MP Board Class 10th sST Minerals and Energy Resources Question Answer :
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
- निम्नलिखित में से कौन एक लौह खनिज है? (क) चूना पत्थर (ख) मैंगनीज (ग) जिप्सम (घ) सोना उत्तर: (ख) मैंगनीज
- सीमेंट उद्योग का आधारभूत कच्चा माल कौन-सा खनिज है? (क) बॉक्साइट (ख) ताँबा (ग) चूना पत्थर (घ) एंथ्रेसाइट उत्तर: (ग) चूना पत्थर
- किस लौह अयस्क में सर्वश्रेष्ठ चुंबकीय गुण होते हैं? (क) हेमेटाइट (ख) बॉक्साइट (ग) मैग्नेटाइट (घ) लिग्नाइट उत्तर: (ग) मैग्नेटाइट
- उत्कृष्ट कोटि का कठोर कोयला कौन-सा है? (क) पीट (ख) लिग्नाइट (ग) बिटुमिनस (घ) एंथ्रेसाइट उत्तर: (घ) एंथ्रेसाइट
- एल्यूमिनियम किस अयस्क से प्राप्त किया जाता है? (क) हेमेटाइट (ख) बॉक्साइट (ग) अभ्रक (घ) जिप्सम उत्तर: (ख) बॉक्साइट
- राजस्थान की खेतड़ी खदानें किस खनिज के लिए प्रसिद्ध हैं? (क) सोना (ख) जिप्सम (ग) ताँबा (घ) मैंगनीज उत्तर: (ग) ताँबा
- वाष्पीकरण की प्रक्रिया से निर्मित होने वाला खनिज कौन-सा है? (क) अभ्रक (ख) बॉक्साइट (ग) जिप्सम (घ) मैग्नेटाइट उत्तर: (ग) जिप्सम
- प्लेसर निक्षेपों से प्राप्त होने वाला एक बहुमूल्य खनिज कौन-सा है? (क) ताँबा (ख) मैंगनीज (ग) सोना (घ) हेमेटाइट उत्तर: (ग) सोना
- बैलाडिला में खनन किया जाने वाला लौह-अयस्क कौन-सा है? (क) मैग्नेटाइट (ख) हेमेटाइट (ग) लिग्नाइट (घ) बॉक्साइट उत्तर: (ख) हेमेटाइट
- विद्युत उद्योग में अपरिहार्य माना जाने वाला खनिज कौन-सा है? (क) चूना पत्थर (ख) ताँबा (ग) अभ्रक (घ) जिप्सम उत्तर: (ग) अभ्रक
- उत्तरी-पूर्वी भारत में मिलने वाले कोयले की भूगर्भिक आयु क्या है? (क) गोंडवाना (ख) प्रीकैम्ब्रियन (ग) टरशियरी (घ) धारवाड़ उत्तर: (ग) टरशियरी
- खनिज अयस्क कहाँ निर्मित होते हैं? (क) केवल परतों में (ख) केवल शिराओं में (ग) शिराओं तथा शिरानिक्षेपों में (घ) केवल अवसादी चट्टानों में उत्तर: (ग) शिराओं तथा शिरानिक्षेपों में
- मैंगनीज का उपयोग मुख्य रूप से किस उद्योग में किया जाता है? (क) सीमेंट उद्योग (ख) इस्पात विनिर्माण (ग) एल्यूमिनियम उत्पादन (घ) विद्युत उद्योग उत्तर: (ख) इस्पात विनिर्माण
- बॉक्साइट किस प्रकार की चट्टानों के विघटन से बनता है? (क) केवल आग्नेय (ख) केवल कायांतरित (ग) एल्यूमिनियम सिलिकेटों से समृद्ध व्यापक भिन्नता वाली चट्टानें (घ) केवल अवसादी उत्तर: (ग) एल्यूमिनियम सिलिकेटों से समृद्ध व्यापक भिन्नता वाली चट्टानें
- कौन-सा कोयला निम्न कोटि का भूरा कोयला होता है और मुलायम होता है? (क) एंथ्रेसाइट (ख) बिटुमिनस (ग) लिग्नाइट (घ) पीट उत्तर: (ग) लिग्नाइट
- कौन-सा खनिज प्लेटों अथवा पत्रण क्रम में पाया जाता है और इसका चादरों में आसानी से विपाटन हो सकता है? (क) चूना पत्थर (ख) जिप्सम (ग) अभ्रक (घ) ताँबा उत्तर: (ग) अभ्रक
- कौन-सा लौह-अयस्क सर्वाधिक महत्वपूर्ण औद्योगिक लौह अयस्क है जिसका अधिकतम मात्रा में उपभोग हुआ है? (क) मैग्नेटाइट (ख) हेमेटाइट (ग) लिग्नाइट (घ) बॉक्साइट उत्तर: (ख) हेमेटाइट
- तांबे का उपयोग मुख्यतः किस उद्योग में नहीं किया जाता है? (क) बिजली के तार बनाने में (ख) इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग में (ग) रसायन उद्योग में (घ) सीमेंट उत्पादन में उत्तर: (घ) सीमेंट उत्पादन में
- दक्कन पठार के शुष्कतर भागों में कौन सा खनिज उपयुक्त माना जाता है? (क) जूट (ख) कपास (ग) गन्ना (घ) चाय उत्तर: (ख) कपास (यह प्रश्न दिए गए क्रॉसवर्ड उत्तरों से सीधा संबंधित नहीं है, लेकिन सामान्य ज्ञान पर आधारित है। मैंने इसे शामिल किया क्योंकि यह कृषि और खनिज से संबंधित है जैसा कि पिछली बातचीत में था।)
- कौन-सा खनिज धात्विक खनिजों के कुल उत्पादन मूल्य के तीन-चौथाई भाग का योगदान करता है? (क) अलौह खनिज (ख) लौह खनिज (ग) बहुमूल्य खनिज (घ) अधात्विक खनिज उत्तर: (ख) लौह खनिज
रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)
- मैंगनीज एक _______________ खनिज है।
- _______________ सीमेंट उद्योग का एक आधारभूत कच्चा माल है।
- सर्वश्रेष्ठ चुंबकीय गुणों वाला लौह अयस्क _______________ कहलाता है।
- _______________ सबसे उच्च कोटि का कठोर कोयला है।
- एल्यूमिनियम _______________ अयस्क से प्राप्त किया जाता है।
- राजस्थान की खेतड़ी खदानें _______________ के लिए प्रसिद्ध हैं।
- _______________ वाष्पीकरण के फलस्वरूप निर्मित होता है।
- सोना _______________ निक्षेपों से प्राप्त होता है।
- बेलाडिला में खनन किया जाने वाला लौह-अयस्क _______________ है।
- _______________ विद्युत उद्योग में एक अपरिहार्य खनिज है।
- उत्तरी-पूर्वी भारत में मिलने वाले कोयले की भूगर्भिक आयु _______________ है।
- खनिज _______________ तथा शिरानिक्षेपों में निर्मित होते हैं।
- एक टन इस्पात बनाने में लगभग 10 किग्रा. _______________ की आवश्यकता होती है।
- बॉक्साइट निक्षेपों की रचना एल्यूमिनियम सिलिकेटों से समृद्ध व्यापक भिन्नता वाली चट्टानों के _______________ से होती है।
- _______________ एक निम्न कोटि का भूरा कोयला होता है जो मुलायम और अधिक नमीयुक्त होता है।
उत्तर (रिक्त स्थान भरें):
- लौह
- चूना पत्थर
- मैग्नेटाइट
- एंथ्रेसाइट
- बॉक्साइट
- ताँबा
- जिप्सम
- प्लेसर
- हेमेटाइट
- अभ्रक
- टरशियरी
- शिराओं
- मैंगनीज
- विघटन
- लिग्नाइट
सही/गलत (True/False)
- मैंगनीज एक अलौह खनिज है। (गलत)
- चूना पत्थर सीमेंट उद्योग का एक आधारभूत कच्चा माल है। (सही)
- मैग्नेटाइट में हेमेटाइट की तुलना में कम लोहांश पाया जाता है। (गलत)
- एंथ्रेसाइट सबसे नरम प्रकार का कोयला है। (गलत)
- बॉक्साइट एल्यूमिनियम का अयस्क है। (सही)
- खेतड़ी खदानें सोने के लिए प्रसिद्ध हैं। (गलत)
- जिप्सम का निर्माण वाष्पीकरण से होता है। (सही)
- सोना प्लेसर निक्षेपों में नहीं पाया जाता है। (गलत)
- हेमेटाइट एक उच्च कोटि का लौह अयस्क है। (सही)
- अभ्रक विद्युत उद्योग में उपयोगी नहीं है। (गलत)
- उत्तरी-पूर्वी भारत में मिलने वाले कोयले की भूगर्भिक आयु गोंडवाना है। (गलत)
- अयस्क केवल परतों में निर्मित होते हैं। (गलत)
- एल्यूमिनियम लोहे जैसी शक्ति के साथ अत्यधिक हल्का और सुचालक होता है। (सही)
- कोयले के निर्माण में लाखों वर्ष नहीं लगते हैं। (गलत)
- टरशियरी कोयला क्षेत्र दामोदर घाटी में पाए जाते हैं। (गलत)
एक वाक्य में उत्तर (Single Sentence Question Answer)
- मैंगनीज किस प्रकार का खनिज है? मैंगनीज एक लौह खनिज है।
- सीमेंट उद्योग में किस खनिज का उपयोग किया जाता है? सीमेंट उद्योग में चूना पत्थर का उपयोग किया जाता है।
- किस लौह अयस्क में सर्वश्रेष्ठ चुंबकीय गुण पाए जाते हैं? मैग्नेटाइट नामक लौह अयस्क में सर्वश्रेष्ठ चुंबकीय गुण पाए जाते हैं।
- सबसे कठोर और उत्कृष्ट कोटि का कोयला कौन-सा है? एंथ्रेसाइट सबसे कठोर और उत्कृष्ट कोटि का कोयला है।
- एल्यूमिनियम प्राप्त करने के लिए किस अयस्क का उपयोग होता है? एल्यूमिनियम प्राप्त करने के लिए बॉक्साइट अयस्क का उपयोग होता है।
- राजस्थान में कौन सी खदानें तांबे के लिए प्रसिद्ध हैं? राजस्थान में खेतड़ी खदानें तांबे के लिए प्रसिद्ध हैं।
- वाष्पीकरण से बनने वाले एक खनिज का नाम बताइए। जिप्सम वाष्पीकरण से बनने वाला एक खनिज है।
- प्लेसर निक्षेपों से कौन-सा बहुमूल्य खनिज प्राप्त होता है? प्लेसर निक्षेपों से सोना नामक बहुमूल्य खनिज प्राप्त होता है।
- बैलाडिला में खनन किया जाने वाला लौह-अयस्क कौन-सा है? बैलाडिला में खनन किया जाने वाला लौह-अयस्क हेमेटाइट है।
- विद्युत उद्योग में किस खनिज को अपरिहार्य माना जाता है? विद्युत उद्योग में अभ्रक को अपरिहार्य माना जाता है।
- उत्तरी-पूर्वी भारत में मिलने वाले कोयले की भूगर्भिक आयु क्या है? उत्तरी-पूर्वी भारत में मिलने वाले कोयले की भूगर्भिक आयु टरशियरी है।
- खनिज अयस्क किन भूवैज्ञानिक संरचनाओं में निर्मित होते हैं? खनिज अयस्क शिराओं तथा शिरानिक्षेपों (आग्नेय और कायांतरित चट्टानों में) और परतों (अवसादी चट्टानों में) में निर्मित होते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions) (लगभग 30 शब्द प्रत्येक)
- मैंगनीज का उपयोग कहाँ किया जाता है? उत्तर: मैंगनीज का मुख्य उपयोग इस्पात के विनिर्माण में होता है, जहाँ एक टन इस्पात बनाने में लगभग 10 किग्रा. मैंगनीज की आवश्यकता होती है। इसका उपयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक दवाएँ और पेंट बनाने में भी होता है।
- चूना पत्थर का औद्योगिक महत्व क्या है? उत्तर: चूना पत्थर सीमेंट उद्योग का एक आधारभूत कच्चा माल है। इसके अतिरिक्त, यह लौह-प्रगलन की भट्टियों के लिए भी अनिवार्य है, जहाँ यह अशुद्धियों को दूर करने में सहायक होता है।
- मैग्नेटाइट और हेमेटाइट में क्या अंतर है? उत्तर: मैग्नेटाइट सर्वोत्तम प्रकार का लौह अयस्क है जिसमें 70% लोहांश और सर्वश्रेष्ठ चुंबकीय गुण होते हैं। जबकि हेमेटाइट सर्वाधिक महत्वपूर्ण औद्योगिक लौह अयस्क है जिसमें 50-60% लोहांश होता है, जो मैग्नेटाइट से थोड़ा कम है।
- एंथ्रेसाइट कोयले की विशेषताएँ क्या हैं? उत्तर: एंथ्रेसाइट सर्वोत्तम गुण वाला कठोर कोयला है। इसमें कार्बन की मात्रा बहुत अधिक और नमी की मात्रा बहुत कम होती है, जिसके कारण यह उच्च ताप क्षमता के साथ जलता है और कम धुआँ पैदा करता है।
- बॉक्साइट से एल्यूमिनियम कैसे प्राप्त किया जाता है? उत्तर: बॉक्साइट निक्षेपों की रचना एल्यूमिनियम सिलिकेटों से समृद्ध चट्टानों के विघटन से होती है। एल्यूमिना क्ले जैसे दिखने वाले बॉक्साइट से उपयुक्त शोधन प्रक्रियाओं द्वारा एल्यूमिनियम धातु प्राप्त की जाती है।
- तांबे की उपयोगिता क्या है? उत्तर: तांबा घातवर्ध्य (malleable), तन्य (ductile) और ताप का सुचालक होता है। इन गुणों के कारण इसका उपयोग मुख्यतः बिजली के तार बनाने, इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग और रसायन उद्योगों में किया जाता है।
- जिप्सम का निर्माण कैसे होता है और इसका उपयोग क्या है? उत्तर: जिप्सम का निर्माण विशेषकर शुष्क प्रदेशों में जल के वाष्पीकरण के फलस्वरूप होता है। यह अवसादी चट्टानों में पाया जाता है और इसका उपयोग मुख्य रूप से सीमेंट, उर्वरक और प्लास्टर ऑफ पेरिस बनाने में होता है।
- प्लेसर निक्षेप क्या होते हैं? उत्तर: प्लेसर निक्षेप पहाड़ियों के आधार तथा घाटी तल की रेत में जलोढ़ जमाव के रूप में पाए जाने वाले खनिज हैं। इनमें ऐसे खनिज होते हैं जो जल द्वारा घर्षित नहीं होते, जैसे सोना, चाँदी और टिन।
- अभ्रक विद्युत उद्योग में क्यों महत्वपूर्ण है? उत्तर: अभ्रक की सर्वोच्च परावैद्युत शक्ति, ऊर्जा ह्रास का निम्न गुणांक, विसंवाहन के गुण और उच्च वोल्टेज की प्रतिरोधिता होती है। ये गुण इसे विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों में एक अपरिहार्य खनिज बनाते हैं।
- टरशियरी कोयला निक्षेप कहाँ पाए जाते हैं? उत्तर: टरशियरी कोयला निक्षेप लगभग 55 लाख वर्ष पुराने हैं और ये मुख्य रूप से उत्तर-पूर्वी राज्यों जैसे मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में पाए जाते हैं।
पुस्तक से लिए गए प्रश्न
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
(i) निम्नलिखित में से कौन-सा खनिज अपक्षयित पदार्थ के अवशिष्ट भार को त्यागता हुआ चट्टानों के अपघटन से बनता है? (क) कोयला (ख) बॉक्साइट (ग) सोना (घ) जस्ता उत्तर: (ख) बॉक्साइट
(ii) झारखंड में स्थित कोडरमा निम्नलिखित में से किस खनिज का अग्रणी उत्पादक है? (क) बॉक्साइट (ख) अभ्रक (ग) लौह अयस्क (घ) ताँबा उत्तर: (ख) अभ्रक
(iii) निम्नलिखित चट्टानों में से किस एक के स्तरों में खनिजों का निक्षेपण और संचयन होता है? (क) तलछटी चट्टानें (अवसादी चट्टानें) (ख) आग्नेय चट्टानें (ग) कायांतरित चट्टानें (घ) इनमें से कोई नहीं उत्तर: (क) तलछटी चट्टानें (अवसादी चट्टानें)
(iv) मोनाजाइट रेत में निम्नलिखित में से कौन-सा खनिज पाया जाता है? (क) खनिज तेल (ख) यूरेनियम (ग) थोरियम (घ) कोयला उत्तर: (ग) थोरियम
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए।
(i) निम्नलिखित में अंतर 30 शब्दों से अधिक न दें।
(क) लौह और अलौह खनिज
- लौह खनिज: वे खनिज जिनमें लोहे का अंश होता है, जैसे लौह अयस्क और मैंगनीज। ये धातु शोधन उद्योगों का आधार हैं।
- अलौह खनिज: वे खनिज जिनमें लोहे का अंश नहीं होता, जैसे तांबा, बॉक्साइट और सीसा। ये इंजीनियरिंग और विद्युत उद्योगों में महत्वपूर्ण हैं।
(ख) परंपरागत तथा गैर-परंपरागत ऊर्जा साधन
- परंपरागत ऊर्जा साधन: ये ऊर्जा के ऐसे स्रोत हैं जो लंबे समय से उपयोग हो रहे हैं और सीमित (अनवीकरणीय) हैं, जैसे कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और जलविद्युत।
- गैर-परंपरागत ऊर्जा साधन: ये नवीकरणीय स्रोत हैं और भविष्य की ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए महत्वपूर्ण हैं, जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा और बायोगैस।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए।
(ii) खनिज क्या हैं? उत्तर: भू-वैज्ञानिकों के अनुसार खनिज एक प्राकृतिक रूप से विद्यमान समरूप तत्त्व है जिसकी एक निश्चित आंतरिक संरचना है। ये प्रकृति में कठोर हीरे से लेकर नरम चूना तक अनेक रूपों में पाए जाते हैं, जिनमें विविध रंग, कठोरता और चमक होती है।
(iii) आग्नेय तथा कायांतरित चट्टानों में खनिजों का निर्माण कैसे होता है? उत्तर: आग्नेय और कायांतरित चट्टानों में खनिजों का निर्माण तब होता है जब तरल (मैग्मा) अथवा गैसीय अवस्था में खनिज पदार्थ दरारों, जोड़ों या भ्रंशों के सहारे भू-पृष्ठ की ओर धकेले जाते हैं और ऊपर आते हुए ठंडे होकर जम जाते हैं। ये छोटे जमाव शिराओं के रूप में और बड़े जमाव परत के रूप में मिलते हैं।
(iv) हमें खनिजों के संरक्षण की क्यों आवश्यकता है? उत्तर: खनिजों के निर्माण में लाखों वर्ष लगते हैं और वे सीमित तथा अनवीकरणीय संसाधन हैं। उनके वर्तमान उपभोग की दर उनके पुनर्भरण की दर से बहुत अधिक है। बढ़ती खनन लागत और गुणवत्ता में कमी के कारण, भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए खनिजों का संरक्षण आवश्यक है।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए।
(i) भारत में कोयले के वितरण का वर्णन कीजिए। उत्तर: भारत में कोयला बहुतायत में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है और देश की ऊर्जा आवश्यकताओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पूरा करता है। भारत में कोयले के भंडार मुख्य रूप से दो प्रमुख भूगर्भीय युगों की शैल संरचनाओं में पाए जाते हैं:
- गोंडवाना कोयला: यह 200 लाख वर्ष से भी अधिक पुराना है और धातुशोधन कोयला है। इसके प्रमुख संसाधन दामोदर घाटी में स्थित हैं, जिसमें पश्चिमी बंगाल (रानीगंज) और झारखंड (झरिया, बोकारो) के क्षेत्र शामिल हैं। इसके अलावा, गोदावरी, महानदी, सोन और वर्धा नदी घाटियों में भी कोयले के जमाव पाए जाते हैं। यह भारत के कुल कोयला उत्पादन का लगभग 98% है।
- टरशियरी निक्षेप: ये लगभग 55 लाख वर्ष पुराने हैं और उत्तर-पूर्वी राज्यों में पाए जाते हैं। इनमें मेघालय (बालफकरम), असम (माकुम), अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड शामिल हैं।
कोयला एक स्थूल पदार्थ है जिसका उपयोग करने पर उसका भार घटता है (राख में परिवर्तित होने के कारण)। इसी कारण भारी उद्योग और ताप विद्युत गृह अक्सर कोयला क्षेत्रों के निकट ही स्थापित किए जाते हैं ताकि परिवहन लागत कम हो।
(ii) भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य उज्जवल है। क्यों? उत्तर: भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य अत्यंत उज्जवल है, जिसके कई कारण हैं:
- उष्णकटिबंधीय स्थिति: भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है, जहाँ वर्ष के अधिकांश दिनों में प्रचुर मात्रा में सूर्य का प्रकाश उपलब्ध रहता है। यह सौर ऊर्जा के दोहन के लिए एक आदर्श भौगोलिक स्थिति प्रदान करता है।
- असीम संभावनाएँ: देश के विशाल भू-भाग पर सौर विकिरण की उच्च तीव्रता सौर ऊर्जा उत्पादन की असीम संभावनाएँ पैदा करती है।
- प्रौद्योगिकी का विकास: फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी द्वारा धूप को सीधे विद्युत में परिवर्तित करने की क्षमता ने सौर ऊर्जा को और अधिक सुलभ बना दिया है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में लोकप्रियता: भारत के ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में, जहाँ पारंपरिक बिजली ग्रिड की पहुँच सीमित है, सौर ऊर्जा तेजी से लोकप्रिय हो रही है। यह ग्रामीण घरों में उपलों और लकड़ी पर निर्भरता को कम करने में मदद कर रही है, जिससे पर्यावरण संरक्षण में भी सहायता मिल रही है।
- पर्यावरणीय लाभ और ऊर्जा सुरक्षा: जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करने, पर्यावरणीय प्रदूषण को नियंत्रित करने और ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त करने के लिए सौर ऊर्जा एक स्वच्छ और नवीकरणीय विकल्प है। सरकार की नीतियाँ और बड़े सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना भी इस क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है।
क्रॉसवर्ड पहेली के उत्तर
यहाँ आपकी पहेली के उत्तर दिए गए हैं, दिए गए अक्षरों की संख्या के साथ:
क्षेतिज (Across)
- एक लौह खनिज (9) – मैंगनीज
- सीमेंट उद्योग में प्रयुक्त कच्चा माल (9) – चूना पत्थर
- चुंबकीय गुणों वाला सर्वश्रेष्ठ लोहा (10) – मैग्नेटाइट
- उत्कृष्ट कोटि का कठोर कोयला (10) – एंथ्रेसाइट
- इस अयस्क से एल्यूमिनियम प्राप्त किया जाता है। (7) – बॉक्साइट
- इस खनिज के लिए खेतरी खदानें प्रसिद्ध हैं। (6) – ताँबा
- वाष्पीकरण से निर्मित (6) – जिप्सम
ऊर्ध्वाधर (Down)
- प्लेसर निक्षेपों से प्राप्त होता है। (4) – सोना
- बेलाडिला में खनन किया जाने वाला लौह-अयस्क (8) – हेमेटाइट
- विद्युत उद्योग में अपरिहार्य (4) – अभ्रक
- उत्तरी-पूर्वी भारत में मिलने वाले कोयले की भूगर्भिक आयु (8) – टरशियरी
- शिराओं तथा शिरानिक्षेपों में निर्मित (3) – अयस्क
आपके दांत साफ करने वाले दंतमंजन में कई तरह के खनिज मौजूद होते हैं:
- अपघर्षक खनिज (Abrasive Minerals): सिलिका, चूना पत्थर, एल्यूमिनियम ऑक्साइड, और विभिन्न फॉस्फेट खनिज आपके दांतों की सतह को साफ करने में मदद करते हैं।
- फ्लोराइड (Fluoride): यह दांतों को गलने से रोकने में सहायक होता है और फ्लूओराइट नामक खनिज से प्राप्त होता है।
- सफेदी (Whiteness): अधिकतर दंतमंजन टिटेनियम ऑक्साइड से सफेद बनाए जाते हैं, जो कि रूटाइल (Rutile), इल्मेनाइट (Ilmenite), और एनाटेज (Anatase) जैसे खनिजों से प्राप्त होते हैं।
- चमक (Sparkle): कुछ दंतमंजन में जो चमक दिखाई देती है, वह अभ्रक (Mica) नामक खनिज के कारण होती है।
रोशनी देने वाले बल्ब में प्रयुक्त खनिज
एक रोशनी देने वाले बल्ब, खासकर एक पुराने तापदीप्त (incandescent) बल्ब में कई खनिज प्रयुक्त होते हैं:
- फिलामेंट (तंतु): यह आमतौर पर टंगस्टन धातु से बना होता है, जो एक खनिज से प्राप्त होती है।
- कांच का आवरण: बल्ब का बाहरी खोल सिलिका (क्वार्ट्ज रेत) से प्राप्त कांच से बना होता है। सिलिका एक खनिज है।
- आधार (बेस): बल्ब का निचला हिस्सा जो होल्डर में लगता है, प्रायः पीतल (तांबा और जस्ता का मिश्रण) या एल्यूमिनियम जैसी धातुओं से बना होता है, जो संबंधित खनिजों से प्राप्त होती हैं।
- संपर्क बिंदु (Contact points): ये भी आमतौर पर तांबे जैसी प्रवाहकीय धातुओं से बने होते हैं।
- भरण गैस (Filling Gas): हालाँकि गैस खनिज नहीं है, आर्गन या नाइट्रोजन जैसी निष्क्रिय गैसें बल्ब के जीवनकाल को बढ़ाने के लिए भरी जाती हैं, और इन गैसों को औद्योगिक रूप से खनिजों से प्राप्त हवा को अलग करके बनाया जाता है।
तो, एक साधारण बल्ब में टंगस्टन, सिलिका, तांबा, जस्ता (पीतल में), और एल्यूमिनियम जैसे खनिज शामिल होते हैं।
खनिजों का वर्गीकरण
खनिजों को उनके रासायनिक और भौतिक गुणों के आधार पर मुख्य रूप से दो बड़े वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है: धात्विक खनिज और अधात्विक खनिज।
धात्विक खनिज (Metallic Minerals)
धात्विक खनिज वे होते हैं जिनसे धातुएँ प्राप्त होती हैं। इन्हें आगे तीन उप-वर्गों में बांटा जा सकता है:
- लौह धातु खनिज:
- इन खनिजों में लोहे का अंश होता है।
- उदाहरण: लौह अयस्क (Iron ore), मैंगनीज (Manganese), निकल (Nickel) और कोबाल्ट (Cobalt)।
- अलौह धातु खनिज:
- इन खनिजों में लोहे का अंश नहीं होता है।
- उदाहरण: तांबा (Copper), सीसा (Lead), जस्ता (Zinc) और बॉक्साइट (Bauxite) आदि।
- बहुमूल्य खनिज:
- ये खनिज अपने मूल्य और दुर्लभता के लिए जाने जाते हैं।
- उदाहरण: सोना (Gold), चाँदी (Silver) और प्लेटिनम (Platinum) आदि।
अधात्विक खनिज (Non-Metallic Minerals)
अधात्विक खनिज वे होते हैं जिनसे धातुएँ प्राप्त नहीं होती हैं। ये विभिन्न उद्योगों और ऊर्जा उत्पादन में काम आते हैं।
- उदाहरण: अभ्रक (Mica), नमक (Salt), पोटाश (Potash), सल्फर (Sulfur), ग्रेनाइट (Granite), संगमरमर (Marble), चूना पत्थर (Limestone), बलुआ पत्थर (Sandstone), प्राकृतिक गैस (Natural Gas) और पेट्रोलियम (Petroleum) आदि।
खनिजों की उपलब्धता
खनिज पृथ्वी की भू-पर्पटी में विभिन्न प्रकार की भूवैज्ञानिक संरचनाओं में पाए जाते हैं। खनिजों की उपलब्धता अक्सर ऊष्मा और दबाव जैसी भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं का परिणाम होती है।
खनिज कहाँ पाए जाते हैं?
सामान्यतः खनिज ‘अयस्कों‘ में पाए जाते हैं। कोई भी खनिज जिसमें अन्य अवयवों या तत्वों का मिश्रण या संचयन होता है, उसे अयस्क कहा जाता है, यदि उससे खनिज का आर्थिक निष्कर्षण किया जा सके।
खनिजों की उपलब्धता विभिन्न प्रकार की चट्टानों और भूवैज्ञानिक सेटिंग्स में होती है:
- आग्नेय और कायांतरित चट्टानें:
- इन चट्टानों में, खनिज अक्सर दरारों, जोड़ों, भ्रंशों या विदरों (faults or fissures) में पाए जाते हैं।
- ये छोटे जमाव शिराओं (veins) के रूप में होते हैं, जबकि बड़े जमाव परतों (lodes) के रूप में होते हैं।
- इनका निर्माण तब होता है जब पिघला हुआ (मैग्मा) या गैसीय अवस्था में खनिज पदार्थ दरारों के माध्यम से पृथ्वी की सतह की ओर बढ़ते हैं और ठंडा होकर जम जाते हैं।
- उदाहरण: जस्ता, तांबा, सीसा और टिन जैसे धात्विक खनिज अक्सर इसी तरह की शिराओं और परतों में प्राप्त होते हैं।
- अवसादी चट्टानें:
- इन चट्टानों में खनिज परतों या स्तरों (beds or layers) में पाए जाते हैं।
- इनका निर्माण क्षैतिज परतों में खनिजों के जमाव, संचयन और संघनन के परिणामस्वरूप होता है।
- उदाहरण:
- कोयला और लौह अयस्क जैसी खनिज परतें लंबे समय तक अत्यधिक ऊष्मा और दबाव के कारण बनती हैं।
- अवसादी चट्टानों में दूसरी श्रेणी के खनिजों में जिप्सम, पोटाश, नमक और सोडियम सम्मिलित हैं।
- इनका निर्माण विशेषकर शुष्क प्रदेशों में वाष्पीकरण के फलस्वरूप होता है, जहाँ खनिजों से युक्त पानी के सूखने से वे क्रिस्टलीकृत हो जाते हैं।
खनिज प्रायः निम्न शैल समूहों से प्राप्त होते हैं:
खनिज विभिन्न भूवैज्ञानिक संरचनाओं में पाए जाते हैं, मुख्य रूप से दो प्रमुख प्रकार की चट्टानों में:
(क) आग्नेय तथा कायांतरित चट्टानों में आग्नेय और कायांतरित चट्टानों में खनिज अक्सर दरारों, जोड़ों, भ्रंशों (faults) और विदरों (fissures) में मिलते हैं।
- छोटे जमाव शिराओं (veins) के रूप में होते हैं।
- बड़े जमाव परतों (lodes) के रूप में पाए जाते हैं।
- इनका निर्माण आमतौर पर तब होता है जब खनिज पदार्थ तरल (मैग्मा) अथवा गैसीय अवस्था में इन दरारों के सहारे भू-पृष्ठ की ओर धकेले जाते हैं। ऊपर आते समय ये ठंडे होकर जम जाते हैं।
- उदाहरण: जस्ता, तांबा, जिंक (जस्ता), और सीसा (lead) जैसे मुख्य धात्विक खनिज इसी तरह शिराओं व जमावों के रूप में प्राप्त होते हैं।
(ख) अवसादी चट्टानों में अनेक खनिज अवसादी चट्टानों के संस्तरों (beds) या परतों (layers) में पाए जाते हैं।
- इनका निर्माण क्षैतिज परतों में खनिजों के निक्षेपण (deposition), संचयन (accumulation) और जमाव (concentration) का परिणाम है।
- उदाहरण: कोयला तथा कुछ अन्य प्रकार के लौह अयस्कों का निर्माण लंबी अवधि तक अत्यधिक ऊष्मा और दबाव के कारण होता है।
- अवसादी चट्टानों में पाए जाने वाले कुछ अन्य खनिज जैसे जिप्सम, पोटाश नमक और सोडियम का निर्माण शुष्क प्रदेशों में वाष्पीकरण के फलस्वरूप होता है।
- (ग) धरातलीय चट्टानों का अपघटन (Residual Mass of Weathered Material)
- खनिजों के निर्माण की एक अन्य विधि धरातलीय चट्टानों का अपघटन है। इस प्रक्रिया में, चट्टानों के घुलनशील तत्त्वों का अपरदन (erosion) हो जाता है, जिसके पश्चात् अयस्क वाली अवशिष्ट चट्टानें (residual rocks) पीछे रह जाती हैं। बॉक्साइट का निर्माण इसी प्रकार होता है, जहाँ मूल चट्टानों से सिलिका जैसे घुलनशील पदार्थ धुल जाते हैं और एल्यूमीनियम युक्त अवशिष्ट पदार्थ शेष रह जाते हैं।
- (घ) जलोढ़ जमाव (Alluvial Deposits)
- पहाड़ियों के आधार (base of hills) तथा घाटी तल (valley floors) की रेत में जलोढ़ जमाव (alluvial deposits) के रूप में भी कुछ खनिज पाए जाते हैं। ये निक्षेप ‘प्लेसर निक्षेप‘ (Placer Deposits) के नाम से जाने जाते हैं। इनमें प्रायः ऐसे खनिज होते हैं जो जल द्वारा घर्षित (corroded) नहीं होते और काफी टिकाऊ होते हैं। इन खनिजों में सोना, चाँदी, टिन और प्लेटिनम प्रमुख हैं। ये खनिज अपनी उच्च घनत्व के कारण जलधाराओं द्वारा आसानी से अलग हो जाते हैं और जमा हो जाते हैं।
- (ङ) महासागरीय जल और तली (Oceanic Waters and Beds)
- महासागरीय जल में भी विशाल मात्रा में खनिज पाए जाते हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश के व्यापक रूप से विसरित (widely diffused) होने के कारण इनकी आर्थिक सार्थकता कम है। यानी, उन्हें निकालना आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं होता क्योंकि उनकी सांद्रता बहुत कम होती है। फिर भी, सामान्य नमक, मैगनीशियम और ब्रोमाइन ज्यादातर समुद्री जल से ही प्राप्त (derived) होते हैं। इसके अतिरिक्त, महासागरीय तली भी मैंगनीज़ ग्रंथिकाओं (manganese nodules) से धनी है, जो भविष्य में एक महत्वपूर्ण खनिज स्रोत हो सकती हैं।
· एक रोचक तथ्य
- ‘रैट होल (Rat Hole) खनन‘
- क्या आप जानते हैं कि भारत में अधिकांश खनिज राष्ट्रीयकृत हैं और इनका निष्कर्षण (extraction) सरकारी अनुमति के पश्चात् ही संभव है? किन्तु उत्तर-पूर्वी भारत के अधिकांश जनजातीय क्षेत्रों में, खनिजों का स्वामित्व व्यक्तिगत व समुदायों को प्राप्त है।
- मेघालय में कोयला, लौह अयस्क, चूना पत्थर व डोलोमाइट के विशाल निक्षेप (deposits) पाए जाते हैं। जोवाई व चेरापूँजी में कोयले का खनन परिवार के सदस्यों द्वारा एक लंबी, संकीर्ण सुरंग के रूप में किया जाता है, जिसे ‘रैट होल खनन‘ कहते हैं।
- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal – NGT) ने इन क्रियाकलापों को अवैध घोषित किया है और सलाह दी है कि इसे तुरंत रोक दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह पर्यावरण और श्रमिकों दोनों के लिए खतरनाक है।
लौह खनिज
लौह खनिज धात्विक खनिजों के कुल उत्पादन मूल्य के तीन-चौथाई भाग का योगदान करते हैं। ये धातु शोधन उद्योगों के विकास को मजबूत आधार प्रदान करते हैं। भारत अपनी घरेलू माँग को पूरा करने के पश्चात् बड़ी मात्रा में धात्विक खनिजों का निर्यात भी करता है।
लौह अयस्क (Iron Ore)
लौह अयस्क एक आधारभूत खनिज है तथा औद्योगिक विकास की रीढ़ है। भारत में लौह अयस्क के विपुल संसाधन विद्यमान हैं। भारत उच्च कोटि के लोहांशयुक्त लौह अयस्क में धनी है।
- मैग्नेटाइट सर्वोत्तम प्रकार का लौह अयस्क है जिसमें 70 प्रतिशत लोहांश पाया जाता है। इसमें सर्वश्रेष्ठ चुंबकीय गुण होते हैं, जो विद्युत उद्योगों में विशेष रूप से उपयोगी हैं।
- हेमेटाइट सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक लौह अयस्क है जिसका अधिकतम मात्रा में उपभोग हुआ है। किंतु इसमें लोहांश की मात्रा मैग्नेटाइट की अपेक्षा थोड़ी-सी कम होती है (इसमें लोहांश 50 से 60 प्रतिशत तक पाया जाता है)।
वर्ष 2018-19 में लौह अयस्क का लगभग समस्त उत्पादन (97 प्रतिशत) ओडिशा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और झारखंड से प्राप्त हुआ, शेष उत्पादन (3 प्रतिशत) अन्य राज्यों में हुआ।
क्या आप जानते हैं?
- कुद्रेमुख शब्द का अर्थ घोड़ा है। कर्नाटक के पश्चिमी घाट की सबसे ऊँची चोटी घोड़े के मुख से मिलती-जुलती है।
- बैलाडिला की पहाड़ियाँ, बैल के डील (कूबड़) से मिलती-जुलती हैं, जिसके कारण इसका यह नाम पड़ा।
भारत में लौह अयस्क की प्रमुख पेटियाँ निम्नलिखित हैं:
ओडिशा-झारखंड पेटी
यह भारत की एक महत्वपूर्ण लौह अयस्क पेटी है। ओडिशा में उच्च कोटि का हेमेटाइट किस्म का लौह अयस्क मयूरभंज और केंदूझर जिलों में स्थित बादाम पहाड़ खदानों से निकाला जाता है। इसी से सटा हुआ झारखंड का सिंहभूम जिला है, जहाँ गुआ और नोआमुंडी से भी हेमेटाइट अयस्क का खनन किया जाता है।
दुर्ग-बस्तर-चंद्रपुर पेटी
यह पेटी महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ राज्यों के अंतर्गत पाई जाती है। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में स्थित बैलाडिला पहाड़ी श्रृंखलाओं में अत्यंत उत्तम कोटि का हेमेटाइट लौह अयस्क पाया जाता है। इस क्षेत्र में इस गुणवत्ता के लौह अयस्क के 14 जमाव मिलते हैं। इसमें इस्पात बनाने के लिए आवश्यक सर्वश्रेष्ठ भौतिक गुण विद्यमान हैं। इन खदानों से प्राप्त लौह अयस्क विशाखापट्टनम पत्तन (बंदरगाह) से जापान तथा दक्षिण कोरिया को निर्यात किया जाता है।
बल्लारि-चित्रदुर्ग, चिक्कमंगलूरु-तुमकूरु पेटी
यह पेटी कर्नाटक राज्य में स्थित है और यहाँ लौह अयस्क के बड़े भंडार हैं। कर्नाटक की इस पेटी में लौह अयस्क की भारी मात्रा संचित है। कर्नाटक में पश्चिमी घाट में स्थित कुद्रेमुख की खानें शत-प्रतिशत निर्यात इकाइयाँ हैं। कुद्रेमुख के निक्षेप संसार के सबसे बड़े निक्षेपों में से एक माने जाते हैं। लौह अयस्क को कर्दम (Slurry) के रूप में पाइपलाइन द्वारा मंगलूरु (Mangaluru) के निकट एक पत्तन (बंदरगाह) पर भेजा जाता है।
महाराष्ट्र-गोवा पेटी
यह पेटी गोवा तथा महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरी जिले में स्थित है। यद्यपि यहाँ का लोहा उत्तम प्रकार का नहीं है, फिर भी इसका कुशलता से दोहन किया जाता है। मरमागाओ (Marmagao) पत्तन से इसका निर्यात किया जाता है।
मैंगनीज़
मैंगनीज़ का मुख्य रूप से इस्पात के विनिर्माण में प्रयोग किया जाता है। एक टन इस्पात बनाने में लगभग 10 किलोग्राम मैंगनीज़ की आवश्यकता होती है। इसका उपयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक दवाएँ और पेंट बनाने में भी किया जाता है।

अलौह खनिज
भारत में अलौह खनिजों की संचित राशि और उत्पादन बहुत संतोषजनक नहीं है। हालाँकि, तांबा, बॉक्साइट, सीसा (लेड), और सोना जैसे ये खनिज धातु शोधन, इंजीनियरिंग और विद्युत उद्योगों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आइए, अब हम तांबा और बॉक्साइट के वितरण को समझें।
तांबा
भारत में तांबे के भंडार और उत्पादन क्रांतिक रूप से कम हैं। तांबा अपनी घातवर्ध्यता (malleable), तन्यता (ductile) और ताप सुचालकता के कारण मुख्य रूप से बिजली के तार बनाने, इलेक्ट्रॉनिक्स और रसायन उद्योगों में उपयोग किया जाता है।
- मध्य प्रदेश की बालाघाट खदानें देश का लगभग 52 प्रतिशत तांबा उत्पन्न करती हैं।
- झारखंड का सिंहभूम जिला भी तांबे का मुख्य उत्पादक है।
- राजस्थान की खेतड़ी खदानें भी तांबे के लिए प्रसिद्ध थीं।
बॉक्साइट
यद्यपि एल्यूमिनियम अनेक अयस्कों में पाया जाता है, परंतु सबसे अधिक एल्यूमिना (एल्यूमिनियम ऑक्साइड) क्ले (मिट्टी) जैसे दिखने वाले पदार्थ बॉक्साइट से ही प्राप्त किया जाता है। बॉक्साइट निक्षेपों (deposits) की रचना एल्यूमिनियम सिलिकेटों से समृद्ध व्यापक भिन्नता वाली चट्टानों के विघटन (decomposition) से होती है।
एल्यूमिनियम एक महत्वपूर्ण धातु है क्योंकि यह लोहे जैसी शक्ति के साथ-साथ अत्यधिक हल्का और सुचालक भी होता है। इसमें अत्यधिक घातवर्ध्यता (malleability) भी पाई जाती है, जिसका अर्थ है कि इसे आसानी से पीटकर पतली चादरों में बदला जा सकता है।

बॉक्साइट के निक्षेप और उत्पादन
भारत में बॉक्साइट के मुख्य निक्षेप अमरकंटक पठार, मैकाल पहाड़ियों, और बिलासपुर-कटनी के पठारी प्रदेश में पाए जाते हैं।
ओडिशा भारत का सबसे बड़ा बॉक्साइट उत्पादक राज्य है (2018-19 के आंकड़ों के अनुसार)। ओडिशा के कोरापुट जिले में स्थित पंचपतमाली निक्षेप राज्य के सबसे महत्त्वपूर्ण बॉक्साइट निक्षेप हैं।
एक रोचक तथ्य
एल्यूमिनियम की कहानी
एल्यूमिनियम की खोज के बाद सम्राट नेपोलियन तृतीय इसे इतनी मूल्यवान धातु मानते थे कि वे अपने कपड़ों पर एल्यूमिनियम से बने हुक और बटन पहनते थे। यही नहीं, वे अपने खास मेहमानों को एल्यूमिनियम से बने बर्तनों में भोजन कराते थे, जबकि आम मेहमानों को सोने व चाँदी के बर्तनों में भोजन परोसा जाता था। यह दर्शाता है कि उस समय एल्यूमिनियम कितनी दुर्लभ और प्रतिष्ठित धातु थी।
हालांकि, इस घटना के तीस वर्ष बाद ही एल्यूमिनियम का उत्पादन इतना बढ़ गया कि पेरिस में भिखारियों के पास एल्यूमिनियम के बर्तन एक आम बात थी। यह दर्शाता है कि कैसे तकनीकी प्रगति एक वस्तु की उपलब्धता और मूल्य को नाटकीय रूप से बदल सकती है।
अधात्विक खनिज
अभ्रक (Mica)
अभ्रक एक ऐसा खनिज है जो प्लेटों अथवा पत्रण (layers) क्रम में पाया जाता है। इसकी एक अनोखी विशेषता यह है कि इसका चादरों में आसानी से विपाटन (split) हो सकता है। ये परतें इतनी महीन हो सकती हैं कि इसकी एक हज़ार परतें कुछ सेंटीमीटर ऊँचाई में समाहित हो सकती हैं। अभ्रक पारदर्शी, काले, हरे, लाल, पीले अथवा भूरे रंग का हो सकता है।
अभ्रक अपने उत्कृष्ट परावैद्युत शक्ति (dielectric strength), निम्न शक्ति ह्रास गुणांक (low power loss factor), विसंवाहक गुण (insulating properties) और उच्च वोल्टेज के प्रतिरोध के कारण विद्युत तथा इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों में सबसे अधिक उपयोग होने वाले खनिजों में से एक है।
अभ्रक (Mica) अपनी सर्वोच्च परावैद्युत शक्ति (dielectric strength), ऊर्जा ह्रास का निम्न गुणांक (low power loss factor), विसंवाहन के गुण (insulating properties) और उच्च वोल्टेज की प्रतिरोधिता (resistance to high voltage) के कारण विद्युत व इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों में प्रयुक्त होने वाले अपरिहार्य खनिजों में से एक है।
अभ्रक के निक्षेप
अभ्रक के निक्षेप छोटानागपुर पठार के उत्तरी पठारी किनारों पर पाए जाते हैं। बिहार-झारखंड की कोडरमा-गया-हजारीबाग पेटी अग्रणी उत्पादक हैं। राजस्थान के मुख्य अभ्रक उत्पादक क्षेत्र अजमेर के आस-पास हैं। आंध्र प्रदेश की नेल्लोर अभ्रक पेटी भी देश की महत्त्वपूर्ण उत्पादक पेटी है।
चट्टानी खनिज
चूना पत्थर (Limestone)
चूना पत्थर कैल्शियम या कैल्शियम कार्बोनेट तथा मैगनीशियम कार्बोनेट से बनी चट्टानों में पाया जाता है। यह अधिकांशतः अवसादी चट्टानों में पाया जाता है। चूना पत्थर सीमेंट उद्योग का एक आधारभूत कच्चा माल होता है और लौह-प्रगलन की भट्टियों के लिए अनिवार्य है।
खनिजों का संरक्षण
हम सभी यह जानते हैं कि उद्योग और कृषि, दोनों ही खनिज निक्षेपों और उनसे बनने वाले पदार्थों पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं। हालांकि, खनन योग्य निक्षेपों की कुल मात्रा पृथ्वी की भू-पर्पटी का केवल एक प्रतिशत है, जो कि बहुत कम है। जिन खनिज संसाधनों को बनने और केंद्रित होने में लाखों वर्ष लगे हैं, हम उनका बहुत तेजी से उपभोग कर रहे हैं।
खनिजों के निर्माण की भूगर्भीय प्रक्रियाएँ इतनी धीमी होती हैं कि उनके बनने की दर हमारे वर्तमान उपभोग की दर की तुलना में नगण्य है। इसी कारण, खनिज संसाधन सीमित और अनवीकरणीय हैं। हमारे देश के समृद्ध खनिज निक्षेप एक अत्यंत मूल्यवान संपत्ति हैं, लेकिन वे अल्पजीवी हैं। अयस्कों के लगातार खनन से लागत बढ़ती है क्योंकि जैसे-जैसे खनन की गहराई बढ़ती है, खनिजों की गुणवत्ता घटती जाती है।
इसलिए, खनिज संसाधनों को सुनियोजित और सतत पोषणीय ढंग से उपयोग करने के लिए हमें एक समन्वित प्रयास करने की आवश्यकता है। निम्न कोटि के अयस्कों को कम लागत पर उपयोग करने के लिए हमें लगातार उन्नत प्रौद्योगिकियों का विकास करते रहना होगा। धातुओं का पुनः चक्रण (recycling), रद्दी धातुओं (scrap metals) का प्रयोग, और अन्य प्रतिस्थापनों (substitutes) का उपयोग भविष्य में हमारे खनिज संसाधनों के संरक्षण के महत्वपूर्ण उपाय हैं।
ऊर्जा संसाधन
ऊर्जा हमारे सभी क्रियाकलापों के लिए आवश्यक है। चाहे वह खाना पकाने के लिए हो, रोशनी और ताप के लिए हो, गाड़ियों को चलाने के लिए हो, या उद्योगों में मशीनों को संचालित करने के लिए – हर जगह ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
ऊर्जा का उत्पादन विभिन्न ईंधन खनिजों जैसे कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम और विद्युत से किया जाता है। ऊर्जा संसाधनों को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है: परंपरागत साधन और गैर-परंपरागत साधन।
परंपरागत साधनों में लकड़ी, उपले (गोबर के कंडे), कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत (जल विद्युत और ताप विद्युत दोनों) शामिल हैं।
परंपरागत ऊर्जा के स्रोत
कोयला
भारत में कोयला बहुतायत में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। यह देश की ऊर्जा आवश्यकताओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पूरा करता है। इसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन के साथ-साथ उद्योगों और घरेलू ज़रूरतों के लिए ऊर्जा की आपूर्ति हेतु किया जाता है। भारत अपनी वाणिज्यिक ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मुख्य रूप से कोयले पर निर्भर है।
जैसा कि आप जानते हैं, कोयले का निर्माण पादप पदार्थों के लाखों वर्षों तक संपीडन (compression) से हुआ है। इसीलिए, संपीडन की मात्रा, गहराई और दबने के समय के आधार पर कोयला अनेक रूपों में पाया जाता है:
- पीट (Peat): यह दलदलों में क्षय होते पादपों से उत्पन्न होता है। इसमें कार्बन की मात्रा कम, नमी की मात्रा उच्च और ताप क्षमता निम्न होती है।
- लिग्नाइट (Lignite): यह एक निम्न कोटि का भूरा कोयला होता है। यह मुलायम होने के साथ-साथ अधिक नमी युक्त होता है।
- लिग्नाइट के प्रमुख भंडार तमिलनाडु के नैवेली में मिलते हैं और विद्युत उत्पादन में प्रयोग किए जाते हैं।
- गहराई में दबे तथा अधिक तापमान से प्रभावित कोयले को बिटुमिनस कोयला कहा जाता है। वाणिज्यिक प्रयोग में यह सर्वाधिक लोकप्रिय है। धातुशोधन में उच्च श्रेणी के बिटुमिनस कोयले का प्रयोग किया जाता है जिसका लोहे के प्रगलन (smelting) में विशेष महत्व है।
- एंथ्रेसाइट सर्वोत्तम गुण वाला कठोर कोयला है।
भारत में कोयला दो प्रमुख भूगर्भिक युगों के शैल क्रम में पाया जाता है:
- गोंडवाना: जिसकी आयु 200 लाख वर्ष से कुछ अधिक है। गोंडवाना कोयला, जो धातुशोधन कोयला है, के प्रमुख संसाधन दामोदर घाटी (पश्चिमी बंगाल तथा झारखंड), झरिया, रानीगंज, बोकारो में स्थित हैं जो महत्वपूर्ण कोयला क्षेत्र हैं। गोदावरी, महानदी, सोन व वर्धा नदी घाटियों में भी कोयले के जमाव पाए जाते हैं।
- टरशियरी निक्षेप: जो लगभग 55 लाख वर्ष पुराने हैं। टरशियरी कोयला क्षेत्र उत्तर-पूर्वी राज्यों – मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश व नागालैंड में पाया जाता है।
यह स्मरण रहे कि कोयला एक स्थूल पदार्थ है। जिसका प्रयोग करने पर भार घटता है क्योंकि यह राख में परिवर्तित हो जाता है। इसी कारण भारी उद्योग तथा ताप विद्युत गृह कोयला क्षेत्रों के निकट ही स्थापित किए जाते हैं ताकि परिवहन लागत कम हो सके।
पेट्रोलियम
भारत में कोयले के पश्चात् ऊर्जा का दूसरा प्रमुख साधन पेट्रोलियम या खनिज तेल है। यह ताप व प्रकाश के लिए ईंधन, मशीनों को स्नेहक (lubricant), और अनेक विनिर्माण उद्योगों के लिए कच्चा माल प्रदान करता है। तेल शोधनशालाएँ (Oil Refineries) संश्लेषित वस्त्र, उर्वरक (fertilizers) तथा असंख्य रसायन उद्योगों में एक नोडीय बिंदु (nodal point) का काम करती हैं।
भारत में अधिकांश पेट्रोलियम की उपस्थिति टरशियरी युग की शैल संरचनाओं के अपनति (anticlines) व भ्रंश ट्रैप (fault traps) में पाई जाती है। वलन (folds), अपनति और गुंबदों वाले प्रदेशों में यह वहाँ पाया जाता है जहाँ उद्गवलन (upfolds) के शीर्ष में तेल ट्रैप (trap) हुआ होता है। तेल धारक परत संरंध्र चूना पत्थर या बालूपत्थर होता है जिसमें से तेल प्रवाहित हो सकता है। मध्यवर्ती असरंध्र (non-porous) परतें तेल को ऊपर उठने व नीचे रिसने से रोकती हैं।
पेट्रोलियम संरंध्र और असरंध्र चट्टानों के बीच भ्रंश ट्रैप में भी पाया जाता है। प्राकृतिक गैस हल्की होने के कारण खनिज तेल के ऊपर पाई जाती है।
भारत में मुम्बई हाई, गुजरात और असम प्रमुख पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र हैं।
- अंकलेश्वर गुजरात का सबसे महत्त्वपूर्ण तेल क्षेत्र है।
- असम भारत का सबसे पुराना तेल उत्पादक राज्य है।
- डिगबोई, नहरकटिया और मोरन-हुगरीजन इस राज्य के महत्त्वपूर्ण तेल उत्पादक क्षेत्र हैं।
(नोट: भारत के मानचित्र में तीन प्रमुख अपतटीय (offshore) तेल क्षेत्रों को चिह्नित करने के लिए एक भौतिक मानचित्र की आवश्यकता होगी, जिसमें मुंबई हाई, कृष्णा-गोदावरी बेसिन और कावेरी बेसिन के अपतटीय क्षेत्र शामिल हो सकते हैं।)
प्राकृतिक गैस
प्राकृतिक गैस अक्सर पेट्रोलियम के भंडार के साथ पाई जाती है और जब कच्चे तेल को सतह पर लाया जाता है तो यह मुक्त हो जाती है। यह एक बहुपयोगी ईंधन है जिसका उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है।
उपयोग:
- घरेलू और औद्योगिक ईंधन: खाना पकाने और उद्योगों में हीटिंग के लिए।
- बिजली उत्पादन: बिजली क्षेत्र में ईंधन के रूप में।
- कच्चा माल: रासायनिक, पेट्रोकेमिकल और उर्वरक उद्योगों में।
- परिवहन ईंधन: संपीडित प्राकृतिक गैस (CNG) के रूप में वाहनों में।
- खाना पकाने का ईंधन: घरों में पाइप्ड प्राकृतिक गैस (PNG) के रूप में।
गैस के बुनियादी ढाँचे और स्थानीय शहर गैस वितरण (CGD) नेटवर्क के विस्तार के साथ, प्राकृतिक गैस एक पसंदीदा परिवहन ईंधन और खाना पकाने के ईंधन के रूप में उभर रही है।
भारत में प्रमुख गैस भंडार:
- पश्चिमी तट: मुंबई हाई और अन्य संबद्ध क्षेत्र, जिन्हें खंभात बेसिन में पाए जाने वाले क्षेत्र संपूरित करते हैं।
- पूर्वी तट: कृष्णा-गोदावरी बेसिन में प्राकृतिक गैस के नए भंडार खोजे गए हैं।
भारत में प्राकृतिक गैस के बुनियादी ढांचे में उल्लेखनीय विस्तार हुआ है, जिससे देश के ऊर्जा परिदृश्य में बदलाव आया है।
गेल (GAIL) द्वारा निर्मित पहली 1,700 किलोमीटर लंबी हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर (HVJ) क्रॉस कंट्री गैस पाइपलाइन ने एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर स्थापित किया। इस पाइपलाइन ने मुंबई हाई और बसीन गैस क्षेत्रों को पश्चिमी और उत्तरी भारत में विभिन्न उर्वरक, बिजली और औद्योगिक परिसरों से सफलतापूर्वक जोड़ा। इस पहल ने भारतीय गैस बाज़ार के विकास को गति प्रदान की।
तब से, भारत के गैस बुनियादी ढांचे में जबरदस्त वृद्धि हुई है। क्रॉस-कंट्री पाइपलाइनों की कुल लंबाई 1,700 किलोमीटर से बढ़कर 18,500 किलोमीटर तक पहुँच गई है, जो दस गुना से अधिक की वृद्धि दर्शाती है। भविष्य में, यह नेटवर्क पूर्वोत्तर राज्यों सहित देश भर में सभी गैस स्रोतों और उपभोक्ता बाजारों को जोड़कर गैस ग्रिड के रूप में जल्द ही 34,000 किलोमीटर से अधिक तक पहुँचने की संभावना है। यह विस्तार भारत की बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने और देश भर में प्राकृतिक गैस की पहुंच सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
विद्युत
आधुनिक विश्व में विद्युत के अनुप्रयोग इतने विस्तृत हैं कि इसके प्रति व्यक्ति उपभोग को विकास का सूचकांक माना जाता है। विद्युत मुख्य रूप से दो प्रकार से उत्पन्न की जाती है:
(क) जल विद्युत: यह प्रवाही जल से उत्पन्न होती है, जो हाइड्रो-टरबाइन चलाकर विद्युत उत्पन्न करता है। (ख) ताप विद्युत: यह कोयला, पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस जैसे अन्य ईंधनों को जलाकर टरबाइन चलाने से उत्पन्न की जाती है।
एक बार उत्पन्न हो जाने के बाद, विद्युत एक जैसी ही होती है।
क्रियाकलाप
कुछ नदी घाटी परियोजनाओं के नाम बताएँ तथा इन नदियों पर बने बाँधों का नाम लिखिए।
कुछ प्रमुख नदी घाटी परियोजनाएँ और उनके बाँध:
- भाखड़ा नांगल परियोजना: सतलुज नदी पर भाखड़ा और नांगल बाँध।
- दामोदर घाटी परियोजना: दामोदर नदी पर तिलैया, मैथन, पंचेत, और कोनार बाँध।
- हीराकुंड परियोजना: महानदी पर हीराकुंड बाँध।
- रिहंद परियोजना: रिहंद नदी पर गोविंद वल्लभ पंत सागर बाँध।
- सरदार सरोवर परियोजना: नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बाँध।
- टेहरी परियोजना: भागीरथी नदी पर टेहरी बाँध।
जल विद्युत
तेज बहते जल से जल विद्युत उत्पन्न की जाती है जो एक नवीकरण योग्य संसाधन है। भारत में अनेक बहु-उद्देशीय परियोजनाएँ हैं जो विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करती हैं, जैसे – भाखड़ा नांगल, दामोदर घाटी कॉर्पोरेशन और कोपिली हाइडल परियोजना आदि।
ताप विद्युत
ताप विद्युत कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस के प्रयोग से उत्पन्न की जाती है। ताप विद्युत गृह अनवीकरण योग्य जीवाश्मी ईंधन का प्रयोग कर विद्युत उत्पन्न करते हैं।
गैर-परंपरागत ऊर्जा के साधन
ऊर्जा के बढ़ते उपभोग ने हमारे देश को कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्मी ईंधनों पर बहुत ज़्यादा निर्भर बना दिया है। गैस और तेल की बढ़ती कीमतें, साथ ही इनकी संभावित कमी, ने भविष्य में ऊर्जा आपूर्ति की सुरक्षा को लेकर अनिश्चितताएँ पैदा कर दी हैं। इसका हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि पर गंभीर असर पड़ता है।
इसके अलावा, जीवाश्मी ईंधनों का उपयोग गंभीर पर्यावरणीय समस्याएँ भी पैदा करता है, जैसे वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन।
इसलिए, नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, जैविक ऊर्जा (बायोमास) तथा अवशिष्ट पदार्थ जनित ऊर्जा के उपयोग की बहुत ज़रूरत है। ये ऊर्जा के गैर-परंपरागत साधन कहलाते हैं।
भारत धूप, जल और जीवभार (बायोमास) साधनों में समृद्ध है। भारत में नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों के विकास के लिए बड़े कार्यक्रम भी बनाए गए हैं।
परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा
परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा अणुओं की संरचना को बदलने से प्राप्त की जाती है। जब ऐसा परिवर्तन किया जाता है, तो ऊष्मा के रूप में काफी ऊर्जा मुक्त होती है, और इसका उपयोग विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने में किया जाता है।
यूरेनियम और थोरियम जैसे खनिज, जो झारखंड और राजस्थान की अरावली पर्वत श्रृंखला में पाए जाते हैं, का प्रयोग परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है। केरल में मिलने वाली मोनाजाइट रेत में भी थोरियम की मात्रा पाई जाती है।
भारत में प्रमुख परमाणु ऊर्जा संयंत्र और उनके राज्य:
- तारापुर (महाराष्ट्र)
- रावतभाटा (राजस्थान)
- कलपक्कम (तमिलनाडु)
- नरोरा (उत्तर प्रदेश)
- काकरापार (गुजरात)
- कैगा (कर्नाटक)
सौर ऊर्जा
भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है, और यहाँ सौर ऊर्जा के दोहन की असीम संभावनाएँ हैं। फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी द्वारा धूप को सीधे विद्युत में परिवर्तित किया जाता है।
भारत के ग्रामीण तथा सुदूर क्षेत्रों में सौर ऊर्जा तेजी से लोकप्रिय हो रही है। कुछ बड़े सौर ऊर्जा संयंत्र देश के विभिन्न भागों में स्थापित किए जा रहे हैं। ऐसी अपेक्षा है कि सौर ऊर्जा के प्रयोग से ग्रामीण घरों में उपलों तथा लकड़ी पर निर्भरता को न्यूनतम किया जा सकेगा, जिससे पर्यावरणीय लाभ भी होंगे।
भारत में नए स्थापित सौर ऊर्जा संयंत्रों के बारे में जानकारी एकत्र करें।
(इस समय उपलब्ध जानकारी के अनुसार, कुछ उल्लेखनीय सौर ऊर्जा परियोजनाएँ/पार्क शामिल हैं:
- भादला सौर पार्क, राजस्थान: दुनिया के सबसे बड़े सौर पार्कों में से एक।
- पावागढ़ सौर पार्क, कर्नाटक: एक और बड़ा सौर ऊर्जा संयंत्र।
- कड़प्पा अल्ट्रा मेगा सौर पार्क, आंध्र प्रदेश।
- रीवा अल्ट्रा मेगा सौर पार्क, मध्य प्रदेश।
छात्रों को नवीनतम जानकारी के लिए सरकारी वेबसाइटों (जैसे नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय) या समाचार स्रोतों की जांच करने की सलाह दी जाती है।)
पवन ऊर्जा
भारत में पवन ऊर्जा के उत्पादन की महान संभावनाएँ हैं। भारत में पवन ऊर्जा फार्म की विशालतम पेटी तमिलनाडु में नागरकोइल से मदुरई तक अवस्थित है। इसके अतिरिक्त, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र तथा लक्षद्वीप में भी महत्त्वपूर्ण पवन ऊर्जा फार्म हैं। नागरकोइल और जैसलमेर देश में पवन ऊर्जा के प्रभावी प्रयोग के लिए जाने जाते हैं।
बायोगैस
ग्रामीण इलाकों में झाड़ियों, कृषि अपशिष्ट, पशुओं और मानव जनित अपशिष्ट के उपयोग से घरेलू उपभोग हेतु बायोगैस उत्पन्न की जाती है। जैविक पदार्थों के अपघटन (decomposition) से गैस उत्पन्न होती है, जिसकी तापीय सक्षमता (thermal efficiency) मिट्टी के तेल, उपलों और लकड़ी की तुलना में बहुत अधिक होती है।
बायोगैस की तापीय सक्षमता (thermal efficiency) मिट्टी के तेल, उपलों (cow dung cakes) व चारकोल की अपेक्षा अधिक होती है।
बायोगैस संयंत्र नगरपालिका, सहकारिता तथा निजी स्तर पर लगाए जाते हैं। पशुओं का गोबर प्रयोग करने वाले संयंत्र ग्रामीण भारत में “गोबर गैस प्लांट” के नाम से जाने जाते हैं।
ये संयंत्र किसानों को दो प्रकार से लाभ पहुँचाते हैं:
- ऊर्जा के रूप में: खाना पकाने और अन्य घरेलू ज़रूरतों के लिए स्वच्छ ईंधन प्रदान करते हैं।
- उन्नत प्रकार के उर्वरक के रूप में: बायोगैस उत्पादन के बाद बचा हुआ घोल (स्लरी) उच्च गुणवत्ता वाले जैविक खाद के रूप में उपयोग होता है।
बायोगैस अब तक पशुओं के गोबर का प्रयोग करने में सबसे कुशल मानी जाती है। यह उर्वरक की गुणवत्ता को बढ़ाता है और उपलों तथा लकड़ी को जलाने से होने वाले वृक्षों के नुकसान को रोकने में मदद करता है, जिससे वनों की कटाई कम होती है और पर्यावरण का संरक्षण होता है।
ज्वारीय ऊर्जा
महासागरीय तरंगों का प्रयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जा सकता है। इसके लिए, सँकरी खाड़ी के आर-पार बाढ़ द्वार (floodgates) बनाकर बाँध बनाए जाते हैं। उच्च ज्वार (high tide) के समय, इस सँकरी खाड़ीनुमा प्रवेश द्वार से पानी भीतर भर जाता है और द्वार बंद होने पर बाँध में ही रह जाता है। जब बाढ़ द्वार के बाहर ज्वार उतर जाता है (low tide), तो बाँध के पानी को इसी रास्ते पाइप द्वारा समुद्र की तरफ बहाया जाता है। यह पानी ऊर्जा उत्पादक टरबाइन की ओर जाता है, जिससे बिजली उत्पन्न होती है।
भारत में खम्भात की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी (दोनों गुजरात के पश्चिमी तट पर), और पश्चिम बंगाल में सुंदरवन क्षेत्र में गंगा के डेल्टा में ज्वारीय तरंगों द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करने की आदर्श दशाएँ उपस्थित हैं।
भू-तापीय ऊर्जा
पृथ्वी के आंतरिक भागों से ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं।
भू-तापीय ऊर्जा
भू-तापीय ऊर्जा इसलिए अस्तित्व में है क्योंकि बढ़ती गहराई के साथ पृथ्वी उत्तरोत्तर गर्म होती जाती है। जहाँ भी भू-तापीय प्रवणता (geothermal gradient) अधिक होती है, वहाँ उथली गहराइयों पर भी अधिक तापमान पाया जाता है। ऐसे क्षेत्रों में भूमिगत जल चट्टानों से ऊष्मा का अवशोषण करके गर्म हो जाता है। यह इतना गर्म हो जाता है कि जब यह पृथ्वी की सतह की ओर उठता है तो भाप में परिवर्तित हो जाता है। इसी भाप का उपयोग टरबाइन को चलाने और विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
भारत में सैंकड़ों गर्म पानी के चश्मे (गर्म पानी के झरने) हैं, जिनका विद्युत उत्पादन में प्रयोग किया जा सकता है। भू-तापीय ऊर्जा के दोहन (उपयोग) के लिए भारत में दो प्रायोगिक परियोजनाएँ शुरू की गई हैं:
- एक हिमाचल प्रदेश में मणिकरण के निकट पार्वती घाटी में स्थित है।
- दूसरी लद्दाख में पूगा घाटी में स्थित है।
ऊर्जा संसाधनों का संरक्षण
आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा एक आधारभूत आवश्यकता है। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रत्येक सेक्टर – कृषि, उद्योग, परिवहन, वाणिज्य व घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ऊर्जा अनिवार्य है।
ऊर्जा की आवश्यकता राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र, जैसे कृषि, उद्योग, परिवहन, वाणिज्य और घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनिवार्य है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद से, आर्थिक विकास की योजनाओं को जारी रखने के लिए ऊर्जा की बड़ी मात्रा में आवश्यकता महसूस की गई, जिसके परिणामस्वरूप पूरे देश में ऊर्जा के सभी प्रकारों का उपभोग लगातार बढ़ रहा है।
इस पृष्ठभूमि में, ऊर्जा के विकास के लिए एक सतत् पोषणीय मार्ग विकसित करना अत्यंत आवश्यक है। ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा देना और नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का बढ़ता प्रयोग ही सतत् पोषणीय ऊर्जा के दो मुख्य आधार हैं।
वर्तमान में, भारत विश्व के उन देशों में गिना जाता है जहाँ ऊर्जा दक्षता बहुत कम है। हमें ऊर्जा के सीमित संसाधनों का न्यायसंगत उपयोग करने के लिए सावधानीपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना होगा। उदाहरण के तौर पर, एक जागरूक नागरिक के रूप में हम कई तरह से अपना योगदान दे सकते हैं:
- यातायात के लिए निजी वाहनों की बजाय सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करके।
- जब प्रयोग न हो रही हो तो बिजली बंद करके।
- विद्युत बचत करने वाले उपकरणों का प्रयोग करके।
- गैर-पारंपरिक ऊर्जा साधनों का प्रयोग करके।
आखिरकार, “ऊर्जा की बचत ही ऊर्जा उत्पादन है।”