कक्षा 9वीं हिंदी प्रेमचंद के फटे जूते MP Board Class 9 Hindi Premchand Ke Fate Jute

MP Board Class 9 Hindi Premchand Ke Fate Jute : इस निबंध के माध्यम से लेखक हरिशंकर परसाई ने आज के समाज में पनप रही दिखावे की प्रवृत्ति और अवसरवादिता पर तीखा व्यंग्य किया है। वे प्रेमचंद की ईमानदारी और सादगी को आज के पाखंडपूर्ण समाज के विपरीत प्रस्तुत करते हैं।

लेखक परिचय: हरिशंकर परसाई

1. लेखक का परिचय

  • नाम: हरिशंकर परसाई
  • जन्म: सन् 1922
  • जन्म स्थान: जमानी गाँव, होशंगाबाद ज़िला, मध्य प्रदेश (यह जानकारी MP बोर्ड के छात्रों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे मध्य प्रदेश से हैं)
  • शिक्षा: नागपुर विश्वविद्यालय से एम०ए० किया।
  • पेशा: कुछ समय तक अध्यापन (टीचिंग) का कार्य किया।
  • स्वतंत्र लेखन: सन् 1947 से स्वतंत्र लेखन करने लगे।
  • पत्रिका संपादन: जबलपुर से ‘वसुधा’ नामक पत्रिका निकाली, जिसकी हिंदी संसार में काफी सराहना (प्रशंसा) हुई।
  • निधन: सन् 1995

2. साहित्यिक स्थान और लेखन की विशेषता

  • हिंदी के व्यंग्य लेखकों में हरिशंकर परसाई का नाम सबसे अग्रणी (प्रमुख) है।
  • व्यंग्य की प्रकृति:
    • उनके व्यंग्य लेख भारतीय जीवन के पाखंड, भ्रष्टाचार, अंतर्विरोध, बेईमानी, शोषण और अवसरवादिता पर तीखा प्रहार करते हैं।
    • उनका व्यंग्य केवल हँसाने के लिए नहीं होता, बल्कि यह परिवर्तन की चेतना पैदा करता है और आदर्श के पक्ष में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है।
    • वे सामाजिक, राजनैतिक और धार्मिक पाखंड पर लिखे अपने व्यंग्यों के लिए जाने जाते हैं, जिन्होंने व्यंग्य-साहित्य के मानकों (standards) का निर्माण किया।
  • भाषा-शैली:
    • परसाई जी बोलचाल की सामान्य भाषा का प्रयोग करते हैं।
    • किंतु उनकी वाक्य संरचना (structure) का अनूठापन (मौलिकता) उनकी भाषा की व्यंजक क्षमता (अर्थ प्रकट करने की शक्ति) को बहुत बढ़ा देता है। वे सरल शब्दों में भी गहरी बात कह जाते हैं।

3. प्रमुख कृतियाँ

हरिशंकर परसाई की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं:

  • कहानी संग्रह:
    • ‘हँसते हैं रोते हैं’
    • ‘जैसे उनके दिन फिरे’
  • उपन्यास:
    • ‘रानी नागफनी की कहानी’
    • ‘तट की खोज’
  • निबंध संग्रह:
    • ‘तब की बात और थी’
    • ‘भूत के पाँव पीछे’
    • ‘बेईमानी की परत’
    • ‘पगडंडियों का ज़माना’
    • ‘सदाचार का तावीज़’
    • ‘शिकायत मुझे भी है’
    • ‘और अंत में’
  • व्यंग्य संग्रह:
    • ‘वैष्णव की फिसलन’
    • ‘तिरछी रेखाएँ’
    • ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’
    • ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’

4. प्रस्तुत पाठ ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ के संदर्भ में

  • विधा: यह पाठ एक व्यंग्यात्मक निबंध है।
  • विषय-वस्तु:
    • इस निबंध में परसाई जी ने महान साहित्यकार प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी का वर्णन किया है।
    • वे प्रेमचंद की सादगी के साथ-साथ एक रचनाकार की अंतर्भेदक सामाजिक दृष्टि (समाज की गहराई को समझने वाली सूक्ष्म दृष्टि) का विवेचन करते हैं।
    • इस निबंध के माध्यम से लेखक ने आज के समाज में पनप रही दिखावे की प्रवृत्ति और अवसरवादिता पर तीखा व्यंग्य किया है। वे प्रेमचंद की ईमानदारी और सादगी को आज के पाखंडपूर्ण समाज के विपरीत प्रस्तुत करते हैं।

‘प्रेमचंद के फटे जूते’ – प्रश्नोत्तर

1. हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?

उत्तर: हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है, उससे उनकी निम्नलिखित विशेषताएँ उभरकर आती हैं:

  • सादगी और सरलता: प्रेमचंद अत्यंत सादगीपूर्ण जीवन जीते थे। उनके पहनावे में कोई आडंबर नहीं था। वे एक साधारण धोती-कुर्ते और कैनवस के जूते में फोटो खिंचाने चले जाते थे, जो उनकी सरल और आडंबरहीन जीवनशैली को दर्शाता है।
  • संतोषी प्रवृत्ति: वे अपनी आर्थिक स्थिति से कभी परेशान नहीं होते थे और उसी में संतोष कर लेते थे। फटे जूते में भी मुस्कान के साथ फोटो खिंचाना उनकी संतोषी प्रवृत्ति का प्रमाण है।
  • अपराजेय आत्मविश्वास: फटे जूते और दुर्बल शरीर के बावजूद उनके चेहरे पर एक हल्की-सी व्यंग्य भरी मुस्कान थी। यह मुस्कान उनके भीतर के अदम्य आत्मविश्वास और विषम परिस्थितियों के सामने न झुकने वाले स्वभाव को दर्शाती है।
  • सामाजिक कुरीतियों के प्रति गहरी समझ और विरोध: उनके चेहरे पर व्यंग्य की मुस्कान यह भी दर्शाती है कि वे समाज में व्याप्त पाखंड, दिखावे और शोषण को भली-भांति समझते थे और मानसिक रूप से उसका विरोध करते थे। वे उन कुरीतियों पर अंदर ही अंदर हंस रहे थे।
  • समझौताहीन व्यक्तित्व: प्रेमचंद ऐसे व्यक्ति नहीं थे जो परिस्थितियों से समझौता कर लें या दिखावे के लिए कुछ भी ओढ़-पहन लें। उन्होंने अपनी ईमानदारी और सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। वे बाहर-भीतर एक समान थे।
  • स्वाभिमानी: फटे जूते होने पर भी उन्होंने किसी से छिपाने या उधार माँगने की कोशिश नहीं की। यह उनके दृढ़ स्वाभिमान को दर्शाता है।
  • फक्कड़पन: उनमें एक तरह का फक्कड़पन था, यानी दुनियादारी की परवाह न करना और अपनी मस्ती में जीना। वे दुनिया की चाल से बेपरवाह थे।

संक्षेप में: प्रेमचंद का व्यक्तित्व सादगी, संतोष, दृढ़ता, स्वाभिमान और सामाजिक चेतना का अद्भुत संगम था।

2. सही कथन के सामने (✔) का निशान लगाइए-

(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है। (✘) (यह कथन गलत है। पाठ में लेखक ने प्रेमचंद के दाहिने पाँव का जूता ठीक और बाएँ पाँव के जूते में छेद होने का वर्णन किया है।)

(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए। (✔) (यह कथन सही है।)

(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुसकान मेरे हौसले बढ़ाती है। (✘) (यह कथन गलत है। लेखक की यह व्यंग्य मुसकान लेखक के होश उड़ाती है, न कि हौसले बढ़ाती है।)

(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो? (✘) (यह कथन गलत है। लेखक कहता है कि जिसे प्रेमचंद घृणित समझते हैं, उसकी तरफ वे हाथ से नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हैं।)

3. नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए-

(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।

व्यंग्य स्पष्टीकरण: इस पंक्ति में लेखक ने समाज में व्याप्त आडंबर, दिखावे और पद-प्रतिष्ठा के खोखलेपन पर करारा व्यंग्य किया है।

  • ‘जूता’ यहाँ समाज में धन, शक्ति, और भौतिकता का प्रतीक है, जो पैर में पहना जाता है और निचली चीज़ मानी जाती है।
  • ‘टोपी’ यहाँ मान-सम्मान, इज्जत, प्रतिष्ठा और इज्जतदार व्यक्ति का प्रतीक है, जिसे सिर पर धारण किया जाता है।
  • पारंपरिक रूप से ‘टोपी’ (इज्जत) ‘जूते’ (भौतिकता) से ऊपर मानी जाती थी। लेकिन आज के समय में, लेखक व्यंग्य करते हैं कि ‘जूता’ यानी धन और भौतिक सुख इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं कि लोग अपनी ‘टोपी’ यानी इज्जत और स्वाभिमान को भी त्यागने (न्योछावर करने) को तैयार हैं।
  • “एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं” का अर्थ है कि एक धनवान व्यक्ति या शक्तिमान व्यक्ति के सामने अनेक इज्जतदार लोग भी झुक जाते हैं, अपनी प्रतिष्ठा दाँव पर लगा देते हैं, चापलूसी करते हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि उस व्यक्ति के पास धन और शक्ति है। यह आज के समाज की नैतिक गिरावट और भौतिकवादी मानसिकता पर गहरा व्यंग्य है।

(ख) तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।

व्यंग्य स्पष्टीकरण: इस पंक्ति में लेखक प्रेमचंद की सादगी और यथार्थवादिता की तुलना आज के दिखावाप्रिय और पाखंडी समाज से करते हुए व्यंग्य करते हैं।

  • ‘परदा’ यहाँ गोपनीयता, छिपाव, इज्जत ढकना, कमी को छिपाना और बनावटीपन का प्रतीक है।
  • प्रेमचंद ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने कभी अपने जीवन की गरीबी या कमियों को छिपाने का प्रयास नहीं किया। वे जो थे, जैसे थे, वैसे ही समाज के सामने रहे। वे ‘परदे’ (दिखावे) का महत्व नहीं जानते थे, अर्थात उन्हें अपनी वास्तविकता को छिपाने की कोई आवश्यकता महसूस नहीं होती थी।
  • इसके विपरीत, ‘हम’ (आज के समाज के लोग) ‘परदे पर कुर्बान हो रहे हैं’ का अर्थ है कि हम दिखावे और पाखंड को इतना महत्व देते हैं कि उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। हम अपनी वास्तविकता को छिपाने, अपनी कमियों को ढँकने और समाज में अपनी झूठी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए अपनी मेहनत, समय और धन सब कुछ कुर्बान कर देते हैं। हम बाहरी चमक-दमक के पीछे अपने वास्तविक स्वरूप और सच्चाई को छिपाने में लगे रहते हैं। यह समाज की पाखंडपूर्ण प्रवृत्ति और दिखावे की अंधी दौड़ पर व्यंग्य है।

(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ हाथ कौं नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो?

व्यंग्य स्पष्टीकरण: इस पंक्ति में लेखक प्रेमचंद के दृढ़ स्वाभिमान, समझौताहीनता और सामाजिक बुराइयों के प्रति उनकी घृणा पर व्यंग्य करते हुए आज के दिखावाप्रिय और कायर समाज पर प्रहार करते हैं।

  • सामान्यतः, हम किसी नीच या घृणित व्यक्ति या वस्तु की ओर इशारा करने के लिए हाथ का प्रयोग करते हैं। ‘हाथ’ का इशारा करना फिर भी सीधे टकराव या स्वीकारोक्ति को दर्शाता है।
  • लेकिन प्रेमचंद, अपने फटे जूते से बाहर निकली अँगुली से, समाज में व्याप्त किसी ऐसी ‘घृणित’ चीज़ की ओर इशारा कर रहे हैं, जिससे वे इतनी घृणा करते हैं कि उसे हाथ लगाना भी पसंद नहीं करते। ‘पाँव की अँगुली से इशारा करना’ यहाँ अत्यधिक तिरस्कार, उपेक्षा और घृणा का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि प्रेमचंद उस बुराई को अपने पास फटकने भी नहीं देना चाहते थे, बल्कि उसे अपने पैरों तले रौंदना चाहते थे।
  • यह व्यंग्य आज के उन लोगों पर भी है जो समाज की बुराइयों को देखकर भी मुखर नहीं होते, या जो ऊपरी तौर पर तो विरोध करते हैं लेकिन भीतर से समझौता कर लेते हैं। प्रेमचंद बिना बोले, अपने फटे जूते की अँगुली से, उन बुराइयों पर व्यंग्य कर रहे थे और उन्हें तिरस्कृत कर रहे थे, जिसके लिए आज के लोग शायद आवाज भी नहीं उठा पाते। यह उनकी वैचारिक दृढ़ता और आंतरिक शक्ति का प्रतीक है।

4. पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?’ लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि “नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हों सकती हैं?

उत्तर: लेखक के प्रेमचंद के बारे में विचार बदलने की मुख्य वजहें उनकी गहरी समझ और प्रेमचंद के व्यक्तित्व की अद्वितीयता हैं:

  1. सामान्य समाज से भिन्नता का बोध: लेखक शुरुआत में सामान्य समाज की मानसिकता से सोचते हैं, जहाँ लोग फोटो खिंचाने के लिए अच्छी से अच्छी पोशाक पहनते हैं। वे सोचते हैं कि अगर फोटो की यह हालत है, तो सामान्य पहनने की पोशाक तो और भी बुरी होगी। यह एक औसत व्यक्ति की स्वाभाविक सोच है।
  2. प्रेमचंद के व्यक्तित्व की विशिष्टता का एहसास: लेकिन अगले ही पल लेखक को प्रेमचंद के असाधारण व्यक्तित्व का बोध होता है। वे समझते हैं कि प्रेमचंद जैसे व्यक्ति दिखावे और बनावटीपन से कोसों दूर होते हैं। वे अंदर-बाहर एक समान होते हैं। उनके लिए अलग-अलग परिस्थितियों के लिए अलग-अलग पोशाकें या मुखौटे नहीं होते।
  3. आंतरिक सच्चाई और ईमानदारी की पहचान: लेखक यह जान जाते हैं कि प्रेमचंद अपनी वास्तविक स्थिति को छिपाते नहीं थे। वे जो थे, जैसे थे, वैसे ही समाज के सामने आते थे। उनके जीवन में कोई ‘परदा’ या छिपाव नहीं था। उनके लिए जीवन में ईमानदारी और सच्चाई ही सबसे महत्वपूर्ण थी, न कि बाहरी दिखावा।
  4. दिखावे से घृणा: लेखक यह भी समझते हैं कि प्रेमचंद दिखावे की प्रवृत्ति से घृणा करते थे। वे जानते थे कि यदि प्रेमचंद के पास पहनने के लिए कोई बेहतर पोशाक होती भी, तो भी वे शायद उसे केवल फोटो खिंचाने के लिए नहीं पहनते, क्योंकि उनका जीवन ‘दिखावे’ पर नहीं, ‘यथार्थ’ पर आधारित था।

इस प्रकार, लेखक की सोच का बदलना प्रेमचंद के व्यक्तित्व की गहराई, उनकी ईमानदारी, सादगी और दिखावे से उनकी दूरी को समझने का परिणाम है। लेखक यह जान जाते हैं कि प्रेमचंद उन सामान्य लोगों की तरह नहीं थे जो विभिन्न स्थितियों के लिए अलग-अलग ‘पोशाकें’ (यानी मुखौटे) पहनते हैं।

5. आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन सी बातें आकर्षित करती हैं?

उत्तर: ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ व्यंग्य पढ़कर मुझे लेखक हरिशंकर परसाई की कई बातें बहुत आकर्षित करती हैं:

  1. तीखा और मार्मिक व्यंग्य: लेखक का व्यंग्य केवल हँसी-मजाक तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वह समाज की गहरी विसंगतियों, पाखंडों और बुराइयों पर तीखा प्रहार करता है। यह व्यंग्य पाठकों को सोचने पर मजबूर करता है और उनके मन में एक टीस पैदा करता है।
  2. सूक्ष्म अवलोकन क्षमता: परसाई जी की अवलोकन क्षमता अद्भुत है। वे प्रेमचंद के एक फटे जूते जैसी छोटी-सी बात से भी समाज की ‘दिखावे की संस्कृति’, ‘अवसरवादिता’ और ‘खोखली प्रतिष्ठा’ जैसे बड़े-बड़े मुद्दों को उजागर कर देते हैं। यह छोटी-सी घटना को एक बड़े सामाजिक संदर्भ में देखने की उनकी क्षमता आकर्षित करती है।
  3. सादगीपूर्ण किंतु प्रभावशाली भाषा: उनकी भाषा बोलचाल की सरल हिंदी है, लेकिन शब्दों का चयन और वाक्यों की संरचना ऐसी है कि वे अत्यंत प्रभावी बन जाते हैं। वे सीधे-सीधे बात न कहकर व्यंग्यात्मक ढंग से अपनी बात कहते हैं, जिससे पाठक को गहरा अर्थ समझ आता है।
  4. निर्भीक और समझौताहीन लेखन: लेखक समाज में व्याप्त बुराइयों को उजागर करने में बिल्कुल निर्भीक हैं। वे किसी भी पाखंड या दिखावे से समझौता नहीं करते। उनका लेखन आदर्श के पक्ष में अपनी बात रखता है और सामाजिक परिवर्तन की चेतना जगाता है।
  5. गंभीरता के साथ हास्य: परसाई जी गंभीर से गंभीर बात को भी हास्य के पुट के साथ प्रस्तुत करते हैं, जिससे पाठक बोर नहीं होता और व्यंग्य का प्रभाव भी गहरा होता है। उनका हास्य केवल हँसाने के लिए नहीं, बल्कि सोचने के लिए प्रेरित करता है।

6. पाठ में ‘टीले’ शब्द को प्रयोग किन संदर्भो को इंगित करने के लिए किया गया होगा?

उत्तर: पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग लेखक ने प्रेमचंद के संदर्भ में किया है और यह समाज में व्याप्त उन कठिनाइयों, बाधाओं, अन्याय और बुराइयों को इंगित करता है, जिनसे एक ईमानदार और सिद्धांतवादी व्यक्ति को अपने जीवन में जूझना पड़ता है।

  • जीवन की बाधाएँ और चुनौतियाँ: ‘टीले’ उन मुश्किलों और प्रतिकूल परिस्थितियों का प्रतीक हैं जो समाज में सही और सच्चे मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति के रास्ते में आती हैं। प्रेमचंद जैसे व्यक्ति को अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने के लिए इन ‘टीलों’ (बाधाओं) से लगातार टकराना पड़ा होगा।
  • सामाजिक कुरीतियाँ और पाखंड: ‘टीले’ उन सामाजिक कुरीतियों, भ्रष्टाचार, शोषण, असमानता और पाखंड का भी प्रतीक हैं, जिनसे प्रेमचंद जैसा साहित्यकार जीवन भर संघर्ष करता रहा। वे इन ‘टीलों’ से बचकर निकलने की बजाय, उनसे टकराकर आगे बढ़ते थे, भले ही उसमें उन्हें स्वयं को नुकसान (जैसे जूता फटना) क्यों न हो।
  • समझौताहीन संघर्ष: प्रेमचंद उन ‘टीलों’ को अनदेखा करके किनारे से नहीं निकले, बल्कि उनसे सीधे टकराए। उनका जूता यह दर्शाता है कि वे उन सामाजिक बुराइयों और अन्याय के प्रति आँखें बंद नहीं करते थे बल्कि उनसे संघर्ष करते थे। उनका फटना जूता इसी संघर्ष का प्रतीक है।

संक्षेप में, ‘टीले’ उन सामाजिक, आर्थिक और नैतिक बाधाओं या बुराइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनके कारण एक ईमानदार व्यक्ति का जीवन कठिन हो जाता है और जिससे प्रेमचंद जैसे महान व्यक्ति ने समझौता करने के बजाय उनसे संघर्ष करना पसंद किया।

भाषा-अध्ययन: ‘प्रेमचंद के फटे जूते’

7. पाठ में आए मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।

यहाँ पाठ में आए कुछ प्रमुख मुहावरे और उनका वाक्यों में प्रयोग दिया गया है:

  1. चेहरा पहचानना:
    • अर्थ: किसी के हाव-भाव देखकर उसके मन की बात या स्थिति जानना।
    • वाक्य प्रयोग: वह इतना अनुभवी है कि दूर से ही लोगों का चेहरा पहचान लेता है।
  2. ठोकर मारना / ठोकर मारकर चलना:
    • अर्थ: किसी वस्तु या व्यक्ति की उपेक्षा करना, उसे महत्व न देना, या उसे रौंदकर आगे बढ़ना।
    • वाक्य प्रयोग: उसने जीवन में कभी मुसीबतों को अनदेखा नहीं किया, बल्कि उन्हें ठोकर मारकर आगे बढ़ा।
    • वाक्य प्रयोग (पाठ के संदर्भ में): प्रेमचंद टीले-टीले ठोकर मारकर चलते थे।
  3. टीले से बचना / पहाड़ तोड़ना:
    • अर्थ: कठिनाइयों से बचना / बहुत बड़ा या असंभव कार्य करना।
    • वाक्य प्रयोग (पाठ के संदर्भ में): कुछ लोग तो जीवन में आने वाले टीलों से बचकर किनारे से निकल जाते हैं, लेकिन प्रेमचंद ने उनसे पहाड़ तोड़ने जैसा संघर्ष किया।
  4. पाँव की अँगुली से इशारा करना:
    • अर्थ: किसी के प्रति अत्यधिक घृणा, तिरस्कार या उपेक्षा भाव प्रकट करना।
    • वाक्य प्रयोग: वह उस भ्रष्ट व्यक्ति की तरफ पाँव की अँगुली से इशारा करता है, क्योंकि उसे घृणित मानता है।
  5. मुस्कान होठों तक न पहुँचना:
    • अर्थ: मुस्कान में सच्चाई या खुशी का अभाव होना, ऊपरी या बनावटी मुस्कान होना।
    • वाक्य प्रयोग: आज के दिखावे भरे समाज में लोगों की मुस्कान होठों तक नहीं पहुँचती, वह आँखों तक ही सिमट कर रह जाती है।
  6. पर्दे पर कुर्बान होना:
    • अर्थ: दिखावे, बनावटीपन या झूठी शान के लिए सब कुछ त्याग देना।
    • वाक्य प्रयोग: आजकल लोग अपनी प्रतिष्ठा के लिए पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं, असलियत कुछ और होती है।
  7. कंजूसी से मुसकाना:
    • अर्थ: बहुत कम या मुश्किल से मुसकाना, खुलकर न मुसकाना।
    • वाक्य प्रयोग: हारने के बाद भी वह कंजूसी से मुसकाया क्योंकि वह अपनी हार स्वीकार नहीं करना चाहता था।

10. प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने जिन विशेषणों का उपयोग किया है उनकी सूची बनाइए।

लेखक हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कई विशेषणों का उपयोग किया है। यहाँ उनकी एक सूची दी गई है:

  1. महान (साहित्यकार)
  2. युग-प्रवर्तक (उन्हें हिंदी साहित्य में एक नए युग का प्रवर्तक माना जाता है)
  3. फ़ोटोग्राफर (व्यंग्यात्मक रूप से)
  4. विचित्र (प्रेमचंद के फटे जूते में भी मुस्कान देखकर)
  5. फक्कड़ (दुनियावी परवाह न करने वाला)
  6. सादा (जीवन जीने वाले)
  7. अनाम (जुलाहे के जूते में उनकी अँगुली देखकर) – यह अप्रत्यक्ष विशेषण है, जो जूते की विशेषता है पर प्रेमचंद की सादगी को उभारता है।
  8. गंभीर (उनकी मुस्कान में)
  9. अबूझ (उनकी मुस्कान का रहस्य)
  10. समझौताहीन (टीलों से टकराकर आगे बढ़ने वाले)
  11. आदर्शवादी (जो यथार्थ को स्वीकार करते थे, पर आदर्शों को नहीं छोड़ते थे)
  12. स्वाभिमानी (गरीबी में भी दिखावा न करने वाले)
  13. यथार्थवादी (जो जीवन की सच्चाई को जीते थे और दिखाते थे)
  14. अंतर्भेदक सामाजिक दृष्टि वाला (जो समाज की गहराइयों को समझते थे)

ये विशेषण और उनसे जुड़े भाव प्रेमचंद के बहुआयामी और अद्वितीय व्यक्तित्व को लेखक की व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत करते हैं।

‘प्रेमचंद के फटे जूते’ – अतिरिक्त जानकारी: कुंभनदास

कुंभनदास (Kumbhandas)

  • काल: भक्तिकाल (मध्यकालीन हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण काल)।
  • शाखा: कृष्ण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि थे। यह शाखा भगवान कृष्ण की भक्ति को समर्पित थी।
  • गुरु: आचार्य वल्लभाचार्य के शिष्य थे।
  • अष्टछाप के कवि: वे ‘अष्टछाप’ के कवियों में से एक थे। ‘अष्टछाप’ आठ भक्त कवियों का समूह था, जिनकी स्थापना वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ ने की थी। ये कवि पुष्टि मार्ग के सिद्धांतों का पालन करते हुए कृष्ण लीला का गायन करते थे।

अकबर और कुंभनदास का प्रसंग (संदर्भ)

  • आमंत्रण: एक बार बादशाह अकबर ने कुंभनदास को फतेहपुर सीकरी में अपने दरबार में आमंत्रित किया था।
  • कुंभनदास की प्रतिक्रिया: कुंभनदास एक सच्चे भक्त कवि थे, जिन्हें राज-सम्मान या धन का कोई लोभ नहीं था। वे मानते थे कि राजाओं के दरबार में जाने से उनकी भक्ति और आध्यात्मिक शुद्धता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • संदर्भित पंक्तियाँ: लेखक हरिशंकर परसाई ने ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ में इसी संदर्भ में कुंभनदास द्वारा कही गई पंक्तियों का उल्लेख किया है।
    • पंक्तियाँ (संभावित): “संतन को कहा सीकरी सों काम? / आवत जात पनहियाँ टूटीं, बिसरि गयो हरि नाम।”
    • आशय: इन पंक्तियों का आशय यह है कि संतों का शाही दरबारों या सत्ता से कोई काम नहीं। वहाँ बार-बार आने-जाने में तो जूते घिस जाते हैं और भगवान का नाम भी भूल जाता है। यह संतों की स्वाभिमानी और निर्लोभी प्रवृत्ति को दर्शाता है, जो सत्ता के सामने झुकना पसंद नहीं करते।

‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ में प्रासंगिकता

  • हरिशंकर परसाई ने इस प्रसंग का उपयोग प्रेमचंद के समझौताहीन व्यक्तित्व को रेखांकित करने के लिए किया है।
  • जिस प्रकार कुंभनदास ने सत्ता के सामने झुकना पसंद नहीं किया और राज-दरबार की ओर जाने के नैतिक और आध्यात्मिक नुकसान को बताया, उसी प्रकार प्रेमचंद ने भी अपने जीवन में दिखावे, पाखंड और अवसरवादिता के ‘टीलों’ से समझौता नहीं किया।
  • यह प्रसंग प्रेमचंद की उस सादगी, ईमानदारी और स्वाभिमान को दर्शाता है जो उन्हें दिखावा पसंद समाज से अलग करती है। लेखक इस ऐतिहासिक संदर्भ के माध्यम से प्रेमचंद के महान व्यक्तित्व को और भी ऊँचा उठाते हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) – प्रेमचंद के फटे जूते

निर्देश: सही विकल्प का चयन कीजिए।

‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ के लेखक कौन हैं?
(अ) श्यामाचरण दुबे
(ब) जाबिर हुसैन
(स) हरिशंकर परसाई (सही उत्तर)
(द) प्रेमचंद

हरिशंकर परसाई का जन्म किस ज़िले में हुआ था?
(अ) नागपुर
(ब) जबलपुर
(स) होशंगाबाद (सही उत्तर)
(द) भोपाल

हरिशंकर परसाई हिंदी साहित्य में मुख्य रूप से किस विधा के लिए जाने जाते हैं?
(अ) कहानी
(ब) नाटक
(स) व्यंग्य (सही उत्तर)
(द) कविता

‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ की विधा क्या है?
(अ) कहानी
(ब) संस्मरण
(स) उपन्यास
(द) व्यंग्यात्मक निबंध (सही उत्तर)

प्रेमचंद की तस्वीर में लेखक को क्या देखकर दुःख होता है?
(अ) उनके पुराने कपड़े
(ब) उनके चेहरे की उदासी
(स) उनके फटे जूते (सही उत्तर)
(द) उनकी दुर्बल काया

प्रेमचंद की तस्वीर में उनके किस पाँव का जूता फटा हुआ था?
(अ) दाहिने
(ब) बाएँ (सही उत्तर)
(स) दोनों
(द) कोई नहीं

लेखक ने प्रेमचंद के चेहरे पर कैसी मुस्कान देखी?
(अ) भोली
(ब) व्यंग्य-भरी (सही उत्तर)
(स) शरारती
(द) उदास

लेखक के अनुसार, ‘जूता’ किसका प्रतीक है?
(अ) मान-सम्मान का
(ब) धन, शक्ति और भौतिकता का (सही उत्तर)
(स) पैर की सुरक्षा का
(द) यात्रा का

लेखक ने ‘टोपी’ को किसका प्रतीक माना है?
(अ) फैशन का
(ब) इज्जत और मान-सम्मान का (सही उत्तर)
(स) सिर ढकने का
(द) गर्मी से बचने का

“जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है।” इस पंक्ति में निहित व्यंग्य क्या है?
(अ) जूते की कीमत हमेशा ज़्यादा होती है।
(ब) भौतिकता और धन का महत्व सम्मान से ज़्यादा हो गया है। (सही उत्तर)
(स) लोग टोपियाँ कम खरीदते हैं।
(द) जूते पहनने आसान होते हैं।

लेखक के अनुसार, लोग फोटो खिंचाने के लिए क्या-क्या करते हैं?
(अ) अपनी असलियत छिपाते हैं
(ब) इत्र चुपड़ते हैं
(स) उधार के कपड़े पहनते हैं
(द) उपरोक्त सभी (सही उत्तर)

“तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।” इस पंक्ति में ‘परदा’ किसका प्रतीक है?
(अ) घर के दरवाज़े का
(ब) गोपनीयता और दिखावे का (सही उत्तर)
(स) मंच के परदे का
(द) कपड़ों का

प्रेमचंद के फटे जूते से बाहर निकली अँगुली किस ओर इशारा कर रही थी?
(अ) किसी व्यक्ति की ओर
(ब) किसी पहाड़ी की ओर
(स) समाज में व्याप्त किसी घृणित वस्तु या बुराई की ओर (सही उत्तर)
(द) लेखक की ओर

लेखक ने प्रेमचंद की ‘व्यंग्य मुस्कान’ को देखकर क्या महसूस किया?
(अ) खुशी
(ब) प्रेरणा
(स) उनके होंठों तक जाते-जाते मुस्कान को ठीक करने का एहसास (सही उत्तर)
(द) आश्चर्य

प्रेमचंद का व्यक्तित्व कैसा था?
(अ) दिखावा पसंद
(ब) सादगीपूर्ण और समझौताहीन (सही उत्तर)
(स) आडंबरी
(द) अवसरवादी

लेखक के अनुसार, प्रेमचंद के जूते फटने का क्या कारण रहा होगा?
(अ) वे जूते ध्यान से नहीं रखते थे।
(ब) वे रास्ते के टीलों (बाधाओं) से बचकर नहीं निकलते थे, बल्कि उनसे टकराते थे। (सही उत्तर)
(स) वे बहुत पैदल चलते थे।
(द) उनके जूते पुराने थे।

हरिशंकर परसाई द्वारा संपादित पत्रिका का नाम क्या था?
(अ) हंस
(ब) वसुधा (सही उत्तर)
(स) सरस्वती
(द) माधुरी

‘सदाचार का तावीज़’ किसकी कृति है?
(अ) प्रेमचंद
(ब) जाबिर हुसैन
(स) हरिशंकर परसाई (सही उत्तर)
(द) श्यामाचरण दुबे

लेखक ने प्रेमचंद के बारे में यह विचार क्यों बदला कि उनकी अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी?
(अ) उन्हें पता चला कि प्रेमचंद बहुत गरीब थे।
(ब) उन्होंने प्रेमचंद के आंतरिक ईमानदारी और समझौताहीन व्यक्तित्व को समझा। (सही उत्तर)
(स) प्रेमचंद ने स्वयं लेखक को यह बात बताई थी।
(द) उन्होंने सोचा कि प्रेमचंद केवल यही एक जोड़ी जूता रखते थे।

प्रेमचंद के जीवन में किस बात का अभाव नहीं था?
(अ) धन का
(ब) सुविधाओं का
(स) संतोष का (सही उत्तर)
(द) दिखावे का

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