कक्षा 12 इतिहास इकाई 1 हड़प्पा सभ्यता लिपि और मुहरें : Harrappa Civilization script and seals

Harrappa Civilization script and seals

लिपि और मुहरें: हड़प्पा सभ्यता का संचार और कला

(कक्षा 12 इतिहास, NCERT पर आधारित छात्रों के लिए नोट्स)

1. मुहरें (Seals)

हड़प्पा सभ्यता की पुरावस्तुओं में मुहरें अत्यंत महत्वपूर्ण और विशिष्ट स्थान रखती हैं। ये मुहरें हमें हड़प्पावासियों की कला, प्रशासन, और संभावित धार्मिक विश्वासों के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करती हैं।

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1.1 निर्माण सामग्री और स्वरूप (Material and Form)

  • अधिकांश हड़प्पाई मुहरें ‘सेलखड़ी’ (Steatite) नामक एक नरम पत्थर से बनाई गई हैं।
  • कुछ मुहरें अगेट, चर्ट, ताँबा, फ़यॉन्स और टेराकोटा जैसी अन्य सामग्रियों से भी मिली हैं।
  • ये आमतौर पर आयताकार (rectangular), वर्गाकार (square) या कभी-कभी गोलाकार (circular) होती थीं।

1.2 उत्कीर्णन (Engravings)

इन मुहरों पर सामान्य रूप से निम्नलिखित के चिह्न उत्कीर्णित होते थे:

  • जानवरों के चित्र: इन पर विभिन्न प्रकार के जानवरों के यथार्थवादी और कल्पनाशील चित्र मिलते हैं, जैसे वृषभ (बैल), भैंस, बाघ, हाथी, गेंडा, बकरी और मगरमच्छ। एक सींग वाले जानवर, जिसे अक्सर ‘यूनिकॉर्न’ कहा जाता है, की आकृति विशेष रूप से प्रमुख है।
  • लिपि के चिह्न: जानवरों के चित्रों के साथ-साथ, मुहरों पर एक विशिष्ट प्रकार की लिपि (script) के चिह्न भी उत्कीर्णित होते थे।
  • संभावित दृश्य: कुछ मुहरों पर मानव आकृतियाँ या पौराणिक दृश्य भी मिलते हैं, जैसे कि ‘पशुपति’ की मुहर, जिसमें एक योगी आकृति को पशुओं से घिरा दिखाया गया है।

1.3 उपयोग और महत्व (Usage and Significance)

मुहरों के संभावित उपयोग और महत्व को लेकर कई पुरातात्विक अनुमान लगाए गए हैं:

  • वस्तुओं की पहचान: ये मुहरें शायद लंबी दूरी के व्यापार में माल से भरे थैलों को चिह्नित करने के लिए प्रयोग की जाती थीं। इससे यह पता चलता था कि कौन सा माल कहाँ से आया है और उसकी प्रामाणिकता क्या है।
  • व्यक्तिगत पहचान या स्थिति: कुछ विद्वानों का मानना है कि इनका उपयोग व्यक्तिगत पहचान, संपत्ति के स्वामित्व या सामाजिक स्थिति को दर्शाने के लिए किया जाता होगा।
  • धार्मिक या अनुष्ठानिक उद्देश्य: कुछ मुहरों पर पाए गए प्रतीकात्मक चित्र (जैसे पशुपति) उनके धार्मिक या अनुष्ठानिक महत्व की ओर इशारा करते हैं।

2. लिपि (Script)

हड़प्पा सभ्यता की लिपि उसकी सबसे रहस्यमय विशेषताओं में से एक है, क्योंकि इसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।

2.1 लिपि की विशेषताएँ (Characteristics of the Script)

  • चित्रमय या चित्रात्मक (Pictographic): यह एक चित्रमय (pictographic) लिपि प्रतीत होती है, जिसमें लगभग 375 से 400 तक चिह्न हैं। यह वर्णमाला (alphabetic) नहीं है।
  • अभी तक अपठित (Undeciphered): यह लिपि आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है, जिससे हड़प्पा सभ्यता के कई पहलुओं (जैसे उनके साहित्य, प्रशासन के विस्तृत विवरण) के बारे में हमारी जानकारी सीमित है।
  • दाएँ से बाएँ लेखन: कुछ साक्ष्यों से पता चलता है कि यह लिपि दाएँ से बाएँ लिखी जाती थी, क्योंकि कुछ मुहरों पर दाईं ओर अधिक स्थान होता था, जबकि बाईं ओर अक्षर संकुचित होते जाते थे।
  • लघु लेख: मुहरों पर मिले अधिकांश लेख अत्यंत छोटे होते हैं, जिनमें अधिकतम 26 चिह्न होते हैं। सबसे लंबा लेख शायद 30 से भी कम चिह्नों का है।

2.2 लिपि कहाँ पाई गई? (Where is the Script Found?)

हड़प्पाई लिपि विभिन्न पुरावस्तुओं पर मिली है:

  • मुहरें (Seals): यह लिपि मुहरों पर सबसे प्रमुखता से पाई जाती है।
  • ताँबे के उपकरण (Copper Tools): ताँबे के कुछ औजारों या पट्टिकाओं पर भी लिपि के चिह्न मिलते हैं।
  • मृदभाण्ड (Pottery): कुछ मिट्टी के बर्तनों पर भी खरोंच कर या पेंट करके लिपि के चिह्न उकेरे गए हैं।
  • आभूषण (Ornaments): कुछ आभूषणों पर भी लिपि के सूक्ष्म चिह्न पाए गए हैं।

2.3 अपठित लिपि का महत्व (Significance of Undeciphered Script)

  • ज्ञान की सीमाएँ: लिपि का अपठित रहना हमें हड़प्पावासियों के विचारों, उनकी राजनीतिक व्यवस्था, धार्मिक ग्रंथों, और उनके दैनिक जीवन के विस्तृत विवरणों तक पहुँचने से रोकता है। हमें उनकी संस्कृति के बारे में जो कुछ भी पता है, वह पुरातात्विक साक्ष्यों (पुरावस्तुओं, वास्तुकला आदि) की व्याख्या पर आधारित है।
  • चुनौती और अनुसंधान: यह इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, और इस लिपि को पढ़ने के लिए लगातार शोध जारी है।

3. निष्कर्ष (Conclusion)

हड़प्पाई मुहरें और उनकी अपठित लिपि सभ्यता के कलात्मक और बौद्धिक विकास के महत्वपूर्ण प्रमाण हैं। मुहरें हड़प्पावासियों की कलात्मकता और संभावित व्यापारिक तथा प्रशासनिक प्रणालियों की झलक देती हैं, जबकि लिपि हमें एक जटिल संचार प्रणाली के अस्तित्व का संकेत देती है, जिसकी पूरी कहानी अभी तक सामने नहीं आई है। इन दोनों पहलुओं का अध्ययन हमें हड़प्पा सभ्यता की विशिष्टता और उसके अनसुलझे रहस्यों को समझने में मदद करता है।


सिंधु घाटी सभ्यता में मुहरें: विस्तृत अध्ययन

(छात्रों के लिए महत्वपूर्ण नोट्स)

1. परिचय (Introduction)

सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तुओं में से एक मुहरें हैं। ये मुहरें न केवल सभ्यता की कलात्मकता और शिल्प कौशल को दर्शाती हैं, बल्कि व्यापारिक गतिविधियों, सामाजिक प्रथाओं और संचार प्रणाली के बारे में भी महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।

2. मुहरों का निर्माण और सामग्री (Construction and Material of Seals)

सिंधु घाटी सभ्यता में मुहरें विभिन्न सामग्रियों और आकृतियों में बनाई जाती थीं:

2.1 निर्माण सामग्री (Material of Construction)

  • प्रमुख सामग्री: ज़्यादातर हड़प्पा मुहरें स्टीएटाइट (सेलखड़ी) से बनी थीं, जो नदी तल में पाया जाने वाला एक नरम पत्थर है। यह आसानी से तराशा जा सकता था और फिर इसे टिकाऊ बनाने के लिए जलाया जाता था।
  • अन्य सामग्री: स्टीएटाइट के अलावा, अन्य सामग्रियों जैसे तांबा, टेराकोटा, चर्ट, फ़ाइनेस (फ़यॉन्स), एगेट, सोना और हाथीदांत का भी इस्तेमाल मुहरें बनाने के लिए किया जाता था।

2.2 आकार और आकृति (Shape and Form)

  • सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त मुहरें आकार और आकृति में भिन्न थीं।
  • इनमें त्रिभुज, वर्ग, आयत और वृत्त शामिल थे।
  • सबसे आम: चौकोर आकार की मुहरें हड़प्पा सभ्यता में सबसे आम थीं।

3. मुहरों पर उत्कीर्णन (Engravings on Seals)

मुहरों के दोनों ओर विशिष्ट प्रकार की आकृतियाँ और चिह्न उत्कीर्णित होते थे:

3.1 प्रतीकात्मक लिपि (Symbolic Script)

  • मुहरों के एक ओर प्रतीक या चित्रात्मक लिपि होती थी।
  • यह लिपि प्रायः दाएं से बाएं या कभी-कभी द्विदिशात्मक शैली (दोनों दिशाओं में) में लिखी जाती थी।
  • यह लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है, जिससे इसके सटीक अर्थ और संदेशों के बारे में हमारी समझ सीमित है।

3.2 पशु आकृतियाँ (Animal Figures)

  • मुहरों के दूसरी ओर पशुओं की आकृतियां उकेरी गई थीं।
  • इनमें बाघ, भैंस, हाथी, गेंडा, बकरी और मगरमच्छ जैसे विभिन्न पशु अंकित थे।
  • ये पशु आकृतियाँ कलात्मक उत्कृष्टता और संभवतः किसी प्रतीकात्मक या धार्मिक महत्व को दर्शाती हैं।

3.3 विशिष्ट हड़प्पा मुहर का स्वरूप (Typical Harappan Seal Structure)

  • एक विशिष्ट हड़प्पा मुहर वर्गाकार होती थी।
  • इसके शीर्ष पर प्रतीक या लिपि अंकित होती थी।
  • मध्य में एक पशु की आकृति उत्कीर्णित होती थी।
  • नीचे और अधिक प्रतीक या लिपि अंकित होते थे।

4. मुहरों का उपयोग और महत्व (Usage and Significance of Seals)

मुहरों का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता था, जो सभ्यता की जटिल कार्यप्रणाली को दर्शाता है:

4.1 व्यापारिक उद्देश्य (Commercial Purposes)

  • इन मुहरों का इस्तेमाल व्यापारिक उद्देश्यों के लिए किया जाता था।
  • जैसे कि जार (मृदभाण्ड) को सील करना और व्यापार के लिए बोरियों पर टैग लगाना। यह माल की प्रामाणिकता और उत्पत्ति को सुनिश्चित करता था।
  • सिंधु घाटी के बंदरगाह शहर लोथल में कई मुहरें पाई गईं, जो समुद्री व्यापार में उनके उपयोग का स्पष्ट संकेत देती हैं।

4.2 व्यापारिक संबंध (Trade Relations)

  • मेसोपोटामिया और मध्य एशिया में भी हड़प्पा की मुहरें पाई गईं, जो सिंधु घाटी सभ्यता के दूर-दराज की सभ्यताओं के साथ व्यापारिक संबंधों का महत्वपूर्ण प्रमाण देती हैं। यह दर्शाता है कि हड़प्पा का व्यापार नेटवर्क केवल स्थानीय नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय भी था।

4.3 व्यक्तिगत या अनुष्ठानिक उपयोग (Personal or Ritualistic Use)

  • मृतकों के शरीर पर कुछ मुहरें पाई गईं, जो संभवतः ताबीज (amulets) या हार (necklaces) के रूप में इस्तेमाल की जाती थीं। यह उनके धार्मिक विश्वासों या व्यक्तिगत पहचान के महत्व की ओर इशारा कर सकता है।

4.4 सबसे प्रसिद्ध मुहर: पशुपति मुहर (Most Famous Seal: Pashupati Seal)

  • हड़प्पा सभ्यता की पशुपति मुहर सबसे प्रसिद्ध हड़प्पा मुहर है।
  • इसमें पशुपति नामक एक पैर पर पैर रखे देवता (संभवतः शिव का एक प्रारंभिक रूप) को दर्शाया गया है।
  • देवता को हाथी, बाघ, गैंडे, भैंस और मृग जैसे जानवरों से घिरा हुआ दिखाया गया है। यह मुहर हड़प्पावासियों के धार्मिक विश्वासों और प्रतीकात्मक कला का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।

5. निष्कर्ष (Conclusion)

सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरें इस प्राचीन सभ्यता के बारे में हमारी समझ के लिए एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्रोत हैं। वे न केवल उनके शिल्प कौशल, कलात्मकता और मानकीकृत व्यापार प्रणालियों को दर्शाती हैं, बल्कि उनके सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं की ओर भी संकेत करती हैं, भले ही उनकी लिपि अभी भी एक रहस्य बनी हुई हो।


सिंधु घाटी सभ्यता में मुहरें: विस्तृत अध्ययन

(छात्रों के लिए महत्वपूर्ण नोट्स)

1. परिचय (Introduction)

सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तुओं में से एक मुहरें हैं। ये मुहरें न केवल सभ्यता की कलात्मकता और शिल्प कौशल को दर्शाती हैं, बल्कि व्यापारिक गतिविधियों, सामाजिक प्रथाओं और संचार प्रणाली के बारे में भी महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।

2. मुहरों का निर्माण और सामग्री (Construction and Material of Seals)

सिंधु घाटी सभ्यता में मुहरें विभिन्न सामग्रियों और आकृतियों में बनाई जाती थीं:

2.1 निर्माण सामग्री (Material of Construction)

  • प्रमुख सामग्री: ज़्यादातर हड़प्पा मुहरें स्टीएटाइट (सेलखड़ी) से बनी थीं, जो नदी तल में पाया जाने वाला एक नरम पत्थर है। यह आसानी से तराशा जा सकता था और फिर इसे टिकाऊ बनाने के लिए जलाया जाता था।
  • अन्य सामग्री: स्टीएटाइट के अलावा, अन्य सामग्रियों जैसे तांबा, टेराकोटा, चर्ट, फ़ाइनेस (फ़यॉन्स), एगेट, सोना और हाथीदांत का भी इस्तेमाल मुहरें बनाने के लिए किया जाता था।

2.2 आकार और आकृति (Shape and Form)

  • सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त मुहरें आकार और आकृति में भिन्न थीं।
  • इनमें त्रिभुज, वर्ग, आयत और वृत्त शामिल थे।
  • सबसे आम: चौकोर आकार की मुहरें हड़प्पा सभ्यता में सबसे आम थीं।

3. मुहरों पर उत्कीर्णन (Engravings on Seals)

मुहरों के दोनों ओर विशिष्ट प्रकार की आकृतियाँ और चिह्न उत्कीर्णित होते थे:

3.1 प्रतीकात्मक लिपि (Symbolic Script)

  • मुहरों के एक ओर प्रतीक या चित्रात्मक लिपि होती थी।
  • यह लिपि प्रायः दाएं से बाएं या कभी-कभी द्विदिशात्मक शैली (दोनों दिशाों में) में लिखी जाती थी।
  • यह लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है, जिससे इसके सटीक अर्थ और संदेशों के बारे में हमारी समझ सीमित है।

3.2 पशु आकृतियाँ (Animal Figures)

  • मुहरों के दूसरी ओर पशुओं की आकृतियां उकेरी गई थीं।
  • इनमें बाघ, भैंस, हाथी, गेंडा, बकरी और मगरमच्छ जैसे विभिन्न पशु अंकित थे।
  • ये पशु आकृतियाँ कलात्मक उत्कृष्टता और संभवतः किसी प्रतीकात्मक या धार्मिक महत्व को दर्शाती हैं।

3.3 विशिष्ट हड़प्पा मुहर का स्वरूप (Typical Harappan Seal Structure)

  • एक विशिष्ट हड़प्पा मुहर वर्गाकार होती थी।
  • इसके शीर्ष पर प्रतीक या लिपि अंकित होती थी।
  • मध्य में एक पशु की आकृति उत्कीर्णित होती थी।
  • नीचे और अधिक प्रतीक या लिपि अंकित होते थे।

4. मुहरों का उपयोग और महत्व (Usage and Significance of Seals)

मुहरों का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता था, जो सभ्यता की जटिल कार्यप्रणाली को दर्शाता है:

4.1 व्यापारिक उद्देश्य (Commercial Purposes)

  • इन मुहरों का इस्तेमाल व्यापारिक उद्देश्यों के लिए किया जाता था।
  • जैसे कि जार (मृदभाण्ड) को सील करना और व्यापार के लिए बोरियों पर टैग लगाना। यह माल की प्रामाणिकता और उत्पत्ति को सुनिश्चित करता था।
  • सिंधु घाटी के बंदरगाह शहर लोथल में कई मुहरें पाई गईं, जो समुद्री व्यापार में उनके उपयोग का स्पष्ट संकेत देती हैं।

4.2 व्यापारिक संबंध (Trade Relations)

  • मेसोपोटामिया और मध्य एशिया में भी हड़प्पा की मुहरें पाई गईं, जो सिंधु घाटी सभ्यता के दूर-दराज की सभ्यताओं के साथ व्यापारिक संबंधों का महत्वपूर्ण प्रमाण देती हैं। यह दर्शाता है कि हड़प्पा का व्यापार नेटवर्क केवल स्थानीय नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय भी था।

4.3 व्यक्तिगत या अनुष्ठानिक उपयोग (Personal or Ritualistic Use)

  • मृतकों के शरीर पर कुछ मुहरें पाई गईं, जो संभवतः ताबीज (amulets) या हार (necklaces) के रूप में इस्तेमाल की जाती थीं। यह उनके धार्मिक विश्वासों या व्यक्तिगत पहचान के महत्व की ओर इशारा कर सकता है।

4.4 सबसे प्रसिद्ध मुहर: पशुपति मुहर (Most Famous Seal: Pashupati Seal)

  • हड़प्पा सभ्यता की पशुपति मुहर सबसे प्रसिद्ध हड़प्पा मुहर है।
  • इसमें पशुपति नामक एक पैर पर पैर रखे देवता (संभवतः शिव का एक प्रारंभिक रूप) को दर्शाया गया है।
  • देवता को हाथी, बाघ, गैंडे, भैंस और मृग जैसे जानवरों से घिरा हुआ दिखाया गया है। यह मुहर हड़प्पावासियों के धार्मिक विश्वासों और प्रतीकात्मक कला का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।

5. सिंधु लिपि और मुहरों का कालक्रमानुसार विकास (Chronological Development of Indus Script and Seals)

सिंधु लिपि और मुहरों के उपयोग एवं स्वरूप में सभ्यता के विभिन्न चरणों में परिवर्तन देखा गया है:

5.1 प्रारंभिक हड़प्पा काल (Early Harappan Period – लगभग 2800-2600 ईसा पूर्व)

  • सिंधु लिपि के शुरुआती उदाहरण मिट्टी के बर्तनों के शिलालेखों और हड़प्पा मुहरों की मिट्टी की छापों पर पाए गए हैं।
  • यह अवधि कोट दीजी चरण के दौरान मुहरों और मानकीकृत बाट जैसी प्रशासनिक वस्तुओं के साथ इस लिपि के उभरने का संकेत देती है।
  • हड़प्पा में उत्खनन ने कुम्हार के निशानों और भित्तिचित्रों से कुछ प्रतीकों के विकास को प्रदर्शित किया है जो लगभग 3500-2800 ईसा पूर्व के शुरुआती रावी चरण से संबंधित हैं।

5.2 परिपक्व हड़प्पा काल (Mature Harappan Period – लगभग 2600-1900 ईसा पूर्व)

  • यह लिपि और मुहरों के उपयोग का सबसे समृद्ध और मानकीकृत चरण था।
  • सिंधु चिह्नों की तारें सामान्यतः सपाट, आयताकार स्टाम्प मुहरों पर पाई जाती हैं।
  • यह लिपि मिट्टी के बर्तनों, औजारों, गोलियों और आभूषणों सहित कई अन्य वस्तुओं पर लिखी या अंकित की गई थी।
  • संकेत टेराकोटा, बलुआ पत्थर, सोपस्टोन, हड्डी, शंख, तांबा, चांदी और सोने जैसी विविध सामग्रियों पर नक्काशी, छेनी, उभार और पेंटिंग सहित कई तरीकों का उपयोग करके लिखे गए थे।
  • 1977 तक, इरावतम महादेवन ने नोट किया कि अब तक खोजी गई सिंधु लिपि की लगभग 90% मुहरें और उत्कीर्ण वस्तुएं पाकिस्तान में सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों जैसे मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के किनारे स्थित स्थलों पर मिलीं।
  • अक्सर, बैल, जल भैंस, हाथी, गैंडे और पौराणिक “गेंडा” जैसे जानवर मुहरों पर पाठ के साथ होते थे, संभवतः अनपढ़ लोगों को किसी विशेष मुहर की उत्पत्ति की पहचान करने में मदद करने के लिए।

5.3 उत्तर हड़प्पा काल (Late Harappan Period – लगभग 1900-1300 ईसा पूर्व)

  • यह अवधि विखंडन और स्थानीयकरण का काल था, जो भारतीय उपमहाद्वीप में प्रारंभिक लौह युग से पहले था।
  • इस अवधि के स्थानीय चरणों से जुड़े स्थलों पर शिलालेख पाए गए हैं।
  • हड़प्पा में, लिपि का प्रयोग काफी हद तक बंद हो गया क्योंकि उत्कीर्ण मुहरों का उपयोग लगभग 1900 ईसा पूर्व समाप्त हो गया।
  • हालाँकि, सिंधु लिपि का प्रयोग अन्य क्षेत्रों जैसे रंगपुर, गुजरात में लंबे समय तक जारी रहा होगा, विशेष रूप से मिट्टी के बर्तनों पर उत्कीर्ण भित्तिचित्रों (graffiti) के रूप में।
  • देर से हड़प्पा काल के झुकर चरण की मुहरें, जो वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत पर केंद्रित हैं, में सिंधु लिपि का अभाव है।

5.4 हड़प्पा के बाद का काल (Post-Harappan Period)

  • हड़प्पा काल के बाद, मध्य भारत, दक्षिण भारत और श्रीलंका में मेगालिथिक लौह युग के समय के कई कलाकृतियाँ (विशेष रूप से बर्तनों के टुकड़े और उपकरण) पाई गई हैं।
  • इन चिह्नों में ब्राह्मी और तमिल-ब्राह्मी लिपियों में शिलालेख शामिल हैं, लेकिन इसमें गैर-ब्राह्मी भित्तिचित्र प्रतीक भी शामिल हैं, जो तमिल-ब्राह्मी लिपि के साथ-साथ मौजूद थे।
  • सिंधु लिपि की तरह, इन गैर-ब्राह्मी प्रतीकों के अर्थ पर विद्वानों की आम सहमति नहीं है।
  • कुछ विद्वानों (जैसे ग्रेगरी पॉसेहल) ने तर्क दिया है कि गैर-ब्राह्मी भित्तिचित्र प्रतीक पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व में और उसके दौरान सिंधु लिपि का अस्तित्व और विकास हैं।
  • 1960 में, पुरातत्वविद् बी. बी. लाल ने पाया कि उनके द्वारा सर्वेक्षण किए गए अधिकांश मेगालिथिक प्रतीकों को सिंधु लिपि के साथ पहचाना जा सकता था, जिससे यह निष्कर्ष निकला कि सिंधु घाटी सभ्यता और बाद के मेगालिथिक काल के बीच संस्कृति की समानता थी।
  • इसी तरह, भारतीय पुरालेखविद् इरावतम महादेवन ने तर्क दिया है कि मेगालिथिक भित्तिचित्र प्रतीकों के अनुक्रम उसी क्रम में पाए गए हैं जैसे तुलनीय हड़प्पा शिलालेखों पर हैं और यह इस बात का सबूत है कि दक्षिण भारत के लौह युग के लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा परवर्ती हड़प्पावासियों से संबंधित या समान थी।

6. निष्कर्ष (Conclusion)

सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरें और लिपि का कालक्रमानुसार अध्ययन हमें इस प्राचीन सभ्यता की जटिलता, उसके संचार के तरीकों और उसके क्रमिक विकास को समझने में मदद करता है। मुहरें शिल्प कौशल, कलात्मकता और मानकीकृत व्यापार प्रणालियों को दर्शाती हैं, जबकि लिपि हमें एक परिष्कृत संचार प्रणाली के अस्तित्व का संकेत देती है, भले ही इसके रहस्य अभी भी पूरी तरह से उजागर नहीं हुए हैं। यह विकास पथ सभ्यता के उत्थान, परिपक्वता और पतन के साथ-साथ बाद की संस्कृतियों पर इसके संभावित प्रभावों को दर्शाता है।

couresy : Wikipedia

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