Class 9 Hindi Mere Bachpan Ke Din :यह पाठ एक संस्मरण (Memoir) है। इसमें महादेवी वर्मा ने अपने बचपन के दिनों को विशेषकर उस समय को स्मृति के सहारे (अपनी यादों के आधार पर) लिखा है जब वे विद्यालय में पढ़ाई कर रही थीं। यह उनकी आत्मकथात्मक शैली का एक हिस्सा है।
लेखक परिचय: महादेवी वर्मा
1. लेखिका का परिचय
- नाम: महादेवी वर्मा
- जन्म: सन् 1907
- जन्म स्थान: फर्रुखाबाद शहर, उत्तर प्रदेश
- शिक्षा-दीक्षा: प्रयाग (इलाहाबाद) में हुई।
- कार्यक्षेत्र (शिक्षा): प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्राचार्या (Principal) के पद पर लंबे समय तक कार्य किया। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण प्रयत्न किए।
- निधन: सन् 1987
- सम्मान और पुरस्कार:
- साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित।
- ज्ञानपीठ पुरस्कार (भारत का सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार) से सम्मानित।
- भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से अलंकृत (सम्मानित)।
2. साहित्यिक स्थान और प्रमुख कृतियाँ
- छायावाद की प्रमुख कवयित्री: महादेवी वर्मा ‘छायावाद’ (हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण काव्य आंदोलन) के चार प्रमुख स्तंभों में से एक थीं।
- प्रमुख काव्य संग्रह:
- ‘नीहार’
- ‘रश्मि’
- ‘नीरजा’
- ‘यामा’ (जिसके लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला)
- ‘दीपशिखा’
- सशक्त गद्य रचनाएँ: कविता के साथ-साथ उन्होंने सशक्त गद्य रचनाएँ भी लिखी हैं, जिनमें रेखाचित्र (character sketches) तथा संस्मरण (memoirs) प्रमुख हैं।
- महत्वपूर्ण गद्य रचनाएँ:
- ‘अतीत के चलचित्र’
- ‘स्मृति की रेखाएँ’
- ‘पथ के साथी’
- ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’
3. साहित्य साधना के पीछे की प्रेरणाएँ
- आजादी के आंदोलन की प्रेरणा: उनकी साहित्य साधना के पीछे एक ओर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की प्रेरणा रही है।
- स्त्री जीवन की वास्तविक स्थिति का बोध: दूसरी ओर, भारतीय समाज में स्त्री जीवन की वास्तविक स्थिति और उनके संघर्षों को समझने और उजागर करने की गहरी चेतना भी उनकी रचनाओं में परिलक्षित होती है।
4. लेखन शैली और योगदान
- संस्मरण एवं रेखाचित्र की ऊँचाई: हिंदी गद्य साहित्य में संस्मरण एवं रेखाचित्र विधा को बुलंदियों (उच्चतम स्तर) तक पहुँचाने का श्रेय महादेवी वर्मा को ही जाता है।
- संवेदनशीलता और करुणा:
- उनके संस्मरणों और रेखाचित्रों में केवल शोषित, पीड़ित मानवों के प्रति ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षियों के लिए भी गहरी आत्मीयता और अक्षय (कभी न खत्म होने वाली) करुणा प्रकट हुई है। वे जीवों के प्रति अत्यंत दयालु और संवेदनशील थीं।
- भाषा-शैली:
- उनकी भाषा-शैली सरल एवं स्पष्ट है।
- उनका शब्द चयन प्रभावपूर्ण और चित्रात्मक है। वे शब्दों के माध्यम से ऐसे चित्र प्रस्तुत करती हैं जो पाठक के मन में गहरी छाप छोड़ जाते हैं।
पाठ परिचय: मेरे बचपन के दिन
1. पाठ की विधा और आधार
- विधा: यह पाठ एक संस्मरण (Memoir) है।
- आधार: इस अंश में महादेवी वर्मा ने अपने बचपन के दिनों को विशेषकर उस समय को स्मृति के सहारे (अपनी यादों के आधार पर) लिखा है जब वे विद्यालय में पढ़ाई कर रही थीं। यह उनकी आत्मकथात्मक शैली का एक हिस्सा है।
2. पाठ की विषय-वस्तु (प्रमुख प्रसंग और वर्णन)
इस संस्मरण में महादेवी जी ने अपने बचपन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं और तत्कालीन सामाजिक परिवेश का बहुत ही सजीव (जीवंत) वर्णन किया है:
- लड़कियों के प्रति सामाजिक रवैया:
- महादेवी जी ने उस समय के समाज में लड़कियों के प्रति प्रचलित दृष्टिकोण और रूढ़िवादी सोच का वर्णन किया है।
- उन्होंने बताया है कि कैसे लड़कियों के जन्म पर दुख मनाया जाता था और उन्हें शिक्षा से वंचित रखने का प्रयास किया जाता था।
- उनके परिवार में लड़कियों को लेकर उदारवादी माहौल था, जिसका उल्लेख वे विशेष रूप से करती हैं।
- विद्यालय की सहपाठिनें:
- पाठ में उनके विद्यालय जीवन की झलक मिलती है, जहाँ वे विभिन्न सहपाठिनों से मिलती हैं।
- उन्होंने अपनी कुछ विशेष सहेलियों, जैसे सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ अपनी दोस्ती और उनके साहित्यिक जुड़ाव का सुंदर वर्णन किया है।
- यह हिस्सा उनके बचपन के खेल-कूद, साहित्यिक गतिविधियों और आपसी संबंधों को दर्शाता है।
- छात्रावास का जीवन:
- महादेवी जी ने प्रयाग के छात्रावास के जीवन का भी चित्रण किया है।
- यहाँ उन्हें विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों की छात्राओं के साथ रहने का अवसर मिला, जिससे उनकी सोच विस्तृत हुई।
- छात्रावास में होने वाली गतिविधियों, जैसे साहित्यिक गोष्ठियों, कवि सम्मेलनों आदि का भी उल्लेख है, जिसने उनकी लेखन प्रतिभा को निखारा।
- स्वतंत्रता आंदोलन के प्रसंग:
- पाठ में उस समय चल रहे भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का भी प्रभाव दिखाई देता है।
- छात्रावास में राष्ट्रीय चेतना और देशभक्ति के माहौल का वर्णन है, जिसमें छात्राएँ भी सक्रिय रूप से भाग लेती थीं।
- महात्मा गांधी के आह्वान और उसके प्रभाव का भी जिक्र है, जिसने उन्हें और उनकी सहपाठिनों को देश के प्रति कर्तव्यनिष्ठा सिखाई।
3. पाठ की विशेषताएँ
- सजीव वर्णन: महादेवी जी की भाषा-शैली इतनी चित्रात्मक है कि पाठक को ऐसा महसूस होता है मानो वे उनके बचपन के दिनों को अपनी आँखों से देख रहे हों।
- सामाजिक यथार्थ का चित्रण: यह पाठ केवल व्यक्तिगत संस्मरण नहीं है, बल्कि यह उस कालखंड के भारतीय समाज, विशेषकर स्त्री शिक्षा और राष्ट्रीय जागरण की स्थिति का भी यथार्थवादी चित्रण करता है।
- भावनात्मक जुड़ाव: लेखिका ने अपनी स्मृतियों को इतनी आत्मीयता से प्रस्तुत किया है कि पाठक भी उनके बचपन के अनुभवों और भावनाओं से जुड़ जाता है।
आइए, महादेवी वर्मा के संस्मरण “मेरे बचपन के दिन” से संबंधित इन प्रश्नों के उत्तर विस्तार से समझते हैं। ये प्रश्न पाठ की गहरी समझ और उस कालखंड के सामाजिक परिवेश को जानने में मदद करेंगे।
‘मेरे बचपन के दिन’ – प्रश्नोत्तर
1. ‘मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है।’ इस कथन के आलोक में आप यह पता लगाएँ कि-
(क) उस समय लड़कियों की दशा कैसी थी?
उत्तर: लेखिका महादेवी वर्मा के इस कथन के आलोक में उस समय (यानी 20वीं सदी की शुरुआत में) भारतीय समाज में लड़कियों की दशा अत्यंत दयनीय और विषम थी:
- जन्म का तिरस्कार: लड़कियों का जन्म शुभ नहीं माना जाता था। उनके जन्म पर अक्सर दुःख मनाया जाता था, क्योंकि उन्हें पराया धन समझा जाता था और उनके लालन-पालन को एक बोझ माना जाता था।
- कन्या-वध या त्याग: कई परिवारों में तो कन्या-वध (जन्म के तुरंत बाद मार देना) या उन्हें कहीं छोड़ आने जैसी अमानवीय प्रथाएँ भी प्रचलित थीं, विशेषकर रूढ़िवादी परिवारों में।
- शिक्षा से वंचित: लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था। उन्हें स्कूल नहीं भेजा जाता था, क्योंकि यह माना जाता था कि शिक्षा केवल लड़कों के लिए है या लड़कियों को पढ़कर क्या करना है, अंततः उन्हें तो घर ही संभालना है।
- जल्दी विवाह: लड़कियों का विवाह बहुत छोटी उम्र में कर दिया जाता था, जिससे उन्हें अपना बचपन पूरी तरह जीने का मौका नहीं मिलता था।
- भेदभावपूर्ण व्यवहार: उन्हें बेटों की तुलना में कमतर समझा जाता था। भोजन, कपड़े और अन्य सुविधाओं में भी उनसे भेदभाव किया जाता था। उन्हें लड़कों जितनी आज़ादी या महत्व नहीं मिलता था।
- अधिकारों का अभाव: लड़कियों को अपने जीवन के निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं होता था। उनका जीवन पूरी तरह पुरुषों (पिता, भाई, पति) के नियंत्रण में होता था।
(ख) लड़कियों के जन्म के संबंध में आज कैसी परिस्थितियाँ हैं?
उत्तर: लड़कियों के जन्म के संबंध में आज की परिस्थितियाँ पहले से काफी बेहतर हुई हैं, लेकिन अभी भी पूरी तरह संतोषजनक नहीं हैं।
- सकारात्मक बदलाव:
- शिक्षा का प्रसार: शिक्षा का महत्व बढ़ा है और अधिकतर माता-पिता अब लड़कियों को स्कूल और कॉलेज भेजते हैं।
- कानूनी सुरक्षा: कन्या-वध और बाल विवाह जैसे अपराधों के खिलाफ सख्त कानून बने हैं और जागरूकता बढ़ी है।
- सामाजिक स्वीकृति: शहरी और शिक्षित परिवारों में लड़कियों के जन्म का स्वागत किया जाता है और उन्हें बेटों के समान ही पाला जाता है।
- विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति: लड़कियाँ अब शिक्षा, खेल, विज्ञान, राजनीति, सेना जैसे हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं, जिससे समाज का नज़रिया बदल रहा है।
- जागरूकता अभियान: सरकार और सामाजिक संगठनों द्वारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे कई अभियान चलाए जा रहे हैं, जो लड़कियों के महत्व को उजागर करते हैं।
- आज भी चुनौतियाँ:
- ग्रामीण और रूढ़िवादी क्षेत्रों में: अभी भी ग्रामीण, अशिक्षित और अत्यधिक रूढ़िवादी परिवारों में लड़कियों के जन्म को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया गया है।
- कन्या भ्रूण हत्या: आज भी कई जगहों पर लिंग-जाँच करवाकर कन्या भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध होते हैं।
- भेदभाव जारी: कुछ परिवारों में लड़कों को आज भी लड़कियों से अधिक महत्व दिया जाता है, खासकर शिक्षा, खान-पान और स्वतंत्रता के मामले में।
- दहेज प्रथा: दहेज प्रथा अभी भी एक बड़ी सामाजिक बुराई बनी हुई है, जो अप्रत्यक्ष रूप से लड़कियों के जन्म को बोझिल बनाती है।
2. लेखिका उर्दू-फ़ारसी क्यों नहीं सीख पाई?
उत्तर: लेखिका महादेवी वर्मा उर्दू-फ़ारसी इसलिए नहीं सीख पाईं क्योंकि:
- उनके परिवार में लड़कियों को उर्दू-फ़ारसी सिखाने की परंपरा नहीं थी, खासकर उनकी माताजी इस बात के पक्ष में नहीं थीं।
- उनकी माताजी स्वयं हिंदी और संस्कृत की अच्छी ज्ञाता थीं और वे चाहती थीं कि उनकी बेटी भी हिंदी और संस्कृत सीखे।
- लेखिका को मिशन स्कूल में भेजा गया था, जहाँ का माहौल हिंदी और अंग्रेजी पढ़ाई पर केंद्रित था, न कि उर्दू-फ़ारसी पर। जब उन्हें उर्दू-फ़ारसी सीखने के लिए मौलवी साहब के पास भेजा गया, तो वे वहाँ पढ़ने में असहज महसूस करती थीं और अक्सर भाग जाती थीं। उनके मन में उस भाषा के प्रति कोई विशेष रुचि या लगाव उत्पन्न नहीं हो पाया।
- शायद उनकी रुचि साहित्य और कविता में अधिक थी और वह हिंदी के माध्यम से ही स्वयं को व्यक्त करना चाहती थीं।
3. लेखिका ने अपनी माँ के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर: लेखिका महादेवी वर्मा ने अपनी माँ के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है:
- धर्मनिष्ठ और कर्मकांड से दूर: उनकी माँ बहुत धर्मनिष्ठ थीं, लेकिन वे कर्मकांड (पूजा-पाठ के दिखावटी बाहरी नियम) से दूर रहती थीं। वे ईश्वर में सच्ची आस्था रखती थीं।
- हिंदी और संस्कृत की ज्ञाता: उनकी माँ हिंदी और संस्कृत दोनों भाषाओं की अच्छी जानकार थीं।
- लेखन और काव्य में रुचि: वे स्वयं कविता लिखती थीं और मीठे भजन गाती थीं। उनका यह साहित्यिक गुण महादेवी जी में भी आया।
- उदारवादी और प्रगतिशील सोच: उस समय लड़कियों को लेकर समाज में रूढ़िवादी सोच थी, लेकिन उनकी माँ का दृष्टिकोण बहुत उदारवादी था। उन्होंने महादेवी के जन्म पर खुशी मनाई और उन्हें पढ़ा-लिखाकर विदुषी बनाना चाहती थीं। वे महादेवी को उर्दू-फ़ारसी न सिखाकर हिंदी और संस्कृत पर जोर देती थीं, जो उनकी अपनी पसंद थी।
- सहनशील और धैर्यवान: परिवार में लड़कियों के जन्म के प्रति जो सामाजिक रवैया था, उसके बावजूद वे अपनी बात पर अडिग रहीं और महादेवी को वह सब सहने नहीं दिया जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता था। यह उनकी सहनशीलता और दृढ़ता को दर्शाता है।
- संस्कारवान: उन्होंने अपनी बेटी को भी धार्मिक और साहित्यिक संस्कार दिए, जिससे महादेवी के व्यक्तित्व का विकास हुआ।
संक्षेप में, महादेवी वर्मा की माँ एक शिक्षित, धर्मनिष्ठ, उदारवादी और साहित्यिक अभिरुचि वाली महिला थीं, जिन्होंने अपनी बेटी के व्यक्तित्व निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
4. जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को लेखिका ने आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा क्यों कहा है?
उत्तर: लेखिका महादेवी वर्मा ने जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा इसलिए कहा है क्योंकि आज के समाज में ऐसे सौहार्दपूर्ण और धार्मिक सद्भाव वाले संबंध लगभग अदृश्य हो गए हैं। इसके पीछे निम्नलिखित कारण हैं:
- धार्मिक सद्भाव का अभाव: नवाब मुस्लिम थे और लेखिका का परिवार हिंदू। उस समय दोनों परिवारों के बीच इतना गहरा और आत्मीय संबंध था कि नवाब की पत्नी उन्हें ‘बुआ’ कहकर बुलाती थीं और उनके बच्चे उनके लिए राखी बाँधने आते थे। वे एक-दूसरे के त्योहारों में शामिल होते थे। आज धर्म के नाम पर समाज में दूरियाँ और कटुता बढ़ गई है, ऐसे रिश्ते दुर्लभ हो गए हैं।
- मानवीय मूल्यों में गिरावट: पहले लोग धर्म या जाति से ऊपर उठकर मानवीय संबंधों को महत्व देते थे। रिश्ते केवल स्वार्थ पर आधारित नहीं थे। आज भौतिकवाद और स्वार्थपरता इतनी बढ़ गई है कि निस्वार्थ प्रेम और अपनेपन पर आधारित ऐसे संबंध कम ही देखने को मिलते हैं।
- पारिवारिक आत्मीयता का ह्रास: आज के शहरी और व्यस्त जीवन में संयुक्त परिवार की अवधारणा कम हो गई है। लोग अपने खून के रिश्तों में भी उतनी आत्मीयता नहीं रख पाते, जितनी पहले दूर के संबंधियों या अलग धर्म के लोगों से भी हुआ करती थी।
- राजनीतिक और सामाजिक विभाजन: वर्तमान समय में राजनीतिक और सामाजिक कारणों से धर्मों और समुदायों के बीच एक अविश्वास और वैमनस्य का वातावरण बन गया है। ऐसे में किसी हिंदू और मुस्लिम परिवार के बीच इतना सहज, गहरा और आपसी सम्मान वाला रिश्ता होना असंभव सा लगता है।
इसलिए लेखिका को आज के माहौल में जवारा के नवाब के साथ अपने बचपन के उन संबंधों को याद करके ऐसा लगता है मानो वह कोई सुंदर सपना था, जो अब वास्तविक दुनिया में संभव नहीं है। यह वर्तमान समाज में बढ़ते धार्मिक वैमनस्य और घटते मानवीय मूल्यों पर लेखिका की चिंता को भी दर्शाता है।
मेरे बचपन के दिन’ – रचना और अभिव्यक्ति
5. ज़ेबुन्निसा महादेवी वर्मा के लिए बहुत काम करती थी। ज़ेबुन्निसा के स्थान पर यदि आप होतीं/होते तो महादेवी से आपकी क्या अपेक्षा होती?
उत्तर: यदि मैं ज़ेबुन्निसा के स्थान पर होता/होती और महादेवी वर्मा के लिए काम करता/करती, तो मेरी उनसे कई अपेक्षाएँ होतीं, जो शायद ज़ेबुन्निसा की अपेक्षाओं से भिन्न हो सकती हैं, क्योंकि समय और सामाजिक परिस्थितियाँ बदल गई हैं:
- समानता और सम्मान: मेरी पहली अपेक्षा यह होती कि मुझे एक सेविका के बजाय एक सहयोगी के रूप में देखा जाए। मैं समानता और सम्मान की उम्मीद करती/करता, जहाँ मेरे काम के लिए उचित सराहना और सम्मान मिले, न कि केवल आदेश।
- उचित वेतन और सुविधाएँ: आज के समय में, उचित पारिश्रमिक और बेहतर काम करने की सुविधाएँ सबसे महत्वपूर्ण हैं। मैं उम्मीद करती/करता कि मेरा वेतन मेरी मेहनत और समय के अनुरूप हो, साथ ही काम करने की अच्छी परिस्थितियाँ भी मिलें (जैसे रहने की जगह, अवकाश, आदि)।
- सीखने का अवसर: यदि महादेवी वर्मा जैसी विदुषी के साथ काम करने का अवसर मिलता, तो मेरी अपेक्षा होती कि मुझे उनसे कुछ सीखने का मौका मिले – चाहे वह भाषा हो, साहित्य हो, या जीवन जीने का तरीका। मैं उनसे मार्गदर्शन और प्रेरणा की उम्मीद करती/करता।
- भावनात्मक जुड़ाव: ज़ेबुन्निसा और महादेवी के बीच एक आत्मीय संबंध था। मैं भी एक ऐसे ही भावनात्मक जुड़ाव और विश्वास की अपेक्षा करती/करता, जहाँ मैं अपनी समस्याओं को साझा कर सकूँ और उनसे सलाह ले सकूँ।
- मानवीय व्यवहार: किसी भी परिस्थिति में मानवीय व्यवहार की अपेक्षा सबसे ऊपर होती। काम के बोझ से ज्यादा, यह महत्वपूर्ण होता कि मेरे साथ एक इंसान के तौर पर सम्मानजनक और दयालु व्यवहार हो।
संक्षेप में, मेरी अपेक्षा केवल भौतिक सुविधाओं की नहीं, बल्कि एक ऐसे सम्मानजनक, सीखने योग्य और भावनात्मक रूप से जुड़े रिश्ते की होती, जहाँ मैं अपनी क्षमता का विकास कर सकूँ और मुझे एक व्यक्ति के रूप में पहचाना जाए।
6. महादेवी वर्मा को काव्य प्रतियोगिता में चाँदी का कटोरा मिला था। अनुमान लगाइए कि आपको इस तरह का कोई पुरस्कार मिला हो और वह देशहित में या किसी आपदा निवारण के काम में देना पड़े तो आप कैसा अनुभव करेंगे/करेंगी?
उत्तर: यदि मुझे काव्य प्रतियोगिता में चाँदी का कटोरा जैसा कोई महत्वपूर्ण पुरस्कार मिला होता और उसे देशहित में या किसी आपदा निवारण के काम में देना पड़ता तो मेरा अनुभव भावनाओं का एक मिला-जुला संगम होता:
- गर्व और संतोष: सबसे पहले, मुझे अपने पुरस्कार पर बहुत गर्व होता, क्योंकि वह मेरी मेहनत और प्रतिभा का प्रतीक होता। लेकिन उसे देशहित में देने का विचार मुझे असीम संतोष देता। यह जानकर कि मेरा पुरस्कार किसी बड़े और नेक काम आएगा, मुझे अत्यधिक खुशी महसूस होती। व्यक्तिगत उपलब्धि से बढ़कर यह राष्ट्र या समाज के लिए एक छोटा सा योगदान होता, और यही विचार सबसे बड़ा संतोष देता।
- खुशी और परोपकार की भावना: आपदा के समय या देशहित में दिया गया योगदान स्वयं को एक बड़े उद्देश्य से जोड़ता है। यह खुशी किसी व्यक्तिगत पुरस्कार को अपने पास रखने की खुशी से कहीं अधिक गहरी और स्थायी होती। परोपकार की भावना मन को शांति प्रदान करती है।
- थोड़ा भावनात्मक लगाव (शुरुआत में): शायद, शुरुआत में उस पुरस्कार से थोड़ा भावनात्मक लगाव महसूस होता, क्योंकि वह मेरी पहली बड़ी उपलब्धि का प्रतीक होता। उसे छोड़ने में थोड़ी हिचक होती, लेकिन यह भावना बहुत क्षणिक होती।
- प्रेरणा: यह घटना मुझे भविष्य में और अधिक सामाजिक कार्य करने तथा अपनी क्षमताओं का उपयोग देश और समाज की भलाई के लिए करने की प्रेरणा देती। यह मुझे सिखाता कि व्यक्तिगत सुख से बढ़कर सामूहिक कल्याण कितना महत्वपूर्ण है।
कुल मिलाकर, मैं महसूस करता/करती कि किसी वस्तु का भौतिक मूल्य उतना नहीं होता, जितना उसका उपयोग दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने में होता है। यह एक ऐसा अनुभव होता जो मुझे जीवन भर याद रहता और मुझे सच्चा अर्थपूर्ण जीवन जीने की दिशा दिखाता।
7. लेखिका ने छात्रावास के जिस बहुभाषी परिवेश की चर्चा की है उसे अपनी मातृभाषा में लिखिए।
उत्तर (हिंदी – मातृभाषा मानते हुए):
महादेवी जी ने अपने बचपन के दिनों में छात्रावास के जिस माहौल का ज़िक्र किया है, वह वाकई कमाल का था। वहाँ सिर्फ़ एक या दो भाषाएँ नहीं थीं, बल्कि कई भाषाओं का मेल था, जैसे एक छोटा-मोटा हिंदुस्तान ही सिमटा हुआ हो। वे लिखती हैं कि वहाँ अलग-अलग प्रांतों से लड़कियाँ पढ़ने आती थीं – कोई मराठी बोलती थी, कोई हिंदी, कोई अवधी, कोई बुंदेलखंडी।
मेरा अनुमान है कि इस बहुभाषी परिवेश का मतलब था कि हर लड़की अपनी मातृभाषा में बोलती-बतियाती थी, हँसती-खेलती थी। जब कोई नई बात करनी होती, तो शायद सब मिलकर हिंदी या अंग्रेजी में संवाद करतीं, लेकिन अपने-अपने कमरों में, दोस्तों के बीच वे अपनी-अपनी भाषा में ही बातें करती होंगी। इससे सिर्फ़ भाषाओं का आदान-प्रदान नहीं होता था, बल्कि एक-दूसरे की संस्कृति को भी समझने का मौका मिलता था। मराठी लड़कियाँ अपनी कहानियाँ सुनाती होंगी और बुंदेलखंडी लड़कियाँ अपने लोकगीत। इससे एक ऐसा माहौल बनता होगा, जहाँ भाषाएँ सिर्फ़ संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि दोस्ती और मेलजोल का पुल बनती थीं। यह सुनकर मुझे लगता है कि ऐसा माहौल आज के समय में भी बहुत ज़रूरी है, जहाँ हम एक-दूसरे की भाषाओं और संस्कृतियों का सम्मान कर सकें।
8. महादेवी जी के इस संस्मरण को पढ़ते हुए आपके मानस-पटल पर भी अपने बचपन की कोई स्मृति उभरकर आई होगी, उसे संस्मरण शैली में लिखिए।
उत्तर (संस्मरण शैली में):
गर्मी की दोपहर और आम का पेड़
महादेवी जी का संस्मरण पढ़ते हुए मेरे मन में भी बचपन की एक धूप भरी दोपहर उभर आई। वह गर्मियों की छुट्टी का समय था। हम बच्चे अक्सर दोपहर में घर के बाहर लगे बड़े से आम के पेड़ के नीचे खेलने चले जाते थे। उस समय बिजली की कटौती बहुत होती थी और टीवी-फोन का उतना क्रेज़ नहीं था। हमारी दुनिया वही आम का पेड़ और उसके नीचे की कच्ची मिट्टी थी।
मुझे याद है, पेड़ पर छोटे-छोटे, हरे-पीले आम लटके होते थे। हम बच्चे लाठी लेकर उन्हें तोड़ने की कोशिश करते, पर वे बड़े मुश्किल से गिरते थे। फिर हमारी दादी अम्मा आतीं। उनके पास एक ख़ास तरह की लकड़ी होती थी, जिसके सिरे पर कपड़े का एक जाल बना होता था। वह उस जाल से धीरे से आम को फँसाकर नीचे उतारतीं। आमों को देखकर हमारी आँखें चमक उठतीं।
दादी फिर हमें पेड़ के नीचे ही बिठा देतीं। वह बड़े प्यार से आम धोतीं, फिर उन्हें पत्थर पर रखकर थोड़ा-सा कूटतीं, जिससे उनका रस निकल आता। उसमें नमक, मिर्च और थोड़ा-सा भुना जीरा मिलातीं। उस खट्टे-मीठे, चटपटे आम का स्वाद आज भी मेरी ज़बान पर है। हम सभी भाई-बहन और मोहल्ले के बच्चे, सब मिलकर खाते और उंगलियाँ चाटते रहते। उस पेड़ की छाँव में, दादी के हाथों का वो आम और दोस्तों के साथ की मस्ती—वह सिर्फ़ एक दोपहर नहीं थी, वह बचपन का एक ऐसा सुनहरा टुकड़ा था जो अब बस यादों में ही जीवित है। आज भी जब गर्मी आती है, तो मुझे वह आम का पेड़, दादी और दोस्तों के साथ की वह हँसी याद आ जाती है और मन चाहता है कि काश वो दिन लौट आएँ।
9. महादेवी ने कवि सम्मेलनों में कविता पाठ के लिए अपना नाम बुलाए जाने से पहले होने वाली बेचैनी का जिक्र किया है। अपने विद्यालय में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते समय आपने जो बेचैनी अनुभव की होगी, उस पर डायरी का एक पृष्ठ लिखिए।
उत्तर (डायरी का पृष्ठ):
दिनांक: 15 नवंबर, 2024 (शुक्रवार) समय: शाम 7:30 बजे
प्रिय डायरी,
आज का दिन वाकई यादगार रहा लेकिन साथ ही कितनी बेचैनी से भरा था! आज हमारे विद्यालय का वार्षिक सांस्कृतिक कार्यक्रम था और मैंने उसमें एकल गीत प्रतियोगिता में भाग लिया था। सुबह से ही पेट में तितलियाँ उड़ रही थीं। पता नहीं कितनी बार मैंने अपना गाना दोहराया होगा। घर पर तो मैं बेझिझक गा लेती हूँ, लेकिन स्टेज का ख्याल आते ही हाथ-पैर ठंडे पड़ जाते हैं।
जब कार्यक्रम शुरू हुआ, तो मेरी धड़कनें और तेज हो गईं। एक के बाद एक बच्चे स्टेज पर आ रहे थे। हर परफ़ॉर्मेंस के बाद जब अगले प्रतिभागी का नाम बुलाया जाता, तो मैं आँखें बंद करके दुआ करती कि मेरा नाम न हो। मैं अपनी सीट पर बेचैनी से पैर हिला रही थी, कभी अपनी सहेली का हाथ पकड़ती, तो कभी आँखें बंद करके गीत के बोल याद करती। स्टेज पर जलती तेज़ लाइटें, सामने बैठे सैकड़ों लोग – यह सब सोचकर ही घबराहट होती थी।
फिर वो पल आया। अनाउंसर ने मेरा नाम पुकारा – “और अब, कक्षा नौवीं से, अपनी मधुर आवाज़ में गीत प्रस्तुत करेंगी…” मेरा नाम सुनते ही जैसे साँस अटक गई। पैर लड़खड़ा रहे थे, पर किसी तरह हिम्मत करके स्टेज की ओर बढ़ी। माइक पकड़ा, और एक पल के लिए सब कुछ भूल गई। मैंने गहरी साँस ली और गाना शुरू किया। शुरुआत में आवाज़ थोड़ी काँपी, पर जैसे-जैसे गाना आगे बढ़ा, मैं उसमें डूबती चली गई। श्रोताओं की तालियाँ सुनकर हिम्मत बढ़ती गई।
जब गाना खत्म हुआ और तालियों की गड़गड़ाहट गूँजी, तो ऐसा लगा जैसे मैंने कोई बहुत बड़ी जंग जीत ली हो। स्टेज से नीचे उतरते समय मुझे लगा जैसे मेरे सिर से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया है। वह बेचैनी पूरी तरह से खुशी और संतोष में बदल चुकी थी। आज मैंने सीखा कि डर के बावजूद आगे बढ़ना कितना ज़रूरी है। अगली बार यह बेचैनी ज़रूर होगी, पर मैं जानती हूँ कि मैं उससे लड़ सकती हूँ।
आज के लिए बस इतना ही।
शुभरात्रि! [आपका नाम]
भाषा-अध्ययन: ‘मेरे बचपन के दिन’
10. पाठ से निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द ढूँढ़कर लिखिए-
(यह ध्यान रखना होगा कि विलोम शब्द पाठ में सीधे तौर पर आए हों या उनके भाव के अनुरूप हों। यदि सीधे नहीं मिलते तो सामान्य विलोम दिए जाएंगे।)
- विद्वान
- पाठ से (अनुमानित/भावार्थ): अज्ञानी / मूर्ख (पाठ में सीधे ‘विद्वान’ का विलोम नहीं है, लेकिन शिक्षा और ज्ञान के संदर्भ में इसका विपरीत भाव देखा जा सकता है।)
- सामान्य विलोम: मूर्ख, अज्ञानी
- अनंत
- पाठ से: अंत (लेखिका के बचपन की स्मृतियाँ, उनके गीत-संगीत का अंत, आजादी की लड़ाई का अंत – ऐसे संदर्भों में)
- सामान्य विलोम: अंत, सीमित
- निरपराधी
- पाठ से (अनुमानित/भावार्थ): अपराधी / दोषी (पाठ में सीधा उल्लेख नहीं, लेकिन न्याय-अन्याय के संदर्भ में भावार्थ)
- सामान्य विलोम: अपराधी, दोषी
- दंड
- पाठ से (अनुमानित/भावार्थ): पुरस्कार / इनाम (पाठ में प्रतियोगिता और पुरस्कार के संदर्भ में)
- सामान्य विलोम: पुरस्कार, इनाम
- शांति
- पाठ से: अशांति / कोलाहल / युद्ध (स्वतंत्रता आंदोलन के संदर्भ में)
- सामान्य विलोम: अशांति, कोलाहल, उपद्रव
11. निम्नलिखित शब्दों से उपसर्ग/प्रत्यय अलग कीजिए और मूल शब्द बताइए-
- निराहारी
- उपसर्ग: निर- (या निस्-)
- मूल शब्द: आहार
- प्रत्यय: -ई
- विश्लेषण: निर + आहार + ई
- सांप्रदायिकता
- उपसर्ग: (कोई नहीं)
- मूल शब्द: संप्रदाय
- प्रत्यय: -इक + -ता
- विश्लेषण: संप्रदाय + इक + ता (यहाँ ‘इक’ प्रत्यय लगने पर ‘संप्रदाय’ के ‘अ’ का ‘आ’ हो जाता है – सांप्रदायिक)
- अप्रसन्नता
- उपसर्ग: अ-
- मूल शब्द: प्रसन्न
- प्रत्यय: -ता
- विश्लेषण: अ + प्रसन्न + ता
- अपनापन
- उपसर्ग: (कोई नहीं)
- मूल शब्द: अपना
- प्रत्यय: -पन
- विश्लेषण: अपना + पन
- किनारीदार
- उपसर्ग: (कोई नहीं)
- मूल शब्द: किनारा
- प्रत्यय: -ई + -दार (यहाँ ‘ई’ प्रत्यय भी हो सकता है, जैसे ‘किनारी’ और फिर ‘दार’)
- विश्लेषण: किनारा + ई (बड़ी) + दार (या सीधे किनारी + दार)
- स्वतंत्रता
- उपसर्ग: स्व-
- मूल शब्द: तंत्र
- प्रत्यय: -ता
- विश्लेषण: स्व + तंत्र + ता
12. निम्नलिखित उपसर्ग-प्रत्ययों की सहायता से दो-दो शब्द लिखिए-
उपसर्ग:
- अनु-
- अनुभव
- अनुशासन
- अ-
- अज्ञान
- अविश्वास
- सत्-
- सत्कर्म
- सज्जन (सत् + जन)
- स्व-
- स्वदेश
- स्वतंत्र
- दुर्-
- दुर्जन
- दुर्भाग्य
प्रत्यय:
- -दार
- ईमानदार
- दुकानदार
- -हार
- पालनहार
- होनहार
- -वाला
- दूधवाला
- सब्जीवाला
- -अनीय
- पूजनीय
- करणीय
13. पाठ में आए सामासिक पद छाँटकर विग्रह कीजिए…
(यहाँ कुछ उदाहरण दिए गए हैं जो पाठ में या उसके सामान्य विषयवस्तु में आ सकते हैं, यदि आपको पाठ में कोई विशिष्ट सामासिक पद मिलता है तो उसका भी उपयोग करें।)
- पूजा-पाठ
- विग्रह: पूजा और पाठ (द्वंद्व समास)
- भाई-बहन
- विग्रह: भाई और बहन (द्वंद्व समास)
- माता-पिता
- विग्रह: माता और पिता (द्वंद्व समास)
- स्त्री-पुरुष
- विग्रह: स्त्री और पुरुष (द्वंद्व समास)
- देश-विदेश
- विग्रह: देश और विदेश (द्वंद्व समास)
- धर्म-कर्म
- विग्रह: धर्म और कर्म (द्वंद्व समास)
- कवि-सम्मेलन
- विग्रह: कवियों का सम्मेलन (तत्पुरुष समास – संबंध तत्पुरुष)
- मिशन स्कूल
- विग्रह: मिशन का स्कूल (तत्पुरुष समास – संबंध तत्पुरुष)
- पुस्तकालय
- विग्रह: पुस्तकों का आलय (घर) (तत्पुरुष समास – संबंध तत्पुरुष)
- राष्ट्रध्वज
- विग्रह: राष्ट्र का ध्वज (तत्पुरुष समास – संबंध तत्पुरुष)
‘मेरे बचपन के दिन’ – अतिरिक्त जानकारी: ‘स्त्री दर्पण’ पत्रिका
‘स्त्री दर्पण’ पत्रिका का परिचय
- नाम: स्त्री दर्पण
- प्रकाशन स्थल: इलाहाबाद (जो महादेवी वर्मा की शिक्षा-दीक्षा का केंद्र भी रहा)
- संपादिका: श्रीमती रामेश्वरी नेहरू
- प्रकाशन काल: सन् 1909 से सन् 1924 तक लगातार प्रकाशित होती रही।
- मुख्य उद्देश्य:
- स्त्रियों में व्याप्त अशिक्षा (निरक्षरता) के प्रति जागृति (जागरूकता) पैदा करना।
- स्त्रियों में प्रचलित कुरीतियों (सामाजिक बुराइयों या गलत रीति-रिवाजों) के प्रति जागरूकता पैदा करना।
- संक्षेप में, इसका मुख्य लक्ष्य महिलाओं के सशक्तिकरण, शिक्षा और सामाजिक सुधारों के लिए एक मंच प्रदान करना था।
‘मेरे बचपन के दिन’ पाठ से संबंध और प्रासंगिकता
- यह पत्रिका उस समय प्रकाशित हो रही थी जब महादेवी वर्मा अपना बचपन जी रही थीं और शिक्षा प्राप्त कर रही थीं।
- यह पत्रिका उस दौर के सामाजिक सुधार आंदोलनों और स्त्री शिक्षा के बढ़ते महत्व को दर्शाती है। महादेवी वर्मा के परिवार में लड़कियों की शिक्षा को जो महत्व दिया गया, वह इस तरह की पत्रिकाओं द्वारा फैलाए जा रहे विचारों का ही एक परिणाम था।
- यह जानकारी पाठ के उस संदर्भ को पुष्ट करती है जहाँ लेखिका ने लड़कियों की दशा और उनके शिक्षा के अधिकार के लिए किए जा रहे प्रयासों का उल्लेख किया है।
- यह दर्शाता है कि समाज में कुछ लोग महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे थे, और ‘स्त्री दर्पण’ उसी प्रयास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी।
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) – मेरे बचपन के दिन
निर्देश: सही विकल्प का चयन कीजिए।
- ‘मेरे बचपन के दिन’ पाठ की लेखिका कौन हैं? (अ) सुभद्रा कुमारी चौहान (ब) महादेवी वर्मा (सही उत्तर) (स) मन्नू भंडारी (द) उषा प्रियंवदा
- महादेवी वर्मा का जन्म किस वर्ष हुआ था? (अ) 1905 (ब) 1907 (सही उत्तर) (स) 1910 (द) 1915
- महादेवी वर्मा का जन्म स्थान कहाँ था? (अ) इलाहाबाद (ब) लखनऊ (स) फ़र्रुखाबाद (सही उत्तर) (द) कानपुर
- महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य के किस ‘वाद’ की प्रमुख कवयित्री थीं? (अ) प्रयोगवाद (ब) प्रगतिवाद (स) छायावाद (सही उत्तर) (द) रहस्यवाद
- महादेवी वर्मा को किस काव्य संग्रह के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था? (अ) नीहार (ब) रश्मि (स) नीरजा (द) यामा (सही उत्तर)
- महादेवी वर्मा ने लड़कियों की शिक्षा के लिए कहाँ कार्य किया? (अ) काशी हिंदू विश्वविद्यालय (ब) दिल्ली विश्वविद्यालय (स) प्रयाग महिला विद्यापीठ (सही उत्तर) (द) शांति निकेतन
- लेखिका ने अपने बचपन के दिनों को किसके सहारे लिखा है? (अ) कल्पना के सहारे (ब) पुस्तकों के सहारे (स) स्मृति के सहारे (सही उत्तर) (द) दूसरों से सुनकर
- महादेवी वर्मा को उनके जन्म के समय अन्य लड़कियों की तरह क्या सहना नहीं पड़ा? (अ) शिक्षा से वंचित रहना (ब) तिरस्कार या उपेक्षा (सही उत्तर) (स) गरीबी (द) बचपन में ही विवाह
- लेखिका उर्दू-फ़ारसी क्यों नहीं सीख पाईं? (अ) उन्हें मौलवी साहब पसंद नहीं थे। (ब) उनके परिवार में यह परंपरा नहीं थी और माँ हिंदी-संस्कृत पर जोर देती थीं। (सही उत्तर) (स) उन्हें ये भाषाएँ कठिन लगती थीं। (द) स्कूल में इन भाषाओं की पढ़ाई नहीं होती थी।
- लेखिका की माँ किस भाषा की अच्छी ज्ञाता थीं? (अ) उर्दू और फ़ारसी (ब) हिंदी और संस्कृत (सही उत्तर) (स) बंगाली और मराठी (द) अंग्रेजी और पंजाबी
- महादेवी वर्मा की माँ कविताएँ किस भाषा में लिखती थीं? (अ) उर्दू (ब) ब्रजभाषा (सही उत्तर) (स) अवधी (द) खड़ी बोली
- छात्रावास में लेखिका की सबसे पुरानी सहपाठिन कौन थी? (अ) ज़ेबुन्निसा (ब) सुभद्रा कुमारी चौहान (सही उत्तर) (स) जैनाब (द) मैत्रेयी
- ‘स्त्री दर्पण’ नामक पत्रिका का प्रकाशन कहाँ से होता था? (अ) कलकत्ता (ब) बनारस (स) इलाहाबाद (सही उत्तर) (द) दिल्ली
- ‘स्त्री दर्पण’ पत्रिका की संपादिका कौन थीं? (अ) महादेवी वर्मा (ब) सुभद्रा कुमारी चौहान (स) श्रीमती रामेश्वरी नेहरू (सही उत्तर) (द) शिवरानी देवी
- ‘स्त्री दर्पण’ पत्रिका का मुख्य उद्देश्य क्या था? (अ) मनोरंजन (ब) राजनीतिक खबरें छापना (स) स्त्रियों में अशिक्षा और कुरीतियों के प्रति जागृति पैदा करना (सही उत्तर) (द) साहित्य का प्रचार करना
- छात्रावास में विभिन्न प्रांतों की छात्राओं के रहने से कैसा परिवेश बनता था? (अ) संघर्षपूर्ण (ब) बहुभाषी (सही उत्तर) (स) एकाकी (द) धार्मिक
- लेखिका ने जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को आज के संदर्भ में कैसा बताया है? (अ) बहुत सामान्य (ब) स्वप्न जैसा (सही उत्तर) (स) तनावपूर्ण (द) आवश्यक
- जवारा के नवाब की पत्नी लेखिका को क्या कहकर बुलाती थीं? (अ) भाभी (ब) बहन (स) बुआ (सही उत्तर) (द) बेटी
- ‘अतीत के चलचित्र’ और ‘स्मृति की रेखाएँ’ महादेवी वर्मा की किस विधा की रचनाएँ हैं? (अ) काव्य संग्रह (ब) उपन्यास (स) रेखाचित्र तथा संस्मरण (सही उत्तर) (द) नाटक
- महादेवी वर्मा के संस्मरणों और रेखाचित्रों में किनके प्रति आत्मीयता और करुणा प्रकट हुई है? (अ) केवल शोषित, पीड़ित लोगों के प्रति (ब) केवल पशु-पक्षियों के प्रति (स) शोषित, पीड़ित लोगों और पशु-पक्षियों दोनों के प्रति (सही उत्तर) (द) केवल अपने परिवार के सदस्यों के प्रति