कक्षा 12 हिन्दी आरोह हरिवंश राय बच्चन :आत्मपरिचय ,एक गीत : Hindi Aaroh Hariwanshrai Bacchan Aatm Parichay Ek Geet

Hindi Aaroh Hariwanshrai Bacchan Aatm Parichay Ek Geet :

कक्षा 12 हिन्दी आरोह हरिवंश राय बच्चन :आत्मपरिचय ,एक गीत

हरिवंश राय बच्चन – एक सरल परिचय

📅 जन्म और निधन

  • जन्म: 1907, इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश)
  • निधन: 2003, मुंबई

📚 प्रमुख रचनाएँ

कविता संग्रह:

  • मधुशाला (1935), मधुबाला (1938), मधुकलश (1938)
  • निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल अंतर, सतरंगिणी
  • आरती और अंगारे, नए पुराने झरोखे, टूटी-फूटी कड़ियाँ

आत्मकथा (4 भाग):

  1. क्या भूलूँ क्या याद करूँ
  2. नीड़ का निर्माण फिर
  3. बसेरे से दूर
  4. दशद्वार से सोपान तक

अनुवाद कार्य:

  • हैमलेट, जनगीता, मैकबेथ

अन्य लेखन:

  • प्रवासी की डायरी (डायरी)
  • उनका सारा साहित्य बच्चन ग्रंथावली’ नाम से 10 खंडों में प्रकाशित

👨🏫 सेवा और कार्यक्षेत्र

  • 1942–1952: इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक
  • फिर आकाशवाणी के साहित्यिक कार्यक्रमों से जुड़े
  • बाद में विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के रूप में कार्य किया

🎙साहित्यिक योगदान

  • उनकी कविता में सीधी, सरल, भावनाओं से भरी भाषा होती है
  • वे छायावाद की जटिलता से हटकर आम लोगों की भाषा में लिखते थे
  • उनके कई कविता विषय उनके व्यक्तिगत जीवन से जुड़े होते थे

🍷मधुशालाऔर जीवन दर्शन

  • बच्चन जी उमर खय्याम से प्रभावित थे
  • उनके अनुसार:
    • जीवन = मधुकलश (शराब का प्याला)
    • दुनिया = मधुशाला (सराय)
    • कल्पना = साक़ी (पिलाने वाला)
    • कविता = प्याला (जिसमें अनुभव दिए जाते हैं)

👉 उनका मानना था कि जीवन में दुख–सुख, खटास–मिठास को पूरे मन से अपनाना चाहिए — तभी असली आनंद मिलता है।

🧠 हालावादी दृष्टिकोण (Philosophy of Acceptance)

  • उनके लेखन में सूफी जैसी बेपरवाही, दुनिया से मोह और प्रेम की भावना दिखाई देती है
  • वो कहते हैं: “दुनिया में हूँ, पर इसका तलबगार नहीं हूँ” “बाज़ार से गुज़रा हूँ, खरीदार नहीं हूँ”

👉 यह विचार दर्शाता है कि वे दुनिया से जुड़े तो हैं पर उसमें खोए नहीं हैं।

✒️ अन्य विशेषताएँ

  • उन्होंने गहरी सोच वाली कविताएँ भी लिखीं जो अभी कम पढ़ी गई हैं
  • उन्होंने आत्मकथा, कहानी, नाटक और डायरी भी लिखे — जिनमें सचाई और सरल भाषा है

🌌 निशा निमंत्रण और आत्मपरिचय

  • उनकी एक प्रसिद्ध रचना आत्मपरिचय बताती है कि:
    • स्वयं को जानना, दुनिया को जानने से भी कठिन है
    • इंसान पूरी तरह समाज से अलग होकर नहीं जी सकता
    • इंसान की असली पहचान उसका परिवेश और समाज है

👉 वे मानते हैं कि जीवन विरोधों का संतुलन है — जैसे शीतलता में अग्नि, अवसाद में आनंद

🌿 काव्य में प्रकृति और आत्मा का संबंध

  • निशा निमंत्रण जैसे गीतों में उन्होंने प्रकृति के बदलावों के ज़रिए मनुष्य की भावनाओं को छूने की कोशिश की
  • उनके गीत हमें सिखाते हैं कि हर दिन की सुबह हमें प्रेरणा देती है कि हमें कुछ नया करना चाहिए, लक्ष्य पाना चाहिए

आत्म परिचय

मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ!

मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ!

मैं निज उर के उदगार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ;
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ!

मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ;
जग भव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ!

मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ!

सब यत्न मिटे, सब सत्य किसी ने जाना?
नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!
फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना!

मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज़ मिटाता;
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!

मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।

मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!

मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ!


एक गीत

हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे-
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!


  1. कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ – विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?

संदर्भ: हरिवंश राय बच्चन की कविता आत्मपरिचय

उत्तर: इन दोनों कथनों में विरोधाभास दिख सकता है लेकिन ये कवि हरिवंश राय बच्चन के जीवन के प्रति एक गहरी समझ और दर्शन को व्यक्त करते हैं।

  • मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ”: इसका आशय है कि कवि इस संसार में रहते हुए, इसकी समस्त जिम्मेदारियों, दुखों, आशाओं और निराशाओं को अपने भीतर समेटे हुए है। वह जीवन की वास्तविकताओं, समाज के दबावों और व्यक्तिगत अनुभूतियों के बोझ को महसूस करता है। यह उसके सचेत, संवेदनशील और मानवीय अस्तित्व का परिचायक है। वह दुनिया से कटा हुआ नहीं है, बल्कि उसके सुख-दुख का हिस्सा है।
  • “मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ”: इस पंक्ति का अर्थ यह नहीं है कि कवि दुनिया से विरक्त है या उसे समाज की परवाह नहीं है। बल्कि, इसका आशय है कि वह दुनिया के बनाए गए मापदंडों, दिखावे, यश की लालसा या दूसरों की निंदा-प्रशंसा की परवाह नहीं करता। वह अपनी आंतरिक प्रेरणा, अपने मन की संतुष्टि और अपनी अनुभूतियों के अनुसार जीता है। वह दुनिया की भीड़ में अपनी मौलिकता और स्वतंत्रता को बनाए रखता है और दुनिया की निरर्थक बातों में अपना समय और ऊर्जा बर्बाद नहीं करता।

केंद्रीय विचार: कवि का विरोधाभासी व्यक्तित्व और दुनिया से जुड़ाव तथा अलिप्तता का दर्शन (प्रीतिकलह)। वह जीवन की जिम्मेदारियों को स्वीकार करता है, पर सांसारिक रीति-रिवाजों और लोक-निंदा की परवाह नहीं करता।

2. जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं – कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?

संदर्भ: हरिवंश राय बच्चन की कविता आत्मपरिचय

उत्तर: कवि हरिवंश राय बच्चन ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि ‘दाना’ (ज्ञानी, समझदार, चतुर) और ‘नादान’ (अज्ञानी, मूर्ख, अनुभवहीन) दोनों ही एक ही संसार में, एक ही परिवेश में मौजूद होते हैं। यह मनुष्य स्वभाव की विडंबना और दुनिया की वास्तविकता को दर्शाता है।

  • ‘दाना’ (ज्ञानी/चतुर): कवि का इशारा उन लोगों की ओर है जो सांसारिक मोह-माया, धन-वैभव और स्वार्थपूर्ति के पीछे भागते हैं। वे दुनियादारी में चतुर होते हैं और अपने हित साधने में माहिर होते हैं।
  • नादान‘ (मूर्ख/अज्ञानी): कवि उन लोगों को ‘नादान’ कहता है जो इस दानापन को समझते नहीं, या जो जानकर भी उसी मृगतृष्णा के पीछे भागते रहते हैं। वे जीवन के वास्तविक सत्य को नहीं पहचान पाते और झूठी दौड़ में शामिल हो जाते हैं, जहाँ अंततः सब कुछ मिट जाना है।

केंद्रीय विचार: यह कथन मानव स्वभाव की विरोधाभासी प्रकृति और सांसारिक मोह-माया की निरर्थकता पर कवि का व्यंग्य है। दुनिया में ज्ञानी और अज्ञानी दोनों का सह-अस्तित्व है, और अक्सर ज्ञानी भी अज्ञानवश सांसारिक प्रलोभनों में फंस जाते हैं।

3. मैं और, और जग और कहाँ का नाता- पंक्ति में और शब्द की विशेषता बताइए।

संदर्भ: हरिवंश राय बच्चन की कविता आत्मपरिचय

उत्तर: इस पंक्ति में कवि हरिवंश राय बच्चन द्वारा ‘और’ शब्द का प्रयोग तीन अलग-अलग अर्थों और संदर्भों में हुआ है, जो इसकी बहुअर्थी विशेषता को दर्शाता है:

  • मैं और”: यहाँ ‘और’ शब्द कवि के ‘व्यक्तित्व की विशिष्टता’ या ‘अद्वितीयता’ को दर्शाता है। कवि कहता है कि ‘मैं’ (मेरा अस्तित्व, मेरी सोच, मेरा स्वभाव) दुनिया से अलग, विशिष्ट और अद्वितीय है।
  • और जग और”: यहाँ दूसरा ‘और’ शब्द ‘जग’ (संसार, समाज) की ‘भिन्नता’ या ‘विशिष्टता’ को दर्शाता है। कवि कहता है कि ‘जग’ (संसार का स्वभाव, उसकी रीतियाँ, उसके मूल्य) भी अपने आप में विशिष्ट और अलग है। यह दर्शाता है कि कवि और संसार के स्वभाव में मौलिक भिन्नता है।
  • कहाँ का नाता”: यहाँ तीसरा ‘और’ शब्द संयोजक अव्यय के रूप में आया है, जो पहले आए दो ‘और’ (जो क्रमशः ‘मैं’ और ‘जग’ की भिन्नता को दर्शाते हैं) के बीच संबंध स्थापित करता है। यह बताता है कि जब ‘मैं’ और ‘जग’ दोनों ही इतने भिन्न और विशिष्ट हैं, तो उनके बीच कोई गहरा या स्वाभाविक संबंध कैसे हो सकता है।

केंद्रीय विचार: ‘और’ शब्द के विविध प्रयोग के माध्यम से कवि अपने और संसार के बीच के अलगाव और बेमेल संबंध को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करता है, जो उसके विरोधाभासी दर्शन का एक पहलू है।

4. शीतल वाणी में आग- के होने का क्या अभिप्राय है?

संदर्भ: हरिवंश राय बच्चन की कविता आत्मपरिचय

उत्तर: “शीतल वाणी में आग” इस पंक्ति में विरोधाभास अलंकार है, और इसका अभिप्राय कवि हरिवंश राय बच्चन की अभिव्यक्ति की शक्ति और उसके प्रभाव से है:

  • शीतल वाणी”: यह कवि की भाषा शैली को दर्शाता है – जो शांत, मधुर, सहज और सरल है। उसकी बातें सीधे, बिना किसी लाग-लपेट के व्यक्त की गई हैं, सुनने में मृदु और शांत लगती हैं।
  • में आग”: यह उस ‘वाणी’ के आंतरिक प्रभाव, तीव्रता और शक्ति को दर्शाता है। यह ‘आग’ क्रांति, जोश, विद्रोह, व्यंग्य, सत्य की कठोरता या भावनाओं की प्रचंडता का प्रतीक है। कवि की शांत और मधुर लगने वाली बातें वास्तव में समाज की रूढ़ियों, पाखंडों या अन्याय पर तीखा प्रहार करती हैं, या उसमें गहरे भावों और विचारों का ज्वार उत्पन्न करती हैं।

केंद्रीय विचार: यह कथन बच्चन के उस कवि-रूप को दर्शाता है जहाँ वे सीधी-सादी भाषा में गहरी और प्रभावशाली बातें कहते हैं, जिनमें आंतरिक रूप से तीव्रता और आक्रोश का भाव छिपा होता है।

5. बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे?

संदर्भ: हरिवंश राय बच्चन का गीत दिन जल्दी-जल्दी ढलता है (निशा निमंत्रण से उद्धृत)।

उत्तर: कवि हरिवंश राय बच्चन के गीत दिन जल्दी-जल्दी ढलता है के संदर्भ में बच्चे अपनी माँ (या माता-पिता) के घर वापस आने की आशा में नीड़ों (घोंसलों) से झाँक रहे होंगे। यह दृश्य शाम ढलने के समय का है, जब पक्षी अपने घोंसलों की ओर लौट रहे होते हैं। चिड़ियों के बच्चे स्वाभाविक रूप से अपनी माँ के लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, क्योंकि माँ उनके लिए भोजन और सुरक्षा लेकर आती है। उनकी आशा और प्रतीक्षा ही माँ चिड़िया को तेज़ी से उड़ने और जल्दी घर पहुँचने के लिए प्रेरित करती है।

केंद्रीय विचार: बच्चों की प्रत्याशा और वात्सल्य भाव, जो पक्षियों (और मनुष्य) को अपने प्रियजनों तक शीघ्र पहुँचने के लिए प्रेरित करता है।

6. दिन जल्दी-जल्दी ढलता है-की आवृत्ति से कविता की किस विशेषता का पता चलता है?

संदर्भ: हरिवंश राय बच्चन का गीत दिन जल्दी-जल्दी ढलता है (निशा निमंत्रण से उद्धृत)।

उत्तर: कवि हरिवंश राय बच्चन के इस गीत में “दिन जल्दी-जल्दी ढलता है” पंक्ति की बार-बार आवृत्ति (पुनरावृत्ति) कविता में कई विशेषताओं को उजागर करती है:

  • समय की तीव्र गतिशीलता: यह सबसे प्रत्यक्ष अर्थ है। यह दर्शाता है कि समय कितनी तेज़ी से बीत रहा है, शाम कितनी जल्दी ढल रही है और रात हो रही है। यह जीवन की क्षणभंगुरता और गतिशीलता का प्रतीक है।
  • लक्ष्य-प्राप्ति की आतुरता: यह यात्रियों (पंथी) और पक्षियों (चिड़ियों) के भीतर अपने गंतव्य तक पहुँचने या अपने प्रियजनों से मिलने की तीव्र इच्छा और हड़बड़ी को दर्शाती है। समय के तेज़ी से ढलने का एहसास उन्हें अपने प्रयासों में तेज़ी लाने के लिए प्रेरित करता है।
  • भावनात्मक तीव्रता: यह आवृत्ति एक विशेष भावना – बेचैनी, आतुरता, विह्वलता, या एकाकीपन – को गहरा करती है। विशेष रूप से जब कवि कहता है “मुझसे मिलने को कौन विकल? मैं होऊँ किसके हित चंचल?”, तो यह पंक्ति की आवृत्ति उसके मन की गहरी पीड़ा और खालीपन को और भी प्रभावी बना देती है।
  • लय और संगीत: यह आवृत्ति कविता में एक विशेष लय, गति और संगीतात्मकता पैदा करती है, जो पाठक या श्रोता के मन पर गहरा प्रभाव डालती है।

केंद्रीय विचार: इस आवृत्ति के माध्यम से, कवि समय की तीव्र गति, जीवन में लक्ष्य-प्राप्ति की प्रेरणा और विशेष रूप से मनुष्य के जीवन में एकाकीपन तथा प्रेम के अभाव की विह्वलता के केंद्रीय भाव को सशक्त रूप से स्थापित करता है।

MCQs from Harivansh Rai Bachchan’s Poems

Instructions: Choose the best option for each question. The correct answer is marked with a checkmark (✓).

कविता: आत्मपरिचय

  1. ‘आत्मपरिचय’ कविता में कवि किस चीज़ का भार लिए फिरने की बात करता है?
    a) संसार का
    b) रिश्तों का
    c) जग-जीवन का (✓)
    d) कविताओं का
  2. कवि ने अपने हृदय में किसकी अग्नि जलाकर दाह करने की बात कही है?
    a) क्रोध की
    b) ईर्ष्या की
    c) विरह की / प्रेम की (✓)
    d) नफरत की
  3. कवि के अनुसार, संसार किन लोगों को पूछता है?
    a) जो विद्वान होते हैं
    b) जो धनवान होते हैं
    c) जो जग की बातें (प्रशंसा) गाते हैं (✓)
    d) जो कवि होते हैं
  4. कवि अपने रोदन में क्या लिए फिरता है?
    a) वेदना
    b) निराशा
    c) राग (प्रेम/संगीत) (✓)
    d) आँसू
  5. ‘शीतल वाणी में आग’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
    a) वाणी का कर्कश होना
    b) वाणी में गर्मी होना
    c) वाणी में विरोधाभासपूर्ण तीव्रता और प्रभाव होना (✓)
    d) वाणी का मधुर न होना
  6. कवि किस चीज़ को ठुकराने की बात करता है जिस पर जग वैभव जोड़ा करता है?
    a) रिश्ते-नातों को
    b) झूठे दिखावे को
    c) पृथ्वी को (सांसारिक धन-दौलत) (✓)
    d) अपनी पहचान को
  7. ‘नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!’ इस पंक्ति में ‘दाना’ शब्द का क्या अर्थ है?
    a) अन्न का दाना
    b) सांसारिक चतुर व्यक्ति (✓)
    c) ज्ञानी व्यक्ति
    d) मूर्ख व्यक्ति
  8. कवि के अनुसार, दुनिया से उसका संबंध कैसा है?
    a) केवल प्रेम का
    b) केवल कलह का
    c) प्रीतिकलह का (✓)
    d) कोई संबंध नहीं

कविता: एक गीत (‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’)

  1. दिन का पंथी जल्दी-जल्दी क्यों चलता है?
    a) उसे बहुत काम है
    b) उसे भूख लगी है
    c) रात होने से पहले मंज़िल तक पहुँचना है (✓)
    d) उसे सुबह जल्दी उठना है
  2. नीड़ों से कौन झाँक रहे होंगे?
    a) पक्षी
    b) चिड़ियों के बच्चे (✓)
    c) अन्य जानवर
    d) मनुष्य
  3. यह ध्यान चिड़ियों के परों में क्या भरता है?
    a) थकान
    b) चंचलता (✓)
    c) डर
    d) उदासी
  4. कवि के पद क्यों शिथिल हो जाते हैं?
    a) दिन ढल रहा है
    b) उसे थकान है
    c) कोई उससे मिलने को विकल नहीं है (✓)
    d) उसे अपनी मंज़िल नहीं पता
  5. ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ पंक्ति की आवृत्ति से कविता में क्या प्रभाव उत्पन्न होता है?
    a) गतिशीलता और लय
    b) समय की तीव्र गति का बोध
    c) भावों की गहराई
    d) उपरोक्त सभी (✓)
  6. इस गीत का केंद्रीय भाव क्या है?
    a) प्रकृति का वर्णन
    b) चिड़ियों का जीवन
    c) समय की क्षणभंगुरता और प्रियजन से मिलन की उत्कंठा / अकेलेपन का बोध (✓)
    d) यात्रा का महत्त्व

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