Class 9 Hindi Rupak Alankar Parichay रूपक अलंकार: परिचय, परिभाषा और उदाहरण

परिचय

Class 9 Hindi Rupak Alankar Parichay : रूपक अलंकार हिंदी साहित्य में एक प्रमुख अर्थालंकार है, जो काव्य में उपमेय और उपमान के बीच पूर्ण तादात्म्य (एकता) स्थापित करके सौंदर्य और भावनात्मक गहराई उत्पन्न करता है। यह उपमा से एक कदम आगे है, जहाँ उपमेय को उपमान के रूप में ही प्रस्तुत किया जाता है, बिना सादृश्य शब्द (जैसे, सा, सी) के। रूपक का उपयोग भक्तिकाल से आधुनिक काल तक की कविताओं में प्रकृति, प्रेम, भक्ति, और दार्शनिक चित्रण के लिए व्यापक रूप से हुआ है। कक्षा 9 के पाठ्यक्रम में रूपक अलंकार का अध्ययन काव्य की कल्पनाशीलता और बिंबात्मकता को समझने में महत्वपूर्ण है।

रूपक अलंकार की परिभाषा

रूपक अलंकार वह अर्थालंकार है, जिसमें उपमेय और उपमान में समानता के आधार पर पूर्ण अभेद (तादात्म्य) स्थापित किया जाता है, और उपमेय को उपमान के रूप में ही चित्रित किया जाता है।

  • आचार्य मम्मट: “रूपकं तद् यत्र उपमेय उपमानेन संनादति” अर्थात् रूपक वह है, जहाँ उपमेय उपमान के साथ पूर्ण रूप से एक हो जाए।
  • आधुनिक दृष्टिकोण: रूपक अलंकार उपमेय को उपमान के रूप में प्रस्तुत करके काव्य में गहन बिंबात्मकता और सौंदर्य उत्पन्न करता है।

रूपक के तत्व

  1. उपमेय: जिस वस्तु या व्यक्ति का चित्रण किया जाता है।
  2. उपमान: वह वस्तु या व्यक्ति जिसके रूप में उपमेय को प्रस्तुत किया जाता है।
  3. समान गुण: दोनों में समानता का आधार (गुण, स्वरूप, या कार्य)।
  4. अभेद: सादृश्य शब्द का अभाव, उपमेय और उपमान का पूर्ण तादात्म्य।

विशेषताएँ

  • बिंबात्मकता: रूपक काव्य में जीवंत और दृश्यात्मक चित्रण प्रस्तुत करता है।
  • सौंदर्य वृद्धि: यह कविता को गहन और रमणीय बनाता है।
  • कल्पनाशीलता: कवि की रचनात्मकता और गहरी कल्पना को दर्शाता है।
  • भावनात्मक गहराई: यह भावनाओं और विचारों को प्रभावी रूप से व्यक्त करता है।
  • विविधता: रूपक सभी रसों और काव्य प्रकारों में प्रयुक्त होता है।

रूपक के प्रकार

रूपक को संरचना और प्रयोग के आधार पर निम्नलिखित प्रकारों में बाँटा जा सकता है:

  1. संनादति रूपक: जब उपमेय को उपमान के रूप में स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया जाए।
    • उदाहरण: मेघ आए बड़े बन-ठन, अतिथि बन। (मेघ को अतिथि के रूप में चित्रित।)
  2. संगलति रूपक: जब उपमेय और उपमान का तादात्म्य क्रमिक रूप से कई चरणों में हो।
    • उदाहरण: मन मंदिर में राम बसे, दीपक बन ज्योति। (मन को मंदिर, राम को दीपक के रूप में।)
  3. सांनादिक रूपक: जब उपमान के गुणों का विस्तार उपमेय पर हो।
    • उदाहरण: जीवन नदी बहती चली, कूल-कूल पर छाय। (जीवन को नदी के रूप में विस्तृत चित्रण।)

उदाहरण

  1. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की मेघ आए (क्षितिज भाग-1, शृंगार रस): मेघ आए बड़े बन-ठन, अतिथि बन। रूपक: मेघों को अतिथि के रूप में चित्रित किया गया है, जिसमें मेघ और अतिथि का पूर्ण तादात्म्य है।
    प्रभाव: मेघों के आगमन को मानवीय और उत्साहपूर्ण बनाता है, प्रकृति के सौंदर्य को जीवंत करता है।
  2. सुमित्रानंदन पंत की ग्राम श्री (क्षितिज भाग-1, शृंगार रस): स्वर्ण मंदिर-सी धान की बालियाँ। रूपक: धान की बालियों को स्वर्ण मंदिर के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    प्रभाव: ग्राम के सौंदर्य और समृद्धि को गहन और बिंबात्मक बनाता है।
  3. तुलसीदास का सवैया (क्षितिज भाग-1, भक्ति रस): राम नाम अवलंबन थाल। रूपक: राम नाम को थाल (आधार) के रूप में चित्रित किया गया है।
    प्रभाव: भक्ति और मोक्ष के महत्व को दृश्यात्मक और प्रभावी बनाता है।

रूपक का महत्व

  • काव्य सौंदर्य: रूपक कविता को बिंबात्मक और रमणीय बनाकर सौंदर्य बढ़ाता है।
  • भावनात्मक गहराई: यह भावनाओं और विचारों को गहन रूप में व्यक्त करता है।
  • कल्पनाशीलता: कवि की रचनात्मकता और तादात्म्य स्थापित करने की क्षमता को दर्शाता है।
  • सांस्कृतिक मूल्य: यह भारतीय साहित्य की शास्त्रीय परंपरा को संरक्षित करता है।
  • शैक्षिक महत्व: रूपक के अध्ययन से छात्र काव्य की बिंबात्मक शैली और सौंदर्य को समझते हैं।

कक्षा 9 के संदर्भ में

कक्षा 9 की क्षितिज भाग-1 की कविताएँ रूपक अलंकार के उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती हैं:

  • मेघ आए (सर्वेश्वर दयाल सक्सेना): मेघों को अतिथि के रूप में चित्रण रूपक का सुंदर प्रयोग है।
  • ग्राम श्री (सुमित्रानंदन पंत): धान की बालियों को स्वर्ण मंदिर के रूप में प्रस्तुत करना ग्राम सौंदर्य को जीवंत करता है।
  • सवैये (तुलसीदास): राम नाम को थाल के रूप में चित्रण भक्ति भाव को गहरा करता है।
    ये उदाहरण छात्रों को रूपक की पहचान और उसके काव्य सौंदर्य को समझने में मदद करते हैं।

निष्कर्ष

रूपक अलंकार काव्य का एक महत्वपूर्ण अर्थालंकार है, जो उपमेय और उपमान के पूर्ण तादात्म्य से कविता को बिंबात्मक, गहन, और रमणीय बनाता है। इसके प्रकार, जैसे संनादति, संगलति, और सांनादिक रूपक, काव्य में विविधता लाते हैं। कक्षा 9 की क्षितिज भाग-1 की कविताएँ, जैसे मेघ आए, ग्राम श्री, और सवैये, रूपक के सौंदर्य और प्रभाव को स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं। रूपक के अध्ययन से छात्र काव्य की कल्पनाशीलता, बिंबात्मक शैली, और सौंदर्य को गहराई से समझ सकते हैं।

Leave a Comment