Harrappa Civilization End Reason and Proof
हड़प्पा सभ्यता का पतन: कारण और साक्ष्य
(कक्षा 12 इतिहास, NCERT पर आधारित छात्रों के लिए नोट्स)
1. परिचय (Introduction)
लगभग 2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व तक अपने चरम पर पहुँचने के बाद, सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे परिपक्व हड़प्पा संस्कृति के नाम से जाना जाता है, का लगभग 1900 ईसा पूर्व के आसपास पतन होना शुरू हो गया। यह भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसके कारण एक शहरी सभ्यता का अंत हुआ और उसके स्थान पर नई ग्रामीण संस्कृतियों का उदय हुआ। सभ्यता का यह पतन अचानक नहीं हुआ, बल्कि एक क्रमिक प्रक्रिया थी जिसके पीछे कई जटिल कारण थे।
2. पतन का समयकाल (Timeline of Decline)
- परिपक्व हड़प्पा काल: लगभग 2600 ईसा पूर्व – 1900 ईसा पूर्व
- उत्तर हड़प्पा काल: लगभग 1900 ईसा पूर्व – 1300 ईसा पूर्व
- यह वह चरण था जब शहरी विशेषताओं में गिरावट देखी गई और बस्तियाँ छोटे, ग्रामीण स्वरूप में परिवर्तित होने लगीं।
3. पतन के संभावित कारण (Possible Causes of Decline)
हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारणों को लेकर विद्वानों में कोई एक राय नहीं है। विभिन्न पुरातत्वविदों और इतिहासकारों ने अलग-अलग सिद्धांतों का प्रस्ताव किया है, जिनमें से कई एक-दूसरे से जुड़े हुए हो सकते हैं।
3.1 पर्यावरणीय कारक (Environmental Factors)
- जलवायु परिवर्तन (Climate Change):
- कुछ विद्वानों का मानना है कि लगभग 2000-1900 ईसा पूर्व के आसपास क्षेत्र में सूखा (drought) पड़ना शुरू हो गया था, जिससे जल संसाधनों में कमी आई।
- सिंधु और उसकी सहायक नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों में वर्षा में कमी आने से कृषि उत्पादन प्रभावित हुआ होगा।
- नदियों का मार्ग बदलना या सूखना (Shifting/Drying up of Rivers):
- यह एक प्रमुख सिद्धांत है। सिंधु और घग्गर-हाकरा (सरस्वती) जैसी नदियों ने अपना मार्ग बदल दिया या सूख गईं।
- नदियों के मार्ग बदलने से कई शहर, जो नदी के किनारे बसे थे, जलविहीन हो गए, जबकि कुछ अत्यधिक बाढ़ की चपेट में आ गए। इससे कृषि और व्यापार पर सीधा नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
- अत्यधिक बाढ़ (Excessive Flooding):
- कुछ स्थलों पर, जैसे मोहनजोदड़ो में, बार-बार बाढ़ आने के प्रमाण मिले हैं, जिससे शहरों को बार-बार पुनर्निर्माण करना पड़ा होगा, जिससे संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ा होगा।
- वनोन्मूलन (Deforestation):
- ईंटों को पकाने और धातु कर्म के लिए बड़े पैमाने पर लकड़ी का उपयोग किया जाता था। अत्यधिक वनोन्मूलन के कारण पारिस्थितिक असंतुलन हुआ होगा, जिससे मिट्टी का कटाव और जलवायु परिवर्तन और बढ़ गया होगा।
3.2 प्राकृतिक आपदाएँ (Natural Disasters)
- भूकंप (Earthquakes):
- कुछ विद्वानों ने क्षेत्र में बार-बार आने वाले भूकंपों को पतन का एक कारण बताया है, जिससे शहरों की संरचनाएँ क्षतिग्रस्त हुई होंगी और नदी के मार्ग बदल गए होंगे।
3.3 बाहरी कारक (External Factors)
- विदेशी आक्रमण (Foreign Invasion – Aryan Invasion Theory):
- यह सिद्धांत, जिसे पहले व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता था, प्रस्तावित करता है कि आर्यों के आक्रमण ने हड़प्पा सभ्यता को नष्ट कर दिया। मोहनजोदड़ो में मिली कुछ कंकाल अवशेषों को नरसंहार का प्रमाण माना गया था।
- हालांकि, आधुनिक शोध इस सिद्धांत को व्यापक रूप से खारिज करते हैं। कई विद्वानों का तर्क है कि ये कंकाल अवशेष प्राकृतिक आपदाओं या बीमारियों के कारण हो सकते हैं, और आक्रमण के कोई ठोस पुरातात्विक प्रमाण नहीं हैं। यदि कोई आक्रमण हुआ भी होता, तो वह सभ्यता के पतन का एकमात्र या प्राथमिक कारण नहीं होता।
3.4 आंतरिक कारक (Internal Factors)
- व्यापार में गिरावट (Decline in Trade):
- मेसोपोटामिया और खाड़ी क्षेत्र की सभ्यताओं के साथ हड़प्पा के व्यापारिक संबंधों में गिरावट आई होगी। इससे आर्थिक समृद्धि प्रभावित हुई और शहरों का पतन हुआ।
- प्रशासनिक शिथिलता (Administrative Weakness):
- कुछ विद्वानों का मानना है कि सभ्यता के अंतिम चरणों में केंद्रीय प्रशासन कमजोर हो गया होगा, जिससे शहरों का व्यवस्थित रखरखाव और जल प्रबंधन प्रणाली ध्वस्त हो गई होगी।
- संसाधनों का अत्यधिक उपयोग (Overuse of Resources):
- लंबे समय तक संसाधनों का अत्यधिक दोहन (जैसे खेती और पशुपालन के लिए) मिट्टी की उर्वरता में कमी ला सकता था, जिससे कृषि उत्पादन में गिरावट आई होगी।
- महामारी (Epidemics):
- बड़े शहरी केंद्रों में बीमारियाँ या महामारियाँ फैलने से भी जनसंख्या में गिरावट आ सकती थी।
4. पतन के साक्ष्य (Evidence of Decline)
पुरातात्विक साक्ष्य बताते हैं कि पतन एक क्रमिक प्रक्रिया थी:
- शहरी संरचनाओं में गिरावट (Decline in Urban Structures):
- परिपक्व हड़प्पा काल के बाद के चरणों में शहरों के नियोजन में कमी देखी गई।
- घरों और सार्वजनिक इमारतों का पुनर्निर्माण निम्न गुणवत्ता की सामग्री से किया जाने लगा।
- कुछ स्थानों पर अतिक्रमण और गलियों पर निर्माण के प्रमाण मिले हैं, जो शहरी अनुशासन में गिरावट का संकेत है।
- उन्नत जल निकास प्रणालियों का अवरुद्ध होना या उनके रखरखाव में कमी आना।
- मानकीकरण का अभाव (Lack of Standardization):
- ईंटों, बाटों और मुहरों जैसे विशिष्ट हड़प्पाई शिल्प में मानकीकरण में कमी आई। यह केंद्रीकृत नियंत्रण और उत्पादन प्रणालियों के कमजोर होने का संकेत देता है।
- नए, छोटे ग्रामीण बस्तियों का उदय (Emergence of New, Smaller Rural Settlements):
- शहरों के पतन के साथ, जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों की ओर विस्थापित हो गई, जिससे छोटे, अधिक ग्रामीण बस्तियों का उदय हुआ।
- जनसंख्या का विस्थापन (Population Displacement):
- कई बड़े हड़प्पा स्थल धीरे-धीरे त्याग दिए गए या उनकी आबादी कम हो गई, जबकि नए, छोटे स्थल पूर्व और दक्षिण की ओर (जैसे गुजरात, पश्चिमी उत्तर प्रदेश) उभरे।
5. निष्कर्ष (Conclusion)
हड़प्पा सभ्यता का पतन किसी एक कारण का परिणाम नहीं था, बल्कि यह कई कारकों के संयोजन का परिणाम था, जिसमें पर्यावरणीय परिवर्तन, नदियों के व्यवहार में बदलाव और संभवतः आंतरिक कमजोरियाँ शामिल थीं। यह एक क्रमिक विघटन था जिसने एक जटिल शहरी सभ्यता को एक अधिक ग्रामीण जीवन शैली में बदल दिया। इस पतन ने भारतीय उपमहाद्वीप में एक नए युग की शुरुआत की, जिसने बाद की संस्कृतियों के विकास के लिए मंच तैयार किया।
हड़प्पा सभ्यता का पतन: विशेष सिद्धांत और नए शोध
(कक्षा 12 इतिहास, NCERT पर आधारित छात्रों के लिए नोट्स)
1. मोहनजोदड़ो में मिले नरसंहार के अवशेष (Remains of Massacre in Mohenjodaro)
मोहनजोदड़ो में हुए उत्खननों में कुछ ऐसे साक्ष्य मिले हैं जिन्हें पहले नरसंहार से जोड़ा गया था:
- मोहनजोदड़ो के ‘MR’ क्षेत्र (मोहनजोदड़ो रेजिडेंशियल एरिया) में: 1925 में, जॉन मार्शल (John Marshall) और आर.ई.एम. व्हीलर (R.E.M. Wheeler) की रिपोर्टों में बताया गया कि इस क्षेत्र में 13 व्यक्तियों के कंकाल मिले थे।
- इनमें से कुछ की खोपड़ियाँ 3 से 6 फीट तक गहराई में मिली थीं।
- एक खोपड़ी के पास 4 फुट 2 इंच की दूरी पर एक और खोपड़ी मिली।
- तीन कंकाल (एक वयस्क और दो बच्चे) एक गली में मिले थे।
- ये कंकाल पीठ के बल, गले में आड़े, और पिच की ओर पड़े हुए थे।
- इस गली का नाम “मृतकों की गली” (Dead Man’s Lane) दिया गया था।
- आर.पी. चंदा का अवलोकन: 1926 में, आर.पी. चंदा (R.P. Chanda) ने मोहनजोदड़ो से मिले साक्ष्यों का संबंध ऋग्वेद में वर्णित पुरों (प्राचीर, किला या गढ़) के विनाश से स्थापित करने का प्रयास किया।
- उन्होंने लिखा: “ऋग्वेद में पुर शब्द का उल्लेख है जिसका अर्थ है प्राचीर, किला या गढ़। आर्यों के युद्ध के देवता इंद्र को पुरंदर, अर्थात् पुरों को नष्ट करने वाला कहा गया है।”
- चंदा ने यह निष्कर्ष निकाला कि हड़प्पा शहरों का पतन शायद बाहरी आक्रमण से हुआ था, क्योंकि इंद्र को शहरों का विनाशक कहा गया है।
- व्हीलर की व्याख्या (1946): आर.ई.एम. व्हीलर ने 1946 में मोहनजोदड़ो के ‘MR’ क्षेत्र में मिले कंकाल अवशेषों को विदेशी आक्रमण के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया।
- उन्होंने अनुमान लगाया कि “यह एक बहुत बड़ी घटना थी जिसमें लगभग 40 लाख लोगों का सामूहिक नरसंहार किया गया था… यह शहर पूरी तरह से नष्ट कैसे हुआ? हो सकता है अलग-अलग, आर्थिक या राजनीतिक कारणों ने इसे कमजोर किया हो, पर अधिक संभावना इस बात की है कि जल-प्रलय तथा बड़े पैमाने पर किए गए नरसंहार ने इसे अंतिम रूप से समाप्त कर दिया।”
- उन्होंने यह भी लिखा: “यह मात्र संयोग ही नहीं हो सकता कि मोहनजोदड़ो के अंतिम चरण में आभास होता है कि यहाँ पुरुषों, महिलाओं तथा बच्चों का जनसंहार किया गया है, जिसके साक्ष्यों के आधार पर यह अधिक उपयुक्त माना जाता है।”
2. आक्रमण सिद्धांत पर सवाल और खंडन (Questions and Rebuttal to Invasion Theory)
बाद के शोधों और पुरातात्विक साक्ष्यों ने ‘आर्य आक्रमण’ सिद्धांत पर गंभीर सवाल उठाए और अंततः उसे खंडित कर दिया।
- जॉर्ज एफ. डेल्स (George F. Dales) का खंडन (1964):
- 1960 के दशक में, जॉर्ज एफ. डेल्स ने मोहनजोदड़ो में जनसंहार के दावों पर सवाल उठाया।
- उन्होंने बताया कि “हालांकि इनमें से दो (कंकालों) से निश्चित रूप से संहार के संकेत मिलते हैं… पर अधिकांश हड्डियाँ जिन स्थितियों में मिली हैं, वे यह इंगित करती हैं कि वे 5000 वर्षों से अधिक समय से यहाँ पाए गए हैं और व्यापक स्तर पर नरसंहार के कोई संकेत नहीं हैं, न चारों ओर फैले हथियारों के अवशेष हैं, न अत्याधुनिक सैनिकों के कोई साक्ष्य हैं।”
- उन्होंने यह भी नोट किया कि दुर्ग से, जो शहर का एकमात्र किलेबंद भाग था, आक्रमण के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं।
- डेल्स ने निष्कर्ष निकाला कि “जैसा कि आप देख सकते हैं कि तथ्यों का यह पुनर्अवलोकन पूर्ववर्ती व्याख्या को पूरी तरह से उलट देता है।”
- मुख्य समस्या: आक्रमण सिद्धांत में मुख्य समस्या यह थी कि इन कंकालों में नरसंहार के स्पष्ट घाव या युद्ध के कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले। अधिकांशतः ये प्राकृतिक कारणों (जैसे बीमारी या आकस्मिक मृत्यु) से जुड़े पाए गए।
3. आनुवंशिक शोध और नए निष्कर्ष (Genetic Research and New Findings)
हाल के आनुवंशिक शोधों ने हड़प्पा सभ्यता के पतन और जनसंख्या निरंतरता के बारे में महत्वपूर्ण नई जानकारी दी है, जो आक्रमण सिद्धांत को और कमजोर करती है।
- राखीगढ़ी में अनुसंधान: इस संबंध में, हरियाणा के राखीगढ़ी पुरास्थल पर हाल ही में किए गए आनुवंशिक शोध का उल्लेख करना महत्वपूर्ण है।
- राखीगढ़ी, हरियाणा के हिसार जिले में स्थित है, और 550 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ सबसे बड़ा हड़प्पा स्थल है।
- यह शोध कार्य डेक्कन कॉलेज डीम्ड यूनिवर्सिटी, पुणे द्वारा सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB), हैदराबाद, और हार्वर्ड मेडिकल कॉलेज के सहयोग से किया गया था।
- शोधकर्ताओं ने एक महिला मानव कंकाल से डी.एन.ए. निकाला गया था।
- प्रमुख आनुवंशिक निष्कर्ष:
- आँकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि राखीगढ़ी की आनुवंशिक सामग्री (डी.एन.ए.) लगभग 7000-10000 ईसा पूर्व तक जीवित रहे प्राचीन शिकारियों और संग्राहकों (Hunter-gatherers) से संबंधित है।
- इस डी.एन.ए. में मध्य एशियाई स्टेपी (steppe) या ईरानी कृषकों से आने वाले लोगों की बड़ी आनुवंशिक छाप (genetic signature) का अभाव है।
- यह शोध इस बात की पुष्टि करता है कि हड़प्पा की आबादी का डी.एन.ए. दक्षिण एशियाई डी.एन.ए. के साथ समानता रखता है।
- अतः, इस शोध से उस विचार को समर्थन मिलता है कि हड़प्पावासियों और दूर दराज़ के इलाकों से आने वाले लोगों के बीच समाज में समाहितीकरण (assimilation) हुआ था, और किसी भी स्तर पर, भारतीय उपमहाद्वीप का आनुवंशिक इतिहास बाधित नहीं हुआ।
- यह इस बात को भी पुष्ट करता है कि लगभग 5000 वर्षों से भारतीय आबादी में महत्वपूर्ण आनुवंशिक निरंतरता रही है।
4. निष्कर्ष (Conclusion)
आधुनिक पुरातात्विक और आनुवंशिक साक्ष्य आर्य आक्रमण सिद्धांत को व्यापक रूप से खारिज करते हैं। हड़प्पा सभ्यता का पतन संभवतः एक जटिल प्रक्रिया थी जो पर्यावरणीय परिवर्तनों (जैसे सूखा, नदियों का मार्ग बदलना), आंतरिक समस्याओं और संभवतः अन्य प्राकृतिक आपदाओं के संयोजन का परिणाम थी, न कि किसी बड़े पैमाने के बाहरी आक्रमण का। राखीगढ़ी का आनुवंशिक शोध भारतीय जनसंख्या की लंबी आनुवंशिक निरंतरता को रेखांकित करता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग किसी बड़े पैमाने पर विस्थापित नहीं हुए थे, बल्कि उनका मिश्रण हुआ।
भारतीय पुरातत्व के प्रमुख कालखंड: कालरेखा 1
यह कालरेखा भारतीय पुरातत्व के प्रमुख कालखंडों को दर्शाती है, जिससे छात्रों को प्राचीन भारत के विकास क्रम को समझने में आसानी होगी। यहाँ सभी तिथियाँ अनुमानित हैं, और उपमहाद्वीप के अलग-अलग भागों में हुए विकास की प्रक्रिया में व्यापक विविधताएँ हैं। यहाँ दी गई तिथियाँ हर चरण के प्राचीनतम साक्ष्य को इंगित करती हैं।
कालखंड (Period) | समयकाल (Approximate Timeline – वर्तमान से पूर्व) | मुख्य विशेषताएँ (Key Characteristics) |
निम्न पुरापाषाण (Lower Paleolithic) | 20 लाख वर्ष पूर्व (वर्तमान से पूर्व) | मानव सभ्यता का सबसे प्रारंभिक चरण, पत्थर के औजारों का प्राथमिक उपयोग |
मध्य पुरापाषाण (Middle Paleolithic) | 80,000 वर्ष पूर्व | पत्थर के औजारों में सुधार, विभिन्न प्रकार के छोटे फलकों का प्रयोग |
उच्च पुरापाषाण (Upper Paleolithic) | 35,000 वर्ष पूर्व | आधुनिक मानव का उदय, कला और अधिक परिष्कृत औजारों का विकास |
मध्य पाषाण (Mesolithic) | 12,000 वर्ष पूर्व | सूक्ष्म पाषाण औजारों का प्रयोग, पशुपालन की शुरुआत |
नवपाषाण (Neolithic) | 10,000 वर्ष पूर्व | आरंभिक कृषक तथा पशुपालक, स्थायी बस्तियों का विकास |
ताम्रपाषाण (Chalcolithic) | 6,000 वर्ष पूर्व | ताँबे का पहली बार प्रयोग, कृषि और पशुपालन के साथ धातु का उपयोग |
हड़प्पा सभ्यता (Harappan Civilization) | 2600 ई.पू. | शहरी सभ्यता का विकास, नगर नियोजन, उन्नत जल निकास प्रणाली |
आरंभिक लौहकाल (Early Iron Age) | 1000 ई.पू. | लोहे का प्रयोग आरंभ, महापाषाण शवाधानों का प्रचलन |
आरंभिक ऐतिहासिक काल (Early Historic Period) | 600 ई.पू. – 400 ई.पू. | बड़े राज्यों और साम्राज्यों का उदय, शहरीकरण का दूसरा दौर, बुद्ध और महावीर का काल |
टिप्पणी:
- वर्तमान से पूर्व (BP – Before Present): यह काल-निर्धारण विधि 1950 को ‘वर्तमान’ मानकर उससे पहले के समय को दर्शाती है।
- ई.पू. (BCE – Before Common Era): ‘ईसा मसीह के जन्म से पहले’ का समय।
यह कालरेखा छात्रों को भारतीय पुरातत्व के विभिन्न चरणों और उनकी मुख्य विशेषताओं को एक नज़र में समझने में मदद करेगी।
हड़प्पाई पुरातत्व के विकास के प्रमुख चरण: कालरेखा 2
(छात्रों के लिए महत्वपूर्ण नोट्स)
1. परिचय (Introduction)
यह कालरेखा हड़प्पाई पुरातत्व के विकास में मील के पत्थर को दर्शाती है, जिसमें विभिन्न वर्षों में हुए प्रमुख उत्खनन, रिपोर्ट और अनुसंधान शामिल हैं। यह छात्रों को यह समझने में मदद करेगी कि सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में हमारी जानकारी समय के साथ कैसे विकसित हुई है।
2. प्रमुख घटनाएँ (Major Events)
समयकाल (Year) | प्रमुख घटना (Major Event) |
उन्नीसवीं शताब्दी | |
1875 | हड़प्पाई मुहर पर कनिंघम की रिपोर्ट |
बीसवीं शताब्दी | |
1921 | दया राम साहनी द्वारा हड़प्पा में उत्खननों का आरंभ |
1922 | मोहनजोदड़ो में उत्खनन का प्रारंभ |
1946 | आर.ई.एम. व्हीलर द्वारा हड़प्पा में उत्खनन |
1955 | एस.आर. राव द्वारा लोथल में खुदाई का आरंभ |
1960 | बी.बी. लाल तथा बी.के. थापर के नेतृत्व में कालीबंगन में उत्खननों का आरंभ |
1974 | एम.आर. मुगल द्वारा बहावलपुर में अन्वेषणों का आरंभ |
1980 | जर्मन-इतालवी संयुक्त दल द्वारा मोहनजोदड़ो में सतह-अन्वेषणों का आरंभ |
1986 | अमेरिकी दल द्वारा हड़प्पा में उत्खननों का आरंभ |
1990 | आर.एस. बिष्ट द्वारा धौलावीरा में उत्खननों का आरंभ |
1997 | अमरेंद्र नाथ ने राखीगढ़ी में खुदाई शुरू की |
2013 | वसंत शिंदे ने राखीगढ़ी में पुरातत्व-आनुवांशिक अनुसंधान शुरू किया |
3. निष्कर्ष (Conclusion)
यह कालरेखा स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि हड़प्पा सभ्यता का अध्ययन एक गतिशील प्रक्रिया रही है, जिसमें विभिन्न पुरातात्विक उत्खननों और अध्ययनों ने समय के साथ हमारी समझ को गहरा किया है। इन प्रमुख चरणों ने सिंधु घाटी सभ्यता के इतिहास को परत दर परत उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।