विशेषण और विशेष्य: Visheshan and Visheshya :A Comprehensive Guide for MP Board Class 11th & 12th

Visheshan and Visheshya

Visheshan and Visheshya : संस्कृत भाषा अपनी वैज्ञानिकता और समृद्धि के लिए विश्वविख्यात है। इसकी व्याकरणिक संरचना अत्यंत सुगठित और व्यवस्थित है। इसी संरचना का एक महत्वपूर्ण अंग है विशेषण और विशेष्य का संबंध। यह संबंध न केवल भाषा की सुंदरता को बढ़ाता है, बल्कि अर्थ की स्पष्टता को भी सुनिश्चित करता है। संस्कृत साहित्य के गहन अध्ययन के लिए विशेषण और विशेष्य के स्वरूप, प्रकार और प्रयोग को समझना अत्यंत आवश्यक है। यह लेख कक्षा 11वीं और 12वीं के संस्कृत विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है, जिसका उद्देश्य इस विषय पर एक व्यापक और गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत करना है।

विशेषण की परिभाषा

जिस पद से किसी संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता (गुण, संख्या, परिमाण, अवस्था आदि) का बोध होता है, उसे विशेषण कहते हैं। सरल शब्दों में, विशेषण वह शब्द है जो किसी अन्य शब्द की पहचान या गुणवत्ता को बताता है।

उदाहरण:

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  • श्वेतः अश्वः धावति। (सफेद घोड़ा दौड़ता है।)
  • अत्र ‘श्वेतः’ विशेषण है, जो ‘अश्वः’ की विशेषता (रंग) को बताता है।

विशेष्य की परिभाषा

जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताई जाती है, उसे विशेष्य कहते हैं। विशेष्य वह पद है जिसके लिए विशेषण का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण:

  • श्वेतः अश्वः धावति। (सफेद घोड़ा दौड़ता है।)
  • अत्र ‘अश्वः’ विशेष्य है, जिसकी विशेषता ‘श्वेतः’ बताता है।

विशेषण और विशेष्य का संबंध

संस्कृत में विशेषण और विशेष्य के संबंध को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संबंध लिंग, वचन और विभक्ति के आधार पर निर्धारित होता है। यह एक ऐसा नियम है जो संस्कृत को अन्य भाषाओं से अलग और विशिष्ट बनाता है।

1. लिंग-समानता

संस्कृत में विशेषण का लिंग विशेष्य के लिंग के अनुसार होता है। यदि विशेष्य पुल्लिंग है, तो विशेषण भी पुल्लिंग होगा। यदि विशेष्य स्त्रीलिंग है, तो विशेषण भी स्त्रीलिंग होगा, और यदि विशेष्य नपुंसकलिंग है, तो विशेषण भी नपुंसकलिंग होगा।

उदाहरण:

  • पुल्लिंग: सुन्दरः बालकः (सुंदर बालक)
  • स्त्रीलिंग: सुन्दरी बालिका (सुंदर बालिका)
  • नपुंसकलिंग: सुन्दरं पुष्पम् (सुंदर फूल)

2. वचन-समानता

विशेषण का वचन विशेष्य के वचन के अनुसार होता है। यदि विशेष्य एकवचन है, तो विशेषण भी एकवचन होगा। यदि विशेष्य द्विवचन है, तो विशेषण भी द्विवचन होगा, और यदि विशेष्य बहुवचन है, तो विशेषण भी बहुवचन होगा।

उदाहरण:

  • एकवचन: उच्चः वृक्षः (ऊंचा पेड़)
  • द्विवचन: उच्चौ वृक्षौ (दो ऊँचे पेड़)
  • बहुवचन: उच्चाः वृक्षाः (बहुत से ऊँचे पेड़)

3. विभक्ति-समानता

विशेषण की विभक्ति विशेष्य की विभक्ति के अनुसार होती है। यह नियम संस्कृत में विशेषण और विशेष्य के संबंध को और भी अधिक मजबूत बनाता है।

उदाहरण:

  • प्रथमा विभक्ति: नवीनः ग्रन्थः पठ्यते। (नया ग्रंथ पढ़ा जाता है।)
  • द्वितीया विभक्ति: अहं नवीनं ग्रन्थं पठामि। (मैं नए ग्रंथ को पढ़ता हूँ।)
  • तृतीया विभक्ति: नवीनेन ग्रन्थेन पठितव्यम्। (नए ग्रंथ के द्वारा पढ़ा जाना चाहिए।)
  • चतुर्थी विभक्ति: नवीनाय ग्रन्थाय धनं ददाति। (नए ग्रंथ के लिए धन देता है।)
  • पञ्चमी विभक्ति: नवीनात् ग्रन्थात् ज्ञानं प्राप्नोति। (नए ग्रंथ से ज्ञान प्राप्त करता है।)
  • षष्ठी विभक्ति: नवीनस्य ग्रन्थस्य विषयः रुचिकरः अस्ति। (नए ग्रंथ का विषय रुचिकर है।)
  • सप्तमी विभक्ति: नवीने ग्रन्थे बहवः विषयाः सन्ति। (नए ग्रंथ में बहुत से विषय हैं।)

विशेषण के प्रकार (भेदाः)

संस्कृत व्याकरण में विशेषण को मुख्य रूप से चार भागों में वर्गीकृत किया गया है:

1. गुणवाचक विशेषण

यह विशेषण किसी संज्ञा या सर्वनाम के गुण, दोष, रंग, आकार, अवस्था, स्वाद, स्पर्श आदि का बोध कराता है।

उदाहरण:

  • गुण: श्रेष्ठः जनः (श्रेष्ठ व्यक्ति)
  • दोष: क्रूरः सिंहः (क्रूर शेर)
  • रंग: हरिताः पत्राणि (हरे पत्ते)
  • आकार: लम्बा पुरुषः (लंबा पुरुष)
  • अवस्था: बालः शिशुः (बच्चा शिशु)
  • स्वाद: मधुरम् फलम् (मीठा फल)

2. संख्यावाचक विशेषण

यह विशेषण किसी संज्ञा या सर्वनाम की संख्या का बोध कराता है। इसे दो उप-भेदों में विभाजित किया गया है:

क) निश्चित संख्यावाचक विशेषण

जो विशेषण निश्चित संख्या का बोध कराते हैं, जैसे ‘एक’, ‘दो’, ‘तीन’ आदि।

उदाहरण:

  • एकः छात्रः पठति। (एक छात्र पढ़ता है।)
  • चत्वारः वेदाः सन्ति। (चार वेद हैं।)
  • पञ्च पाण्डवाः आसन्। (पांच पाण्डव थे।)

ख) अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण

जो विशेषण अनिश्चित संख्या का बोध कराते हैं, जैसे ‘कुछ’, ‘कई’, ‘बहुत’ आदि।

उदाहरण:

  • केचन जनाः आगच्छन्ति। (कुछ लोग आते हैं।)
  • बहवः छात्राः क्रीडन्ति। (बहुत से छात्र खेलते हैं।)
  • कतिपय दिनानि यान्ति। (कुछ दिन बीत जाते हैं।)

3. परिमाणवाचक विशेषण

यह विशेषण किसी संज्ञा या सर्वनाम की मात्रा या परिमाण का बोध कराता है। इसे भी दो उप-भेदों में विभाजित किया गया है:

क) निश्चित परिमाणवाचक विशेषण

जो विशेषण निश्चित मात्रा का बोध कराते हैं।

उदाहरण:

  • एकः किलो धानम् (एक किलो चावल)
  • दश लीटर जलम् (दस लीटर जल)

ख) अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण

जो विशेषण अनिश्चित मात्रा का बोध कराते हैं।

उदाहरण:

  • किञ्चित् जलम् (थोड़ा जल)
  • प्रचुरं धनम् (बहुत धन)

4. सार्वनामिक विशेषण (संकेतवाचक विशेषण)

जब कोई सर्वनाम पद विशेषण के रूप में किसी संज्ञा के पहले आकर उसकी विशेषता बताता है, तो उसे सार्वनामिक विशेषण कहते हैं।

उदाहरण:

  • एषः बालकः पठति। (यह बालक पढ़ता है।)
  • सा बालिका नृत्यति। (वह बालिका नाचती है।)
  • कः पुरुषः अस्ति? (कौन पुरुष है?)

इन वाक्यों में ‘एषः’, ‘सा’, ‘कः’ आदि सर्वनाम पद विशेषण का कार्य कर रहे हैं।

विशेषण की अवस्थाएँ (अवस्थात्रयम्)

जिस प्रकार हिंदी में विशेषण की तीन अवस्थाएँ होती हैं (मूलावस्था, उत्तरावस्था, उत्तमावस्था), उसी प्रकार संस्कृत में भी विशेषण की अवस्थाओं को तीन भागों में विभाजित किया गया है।

1. मूलावस्था (Positive Degree)

यह विशेषण की सामान्य अवस्था है, जहाँ किसी की तुलना किसी अन्य से नहीं की जाती। इसमें विशेषण का मूल रूप प्रयुक्त होता है।

उदाहरण:

  • सुन्दरः बालकः अस्ति। (बालक सुंदर है।)
  • सरला भाषा संस्कृतम् अस्ति। (संस्कृत सरल भाषा है।)

2. उत्तरावस्था (Comparative Degree)

जब दो वस्तुओं या व्यक्तियों की तुलना की जाती है, तब विशेषण की उत्तरावस्था का प्रयोग होता है। इस अवस्था में विशेषण के साथ -तर प्रत्यय जोड़ा जाता है।

उदाहरण:

  • रामः श्यामात् अधिकतरः बुद्धिमान् अस्ति। (राम श्याम से अधिक बुद्धिमान है।)
  • गंगा यमुनायाः अधिकतरा पवित्रा नदी अस्ति। (गंगा यमुना से अधिक पवित्र नदी है।)

3. उत्तमावस्था (Superlative Degree)

जब दो से अधिक वस्तुओं या व्यक्तियों में से किसी एक को श्रेष्ठ बताया जाता है, तब विशेषण की उत्तमावस्था का प्रयोग होता है। इस अवस्था में विशेषण के साथ -तम प्रत्यय जोड़ा जाता है।

उदाहरण:

  • कालिदासः कविषु श्रेष्ठतमः कविः अस्ति। (कालिदास कवियों में सर्वश्रेष्ठ कवि हैं।)
  • हिमालयः पर्वतेषु उच्चतमः पर्वतः अस्ति। (हिमालय पर्वतों में सबसे ऊंचा पर्वत है।)

इन अवस्थाओं का प्रयोग करते समय ध्यान रखना चाहिए कि ‘तर’ और ‘तम’ प्रत्यय विशेषण के पुल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग रूपों के साथ समान रूप से जुड़ते हैं।


विशेषण और विशेष्य से संबंधित महत्वपूर्ण नियम

  1. पदक्रम: सामान्यतः विशेषण विशेष्य से पहले आता है, किंतु काव्य में या विशेष बल देने के लिए यह बाद में भी आ सकता है।
    • सामान्य क्रम: श्वेतः अश्वः धावति।
    • काव्य में: अश्वः श्वेतः धावति।
  2. बहु-विशेषण: एक ही विशेष्य के लिए एक से अधिक विशेषणों का प्रयोग किया जा सकता है।
    • उदाहरण: सज्जनः, विद्वान्, धार्मिकः च सः जनः अस्ति। (वह व्यक्ति सज्जन, विद्वान और धार्मिक है।)
    • इन सभी विशेषणों का लिंग, वचन और विभक्ति एक ही विशेष्य ‘जनः’ के अनुसार है।
  3. लुप्त-विशेष्य: कभी-कभी विशेष्य पद का लोप हो जाता है और विशेषण ही विशेष्य के रूप में प्रयुक्त होता है।
    • उदाहरण: सज्जनाः पूज्यन्ते। (अच्छे लोग पूजे जाते हैं।) यहाँ ‘सज्जनाः’ विशेषण है, लेकिन ‘जनाः’ (विशेष्य) का लोप हो गया है।
  4. संख्यावाचक विशेषणों का प्रयोग: संख्यावाचक विशेषणों का रूप उनके विशेष्य के अनुसार बदलता है, जैसे:
    • ‘एक’ शब्द का रूप तीनों लिंगों में अलग-अलग होता है: एकः (पुं.), एका (स्त्री.), एकम् (नपुं.)
    • ‘द्वि’ (दो) शब्द का रूप तीनों लिंगों में अलग होता है: द्वौ (पुं.), द्वे (स्त्री. और नपुं.)
    • ‘त्रि’ (तीन) शब्द का रूप तीनों लिंगों में अलग होता है: त्रयः (पुं.), तिस्रः (स्त्री.), त्रीणि (नपुं.)
    • ‘चतुर्’ (चार) शब्द का रूप तीनों लिंगों में अलग होता है: चत्वारः (पुं.), चतस्रः (स्त्री.), चत्वारि (नपुं.)
    • पाँच से लेकर अठारह तक की संख्याओं के विशेषण तीनों लिंगों में समान होते हैं, जैसे पञ्च (पुं., स्त्री., नपुं. सभी में)।

अभ्यास कार्य

इस विषय की गहन समझ के लिए विद्यार्थियों को निम्नलिखित अभ्यासों का नियमित रूप से अभ्यास करना चाहिए:

  1. रिक्त-स्थान-पूर्ति: दिए गए वाक्यों में उचित विशेषण या विशेष्य भरें।
  2. सही-जोड़ी-मिलाओ: विशेषण और विशेष्य की सही जोड़ी बनाएँ।
  3. वाक्य-निर्माण: दिए गए विशेषणों का प्रयोग करके संस्कृत में वाक्य बनाएँ।
  4. अनुवाद: हिंदी के वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद करें, जिनमें विशेषण-विशेष्य का प्रयोग हो।
  5. पठित-पाठ्य सामग्री से विशेषण-विशेष्य छाँटना: अपनी पाठ्य-पुस्तक (जैसे हितोपदेश, रामायण, महाभारत के अंश) से विशेषण और विशेष्य पदों को छाँटकर उनकी लिंग, वचन और विभक्ति की पहचान करें।

निष्कर्ष

संस्कृत व्याकरण में विशेषण और विशेष्य का संबंध एक आधारभूत और महत्वपूर्ण सिद्धांत है। यह भाषा को न केवल स्पष्टता प्रदान करता है, बल्कि उसकी सुंदरता और अभिव्यक्ति की शक्ति को भी बढ़ाता है। विशेषण के विभिन्न प्रकारों, अवस्थाओं और इनके विशेष्य के साथ समन्वय को भली-भांति समझकर ही विद्यार्थी संस्कृत साहित्य के गूढ़ रहस्यों का अनावरण कर सकते हैं। यह ज्ञान उच्च स्तर की संस्कृत शिक्षा के लिए एक अनिवार्य घटक है, जो विद्यार्थियों को भाषा पर गहरी पकड़ बनाने में मदद करेगा। इस विस्तृत विवेचन के माध्यम से विद्यार्थी न केवल अपनी परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगे, बल्कि संस्कृत भाषा के प्रति उनकी समझ और रुचि भी बढ़ेगी।

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