.32)\]

विलेय के मोलर द्रव्यमान (M_2) के लिए समीकरण को पुनर्व्यवस्थित करने पर:

    \[M_2 = \frac{1000 \times w_2 \times K_b}{\Delta T_b \times w_1} \quad (1.33)\]

अतः, विलेय के मोलर द्रव्यमान (M_2) का मान निकालने के लिए, उस विलेय की एक ज्ञात मात्रा (w_2) को ऐसे विलायक की ज्ञात मात्रा (w_1) में विलीन करके \Delta T_b का मान प्रयोग द्वारा प्राप्त किया जाता है, जिसके लिए K_b का मान ज्ञात हो।




1.6.3 हिमांक का अवनमन (Depression in Freezing Point)

1.6.3 हिमांक का अवनमन (Depression in Freezing Point)

वाष्प दाब में कमी के कारण शुद्ध विलायक की तुलना में विलयन के हिमांक का अवनमन होता है (चित्र 1.8 का संदर्भ)। हम जानते हैं कि किसी पदार्थ के हिमांक पर, ठोस प्रावस्था एवं द्रव प्रावस्था गतिक साम्य में रहती है। अतः किसी पदार्थ के हिमांक बिंदु को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि यह वह ताप है जिस पर द्रव अवस्था का वाष्प दाब उसकी ठोस अवस्था के वाष्प दाब के बराबर होता है।

एक विलयन का तभी हिमीकरण होता है जब उसका वाष्प दाब शुद्ध ठोस विलायक के वाष्प दाब के बराबर हो जाए जैसा कि चित्र 1.8 (यहाँ चित्र प्रदर्शित नहीं है) से स्पष्ट है। राउल्ट के नियम के अनुसार जब एक अवाष्पशील ठोस विलेय विलायक में डाला जाता है तो विलायक का वाष्प दाब कम हो जाता है और इसका वाष्प दाब ठोस विलायक के वाष्प दाब के बराबर कुछ कम ताप पर होता है। अतः, विलायक का हिमांक घट जाता है।

चित्र 1.8: विलयन में विलायक के वाष्प दाब में अवनमन दर्शाने वाला आलेख

हिमांक अवनमन की परिभाषा

माना कि T_f^0 शुद्ध विलायक का हिमांक बिंदु है और जब उसमें अवाष्पशील विलेय घुला है तब उसका हिमांक बिंदु T_f है। अतः हिमांक में कमी T_f^0 - T_f के बराबर होगी।

    \[\Delta T_f = T_f^0 - T_f\]

इसे हिमांक का अवनमन (Depression in Freezing Point) कहते हैं।

हिमांक अवनमन और मोललता के बीच संबंध

क्वथनांक के उन्नयन के समान ही, तनु विलयन (आदर्श विलयन) का हिमांक अवनमन (\Delta T_f) भी विलयन की मोललता (m) के समानुपाती होता है। अतः:

    \[\Delta T_f \propto m\]

    \[\Delta T_f = K_f m \quad (1.34)\]

समानुपाती स्थिरांक, K_f जो विलायक की प्रकृति पर निर्भर करता है, को **हिमांक अवनमन स्थिरांक (Freezing Point Depression Constant)**, **मोलल अवनमन स्थिरांक (Molal Depression Constant)** या **क्रायोस्कोपिक स्थिरांक (Cryoscopic Constant)** कहते हैं। K_f की इकाई K kg mol^{-1} है। कुछ प्रचलित विलायकों के K_f मान सारणी 1.3 में दिए गए हैं (सारणी यहाँ प्रदर्शित नहीं है)।

विलेय के मोलर द्रव्यमान की गणना

यदि w_2 ग्राम विलेय जिसका मोलर द्रव्यमान M_2 है, की w_1 ग्राम विलायक में उपस्थिति विलायक के हिमांक में \Delta T_f अवनमन कर दे, तो विलेय की मोललता समीकरण 1.31 द्वारा दर्शायी जाती है:

    \[m = \frac{w_2/M_2}{w_1/1000} = \frac{1000 \times w_2}{M_2 \times w_1} \quad (1.31)\]

समीकरण (1.34) में मोललता का यह मान रखने पर, हमें प्राप्त होता है:

    \[\Delta T_f = K_f \times \frac{w_2/M_2}{w_1/1000}\]

    \[\Delta T_f = \frac{K_f \times w_2 \times 1000}{M_2 \times w_1} \quad (1.35)\]

अतः, विलेय के मोलर द्रव्यमान (M_2) के लिए समीकरण को पुनर्व्यवस्थित करने पर:

    \[M_2 = \frac{K_f \times w_2 \times 1000}{\Delta T_f \times w_1} \quad (1.36)\]

अतः विलेय का मोलर द्रव्यमान निकालने के लिए हमें w_1, w_2, \Delta T_f के साथ मोलल अवनमन स्थिरांक K_f का मान भी ज्ञात होना चाहिए।

K_b एवं K_f के मानों की गणना

K_b एवं K_f के मान, जो विलायक की प्रकृति पर निर्भर करते हैं, निम्न संबंधों से प्राप्त किए जा सकते हैं:

    \[K_b = \frac{R \times M_1 \times (T_b^0)^2}{1000 \times \Delta_{\text{vap}}H} \quad (1.37)\]

    \[K_f = \frac{R \times M_1 \times (T_f^0)^2}{1000 \times \Delta_{\text{fus}}H} \quad (1.38)\]

यहाँ:

  • R गैस स्थिरांक है।
  • M_1 विलायक का मोलर द्रव्यमान है।
  • T_f^0 और T_b^0 केल्विन में शुद्ध विलायक के क्रमशः हिमांक एवं क्वथनांक हैं।
  • \Delta_{\text{vap}}H वाष्पीकरण की एन्थैल्पी (enthalpy of vaporization) है।
  • \Delta_{\text{fus}}H संलयन की एन्थैल्पी (enthalpy of fusion) है।




उदाहरण 1.8 का हल: क्वथनांक उन्नयन विधि द्वारा मोलर द्रव्यमान की गणना

उदाहरण 1.8 बेन्जीन का क्वथनांक 353.23 K है। 1.80 g अवाष्पशील विलेय को 90 g बेन्जीन में घोलने पर विलयन का क्वथनांक बढ़कर 354.11 K हो जाता है। विलेय के मोलर द्रव्यमान की गणना कीजिए। बेन्जीन के लिए K_b का मान 2.53 K kg mol^{-1} है।

हल : दिया गया है:

  • शुद्ध बेन्जीन का क्वथनांक (T_b^0) = 353.23 K
  • विलयन का क्वथनांक (T_b) = 354.11 K
  • विलेय का द्रव्यमान (w_2) = 1.80 g
  • बेन्जीन (विलायक) का द्रव्यमान (w_1) = 90 g
  • बेन्जीन के लिए मोलल उन्नयन स्थिरांक (K_b) = 2.53 K kg mol^{-1}

क्वथनांक का उन्नयन (\Delta T_b) की गणना:

    \[\Delta T_b = T_b - T_b^0\]

    \[\Delta T_b = 354.11 \text{ K} - 353.23 \text{ K}\]

    \[\Delta T_b = 0.88 \text{ K}\]

विलेय के मोलर द्रव्यमान (M_2) की गणना के लिए समीकरण (1.33) का उपयोग करेंगे:

    \[M_2 = \frac{K_b \times w_2 \times 1000}{\Delta T_b \times w_1}\]

दिए गए मानों को सूत्र में रखने पर:

    \[M_2 = \frac{2.53 \text{ K kg mol}^{-1} \times 1.80 \text{ g} \times 1000 \text{ g kg}^{-1}}{0.88 \text{ K} \times 90 \text{ g}}\]

    \[M_2 = \frac{2.53 \times 1.80 \times 1000}{0.88 \times 90} \text{ g mol}^{-1}\]

    \[M_2 = \frac{4554}{79.2} \text{ g mol}^{-1}\]

    \[M_2 \approx 57.5 \text{ g mol}^{-1}\]

अतः, विलेय का मोलर द्रव्यमान, M_2 = 58 \text{ g mol}^{-1} (निकटतम पूर्णांक तक पूर्णांकित)।




उदाहरण 1.9 और 1.10 का हल: हिमांक अवनमन और मोलर द्रव्यमान की गणना

उदाहरण 1.9 : 45 g एथिलीन ग्लाइकॉल (C2H6O2) को 600 g जल में मिलाया गया। विलयन के (a) हिमांक अवनमन एवं (b) हिमांक की गणना कीजिए। (दिया गया है: जल के लिए K_f = 1.86 \text{ K kg mol}^{-1})

हल : हिमांक अवनमन मोललता से संबंधित है, अतः हम पहले मोललता की गणना करेंगे।

एथिलीन ग्लाइकॉल (C2H6O2) का मोलर द्रव्यमान:

    \[M_{\text{C}_2\text{H}_6\text{O}_2} = (2 \times 12.0) + (6 \times 1.0) + (2 \times 16.0)\]

    \[M_{\text{C}_2\text{H}_6\text{O}_2} = 24.0 + 6.0 + 32.0 = 62.0 \text{ g mol}^{-1}\]

एथिलीन ग्लाइकॉल के मोल:

    \[n_{\text{एथिलीन ग्लाइकॉल}} = \frac{\text{एथिलीन ग्लाइकॉल का द्रव्यमान}}{\text{एथिलीन ग्लाइकॉल का मोलर द्रव्यमान}}\]

    \[n_{\text{एथिलीन ग्लाइकॉल}} = \frac{45 \text{ g}}{62.0 \text{ g mol}^{-1}} \approx 0.7258 \text{ mol}\]

जल का kg में द्रव्यमान:

    \[\text{जल का द्रव्यमान (kg)} = \frac{600 \text{ g}}{1000 \text{ g kg}^{-1}} = 0.6 \text{ kg}\]

एथिलीन ग्लाइकॉल के विलयन की मोललता (m):

    \[m = \frac{\text{एथिलीन ग्लाइकॉल के मोल}}{\text{जल का kg में द्रव्यमान}}\]

    \[m = \frac{0.7258 \text{ mol}}{0.6 \text{ kg}} \approx 1.2097 \text{ mol kg}^{-1}\]

    \[\text{इस प्रकार, एथिलीन ग्लाइकॉल की मोललता } \approx 1.2 \text{ mol kg}^{-1}\]

(a) हिमांक में अवनमन (\Delta T_f)

हिमांक में अवनमन की गणना समीकरण \Delta T_f = K_f m का उपयोग करके:

    \[\Delta T_f = 1.86 \text{ K kg mol}^{-1} \times 1.2097 \text{ mol kg}^{-1}\]

    \[\Delta T_f \approx 2.25 \text{ K}\]

    \[\text{अतः हिमांक में अवनमन } \Delta T_f \approx 2.2 \text{ K (निकटतम)}\]

(b) विलयन का हिमांक

शुद्ध जल का हिमांक (T_f^0) = 273.15 K होता है। विलयन का हिमांक (T_f) निम्न सूत्र से दिया जाता है:

    \[T_f = T_f^0 - \Delta T_f\]

    \[T_f = 273.15 \text{ K} - 2.25 \text{ K}\]

    \[T_f = 270.90 \text{ K}\]

    \[\text{अतः जलीय विलयन का हिमांक } \approx 270.95 \text{ K (दिए गए उत्तर के अनुसार)}\]

उदाहरण 1.10 : एक वैद्युतअनअपघट्य (non-electrolyte) X का 1.00 g को 50 g बेन्जीन में घोलने पर इसके हिमांक में 0.40 K की कमी हो जाती है। बेन्जीन का हिमांक अवनमन स्थिरांक 5.12 K kg mol^{-1} है। विलेय का मोलर द्रव्यमान ज्ञात कीजिए।

हल : दिया गया है:

  • विलेय का द्रव्यमान (w_2) = 1.00 g
  • विलायक (बेन्जीन) का द्रव्यमान (w_1) = 50 g
  • हिमांक में अवनमन (\Delta T_f) = 0.40 K
  • बेन्जीन के लिए हिमांक अवनमन स्थिरांक (K_f) = 5.12 K kg mol^{-1}

विलेय के मोलर द्रव्यमान (M_2) की गणना के लिए समीकरण (1.36) का उपयोग करेंगे:

    \[M_2 = \frac{K_f \times w_2 \times 1000}{\Delta T_f \times w_1}\]

विभिन्न पदों के मान सूत्र में रखने पर:

    \[M_2 = \frac{5.12 \text{ K kg mol}^{-1} \times 1.00 \text{ g} \times 1000 \text{ g kg}^{-1}}{0.40 \text{ K} \times 50 \text{ g}}\]

    \[M_2 = \frac{5.12 \times 1000}{0.40 \times 50} \text{ g mol}^{-1}\]

    \[M_2 = \frac{5120}{20} \text{ g mol}^{-1}\]

    \[M_2 = 256 \text{ g mol}^{-1}\]

अतः, विलेय का मोलर द्रव्यमान = 256 g mol^{-1}




सारणी 1.3: कुछ विलायकों के मोलल क्वथनांक उन्नयन स्थिरांक एवं मोलल हिमांक अवनमन स्थिरांक

विलायकb. p./KK_b / K kg mol^{-1}f. p./KK_f / K kg mol^{-1}
जल373.150.52273.01.86
एथेनॉल351.51.20155.71.99
साइक्लोहेक्सेन353.742.79279.5520.00
बेन्जीन353.32.53278.65.12
क्लोरोफॉर्म334.43.63209.64.79
कार्बन टेट्राक्लोराइड350.05.03250.531.8
कार्बन डाइसल्फाइड319.42.34164.23.83
डाईएथिल ईथर307.82.02156.91.79
ऐसीटिक अम्ल391.12.93290.03.90

1.6.4 परासरण एवं परासरण दाब (Osmosis and Osmotic Pressure)

1. परिचय: दैनिक जीवन में परासरण के उदाहरण हम अपने दैनिक जीवन में परासरण से संबंधित कई घटनाएँ देखते हैं:

  • कच्चे आमों का नमकीन जल में संकुचित होना (अचार बनाते समय)।
  • मुरझाए फूलों का ताज़े जल में रखने पर ताज़ा हो जाना।
  • नमकीन जल में रखने पर रुधिर कोशिकाओं का सिकुड़ना। इन सभी घटनाओं में, पदार्थ एक झिल्ली (जंतु या वनस्पति मूल की या संश्लेषित, जैसे सेलोफेन) द्वारा घिरे होते हैं।

2. अर्धपारगम्य झिल्लियाँ (Semipermeable Membranes – SPM)

  • ये झिल्लियाँ दिखने में ठोस शीट या फिल्म जैसी लगती हैं।
  • वास्तव में, इनमें अतिसूक्ष्म छिद्रों (submicroscopic pores) का एक नेटवर्क होता है।
  • इन छिद्रों से केवल विलायक के छोटे अणु (जैसे जल के अणु) ही गुजर सकते हैं।
  • विलेय के बड़े अणु इन छिद्रों से नहीं गुजर पाते।
  • ऐसी झिल्लियाँ अर्धपारगम्य झिल्लियाँ (SPM) कहलाती हैं।

3. परासरण (Osmosis)

  • जब एक अर्धपारगम्य झिल्ली को विलायक और विलयन के बीच रखा जाता है (या दो अलग-अलग सांद्रता वाले विलयनों के बीच), तो विलायक के अणु झिल्ली में से निकलकर विलयन (या उच्च सांद्रता वाले विलयन) की ओर प्रवाहित होते हैं।
  • विलायक के प्रवाह का यह प्रक्रम परासरण कहलाता है।
  • यह प्रवाह तब तक होता रहता है जब तक साम्यावस्था प्राप्त न हो जाए।
  • महत्वपूर्ण बिंदु: विलायक के अणु हमेशा अपनी निम्न सांद्रता (या शुद्ध विलायक) से उच्च सांद्रता वाले विलयन की ओर प्रवाहित होते हैं।

4. परासरण दाब (Osmotic Pressure – Pi)

  • परिभाषा: विलयन पर लगाया गया वह अतिरिक्त दाब जो अर्धपारगम्य झिल्ली में से विलायक के प्रवाह को (विलयन की ओर) ठीक रोकता है, परासरण दाब कहलाता है।
  • यह भी एक अणुसंख्य गुण धर्म है, जिसका अर्थ है कि यह विलेय अणुओं की संख्या पर निर्भर करता है, न कि उनकी प्रकृति पर।
  • तनु विलयनों के लिए संबंध: प्रायोगिक तौर पर यह पाया गया है कि तनु विलयनों का परासरण दाब दिए गए ताप (T) पर, मोलरता (C) के समानुपाती होता है। Π∝CΠ=CRT(1.39) यहाँ:
    • Pi = परासरण दाब
    • C = मोलरता (mol L^{-1} में)
    • R = गैस नियतांक
    • T = केल्विन में ताप

5. मोलर द्रव्यमान की गणना

  • मोलरता (C) को n_2/V (जहाँ n_2 विलेय के मोल हैं और V विलयन का आयतन लीटर में है) के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। Π=Vn2​​RT(1.40)
  • यदि M_2 मोलर द्रव्यमान का w_2 ग्राम विलेय विलयन में उपस्थित हो, तो n_2=w_2/M_2। Π=M2​Vw2​​RT(1.41)
  • अतः, विलेय का मोलर द्रव्यमान (M_2) परिकलित किया जा सकता है: M2​=ΠVw2​RT​(1.42)
  • यह विधि (M_2) ज्ञात करने की एक प्रचलित विधि है, खासकर प्रोटीनों, बहुलकों और अन्य वृहदणुओं के लिए।

6. परासरण दाब विधि के लाभ

  • यह दाब मापन कमरे के ताप पर होता है, जिससे जैव-अणुओं के लिए उपयोगी है जो उच्च ताप पर अस्थायी हो सकते हैं।
  • इसमें मोललता के स्थान पर विलयन की मोलरता का उपयोग होता है, जिससे गणना सरल होती है (तापमान परिवर्तन से मोलरता प्रभावित होती है, मोललता नहीं, लेकिन यहां कमरे के ताप पर माप की बात हो रही है)।
  • अन्य अणुसंख्य गुणों की तुलना में तनु विलयनों के लिए भी इसका परिमाण अधिक होता है, जिससे यह अधिक सटीक होती है।
  • यह उन बहुलकों के लिए भी उपयोगी है जिनकी विलेयता कम होती है।

7. समपरासरी, अल्पपरासरी और अतिपरासरी विलयन

  • समपरासरी विलयन (Isotonic Solutions): वे विलयन जिनका परासरण दाब समान होता है। जब ऐसी कोशिकाओं को समपरासरी विलयन में रखा जाता है, तो कोई परासरण नहीं होता।
    • उदाहरण: रुधिर कोशिकाओं में स्थित द्रव का परासरण दाब 0.9% (द्रव्यमान/आयतन) सोडियम क्लोराइड विलयन (सामान्य लवण विलयन) के तुल्यांक होता है। इसे अंतःशिरा में अंतःक्षेपित (इंजेक्ट) करना सुरक्षित है।
  • अतिपरासरी विलयन (Hypertonic Solutions): यदि कोशिकाओं को 0.9% (द्रव्यमान/आयतन) से अधिक सोडियम क्लोराइड विलयन में रखा जाए, तो जल कोशिकाओं से बाहर प्रवाहित हो जाएगा और वे संकुचित हो जाएंगी।
  • अल्पपरासरी विलयन (Hypotonic Solutions): यदि लवण की सांद्रता 0.9% (द्रव्यमान/आयतन) से कम हो, तो जल कोशिकाओं के अंदर प्रवाहित होगा और वे फूल जाएँगी।

8. परासरण के दैनिक जीवन में अनुप्रयोग और प्रभाव

  • खाद्य संरक्षण:
    • अचार बनाने के लिए सांद्र लवणीय विलयन में रखा गया कच्चा आम परासरण के कारण जल का क्षरण कर देता है एवं संकुचित हो जाता है।
    • मांस में लवण मिलाकर संरक्षण एवं फलों में शर्करा मिलाकर संरक्षण बैक्टीरिया की क्रिया को रोकता है क्योंकि बैक्टीरिया जल हास के कारण संकुचित होकर मर जाते हैं।
  • पौधों में: जल का मृदा से पौधों की जड़ों में और फिर पौधे के ऊपर के हिस्सों में पहुँचना आंशिक रूप से परासरण के कारण होता है।
  • पुनरुज्जीवन: मुरझाए पुष्प/गाजर ताज़ा जल में रखने पर परासरण के कारण जल अवशोषित कर पुनः ताज़े हो जाते हैं।
  • शोफ (Edema): जो लोग बहुत अधिक नमक या नमकीन भोजन लेते हैं, वे ऊतक कोशिकाओं एवं अंतराकोशिक स्थानों में जल धारण महसूस करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप होने वाली सूजन को शोफ कहते हैं।

1.6.5 प्रतिलोम परासरण एवं जल शोधन (Reverse Osmosis and Water Purification)

1. प्रतिलोम परासरण (Reverse Osmosis – RO)

  • यदि विलयन पर परासरण दाब (Pi) से अधिक दाब लगाया जाए, तो परासरण की दिशा को प्रतिवर्तित (reversed) किया जा सकता है।
  • अर्थात, शुद्ध विलायक (जल) अर्धपारगम्य झिल्ली के माध्यम से विलयन में से (उच्च सांद्रता से निम्न सांद्रता की ओर) पारगमन करता है।
  • यह परिघटना प्रतिलोम परासरण कहलाती है।

2. अनुप्रयोग: समुद्री जल का विलवणीकरण

  • प्रतिलोम परासरण का उपयोग समुद्री जल के विलवणीकरण (desalination) में किया जाता है।
  • जब समुद्री जल पर परासरण दाब से अधिक दाब लगाया जाता है, तो शुद्ध जल अर्धपारगम्य झिल्ली के माध्यम से समुद्री जल में से निष्कासित हो जाता है।
  • इसके लिए विभिन्न प्रकार की बहुलकीय झिल्लियाँ (जैसे सेलूलोस ऐसीटेट की फिल्म) उपलब्ध हैं। सेलूलोस ऐसीटेट जल के लिए पारगम्य है परंतु समुद्री जल में उपस्थित अशुद्धियों एवं आयनों के लिए अपारगम्य है।
  • आजकल बहुत से देश अपनी पेय जल की आवश्यकता के लिए विलवणीकरण संयंत्रों का उपयोग करते हैं।




1.6.4 परासरण एवं परासरण दाब & 1.6.5 प्रतिलोम परासरण एवं जल शोधन

1.6.4 परासरण एवं परासरण दाब (Osmosis and Osmotic Pressure)

1. परिचय: दैनिक जीवन में परासरण के उदाहरण

हम प्रकृति अथवा घर में कई परिघटनाओं को देखते हैं जो परासरण से संबंधित हैं। उदाहरणार्थ:

  • कच्चे आमों का अचार डालने के लिए नमकीन जल में भिगोने पर वे संकुचित हो जाते हैं।
  • मुरझाए फूल ताज़े जल में रखने पर ताज़े हो उठते हैं।
  • नमकीन जल में रखने पर रुधिर कोशिकायें सिकुड़ जाती हैं।

इन सभी घटनाओं में एक बात जो समान दिखाई देती है, वह यह है कि ये सभी पदार्थ झिल्लियों से परिबद्ध हैं। ये झिल्लियाँ जंतु या वनस्पति मूल की हो सकती हैं (जैसे सूअर के ब्लेडर या पार्चमेन्ट) अथवा संश्लेषित प्रकृति की (जैसे सेलोफेन) होती हैं।

2. अर्धपारगम्य झिल्लियाँ (Semipermeable Membranes – SPM)

ये झिल्लियाँ सतत शीट या फिल्म प्रतीत होती हैं, तथापि इनमें अतिसूक्ष्म (Submicroscopic) छिद्रों या रंध्रों का एक नेटवर्क होता है। कुछ विलायक जैसे जल के अणु इन छिद्रों से आर-पार जा सकते हैं परंतु विलेय के बड़े अणुओं का गमन बाधित होता है। इस प्रकार के गुणों वाली झिल्लियाँ, अर्धपारगम्य झिल्लियाँ (SPM) कहलाती हैं।

3. परासरण (Osmosis)

मान लीजिए कि केवल विलायक के अणु ही इन अर्धपारगम्य झिल्लियों में से निकल सकते हैं। यदि चित्र 1.9 में दर्शाए अनुसार यह झिल्ली विलायक एवं विलयन के मध्य रख दी जाए तो विलायक के अणु इस झिल्ली में से निकलकर विलयन की ओर प्रवाहित हो जाएंगे। विलायक के प्रवाह का यह प्रक्रम परासरण कहलाता है।

(यहाँ चित्र 1.9: विलायक के परासरण के कारण थिसेल फनल में विलयन का स्तर बढ़ जाता है का आरेख शामिल करें)

चित्र 1.9: विलायक के परासरण के कारण थिसेल फनल में विलयन का स्तर बढ़ जाता है।

साम्यावस्था प्राप्त होने तक प्रवाह सतत बना रहता है। यह बिंदु ध्यान रखने योग्य है कि विलायक के अणु हमेशा विलयन की निम्न सांद्रता से उच्च सांद्रता की ओर प्रवाह करते हैं।

4. परासरण दाब (Osmotic Pressure – \Pi)

झिल्ली में से विलायक का अपनी ओर से विलयन की ओर का प्रवाह, विलयन पर अतिरिक्त दाब लगाकर रोका जा सकता है। यह दाब जो कि विलायक के प्रवाह को मात्र रोकता है, परासरण दाब कहलाता है।

(यहाँ चित्र 1.10: परासरण दाब के लिए व्यवस्था का आरेख शामिल करें)

चित्र 1.10: परासरण दाब के लिए व्यवस्था।

परासरण दाब एक अणुसंख्य गुण है, जो कि विलेय की अणु संख्या पर निर्भर करता है, न कि उसकी प्रकृति पर। तनु विलयनों के लिए प्रायोगिक तौर पर यह पाया गया है कि परासरण दाब दिए गए ताप T पर, मोलरता, C के समानुपातिक होता है। अतः:

    \[\Pi \propto C\]

    \[\Pi = CRT \quad (1.39)\]

यहाँ \Pi परासरण दाब एवं R गैस नियतांक है।

5. मोलर द्रव्यमान की गणना

मोलरता C को \frac{n_2}{V} लिख सकते हैं, जहाँ n_2 विलेय के मोलों की संख्या है और V विलयन का आयतन लीटर में है।

    \[\Pi = \frac{n_2}{V} RT \quad (1.40)\]

यदि M_2 मोलर द्रव्यमान का w_2 ग्राम विलेय विलयन में उपस्थित हो, तब n_2 = \frac{w_2}{M_2}

    \[\Pi = \frac{w_2}{M_2 V} RT \quad (1.41)\]

    \[\text{या } M_2 = \frac{w_2 R T}{\Pi V} \quad (1.42)\]

अतः, राशियों w_2, T, \Pi एवं V के ज्ञात होने पर विलेय का मोलर द्रव्यमान परिकलित किया जा सकता है।

6. परासरण दाब विधि के लाभ

विलेयों के मोलर द्रव्यमान ज्ञात करने की परासरण दाब का मापन एक अन्य लोकप्रिय विधि है। यह विधि प्रोटीनों, बहुलकों एवं अन्य वृहदणुओं के मोलर द्रव्यमान ज्ञात करने की प्रचलित विधि है।

परासरण दाब विधि दाब मापन की अन्य विधियों से अधिक उपयोगी है क्योंकि:

  • परासरण दाब मापन कमरे के ताप पर होता है, जिससे उन जैव-अणुओं के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो उच्च ताप पर सामान्यतया स्थायी नहीं होते।
  • मोललता के स्थान पर विलयन की मोलरता उपयोग में ली जाती है (गणना में सुविधा)।
  • अन्य अणुसंख्य गुणों की तुलना में तनु विलयनों के लिए भी इसका परिमाण अधिक होता है, जिससे यह अधिक सटीक होती है।
  • यह उन बहुलकों के लिए भी उपयोगी है जिनकी विलेयता कम होती है।

7. समपरासरी, अतिपरासरी और अल्पपरासरी विलयन

  • समपरासरी विलयन (Isotonic Solutions): ऐसे विलयन जिनका परासरण दाब समान होता है। यदि रुधिर कोशिकाओं को समपरासरी विलयन में रखा जाए, तो परासरण नहीं होता। उदाहरणार्थ, रुधिर कोशिका में स्थित द्रव का परासरण दाब 0.9% (द्रव्यमान/आयतन) सोडियम क्लोराइड (जिसे सामान्य लवण विलयन कहते हैं) के तुल्यांक होता है एवं इसे अंतःशिरा में अंतःक्षेपित (इंजेक्ट) करना सुरक्षित रहता है।
  • अतिपरासरी विलयन (Hypertonic Solutions): यदि हम कोशिकाओं को 0.9% (द्रव्यमान/आयतन) से अधिक सोडियम क्लोराइड विलयन में रख दें, तो जल कोशिकाओं से बाहर प्रवाहित हो जाएगा और वे संकुचित हो जाएंगी।
  • अल्पपरासरी विलयन (Hypotonic Solutions): यदि लवण की सांद्रता 0.9% (द्रव्यमान/आयतन) से कम हो तो जल कोशिकाओं के अंदर प्रवाहित होगा और वे फूल जाएँगी।

8. परासरण के दैनिक जीवन में अनुप्रयोग एवं प्रभाव

इस खंड के प्रारंभ में उल्लेखित परिघटनाओं को परासरण के आधार पर समझाया जा सकता है:

  • अचार बनाने के लिए सांद्र लवणीय विलयन में रखा गया कच्चा आम परासरण के कारण जल का क्षरण कर देता है एवं संकुचित हो जाता है।
  • मुरझाए पुष्प ताज़ा जल में रखने पर पुनः ताज़े हो उठते हैं। वातावरण में जल हास के कारण लचीली हो चुकी गाजर जल में रखकर पुनः उसी अवस्था में प्राप्त की जा सकती है। परासरण के कारण जल इसकी कोशिकाओं के अंदर चला जाता है।
  • यदि रुधिर कोशिकाओं को 0.9% (द्रव्यमान/आयतन) से कम लवण वाले जल में रखा जाए तो परासरण के कारण जल के रुधिर कोशिका में प्रवाह से ये फूल जाती हैं।
  • जो लोग बहुत अधिक नमक या नमकीन भोजन लेते हैं वे ऊतक कोशिकाओं एवं अंतराकोशिक स्थानों में जल धारण महसूस करते हैं। इसके परिणामस्वरूप होने वाली स्थूलता या सूजन को शोफ (edema) कहते हैं।
  • जल का मृदा से पौधों की जड़ों में और फिर पौधे के ऊपर के हिस्सों में पहुँचना आंशिक रूप से परासरण के कारण होता है।
  • मांस में लवण मिलाकर संरक्षण एवं फलों में शर्करा मिलाकर संरक्षण बैक्टीरिया की क्रिया को रोकता है। परासरण के कारण नमकयुक्त मांस एवं मिश्री में पागे गए फल पर स्थिर बैक्टीरियम जल हास के कारण संकुचित होकर मर जाता है।

1.6.5 प्रतिलोम परासरण एवं जल शोधन (Reverse Osmosis and Water Purification)

1. प्रतिलोम परासरण (Reverse Osmosis – RO)

चित्र 1.10 में वर्णित विलयन पर यदि परासरण दाब (\Pi) से अधिक दाब लगाया जाए तो परासरण की दिशा को प्रतिवर्तित (Reversed) किया जा सकता है; अर्थात्‌ शुद्ध विलायक अब अर्धपारगम्य झिल्ली के माध्यम से विलयन में से पारगमन करता है। यह परिघटना प्रतिलोम परासरण कहलाती है एवं व्यावहारिक रूप से बहुत उपयोगी है।

(यहाँ चित्र 1.11: प्रतिलोम परासरण के लिए व्यवस्था का आरेख शामिल करें)

चित्र 1.11: प्रतिलोम परासरण के लिए व्यवस्था।

2. अनुप्रयोग: समुद्री जल का विलवणीकरण

प्रतिलोम परासरण का उपयोग समुद्री जल के विलवणीकरण में किया जाता है। जब परासरण दाब से अधिक दाब लगाया जाता है तो शुद्ध जल अर्धपारगम्य झिल्ली के माध्यम से समुद्री जल में से निष्कासित हो जाता है। इस उद्देश्य के लिए विभिन्न प्रकार की बहुलकीय झिल्लियाँ उपलब्ध हैं।

प्रतिलोम परासरण के लिए आवश्यक दाब बहुत अधिक होता है। इसके लिए उपयुक्त झिल्ली सेलूलोस ऐसीटेट की फिल्म से बनी होती है जिसे उपयुक्त आधार पर रखा जाता है। सेलूलोस ऐसीटेट जल के लिए पारगम्य है परंतु समुद्री जल में उपस्थित अशुद्धियों एवं आयनों के लिए अपारगम्य है। आजकल बहुत से देश अपनी पेय जल की आवश्यकता के लिए विलवणीकरण संयंत्रों का उपयोग करते हैं।




पाठ्यनिहित प्रश्न 1.9, 1.10, 1.11, 1.12 के हल

पाठ्यनिहित प्रश्न 1.9

298 K पर शुद्ध जल का वाष्प दाब 23.8 mm Hg है। 850 g जल में 50 g यूरिया (NH2CONH2) घोला जाता है। इस विलयन के लिए जल के वाष्प दाब एवं इसके आपेक्षिक अवनमन का परिकलन कीजिए।

हल

दिया गया है:

  • शुद्ध जल का वाष्प दाब (p_1^0) = 23.8 mm Hg
  • जल (विलायक) का द्रव्यमान (w_1) = 850 g
  • यूरिया (विलेय) का द्रव्यमान (w_2) = 50 g

यूरिया (NH2CONH2) का मोलर द्रव्यमान (M_2):

    \[M_{\text{यूरिया}} = (2 \times 14.0) + (4 \times 1.0) + 12.0 + 16.0 = 28 + 4 + 12 + 16 = 60.0 \text{ g mol}^{-1}\]

जल (H2O) का मोलर द्रव्यमान (M_1):

    \[M_{\text{जल}} = (2 \times 1.0) + 16.0 = 18.0 \text{ g mol}^{-1}\]

विलेय (यूरिया) के मोल (n_2):

    \[n_2 = \frac{w_2}{M_2} = \frac{50 \text{ g}}{60.0 \text{ g mol}^{-1}} \approx 0.8333 \text{ mol}\]

विलायक (जल) के मोल (n_1):

    \[n_1 = \frac{w_1}{M_1} = \frac{850 \text{ g}}{18.0 \text{ g mol}^{-1}} \approx 47.2222 \text{ mol}\]

विलेय (यूरिया) का मोल-अंश (X_2):

    \[X_2 = \frac{n_2}{n_1 + n_2} = \frac{0.8333}{47.2222 + 0.8333} = \frac{0.8333}{48.0555} \approx 0.01734\]

(a) विलयन के लिए जल का वाष्प दाब (p_1)

राउल्ट के नियम से:

    \[p_1 = p_1^0 X_1\]

जहाँ X_1 = 1 - X_2 = 1 - 0.01734 = 0.98266

    \[p_1 = 23.8 \text{ mm Hg} \times 0.98266\]

    \[p_1 \approx 23.38 \text{ mm Hg}\]

अतः, विलयन के लिए जल का वाष्प दाब \approx 23.38 \text{ mm Hg}

(b) वाष्प दाब का आपेक्षिक अवनमन (\Delta p_1 / p_1^0)

वाष्प दाब का आपेक्षिक अवनमन विलेय के मोल-अंश के बराबर होता है:

    \[\frac{\Delta p_1}{p_1^0} = X_2\]

    \[\frac{\Delta p_1}{p_1^0} = 0.01734\]

अतः, वाष्प दाब का आपेक्षिक अवनमन \approx 0.01734

पाठ्यनिहित प्रश्न 1.10

750 mm Hg दाब पर जल का क्वथनांक 99.63°C है। 500 g जल में कितना सुक्रोस मिलाया जाए कि इसका 100°C पर क्वथन हो जाए।

हल

दिया गया है:

  • शुद्ध जल का क्वथनांक (T_b^0) = 99.63°C (या 372.78 K)
  • विलयन का क्वथनांक (T_b) = 100°C (या 373.15 K)
  • जल (विलायक) का द्रव्यमान (w_1) = 500 g
  • जल के लिए K_b = 0.52 K kg mol^{-1} (सारणी 1.3 से, या सामान्यतः स्वीकृत मान)

सुक्रोस (C12H22O11) का मोलर द्रव्यमान (M_2):

    \[M_{\text{सुक्रोस}} = (12 \times 12.0) + (22 \times 1.0) + (11 \times 16.0)\]

    \[M_{\text{सुक्रोस}} = 144.0 + 22.0 + 176.0 = 342.0 \text{ g mol}^{-1}\]

क्वथनांक का उन्नयन (\Delta T_b):

    \[\Delta T_b = T_b - T_b^0 = 100.00^\circ\text{C} - 99.63^\circ\text{C} = 0.37^\circ\text{C}\]

    \[\text{या } \Delta T_b = 373.15 \text{ K} - 372.78 \text{ K} = 0.37 \text{ K}\]

क्वथनांक उन्नयन के सूत्र का उपयोग करेंगे:

    \[\Delta T_b = K_b \times m\]

    \[\Delta T_b = K_b \times \frac{w_2/M_2}{w_1/1000}\]

    \[\Delta T_b = K_b \times \frac{w_2 \times 1000}{M_2 \times w_1}\]

हमें w_2 (सुक्रोस का द्रव्यमान) ज्ञात करना है। सूत्र को w_2 के लिए पुनर्व्यवस्थित करने पर:

    \[w_2 = \frac{\Delta T_b \times M_2 \times w_1}{K_b \times 1000}\]

दिए गए मानों को सूत्र में रखने पर:

    \[w_2 = \frac{0.37 \text{ K} \times 342.0 \text{ g mol}^{-1} \times 500 \text{ g}}{0.52 \text{ K kg mol}^{-1} \times 1000 \text{ g kg}^{-1}}\]

    \[w_2 = \frac{0.37 \times 342.0 \times 500}{0.52 \times 1000} \text{ g}\]

    \[w_2 = \frac{63270}{520} \text{ g}\]

    \[w_2 \approx 121.67 \text{ g}\]

अतः, 500 g जल में लगभग 121.67 g सुक्रोस मिलाया जाना चाहिए।

पाठ्यनिहित प्रश्न 1.11

ऐस्कॉर्बिक अम्ल (विटामिन C, C6H8O6) के उस द्रव्यमान का परिकलन कीजिए, जिसे 75 g ऐसीटिक अम्ल में घोलने पर उसके हिमांक में 1.5°C की कमी हो जाए। K_f = 3.9 \text{ K kg mol}^{-1}

हल

दिया गया है:

  • ऐस्कॉर्बिक अम्ल (विलेय) का द्रव्यमान (w_2) = ?
  • ऐसीटिक अम्ल (विलायक) का द्रव्यमान (w_1) = 75 g
  • हिमांक में कमी (\Delta T_f) = 1.5°C (या 1.5 K)
  • ऐसीटिक अम्ल के लिए हिमांक अवनमन स्थिरांक (K_f) = 3.9 K kg mol^{-1}

ऐस्कॉर्बिक अम्ल (C6H8O6) का मोलर द्रव्यमान (M_2):

    \[M_{\text{C}_6\text{H}_8\text{O}_6} = (6 \times 12.0) + (8 \times 1.0) + (6 \times 16.0)\]

    \[M_{\text{C}_6\text{H}_8\text{O}_6} = 72.0 + 8.0 + 96.0 = 176.0 \text{ g mol}^{-1}\]

हिमांक अवनमन के सूत्र का उपयोग करेंगे:

    \[\Delta T_f = K_f \times m\]

    \[\Delta T_f = K_f \times \frac{w_2/M_2}{w_1/1000}\]

    \[\Delta T_f = K_f \times \frac{w_2 \times 1000}{M_2 \times w_1}\]

हमें w_2 (ऐस्कॉर्बिक अम्ल का द्रव्यमान) ज्ञात करना है। सूत्र को w_2 के लिए पुनर्व्यवस्थित करने पर:

    \[w_2 = \frac{\Delta T_f \times M_2 \times w_1}{K_f \times 1000}\]

दिए गए मानों को सूत्र में रखने पर:

    \[w_2 = \frac{1.5 \text{ K} \times 176.0 \text{ g mol}^{-1} \times 75 \text{ g}}{3.9 \text{ K kg mol}^{-1} \times 1000 \text{ g kg}^{-1}}\]

    \[w_2 = \frac{1.5 \times 176.0 \times 75}{3.9 \times 1000} \text{ g}\]

    \[w_2 = \frac{19800}{3900} \text{ g}\]

    \[w_2 = 5.0769 \text{ g}\]

    \[w_2 \approx 5.08 \text{ g}\]

अतः, ऐस्कॉर्बिक अम्ल का द्रव्यमान लगभग 5.08 g होना चाहिए।

पाठ्यनिहित प्रश्न 1.12

185,000 मोलर द्रव्यमान वाले एक बहुलक के 1.0 g को 37°C पर 450 mL जल में घोलने से उत्पन्न विलयन के परासरण दाब का पास्कल में परिकलन कीजिए।

हल

दिया गया है:

  • बहुलक का मोलर द्रव्यमान (M_2) = 185,000 g mol^{-1}
  • बहुलक का द्रव्यमान (w_2) = 1.0 g
  • तापमान (T) = 37°C = 37 + 273.15 = 310.15 K
  • विलयन का आयतन (V) = 450 mL = 0.450 L

गैस नियतांक (R) का मान, जब दाब पास्कल (Pa) में हो: R = 8.314 \text{ J K}^{-1} \text{ mol}^{-1} (या Pa m^3 K^{-1} mol^{-1})

परासरण दाब (\Pi) की गणना के लिए सूत्र:

    \[\Pi = \frac{w_2 R T}{M_2 V}\]

दिए गए मानों को सूत्र में रखने पर:

    \[\Pi = \frac{1.0 \text{ g} \times 8.314 \text{ J K}^{-1} \text{ mol}^{-1} \times 310.15 \text{ K}}{185000 \text{ g mol}^{-1} \times 0.450 \text{ L}}\]

यहां हमें इकाइयों का ध्यान रखना होगा। लीटर को m3 में बदलना होगा (1 \text{ L} = 10^{-3} \text{ m}^3):

    \[V = 0.450 \text{ L} = 0.450 \times 10^{-3} \text{ m}^3\]

अब गणना करें:

    \[\Pi = \frac{1.0 \times 8.314 \times 310.15}{185000 \times 0.450 \times 10^{-3}} \text{ Pa}\]

    \[\Pi = \frac{2578.471}{83.25} \text{ Pa}\]

    \[\Pi \approx 31.0 \text{ Pa}\]

अतः, विलयन का परासरण दाब लगभग 31.0 Pa है।

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