10th Hindi nagarjun yah danturit Muskan fasal :
नागार्जुन : जीवन-परिचय
नागार्जुन का जन्म सन् 1911 में बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में हुआ। उनका मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत पाठशाला में हुई। बाद में उन्होंने बनारस और कलकत्ता (कोलकाता) में अध्ययन किया। सन् 1936 में वे श्रीलंका गए, जहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म में दीक्षा ली। दो वर्ष वहाँ रहने के बाद सन् 1938 में वे भारत लौटे।
नागार्जुन का स्वभाव घुमक्कड़ और अक्खड़ था। उन्होंने कई बार संपूर्ण भारत की यात्रा की। सन् 1998 में उनका देहांत हो गया।
साहित्यिक योगदान
नागार्जुन हिंदी और मैथिली साहित्य के प्रमुख कवि, उपन्यासकार, और गद्य लेखक थे। उनकी रचनाएँ लोकजीवन, सामाजिक विसंगतियों, और राजनैतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ सशक्त आवाज उठाती हैं। उनका संपूर्ण कृतित्व नागार्जुन रचनावली के सात खंडों में प्रकाशित है।
प्रमुख काव्य-कृतियाँ:
- युगधारा
- सतरंगे पंखों वाली
- हज़ार-हज़ार बाँहों वाली
- तुमने कहा था
- पुरानी जूतियों का कोरस
- आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने
- मैं मिलटरी का बूढ़ा घोड़ा
अन्य रचनाएँ:
- उपन्यास: रतिनाथ की चाची, बाबा बटेसरनाथ, बलचनमा, नई पौध।
- गद्य: संस्मरण, यात्रा-वृत्तांत, और आलोचना।
भाषाएँ:
- हिंदी और मैथिली में समान रूप से लेखन।
- मैथिली में वे ‘यात्री’ उपनाम से विख्यात हैं।
- बांग्ला और संस्कृत में भी कविताएँ लिखीं।
पुरस्कार और सम्मान
- हिंदी अकादमी, दिल्ली: शिखर सम्मान
- उत्तर प्रदेश: भारत भारती पुरस्कार
- बिहार: राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार
- साहित्य अकादेमी पुरस्कार: मैथिली कविता के लिए
साहित्य की विशेषताएँ
- लोकजीवन से जुड़ाव:
- नागार्जुन की रचनाएँ ग्रामीण जीवन, किसानों, और मजदूरों की पीड़ा को व्यक्त करती हैं।
- उनकी भाषा सरल, सहज, और लोक-संस्कृति से ओतप्रोत है।
- व्यंग्य की धार:
- भ्रष्टाचार, राजनीतिक स्वार्थ, और सामाजिक पतन पर तीखा व्यंग्य।
- उदाहरण: “पुरानी जूतियों का कोरस” में सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार।
- जनवादी दृष्टिकोण:
- उनकी कविताएँ शोषित और उपेक्षित वर्ग की आवाज बनती हैं।
- सामाजिक अन्याय और शोषण के खिलाफ सशक्त विरोध।
- भाषा और शैली:
- लोकभाषा: हिंदी और मैथिली में लोक-शब्दों और मुहावरों का प्रयोग।
- सादगी: उनकी भाषा सहज और प्रभावशाली है।
- प्रतीकात्मकता: सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों को प्रतीकों के माध्यम से प्रस्तुत करना।
- राजनैतिक सक्रियता:
- नागार्जुन ने सामाजिक और राजनैतिक आंदोलनों में सक्रिय भाग लिया।
- उनकी राजनैतिक सक्रियता के कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा।
महत्व
- जनकवि: नागार्जुन को ‘जनकवि’ कहा जाता है, क्योंकि उनकी रचनाएँ आम जनता की भावनाओं और संघर्षों को व्यक्त करती हैं।
- लोक और शास्त्र का समन्वय: उनकी रचनाओं में लोक-संस्कृति और दार्शनिक चिंतन का सुंदर मिश्रण है।
- बहुभाषी योगदान: हिंदी, मैथिली, बांग्ला, और संस्कृत में लेखन ने उन्हें बहुआयामी साहित्यकार बनाया।
- सामाजिक जागरूकता: उनकी रचनाएँ समाज में बदलाव और जागरूकता की प्रेरणा देती हैं।
नागार्जुन: यह दंतुरित मुसकान और फसल
नागार्जुन को आधुनिक कबीर कहा जाता है, क्योंकि उनकी कविताएँ सामाजिक विसंगतियों, भ्रष्टाचार, और शोषण पर तीखा व्यंग्य करती हैं, ठीक वैसे ही जैसे कबीर ने अपने दोहों में किया। छायावादोत्तर दौर के वे एकमात्र कवि हैं, जिनकी रचनाएँ गाँव की चौपालों और साहित्यिक मंचों पर समान रूप से लोकप्रिय रहीं। उनकी आंदोलनधर्मी कविताओं ने सामयिक बोध को गहराई से व्यक्त किया, जिससे उन्हें व्यापक जन-समर्थन मिला। वे वास्तविक जनकवि हैं।
नागार्जुन ने छंदबद्ध और मुक्त छंद दोनों में काव्य-रचना की। उनकी भाषा लोक-संस्कृति से जुड़ी, सरल, और प्रभावशाली है, जो सामान्य जन तक आसानी से पहुँचती है।
यह दंतुरित मुसकान: कविता का परिचय
यह दंतुरित मुसकान नागार्जुन की एक कोमल और भावपूर्ण कविता है, जिसमें एक छोटे बच्चे की मनोहारी मुसकान को केंद्र में रखा गया है।
विशेषताएँ:
- भाव और बिंब:
- कवि बच्चे की दंतुरित मुसकान (दिखाई देने वाले छोटे दाँतों वाली हँसी) को देखकर अभिभूत है। इस मुसकान में जीवन का संदेश छिपा है।
- मुसकान की सुंदरता को अनेक बिंबों (प्रतीकों) के माध्यम से व्यक्त किया गया है, जैसे नज़रों का बाँकपन (आँखों की चंचलता)।
- यह मुसकान इतनी मोहक है कि कठोर से कठोर मन भी पिघल जाए।
- सौंदर्य की व्याप्ति:
- बच्चे की मुसकान की सुंदरता सर्वव्यापी है, जो हर दिल को छू लेती है।
- नज़रों का बाँकपन इसकी आकर्षकता को और बढ़ाता है, जो कविता को भावनात्मक गहराई देता है।
- लोक-संवेदना:
- कविता में नागार्जुन की लोक-संवेदना झलकती है, जो साधारण जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को गहनता से चित्रित करती है।
- भाषा और शैली:
- सरल और बोलचाल की भाषा, जो पाठक के हृदय तक सीधे पहुँचती है।
- कोमल और लयबद्ध शैली, जो बच्चे की मुसकान की मासूमियत को उजागर करती है।
फसल: कविता का परिचय
फसल कविता में नागार्जुन ने कृषि-संस्कृति और प्रकृति-मनुष्य के सहयोग को केंद्र में रखा है। यह कविता फसल के सृजन की प्रक्रिया को गहराई से दर्शाती है।
विशेषताएँ:
- फसल का अर्थ और सृजन:
- “फसल” शब्द सुनते ही लहलहाते खेत आँखों के सामने आते हैं, लेकिन कविता यह बताती है कि फसल केवल अनाज नहीं, बल्कि प्रकृति और मानव श्रम का संयुक्त प्रयास है।
- फसल के सृजन में प्रकृति (सूर्य, जल, मिट्टी) और मनुष्य (किसान का परिश्रम) का योगदान महत्वपूर्ण है।
- प्रकृति और मनुष्य का सहयोग:
- कविता रेखांकित करती है कि सृजन के लिए प्रकृति और मनुष्य का तालमेल आवश्यक है।
- यह उपभोक्ता-संस्कृति के दौर में कृषि-संस्कृति की महत्ता को उजागर करती है।
- भाषा और लय:
- बोलचाल की भाषा का उपयोग, जो कविता को सहज और प्रभावशाली बनाता है।
- लयबद्ध शैली, जो कृषि कार्य की गति और मेहनत को प्रतिबिंबित करती है।
- सामाजिक संदेश:
- कविता उपभोक्ता-संस्कृति के प्रभुत्व में कृषि और किसान के महत्व को पुनः स्थापित करती है।
- यह सामाजिक जागरूकता और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती है।
साहित्यिक विशेषताएँ
- लोक-संवेदना:
- दोनों कविताएँ लोक-जीवन से गहराई से जुड़ी हैं। यह दंतुरित मुसकान बच्चे की मासूमियत को, और फसल किसान की मेहनत को चित्रित करती हैं।
- व्यंग्य और संवेदना का समन्वय:
- जहाँ नागार्जुन की अन्य कविताएँ व्यंग्य में माहिर हैं, वहीं इन कविताओं में कोमल संवेदना और सौंदर्यबोध प्रमुख है।
- प्रतीकात्मकता:
- यह दंतुरित मुसकान में बच्चे की हँसी जीवन की सादगी और आनंद का प्रतीक है।
- फसल में फसल प्रकृति-मनुष्य सहयोग और सृजन का प्रतीक है।
- भाषा:
- सरल, सहज, और लोकभाषा से युक्त।
- बोलचाल के शब्द और मुहावरे कविताओं को जनसामान्य के करीब लाते हैं।
- छायावादोत्तर यथार्थवाद:
- नागार्जुन की कविताएँ छायावाद की काल्पनिकता से हटकर यथार्थवादी और जनवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं।
महत्व
- यह दंतुरित मुसकान: यह कविता नागार्जुन की संवेदनशीलता को दर्शाती है, जो साधारण जीवन की सुंदरता को उजागर करती है। बच्चे की मुसकान के माध्यम से यह जीवन की आशा और सकारात्मकता का संदेश देती है।
- फसल: यह कविता कृषि-संस्कृति की महत्ता और प्रकृति-मनुष्य के सहयोग को रेखांकित करती है। यह उपभोक्ता-संस्कृति के युग में पर्यावरण और किसान के योगदान पर ध्यान आकर्षित करती है।
- नागार्जुन का योगदान: उनकी कविताएँ सामाजिक जागरूकता, लोक-संवेदना, और यथार्थवादी दृष्टिकोण के लिए जानी जाती हैं, जो उन्हें आधुनिक कबीर और जनकवि बनाती हैं।
यह दंतुरित मुसकान: नागार्जुन
मूल पाठ
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात…
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में
खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े
शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?
तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो? आँख लूँ मैं फेर?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती
आज मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होतीं जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!
यह दंतुरित मुसकान: नागार्जुन
संदर्भ
यह दंतुरित मुसकान नागार्जुन की एक संवेदनशील और भावपूर्ण कविता है, जिसमें एक छोटे बच्चे की मासूम, दंतुरित मुसकान (दिखाई देने वाले छोटे दाँतों वाली हँसी) को केंद्र में रखा गया है। कविता लोक-जीवन की सादगी, प्रकृति की सुंदरता, और मानवीय रिश्तों की कोमलता को चित्रित करती है। बच्चे की मुसकान में ऐसी शक्ति और आकर्षण है कि वह कठोर हृदय को भी पिघला देती है और जीवन को आनंद से भर देती है। यह कविता नागार्जुन की जनवादी दृष्टि और छायावादोत्तर यथार्थवाद की विशेषताओं को दर्शाती है।
भावार्थ
- मुसकान की जीवनदायिनी शक्ति:
- “तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान मृतक में भी डाल देगी जान”: बच्चे की मुसकान इतनी प्रभावशाली है कि वह मृतप्राय व्यक्ति में भी जीवन का संचार कर सकती है। यह मुसकान आशा, जीवन, और सकारात्मकता का प्रतीक है।
- सादगी और ग्रामीण जीवन:
- “धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात”: बच्चे का शरीर धूल से सना हुआ है, जो उसकी सादगी और ग्रामीण जीवन से गहरा जुड़ाव दर्शाता है। यह सादगी कवि के लिए आकर्षक और प्रेरणादायक है।
- प्रकृति और बच्चे का समन्वय:
- “छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात”: बच्चा तालाब के कमल (जलजात) को छोड़कर कवि की साधारण झोंपड़ी में आया है, और उसकी उपस्थिति से झोंपड़ी में भी कमल की तरह सुंदरता खिल उठी है। यह प्रकृति और मानव जीवन के सौंदर्य का समन्वय है।
- मुसकान का कोमल प्रभाव:
- “परस पाकर तुम्हारा ही प्राण, पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण”: बच्चे की मुसकान और उसके स्पर्श (परस) में ऐसी शक्ति है कि कठोर पत्थर भी पिघलकर जल की तरह कोमल हो जाता है। यह मुसकान की भावनात्मक गहराई को दर्शाता है।
- प्रकृति का सौंदर्य:
- “छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल”: बच्चे के स्पर्श से शेफालिका (हरसिंगार) के फूल झरने लगते हैं, जो प्रकृति की संवेदनशीलता और बच्चे के सौंदर्य का मेल दर्शाता है।
- “बाँस था कि बबूल?”: कवि बच्चे से मजाकिया अंदाज में पूछता है कि क्या वह बाँस या बबूल जैसे कठोर पेड़ से बना है, जो उसकी चंचलता और मासूमियत को हल्के-फुल्के ढंग से व्यक्त करता है।
- परिचय की अनभिज्ञता:
- “तुम मुझे पाए नहीं पहचान?”: कवि बच्चे से पूछता है कि क्या वह उसे नहीं पहचानता, जो उनकी अनौपचारिक और आत्मीय बातचीत को दर्शाता है।
- “देखते ही रहोगे अनिमेष! थक गए हो? आँख लूँ मैं फेर?”: बच्चा कवि को एकटक देख रहा है, और कवि मजाक में पूछता है कि क्या वह थक गया है या कवि अपनी नजर हटाए। यह पंक्ति बच्चे की जिज्ञासा और मासूमियत को उजागर करती है।
- माँ का महत्व:
- “यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज मैं न सकता देख”: बच्चे की माँ ने कवि और बच्चे के बीच मुलाकात संभव की, जिसके कारण कवि इस मुसकान को देख सका।
- “धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!”: कवि बच्चे और उसकी माँ दोनों की सराहना करता है, जो मातृत्व और बच्चे की मासूमियत के प्रति सम्मान दर्शाता है।
- कवि का परिचय और आत्म-चिंतन:
- “चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!”: कवि स्वयं को एक सतत यात्री (प्रवासी) और भिन्न (अन्य) बताता है, जो उसकी घुमक्कड़ प्रकृति और समाज से कुछ हटकर होने का भाव व्यक्त करता है।
- “इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क”: कवि, जो एक अतिथि है, बच्चे से अपने संबंध की अनौपचारिकता पर विचार करता है।
- मधुर रिश्ता:
- “उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क”: माँ की उँगलियाँ बच्चे के माध्यम से कवि का स्वागत (मधुपर्क) करती हैं, जो आतिथ्य और स्नेह का प्रतीक है।
- “देखते तुम इधर कनखी मार और होतीं जब कि आँखें चार”: बच्चा चंचलता से कनखियों से देखता है, और जब दोनों की आँखें मिलती हैं, तब उसकी दंतुरित मुसकान और भी छविमान (आकर्षक) लगती है।
साहित्यिक विशेषताएँ
- लोक-संवेदना:
- कविता में ग्रामीण जीवन की सादगी, बच्चे की मासूमियत, और माँ-बच्चे के रिश्ते को चित्रित किया गया है।
- “धूलि-धूसर गात” और “मेरी झोंपड़ी” जैसे शब्द लोक-जीवन से गहरा जुड़ाव दिखाते हैं।
- प्रतीक और बिंब:
- दंतुरित मुसकान: जीवन, आशा, और सौंदर्य का प्रतीक।
- जलजात (कमल): शुद्धता और सुंदरता का बिंब।
- शेफालिका के फूल: प्रकृति की संवेदनशीलता और सौंदर्य।
- पिघलकर जल बन गया कठिन पाषाण: कठोरता से कोमलता में परिवर्तन का बिंब।
- भाषा और शैली:
- बोलचाल की भाषा: “बाँस था कि बबूल?”, “आँख लूँ मैं फेर?” जैसे वाक्य सहज और आत्मीय हैं।
- लयबद्धता: कविता की पंक्तियाँ लयात्मक हैं, जो भावनाओं को प्रभावशाली बनाती हैं।
- संस्कृतनिष्ठ शब्द: “धूलि-धूसर”, “जलजात”, “मधुपर्क” जैसे शब्द साहित्यिक गहराई देते हैं।
- हास्य और चंचलता: बच्चे से मजाकिया संवाद कविता को जीवंत बनाता है।
- छायावादोत्तर यथार्थवाद:
- कविता छायावाद की काल्पनिकता से हटकर यथार्थवादी है, जो साधारण जीवन की सुंदरता को उजागर करती है।
- बच्चे की मुसकान के माध्यम से कवि जीवन की सकारात्मकता पर जोर देते हैं।
- अलंकार:
- उपमा: “मृतक में भी डाल देगी जान” में मुसकान की तुलना जीवनदायिनी शक्ति से।
- रूपक: “पिघलकर जल बन गया कठिन पाषाण” में कठोर हृदय का जल में परिवर्तन।
- अनुप्रास: “धूलि-धूसर”, “कनखी मार” में ध्वनि की पुनरावृत्ति।
- प्रश्नोक्ति: “बाँस था कि बबूल?”, “थक गए हो?” जैसे प्रश्न हास्य और आत्मीयता पैदा करते हैं।
महत्व
- यह दंतुरित मुसकान नागार्जुन की कोमल और संवेदनशील रचनात्मकता को दर्शाती है। यह साधारण जीवन की छोटी-छोटी खुशियों में छिपे सौंदर्य को उजागर करती है।
- बच्चे की मुसकान के माध्यम से कविता जीवन की आशा, सादगी, और मानवीय संवेदना का संदेश देती है।
- यह कविता नागार्जुन के व्यंग्यात्मक और आंदोलनधर्मी लेखन से भिन्न है, जो उनकी रचनाओं की विविधता को प्रदर्शित करती है।
- कविता लोक-संस्कृति, प्रकृति, और रिश्तों की महत्ता को रेखांकित करती है, जो इसे जनसामान्य के लिए प्रिय बनाती है।
फसल मूल पाठ – नागार्जुन
एक की नहीं,
दो की नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू
एक की नहीं,
दो की नहीं,
लाख लाख कोटी कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा
एक की नहीं,दो की नहीं,
हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुणधर्म।
फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं, है वह
नदियों के पानी का जादू,
हाथों के स्पर्श की महिमा,
भूरी, काली, संदली मिट्टी का गुणधर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का,
हवा की थिरकन का सिमटा हुआ संकोच।
संदर्भ
फसल नागार्जुन की एक जनवादी और यथार्थवादी कविता है, जो कृषि-संस्कृति की महत्ता और प्रकृति-मानव सहयोग को चित्रित करती है। कविता में फसल को केवल अनाज के रूप में नहीं, बल्कि प्रकृति के तत्वों (पानी, मिट्टी, सूरज, हवा) और मानव श्रम के संयुक्त सृजन के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह कविता उपभोक्ता-संस्कृति के दौर में कृषि और किसान के महत्व को रेखांकित करती है। नागार्जुन की लोक-संवेदना और सहज भाषा कविता को प्रभावशाली बनाती है।
भावार्थ
- फसल का सृजन:
- “एक की नहीं, दो की नहीं, ढेर सारी नदियों के पानी का जादू”: फसल केवल एक या दो नदियों के पानी से नहीं बनती, बल्कि असंख्य नदियों के जल का जादू इसमें समाहित है।
- “लाख लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा”: फसल में अनगिनत किसानों के हाथों का श्रम और मेहनत शामिल है, जो इसके सृजन की गरिमा को बढ़ाता है।
- “हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुणधर्म”: फसल विभिन्न खेतों की मिट्टी के गुणों का परिणाम है, जो इसकी विविधता और विशेषता को दर्शाता है।
- फसल की परिभाषा:
- “फसल क्या है? और तो कुछ नहीं”: कवि फसल को साधारण शब्दों में परिभाषित करता है, लेकिन उसकी गहराई को प्रकट करता है।
- फसल नदियों के पानी का जादू, हाथों के स्पर्श की महिमा, और मिट्टी का गुणधर्म है।
- यह सूरज की किरणों का रूपांतर और हवा की थिरकन का सिमटा हुआ संकोच (सौंदर्य और गति) है।
- प्रकृति और मानव का सहयोग:
- कविता में फसल को प्रकृति (पानी, मिट्टी, सूरज, हवा) और मानव श्रम के समन्वय का प्रतीक बताया गया है।
- यह सहयोग सृजन की प्रक्रिया को दर्शाता है, जो जीवन और संस्कृति का आधार है।
- कृषि-संस्कृति की महत्ता:
- कविता उपभोक्ता-संस्कृति के युग में कृषि की महत्ता को पुनः स्थापित करती है।
- फसल केवल भोजन नहीं, बल्कि प्रकृति और मानव की मेहनत का सांस्कृतिक प्रतीक है।
साहित्यिक विशेषताएँ
- लोक-संवेदना:
- कविता में किसान और कृषि-जीवन की महत्ता को चित्रित किया गया है, जो नागार्जुन की लोक-संवेदना को दर्शाता है।
- “लाख लाख कोटि-कोटि हाथों” जैसे शब्द सामूहिक श्रम की गरिमा को उजागर करते हैं।
- प्रतीक और बिंब:
- नदियों का पानी: जीवन और सृजन का प्रतीक।
- हाथों का स्पर्श: मानव श्रम और मेहनत का बिंब।
- मिट्टी का गुणधर्म: प्रकृति की विविधता और शक्ति का प्रतीक।
- सूरज की किरणें और हवा की थिरकन: प्रकृति की ऊर्जा और सौंदर्य का बिंब।
- भाषा और शैली:
- बोलचाल की भाषा: “एक की नहीं, दो की नहीं” जैसे दोहराव युक्त वाक्य सहज और लयबद्ध हैं।
- लयात्मकता: कविता की पंक्तियाँ गीतात्मक हैं, जो कृषि कार्य की गति को प्रतिबिंबित करती हैं।
- सादगी और प्रभावशीलता: “भूरी, काली, संदली मिट्टी” जैसे शब्द ग्रामीण जीवन की सादगी को दर्शाते हैं।
- छायावादोत्तर यथार्थवाद:
- कविता छायावाद की काल्पनिकता से हटकर यथार्थवादी है।
- यह फसल के सृजन की प्रक्रिया को वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करती है।
- अलंकार:
- पुनरावृत्ति: “एक की नहीं, दो की नहीं” का दोहराव कविता को प्रभावशाली और लयबद्ध बनाता है।
- रूपक: “नदियों के पानी का जादू” और “हवा की थिरकन का सिमटा हुआ संकोच” में फसल को प्रकृति के तत्वों के रूप में चित्रित किया गया है।
- अनुप्रास: “लाख लाख कोटि-कोटि” में ‘ल’ और ‘क’ की ध्वनि की पुनरावृत्ति।
- जनवादी दृष्टिकोण:
- कविता में किसानों के श्रम की गरिमा और प्रकृति के योगदान को सम्मान दिया गया है।
- यह उपभोक्ता-संस्कृति के सामने कृषि-संस्कृति की श्रेष्ठता को स्थापित करती है।
महत्व
- फसल कविता नागार्जुन की जनवादी दृष्टि और लोक-संवेदना का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह फसल को केवल भोजन के रूप में नहीं, बल्कि प्रकृति और मानव के सहयोग का प्रतीक बनाती है।
- कविता कृषि-संस्कृति की महत्ता को रेखांकित करती है और उपभोक्ता-संस्कृति के दौर में पर्यावरण और किसान के योगदान पर ध्यान आकर्षित करती है।
- सहज भाषा और लयबद्ध शैली कविता को आम जन तक पहुँचाने में सफल बनाती है।
- यह कविता सामाजिक जागरूकता और प्रकृति के प्रति सम्मान का संदेश देती है।
प्रश्न-अभ्यास: यह दंतुरित मुसकान (नागार्जुन)
प्रश्नोत्तर
1. बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
बच्चे की दंतुरित मुसकान कवि के मन पर गहरा और सकारात्मक प्रभाव डालती है। यह मुसकान कवि के हृदय को आनंद, प्रेरणा, और जीवन-ऊर्जा से भर देती है। कविता में निम्नलिखित प्रभाव स्पष्ट हैं:
- जीवनदायिनी शक्ति: “मृतक में भी डाल देगी जान” पंक्ति से पता चलता है कि यह मुसकान कवि के मन को जीवंत और उत्साहित करती है।
- कठोरता का पिघलना: “पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण” से कवि का कठोर या उदास मन बच्चे की मुसकान से कोमल और भावुक हो जाता है।
- प्रकृति से जुड़ाव: बच्चे की मुसकान कवि को प्रकृति की सुंदरता (जलजात, शेफालिका के फूल) से जोड़ती है, जिससे उनके मन में सौंदर्यबोध जाग्रत होता है।
- आत्मीयता और स्नेह: बच्चे की चंचलता और कनखियों से देखने का अंदाज कवि के मन में स्नेह और आत्मीयता का भाव उत्पन्न करता है।
2. बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?
बच्चे की मुसकान और बड़े व्यक्ति की मुसकान में निम्नलिखित अंतर हैं:
- निश्छलता: बच्चे की मुसकान निश्छल, स्वाभाविक, और निर्मल होती है, जबकि बड़े व्यक्ति की मुसकान में अक्सर औपचारिकता, बनावट, या छिपे भाव (जैसे व्यंग्य, दुख) हो सकते हैं।
- प्रभाव: बच्चे की मुसकान, जैसा कि कविता में कहा गया है, “मृतक में भी जान डाल” सकती है, क्योंकि यह मासूम और शुद्ध होती है। बड़े व्यक्ति की मुसकान में यह गहन प्रभाव कम ही देखने को मिलता है।
- चंचलता: बच्चे की मुसकान में कनखियों का बाँकपन और चंचलता होती है, जो कवि को “छविमान” लगती है। बड़े व्यक्ति की मुसकान में ऐसी चंचलता और सहजता कम होती है।
- प्रेरणा: बच्चे की मुसकान जीवन, आशा, और सादगी का प्रतीक है, जबकि बड़े व्यक्ति की मुसकान में जीवन के अनुभव, थकान, या जटिल भावनाएँ झलक सकती हैं।
3. कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है?
कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को निम्नलिखित बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है:
- जलजात (कमल): “छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात” में बच्चे की मुसकान को कमल की तरह शुद्ध और सुंदर बताया गया है, जो कवि की साधारण झोंपड़ी में भी सौंदर्य बिखेरती है।
- शेफालिका के फूल: “छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल” में बच्चे का स्पर्श और मुसकान प्रकृति की सुंदरता (हरसिंगार के फूल) को उभारती है।
- पिघलता पाषाण: “पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण” में मुसकान की शक्ति को कठोर पत्थर को जल की तरह कोमल करने वाले बिंब से दर्शाया गया है।
- कनखी का बाँकपन: “देखते तुम इधर कनखी मार” में बच्चे की चंचल नजरें और मुसकान को आकर्षक और “छविमान” बताया गया है।
- जीवनदायिनी शक्ति: “मृतक में भी डाल देगी जान” में मुसकान को जीवन और ऊर्जा प्रदान करने वाले बिंब के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
4. भाव स्पष्ट कीजिए:
(क) छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात।
- भाव: इस पंक्ति में कवि बच्चे की उपस्थिति और उसकी मुसकान के प्रभाव को चित्रित करता है। बच्चा तालाब के कमल (जलजात) जैसे सुंदर और शुद्ध सौंदर्य को छोड़कर कवि की साधारण झोंपड़ी में आया है। उसकी मुसकान और मासूमियत से कवि का साधारण जीवन भी कमल की तरह सुंदर और जीवंत हो उठा है। यह पंक्ति बच्चे की मुसकान के सौंदर्य और उसके परिवर्तनकारी प्रभाव को दर्शाती है, जो साधारण स्थान को भी असाधारण बना देता है।
(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल, बाँस था कि बबूल?
- भाव: इस पंक्ति में बच्चे के स्पर्श और मुसकान की जादुई शक्ति को प्रकृति के साथ जोड़ा गया है। बच्चे के छूने मात्र से शेफालिका (हरसिंगार) के फूल झरने लगते हैं, जो प्रकृति की संवेदनशीलता और बच्चे के सौंदर्य का समन्वय दर्शाता है। “बाँस था कि बबूल?” में कवि मजाकिया और आत्मीय अंदाज में बच्चे से पूछता है कि क्या वह कठोर बाँस या बबूल जैसा है, जबकि उसकी मुसकान और स्पर्श कोमल और प्रभावशाली हैं। यह पंक्ति बच्चे की चंचलता, मासूमियत, और प्रकृति से उसके गहरे जुड़ाव को व्यक्त करती है।
रचना और अभिव्यक्ति
5. मुसकान और क्रोध भिन्न-भिन्न भाव हैं। इनकी उपस्थिति से बने वातावरण की भिन्नता का चित्रण कीजिए।
मुसकान:
- वातावरण: मुसकान से वातावरण सकारात्मक, आनंदमय, और आत्मीय हो जाता है। यह स्नेह, शांति, और एकता का भाव पैदा करती है।
- प्रभाव: जैसे कविता में बच्चे की मुसकान “मृतक में भी जान डाल देती है”, वैसे ही यह तनाव को कम करती है और लोगों के बीच प्रेम बढ़ाती है।
- उदाहरण: एक बच्चे की हँसी से घर में खुशी की लहर दौड़ जाती है, और सभी के चेहरे खिल उठते हैं।
क्रोध:
- वातावरण: क्रोध से वातावरण तनावपूर्ण, भयावह, और नकारात्मक हो जाता है। यह दूरी, वैमनस्य, और अशांति पैदा करता है।
- प्रभाव: क्रोध लोगों के बीच गलतफहमियाँ बढ़ाता है और रिश्तों में कटुता लाता है। यह मन को अशांत और शरीर को तनावग्रस्त करता है।
- उदाहरण: किसी की ऊँची आवाज या गुस्सा भरे शब्द कमरे में सन्नाटा और भय पैदा कर सकते हैं।
भिन्नता: मुसकान वातावरण को हल्का, सौहार्दपूर्ण, और प्रेरणादायक बनाती है, जबकि क्रोध इसे भारी, तनावपूर्ण, और विघटनकारी बनाता है। मुसकान जीवन को सुंदर बनाती है, वहीं क्रोध उसे जटिल और दुखद।
6. दंतुरित मुसकान से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाइए और तर्क सहित उत्तर दीजिए।
अनुमान: बच्चे की उम्र 6 महीने से 2 वर्ष के बीच हो सकती है।
तर्क:
- दंतुरित मुसकान: “दंतुरित” शब्द का अर्थ है छोटे-छोटे दाँतों वाली मुसकान। शिशुओं में दाँत आमतौर पर 6-12 महीने की उम्र में निकलने शुरू होते हैं। इस उम्र में उनके दाँत छोटे और आंशिक रूप से दिखाई देते हैं, जो “दंतुरित” शब्द से मेल खाता है।
- चंचलता और कनखी: कविता में बच्चे की “कनखी मार” और चंचल नजरों का जिक्र है, जो 1-2 वर्ष के बच्चे की जिज्ञासु और चंचल प्रकृति को दर्शाता है। इस उम्र में बच्चे आसपास की चीजों को उत्सुकता से देखते हैं और हल्की-फुल्की हरकतें करते हैं।
- माँ का सहारा: “उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क” से पता चलता है कि बच्चा माँ के सहारे या गोद में है, जो छोटी उम्र (2 वर्ष तक) के बच्चों की विशेषता है।
इसलिए, “दंतुरित मुसकान” और बच्चे की चंचलता के आधार पर उसकी उम्र 6 महीने से 2 वर्ष के बीच अनुमानित है।
7. बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
कवि की एक छोटे बच्चे से मुलाकात एक आत्मीय और हृदयस्पर्शी क्षण है। कवि अपनी साधारण झोंपड़ी में बैठा है, जब एक धूल-धूसरित बच्चा, जिसके छोटे-छोटे दाँतों वाली मुसकान चमक रही है, उसकी माँ के साथ वहाँ आता है। बच्चे की मासूम हँसी कवि के मन को तुरंत मोह लेती है, जैसे कोई कमल उसकी झोंपड़ी में खिल उठा हो। बच्चा कवि को उत्सुकता और चंचलता से कनखियों से देखता है, और उसकी नजरें मिलने पर उसकी मुसकान और भी आकर्षक लगती है। कवि मजाकिया अंदाज में बच्चे से पूछता है, “बाँस था कि बबूल?”, जिससे बातचीत में हल्कापन आता है। माँ बच्चे को गोद में लिए हुए है, और उसकी उँगलियाँ बच्चे के माध्यम से कवि का स्वागत करती हैं, जैसे कोई मधुपर्क अर्पित हो। बच्चे का स्पर्श और मुसकान इतने प्रभावशाली हैं कि कवि का मन पिघल जाता है, और वह प्रकृति की सुंदरता (शेफालिका के फूल) से जोड़कर इस मुलाकात को अविस्मरणीय मानता है। यह मुलाकात सादगी, स्नेह, और जीवन की छोटी खुशियों का सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है।
“फसल” प्रश्नोत्तर
1. कवि के अनुसार फसल क्या है?
कवि के अनुसार फसल केवल अन्न के दाने नहीं है, बल्कि यह नदियों के जल का जादू, हाथों के श्रम की गरिमा, मिट्टी के गुण-धर्म, सूरज की किरणों का रूपांतर और हवा की थिरकन का सिमटा हुआ संकोच है। यह अनेक तत्वों के सम्मिलित प्रयास और प्रकृति व मनुष्य की सामूहिक क्रिया का परिणाम है।
2. कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्वों की बात कही गई है। वे आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?
कविता के अनुसार फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्व निम्नलिखित हैं:
- नदियों का जल
- मेहनतकश हाथों का स्पर्श
- भूरी, काली, संदली मिट्टी का गुण-धर्म
- सूरज की किरणें
- हवा की थिरकन
3. फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है?
कवि ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ के माध्यम से यह कहना चाहता है कि फसल केवल प्राकृतिक संसाधनों का परिणाम नहीं है, बल्कि इसमें किसानों के श्रम, तपस्या और लगन की भी विशेष भूमिका है। उनके स्पर्श से बीज अंकुरित होते हैं, पौधे बढ़ते हैं और अंततः फसल तैयार होती है। यह श्रम की पवित्रता और गरिमा को दर्शाता है।
4. भाव स्पष्ट कीजिए —
(क) “रूपांतर है सूरज की किरणों का”
यह पंक्ति दर्शाती है कि फसल केवल मिट्टी और बीज से नहीं बनती, बल्कि उसमें सूर्य की ऊष्मा और ऊर्जा समाहित होती है। बीज में जीवन देने वाली शक्ति सूर्य की किरणों से ही आती है। इस प्रकार फसल सूर्य का एक सुंदर रूपांतर है।
(ख) “सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!”
यह पंक्ति अत्यंत काव्यात्मक है। इसमें हवा की मद्धम गति, उसकी कोमलता और पौधों को छूती हुई उसकी गति को ‘सिमटा हुआ संकोच’ कहा गया है। यह दर्शाता है कि फसल में हवा की भूमिका भी नाज़ुक किन्तु आवश्यक है — जैसे एक शर्मीली सहेली पौधे को जीवनदायिनी स्पर्श देती है।
रचना और अभिव्यक्ति
5. कवि ने फसल को हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म कहा है —
(क) मिट्टी के गुण-धर्म को आप किस तरह परिभाषित करेंगे?
मिट्टी का गुण-धर्म उसकी उर्वरता, जलधारण क्षमता, पोषक तत्त्वों की मात्रा और जीवंतता से जुड़ा होता है। मिट्टी में बीज को अंकुरित करने और पौधों को पोषण देने की क्षमता ही उसका मूल गुण-धर्म है।
(ख) वर्तमान जीवन शैली मिट्टी के गुण-धर्म को किस-किस तरह प्रभावित करती है?
वर्तमान जीवन शैली — जैसे रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग, अंधाधुंध निर्माण, प्लास्टिक और कचरे का फैलाव, जलवायु परिवर्तन — मिट्टी की उर्वरता और जैविक संतुलन को नष्ट कर रहे हैं। इससे मिट्टी की उत्पादकता घटती जा रही है।
(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में क्या किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना की जा सकती है?
नहीं, यदि मिट्टी अपना गुण-धर्म छोड़ दे तो न फसलें होंगी, न पेड़, न पशु, न मनुष्य। यह सम्पूर्ण जैविक जीवन को खतरे में डाल देगा। इस स्थिति में पृथ्वी पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती।
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है?
हमारी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है —
- जैविक खाद और पारंपरिक कृषि पद्धतियों का उपयोग
- वृक्षारोपण
- रासायनिक प्रदूषण से बचाव
- वर्षा जल संचयन
- मृदा परीक्षण और संरक्षण के उपाय
इन प्रयासों से हम मिट्टी के गुण-धर्म को संरक्षित व पोषित कर सकते हैं।