MP Board Class 10th Hindi Kshitij Surdas ke Pad :
सूरदास
सूरदास का जन्म सन् 1478 में माना जाता है। एक मान्यता के अनुसार उनका जन्म मथुरा के निकट रुनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ, जबकि दूसरी मान्यता के अनुसार उनका जन्म-स्थान दिल्ली के पास सीही माना जाता है। महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य सूरदास, अष्टछाप के कवियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। वे मथुरा और वृंदावन के बीच गऊघाट पर रहते थे और श्रीनाथ के मंदिर में भजन-कीर्तन करते थे। सन् 1583 में पारसौली में उनका निधन हुआ।
उनके तीन ग्रंथों—सूरसागर, साहित्य लहरी, और सूर सारावली—में सूरसागर सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ। सूरदास की कविता में खेती और पशुपालन पर आधारित भारतीय समाज का दैनिक जीवन और मानव की स्वाभाविक वृत्तियों का जीवंत चित्रण मिलता है। वे वात्सल्य और शृंगार रस के श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। कृष्ण और गोपियों के प्रेम का चित्रण उनकी कविता में सहज मानवीय प्रेम की अभिव्यक्ति करता है। सूरदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामान्य मनुष्यों को हीनता बोध से मुक्त कर, उनमें जीवन के प्रति उत्साह और ललक जगाई।
उनकी कविता में ब्रजभाषा का परिष्कृत और निखरा हुआ रूप देखने को मिलता है, जो लोकगीतों की समृद्ध परंपरा की श्रेष्ठ कड़ी है।
भ्रमरगीत: सूरसागर से चार पद
सूरसागर के भ्रमरगीत से लिए गए ये चार पद गोपियों के प्रेम और विरह की गहन भावनाओं को व्यक्त करते हैं। जब कृष्ण मथुरा चले गए और स्वयं न लौटकर उद्धव के माध्यम से गोपियों को संदेश भेजा, तो उद्धव ने निर्गुण ब्रह्म और योग का उपदेश देकर उनकी विरह वेदना को शांत करने का प्रयास किया। किंतु गोपियाँ, जो प्रेम मार्ग की अनुयायी थीं, उन्हें उद्धव का शुष्क ज्ञान मार्ग स्वीकार्य न हुआ। इसी बीच एक भौंरे का आगमन होता है, जिसके बहाने गोपियाँ उद्धव पर व्यंग्य बाण छोड़ती हैं। यहाँ से भ्रमरगीत का प्रारंभ होता है।
पहला पद: गोपियाँ उद्धव से शिकायत करती हैं कि यदि वे कभी स्नेह के बंधन में बँधे होते, तो विरह की वेदना को अवश्य समझ पाते। यह शिकायत उनकी भावनात्मक गहराई और प्रेम की तीव्रता को दर्शाती है।
दूसरा पद: गोपियाँ स्वीकार करती हैं कि उनकी मन की अभिलाषाएँ मन में ही रह गईं। यह कृष्ण के प्रति उनके प्रेम की गहनता और आत्मिक समर्पण को व्यक्त करता है।
तीसरा पद: उद्धव की योग साधना को गोपियाँ कड़वी ककड़ी के समान बताकर तिरस्कार करती हैं और अपने एकनिष्ठ प्रेम में दृढ़ विश्वास प्रकट करती हैं। यह उनके प्रेम मार्ग के प्रति अटूट निष्ठा को दर्शाता है।
चौथा पद: गोपियाँ उद्धव को ताना मारती हैं कि कृष्ण ने अब राजनीति सीख ली है। अंत में, वे उद्धव को राजधर्म (प्रजा के हित) की याद दिलाती हैं, जो सूरदास की लोकधर्मिता को उजागर करता है।
पद १: भ्रमरगीत (सूरसागर)
मूल पाठ:
ऊधौ, तुम हो अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोस्यौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।।
संदर्भ:
यह पद सूरदास के सूरसागर के भ्रमरगीत खंड से लिया गया है। इस पद में गोपियाँ उद्धव को संबोधित करते हुए उनके प्रति व्यंग्य करती हैं। कृष्ण द्वारा मथुरा जाने के बाद उद्धव उनके संदेशवाहक बनकर गोपियों के पास आए और निर्गुण ब्रह्म व योग का उपदेश दिया। गोपियाँ, जो प्रेम मार्ग की अनुयायी हैं, उद्धव के इस शुष्क उपदेश से असंतुष्ट हैं। इस पद में वे भौंरे के बहाने उद्धव पर व्यंग्य करती हैं।
भावार्थ:
गोपियाँ उद्धव को “अति बड़भागी” कहकर तंज कसती हैं, क्योंकि वे स्नेह के बंधन से मुक्त हैं और उनके मन में प्रेम का अनुराग नहीं है। गोपियाँ कहती हैं कि उद्धव का हृदय कमल के पत्ते की तरह है, जो पानी में रहकर भी उसका रस ग्रहण नहीं करता, या तेल की गागर की तरह है, जो पानी में रहकर भी उसकी एक बूँद से नहीं भीगती। वे उद्धव को ताने मारते हुए कहती हैं कि तुमने कभी प्रेम की नदी में पैर नहीं डुबोया, न ही तुम्हारी दृष्टि प्रेम के रूप पर मोहित हुई। अंत में, सूरदास के माध्यम से गोपियाँ स्वयं को अबला और भोली कहती हैं, जो गुरु (उद्धव) के सामने चाटी (शिष्या) की तरह प्रेम में पागल हैं।
साहित्यिक विशेषताएँ:
रस: यह पद वियोग शृंगार रस से ओतप्रोत है, जिसमें गोपियों का कृष्ण के प्रति विरह और उद्धव के प्रति व्यंग्य मिश्रित है।
अलंकार: उपमा (जल में कमल के पत्ते और तेल की गागर की तरह) और व्यंग्योक्ति अलंकार का सुंदर प्रयोग।
भाषा: ब्रजभाषा का सहज और सरस प्रयोग, जो गोपियों की भावनाओं को जीवंत करता है।
छंद: दोहा और रोला छंद का मिश्रण, जो भक्ति और प्रेम की गहराई को व्यक्त करता है।
भ्रमरगीत: सूरसागर से पद २, ३, और ४
पद २
मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।।
भावार्थ:
गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि उनके मन की पीड़ा और अभिलाषाएँ मन में ही रह गईं, क्योंकि वे उन्हें किसी से कह नहीं सकतीं। कृष्ण के लौटने की आशा उनकी अवधि (प्रतीक्षा) का आधार थी, जिसके कारण उनका तन-मन पीड़ा सह रहा है। उद्धव के योग और ज्ञान के संदेश सुनकर उनकी विरह वेदना और बढ़ गई है। वे कहती हैं कि जितना वे अपनी व्यथा व्यक्त करना चाहती थीं, उतना ही उनका प्रेम और गहरा होता गया। सूरदास के माध्यम से गोपियाँ पूछती हैं कि अब वे धैर्य कैसे रखें, क्योंकि उनकी मर्यादा (आत्मसम्मान) नष्ट हो रही है।
रस: वियोग शृंगार
अलंकार: उपमा, प्रश्न, और व्यंजना
विशेषता: गोपियों की विरह वेदना और प्रेम की गहराई का मार्मिक चित्रण।
पद ३
हमारैं हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ कर पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जकरी।
सुनत जोग लागत ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी यह तौ ‘सूर’।
तिनहिं लै सौंपौ, जिनके सुनी न करी। मन चकरी।।
भावार्थ:
गोपियाँ कहती हैं कि उनके हृदय में कृष्ण (नंद-नंदन) ही बसे हैं, और यह प्रेम उनके मन, कर्म, और वचन में दृढ़ है, जैसे हारिल पक्षी की लकड़ी (जो उसे पकड़ने में सहायक होती है)। वे दिन-रात, जागते- सोते, स्वप्न में केवल कृष्ण का ही स्मरण करती हैं। उद्धव का योग उपदेश उन्हें कड़वी ककड़ी जैसा लगता है, जो उनके प्रेम के सामने तुच्छ है। गोपियाँ कहती हैं कि उद्धव ने उनके लिए यह “रोग” (योग संदेश) लाकर उनकी पीड़ा बढ़ा दी। सूरदास के माध्यम से वे कहती हैं कि यह संदेश उन्हें लौटा दो, जिन्होंने इसे सुनने की सलाह दी, क्योंकि उनका मन तो कृष्ण के प्रेम में चकरी (चक्कर खाता) है।
रस: वियोग शृंगार और व्यंग्य
अलंकार: उपमा (करुई ककरी), रूपक (मन चकरी), और अनुप्रास
विशेषता: गोपियों का प्रेम मार्ग के प्रति दृढ़ विश्वास और उद्धव के उपदेश का तिरस्कार।
पद ४
हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।
ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
ते क्यौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।।
भावार्थ:
गोपियाँ व्यंग्य करते हुए कहती हैं कि कृष्ण अब राजनीति सीख आए हैं। भौंरे (उद्धव) के माध्यम से वे सब समाचार जान चुकी हैं। कृष्ण पहले से ही चतुर थे, और अब गुरु और ग्रंथों ने उनकी बुद्धि और बढ़ा दी है, जिसके कारण उन्होंने योग का संदेश भेजा। गोपियाँ उद्धव को भले मानते हुए ताना मारती हैं कि वे दूसरों के हित के लिए दौड़ते हैं, लेकिन अब उन्हें अपने मन को समझाना होगा, क्योंकि कृष्ण ने उनका मन चुरा लिया था। वे प्रश्न करती हैं कि जो दूसरों को अनीति से बचाते हैं, वे स्वयं अनीति क्यों करें? सूरदास के माध्यम से गोपियाँ कहती हैं कि सच्चा राजधर्म वही है, जो प्रजा को कष्ट न दे।
रस: व्यंग्य और संन्यास रस के साथ वियोग शृंगार
अलंकार: व्यंग्योक्ति, प्रश्न, और अनुप्रास
विशेषता: सूरदास की लोकधर्मिता और गोपियों का राजधर्म के प्रति जागरूक दृष्टिकोण।
साहित्यिक विशेषताएँ:
भाषा: ब्रजभाषा का सरस और व्यंग्यात्मक प्रयोग।
छंद: दोहा और रोला छंद का संयोजन।
थीम: प्रेम मार्ग की श्रेष्ठता, विरह वेदना, और लोकधर्मिता का समन्वय।
प्रश्न-अभ्यास: सूरदास के भ्रमरगीत (सूरसागर)
प्रश्नों के उत्तर:
- गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
गोपियाँ उद्धव को “अति बड़भागी” कहकर व्यंग्य करती हैं, क्योंकि वे प्रेम के बंधन से मुक्त हैं और विरह की वेदना से अछूते हैं। यह व्यंग्य इस बात पर है कि उद्धव का मन प्रेम के रस से अछूता है, जिसके कारण वे गोपियों की भावनाओं को नहीं समझ सकते। गोपियाँ उनके इस भावशून्य दृष्टिकोण को भाग्यशाली कहकर तंज कसती हैं। - उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उद्धव के व्यवहार की तुलना निम्नलिखित से की गई है:- कमल के पत्ते (पद १): जो पानी में रहकर भी उसका रस ग्रहण नहीं करता।
- तेल की गागर (पद १): जो पानी में डूबने पर भी नहीं भीगती।
- कड़वी ककड़ी (पद ३): उद्धव का योग उपदेश गोपियों को कड़वा और बेस्वाद लगता है।
- गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
गोपियाँ निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहना देती हैं:- कमल का पत्ता और तेल की गागर (पद १): उद्धव के प्रेम से अछूते होने का प्रतीक।
- कड़वी ककड़ी (पद ३): उद्धव के योग उपदेश को बेकार और कड़वा बताने के लिए।
- राजनीति और गुरु-ग्रंथ (पद ४): कृष्ण के बदले हुए व्यवहार और उद्धव के संदेश को तंज के रूप में।
- मन चकरी (पद ३): गोपियों का मन कृष्ण के प्रेम में चक्कर खाता है, जबकि उद्धव का उपदेश उनके लिए बेकार है।
- उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
उद्धव का योग और निर्गुण उपदेश गोपियों के प्रेम मार्ग के विपरीत था। गोपियाँ कृष्ण के प्रति भावनात्मक और प्रेमपूर्ण समर्पण में डूबी थीं, जबकि उद्धव का शुष्क ज्ञान मार्ग उनकी भावनाओं को समझने में असमर्थ था। इस उपदेश ने उनकी विरह वेदना को शांत करने के बजाय और बढ़ा दिया, जैसे आग में घी डालने से आग और भड़कती है। - ‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
‘मरजादा न लही’ से गोपियाँ अपनी आत्मिक मर्यादा और सामाजिक सम्मान के खोने की बात कहती हैं। कृष्ण के मथुरा चले जाने और उद्धव के शुष्क उपदेश ने उनकी प्रेम की तीव्रता को ठेस पहुँचाई, जिससे वे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में असमर्थ और अपमानित महसूस करती हैं। यह उनकी प्रेममयी मर्यादा के हनन का प्रतीक है। - कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
गोपियाँ अपने अनन्य प्रेम को निम्नलिखित रूपों में व्यक्त करती हैं:- पद २: उनकी मन की अभिलाषाएँ मन में ही रह गईं, जो कृष्ण के प्रति उनकी गहन प्रेमाभिव्यक्ति है।
- पद ३: वे कहती हैं कि उनका मन, कर्म, और वचन केवल कृष्ण के लिए समर्पित है, जैसे हारिल पक्षी की लकड़ी।
- दिन-रात स्मरण: वे जागते-सोते, स्वप्न में केवल कृष्ण का नाम जपती हैं, जो उनके एकनिष्ठ प्रेम को दर्शाता है।
- गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि योग की शिक्षा उन्हें दी जाए, जिन्होंने इसे सुनने की सलाह दी (पद ३: “तिनहिं लै सौंपौ, जिनके सुनी न करी”)। वे व्यंग्य करती हैं कि यह शुष्क उपदेश उनके लिए नहीं, बल्कि उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो प्रेम के बजाय ज्ञान मार्ग को अपनाते हैं। - प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए।
गोपियाँ योग-साधना को शुष्क, कड़वा, और प्रेम के विपरीत मानती हैं। वे इसे “कड़वी ककड़ी” (पद ३) के समान बताकर तिरस्कार करती हैं। उनका मानना है कि प्रेम मार्ग ही श्रेष्ठ है, और उद्धव का योग उपदेश उनकी विरह वेदना को शांत करने के बजाय और बढ़ाता है। वे प्रेम के सहज और भावनात्मक मार्ग को योग के ज्ञान मार्ग से ऊपर मानती हैं। - गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
गोपियाँ कहती हैं कि राजा का धर्म प्रजा को सताए बिना उनका हित करना है (पद ४: “राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए”)। यह सूरदास की लोकधर्मिता को दर्शाता है, जहाँ गोपियाँ उद्धव को यह याद दिलाती हैं कि सच्चा राजधर्म प्रजा की भलाई और उनके दुखों को कम करने में निहित है। - गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?
गोपियाँ कहती हैं कि कृष्ण अब राजनीति सीख आए हैं और पहले से अधिक चतुर हो गए हैं (पद ४: “हरि हैं राजनीति पढ़ि आए”)। पहले वे गोपियों के प्रेम में सरल और सहज थे, लेकिन अब गुरु और ग्रंथों ने उनकी बुद्धि बढ़ा दी है, जिसके कारण उन्होंने योग का संदेश भेजा। गोपियाँ इसे कृष्ण के व्यवहार में परिवर्तन मानती हैं और कहती हैं कि अब वे अपने मन को वापस पा लेंगी, क्योंकि कृष्ण ने उनका मन “चुराया” था। - गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए।
गोपियों के वाक्चातुर्य की विशेषताएँ:- व्यंग्य और तंज: उद्धव को “बड़भागी” और उनके उपदेश को “कड़वी ककड़ी” कहकर तंज करना।
- उपमा और प्रतीक: कमल के पत्ते, तेल की गागर, और हारिल की लकड़ी जैसे प्रतीकों का उपयोग।
- भावनात्मक गहराई: अपने प्रेम और विरह को मार्मिक ढंग से व्यक्त करना।
- लोकधर्मिता: राजधर्म और प्रजा के हित की बात को शामिल कर सामाजिक चेतना दिखाना।
- सहजता और सरसता: ब्रजभाषा में सरल, सहज, और भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
- संकलित पदों के आधार पर सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
सूरदास के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ:- वियोग शृंगार रस: गोपियों का कृष्ण के प्रति प्रेम और विरह का मार्मिक चित्रण।
- वाक्चातुर्य और व्यंग्य: गोपियों का उद्धव पर तंज और उनके उपदेश का तिरस्कार।
- लोकधर्मिता: राजधर्म और प्रजा हित की बात को शामिल करना।
- ब्रजभाषा की सरसता: सहज, सरल, और भावपूर्ण भाषा का प्रयोग।
- अलंकारों का उपयोग: उपमा, व्यंग्योक्ति, और अनुप्रास जैसे अलंकारों का सुंदर समावेश।
- प्रेम मार्ग की श्रेष्ठता: प्रेम को योग और ज्ञान मार्ग से ऊपर दिखाना।
- गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।
गोपियाँ कह सकती थीं:- “उद्धव, तुम्हारी योग विद्या किताबों तक सीमित है, पर हमारा प्रेम हृदय की गहराई से निकलता है। क्या तुमने कभी प्रेम की उस आग को अनुभव किया, जो रात-दिन जलती है?”
- “जैसे सूरज की किरणें बिना छुए फूल को खिला देती हैं, वैसे ही कृष्ण का प्रेम हमारे हृदय को जीवंत करता है। तुम्हारा योग हमें इस जीवन से कैसे जोड़ेगा?”
- “तुम कहते हो निर्गुण ब्रह्म, पर हमने तो कृष्ण के सगुण रूप में ही सारा संसार देख लिया। तुम्हारी विद्या हमें क्योंकर भाए?”
- उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?
गोपियों के पास प्रेम की शक्ति थी, जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हुई। यह प्रेम सहज, गहन, और एकनिष्ठ था, जो उद्धव के तर्कसंगत और शुष्क ज्ञान मार्ग को परास्त कर गया। उनकी भावनात्मक गहराई, व्यंग्य, और सहज अभिव्यक्ति ने उनके तर्कों को प्रभावी बनाया। प्रेम की यह शक्ति उनकी आत्मिक दृढ़ता और कृष्ण के प्रति समर्पण से उत्पन्न हुई थी। - गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए।
गोपियाँ कहती हैं कि कृष्ण अब राजनीति सीख आए हैं, क्योंकि वे पहले सहज और प्रेममय थे, लेकिन मथुरा जाने के बाद उनकी चतुराई बढ़ गई और उन्होंने उद्धव के माध्यम से योग का संदेश भेजा, जो गोपियों को उनके प्रेम से दूर करने का प्रयास था। यह उनके व्यवहार में आए परिवर्तन को दर्शाता है।
समकालीन राजनीति में विस्तार: समकालीन राजनीति में भी नेताओं द्वारा जनता के प्रति प्रेम और समर्पण का दावा किया जाता है, लेकिन कई बार उनके निर्णय और नीतियाँ स्वार्थ, चतुराई, या सत्ता की रणनीति से प्रेरित होती हैं। जैसे गोपियाँ कृष्ण की चतुराई पर व्यंग्य करती हैं, वैसे ही आज जनता नेताओं के दोहरे चरित्र और वादों पर सवाल उठाती है। उदाहरण के लिए, जनता के हित की बात करने वाले नेता कई बार नीतियों में बदलाव कर जनता से दूरी बना लेते हैं, जो गोपियों के “राजनीति पढ़ आए” के तंज से मिलता-जुलता है।
पाठेतर सक्रियता
- वाग्विदग्धता का संकलन:
गोपियों की वाग्विदग्धता भ्रमरगीत की सबसे बड़ी विशेषता है। अन्य चरित्र जैसे बीरबल, तेनालीराम, गोपालभाँड, और मुल्ला नसीरुद्दीन ने भी अपने वाक्चातुर्य से विशिष्ट पहचान बनाई। अपने मनपसंद चरित्र (जैसे बीरबल) के कुछ किस्से संकलित करें:- किस्सा १: बीरबल और अकबर का “सबसे बड़ा सपना” वाला किस्सा, जिसमें बीरबल अपनी चतुराई से सिद्ध करते हैं कि सबसे बड़ा सपना वही होता है, जो बादशाह देखते हैं।
- किस्सा २: तेनालीराम का “घोड़े की पूँछ” वाला किस्सा, जिसमें वे राजा की मूर्खतापूर्ण माँग को चतुराई से पूरा करते हैं।
इन किस्सों को चित्रों, संवादों, और विवरण के साथ एक एल्बम में संकलित करें।
- सूर रचित पदों का गायन:
सूरदास के भ्रमरगीत के पदों को लय और ताल के साथ गाएँ। इन पदों को गाने के लिए राग भैरवी या राग मालकौंस उपयुक्त हो सकते हैं, जो वियोग और प्रेम रस को व्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिए, पद १ को धीमी लय में गाकर गोपियों की व्यथा को व्यक्त किया जा सकता है। संगीत शिक्षक या ऑनलाइन संसाधनों की सहायता से इन पदों को भक्ति भाव के साथ गाने का अभ्यास करें।
शब्द-संपदा: भ्रमरगीत (सूरसागर, क्षितिज)
नीचे दिए गए शब्दों और उनके अर्थों को सूरदास के भ्रमरगीत के संदर्भ में व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया गया है। यह शब्द-संपदा गोपियों के भाव, व्यंग्य, और ब्रजभाषा की समृद्धि को समझने में सहायक है।
शब्द और उनके अर्थ
शब्द | अर्थ |
बड़भागी | भाग्यवान |
अपरस | अलिप्त, नीरस, अछूता |
तगा | धागा, बंधन |
पुरइनि पात | कमल का पत्ता |
दागी | दाग, धब्बा |
प्रीति-नदी | प्रेम की नदी |
पाउँ | पैर |
बोर | डुबोया |
परागी | मुग्ध होना |
गुर चाँटी ज्यौं पागी | जिस प्रकार चींटी गुड़ में लिपटती है, उसी तरह हम भी कृष्ण के प्रेम में अनुरक्त |
अधार | आधार |
आवन | आगमन, आने की प्रतीक्षा |
बिथा | पीड़ा, दुख |
बिरहिनि बिरह दही | प्रेम-वियोग की पीड़ा को और गहरा करना |
हुतीं | थीं |
गुहारि | रक्षा के लिए पुकारना |
जितहिं तैं | जहाँ से |
उत | वहाँ |
धार | योग की प्रबल धारा |
धीर | धैर्य |
मरजादा न लही | मर्यादा, प्रतिष्ठा नहीं रही, नहीं रखी |
हारिल | एक पक्षी जो अपने पैरों में सदैव एक लकड़ी लिए रहता है, उसे छोड़ता नहीं |
नंद-नंदन उर… पकरी | नंद के नंदन (कृष्ण) को हमने अपने हृदय में बसाकर कसकर पकड़ा हुआ है |
सु | रटती रहती हैं |
करी | भोगा |
ब्याधि | रोग, पीड़ा पहुँचाने वाली वस्तु |
संदर्भ और व्याख्या
ये शब्द सूरदास के भ्रमरगीत के पदों से लिए गए हैं, जो गोपियों के कृष्ण के प्रति प्रेम, विरह, और उद्धव के प्रति व्यंग्य को व्यक्त करते हैं। ब्रजभाषा में रचित ये शब्द सहज, सरस, और भावपूर्ण हैं, जो गोपियों की भावनाओं को गहराई से उजागर करते हैं।
- बड़भागी: गोपियाँ उद्धव को व्यंग्य में भाग्यवान कहती हैं, क्योंकि वे प्रेम और विरह की पीड़ा से मुक्त हैं।
- अपरस, पुरइनि पात, दागी: ये शब्द उद्धव के भावशून्य व्यवहार को दर्शाते हैं, जैसे कमल का पत्ता जो पानी में रहकर भी नहीं भीगता।
- प्रीति-नदी, पाउँ, परागी: गोपियों का प्रेम कृष्ण के लिए नदी की तरह गहरा है, जिसमें उद्धव ने कभी पैर नहीं डुबोया, न ही वे प्रेम के रूप से मुग्ध हुए।
- गुर चाँटी ज्यौं पागी: यह गोपियों के कृष्ण के प्रति अनुराग को दर्शाता है, जैसे चींटी गुड़ में लिपट जाती है।
- बिरहिनि बिरह दही, ब्याधि: उद्धव का योग संदेश गोपियों के लिए रोग की तरह है, जो उनकी विरह वेदना को और बढ़ाता है।
- हारिल, नंद-नंदन उर… पकरी: गोपियाँ अपने प्रेम की दृढ़ता को हारिल पक्षी की तरह दर्शाती हैं, जो अपनी लकड़ी को कभी नहीं छोड़ता।
- मरजादा न लही: गोपियों की आत्मिक और सामाजिक मर्यादा उद्धव के शुष्क उपदेश से ठेस पहुँचने का प्रतीक।
- गुहारि, धार: गोपियाँ अपनी व्यथा व्यक्त करने की कोशिश करती हैं, लेकिन उद्धव का योग उपदेश उनकी भावनाओं को और गहरा देता है।
साहित्यिक महत्व
- ब्रजभाषा की समृद्धि: ये शब्द ब्रजभाषा की सरसता और लालित्य को दर्शाते हैं, जो गोपियों के भावों को जीवंत करते हैं।
- प्रतीकात्मकता: हारिल, कमल का पत्ता, और प्रीति-नदी जैसे शब्द प्रतीकों के माध्यम से गहरे भाव व्यक्त करते हैं।
- वाक्चातुर्य: गोपियों का व्यंग्य और तंज (जैसे बड़भागी, कड़वी ककड़ी) उनकी बुद्धिमत्ता और प्रेम की गहराई को उजागर करता है।