MP Board Class 9 Subject Hindi Vyangya Gadya Vidha :
गद्य की विधाओं में व्यंग्य: हास्य के माध्यम से तीखा प्रहार
MP Board Class 9 Subject Hindi Vyangya Gadya Vidha: हिंदी साहित्य की गद्य विधाएँ हमें जीवन और समाज के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराती हैं। कहानी की सरलता, निबंध की वैचारिकता, एकांकी की तीव्रता, यात्रा वृत्तांत का रोमांच और डायरी की आत्मीयता—इन सभी के बीच ‘व्यंग्य’ एक ऐसी विधा है जो अपनी तीक्ष्णता और हास्यबोध के कारण विशिष्ट स्थान रखती है। व्यंग्य केवल हँसाता नहीं, बल्कि हँसी-हँसी में समाज, राजनीति या किसी व्यक्ति की बुराइयों और विसंगतियों पर करारा प्रहार भी करता है जिससे पाठक सोचने पर मजबूर हो जाते हैं।
व्यंग्य क्या है?
‘व्यंग्य’ शब्द का अर्थ है ‘कटाक्ष’, ‘तानाकशी’, या ‘मज़ाक में कही गई कोई गहरी बात’। गद्य साहित्य की वह विधा जिसमें लेखक समाज, राजनीति, धर्म, व्यक्ति या किसी व्यवस्था में व्याप्त पाखंडों, कुरीतियों, भ्रष्टाचार, मूर्खता या विरोधाभासों पर हास्य, विनोद, मज़ाक या कटाक्ष के माध्यम से तीखा और अप्रत्यक्ष प्रहार करता है, उसे व्यंग्य कहते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य केवल मनोरंजन करना नहीं होता, बल्कि मनोरंजन के साथ-साथ पाठक को सोचने पर मजबूर करना, समाज की बुराइयों के प्रति जागरूक करना और उनमें सुधार की भावना पैदा करना होता है।
व्यंग्य एक प्रकार का ‘मीठा ज़हर’ है। यह ऊपर से गुदगुदाता है, लेकिन भीतर से चोट करता है। यह सीधी बात न कहकर घुमा-फिराकर, प्रतीकों और लाक्षणिक भाषा के माध्यम से अपनी बात कहता है, जिससे उसकी मारक क्षमता बढ़ जाती है।
हास्य और व्यंग्य में अंतर:
अक्सर हास्य और व्यंग्य को एक ही मान लिया जाता है, जबकि इनमें सूक्ष्म अंतर है:
- हास्य: इसका मुख्य उद्देश्य केवल पाठक या श्रोता को हँसाना और मनोरंजन करना होता है। इसमें कोई गंभीर सामाजिक संदेश या सुधार की भावना निहित नहीं होती। यह विशुद्ध विनोद होता है।
- व्यंग्य: यह भी हँसाता है, लेकिन इसकी हँसी के पीछे एक गंभीर उद्देश्य छिपा होता है। व्यंग्य हँसाते-हँसाते चोट करता है। यह समाज की किसी बुराई, विसंगति या पाखंड पर प्रहार करता है और पाठक को उसके बारे में सोचने पर विवश करता है। व्यंग्य में सामाजिक या नैतिक सुधार की भावना अंतर्निहित होती है।
संक्षेप में, ‘हास्य’ केवल हँसाना है जबकि ‘व्यंग्य’ हँसाते हुए सुधार का लक्ष्य रखता है।
व्यंग्य के प्रमुख तत्व
एक प्रभावी व्यंग्य की रचना के लिए निम्नलिखित तत्वों का होना आवश्यक है:
- हास्य और विनोद: व्यंग्य का ऊपरी आवरण हास्य और विनोद का होता है। यह पाठकों को आकर्षित करता है और उन्हें सहजता से गंभीर बात ग्रहण करने में मदद करता है।
- कटाक्ष और तीखापन: व्यंग्य में चुटीलापन और धारदार कटाक्ष होता है जो समाज की बुराइयों या व्यक्तियों की कमियों पर सीधा नहीं, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से प्रहार करता है।
- विसंगतियों का चित्रण: व्यंग्यकार समाज में मौजूद विरोधाभासों, पाखंडों, ढोंग और विडंबनाओं को अपनी सूक्ष्म दृष्टि से पहचानता है और उन्हें उजागर करता है।
- सूक्ष्म अवलोकन: एक सफल व्यंग्यकार अपने आस-पास के समाज, लोगों और घटनाओं का अत्यंत सूक्ष्मता से अवलोकन करता है। वह सामान्य लगने वाली बातों में छिपी असामान्यताओं को खोज निकालता है।
- विचारोत्तेजकता: व्यंग्य केवल पढ़कर हँसने के लिए नहीं होता बल्कि यह पाठक को सोचने पर मजबूर करता है। यह पाठक के मन में प्रश्न खड़े करता है और उसे अपने आस-पास की दुनिया को एक नई दृष्टि से देखने के लिए प्रेरित करता है।
- उद्देश्यपूर्णता: व्यंग्य का कोई न कोई गंभीर उद्देश्य अवश्य होता है – चाहे वह समाज सुधार हो, किसी व्यवस्था की खामी को उजागर करना हो या किसी व्यक्ति के पाखंड का पर्दाफाश करना हो। मनोरंजन उसका साधन है, साध्य नहीं।
- प्रतीकात्मकता और लाक्षणिकता: व्यंग्यकार अक्सर अपनी बात सीधे-सीधे कहने की बजाय प्रतीकों, उपमाओं, रूपकों और लाक्षणिक भाषा का प्रयोग करता है। इससे उसकी बात में गहराई और प्रभाव बढ़ जाता है।
- शैली की धारदारता: व्यंग्य की भाषा शैली चुटीली, धारदार, संक्षिप्त और प्रभावशाली होती है। शब्दों का चयन ऐसा होता है जो कम शब्दों में बड़ी बात कह सके और सीधे चोट कर सके।
हिंदी साहित्य में व्यंग्य का महत्व
हिंदी साहित्य में व्यंग्य विधा का महत्व अनेक दृष्टियों से है:
- समाज सुधार का सशक्त माध्यम: व्यंग्य ने समाज में व्याप्त अंधविश्वासों, कुरीतियों, भ्रष्टाचार और सामाजिक पाखंडों पर तीखा प्रहार कर समाज को जागरूक करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। यह किसी भी उपदेश से अधिक प्रभावी सिद्ध होता है।
- चेतना का विकास: यह पाठकों में आलोचनात्मक सोच और जागरूकता विकसित करता है। लोग अपने आस-पास की गलत चीज़ों को केवल स्वीकार करने की बजाय उन पर प्रश्न करना सीखते हैं।
- भ्रष्टाचार और पाखंड का पर्दाफाश: राजनीतिक भ्रष्टाचार, प्रशासनिक निष्क्रियता और व्यक्तिगत पाखंड को उजागर करने में व्यंग्य एक बेजोड़ हथियार है। यह व्यवस्थागत खामियों को बिना सीधे आरोप के ही जनता के सामने लाता है।
- मनोरंजन के साथ शिक्षा: व्यंग्य शुष्क उपदेश या गंभीर विश्लेषण की बजाय रोचक और मनोरंजक तरीके से अपनी बात कहता है। इससे कठिन से कठिन सामाजिक या नैतिक मुद्दे भी आम जनता तक आसानी से पहुँच जाते हैं।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: व्यंग्य लेखकों को बेबाकी से अपनी बात कहने का माध्यम प्रदान करता है, भले ही वह बात कड़वी ही क्यों न हो। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक सशक्त प्रतीक है।
- भाषा का परिमार्जन: व्यंग्य लेखन ने हिंदी भाषा को अधिक चुटीला, व्यंजक, धारदार और गतिशील बनाया है। यह शब्दों के नए अर्थ और प्रयोगों को जन्म देता है।
- जनता की आवाज़: व्यंग्य अक्सर आम आदमी की पीड़ा, निराशा और असहायता को हास्य के माध्यम से व्यक्त करता है। यह जनता की आवाज़ बनकर व्यवस्था तक पहुँचता है।
प्रमुख हिंदी व्यंग्य लेखक और उनकी रचनाएँ
हिंदी व्यंग्य साहित्य को समृद्ध करने वाले कई महान व्यंग्यकार हुए हैं:
- हरिशंकर परसाई: इन्हें हिंदी व्यंग्य साहित्य का सम्राट माना जाता है। उन्होंने सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक पाखंडों पर बेबाकी से लिखा। उनकी व्यंग्य रचनाएँ पाठकों को गुदगुदाती भी हैं और सोचने पर भी विवश करती हैं।
- प्रमुख रचनाएँ: ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’, ‘सदाचार का तावीज़’, ‘भोलाराम का जीव’, ‘प्रेमचंद के फटे जूते’, ‘रानी नागफनी की कहानी’, ‘तुलसीदास चंदन घिसें’।
- शरद जोशी: हरिशंकर परसाई के बाद शरद जोशी ने हिंदी व्यंग्य को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। उनकी व्यंग्य शैली अधिक सूक्ष्म, परिष्कृत और विनोदपूर्ण है।
- प्रमुख रचनाएँ: ‘किसी बहाने’, ‘जीप पर सवार इल्लियाँ’, ‘यथासंभव’, ‘परिक्रमा’, ‘हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे’।
- श्रीलाल शुक्ल: यद्यपि श्रीलाल शुक्ल मुख्यतः उपन्यासकार के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन उनका उपन्यास ‘राग दरबारी’ हिंदी व्यंग्य साहित्य का एक मील का पत्थर है। इसमें ग्रामीण राजनीति और भ्रष्टाचार का तीखा और यथार्थवादी चित्रण किया गया है।
- अन्य व्यंग्य रचनाएँ: ‘अंगद का पाँव’, ‘यह घर मेरा नहीं’।
- ज्ञान चतुर्वेदी: आधुनिक व्यंग्यकारों में ज्ञान चतुर्वेदी का नाम प्रमुख है। उनकी रचनाएँ सामाजिक विसंगतियों और प्रशासनिक अक्षमता पर केंद्रित होती हैं।
- प्रमुख रचनाएँ: ‘बारामासी’, ‘नरक यात्रा’, ‘प्रेत कथा’, ‘हम न मरब’ (उपन्यास)।
- अन्य महत्वपूर्ण व्यंग्यकार:
- भारतेंदु हरिश्चंद्र: यद्यपि वे मुख्यतः नाटककार और निबंधकार थे, उनके कुछ निबंधों और नाटकों में तीखा सामाजिक और राजनीतिक व्यंग्य मिलता है (जैसे ‘अंधेर नगरी’)।
- प्रेमचंद: अपनी कहानियों और उपन्यासों में उन्होंने सामाजिक विसंगतियों और शोषण पर गहरा व्यंग्य किया (जैसे ‘सवा सेर गेहूँ’, ‘कफ़न’)।
- केशवचंद्र वर्मा, रवीन्द्रनाथ त्यागी, गोपालप्रसाद व्यास, आचार्य चतुरसेन शास्त्री (कुछ रचनाओं में) आदि।
व्यंग्य लेखन की चुनौतियाँ
व्यंग्य लिखना जितना आसान दिखता है उतना होता नहीं। एक सफल व्यंग्यकार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
- हास्य और कड़वाहट का संतुलन: व्यंग्य में हास्य और गंभीर संदेश का सही संतुलन बनाना आवश्यक है। यदि हास्य अधिक हो तो वह केवल मनोरंजन रह जाता है, और यदि कड़वाहट अधिक हो तो वह उपदेश या गाली में बदल सकता है।
- व्यक्तिगत आक्षेप से बचना: व्यंग्यकार को व्यक्ति विशेष पर सीधा हमला करने की बजाय, उसकी प्रवृत्ति या वर्गगत बुराई पर प्रहार करना होता है। व्यक्तिगत आरोप से व्यंग्य अपनी गरिमा खो देता है।
- लक्ष्य को स्पष्ट रखना: व्यंग्य का लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए कि वह किस बुराई या विसंगति पर प्रहार कर रहा है। अस्पष्ट व्यंग्य प्रभावहीन हो जाता है।
- समझ के स्तर को बनाए रखना: व्यंग्य की भाषा और संकेत ऐसे हों कि पाठक उसे समझ सकें, अन्यथा उसका गलत अर्थ निकाला जा सकता है या वह अर्थहीन हो सकता है।
निष्कर्ष
व्यंग्य गद्य साहित्य की एक अत्यंत शक्तिशाली और महत्वपूर्ण विधा है। यह केवल हँसी का पात्र नहीं रचता, बल्कि हँसी के पीछे छिपी एक गंभीर सच्चाई को उजागर करता है। व्यंग्यकार समाज का एक सजग प्रहरी होता है, जो अपनी सूक्ष्म दृष्टि और हास्य-कटाक्ष की कला से समाज में व्याप्त बुराइयों और पाखंडों पर तीखा प्रहार करता है। हरिशंकर परसाई जैसे व्यंग्यकारों ने हिंदी साहित्य में इस विधा को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया है। आज के बदलते सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में भी व्यंग्य की प्रासंगिकता बनी हुई है, क्योंकि यह लोगों को सोचने, सवाल करने और सुधार के लिए प्रेरित करने का एक अचूक साहित्यिक हथियार है। यह हमें सिखाता है कि कभी-कभी सबसे गहरी बात सबसे हल्के-फुल्के तरीके से कही जा सकती है।
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) – व्यंग्य गद्य विधा
निर्देश: सही विकल्प का चयन कीजिए।
वह गद्य विधा जिसमें लेखक समाज या व्यवस्था की विसंगतियों पर हास्य के माध्यम से तीखा प्रहार करता है, कहलाती है:
(अ) कहानी
(ब) निबंध
(स) एकांकी
(द) व्यंग्य
उत्तर: (द) व्यंग्य
‘व्यंग्य’ शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है?
(अ) केवल हँसी
(ब) कटाक्ष या मज़ाक में कही गई गहरी बात
(स) तारीफ़ करना
(द) सीधी आलोचना
उत्तर: (ब) कटाक्ष या मज़ाक में कही गई गहरी बात
व्यंग्य का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
(अ) केवल मनोरंजन करना
(ब) मनोरंजन के साथ-साथ सुधार की भावना पैदा करना
(स) केवल लोगों को डराना
(द) पैसे कमाना
उत्तर: (ब) मनोरंजन के साथ-साथ सुधार की भावना पैदा करना
हास्य और व्यंग्य में क्या अंतर है?
(अ) हास्य हँसाता है, व्यंग्य रुलाता है।
(ब) हास्य का उद्देश्य केवल हँसाना है, व्यंग्य का हँसाते हुए चोट करना।
(स) हास्य गंभीर होता है, व्यंग्य हल्का।
(द) इनमें कोई अंतर नहीं है।
उत्तर: (ब) हास्य का उद्देश्य केवल हँसाना है, व्यंग्य का हँसाते हुए चोट करना।
व्यंग्य का ऊपरी आवरण किसका होता है?
(अ) क्रोध का
(ब) हास्य और विनोद का
(स) दुख का
(द) ज्ञान का
उत्तर: (ब) हास्य और विनोद का
व्यंग्यकार समाज की किन चीजों पर कटाक्ष और तीखा प्रहार करता है?
(अ) केवल अच्छी बातों पर
(ब) बुराइयों, पाखंडों और विडंबनाओं पर
(स) केवल ऐतिहासिक घटनाओं पर
(द) प्राकृतिक दृश्यों पर
उत्तर: (ब) बुराइयों, पाखंडों और विडंबनाओं पर
एक सफल व्यंग्यकार अपने आस-पास का किस प्रकार अवलोकन करता है?
(अ) सतही तौर पर
(ब) बिना ध्यान दिए
(स) अत्यंत सूक्ष्मता से
(द) केवल सुनकर
उत्तर: (स) अत्यंत सूक्ष्मता से
व्यंग्य पाठक को केवल मनोरंजन ही नहीं देता, बल्कि क्या करता है?
(अ) उसे सुला देता है
(ब) उसे सोचने पर मजबूर करता है
(स) उसे खाना बनाने को कहता है
(द) उसे यात्रा करने को कहता है
उत्तर: (ब) उसे सोचने पर मजबूर करता है
हिंदी व्यंग्य साहित्य का सम्राट किसे माना जाता है?
(अ) शरद जोशी
(ब) हरिशंकर परसाई
(स) श्रीलाल शुक्ल
(द) ज्ञान चतुर्वेदी
उत्तर: (ब) हरिशंकर परसाई
‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ और ‘सदाचार का तावीज़’ किस व्यंग्यकार की प्रसिद्ध रचनाएँ हैं?
(अ) शरद जोशी
(ब) श्रीलाल शुक्ल
(स) हरिशंकर परसाई
(द) मोहन राकेश
उत्तर: (स) हरिशंकर परसाई
‘जीप पर सवार इल्लियाँ’ और ‘यथासंभव’ किस प्रसिद्ध व्यंग्यकार की रचनाएँ हैं?
(अ) हरिशंकर परसाई
(ब) शरद जोशी
(स) ज्ञान चतुर्वेदी
(द) प्रेमचंद
उत्तर: (ब) शरद जोशी
‘राग दरबारी’ नामक प्रसिद्ध व्यंग्यात्मक उपन्यास किस लेखक का है?
(अ) हरिशंकर परसाई
(ब) शरद जोशी
(स) श्रीलाल शुक्ल
(द) भारतेंदु हरिश्चंद्र
उत्तर: (स) श्रीलाल शुक्ल
व्यंग्य लेखन में ‘प्रतीकात्मकता’ का प्रयोग क्यों किया जाता है?
(अ) बात को सीधे-सीधे कहने के लिए
(ब) बात को घुमा-फिराकर गहरी बात कहने के लिए
(स) केवल कहानी को लंबा करने के लिए
(द) पाठकों को भ्रमित करने के लिए
उत्तर: (ब) बात को घुमा-फिराकर गहरी बात कहने के लिए
व्यंग्य को समाज सुधार का सशक्त माध्यम क्यों माना जाता है?
(अ) यह केवल प्रशंसा करता है।
(ब) यह बुराइयों पर प्रहार कर समाज को जागरूक करता है।
(स) यह केवल उपदेश देता है।
(द) यह केवल हँसाता है।
उत्तर: (ब) यह बुराइयों पर प्रहार कर समाज को जागरूक करता है।
‘बारामासी’ और ‘नरक यात्रा’ किस आधुनिक व्यंग्यकार की रचनाएँ हैं?
(अ) हरिशंकर परसाई
(ब) शरद जोशी
(स) ज्ञान चतुर्वेदी
(द) रवीन्द्रनाथ त्यागी
उत्तर: (स) ज्ञान चतुर्वेदी
व्यंग्य लेखक अपनी बात कहने के लिए किस प्रकार की शैली का प्रयोग करता है?
(अ) अत्यंत गंभीर और शुष्क
(ब) चुटीली, धारदार, संक्षिप्त और प्रभावशाली
(स) लंबी और निरस
(द) केवल भावनात्मक
उत्तर: (ब) चुटीली, धारदार, संक्षिप्त और प्रभावशाली
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ नामक प्रसिद्ध व्यंग्य रचना के लेखक कौन हैं?
(अ) शरद जोशी
(ब) श्रीलाल शुक्ल
(स) हरिशंकर परसाई
(द) ज्ञान चतुर्वेदी
उत्तर: (स) हरिशंकर परसाई
व्यंग्य लेखन की एक चुनौती क्या है?
(अ) बहुत सारे तथ्य इकट्ठा करना
(ब) हास्य और कड़वाहट का सही संतुलन बनाना
(स) केवल मनोरंजन करना
(द) बहुत लंबी कहानी लिखना
उत्तर: (ब) हास्य और कड़वाहट का सही संतुलन बनाना
‘अंगद का पाँव’ नामक व्यंग्य रचना के लेखक कौन हैं?
(अ) हरिशंकर परसाई
(ब) शरद जोशी
(स) श्रीलाल शुक्ल
(द) रामवृक्ष बेनीपुरी
उत्तर: (स) श्रीलाल शुक्ल
व्यंग्य किस प्रकार की खामियों को उजागर करने में मदद करता है?
(अ) केवल वैज्ञानिक अविष्कारों की
(ब) व्यवस्थागत और सामाजिक खामियों की
(स) केवल प्राकृतिक आपदाओं की
(द) तकनीकी समस्याओं की
उत्तर: (ब) व्यवस्थागत और सामाजिक खामियों की
व्यंग्य लेखन का अंतिम लक्ष्य क्या होता है?
(अ) केवल पैसे कमाना
(ब) मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक/नैतिक सुधार
(स) केवल अपनी भड़ास निकालना
(द) किसी को नीचा दिखाना
उत्तर: (ब) मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक/नैतिक सुधार
‘सवा सेर गेहूँ’ जैसी कहानियों में सामाजिक व्यंग्य के अंश किस लेखक के यहाँ मिलते हैं?
(अ) भारतेंदु हरिश्चंद्र
(ब) प्रेमचंद
(स) हरिशंकर परसाई
(द) शरद जोशी
उत्तर: (ब) प्रेमचंद
व्यंग्य की धारदारता कब बढ़ जाती है?
(अ) जब सीधी बात कही जाए
(ब) जब प्रतीकों और लाक्षणिक भाषा का प्रयोग किया जाए
(स) जब बहुत सारे विशेषणों का प्रयोग हो
(द) जब कहानी बहुत लंबी हो
उत्तर: (ब) जब प्रतीकों और लाक्षणिक भाषा का प्रयोग किया जाए
व्यंग्यकार समाज में किन चीजों को अपनी सूक्ष्म दृष्टि से पहचानता है?
(अ) केवल सकारात्मक पहलुओं को
(ब) विसंगतियों, पाखंडों और विरोधाभासों को
(स) केवल ऐतिहासिक घटनाओं को
(द) भविष्य की संभावनाओं को
उत्तर: (ब) विसंगतियों, पाखंडों और विरोधाभासों को
व्यंग्य को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सशक्त प्रतीक क्यों माना जाता है?
(अ) यह केवल सरकार की प्रशंसा करता है।
(ब) यह बेबाकी से अपनी बात कहने का माध्यम है।
(स) यह केवल काल्पनिक बातें लिखता है।
(द) यह केवल मनोरंजन प्रदान करता है।
उत्तर: (ब) यह बेबाकी से अपनी बात कहने का माध्यम है।