10th Hindi Surykaant Tripathi Nirala Utsaah :
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘
जीवन-परिचय
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन् 1899 में बंगाल के महिषादल में हुआ। वे मूलतः उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोला गाँव के निवासी थे। उनकी औपचारिक शिक्षा नौवीं कक्षा तक महिषादल में हुई। इसके बाद उन्होंने स्वाध्याय से संस्कृत, बांग्ला, और अंग्रेज़ी का ज्ञान अर्जित किया। वे संगीत और दर्शनशास्त्र के गहरे अध्येता थे। रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद की विचारधारा ने उनके जीवन और साहित्य पर गहरा प्रभाव डाला।
निराला का पारिवारिक जीवन दुखों और संघर्षों से भरा था। आत्मीय जनों के असामयिक निधन ने उन्हें भावनात्मक रूप से तोड़ दिया। साहित्यिक क्षेत्र में भी उन्होंने अनवरत संघर्ष किया। उनका देहांत सन् 1961 में हुआ।
साहित्यिक योगदान
निराला हिंदी साहित्य के छायावाद के प्रमुख कवि, उपन्यासकार, कहानीकार, आलोचक, और निबंधकार थे। उनकी रचनाएँ दार्शनिकता, विद्रोह, प्रेम, और प्रकृति के उदात्त चित्रण के लिए जानी जाती हैं। उनकी रचनाएँ निराला रचनावली के आठ खंडों में संकलित हैं।
प्रमुख काव्य-रचनाएँ:
- अनामिका
- परिमल
- गीतिका
- कुकुरमुत्ता
- नए पत्ते
अन्य रचनाएँ:
- उपन्यास: अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरुपमा, चमेली की शादी।
- कहानी संग्रह: लिली, सखी, सुकुल की बीवी।
- आलोचना और निबंध: प्रबंध-पद्म, प्रबंध-प्रतिभा, रवींद्र-कविता-कानन।
साहित्य की विशेषताएँ
- छायावाद और नवाचार:
- निराला छायावाद के प्रमुख कवि थे, जिन्होंने सबसे पहले मुक्त छंद का प्रयोग किया, जिससे कविता के शिल्प में क्रांति आई।
- उनकी कविता में प्रकृति का विराट और उदात्त चित्रण, प्रेम की तरलता, और दार्शनिक गहराई दिखती है।
- विद्रोही स्वभाव:
- उनकी रचनाओं में शोषित, उपेक्षित, और पीड़ित वर्ग के प्रति गहरी सहानुभूति और शोषक वर्ग व सत्ता के प्रति प्रचंड विरोध का भाव है।
- उनकी कविताएँ सामाजिक अन्याय और विसंगतियों के खिलाफ विद्रोह का स्वर बुलंद करती हैं।
- विविधता:
- निराला की रचनाओं में दार्शनिकता, क्रांति, प्रेम, और प्रकृति का समन्वय है।
- उनकी कविता में भाव-जगत और शिल्प-जगत में नए प्रयोग दिखते हैं।
- भाषा और शैली:
- उनकी भाषा में संस्कृतनिष्ठ हिंदी, ब्रज, और खड़ी बोली का मिश्रण है।
- मुक्त छंद के साथ-साथ पारंपरिक छंदों का भी उपयोग किया।
- उनकी शैली में भावात्मक तीव्रता, प्रतीकात्मकता, और लाक्षणिकता है।
महत्व
- छायावाद का विकास: निराला ने छायावाद को नई दिशा दी और मुक्त छंद के प्रयोग से काव्य-शिल्प में नवीनता लाई।
- सामाजिक चेतना: उनकी रचनाएँ शोषित वर्ग की आवाज बनीं और सामाजिक सुधार की प्रेरणा दीं।
- बहुमुखी प्रतिभा: कविता, कहानी, उपन्यास, और आलोचना में उनकी ख्याति अविस्मरणीय है।
- प्रभाव: उनकी रचनाओं ने आधुनिक हिंदी साहित्य को समृद्ध किया और प्रगतिशील विचारधारा को बल दिया।
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘: उत्साह और अट नहीं रही है
उत्साह: कविता का परिचय
उत्साह सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की एक प्रसिद्ध आह्वान गीत शैली की कविता है, जो बादल को संबोधित करती है। निराला के लिए बादल एक प्रिय विषय है, जो उनके काव्य में बार-बार प्रकट होता है। इस कविता में बादल दोहरी भूमिका निभाता है:
- पीड़ित-प्यासे जन की आकांक्षा का पूरक: बादल वर्षा के माध्यम से प्यासे लोगों और सूखी धरती को राहत देता है।
- क्रांति और विप्लव का प्रतीक: बादल नई कल्पना, नए अंकुर, और सामाजिक बदलाव के लिए विध्वंस और क्रांति की चेतना को प्रेरित करता है।
विशेषताएँ:
- ललित कल्पना और क्रांति-चेतना:
- कविता में छायावादी ललित कल्पना का सुंदर चित्रण है, जहाँ बादल प्रकृति का सौंदर्य और शक्ति दोनों दर्शाता है।
- साथ ही, यह क्रांति और सामाजिक बदलाव की प्रेरणा देता है, जो निराला के विद्रोही स्वभाव को प्रतिबिंबित करता है।
- नवजीवन और नूतन कविता:
- निराला बादल को नवजीवन का प्रतीक मानते हैं, जो समाज में नई चेतना और साहित्य में नूतन कविता का संदेश लाता है।
- सामाजिक क्रांति में साहित्य की भूमिका को कवि ने बादल के प्रतीक के माध्यम से रेखांकित किया है।
- मुक्त छंद:
- निराला ने इस कविता में मुक्त छंद का प्रयोग किया, जो उनकी काव्य-शैली की नवीनता को दर्शाता है।
- प्रकृति और समाज का समन्वय:
- कवि जीवन को व्यापक और समग्र दृष्टि से देखता है, जहाँ बादल प्रकृति और समाज दोनों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
अट नहीं रही है: कविता का परिचय
अट नहीं रही है निराला की एक और छायावादी कविता है, जो फागुन (वसंत ऋतु) की मादकता और सर्वव्यापक सौंदर्य को चित्रित करती है। यह कविता कवि के मन की प्रसन्नता और प्रकृति के उल्लास को व्यक्त करती है।
विशेषताएँ:
- फागुन का सौंदर्य:
- कविता में फागुन की सुंदरता को अनेक संदर्भों में दर्शाया गया है। यह ऋतु मन की प्रसन्नता का प्रतीक है, जो हर ओर सौंदर्य और उल्लास बिखेरती है।
- कवि का मन जब प्रसन्न होता है, तो उसे हर जगह फागुन का ही सौंदर्य दिखाई देता है।
- ललित शब्द-चयन:
- निराला ने सुंदर और भावपूर्ण शब्दों का चयन किया है, जो कविता को फागुन की तरह ही ललित और आकर्षक बनाता है।
- कविता में छायावादी शैली की कोमलता और प्रतीकात्मकता स्पष्ट है।
- प्रकृति और मन का समन्वय:
- कविता में प्रकृति (फागुन) और मानव मन की भावनाओं का सुंदर मिश्रण है। फागुन का उल्लास कवि के हृदय की मादकता को प्रतिबिंबित करता है।
साहित्यिक विशेषताएँ
- छायावाद की विशेषताएँ:
- दोनों कविताएँ छायावादी शैली में हैं, जिनमें प्रकृति, प्रतीकात्मकता, और भावात्मक गहराई प्रमुख है।
- उत्साह में बादल का प्रतीकात्मक चित्रण क्रांति और सौंदर्य को जोड़ता है, जबकि अट नहीं रही है में फागुन की मादकता मन की उमंग को व्यक्त करती है।
- मुक्त छंद और शिल्प:
- निराला ने मुक्त छंद का प्रयोग कर काव्य-शिल्प में नवीनता लाई, जो उनकी रचनाओं को पारंपरिक छंदों से मुक्त और लयबद्ध बनाता है।
- सामाजिक चेतना:
- उत्साह में सामाजिक क्रांति और शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति का भाव है, जो निराला के विद्रोही स्वभाव को दर्शाता है।
- अट नहीं रही है में व्यक्तिगत और प्रकृतिगत सौंदर्य का चित्रण है, जो कवि की संवेदनशीलता को उजागर करता है।
- भाषा:
- निराला की भाषा में संस्कृतनिष्ठ हिंदी, ब्रज, और खड़ी बोली का मिश्रण है।
- शब्दों का चयन ललित, भावपूर्ण, और प्रतीकात्मक है, जैसे “मादकता”, “नवजीवन”, और “नूतन कविता”।
महत्व
- उत्साह: यह कविता निराला के क्रांतिकारी दृष्टिकोण और साहित्य में सामाजिक बदलाव की भूमिका को रेखांकित करती है। बादल का प्रतीक कविता को प्रकृति और क्रांति का सुंदर समन्वय बनाता है।
- अट नहीं रही है: यह कविता छायावाद की सौंदर्यपरकता और मन की उमंग को व्यक्त करती है, जो फागुन के उल्लास के साथ कवि की संवेदनशीलता को जोड़ती है।
- निराला का योगदान: दोनों कविताएँ निराला की बहुमुखी प्रतिभा, छायावादी शैली, और सामाजिक चेतना को दर्शाती हैं।
उत्साह: सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘
मूल पाठ
बादल, गरजो!
घेर घेर घोर गगन, धराधार ओ !
ललित-ललित, काले घुँघराले,
बाल कल्पना के से पाले,
विद्युत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज्र छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो-
बादल, गरजो!
विकल विकल उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा,जल से फिर
शीतल कर दो-
बादल, गरजो!
संदर्भ
उत्साह निराला की एक प्रसिद्ध आह्वान गीत शैली की कविता है, जो बादल को संबोधित करती है। यह कविता छायावाद की विशेषताओं—ललित कल्पना, प्रतीकात्मकता, और भावात्मक तीव्रता—के साथ-साथ निराला के क्रांतिकारी और सामाजिक दृष्टिकोण को दर्शाती है। बादल यहाँ दोहरे प्रतीक के रूप में है: यह प्यासे और पीड़ित जन की आकांक्षा को पूरा करता है और साथ ही क्रांति, विध्वंस, और नवजीवन का प्रतीक है।
भावार्थ
- बादल का आह्वान:
कवि बादल को “गरजो” कहकर उत्साहपूर्वक पुकारते हैं। बादल को “ललित-बाल-घन-के-से काले घुँघराले” और “विद्युत-छबि उर में” कहकर उसका सौंदर्य और शक्ति चित्रित करते हैं। यह बादल कवि के लिए नवजीवन और नूतन कविता का प्रतीक है। - क्रांति और नवजीवन:
बादल में “वज्र छिपा” है, जो क्रांति और विध्वंस की शक्ति का प्रतीक है। कवि बादल से आग्रह करते हैं कि वह “नूतन कविता” (नए विचार और साहित्यिक चेतना) को प्रेरित करे। - प्यासे जन और तप्त धरती:
विश्व के “निदाघ” (ग्रीष्म की तपन) से पीड़ित और “विकल” (व्याकुल) जन बादल से राहत की उम्मीद करते हैं। कवि बादल को “अनंत के घन” कहकर उसकी अनंत शक्ति और अज्ञात दिशा से आने वाली प्रेरणा का वर्णन करते हैं। वे बादल से तप्त धरती को जल से शीतल करने की प्रार्थना करते हैं। - सामाजिक और साहित्यिक संदेश:
बादल केवल प्रकृति का तत्व नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति और नवजीवन का प्रतीक है। यह शोषित और पीड़ित जन की आकांक्षाओं को पूरा करने और समाज में बदलाव लाने की प्रेरणा देता है।
साहित्यिक विशेषताएँ
- छायावादी शैली:
- कविता में छायावाद की ललित कल्पना और प्रतीकात्मकता स्पष्ट है। उदाहरण: “ललित-बाल-घन-के-से काले घुँघराले” और “विद्युत-छबि उर में”।
- प्रकृति (बादल) के माध्यम से मानवीय भावनाओं और सामाजिक चेतना का चित्रण।
- मुक्त छंद:
- निराला ने मुक्त छंद का प्रयोग किया, जो कविता को लयबद्ध और स्वतंत्र बनाता है।
- प्रतीक और बिंब:
- बादल: क्रांति, नवजीवन, और राहत का प्रतीक।
- विद्युत: शक्ति और प्रेरणा का बिंब।
- वज्र: विध्वंस और क्रांति का प्रतीक।
- निदाघ और तप्त धरा: शोषण और पीड़ा का प्रतीक।
- भाषा:
- संस्कृतनिष्ठ हिंदी: “उन्मन”, “निदाघ”, “अनंत के घन” जैसे शब्द।
- ललित शब्द-चयन: “काले घुँघराले”, “ललित-बाल-घन” जैसे भावपूर्ण शब्द।
- आह्वान शैली: “बादल, गरजो!” में उत्साह और प्रेरणा की तीव्रता।
- सामाजिक चेतना:
- कविता शोषित जन की पीड़ा और सामाजिक क्रांति की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
- निराला का विद्रोही स्वभाव “वज्र छिपा” और “नूतन कविता” जैसे प्रतीकों में झलकता है।
महत्व
- उत्साह निराला की छायावादी और क्रांतिकारी दृष्टि का सुंदर समन्वय है। यह कविता प्रकृति के सौंदर्य और सामाजिक बदलाव की प्रेरणा को जोड़ती है।
- बादल का प्रतीक कविता को बहुआयामी बनाता है, जो प्रकृति, साहित्य, और समाज तीनों को संबोधित करता है।
- निराला का मुक्त छंद और नवीन शिल्प हिंदी काव्य में एक क्रांति का प्रतीक है।
अट नहीं रही है: सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘
मूल पाठ
अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन सट नहीं रही है।
कहीं साँस लेते हो, घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ त हट नहीं रही है।
पत्तों से लदी डाल कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में मंद-गंध-पुष्प-माल,
शोभा-श्री पाट-पाट पट नहीं रही है।
अट नहीं रही है।
संदर्भ
अट नहीं रही है सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की एक छायावादी कविता है, जो फागुन (वसंत ऋतु) की सर्वव्यापक सुंदरता और मादकता को चित्रित करती है। यह कविता कवि के प्रसन्न मन और प्रकृति के उल्लास को व्यक्त करती है। फागुन का सौंदर्य और उसका प्रभाव इतना गहरा है कि वह कवि के मन, तन, और आँखों से “अट” नहीं रहा, अर्थात् उसका प्रभाव कहीं रुकता नहीं और हर जगह व्याप्त है।
भावार्थ
- फागुन की मादकता:
कवि कहते हैं कि फागुन की सुंदरता और आभा उनके तन-मन से सट रही है और वह कहीं रुक नहीं रही। यह सौंदर्य सर्वव्यापी है और हर जगह फैल रहा है। - प्रकृति का उल्लास:
- फागुन की साँसें हर घर को भर देती हैं, जैसे वह जीवन और उमंग का संदेश लाती हो।
- यह उड़ने को आतुर है और आकाश में पंख फैलाकर (पर-पर) हर दिशा में अपनी शोभा बिखेरती है।
- कवि की आँखें इस सौंदर्य से हटाना चाहती हैं, पर यह सौंदर्य “हट नहीं रही है”, अर्थात् यह मन को बाँधे रखता है।
- प्रकृति का चित्रण:
- पत्तों से लदी डालियाँ हरी और लाल रंगों में सजी हैं, जो वसंत की विविधता और सौंदर्य को दर्शाती हैं।
- “मंद-गंध-पुष्प-माल” कवि के हृदय में सुगंध और सौंदर्य की माला बनकर बस जाती है।
- फागुन की शोभा और श्री (सौंदर्य और वैभव) हर ओर “पाट-पाट” (हर तरफ) फैली है और रुकने का नाम नहीं लेती।
- मन और प्रकृति का समन्वय:
कविता में फागुन का सौंदर्य कवि के प्रसन्न मन का प्रतीक है। यह सौंदर्य केवल बाहरी नहीं, बल्कि कवि के अंतर्मन को भी आल्हादित करता है।
साहित्यिक विशेषताएँ
- छायावादी शैली:
- कविता में छायावाद की ललित कल्पना, प्रतीकात्मकता, और भावात्मक सूक्ष्मता स्पष्ट है।
- फागुन का सौंदर्य प्रकृति और मानव मन की भावनाओं का समन्वय दर्शाता है।
- उदाहरण: “आभा फागुन की तन सट नहीं रही है” में फागुन की सर्वव्यापकता और मन की उमंग का चित्रण।
- मुक्त छंद:
- निराला ने मुक्त छंद का प्रयोग किया, जो कविता को स्वतंत्र और लयबद्ध बनाता है।
- कविता की लय फागुन की उमंग और गति को प्रतिबिंबित करती है।
- बिंब और प्रतीक:
- आभा फागुन की: वसंत की मादकता और सौंदर्य का प्रतीक।
- पत्तों से लदी डाल कहीं हरी, कहीं लाल: प्रकृति की विविधता और रंगबिरंगी शोभा।
- मंद-गंध-पुष्प-माल: मन में बसी सुगंध और सौंदर्य की भावना।
- पाट-पाट: सौंदर्य की सर्वव्यापकता।
- भाषा:
- संस्कृतनिष्ठ हिंदी: “आभा”, “शोभा-श्री”, “मंद-गंध” जैसे शब्द।
- ललित शब्द-चयन: “पर-पर”, “पाट-पाट”, “उर में” जैसे भावपूर्ण शब्द कविता को मादक और आकर्षक बनाते हैं।
- संगीतमयता: कविता की लय और शब्दों का चयन फागुन की उमंग को जीवंत करता है।
- अलंकार:
- उपमा: “पत्तों से लदी डाल कहीं हरी, कहीं लाल” में प्रकृति की तुलना रंगीन डालियों से।
- अनुप्रास: “सट नहीं रही है”, “पाट-पाट पट नहीं रही है” में ध्वनि की पुनरावृत्ति।
- प्रतीक: फागुन का सौंदर्य मन की प्रसन्नता और जीवन की उमंग का प्रतीक।
महत्व
- अट नहीं रही है निराला की छायावादी शैली की उत्कृष्ट कविता है, जो प्रकृति और मानव मन की संवेदनाओं का सुंदर समन्वय प्रस्तुत करती है।
- फागुन का चित्रण कविता को उल्लासपूर्ण और ललित बनाता है, जो कवि की संवेदनशीलता और सौंदर्यबोध को दर्शाता है।
- कविता में निराला का प्रकृति-प्रेम और भावात्मक गहराई छायावाद की विशेषताओं को उजागर करती है।
प्रश्न-अभ्यास: उत्साह और अट नहीं रही है (सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’)
उत्साह: प्रश्न-अभ्यास
1. कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने‘ के लिए कहता है, क्यों?
कवि बादल से “गरजने” के लिए कहता है, क्योंकि गरजना बादल की शक्ति, उग्रता, और क्रांतिकारी स्वरूप को दर्शाता है। “फुहार” या “रिमझिम” जैसे शब्द कोमलता और सौम्यता का प्रतीक हैं, जबकि “गरजो” में विध्वंस, क्रांति, और नवजीवन की प्रेरणा का भाव निहित है। निराला बादल को केवल वर्षा का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक और साहित्यिक बदलाव का प्रतीक मानते हैं। “गरजो” का आह्वान कवि की क्रांतिकारी चेतना और शोषित जन की आकांक्षाओं को जगाने की पुकार को दर्शाता है।
2. कविता का शीर्षक ‘उत्साह‘ क्यों रखा गया है?
कविता का शीर्षक “उत्साह” इसलिए रखा गया है, क्योंकि यह कविता कवि के अंतर्मन में उमड़ते उत्साह, प्रेरणा, और क्रांतिकारी भाव को व्यक्त करती है। बादल का आह्वान “गरजो” कवि की ऊर्जा और नवजीवन की आकांक्षा को दर्शाता है। यह उत्साह केवल प्रकृति की शक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक बदलाव, नूतन कविता, और पीड़ित जन की राहत के लिए प्रेरणा का प्रतीक है। कविता का स्वर और भाव उत्साहपूर्ण और प्रेरणादायक हैं, जो शीर्षक को सार्थक बनाते हैं।
3. कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है?
कविता में बादल निम्नलिखित अर्थों की ओर संकेत करता है:
- प्रकृतिक शक्ति: बादल वर्षा के माध्यम से तप्त धरती और प्यासे जन को शीतलता प्रदान करता है।
- क्रांति का प्रतीक: “वज्र छिपा” और “नूतन कविता” के माध्यम से बादल सामाजिक और साहित्यिक क्रांति का प्रतीक है।
- नवजीवन का संदेशवाहक: यह नवीन प्रेरणा और जीवन की नई शुरुआत का प्रतीक है।
- सौंदर्य और शक्ति का समन्वय: “ललित-बाल-घन-के-से काले घुँघराले” और “विद्युत-छबि” जैसे बिंब बादल के सौंदर्य और शक्ति को दर्शाते हैं।
- शोषित जन की आकांक्षा: बादल “विकल विश्व के निदाघ के सकल जन” की पीड़ा को दूर करने का प्रतीक है।
4. शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।
नाद-सौंदर्य कविता में ध्वन्यात्मक प्रभाव और लय पैदा करने वाले शब्दों से उत्पन्न होता है। उत्साह कविता में नाद-सौंदर्य के उदाहरण निम्नलिखित हैं:
- बादल, गरजो!: “गरजो” शब्द में गर्जना की तीव्रता और लय है, जो क्रांति और शक्ति का भाव पैदा करता है।
- ललित-बाल-घन-के-से काले घुँघराले: “घुँघराले” में ध्वनि की लय और सौंदर्य का चित्रण है।
- वज्र छिपा: “वज्र” शब्द में कठोरता और शक्ति की ध्वनि है।
- उन्मन, विकल विकल: “विकल विकल” की पुनरावृत्ति में व्याकुलता और लयात्मक प्रभाव है।
- अनंत के घन: “घन” शब्द बादल की गंभीरता और ध्वनि को व्यक्त करता है।
ये शब्द कविता में शक्ति, सौंदर्य, और क्रांति के भाव को ध्वन्यात्मक रूप से जीवंत करते हैं।
रचना और अभिव्यक्ति
5. जैसे बादल उमड़-घुमड़कर बारिश करते हैं वैसे ही कवि के अंतर्मन में भी भावों के बादल उमड़-घुमड़कर कविता के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। ऐसे ही किसी प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अपने उमड़ते भावों को कविता में उतारिए।
कविता: सूरज की किरण
सूरज की किरण, उज्ज्वल, सुनहरी,
नभ में बिखरती, जैसे स्वप्न गहरी।
पत्तों पर थिरकती, चमकती बिंदिया,
हर फूल में बसती, सौंदर्य की बिंदिया।
पंछी गीत गाते, उषा की बाहों में,
नदिया लहर लहराए, मधुर संनादों में।
मेरे मन में उमड़े, उजाले के सपने,
सूरज की किरण बने, जीवन के अपने।
विवरण: सूरज की किरण का सौंदर्य देखकर मेरे मन में उमंग और प्रेरणा जागी। यह कविता प्रकृति के उजाले और जीवन की आशा को व्यक्त करती है, जैसे बादल वर्षा के रूप में प्रकट होते हैं।
पाठेतर सक्रियता
बादलों पर अनेक कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन करें और उनका चित्रांकन भी कीजिए।
- संकलन:
- निराला की “उत्साह”: बादल को क्रांति और नवजीवन का प्रतीक बनाकर प्रस्तुत किया गया।
- सुमित्रानंदन पंत की “मेघ आए”: बादल को प्रेम और सौंदर्य के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया।
- जयशंकर प्रसाद की “आकाश–गंगा”: बादल और वर्षा को प्रकृति की शोभा के रूप में दर्शाया गया।
- रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की “मेघदूत”: बादल को संदेशवाहक के रूप में चित्रित किया गया।
- चित्रांकन:
- एक कैनवास पर गहरे नीले और काले रंगों से बादलों को उमड़ते-घुमड़ते चित्रित करें।
- बादलों के बीच बिजली की चमक (सफेद और पीली रेखाएँ) और वर्षा की बूँदें बनाएँ।
- पृष्ठभूमि में तप्त धरती (भूरा रंग) और उस पर हरियाली (हरे रंग की डालियाँ) दिखाएँ।
- कविता की पंक्तियाँ, जैसे “बादल, गरजो!” या “ललित-बाल-घन-के-से काले घुँघराले”, को चित्र के किनारे सुलेख में लिखें।
अट नहीं रही है: प्रश्न-अभ्यास
1. छायावाद की एक खास विशेषता है अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।
छायावाद की विशेषता अंतर्मन और बाह्य प्रकृति के बीच सामंजस्य है। निम्नलिखित पंक्तियाँ इस धारणा को पुष्ट करती हैं:
- “आभा फागुन की तन सट नहीं रही है”: फागुन की बाह्य सुंदरता कवि के तन-मन से सट रही है, जो अंतर्मन की प्रसन्नता को दर्शाता है।
- “कहीं साँस लेते हो, घर-घर भर देते हो”: फागुन की साँसें (प्रकृति) कवि के मन और समाज में उल्लास भरती हैं।
- “पत्तों से लदी डाल कहीं हरी, कहीं लाल, कहीं पड़ी है उर में मंद-गंध-पुष्प-माल”: प्रकृति की डालियाँ और फूलों की सुगंध कवि के हृदय (उर) में बसती हैं, जो बाह्य और अंतर्मन के सामंजस्य को दिखाता है।
ये पंक्तियाँ प्रकृति के सौंदर्य और कवि के मन की उमंग के बीच गहरा तालमेल दर्शाती हैं।
2. कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?
कवि की आँख फागुन की सुंदरता से इसलिए नहीं हट रही, क्योंकि फागुन का सौंदर्य सर्वव्यापी, मादक, और मन को बाँधने वाला है। पंक्ति “आँख हटाता हूँ त हट नहीं रही है” दर्शाती है कि फागुन की शोभा इतनी आकर्षक है कि कवि का मन उससे मुक्त नहीं हो पाता। फागुन की हरियाली, रंगबिरंगी डालियाँ, और मंद सुगंध कवि के अंतर्मन को आल्हादित करती हैं, जिससे उनकी नजरें बार-बार उसी सौंदर्य की ओर खिंचती हैं।
3. प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है?
कवि ने प्रकृति की व्यापकता को निम्नलिखित रूपों में चित्रित किया है:
- आभा और उमंग: “आभा फागुन की तन सट नहीं रही है” में फागुन की सर्वव्यापी शोभा और उमंग।
- साँसों का प्रभाव: “कहीं साँस लेते हो, घर-घर भर देते हो” में फागुन की साँसें हर घर और मन को उल्लास से भर देती हैं।
- आकाश में उड़ान: “उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो” में फागुन की गति और आकाश में फैलता सौंदर्य।
- रंगबिरंगी प्रकृति: “पत्तों से लदी डाल कहीं हरी, कहीं लाल” में प्रकृति की विविधता और रंग।
- सुगंध और फूल: “मंद-गंध-पुष्प-माल” में फूलों की सुगंध और सौंदर्य।
- शोभा-श्री: “शोभा-श्री पाट-पाट पट नहीं रही है” में प्रकृति की सर्वत्र फैली शोभा।
4. फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है?
फागुन (वसंत ऋतु) में प्रकृति का सौंदर्य और उल्लास बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है, क्योंकि:
- सर्वव्यापी उमंग: फागुन में हरियाली, फूलों की सुगंध, और रंगबिरंगी डालियाँ प्रकृति को जीवंत बनाती हैं, जो मन को आल्हादित करती हैं।
- नवजीवन का प्रतीक: फागुन नवीन पत्तियों, फूलों, और हरियाली के साथ नए जीवन का संदेश देता है, जो अन्य ऋतुओं में कम देखने को मिलता है।
- मादकता: फागुन की “मंद-गंध” और “शोभा-श्री” में एक मादक आकर्षण है, जो मन को बाँध लेता है।
- सामाजिक उल्लास: फागुन में होली जैसे उत्सव मनाए जाते हैं, जो सामाजिक एकता और आनंद को बढ़ाते हैं, जो अन्य ऋतुओं में कम होता है।
5. इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।
निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- मुक्त छंद: दोनों कविताओं में मुक्त छंद का प्रयोग, जो काव्य को स्वतंत्र और लयबद्ध बनाता है। उदाहरण: “बादल, गरजो!” और “अट नहीं रही है” की लय।
- प्रतीकात्मकता: बादल (उत्साह) में क्रांति और नवजीवन का प्रतीक, फागुन (अट नहीं रही है) में उमंग और सौंदर्य का प्रतीक।
- ललित शब्द-चयन: “काले घुँघराले”, “मंद-गंध-पुष्प-माल”, “शोभा-श्री” जैसे भावपूर्ण शब्द।
- नाद-सौंदर्य: “विकल विकल”, “पाट-पाट” जैसे शब्दों में ध्वन्यात्मक लय।
- प्रकृति और मन का समन्वय: दोनों कविताएँ प्रकृति (बादल, फागुन) और अंतर्मन की भावनाओं को जोड़ती हैं।
- सामाजिक चेतना: उत्साह में शोषित जन और क्रांति का भाव, जबकि अट नहीं रही है में व्यक्तिगत उमंग और सौंदर्य।
- छायावादी लालित्य: दोनों कविताओं में छायावादी सूक्ष्मता, बिंब, और भावात्मक गहराई।
रचना और अभिव्यक्ति
6. होली के आसपास प्रकृति में जो परिवर्तन दिखाई देते हैं, उन्हें लिखिए।
होली के आसपास (फागुन-चैत मास) प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन दिखाई देते हैं:
- हरियाली और फूल: वृक्षों पर नई पत्तियाँ और रंगबिरंगे फूल खिलते हैं, जैसे टेसू और पलाश के फूल।
- मादक सुगंध: फूलों की सुगंध हवा में फैलती है, जो मन को आनंदित करती है।
- विविध रंग: प्रकृति हरे, लाल, और पीले रंगों से सजती है, जो होली के रंगों से मेल खाती है।
- मौसम की मधुरता: ठंड और गर्मी का संतुलित मौसम, जो उमंग और उत्साह को बढ़ाता है।
- पक्षियों का गान: कोयल और अन्य पक्षियों की मधुर आवाज़ें प्रकृति को जीवंत बनाती हैं।
- नवजीवन का प्रतीक: पेड़-पौधों में नई कोंपलें और फूल नवजीवन का संदेश देते हैं।
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘: पाठेतर सक्रियता और शब्द-संपदा
पाठेतर सक्रियता
फागुन में गाए जाने वाले गीत जैसे होरी, फाग आदि के बारे में जानिए।
फागुन मास (वसंत ऋतु) में होली के अवसर पर गाए जाने वाले गीत, जैसे होरी, फाग, और अन्य लोकगीत, भारतीय संस्कृति और लोक-संगीत का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इनके बारे में विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है:
- होरी:
- परिभाषा: होरी एक पारंपरिक लोकगीत है, जो होली के उत्सव में गाया जाता है। यह विशेष रूप से ब्रज क्षेत्र (मथुरा, वृंदावन) से जुड़ा है और कृष्ण-राधा के प्रेम, रंग, और खेल को चित्रित करता है।
- विशेषताएँ:
- इसमें प्रेम, छेड़छाड़, और हास्य का मिश्रण होता है।
- राग काफी, पीलू, या जोगिया में गाया जाता है।
- ढोलक, मंजीरा, और हारमोनियम जैसे वाद्ययंत्रों के साथ प्रस्तुत किया जाता है।
- उदाहरण:
“होरी खेलत नंदलाल बिरज में, रंग भरे पिचकारी…” - प्रचलन: उत्तर प्रदेश, राजस्थान, और अन्य क्षेत्रों में ग्रामीण और शहरी दोनों जगह लोकप्रिय।
- फाग:
- परिभाषा: फाग गीत फागुन की मस्ती, रंगों, और सामाजिक एकता को व्यक्त करते हैं। ये होली के उल्लास को बढ़ाते हैं।
- विशेषताएँ:
- हास्य, व्यंग्य, और प्रेम की भावनाएँ प्रमुख होती हैं।
- समूह में गाए जाते हैं, अक्सर नृत्य के साथ।
- अवधी, भोजपुरी, और ब्रज भाषा में प्रचलित।
- उदाहरण:
“फागुन के दिन चार, होली खेले नंदकुमार…” - प्रचलन: उत्तर भारत में होली के जुलूसों और समारोहों में गाए जाते हैं।
- अन्य गीत:
- राग-रंग: राग बसंत जैसे शास्त्रीय रागों पर आधारित, होली के रंग और उत्सव को दर्शाते हैं।
- जोगीरा: हास्यपूर्ण और छेड़छाड़ वाले गीत, जो प्रश्न-उत्तर शैली में गाए जाते हैं।
- उदाहरण: “जोगीरा सरारारा, तान तनन तनन…”
- चौताल: भोजपुरी लोकगीत, जो समूह में होली की मस्ती को व्यक्त करते हैं।
सांस्कृतिक महत्व:
- ये गीत होली के उत्सव में आनंद, एकता, और भक्ति को बढ़ाते हैं।
- मंडलियों, मंदिरों, या गाँव के चौराहों पर नृत्य और रंगों के साथ प्रस्तुत किए जाते हैं।
- उत्तर भारत, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, और राजस्थान की सांस्कृतिक पहचान को दर्शाते हैं।
सुझाव:
- संकलन: लोकगीत संग्रह पुस्तकों या ऑनलाइन स्रोतों से होरी और फाग गीतों के बोल एकत्र करें।
- प्रस्तुति: ढोलक या हारमोनियम के साथ समूह में इन गीतों का अभ्यास करें।
- अध्ययन: शुभा मुद्गल या पं. छन्नूलाल मिश्र जैसे कलाकारों की होरी और फाग की रिकॉर्डिंग सुनें।
शब्द-संपदा
शब्द | अर्थ |
धाराधर | बादल |
उन्मन | कहीं मन न टिकने की स्थिति, अनमनापन |
निदाघ | गर्मी |
सकल | सब, सारे |
आभा | चमक |
वज्र | कठोर, भीषण |
अट | समाना, प्रविष्ट |
पाट-पाट | जगह-जगह |
शोभा-श्री | सौंदर्य से भरपूर |
पट | समा नहीं रही है |
कविता का अंश और विश्लेषण
कविता: अट नहीं रही है (विस्तारित अंश)
फूटे हैं आमों में बौर
भौंर वन-वन टूटे हैं।
होली मची ठौर-ठौर,
सभी बंधन
फागुन के रंग राग, बाग-वन फाग मचा है,
भर गये मोती के झाग,
जनों के मन लूटे हैं।
माथे अबीर से लाल,
गाल सेंदुर के देखे,
आँखें हुई हैं गुलाल,
गेरू के ढेले कूटे हैं।
रच गई है, ऐसी आभा
भावार्थ:
- फूटे हैं आमों में बौर, भौंर वन-वन टूटे हैं: आम के पेड़ों पर बौर (फूल) खिल रहे हैं और भौंरे जंगलों में मस्ती से गूँज रहे हैं, जो वसंत की जीवंतता को दर्शाता है।
- होली मची ठौर-ठौर, सभी बंधन: होली हर जगह (ठौर-ठौर) उत्साह से मनाई जा रही है, जो सामाजिक और व्यक्तिगत बंधनों को तोड़ती है।
- फागुन के रंग राग, बाग-वन फाग मचा है: फागुन के रंग और संगीत (राग) बगीचों और जंगलों में होली की मस्ती फैला रहे हैं।
- भर गये मोती के झाग: मोती जैसे झाग की तरह उमंग और आनंद हर ओर फैल गया है।
- जनों के मन लूटे हैं: लोगों के मन फागुन की मस्ती और रंगों में खो गए हैं।
- माथे अबीर से लाल, गाल सेंदुर के देखे, आँखें हुई हैं गुलाल: माथा अबीर से, गाल सेंदूर से, और आँखें गुलाल से रंगी हैं, जो होली के रंगों का जीवंत चित्रण है।
- गेरू के ढेले कूटे हैं: होली के लिए प्राकृतिक रंग (गेरू) तैयार किए गए हैं।
- रच गई है, ऐसी आभा: फागुन और होली ने ऐसी मनमोहक चमक (आभा) पैदा की है, जो सबको मंत्रमुग्ध कर देती है।
साहित्यिक विशेषताएँ:
- छायावादी शैली: कविता में फागुन की बाह्य सुंदरता और कवि के अंतर्मन की उमंग का सामंजस्य छायावाद की विशेषता को दर्शाता है।
- नाद-सौंदर्य: “ठौर-ठौर”, “रंग राग”, “मोती के झाग” जैसे शब्दों में ध्वनि की लय और उत्सव की मस्ती झलकती है।
- बिंब: “मोती के झाग”, “आँखें हुई हैं गुलाल” जैसे बिंब होली के रंग और उमंग को जीवंत करते हैं।
- मुक्त छंद: कविता की स्वतंत्र लय फागुन की अनबंध मस्ती को प्रतिबिंबित करती है।
- प्रकृति और उत्सव का समन्वय: फागुन की प्राकृतिक शोभा (बौर, भौंरे) और होली का सामाजिक उल्लास एक साथ चित्रित हैं।