कक्षा 9 विज्ञान गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम : MP Board Class 9 Universal Law of Gravitation

MP Board Class 9 Universal Law of Gravitation

गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम (Universal Law of Gravitation)

गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम (Universal Law of Gravitation) भौतिकी का एक मौलिक नियम है जिसे सर आइजैक न्यूटन ने प्रतिपादित किया था। यह नियम बताता है कि ब्रह्मांड में प्रत्येक कण दूसरे प्रत्येक कण को एक बल से आकर्षित करता है।

1. नियम का कथन

गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम के अनुसार:

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“ब्रह्मांड में किन्हीं भी दो पिंडों के बीच लगने वाला आकर्षण बल उनके द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती होता है और उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।”

यह बल दोनों पिंडों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश कार्य करता है।

2. गणितीय निरूपण

3. सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक (G)

  • G एक आनुपातिकता स्थिरांक है जिसे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक कहा जाता है।
  • इसका मान पूरे ब्रह्मांड में स्थिर रहता है और यह पिंडों के द्रव्यमान, आकार या उनके बीच के माध्यम पर निर्भर नहीं करता।

4. गुरुत्वाकर्षण नियम का महत्व

गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम कई प्राकृतिक घटनाओं की व्याख्या करता है, जिनमें शामिल हैं:

  • पृथ्वी द्वारा हमें बांधे रखना: यही बल हमें पृथ्वी पर रखता है।
  • चंद्रमा का पृथ्वी के चारों ओर घूमना: गुरुत्वाकर्षण बल ही चंद्रमा को पृथ्वी के चारों ओर उसकी कक्षा में बनाए रखता है।
  • ग्रहों का सूर्य के चारों ओर घूमना: सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल ग्रहों को उसकी परिक्रमा करने के लिए आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल प्रदान करता है।
  • ज्वार-भाटा: चंद्रमा और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण समुद्र में ज्वार-भाटा (उच्च और निम्न ज्वार) आते हैं।
  • नदियों का नीचे की ओर बहना: गुरुत्वाकर्षण के कारण ही नदियाँ ऊँचे स्थानों से निचले स्थानों की ओर बहती हैं।

यह नियम खगोल विज्ञान और अंतरिक्ष अन्वेषण में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

मुक्त पतन (Free Fall)

मुक्त पतन भौतिकी की एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो गुरुत्वाकर्षण से संबंधित है। यह उस स्थिति को संदर्भित करता है जब कोई वस्तु केवल गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में गति करती है।

1. मुक्त पतन क्या है?

जब कोई वस्तु केवल पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में नीचे गिरती है और उस पर कोई अन्य बल (जैसे वायु प्रतिरोध) कार्य नहीं करता है, तो ऐसी गति को मुक्त पतन कहा जाता है।

वास्तविक अर्थों में मुक्त पतन केवल निर्वात (vacuum) में ही संभव है, जहाँ वायु प्रतिरोध अनुपस्थित होता है। दैनिक जीवन में, जब हम किसी वस्तु को गिराते हैं, तो उस पर वायु प्रतिरोध भी कार्य करता है, लेकिन यदि वायु प्रतिरोध नगण्य हो तो हम उसे लगभग मुक्त पतन मान सकते हैं।

2. मुक्त पतन की विशेषताएँ

  • केवल गुरुत्वाकर्षण बल: मुक्त पतन में वस्तु पर कार्य करने वाला एकमात्र बल गुरुत्वाकर्षण बल होता है।
  • त्वरण: मुक्त पतन के दौरान वस्तु एक स्थिर त्वरण से गति करती है, जिसे गुरुत्वीय त्वरण (g) कहते हैं।
  • द्रव्यमान से स्वतंत्रता: गुरुत्वीय त्वरण (g) वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है। इसका अर्थ है कि यदि एक भारी और एक हल्की वस्तु को निर्वात में एक ही ऊँचाई से गिराया जाए, तो वे दोनों एक ही समय पर पृथ्वी पर पहुँचेंगी (वायु प्रतिरोध की अनुपस्थिति में)।
  • वेग में परिवर्तन: गिरते समय वस्तु की गति की दिशा में कोई परिवर्तन नहीं होता है, लेकिन गुरुत्वाकर्षण के कारण उसके वेग का परिमाण लगातार बढ़ता जाता है।
  • गुरुत्वीय त्वरण (g) का मान:
    • पृथ्वी की सतह के निकट गुरुत्वीय त्वरण (g) का औसत मान लगभग 9.8 m/s2 होता है।
    • इसका SI मात्रक मीटर प्रति सेकंड स्क्वायर (m/s2) है।
    • g का मान पृथ्वी की सतह से ऊँचाई या गहराई के साथ घटता जाता है।
    • g का मान ध्रुवों पर अधिकतम और भूमध्य रेखा पर न्यूनतम होता है।

3. मुक्त पतन के समीकरण

मुक्त पतन के दौरान वस्तु की गति का वर्णन गति के समीकरणों का उपयोग करके किया जा सकता है, जहाँ त्वरण (a) को गुरुत्वीय त्वरण (g) से प्रतिस्थापित किया जाता है। यदि वस्तु ऊपर से नीचे गिर रही है, तो g को धनात्मक लिया जाता है और यदि वस्तु को ऊपर फेंका जा रहा है, तो g को ऋणात्मक लिया जाता है।

4. मुक्त पतन के उदाहरण

  • निर्वात में गिराया गया कोई भी पिंड।
  • अंतरिक्ष में, जब अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष यान में होते हैं, तो वे मुक्त पतन की स्थिति का अनुभव करते हैं, क्योंकि वे लगातार पृथ्वी के चारों ओर गिर रहे होते हैं।
  • एक ऊँची इमारत से गिराया गया पत्थर (यदि वायु प्रतिरोध को नगण्य माना जाए)।

गुरुत्वीय त्वरण (g) का परिकलन

गुरुत्वीय त्वरण (g) वह त्वरण है जो किसी वस्तु को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण प्राप्त होता है। इसका मान पृथ्वी के द्रव्यमान, त्रिज्या और सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक पर निर्भर करता है।

1. g के परिकलन का सूत्र

हम जानते हैं कि न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम के अनुसार, पृथ्वी और किसी वस्तु के बीच लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल (F) निम्न सूत्र द्वारा दिया जाता है:

न्यूटन के गति के दूसरे नियम के अनुसार किसी वस्तु पर लगने वाला बल उसके द्रव्यमान और उसमें उत्पन्न त्वरण के गुणनफल के बराबर होता है: F=ma

मुक्त पतन की स्थिति में, वस्तु में उत्पन्न त्वरण गुरुत्वीय त्वरण (g) होता है, इसलिए : F=mg

अब, गुरुत्वाकर्षण बल के सूत्र और गति के दूसरे नियम के सूत्र को बराबर करने पर:

दोनों ओर से वस्तु के द्रव्यमान (m) को हटाने पर, हमें गुरुत्वीय त्वरण (g) का सूत्र प्राप्त होता है:

2. g के मान का परिकलन (पृथ्वी के लिए)

पृथ्वी की सतह पर g का मान ज्ञात करने के लिए, हम उपरोक्त सूत्र में ज्ञात मानों को प्रतिस्थापित करते हैं:

3. g के मान में भिन्नता

यद्यपि g का औसत मान 9.8 m/s2 है, इसका मान पृथ्वी पर हर जगह समान नहीं होता है। इसमें कुछ भिन्नताएँ होती हैं, जो निम्न कारकों पर निर्भर करती हैं:

  • ऊँचाई: पृथ्वी की सतह से ऊँचाई बढ़ने पर g का मान घटता जाता है, क्योंकि दूरी (Re​) बढ़ जाती है।
  • गहराई: पृथ्वी की सतह के नीचे गहराई में जाने पर भी g का मान घटता है। पृथ्वी के केंद्र पर g का मान शून्य होता है।
  • पृथ्वी का आकार: पृथ्वी पूर्णतः गोलाकार नहीं है, बल्कि ध्रुवों पर थोड़ी चपटी और भूमध्य रेखा पर उभरी हुई है। इसलिए, ध्रुवों पर त्रिज्या (Re​) कम होने के कारण g का मान अधिकतम होता है, जबकि भूमध्य रेखा पर त्रिज्या अधिक होने के कारण g का मान न्यूनतम होता है।
  • पृथ्वी का घूर्णन: पृथ्वी के घूर्णन के कारण भी g के मान में थोड़ी कमी आती है, जो भूमध्य रेखा पर अधिक स्पष्ट होती है।

पृथ्वी के गुरुत्वीय बल के प्रभावों में वस्तुओं की गति

पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल एक अदृश्य शक्ति है जो सभी वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। इस बल के प्रभाव में वस्तुएँ एक विशेष तरीके से गति करती हैं। इस गति को समझने के लिए गुरुत्वीय त्वरण (g) की अवधारणा महत्वपूर्ण है।

1. गुरुत्वीय त्वरण (g)

जब कोई वस्तु केवल पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के अधीन गति करती है, तो उसमें एक त्वरण उत्पन्न होता है जिसे गुरुत्वीय त्वरण (g) कहते हैं।

  • मान: पृथ्वी की सतह के निकट g का औसत मान लगभग 9.8 m/s2 होता है।
  • दिशा: इसकी दिशा हमेशा पृथ्वी के केंद्र की ओर, यानी नीचे की ओर होती है।
  • द्रव्यमान से स्वतंत्रता: यह वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है। इसका अर्थ है कि भारी और हल्की वस्तुएँ (वायु प्रतिरोध की अनुपस्थिति में) एक ही दर से गिरती हैं।

2. मुक्त पतन (Free Fall)

यह वह स्थिति है जब कोई वस्तु केवल गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में गति करती है। मुक्त पतन में, वस्तु का वेग लगातार बढ़ता जाता है क्योंकि उस पर गुरुत्वीय त्वरण (g) कार्य करता है।

  • उदाहरण: एक ऊँचाई से गिराया गया पत्थर, एक सेब का पेड़ से गिरना।
  • आदर्श स्थिति: वास्तविक मुक्त पतन केवल निर्वात में संभव है, जहाँ वायु प्रतिरोध अनुपस्थित होता है।

3. ऊपर की ओर फेंकी गई वस्तुओं की गति

जब किसी वस्तु को ऊपर की ओर फेंका जाता है, तो गुरुत्वाकर्षण बल नीचे की ओर कार्य करता है, जिससे वस्तु की गति धीमी होती जाती है।

  • वेग में कमी: वस्तु का वेग धीरे-धीरे कम होता जाता है।
  • अधिकतम ऊँचाई: एक बिंदु पर, वस्तु का वेग शून्य हो जाता है। यह उसकी अधिकतम ऊँचाई होती है।
  • नीचे की ओर गति: अधिकतम ऊँचाई पर पहुँचने के बाद, वस्तु गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में नीचे की ओर गिरना शुरू कर देती है, और उसका वेग फिर से बढ़ने लगता है।
  • समरूपता: यदि वायु प्रतिरोध को नगण्य माना जाए, तो वस्तु को ऊपर जाने में जितना समय लगता है, उतना ही समय उसे उसी प्रारंभिक बिंदु तक वापस आने में लगता है। साथ ही, जिस वेग से उसे ऊपर फेंका जाता है, उसी वेग से वह वापस प्रारंभिक बिंदु पर पहुँचती है।

4. प्रक्षेप्य गति (Projectile Motion)

जब किसी वस्तु को क्षैतिज से किसी कोण पर फेंका जाता है (जैसे क्रिकेट बॉल या फुटबॉल), तो उसकी गति को प्रक्षेप्य गति कहते हैं। इस गति के दौरान वस्तु पर केवल गुरुत्वाकर्षण बल (नीचे की ओर) कार्य करता है।

  • दो घटक: प्रक्षेप्य गति को दो स्वतंत्र घटकों में विभाजित किया जा सकता है:
    • क्षैतिज गति: इस दिशा में कोई बल कार्य नहीं करता (वायु प्रतिरोध को नगण्य मानने पर), इसलिए वस्तु का क्षैतिज वेग स्थिर रहता है।
    • ऊर्ध्वाधर गति: इस दिशा में गुरुत्वाकर्षण बल कार्य करता है, जिससे वस्तु का ऊर्ध्वाधर वेग बदलता रहता है (ऊपर जाते समय घटता है और नीचे आते समय बढ़ता है)।
  • परवलयिक पथ: गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में, प्रक्षेप्य का पथ एक परवलय (parabola) के आकार का होता है।

5. ग्रहों और उपग्रहों की गति

गुरुत्वाकर्षण बल केवल पृथ्वी पर ही नहीं, बल्कि पूरे ब्रह्मांड में कार्य करता है। यही बल ग्रहों को सूर्य के चारों ओर और उपग्रहों (जैसे चंद्रमा) को ग्रहों के चारों ओर उनकी कक्षाओं में बनाए रखता है।

  • अभिकेन्द्रीय बल: गुरुत्वाकर्षण बल ही इन खगोलीय पिंडों को वृत्ताकार या दीर्घवृत्ताकार कक्षाओं में घूमने के लिए आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल (centripetal force) प्रदान करता है।
  • निरंतर “गिरना”: वास्तव में, उपग्रह और ग्रह लगातार अपने केंद्रीय पिंड की ओर “गिर” रहे होते हैं, लेकिन उनकी पर्याप्त क्षैतिज गति के कारण वे कभी भी उस पिंड से टकराते नहीं हैं, बल्कि उसकी परिक्रमा करते रहते हैं।

इन सभी गतियों में गुरुत्वाकर्षण बल एक मौलिक भूमिका निभाता है, जिससे हमें ब्रह्मांड में वस्तुओं के व्यवहार को समझने में मदद मिलती है।

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