कक्षा 9प्राकृतिक वनस्पति और वन्य प्राणी : MP board Class 9 SST Natural vegetation and wildlife

MP board Class 9 SST Natural vegetation and wildlife

MP board Class 9 SST Natural vegetation and wildlife: कक्षा 9वीं सामाजिक विज्ञान की पुस्तक “समकालीन भारत” के अध्याय “प्राकृतिक वनस्पति और वन्य प्राणी” (MP board Class 9 SST Natural vegetation and wildlife) के विस्तृत नोट्स हिंदी में दिए गए हैं, जो छात्रों के लिए परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे और आसानी से याद किए जा सकेंगे।

अध्याय 5: प्राकृतिक वनस्पति और वन्य प्राणी

1. परिचय (Introduction)

  • प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation): वनस्पति का वह भाग जो मनुष्य की सहायता के बिना अपने आप उगता है और लंबे समय तक उस पर मानवीय प्रभाव नहीं पड़ता। इसे ‘अक्षत वनस्पति’ (Virgin Vegetation) भी कहते हैं।
  • वन्य प्राणी (Wildlife): किसी विशेष क्षेत्र में पाए जाने वाले सभी प्रकार के जंगली जानवर।
  • भारत एक विशाल देश है, जहाँ प्राकृतिक वनस्पति और वन्य प्राणियों में बहुत अधिक विविधता पाई जाती है।

2. वनस्पति और प्राणी जगत को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Flora and Fauna)

वनस्पति और वन्य प्राणियों की विविधता निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है:

2.1 भू-भाग (Relief)

  • भूमि (Land): भूमि का स्वरूप वनस्पति के प्रकार को प्रभावित करता है। उपजाऊ भूमि पर कृषि की जाती है, जबकि ऊबड़-खाबड़ और पहाड़ी क्षेत्रों में वन तथा घास के मैदान होते हैं, जहाँ वन्य प्राणियों को आश्रय मिलता है।
  • मृदा (Soil): अलग-अलग प्रकार की मृदा (जैसे रेतीली, दलदली, डेल्टा) अलग-अलग प्रकार की वनस्पति को सहारा देती है। उदाहरण: मरुस्थल में कंटीली झाड़ियाँ, दलदली क्षेत्रों में मैंग्रोव।

2.2 जलवायु (Climate)

  • तापमान (Temperature): वनस्पति के विकास के लिए तापमान और आर्द्रता (humidity) महत्वपूर्ण हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान घटता है, जिससे वनस्पति के प्रकार बदलते हैं (जैसे उष्णकटिबंधीय से टुंड्रा)।
  • सूर्य का प्रकाश (Sunlight): सूर्य के प्रकाश की अवधि पेड़-पौधों की वृद्धि को प्रभावित करती है। अधिक प्रकाश में पेड़ तेज़ी से बढ़ते हैं।
  • वर्षा (Precipitation): अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में घने वन होते हैं, जबकि कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कंटीली झाड़ियाँ और घास उगती है। भारत में मानसूनी वर्षा (monsoon rainfall) वनस्पति को सबसे अधिक प्रभावित करती है।

3. वनस्पति के प्रकार (Types of Vegetation)

भारत में वर्षा की मात्रा और जलवायु परिस्थितियों के आधार पर पाँच मुख्य प्रकार की प्राकृतिक वनस्पति पाई जाती है:

3.1 उष्णकटिबंधीय वर्षा वन (Tropical Evergreen Forests)

  • विशेषताएँ:
    • ये उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ 200 सेमी से अधिक वर्षा होती है और शुष्क मौसम (dry season) छोटा होता है।
    • ये वन बहुत घने (very dense) होते हैं और वर्ष भर हरे-भरे (evergreen) रहते हैं।
    • इन वनों में पेड़ों की ऊँचाई 60 मीटर या उससे भी अधिक होती है।
    • यहां विभिन्न प्रकार की वनस्पति (पेड़, झाड़ियाँ, लताएँ) मिलती है, जिससे यह बहु-स्तरीय संरचना (multi-layered structure) बनाते हैं।
  • क्षेत्र: पश्चिमी घाट (Western Ghats), लक्षद्वीप (Lakshadweep), अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (Andaman and Nicobar Islands), असम का ऊपरी भाग और तमिलनाडु तट।
  • प्रमुख वृक्ष: आबनूस (Ebony), महोगनी (Mahogany), रोजवुड (Rosewood), रबड़ (Rubber), सिनकोना (Cinchona)।

3.2 उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन (Tropical Deciduous Forests)

  • इन्हें मानसूनी वन (Monsoon Forests) भी कहते हैं।
  • विशेषताएँ:
    • ये उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ 70 सेमी से 200 सेमी वर्षा होती है।
    • ये वन शुष्क ग्रीष्म ऋतु में (लगभग 6-8 सप्ताह के लिए) अपने पत्ते गिरा देते हैं ताकि पानी बचाया जा सके।
    • ये भारत में सबसे बड़े क्षेत्र में फैले हुए हैं।
  • क्षेत्र: देश के पूर्वी भाग (पूर्वोत्तर राज्य), हिमालय की तलहटी, झारखंड, पश्चिम ओडिशा, छत्तीसगढ़, और पश्चिमी घाट के पूर्वी ढलान।
  • प्रमुख वृक्ष: सागौन (Teak) (सबसे महत्वपूर्ण प्रजाति), बाँस (Bamboo), साल (Sal), शीशम (Shisham), चंदन (Sandalwood), खैर (Khair), कुसुम (Kusum), अर्जुन (Arjun), शहतूत (Mulberry)।
  • प्रकार:
    • आर्द्र पर्णपाती वन (Moist Deciduous Forests): 100-200 सेमी वर्षा वाले क्षेत्र। (जैसे हिमालय की तलहटी, पश्चिमी ओडिशा)
    • शुष्क पर्णपाती वन (Dry Deciduous Forests): 70-100 सेमी वर्षा वाले क्षेत्र। (जैसे प्रायद्वीपीय पठार के वर्षा-छाया क्षेत्र)

3.3 उष्णकटिबंधीय कंटीले वन तथा झाड़ियाँ (Tropical Thorn Forests and Scrubs)

  • विशेषताएँ:
    • ये उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ 70 सेमी से कम वर्षा होती है।
    • इनमें पेड़ कम होते हैं और झाड़ियाँ तथा कँटीली वनस्पतियाँ प्रमुख होती हैं।
    • पेड़ों की जड़ें लंबी होती हैं ताकि पानी की तलाश में गहराई तक जा सकें। तना रसीला होता है और पत्तियाँ छोटी व मोटी होती हैं ताकि वाष्पीकरण कम हो।
  • क्षेत्र: उत्तर-पश्चिमी भारत के अर्ध-शुष्क क्षेत्र (semi-arid areas) जैसे गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ भाग।
  • प्रमुख वृक्ष: बबूल (Acacias), खजूर (Date palm), यूफोरबिया (Euphorbias), नागफनी (Cacti/Prosopis) और कैक्टस।

3.4 पर्वतीय वन (Montane Forests)

  • ये हिमालय और प्रायद्वीपीय पहाड़ों में ऊँचाई के अनुसार पाए जाते हैं।
  • विशेषताएँ:
    • 1000-2000 मीटर की ऊँचाई पर: शीतोष्ण कटिबंधीय वन (Temperate Forests) जैसे ओक (Oak), चेस्टनट (Chestnut)।
    • 1500-3000 मीटर की ऊँचाई पर: कोणधारी वन (Coniferous Forests) जैसे चीड़ (Pine), देवदार (Deodar), सिल्वर फर (Silver Fir), स्प्रूस (Spruce), सीडर (Cedar)।
    • 3600 मीटर से अधिक ऊँचाई पर: अल्पाइन वनस्पति (Alpine Vegetation) जैसे सिल्वर फर, जूनीपर (Juniper), पाइन, बर्च (Birch)।
    • जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती है, वनस्पति का आकार छोटा होता जाता है और अंत में केवल घास के मैदान (grasslands) और टुंड्रा वनस्पति (Tundra vegetation) मिलती है।
  • क्षेत्र: हिमालयी क्षेत्र, नीलगिरि, अरावली के ऊँचे भाग।

3.5 मैंग्रोव वन (Mangrove Forests)

  • इन्हें ज्वारीय वन (Tidal Forests) भी कहते हैं।
  • विशेषताएँ:
    • ये तटों पर या डेल्टा क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ ज्वार-भाटा (tides) आता है।
    • इनकी जड़ें पानी में डूबी रहती हैं और पानी में भी साँस लेने के लिए कई जड़ें (pneumatophores) जमीन से ऊपर निकली रहती हैं।
    • ये मिट्टी को बांधे रखते हैं और तट रेखा को स्थिर करते हैं।
  • क्षेत्र: गंगा (Ganga), ब्रह्मपुत्र (Brahmaputra), महानदी (Mahanadi), कृष्णा (Krishna), गोदावरी (Godavari) और कावेरी (Kaveri) नदियों के डेल्टा क्षेत्र। सुंदरबन (गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा) विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन क्षेत्र है।
  • प्रमुख वृक्ष: सुंदरी वृक्ष (Sundari trees) (सुंदरबन में)।

4. वन्य प्राणी (Wildlife)

  • भारत में लगभग 90,000 पशु प्रजातियाँ (animal species) और 2,000 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ (bird species) पाई जाती हैं।
  • यह विश्व के कुल पक्षी प्रजातियों का 13% है।
  • भारत में मछली (fish) की 2,500 से अधिक प्रजातियाँ हैं, जो विश्व की कुल मछलियों का 12% है।
  • यह विश्व के 5-8% उभयचरों (amphibians), सरीसृपों (reptiles) और स्तनधारियों (mammals) का भी घर है।

4.1 भारत के प्रमुख वन्य प्राणी (Major Wildlife of India)

  • स्तनधारी: हाथी (Elephant) (असम, कर्नाटक, केरल), एक सींग वाला गैंडा (One-horned Rhinoceros) (असम, पश्चिम बंगाल के दलदली क्षेत्र), जंगली गधे (Wild Ass) (कच्छ का रन), ऊँट (Camel) (थार मरुस्थल)।
  • हिमालय: याक (Yak), हिम तेंदुआ (Snow Leopard), भालू (Bear), लाल पांडा (Red Panda)।
  • बाघ (Tiger): मध्य प्रदेश, सुंदरबन (पश्चिम बंगाल) और हिमालय के क्षेत्रों में।
  • सिंह (Lion): गुजरात के गिर वन (Gir Forest) में (भारत विश्व में सिंह और बाघ दोनों का एकमात्र निवास स्थान है)।
  • पक्षी: मोर, बत्तख, सारस, तोते आदि।
  • सरीसृप: मगरमच्छ, घड़ियाल (दुनिया का एकमात्र सच्चा घड़ियाल भारत में)।

4.2 वन्य जीवन को खतरे (Threats to Wildlife)

  • अत्यधिक शिकार (Excessive hunting) या poaching (अवैध शिकार)।
  • पर्यावरण प्रदूषण (Environmental pollution) और विषैला कचरा (toxic waste)।
  • वनस्पति आवरण में कमी (Reduction in vegetation cover) और वनों की कटाई (deforestation)।
  • कृषि विस्तार और मानवीय बस्तियों का बढ़ना (Expansion of agriculture and human settlements)।
  • विदेशी प्रजातियों का परिचय (Introduction of alien species) जो स्थानीय प्रजातियों के लिए हानिकारक हों।

4.3 संरक्षण के उपाय (Conservation Measures)

भारत सरकार ने वन्य जीवन और वनस्पति के संरक्षण के लिए कई कदम उठाए हैं:

  • राष्ट्रीय उद्यान (National Parks), वन्य जीव अभयारण्य (Wildlife Sanctuaries), और जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र (Biosphere Reserves):
    • भारत में 18 जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए हैं (जैसे सुंदरबन, नंदा देवी, मानस, नीलगिरि, ग्रेट निकोबार)।
    • 103 राष्ट्रीय उद्यान और 535 वन्य जीव अभयारण्य हैं।
  • परियोजनाएँ:
    • प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger) और प्रोजेक्ट एलिफेंट (Project Elephant) जैसी कई परियोजनाएँ विशिष्ट पशु प्रजातियों के संरक्षण के लिए शुरू की गई हैं।
  • रामसर स्थल (Ramsar Sites): कई आर्द्रभूमियों (wetlands) को रामसर स्थलों के रूप में संरक्षित किया गया है।
  • शिकार पर प्रतिबंध (Ban on Hunting): शिकार को प्रतिबंधित किया गया है।
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (Wildlife Protection Act): 1972 में पारित किया गया, जिसने पौधों और जानवरों की कई प्रजातियों की कानूनी सुरक्षा प्रदान की।
  • चिड़ियाघर और बॉटनिकल गार्डन (Zoos and Botanical Gardens): संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण के लिए।

5. मुख्य शब्द (Keywords) / Important Terms

  • अक्षत वनस्पति (Virgin Vegetation): वह वनस्पति जो मानवीय हस्तक्षेप के बिना प्राकृतिक रूप से उगती है।
  • स्थानिक प्रजातियाँ (Endemic Species): पौधों या जानवरों की वे प्रजातियाँ जो केवल एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में पाई जाती हैं।
  • बायोम (Biome): पौधों और जानवरों का एक बड़ा समुदाय जो एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में एक विशेष जलवायु क्षेत्र में रहते हैं।
  • पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem): भौतिक पर्यावरण और उसमें रहने वाले जीवों के बीच का संबंध।
  • जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र (Biosphere Reserves): बड़े संरक्षित क्षेत्र जो पौधों, जानवरों और मानव समुदायों की विविधता को बनाए रखने के लिए बनाए गए हैं।
  • जैव विविधता (Biodiversity): किसी विशेष क्षेत्र में पाए जाने वाले पौधों और जानवरों की विभिन्न प्रजातियों की संख्या।
  • मैंग्रोव वन (Mangrove Forests): ज्वारीय वन जो खारे पानी में उगते हैं और जिनकी जड़ें पानी के ऊपर निकली होती हैं।

परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु (Important Points for Exam):

  • वनस्पति के प्रकारों को उनकी वर्षा की मात्रा, मुख्य क्षेत्रों और प्रमुख वृक्षों के साथ याद रखें।
  • पर्णपाती वनों को ‘मानसूनी वन’ क्यों कहते हैं?
  • मैंग्रोव वनों की विशेषताएँ और क्षेत्र (जैसे सुंदरबन)।
  • भारत में वन्य प्राणियों की विविधता (बाघ, शेर, गैंडा, घड़ियाल के विशिष्ट क्षेत्र)।
  • वन्य जीवन को खतरे वाले मुख्य कारक।
  • वन्य जीवन संरक्षण के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम (राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र, प्रोजेक्ट टाइगर/एलिफेंट)।
  • भारत में जीवमंडल आरक्षित क्षेत्रों की संख्या।
  • प्राकृतिक वनस्पति और अक्षत वनस्पति के बीच का अंतर।

अभ्यास

1. वैकल्पिक प्रश्न

  1. रबड़ का संबंध किस प्रकार की वनस्पति से है? (क) टुंड्रा (ख) हिमालय (ग) मैंग्रोव (घ) उष्णकटिबंधीय वर्षा वन उत्तर: (घ) उष्णकटिबंधीय वर्षा वन
  2. सिनकोना के वृक्ष कितनी वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं? (क) 100 सेन्मी० (ख) 70 सेन्मी० (ग) 50 सेन्मी० (घ) 100 सेमी से अधिक वर्षा (यह विकल्प ‘क’ से अधिक सटीक है क्योंकि सिनकोना 200 सेमी से अधिक वर्षा वाले उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों में पाया जाता है, लेकिन 100 सेमी से अधिक वर्षा भी एक उपयुक्त न्यूनतम सीमा हो सकती है।) उत्तर: (क) 100 सेमी से अधिक वर्षा (सिनकोना उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों में पाया जाता है जहाँ 200 सेमी से अधिक वर्षा होती है। दिए गए विकल्पों में, 100 सेमी से अधिक वर्षा सबसे उपयुक्त है।)
  3. सिमलीपाल जीव मंडल निचय कौन-से राज्य में स्थित है? (क) पंजाब (ख) दिल्ली (ग) ओडिशा (घ) पश्चिम बंगाल उत्तर: (ग) ओडिशा
  4. भारत के कौन से जीव मंडल निचय विश्व के जीव मंडल निचयों में लिए गए हैं? (क) मानस (ख) मन्नार की खाड़ी (ग) नीलगिरी (घ) उपरोक्त सभी (ये सभी विश्व के जीव मंडल निचयों में शामिल हैं।) उत्तर: (घ) उपरोक्त सभी

2. संक्षिप्त उत्तर वाले प्रश्न:

  • 1. भारत में पादपों तथा जीवों का वितरण किन तत्वों द्वारा निर्धारित होता है? उत्तर: भारत में पादपों (वनस्पति) तथा जीवों (वन्य प्राणियों) का वितरण मुख्य रूप से भू-भाग (भूमि और मृदा) तथा जलवायु (तापमान, सूर्य का प्रकाश और वर्षा) जैसे तत्वों द्वारा निर्धारित होता है। ये कारक मिलकर किसी क्षेत्र में वनस्पति और वन्य जीवन के प्रकार को प्रभावित करते हैं।
  • 2. जीव मंडल निचय से क्या अभिप्राय है? कोई दो उदाहरण दो। उत्तर: जीव मंडल निचय (Biosphere Reserve) एक बड़ा संरक्षित क्षेत्र होता है जो पौधों, जानवरों और मनुष्य के पारंपरिक जीवन शैली सहित उनकी विविधता को बनाए रखने के लिए बनाया जाता है। यह क्षेत्र जैव विविधता के संरक्षण के साथ-साथ सतत विकास (sustainable development) को भी बढ़ावा देता है। दो उदाहरण: नीलगिरी जीव मंडल निचय और नंदा देवी जीव मंडल निचय।
  • 3. कोई दो वन्य प्राणियों के नाम बताइए जो कि उष्ण कटिबंधीय वर्षा और पर्वतीय वनस्पति में मिलते हैं।उत्तर:
    • उष्णकटिबंधीय वर्षा वन में मिलने वाले वन्य प्राणी: हाथी, बंदर, गैंडा, विभिन्न प्रकार के पक्षी।
    • पर्वतीय वनस्पति में मिलने वाले वन्य प्राणी: याक, हिम तेंदुआ, भालू, लाल पांडा।

3. निम्नलिखित में अंतर कीजिए:

  • 1. वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत
विशेषतावनस्पति जगत (Flora)प्राणी जगत (Fauna)
परिभाषाकिसी विशेष क्षेत्र या समय में पाए जाने वाले सभी प्रकार के पौधे।किसी विशेष क्षेत्र या समय में पाए जाने वाले सभी प्रकार के जानवर।
भूमिकाखाद्य उत्पादक (Producers); सूर्य के प्रकाश से भोजन बनाते हैं (प्रकाश संश्लेषण)।उपभोक्ता (Consumers); भोजन के लिए पौधों या अन्य जानवरों पर निर्भर।
उदाहरणपेड़, झाड़ियाँ, घास, फूल।जानवर, पक्षी, मछली, कीड़े।

2. सदाबहार और पर्णपाती वन

विशेषतासदाबहार वन (Evergreen Forests)पर्णपाती वन (Deciduous Forests)
वर्षा200 सेमी से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं।70 से 200 सेमी वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
पत्ती गिरनाये वर्ष भर हरे-भरे रहते हैं; पेड़ों के पत्ते अलग-अलग समय पर गिरते हैं, एक साथ नहीं।शुष्क मौसम (आमतौर पर गर्मी) में पानी बचाने के लिए ये अपने पत्ते गिरा देते हैं।
घनापनये बहुत घने होते हैं और सूरज की रोशनी जमीन तक नहीं पहुंच पाती।ये सदाबहार वनों की तुलना में कम घने होते हैं।
वितरणपश्चिमी घाट, अंडमान-निकोबार, उत्तर-पूर्वी भारत के कुछ हिस्से।भारत में सबसे बड़े क्षेत्र में फैले हुए हैं।
उदाहरणमहोगनी, आबनूस, रोजवुड, रबड़।सागौन, साल, बाँस, शीशम, चंदन।

यहाँ आपके दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के विस्तृत उत्तर दिए गए हैं:

4. भारत में विभिन्न प्रकार की पाई जाने वाली वनस्पति के नाम बताएँ और अधिक ऊँचाई पर पाई जाने वाली वनस्पति का ब्यौरा दीजिए।

उत्तर:भारत एक विशाल देश है जहाँ भौगोलिक और जलवायु संबंधी विभिन्नताओं के कारण कई प्रकार की प्राकृतिक वनस्पति पाई जाती है। भारत में मुख्य रूप से पाँच प्रकार की प्राकृतिक वनस्पति पाई जाती है:

  1. उष्णकटिबंधीय वर्षा वन (Tropical Evergreen Forests)
  2. उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन (Tropical Deciduous Forests)
  3. उष्णकटिबंधीय कंटीले वन तथा झाड़ियाँ (Tropical Thorn Forests and Scrubs)
  4. पर्वतीय वन (Montane Forests)
  5. मैंग्रोव वन (Mangrove Forests)

अधिक ऊँचाई पर पाई जाने वाली वनस्पति का ब्यौरा (पर्वतीय वन):

पर्वतीय क्षेत्रों में, ऊँचाई में वृद्धि के साथ तापमान में कमी आती है, जिससे प्राकृतिक वनस्पति में भी परिवर्तन होता है। पर्वतीय वनों को ऊँचाई के आधार पर विभिन्न कटिबंधों में विभाजित किया जाता है:

  • 1000 से 2000 मीटर की ऊँचाई पर: इन ऊँचाइयों पर शीतोष्ण कटिबंधीय वन (Temperate Forests) पाए जाते हैं। इनमें चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार वृक्ष जैसे ओक (Oak) और चेस्टनट (Chestnut) प्रमुख होते हैं।
  • 1500 से 3000 मीटर की ऊँचाई पर: इस ऊँचाई पर कोणधारी वन (Coniferous Forests) पाए जाते हैं। इनमें मुख्य रूप से चीड़ (Pine), देवदार (Deodar), सिल्वर फर (Silver Fir), स्प्रूस (Spruce) और सीडर (Cedar) जैसे शंकुधारी वृक्ष शामिल होते हैं। ये वन हिमालय के दक्षिणी ढलानों, दक्षिण भारत के कुछ ऊँचे स्थानों और उत्तर-पूर्वी भारत की उच्च श्रेणियों में पाए जाते हैं।
  • 3600 मीटर से अधिक ऊँचाई पर: इस ऊँचाई पर अल्पाइन वनस्पति (Alpine Vegetation) का विकास होता है। इनमें सिल्वर फर, जूनीपर (Juniper), पाइन, बर्च (Birch) जैसे छोटे वृक्ष और झाड़ियाँ मिलती हैं। जैसे-जैसे ऊँचाई और बढ़ती है, वृक्षों का आकार और छोटा होता जाता है, और अंततः ये केवल अल्पाइन घास के मैदानों (Alpine Grasslands) में बदल जाते हैं। इनका उपयोग घुमंतू जनजातियों (जैसे गुज्जर और बकरवाल) द्वारा पशुचारण के लिए किया जाता है।
  • बहुत अधिक ऊँचाई पर: सबसे ऊँची चोटियों पर, जहाँ बर्फ जमी रहती है, केवल लाइकेन (lichens) और मॉस (mosses) जैसी टुंड्रा वनस्पति (Tundra Vegetation) पाई जाती है।

यह ऊँचाई के साथ तापमान और वर्षा में होने वाले बदलावों का सीधा परिणाम है, जो वनस्पति के प्रकार और घनत्व को प्रभावित करता है।

5. भारत में बहुत संख्या में जीव और पादप प्रजातियाँ संकटग्रस्त हैं- उदाहरण सहित कारण दीजिए।

उत्तर:भारत में प्राकृतिक वनस्पति (पादप प्रजातियाँ) और वन्य प्राणियों (जीव प्रजातियाँ) की एक बड़ी संख्या वर्तमान में संकटग्रस्त (Endangered) अवस्था में है। इसका अर्थ है कि यदि उन्हें संरक्षित नहीं किया गया तो वे जल्द ही विलुप्त हो सकती हैं। इसके कई प्रमुख कारण हैं:

  1. मानवीय हस्तक्षेप और निवास स्थान का विनाश (Human Intervention and Habitat Destruction):
    • वनों की कटाई (Deforestation): कृषि के विस्तार, उद्योगों की स्थापना, सड़कों और रेलवे के निर्माण, खनन (mining) तथा शहरीकरण (urbanization) के लिए बड़े पैमाने पर वनों को काटा जा रहा है। इससे वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाते हैं।
    • उदाहरण: बाघ, हाथी, एक सींग वाला गैंडा जैसे जानवरों के आवास सिकुड़ गए हैं, जिससे उनकी संख्या कम हो रही है।
  2. अवैध शिकार (Poaching/Illegal Hunting):
    • जंगली जानवरों का उनके खाल, दांत (हाथीदांत), सींग (गैंडे का सींग), हड्डियाँ और अन्य उत्पादों के लिए अवैध रूप से शिकार किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इनकी बहुत मांग होती है।
    • उदाहरण: बाघों का शिकार उनकी खाल और हड्डियों के लिए, गैंडों का उनके सींगों के लिए, हाथियों का उनके दांतों के लिए। इससे इनकी संख्या में भारी गिरावट आई है।
  3. पर्यावरण प्रदूषण (Environmental Pollution):
    • उद्योगों और शहरों से निकलने वाला अनुपचारित (untreated) कचरा और जहरीले रसायन नदियों, झीलों और मिट्टी में मिल जाते हैं। ये प्रदूषक पौधों और जानवरों के जीवन को सीधे नुकसान पहुँचाते हैं।
    • उदाहरण: जल प्रदूषण से जलीय जीवों (मछली, घड़ियाल) को खतरा, कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से पक्षियों (जैसे गिद्ध) की संख्या में कमी।
  4. वनाग्नि (Forest Fires):
    • कभी-कभी मानवीय लापरवाही या प्राकृतिक कारणों से लगने वाली आग बड़े वन क्षेत्रों को नष्ट कर देती है, जिससे वनस्पति और वन्यजीवों का भारी नुकसान होता है।
  5. विदेशी प्रजातियों का प्रवेश (Introduction of Alien Species):
    • कभी-कभी बाहर से लाई गई प्रजातियाँ स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा करती हैं, क्योंकि वे स्थानीय प्रजातियों के साथ भोजन या आवास के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं या उन पर हमला करती हैं।
  6. जलवायु परिवर्तन (Climate Change):
    • वैश्विक तापमान में वृद्धि, वर्षा के पैटर्न में बदलाव और चरम मौसमी घटनाएँ (जैसे बाढ़ और सूखा) कई पौधों और जानवरों के लिए उनके प्राकृतिक आवास में जीवित रहना मुश्किल बना रही हैं।
    • उदाहरण: मैंग्रोव वनों पर समुद्री जल स्तर बढ़ने का खतरा।

ये सभी कारक मिलकर भारत की समृद्ध जैव विविधता को गंभीर खतरा पैदा कर रहे हैं, जिससे अनेक प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर पहुँच गई हैं।

6. भारत वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत की धरोहर में धनी क्यों है?

उत्तर:भारत को वनस्पति जगत (पादप प्रजातियाँ) और प्राणी जगत (जीव प्रजातियाँ) की धरोहर में ‘धनी’ माना जाता है, जिसका अर्थ है कि यहाँ जैव विविधता (Biodiversity) बहुत अधिक है। इसके पीछे कई भौगोलिक और जलवायु संबंधी कारण हैं:

  1. विशाल भौगोलिक आकार और स्थिति (Vast Geographical Size and Location):
    • भारत विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है, जिसका भू-भाग बहुत विस्तृत है।
    • यह उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय दोनों कटिबंधों में फैला हुआ है, जिससे यहाँ विभिन्न प्रकार की जलवायु परिस्थितियाँ पाई जाती हैं।
  2. विविध भू-आकृतियाँ (Diverse Landforms):
    • भारत में ऊँचे-ऊँचे पर्वत (हिमालय), विशाल मैदान (उत्तरी मैदान), शुष्क मरुस्थल (थार), ऊँचे पठार (प्रायद्वीपीय पठार), लंबी तटरेखा और द्वीप समूह (अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप) हैं।
    • प्रत्येक भू-आकृति में विशेष प्रकार की वनस्पति और वन्यजीव पाए जाते हैं, जो उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप होते हैं।
  3. विविध जलवायु परिस्थितियाँ (Varied Climatic Conditions):
    • भारत में अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्रों (जैसे पश्चिमी घाट और उत्तर-पूर्व) से लेकर बहुत कम वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों (जैसे राजस्थान) तक, विभिन्न प्रकार की वर्षा होती है।
    • तापमान में भी बहुत भिन्नता है, हिमालय के ठंडे क्षेत्रों से लेकर दक्षिणी भारत के गर्म और आर्द्र क्षेत्रों तक। यह विविधता अलग-अलग प्रकार की वनस्पतियों को पनपने का अवसर देती है।
  4. मिट्टी के प्रकार में भिन्नता (Variation in Soil Types):
    • जलोढ़ मिट्टी, काली मिट्टी, लाल मिट्टी, लेटेराइट मिट्टी, पर्वतीय मिट्टी और रेतीली मिट्टी जैसे विभिन्न प्रकार की मिट्टी विभिन्न प्रकार की वनस्पति के विकास का समर्थन करती है।
  5. पर्याप्त सूर्य का प्रकाश और वर्षा (Ample Sunlight and Rainfall):
    • भारत को अधिकांशतः पर्याप्त सूर्य का प्रकाश मिलता है, जो पौधों के प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) के लिए महत्वपूर्ण है। मानसूनी हवाएँ देश के बड़े हिस्से में पर्याप्त वर्षा लाती हैं, जिससे घने वनों का विकास होता है।
  6. भौगोलिक अलगाव (Geographical Isolation):
    • हिमालय पर्वत श्रृंखला उत्तर से एक प्राकृतिक बाधा बनाती है, जबकि हिंद महासागर दक्षिण से। इससे कई स्थानिक प्रजातियों (endemic species) का विकास हुआ है जो केवल भारत में ही पाई जाती हैं।

इन सभी कारकों के संयोजन से भारत में लगभग 47,000 पादप प्रजातियाँ और 90,000 पशु प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिससे यह विश्व के 12 जैव विविधता वाले मेगा-देशों में से एक बन गया है। यही कारण है कि भारत वनस्पति और प्राणी जगत की धरोहर में इतना धनी है।

परियोजना कार्य: उत्तर और विचार

1. अपने पड़ोस में पाए जाने वाले कुछ औषधि पादप का पता लगाएँ।

यह कार्य आपके सीधे अवलोकन पर आधारित है लेकिन मैं आपको कुछ सामान्य औषधीय पौधों (Medicinal Plants) की सूची और उनके उपयोग के बारे में जानकारी दे सकता हूँ जो भारत में आमतौर पर पाए जाते हैं। आप इनकी पहचान अपने पड़ोस में करने का प्रयास कर सकते हैं:

  1. नीम (Neem):
    • वैज्ञानिक नाम: Azadirachta indica
    • पहचान: भारत में बहुत आम पेड़, कड़वे पत्ते होते हैं।
    • उपयोग: एंटीबैक्टीरियल (जीवाणु-रोधी) और एंटीफंगल (कवक-रोधी)। त्वचा रोगों, घावों, मधुमेह (diabetes) के उपचार में उपयोगी। रक्त शोधक (blood purifier)।
  2. तुलसी (Holy Basil):
    • वैज्ञानिक नाम: Ocimum sanctum
    • पहचान: छोटा पौधा, आमतौर पर घरों और मंदिरों में पाया जाता है। विशेष सुगंध होती है।
    • उपयोग: सर्दी, खांसी, बुखार, गले में खराश और श्वसन संबंधी समस्याओं में प्रभावी। तनाव कम करने में भी मदद करती है।
  3. एलोवेरा (Aloe Vera / घृतकुमारी):
    • वैज्ञानिक नाम: Aloe barbadensis miller
    • पहचान: रसीले पत्ते होते हैं, जिनमें जेल जैसा पदार्थ होता है।
    • उपयोग: त्वचा की जलन, कटने, जलने और घावों को भरने में उपयोगी। पाचन संबंधी समस्याओं और कब्ज में भी सहायक।
  4. अश्वगंधा (Ashwagandha):
    • वैज्ञानिक नाम: Withania somnifera
    • पहचान: छोटा झाड़ीदार पौधा, लाल रंग के छोटे फल।
    • उपयोग: तनाव और चिंता कम करने, ऊर्जा बढ़ाने और रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) में सुधार के लिए जाना जाता है।
  5. गिलोय (Giloy):
    • वैज्ञानिक नाम: Tinospora cordifolia
    • पहचान: एक लता (climber) है जो अक्सर पेड़ों पर चढ़ी हुई पाई जाती है।
    • उपयोग: रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, बुखार (विशेषकर डेंगू और मलेरिया), मधुमेह और पाचन संबंधी समस्याओं में सहायक।
  6. पुदीना (Mint):
    • वैज्ञानिक नाम: Mentha spicata
    • पहचान: छोटी पत्तियों वाला सुगंधित पौधा।
    • उपयोग: पाचन में सहायक, मतली (nausea) और पेट दर्द में आराम।
  7. अजवाइन (Carom Seeds Plant / Bishop’s Weed):
    • वैज्ञानिक नाम: Trachyspermum ammi
    • पहचान: छोटे पत्ते वाला पौधा, बीज मसाले के रूप में उपयोग होते हैं।
    • उपयोग: पेट फूलने, अपच और गैस जैसी पाचन समस्याओं के लिए।

आप अपने पड़ोस में इन पौधों को खोजने का प्रयास करें और उनकी तस्वीरें भी ले सकते हैं!

2. किन्हीं दस व्यवसायों के नाम ज्ञात करो जिन्हें जंगल और जंगली जानवरों से कच्चा माल प्राप्त होता है।

यहाँ दस ऐसे व्यवसाय दिए गए हैं जिन्हें जंगल और जंगली जानवरों से कच्चा माल (Raw Material) प्राप्त होता है (या अतीत में प्राप्त होता था, क्योंकि कई अब प्रतिबंधित या अवैध हैं):

  1. काष्ठ उद्योग (Timber Industry): इमारती लकड़ी (जैसे सागौन, साल) और फर्नीचर के लिए लकड़ी प्राप्त करना।
  2. कागज उद्योग (Paper Industry): बांस और अन्य लकड़ी के गूदे (wood pulp) का उपयोग कर कागज बनाना।
  3. औषधीय जड़ी-बूटी उद्योग (Herbal Medicine Industry): जंगलों से विभिन्न औषधीय पौधे और जड़ी-बूटियाँ एकत्र करना।
  4. लाह उद्योग (Lac Industry): लाख कीटों से प्राप्त लाख का उपयोग कर चूड़ियाँ, रंग और वार्निश बनाना।
  5. शहद और मोम उद्योग (Honey and Wax Industry): जंगली मधुमक्खियों से शहद और मोम एकत्र करना।
  6. रबड़ उद्योग (Rubber Industry): जंगली रबड़ के पेड़ों से लेटेक्स (latex) प्राप्त करना।
  7. चमड़ा उद्योग (Leather Industry): जानवरों की खाल का उपयोग कर चमड़ा उत्पाद बनाना (अब जंगली जानवरों से प्रतिबंधित, लेकिन अतीत में होता था)।
  8. हाथी दांत कलाकृति (Ivory Crafts): हाथी दांत का उपयोग कर कलाकृतियाँ बनाना (अब पूरी तरह से प्रतिबंधित)।
  9. इत्र/सुगंध उद्योग (Perfume Industry): कुछ जंगली पौधों और जानवरों (जैसे कस्तूरी मृग) से सुगंधित पदार्थ निकालना (कुछ जानवरों से प्राप्त पदार्थ अब प्रतिबंधित हैं)।
  10. जंगली फल और खाद्य पदार्थ एकत्र करना (Wild Fruits and Food Collection): जनजातीय समुदायों और कुछ व्यवसायों द्वारा जंगली फल, कंदमूल, पत्ते और अन्य खाद्य वस्तुएं एकत्र करना।

3. वन्य प्राणियों का महत्त्व बताते हुए एक पद्यांश या गद्यांश लिखिए।

आप इनमें से कोई एक चुन सकते हैं:

गद्यांश (Prose Paragraph):

वन्य प्राणियों का महत्व

वन्य प्राणी हमारे ग्रह पर पारिस्थितिकी संतुलन (ecological balance) बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे हमारे पर्यावरण के अभिन्न अंग हैं और उनकी उपस्थिति से जैव विविधता (biodiversity) समृद्ध होती है। प्रत्येक वन्य प्राणी, चाहे वह छोटा कीट हो या विशालकाय हाथी, खाद्य श्रृंखला (food chain) में एक विशिष्ट भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए, शेर और बाघ जैसे शिकारी जानवर शाकाहारी जीवों की संख्या को नियंत्रित करते हैं, जिससे वनों का अत्यधिक चरागाह (overgrazing) रोका जा सकता है। पक्षी परागण (pollination) और बीज फैलाव (seed dispersal) में मदद करते हैं, जो पौधों के जीवन और वन विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

वन्य प्राणी प्राकृतिक संसाधनों के स्वास्थ्य के सूचक भी होते हैं; यदि उनकी संख्या घट रही है, तो यह अक्सर पर्यावरण में किसी गंभीर समस्या का संकेत होता है। वे मानव जीवन को सौंदर्य, प्रेरणा और आध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं। पर्यटन (जैसे वन्यजीव सफारी) के माध्यम से वे आर्थिक लाभ भी प्रदान करते हैं, जिससे स्थानीय समुदायों को रोजगार मिलता है। इसलिए, इन अनमोल जीवों का संरक्षण केवल उनके अस्तित्व के लिए ही नहीं, बल्कि हमारे अपने भविष्य और एक स्वस्थ ग्रह के लिए भी आवश्यक है।

पद्यांश (Poem Stanza):

वन्य जीव हैं धरती के गहने

वन्य जीव हैं धरती के गहने, इन्हीं से है हरियाली, इन्हीं से बहने। जंगल इनके घर, प्रकृति इनकी माँ, हम सबकी जिम्मेदारी, करें इनकी रक्षा।

शेर, बाघ, हाथी, हिरण, पंछी प्यारे, हर एक जीव का अपना है महत्व सारे। खाद्य श्रृंखला में ये निभाते हैं रोल, इनके बिना बिगड़ जाएगा मोल-मोल।

इनके विलुप्ति से होता है नुकसान, संतुलन बिगड़े, खतरे में इंसान। आओ मिलकर शपथ लें आज, बचाएँ वन्य जीव, करें इनका राज।

4. वृक्षों का महत्त्व बताते हुए एक नुक्कड़ नाटक की रचना करो और उसका अपने गली-मुहल्ले में मंचन करो।

यह नुक्कड़ नाटक (Street Play) का एक संक्षिप्त मसौदा है। आप इसमें अपनी रचनात्मकता के अनुसार और अधिक पात्र और संवाद जोड़ सकते हैं।

नुक्कड़ नाटक: “पेड़ हमारे जीवन का आधार”

पात्र (Characters):

  • सूत्रधार (Narrator/Anchor): कहानी शुरू करने वाला और जोड़ने वाला।
  • पर्यावरण प्रेमी (Environment Lover): पेड़ों के महत्व को समझाने वाला।
  • लालची लकड़हारा (Greedy Woodcutter): पेड़ों को काटने वाला।
  • बच्चा (Child): पेड़ों से प्यार करने वाला।
  • बुजुर्ग व्यक्ति (Elderly Person): पेड़ों के पुराने महत्व को बताने वाला।
  • प्रदूषण का प्रतीक (Pollution Symbol): काले कपड़े में, खांसते हुए।

(शुरुआत: धीमी संगीत या शोर – प्रदूषण का संकेत)

सूत्रधार: (आगे आकर) नमस्कार दोस्तों! आज हम आपके सामने एक छोटी सी कहानी पेश करने जा रहे हैं, जो हमारे जीवन के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से, पेड़ों के बारे में है। हम पेड़ों को काटते जा रहे हैं, लेकिन क्या हम जानते हैं कि हम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं?

(मंच पर लकड़हारा कुल्हाड़ी लिए पेड़ काटने का अभिनय करता है। प्रदूषण का प्रतीक खाँसता है और धुआँ होने का अभिनय करता है।)

पर्यावरण प्रेमी: (लकड़हारे के पास जाकर) रुको, रुको भाई! क्या कर रहे हो? ये पेड़ मत काटो!

लालची लकड़हारा: (हँसते हुए) क्यूँ न काटूँ? पेड़ काटने से ही तो मुझे पैसा मिलता है। लकड़ी, फर्नीचर… सब तो यहीं से आता है!

बच्चा: (दौड़ते हुए आता है, दुखी होकर) नहीं! पेड़ मत काटो अंकल! पेड़ हमें फल देते हैं, छाया देते हैं। यहाँ पंछी रहते हैं। मेरा झूला भी इसी पेड़ पर है!

बुजुर्ग व्यक्ति: (धीरे-धीरे आता है) हाँ बेटे, ये सही कह रहा है। पहले हमारे गाँव में कितने घने जंगल थे। इन्हीं पेड़ों से हमें शुद्ध हवा मिलती थी, बारिश आती थी। नदियाँ भी इन्हीं से बहती थीं। अब तो बीमारियाँ बढ़ गई हैं, गर्मी बढ़ गई है।

(प्रदूषण का प्रतीक जोर से खाँसता है और जमीन पर गिरता है, उठने की कोशिश करता है।)

पर्यावरण प्रेमी: (प्रदूषण की ओर इशारा करते हुए) देखो, यही है परिणाम। पेड़ों के कटने से प्रदूषण बढ़ रहा है। हवा जहरीली हो रही है, बारिश नहीं होती, धरती सूख रही है। ये पेड़ ही तो हमें ऑक्सीजन देते हैं, कार्बन डाइऑक्साइड सोखते हैं। ये हमें बाढ़ और सूखे से बचाते हैं।

लालची लकड़हारा: (सोचते हुए) ऑक्सीजन? बारिश? मुझे तो बस पैसा दिखता है।

बच्चा: (लकड़हारे का हाथ पकड़कर) अगर पेड़ नहीं रहेंगे तो हम कहाँ खेलेंगे? हमारे स्कूल में सिखाया है, पेड़ हमारे दोस्त हैं!

बुजुर्ग व्यक्ति: सही बात है बेटा। पेड़ों से ही हमें दवाइयाँ मिलती हैं, कपड़े मिलते हैं, और जीवन मिलता है। क्या हम अपने बच्चों के लिए सिर्फ बीमारियाँ और रेगिस्तान छोड़ना चाहते हैं?

लालची लकड़हारा: (अपनी कुल्हाड़ी नीचे रखता है, सोचने लगता है) (कुछ देर रुककर) आप सब सही कह रहे हैं। मैं तो बस अपने थोड़े से फायदे के लिए सबका नुकसान कर रहा था। मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं आज से पेड़ नहीं काटूँगा। बल्कि, मैं पेड़ लगाऊँगा!

(प्रदूषण का प्रतीक धीरे-धीरे उठने लगता है, खाँसी कम होती है।)

सूत्रधार: देखा दोस्तों, एक छोटे से बदलाव से कितना फर्क पड़ता है! हमें पेड़ों काटना बंद करना होगा और ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने होंगे। याद रखिए:

(सभी पात्र एक साथ बोलते हैं, नारे लगाते हैं) “पेड़ लगाओ, जीवन बचाओ!” “हरा-भरा हो देश हमारा, स्वस्थ रहे संसार हमारा!”

(अंत: सब मिलकर तालियाँ बजाते हैं और दर्शकों को पेड़ लगाने का संदेश देते हैं।)

5. अपने या अपने परिवार के किसी भी सदस्य के जन्मदिन पर किसी भी पौधे को लगाइए और देखिए कि वह कैसे बड़ा होता है और किस मौसम में जल्दी बढ़ता है?

यह एक व्यावहारिक गतिविधि है, जिसके परिणाम आपके चुने हुए पौधे, आपके क्षेत्र की जलवायु और आपके द्वारा की गई देखभाल पर निर्भर करेंगे। यहाँ कुछ सुझाव और अवलोकन के बिंदु दिए गए हैं:

पौधा लगाने के सुझाव:

  • पौधे का चुनाव:
    • अपने स्थानीय नर्सरी या वन विभाग से संपर्क करें।
    • ऐसे पौधे चुनें जो आपके क्षेत्र की जलवायु (climate) और मिट्टी (soil) के अनुकूल हों।
    • आप फलदार वृक्ष (जैसे आम, अमरूद), छायादार वृक्ष (जैसे नीम, पीपल, बरगद), या औषधीय पौधे (जैसे करी पत्ता, एलोवेरा) चुन सकते हैं।
    • छोटे और तेजी से बढ़ने वाले पौधे चुनना अच्छा रहेगा ताकि आप उनकी वृद्धि आसानी से देख सकें।
  • सही जगह चुनें: ऐसी जगह चुनें जहाँ पौधे को पर्याप्त धूप और पानी मिल सके।
  • पौधा लगाने का तरीका:
    • एक गड्ढा खोदें जो पौधे की जड़ की गेंद (root ball) से दोगुना चौड़ा और गहरा हो।
    • पौधे को गड्ढे में रखें और जड़ों को सीधा करें।
    • गड्ढे को मिट्टी और खाद के मिश्रण से भर दें।
    • तुरंत पानी दें।
    • पौधे को सहारा देने के लिए एक लकड़ी का डंडा लगा सकते हैं।
  • नियमित देखभाल:
    • नियमित रूप से पानी दें (विशेषकर शुरुआती महीनों में और शुष्क मौसम में)।
    • खरपतवार (weeds) हटाते रहें।
    • यदि आवश्यक हो तो खाद डालें।

अवलोकन के बिंदु (जिसे आपको रिकॉर्ड करना है):

  1. पौधे का नाम: आपने कौन सा पौधा लगाया।
  2. लगाने की तिथि: जन्मदिन की तिथि।
  3. प्रारंभिक ऊँचाई: पौधा लगाते समय उसकी ऊँचाई।
  4. मासिक अवलोकन:
    • हर महीने पौधे की ऊँचाई मापें।
    • कितने नए पत्ते आए?
    • कोई फूल या फल लगे?
    • पौधे की सामान्य स्थिति (स्वस्थ, मुरझाया हुआ आदि)।
    • मौसम की स्थिति (बारिश, धूप, तापमान)।
  5. किस मौसम में जल्दी बढ़ता है:
    • आप देखेंगे कि अधिकांश पौधे मानसून (वर्षा ऋतु) के दौरान तेजी से बढ़ते हैं क्योंकि उन्हें पर्याप्त पानी और अनुकूल तापमान मिलता है।
    • कुछ पौधे वसंत ऋतु (फरवरी-मार्च) में भी नई वृद्धि दिखाते हैं।
    • गर्मी में अत्यधिक तापमान और पानी की कमी से वृद्धि धीमी हो सकती है, जबकि सर्दी में भी वृद्धि रुक सकती है।

एक छोटी डायरी या नोटबुक में अपने अवलोकनों को रिकॉर्ड करना न भूलें! यह एक बहुत ही संतोषजनक और सीखने वाला अनुभव होगा।

अध्याय 5: प्राकृतिक वनस्पति और वन्य प्राणी – बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)

वह वनस्पति जो मनुष्य की सहायता के बिना अपने आप उगती है और लंबे समय तक उस पर मानवीय प्रभाव नहीं पड़ता, क्या कहलाती है?
a) कृषि वनस्पति
b) मानव निर्मित वनस्पति
c) अक्षत वनस्पति
d) बागवानी
उत्तर: c) अक्षत वनस्पति

वनस्पति और वन्य प्राणियों की विविधता को प्रभावित करने वाला मुख्य जलवायु कारक कौन सा है?
a) मृदा का प्रकार
b) भूमि का ढलान
c) वर्षा की मात्रा
d) मानव हस्तक्षेप
उत्तर: c) वर्षा की मात्रा

उष्णकटिबंधीय वर्षा वन कितनी वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं?
a) 70 सेमी से कम
b) 70 से 100 सेमी
c) 100 से 200 सेमी
d) 200 सेमी से अधिक
उत्तर: d) 200 सेमी से अधिक

निम्नलिखित में से कौन-सा वृक्ष उष्णकटिबंधीय वर्षा वन का उदाहरण है?
a) सागौन
b) साल
c) महोगनी
d) बबूल
उत्तर: c) महोगनी

उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वनों को और किस नाम से जाना जाता है?
a) सदाबहार वन
b) मानसूनी वन
c) कंटीले वन
d) अल्पाइन वन
उत्तर: b) मानसूनी वन

भारत में सबसे बड़े क्षेत्र में किस प्रकार के वन पाए जाते हैं?
a) उष्णकटिबंधीय वर्षा वन
b) उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन
c) पर्वतीय वन
d) मैंग्रोव वन
उत्तर: b) उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन

सिनकोना के वृक्ष भारत के किस प्रकार के वनों में पाए जाते हैं, जहाँ भारी वर्षा होती है?
a) शुष्क पर्णपाती वन
b) उष्णकटिबंधीय वर्षा वन
c) कंटीले वन
d) मैंग्रोव वन
उत्तर: b) उष्णकटिबंधीय वर्षा वन

वह वनस्पति जिसमें पेड़ों की जड़ें लंबी होती हैं, तना रसीला होता है और पत्तियाँ छोटी व मोटी होती हैं, किस क्षेत्र में पाई जाती है?
a) पश्चिमी घाट
b) असम
c) राजस्थान
d) हिमालय
उत्तर: c) राजस्थान (कंटीले वन)

भारत का कौन-सा राज्य एक सींग वाले गैंडे का प्रमुख निवास स्थान है?
a) गुजरात
b) मध्य प्रदेश
c) असम
d) कर्नाटक
उत्तर: c) असम

गुजरात का गिर वन किस जानवर के लिए प्रसिद्ध है?
a) बंगाल टाइगर
b) एशियाई शेर
c) हिम तेंदुआ
d) हाथी
उत्तर: b) एशियाई शेर

3600 मीटर से अधिक ऊँचाई पर पर्वतीय क्षेत्रों में किस प्रकार की वनस्पति पाई जाती है?
a) कोणधारी वन
b) शीतोष्ण वन
c) अल्पाइन वनस्पति
d) मैंग्रोव वनस्पति
उत्तर: c) अल्पाइन वनस्पति

मैंग्रोव वनों की जड़ें पानी में डूबी रहने के बावजूद साँस लेने के लिए किस प्रकार की जड़ें बनाती हैं?
a) सहारा जड़ें
b) वायवीय जड़ें (pneumatophores)
c) प्रवाल जड़ें
d) भोजन संग्रह जड़ें
उत्तर: b) वायवीय जड़ें (pneumatophores)

सुंदरबन डेल्टा में कौन-से वृक्ष प्रमुख रूप से पाए जाते हैं, जिसके नाम पर इस क्षेत्र का नाम पड़ा है?
a) सागौन
b) साल
c) सुंदरी वृक्ष
d) चंदन
उत्तर: c) सुंदरी वृक्ष

भारत में वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम कब पारित किया गया था?
a) 1952
b) 1972
c) 1982
d) 1992
उत्तर: b) 1972

भारत में कुल कितने जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए हैं?
a) 12
b) 15
c) 18
d) 20
उत्तर: c) 18

प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलिफेंट जैसी परियोजनाएँ किसलिए शुरू की गई हैं?
a) वनों की कटाई को रोकने के लिए
b) विशिष्ट पशु प्रजातियों के संरक्षण के लिए
c) प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए
d) औषधीय पौधों के विकास के लिए
उत्तर: b) विशिष्ट पशु प्रजातियों के संरक्षण के लिए

वह प्रक्रिया जिसमें जंगल के एक बड़े हिस्से को कृषि या मानव बस्तियों के लिए काटा जाता है, क्या कहलाती है?
a) वनीकरण
b) पुनः वनीकरण
c) वनों की कटाई
d) वन प्रबंधन
उत्तर: c) वनों की कटाई

चंदन के वृक्ष किस प्रकार के वनों में पाए जाते हैं?
a) उष्णकटिबंधीय वर्षा वन
b) पर्वतीय वन
c) उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन
d) कंटीले वन
उत्तर: c) उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन

भारत किस प्रकार के जीव का विश्व में एकमात्र निवास स्थान है?
a) याक
b) हिम तेंदुआ
c) शेर और बाघ दोनों
d) जंगली गधा
उत्तर: c) शेर और बाघ दोनों

पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) से क्या अभिप्राय है?
a) केवल एक क्षेत्र के पौधे
b) केवल एक क्षेत्र के जानवर
c) भौतिक पर्यावरण और उसमें रहने वाले जीवों के बीच का संबंध
d) मानव द्वारा बनाए गए कृषि क्षेत्र
उत्तर: c) भौतिक पर्यावरण और उसमें रहने वाले जीवों के बीच का संबंध

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