रीढ़ की हड्डी – जगदीशचंद्र माथुर
रीढ़ की हड्डी – जगदीशचंद्र माथुर (सारांश)
लेखक: जगदीशचंद्र माथुर
पाठ: NCERT कक्षा 9 हिंदी पाठ्यपुस्तक – कृतिका भाग 1
सारांश:
“रीढ़ की हड्डी” एक एकांकी नाटक है, जो सामाजिक रूढ़ियों, विशेष रूप से स्त्री-पुरुष समानता और नारी की स्वतंत्रता के मुद्दों पर तीखा व्यंग्य करता है। यह नाटक समाज में प्रचलित पितृसत्तात्मक मानसिकता और दहेज प्रथा की आलोचना करता है, साथ ही यह दर्शाता है कि कैसे साहसी और आत्मनिर्भर नारी अपने आत्मसम्मान की रक्षा करती है।
नाटक की कहानी रमाकांत और लक्ष्मी के इर्द-गिर्द घूमती है। रमाकांत एक मध्यमवर्गीय युवक है, जो अपनी बहन के लिए वर की तलाश में है। वह अपनी बहन का विवाह एक अच्छे परिवार में करना चाहता है, लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर है। दूसरी ओर, लक्ष्मी एक शिक्षित, आत्मनिर्भर, और प्रगतिशील विचारों वाली युवती है, जो अपने आत्मसम्मान को सर्वोपरि मानती है। वह रमाकांत के मित्र की बहन है, और रमाकांत उसे अपने मित्र के लिए उपयुक्त मानता है।
जब रमाकांत लक्ष्मी के घर वर की तलाश में जाता है, तो वह लक्ष्मी के आत्मविश्वास और स्पष्टवादी स्वभाव से प्रभावित होता है। लक्ष्मी दहेज प्रथा और सामाजिक बंधनों की कटु आलोचना करती है। वह स्पष्ट रूप से कहती है कि वह किसी ऐसे पुरुष से विवाह नहीं करेगी जो दहेज की अपेक्षा रखता हो या जो उसे अपनी बराबरी का न माने। वह अपनी स्वतंत्रता और आत्मसम्मान को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ना चाहती।

रमाकांत शुरू में लक्ष्मी के विचारों से असहज होता है, क्योंकि वह परंपरागत सोच में बंधा है। लेकिन लक्ष्मी की दृढ़ता और तर्कपूर्ण बातें उसे सोचने पर मजबूर कर देती हैं। नाटक में लक्ष्मी का चरित्र एक ऐसी नारी का प्रतीक है, जो अपनी “रीढ़ की हड्डी” अर्थात् आत्मसम्मान और स्वतंत्रता को बनाए रखती है। वह समाज की रूढ़ियों को चुनौती देती है और यह साबित करती है कि नारी पुरुषों के समान ही सक्षम और स्वतंत्र हो सकती है।
मुख्य संदेश:
नाटक समाज में दहेज प्रथा और पितृसत्तात्मक मानसिकता की आलोचना करता है। यह दर्शाता है कि शिक्षा और आत्मविश्वास से नारी अपनी पहचान बना सकती है और सामाजिक बंधनों से मुक्त होकर अपने आत्मसम्मान की रक्षा कर सकती है। लक्ष्मी का चरित्र नारी सशक्तीकरण और समानता का प्रतीक है, जो आधुनिक समाज के लिए एक प्रेरणा है।
महत्वपूर्ण बिंदु:
नाटक में व्यंग्य और हास्य का उपयोग सामाजिक कुरीतियों को उजागर करने के लिए किया गया है।
लक्ष्मी का चरित्र नारी की स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।
यह पाठ नारी के आत्मसम्मान और समाज में उसकी बराबरी की स्थिति पर जोर देता है।
प्रश्न-अभ्यास के उत्तर: रीढ़ की हड्डी – जगदीशचंद्र माथुर
1. रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद बात-बात पर “एक हमारा ज़माना था …” कहकर अपने समय की तुलना वर्तमान समय से करते हैं। इस प्रकार की तुलना करना कहाँ तक तर्कसंगत है?
रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद की अपने समय की तुलना वर्तमान से करने की प्रवृत्ति आंशिक रूप से तर्कसंगत हो सकती है, क्योंकि यह मानवीय स्वभाव है कि लोग अपने अतीत को आदर्श मानकर वर्तमान की कमियों को उजागर करते हैं। यह तुलना तब तर्कसंगत है जब वह सामाजिक मूल्यों, नैतिकता, या सादगी जैसे पहलुओं पर सकारात्मक चर्चा को बढ़ावा देती है। हालांकि, यह तुलना तब अतर्कसंगत हो जाती है जब वह रूढ़िगत सोच को बढ़ावा देती है या वर्तमान की प्रगति, जैसे नारी शिक्षा और स्वतंत्रता, को नकारती है। नाटक में उनकी यह तुलना उनकी रूढ़िवादी मानसिकता को दर्शाती है, जो नारी के आत्मसम्मान और समानता के विचारों को स्वीकार करने में बाधा बनती है।
2. रामस्वरूप का अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाना और विवाह के लिए छिपाना, यह विरोधाभास उनकी किस विवशता को उजागर करता है?
रामस्वरूप का यह विरोधाभास उनकी सामाजिक दबावों और रूढ़ियों के प्रति विवशता को उजागर करता है। वह अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाकर प्रगतिशीलता दिखाता है, लेकिन विवाह के लिए उसकी शिक्षा को छिपाना यह दर्शाता है कि वह सामाजिक अपेक्षाओं और दहेज-प्रधान विवाह प्रथा के दबाव में है। उसे डर है कि बेटी की उच्च शिक्षा का उल्लेख करने से लड़के वाले उसे अस्वीकार कर सकते हैं, क्योंकि उस समय समाज में शिक्षित लड़कियों को विवाह के लिए कम उपयुक्त माना जाता था। यह उनकी प्रगतिशीलता और सामाजिक बंधनों के बीच की टकराहट को दर्शाता है।
3. अपनी बेटी का रिश्ता तय करने के लिए रामस्वरूप उमा से जिस प्रकार व्यवहार कर रहे हैं, वह उचित क्यों नहीं है?
रामस्वरूप का उमा से व्यवहार उचित नहीं है, क्योंकि वह उमा की शिक्षा, आत्मसम्मान, और व्यक्तित्व को नजरअंदाज करते हुए केवल सामाजिक रीति-रिवाजों और दहेज के आधार पर रिश्ता तय करने की कोशिश करते हैं। वे उमा की राय या इच्छाओं को महत्व नहीं देते और उसे एक वस्तु की तरह प्रस्तुत करते हैं, जो विवाह के “बिजनेस” का हिस्सा बन जाती है। यह व्यवहार उमा की स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता को दबाता है, जो नारी की गरिमा और समानता के खिलाफ है।
4. गोपाल प्रसाद विवाह को ‘बिजनेस’ मानते हैं और रामस्वरूप अपनी बेटी की उच्च शिक्षा छिपाते हैं। क्या आप मानते हैं कि दोनों ही समान रूप से अपराधी हैं? अपने विचार लिखें।
हाँ, दोनों ही अपनी-अपनी तरह से समाज की रूढ़ियों को बढ़ावा देने के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं। गोपाल प्रसाद विवाह को एक व्यापारिक सौदा मानते हैं, जिसमें दहेज और सामाजिक प्रतिष्ठा को प्राथमिकता दी जाती है, जो नारी के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाता है। दूसरी ओर, रामस्वरूप अपनी बेटी की शिक्षा छिपाकर सामाजिक रूढ़ियों को स्वीकार करते हैं और उसकी स्वतंत्र पहचान को दबाते हैं। दोनों की मानसिकता पितृसत्तात्मक और दहेज-प्रधान व्यवस्था को बनाए रखती है, जो नारी की स्वतंत्रता और समानता के खिलाफ है। हालांकि, गोपाल प्रसाद की सोच अधिक प्रत्यक्ष रूप से नारी-विरोधी है, जबकि रामस्वरूप की विवशता सामाजिक दबावों से उपजती है। इस तरह, दोनों की गलतियाँ अलग-अलग संदर्भों में हैं, लेकिन प्रभाव में समान रूप से हानिकारक हैं।
5. “… आपके लाड़ले बेटे की रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं…” उमा इस कथन के माध्यम से शंकर की किन कमियों की ओर संकेत करना चाहती है?
उमा इस कथन के माध्यम से शंकर की कमजोर इच्छाशक्ति, आत्मविश्वास की कमी, और स्वतंत्र निर्णय लेने में असमर्थता की ओर संकेत करती है। वह शंकर को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखती है जो अपनी माँ और सामाजिक रूढ़ियों के दबाव में है और जो दहेज के लालच में विवाह जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लेता है। “रीढ़ की हड्डी” यहाँ आत्मसम्मान, साहस, और स्वतंत्रता का प्रतीक है, जिसकी कमी शंकर में स्पष्ट है। उमा यह कहकर शंकर की नारी के प्रति रूढ़िगत सोच और कमजोर व्यक्तित्व की आलोचना करती है।
6. शंकर जैसे लड़के या उमा जैसी लड़की – समाज को कैसे व्यक्तित्व की ज़रूरत है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
समाज को उमा जैसे व्यक्तित्व की अधिक आवश्यकता है। उमा एक शिक्षित, आत्मनिर्भर, और स्वतंत्र विचारों वाली युवती है, जो सामाजिक रूढ़ियों और दहेज प्रथा के खिलाफ खुलकर बोलती है। वह अपने आत्मसम्मान को सर्वोपरि मानती है और पुरुषों के साथ बराबरी की मांग करती है। ऐसे व्यक्तित्व समाज में नारी सशक्तीकरण, समानता, और प्रगतिशीलता को बढ़ावा देते हैं। दूसरी ओर, शंकर जैसे लोग, जो सामाजिक दबावों और दहेज की लालच में निर्णय लेते हैं, समाज की रूढ़िगत और पितृसत्तात्मक संरचना को बनाए रखते हैं। उमा जैसे व्यक्तित्व समाज को बदलाव की दिशा में ले जाते हैं, क्योंकि वे न केवल स्वयं के लिए बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनते हैं।
7. ‘रीढ़ की हड्डी’ शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
‘रीढ़ की हड्डी’ शीर्षक नाटक का केंद्रीय विचार है, जो आत्मसम्मान, साहस, और स्वतंत्रता का प्रतीक है। यह शीर्षक उमा के चरित्र को रेखांकित करता है, जो अपनी स्वतंत्रता और आत्मसम्मान को बनाए रखती है और सामाजिक रूढ़ियों के खिलाफ दृढ़ता से खड़ी होती है। नाटक में उमा का यह सवाल कि “आपके लाड़ले बेटे की रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं” शंकर की कमजोर इच्छाशक्ति और आत्मसम्मान की कमी की ओर इशारा करता है। यह शीर्षक समाज में नारी के आत्मसम्मान और पुरुषों की कमजोर मानसिकता के बीच के अंतर को उजागर करता है, जिससे नाटक का उद्देश्य और प्रभाव और भी स्पष्ट हो जाता है।
8. कथावस्तु के आधार पर आप किसे एकांकी का मुख्य पात्र मानते हैं और क्यों?
कथावस्तु के आधार पर उमा को एकांकी का मुख्य पात्र माना जा सकता है। वह नाटक का केंद्रीय चरित्र है, जिसके विचार और व्यवहार नाटक के मुख्य संदेश – नारी सशक्तीकरण और दहेज प्रथा की आलोचना – को रेखांकित करते हैं। उमा की स्वतंत्रता, आत्मसम्मान, और रूढ़ियों के खिलाफ विद्रोह नाटक को गति और दिशा प्रदान करता है। उसका दृढ़ और स्पष्टवादी स्वभाव न केवल रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद की रूढ़िगत सोच को चुनौती देता है, बल्कि दर्शकों/पाठकों को भी प्रगतिशील विचारों की ओर प्रेरित करता है। इसलिए, उमा नाटक की आत्मा और मुख्य पात्र है।
9. एकांकी के आधार पर रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए।
रामस्वरूप:
- रूढ़िवादी: वह सामाजिक रीति-रिवाजों और दहेज प्रथा के दबाव में बेटी की शिक्षा छिपाता है।
- विवश: वह प्रगतिशील विचारों को अपनाता है (बेटी को उच्च शिक्षा देता है), लेकिन सामाजिक अपेक्षाओं के आगे झुक जाता है।
- सामाजिक दबाव में: वह बेटी का रिश्ता तय करने के लिए सामाजिक मान्यताओं को प्राथमिकता देता है।
गोपाल प्रसाद:
- लालची: वह विवाह को एक ‘बिजनेस’ मानता है और दहेज को प्राथमिकता देता है।
- पितृसत्तात्मक: वह नारी को पुरुष से कमतर मानता है और उनकी स्वतंत्रता को स्वीकार नहीं करता।
- रूढ़िगत सोच: वह अपने समय की तुलना वर्तमान से करता है और पुरानी मान्यताओं को श्रेष्ठ मानता है।
10. इस एकांकी का क्या उद्देश्य है? लिखिए।
इस एकांकी का उद्देश्य समाज में प्रचलित दहेज प्रथा और पितृसत्तात्मक मानसिकता की आलोचना करना और नारी सशक्तीकरण को बढ़ावा देना है। यह नाटक दर्शाता है कि कैसे शिक्षा और आत्मविश्वास से नारी अपनी स्वतंत्रता और आत्मसम्मान की रक्षा कर सकती है। उमा के चरित्र के माध्यम से यह नाटक समाज को यह संदेश देता है कि नारी पुरुषों के समान ही सक्षम है और उसे बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए। साथ ही, यह पुरुषों की कमजोर मानसिकता और सामाजिक रूढ़ियों पर व्यंग्य करता है, जिससे समाज में जागरूकता और बदलाव की प्रेरणा मिलती है।
11. समाज में महिलाओं को उचित गरिमा दिलाने हेतु आप कौन-कौन से प्रयास कर सकते हैं?
- शिक्षा को बढ़ावा: महिलाओं के लिए शिक्षा को सुलभ और अनिवार्य करना, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।
- जागरूकता अभियान: दहेज प्रथा, लैंगिक भेदभाव, और रूढ़ियों के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए अभियान चलाना।
- कानूनी जागरूकता: महिलाओं को उनके अधिकारों, जैसे समान वेतन, संपत्ति का अधिकार, और हिंसा के खिलाफ कानूनों की जानकारी देना।
- महिलाओं का नेतृत्व: कार्यस्थलों और समाज में महिलाओं को नेतृत्व के अवसर प्रदान करना।
- सामाजिक समानता: लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों, कॉलेजों, और समुदायों में कार्यक्रम आयोजित करना।
- प्रेरक कहानियाँ: उमा जैसे सशक्त महिला पात्रों की कहानियों को साहित्य, मीडिया, और शिक्षा के माध्यम से प्रचारित करना।