मन्नू भंडारी: जीवन परिचय और साहित्यिक योगदान
जीवन परिचय:
मन्नू भंडारी का जन्म 1931 में मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के भानपुरा गाँव में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अजमेर, राजस्थान में इंटरमीडिएट तक हुई। इसके बाद उन्होंने हिंदी में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की और दिल्ली के मिरांडा हाउस कॉलेज में अध्यापन कार्य किया, जहाँ से वे सेवानिवृत्त हुईं। उनकी मृत्यु 2021 में हुई।
साहित्यिक योगदान:
मन्नू भंडारी स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कथा-साहित्य की प्रमुख लेखिका थीं। उनकी रचनाएँ स्त्री-मन की संवेदनशीलता, यथार्थवाद, और सामाजिक चेतना के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने कहानियाँ, उपन्यास, पटकथाएँ, और आत्मकथ्य लिखे, जो हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। उनकी भाषा सादी, सहज, और भावनात्मक रूप से प्रामाणिक है, जो पाठकों को गहरे तक प्रभावित करती है। उनकी रचनाएँ विशेषकर स्त्री-जीवन की जटिलताओं और सामाजिक रूढ़ियों पर गहरी टिप्पणी करती हैं।
प्रमुख रचनाएँ:
- कहानी संग्रह:
- एक प्लेट सैलाब
- मैं हार गई
- यही सच है
- त्रिशंकु
- उपन्यास:
- आपका बंटी: बच्चों और टूटते परिवारों की भावनात्मक कहानी।
- महाभोज: सामाजिक और राजनीतिक भ्रष्टाचार पर तीखा व्यंग्य।
- आत्मकथ्य:
- एक कहानी यह भी: उनके जीवन और लेखकीय यात्रा का स्मृति-संकलन।
- अन्य:
- फिल्मों और टीवी धारावाहिकों के लिए पटकथाएँ, जैसे रजनीगंधा (उनकी कहानी यही सच है पर आधारित)।
पुरस्कार और सम्मान:
- हिंदी अकादमी का शिखर सम्मान
- भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता
- राजस्थान संगीत नाटक अकादमी
- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के पुरस्कार
लेखन शैली की विशेषताएँ:
- सादगी और सहजता: उनकी भाषा सरल लेकिन प्रभावशाली है।
- स्त्री-संवेदना: स्त्रियों की भावनाओं, संघर्षों, और मनोवैज्ञानिक गहराई को संवेदनशीलता से चित्रित किया।
- यथार्थवाद: सामाजिक और पारिवारिक यथार्थ को बिना अतिशयोक्ति के प्रस्तुत किया।
- शिल्प की सरलता: उनकी रचनाएँ कथ्य और शिल्प के संतुलन का उदाहरण हैं।
“एक कहानी यह भी”: आत्मकथ्य का सारांश
“एक कहानी यह भी” मन्नू भंडारी का आत्मकथात्मक लेखन है, जो पारंपरिक आत्मकथा से अलग, उनके जीवन की महत्वपूर्ण स्मृतियों और अनुभवों का संकलन है। यह उनके लेखकीय व्यक्तित्व और सोच को आकार देने वाली घटनाओं और लोगों का चित्रण करता है।
प्रमुख बिंदु:
- बचपन और पारिवारिक पृष्ठभूमि:
- मन्नू भंडारी का बचपन अजमेर के ब्रह्मपुरी मोहल्ले में बीता। उनके पिता एक प्रतिष्ठित लेकिन अनुशासनप्रिय व्यक्ति थे, जो कांग्रेस और समाज-सुधार से जुड़े थे। वे अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश पर काम करते थे, जिसने उन्हें यश तो दिया, पर आर्थिक संकट से नहीं उबारा।
- पिता का व्यक्तित्व संवेदनशील लेकिन क्रोधी और अहंवादी था। उनकी आर्थिक तंगी और विश्वासघात ने उन्हें शक्की बना दिया, जिसका असर परिवार पर पड़ा।
- माँ बेपढ़ी-लिखी, धैर्यवान, और त्यागमयी थीं, जो पिता की हर आज्ञा और बच्चों की जरूरतों को प्राथमिकता देती थीं।
- मन्नू अपनी माँ के त्याग को आदर्श नहीं मानती थीं, लेकिन माँ के प्रति सहानुभूति उनके भाई-बहनों में गहरी थी।
- पिता का प्रभाव:
- पिता की यश-लिप्सा और विशिष्टता की चाह ने मन्नू को प्रभावित किया। उनकी शक्की प्रवृत्ति और हीन-भावना (मन्नू के काले रंग और दुबलेपन की तुलना गोरी बहन सुशीला से) ने लेखिका के व्यक्तित्व में ग्रंथियाँ पैदा कीं।
- मन्नू आज भी अपनी उपलब्धियों को तुक्का मानती हैं, जो उनकी हीन-भावना का परिणाम है।
- पिता की क्रांतिकारी और बौद्धिक चर्चाओं ने मन्नू में देश और समाज के प्रति जागरूकता जगाई।
- किशोरावस्था और शिक्षा:
- अजमेर के मोहल्ले में मन्नू ने अपनी बहन सुशीला और सहेलियों के साथ बचपन के खेल खेले। पड़ोस-संस्कृति ने उनके लेखन को प्रभावित किया, और उनकी कई कहानियाँ इसी मोहल्ले के पात्रों से प्रेरित हैं।
- पिता ने उन्हें रसोई से दूर रखा, इसे प्रतिभा की बर्बादी मानते हुए। वे मन्नू को राजनीतिक बहसों में शामिल करते थे, जिससे उनकी देश के प्रति जागरूकता बढ़ी।
- 1945 में सावित्री गर्ल्स कॉलेज में हिंदी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल से मुलाकात ने उनके साहित्यिक जीवन को दिशा दी। शीला ने उन्हें शरतचंद्र, प्रेमचंद, जैनेंद्र, अज्ञेय, और भगवतीचरण वर्मा जैसे लेखकों से परिचित कराया और चुनकर पढ़ने की आदत डाली।
- स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी:
- 1946-47 में स्वतंत्रता संग्राम की उथल-पुथल ने मन्नू को प्रभावित किया। शीला अग्रवाल की प्रेरणा से वे प्रभात फेरियों, हड़तालों, और जुलूसों में शामिल हुईं।
- उनकी निर्भीकता और नेतृत्व क्षमता उभरी, जिससे वे कॉलेज में लड़कियों की अगुआ बनीं। इसने उनके पिता से टकराव को जन्म दिया, जो उनकी बेटी की ऐसी गतिविधियों को सामाजिक छवि के लिए खतरा मानते थे।
- एक घटना में पिता को कॉलेज से शिकायत मिली, लेकिन प्रिंसिपल की बातों और डॉ. अंबालाल की प्रशंसा ने उनकी नाराजगी को गर्व में बदला।
- 1947 में आजाद हिंद फौज के मुकदमों के समर्थन में हड़ताल और भाषणबाजी में मन्नू की सक्रियता ने उन्हें स्थानीय स्तर पर पहचान दिलाई।
- लेखकीय यात्रा:
- मन्नू की कहानियाँ उनके मोहल्ले, पारिवारिक अनुभवों, और सामाजिक अवलोकन से प्रेरित हैं। महाभोज जैसे उपन्यास में उनके बचपन के पात्र जीवंत हो उठे।
- उनकी लेखनी में स्त्री-संवेदना, सामाजिक यथार्थ, और मानवीय रिश्तों की जटिलता प्रमुख है।
- एक कहानी यह भी उनके लेखन के पीछे की प्रेरणाओं और व्यक्तिगत संघर्षों का दस्तावेज है।
मुख्य संदेश:
- एक कहानी यह भी यह दर्शाता है कि एक साधारण लड़की कैसे अपने अनुभवों, परिवार, और सामाजिक परिवेश से प्रभावित होकर असाधारण लेखिका बनती है।
- मन्नू का जीवन पिता के विरोधाभासों, माँ की सहनशीलता, और स्वतंत्रता आंदोलन की ऊर्जा से आकार लिया।
- उनकी लेखनी में हीन-भावना, विश्वासघात, और यश की चाह जैसे व्यक्तिगत अनुभव सामाजिक चेतना के साथ गूंथे हैं।
- यह आत्मकथ्य पड़ोस-संस्कृति, स्त्री-शिक्षा, और युवा जोश के महत्व को भी रेखांकित करता है।
विशेषताएँ:
- स्मृति-संकलन: यह सिलसिलेवार आत्मकथा नहीं, बल्कि चुनी हुई स्मृतियों का संग्रह है।
- यथार्थवादी चित्रण: परिवार, समाज, और स्वतंत्रता आंदोलन का जीवंत चित्रण।
- स्त्री-दृष्टिकोण: मन्नू की हीन-भावना और सामाजिक बंधनों के प्रति जागरूकता उनकी लेखनी का आधार बनी।
- साहित्यिक प्रेरणा: शीला अग्रवाल और समकालीन लेखकों का प्रभाव उनकी साहित्यिक यात्रा में महत्वपूर्ण रहा।
निष्कर्ष:
मन्नू भंडारी हिंदी साहित्य की एक ऐसी लेखिका थीं, जिन्होंने अपनी सहज और संवेदनशील लेखनी से स्त्री-जीवन, सामाजिक यथार्थ, और मानवीय भावनाओं को अमर कर दिया। आपका बंटी और महाभोज जैसे उपन्यास और एक कहानी यह भी जैसा आत्मकथ्य उनकी साहित्यिक प्रतिभा के प्रमाण हैं। एक कहानी यह भी न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन की कहानी है, बल्कि एक ऐसी युवती की यात्रा भी है, जो सामाजिक बंधनों और व्यक्तिगत ग्रंथियों को पार कर एक प्रभावशाली लेखिका बनती है। उनकी रचनाएँ आज भी पाठकों को प्रेरित और प्रभावित करती हैं।