Sana Sana Haath Jodi Madhu Kankariya Question Answer
1. झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंगटोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?
उत्तर: झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंगटोक लेखिका को इस तरह सम्मोहित कर रहा था जैसे वह कोई जादुई नगरी हो। लेखिका को लगा कि आसमान उलटा पड़ा है और सारे तारे नीचे बिखर कर टिमटिमा रहे हैं, जिससे ढलान पर बने घर और दुकानें रोशनी की एक झालर सी बना रहे थे। यह दृश्य इतना अलौकिक और विस्मयकारी था कि इसे देखकर लेखिका को सम्मोहन का अनुभव हुआ और वह अपनी सारी चेतना शून्य महसूस करने लगी, सिर्फ उस अलौकिक सौंदर्य में डूब गई।
2. गंगटोक को “मेहनतकश बादशाहों का शहर” क्यों कहा गया?
उत्तर: गंगटोक को “मेहनतकश बादशाहों का शहर” इसलिए कहा गया क्योंकि यहाँ के लोगों ने अत्यधिक परिश्रम करके इस पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्र को एक सुंदर और जीवंत शहर में बदल दिया है। यहाँ के लोग पत्थरों को तोड़कर, पहाड़ों को काटकर सड़कें बनाते हैं, खेती करते हैं और अपनी आजीविका चलाते हैं। उनकी कठोर मेहनत, संघर्ष और दृढ़ इच्छाशक्ति ही उन्हें “बादशाह” बनाती है, क्योंकि वे अपनी मेहनत से ही अपने जीवन पर राज करते हैं और प्रकृति की चुनौतियों पर विजय प्राप्त करते हैं।
3. कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?
उत्तर: पाठ में पताकाओं का फहराना अलग-अलग अवसरों और मान्यताओं की ओर संकेत करता है:
- श्वेत पताकाएँ: ये शांति और अहिंसा की प्रतीक होती हैं। इन्हें किसी बौद्ध भिक्षु की मृत्यु पर फहराया जाता है। ये 108 होती हैं और इन्हें किसी भी शुभ-अशुभ कार्य से नहीं जोड़ा जाता, बस शांति के संदेश के लिए फहराया जाता है।
- रंगीन पताकाएँ: ये किसी नए कार्य या शुभ अवसर के प्रारंभ पर फहराई जाती हैं। ये बुद्ध की शिक्षाओं और सकारात्मकता का प्रतीक मानी जाती हैं। ये भी आमतौर पर 108 होती हैं।
4. जितेन नागें ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं, लिखिए।
उत्तर: जितेन नागें ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, भौगोलिक स्थिति और जनजीवन के बारे में कई महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं:
- पताकाओं का महत्व: उन्होंने श्वेत और रंगीन पताकाओं के अर्थ और उनके फहराने के अवसरों के बारे में बताया।
- धार्मिक मान्यताएँ: उन्होंने बताया कि यहाँ पत्थरों पर लिखे मंत्र या प्रार्थनाएँ आत्मा की शांति के लिए होती हैं और वे किसी धार्मिक स्थल से कम नहीं।
- नदियाँ और झरने: उन्होंने बताया कि कैसे यहाँ के झरने और नदियाँ (विशेषकर तीस्ता नदी) पहाड़ों से निकलकर जीवनदायिनी बनती हैं।
- कटाओ का महत्व: उन्होंने कटाओ की सुंदरता, वहाँ प्रदूषण न होने और वहाँ के लोगों द्वारा किए जाने वाले कठोर परिश्रम के बारे में बताया।
- जनजीवन का संघर्ष: उन्होंने बताया कि पहाड़ी लोग, खासकर महिलाएँ, कैसे पत्थरों को तोड़कर रास्ता बनाती हैं और कितनी मुश्किलों में जीवन यापन करती हैं।
- फौजियों का जीवन: उन्होंने सीमा पर तैनात सैनिकों की विषम परिस्थितियों और उनके बलिदान के बारे में भी बताया।
- पर्यावरण चेतना: उन्होंने यह भी बताया कि सिक्किम के लोग प्रकृति का सम्मान करते हैं और उसे पवित्र मानते हैं।
5. लाग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी?
उत्तर: लाग स्टॉक में घूमते हुए ‘धर्म चक्र’ को देखकर लेखिका को भारत की आत्मा एक-सी दिखाई दी क्योंकि उन्होंने देखा कि वहाँ भी लोग उस चक्र को घुमाकर यह मानते हैं कि सारे पाप धुल जाते हैं। यह मान्यता भारत के मैदानी इलाकों में भी प्रचलित है, जहाँ लोग गंगा में स्नान कर या धार्मिक स्थलों पर पूजा कर पाप मुक्ति की कामना करते हैं। यह समानता देखकर लेखिका को लगा कि पूरे भारत में लोगों की आस्थाएँ, विश्वास और पाप-पुण्य की अवधारणाएँ एक जैसी हैं, भले ही भौगोलिक परिस्थितियाँ और भाषाएँ भिन्न हों। यही समानता उन्हें भारत की एकरूपता और अखंडता का अनुभव कराती है।
6. जितेन नागें की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं?
उत्तर: जितेन नागें ने एक कुशल गाइड की भूमिका निभाई। उनके अंदर एक कुशल गाइड के निम्नलिखित गुण थे:
- संपूर्ण जानकारी: उसे सिक्किम की प्रकृति, भौगोलिक स्थिति, इतिहास और संस्कृति की गहरी जानकारी थी।
- जिज्ञासा शांत करना: वह लेखिका के हर प्रश्न का उत्तर सहजता से देता था और उसकी जिज्ञासाओं को शांत करता था।
- संवेदनशील और भावुक: वह केवल जानकारियाँ नहीं देता था, बल्कि स्थानीय जीवन के संघर्षों और प्रकृति की सुंदरता के प्रति संवेदनशील भी था। वह सैलानियों को केवल दृश्य नहीं दिखाता, बल्कि उनसे जोड़ता भी था।
- हास्य और मैत्रीपूर्ण व्यवहार: उसका व्यवहार मैत्रीपूर्ण और विनोदपूर्ण था, जिससे यात्रा सुखद बनी।
- पर्यटकों की सुरक्षा का ध्यान: वह रास्ते की चुनौतियों से परिचित था और सैलानियों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखता था।
- जिम्मेदारी का एहसास: उसे अपने काम और अपने क्षेत्र के प्रति गहरी जिम्मेदारी का एहसास था।
7. इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के कई मनोहारी और विराट रूपों का चित्र खींचा है:
- जगमगाता गंगटोक: रात में तारों की रोशनी में नहाया गंगटोक, जो किसी जादुई नगरी जैसा प्रतीत होता है, जहाँ रोशनी की झालर सी बिछी है।
- विशाल और भव्य हिमालय: ऊपर चढ़ते हुए बादलों को चीरते हुए दिखाई देने वाले हिमालय के विशाल और भव्य शिखर, जिनकी ऊँचाई और भव्यता विस्मयकारी है।
- शांत और गंभीर हिमालय: कहीं-कहीं हिमालय शांत और गंभीर साधु की तरह दिखाई देता है, जिसकी चोटियाँ बर्फ से ढकी होती हैं और जो शांति का अनुभव कराता है।
- जीवनदायिनी प्रकृति: हिमालय से निकलने वाले कल-कल करते झरने, तीस्ता नदी का निरंतर प्रवाह और घाटियों में खिले रंग-बिरंगे फूल, जो जीवन और ताजगी का प्रतीक हैं।
- कठोर और संघर्षपूर्ण हिमालय: वह रूप जहाँ लोग (पहाड़िनें) पत्थरों को तोड़कर, सड़कें बनाकर जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जो हिमालय के कठोर और चुनौती भरे स्वरूप को दर्शाता है।
- आध्यात्मिक और चिंतनशील हिमालय: वह रूप जहाँ पताकाएँ फहराई जाती हैं, जहाँ धर्म चक्र घूमते हैं और जहाँ लेखिका को अपने अस्तित्व और प्रकृति के विराट स्वरूप का बोध होता है।
8. प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?
उत्तर: प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को विस्मय, शांति, और आत्मिक जुड़ाव की अनुभूति होती है। वह इतनी अधिक प्रभावित हो जाती है कि उसे लगता है जैसे समय थम सा गया है। वह स्वयं को प्रकृति के उस विराट, अनंत और अलौकिक सौंदर्य का एक अविभाज्य अंग महसूस करती है। उसे लगता है कि वह स्वयं उस असीम प्रकृति में विलीन हो गई है और सभी छोटे-बड़े भेद मिट गए हैं। इस विराटता के सामने वह अपनी तुच्छता और अज्ञानता को महसूस करती है और उसे ईश्वरीय सत्ता का बोध होता है। यह अनुभूति उसे एक अनोखी शांति और आध्यात्मिक आनंद प्रदान करती है।
9. प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?
उत्तर: प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कुछ दृश्य गहराई से झकझोर गए, जिन्होंने उन्हें प्रकृति के कठोर सत्य और मानवीय संघर्ष से अवगत कराया:
- पहाड़िनों का पत्थर तोड़ना: सबसे अधिक लेखिका को वे पहाड़िनें झकझोर गईं जो अपनी पीठ पर बड़े-बड़े पत्थरों की टोकरियाँ लादकर और छोटे-छोटे बच्चों को भी अपनी पीठ से बाँधकर, रास्ते बनाने के लिए पत्थरों को तोड़ रही थीं। यह देखकर उन्हें लगा कि ये पहाड़िनें अपनी जान जोखिम में डालकर देश को रास्ता दे रही हैं।
- भूखी मौत का सामना करती महिलाएँ: बच्चों को पीठ पर बाँधे काम करती इन महिलाओं की दुर्दशा ने लेखिका को गरीबी और संघर्ष के उस भयानक रूप का अहसास कराया, जहाँ जीवन चलाने के लिए इतनी कठोर मेहनत करनी पड़ती है।
- फौजियों का बलिदान: सीमा पर भारतीय सेना के जवानों का विषम परिस्थितियों में देश की रक्षा करना और ‘एवरग्रीन’ नामक स्थान पर लिखा वाक्य “यहाँ हर लम्हा देश को समर्पित है” देखकर भी लेखिका का मन गहरे सम्मान और वेदना से भर गया। उन्हें एहसास हुआ कि प्रकृति के इस सौंदर्य के पीछे कितने लोगों का बलिदान छुपा है।
10. सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है, उल्लेख करें।
उत्तर: सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में कई लोगों का अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष योगदान होता है:
- गाइड: जितेन नागें जैसे कुशल गाइड जो क्षेत्र की संपूर्ण जानकारी रखते हैं, रास्तों की कठिनाइयों से अवगत कराते हैं, और स्थानीय संस्कृति व इतिहास से पर्यटकों को जोड़ते हैं।
- पहाड़ तोड़ने वाले मजदूर: वे मेहनतकश लोग (खासकर महिलाएँ) जो अपनी जान जोखिम में डालकर पहाड़ों को काटकर सड़कें बनाते हैं, जिनके बिना दुर्गम स्थानों तक पहुँचना संभव नहीं होता।
- स्थानीय दुकानदार व निवासी: वे लोग जो सैलानियों के लिए भोजन, पानी, आवास और अन्य आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं, जिससे उनकी यात्रा आरामदायक बनती है।
- सरकार और प्रशासन: वे एजेंसियाँ जो सड़कों का रखरखाव करती हैं, पर्यटकों के लिए सुविधाएं विकसित करती हैं, और पर्यटन स्थलों की सुरक्षा व स्वच्छता सुनिश्चित करती हैं।
- सफाईकर्मी: वे लोग जो पर्यटन स्थलों की स्वच्छता बनाए रखते हैं, ताकि प्रकृति का सौंदर्य अक्षुण्ण रहे।
- सेना के जवान: सीमावर्ती क्षेत्रों में तैनात फौजी, जो देश की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं, जिससे सैलानी सुरक्षित महसूस कर सकें और निर्भीक होकर यात्रा कर सकें।
11. “कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं।” इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?
उत्तर: “कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं।” यह कथन उन आम लोगों, विशेषकर मजदूरों और वंचित वर्गों के लिए कहा गया है जो न्यूनतम संसाधनों और सुविधाओं के बावजूद देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
इस कथन के आधार पर आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में भूमिका निम्नलिखित है:
- शारीरिक श्रम और बुनियादी ढाँचा निर्माण: देश के आर्थिक विकास की नींव बुनियादी ढाँचे (सड़कें, इमारतें, पुल) पर टिकी होती है, जिसके निर्माण में आम मजदूर वर्ग का कठोर शारीरिक श्रम लगता है। वे न्यूनतम मजदूरी पर भी जोखिम भरे काम करते हैं।
- उत्पादन में योगदान: कृषि, छोटे उद्योग और सेवा क्षेत्रों में आम जनता ही मुख्य श्रमिक होती है। वे वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करती है, जिससे अर्थव्यवस्था चलती है।
- उपभोक्ता आधार: आम जनता ही देश में वस्तुओं और सेवाओं की सबसे बड़ी उपभोक्ता होती है। उनकी क्रय शक्ति ही बाजारों को गति देती है।
- संसाधनों का प्रभावी उपयोग: कम संसाधनों में जीवन यापन करते हुए भी वे उपलब्ध संसाधनों का प्रभावी उपयोग करते हैं, जिससे अपव्यय कम होता है।
- करदाता के रूप में: प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से (जैसे वस्तु और सेवा कर के माध्यम से) आम जनता भी सरकार को राजस्व देती है, जिसका उपयोग देश के विकास कार्यों में होता है।
संक्षेप में, आम जनता देश की आर्थिक प्रगति की रीढ़ होती है। उनके छोटे-छोटे योगदान, श्रम और उपभोग से ही देश की अर्थव्यवस्था का चक्र घूमता है और समग्र विकास संभव हो पाता है, भले ही उन्हें मिलने वाला प्रतिफल अक्सर बहुत कम होता है।
12. आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है। इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए।
उत्तर: आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ कई तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है, जिससे पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है:
- प्रदूषण फैलाना: प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग, कचरा कहीं भी फेंकना, वाहनों और उद्योगों से निकलने वाला धुआँ, जल स्रोतों में गंदगी फैलाना आदि।
- अंधाधुंध कटाई: शहरीकरण और विकास के नाम पर पेड़ों और वनों की अंधाधुंध कटाई, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो रहा है।
- संसाधनों का अति-दोहन: जल, खनिज और जीवाश्म ईंधन जैसे प्राकृतिक संसाधनों का अनावश्यक और अत्यधिक दोहन।
- पर्यावरण कानूनों की अनदेखी: पर्यावरण संरक्षण से जुड़े नियमों और कानूनों का पालन न करना।
- संवेदनहीनता: प्रकृति के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता की कमी।
इसे रोकने में हमारी भूमिका:
- जागरूकता फैलाना: अपने परिवार, दोस्तों और समाज में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना।
- कम उपयोग और पुनर्चक्रण: संसाधनों का सोच-समझकर उपयोग करना, ‘कम उपयोग करें, पुनः उपयोग करें और पुनर्चक्रण करें’ (Reduce, Reuse, Recycle) के सिद्धांत को अपनाना।
- प्लास्टिक मुक्त जीवन: सिंगल-यूज प्लास्टिक का प्रयोग बंद करना और उसके विकल्पों को अपनाना।
- पौधारोपण: अधिक से अधिक पेड़ लगाना और उनकी देखभाल करना।
- ऊर्जा संरक्षण: बिजली और पानी जैसे संसाधनों का judiciously उपयोग करना।
- पर्यावरण-हितैषी आदतें: सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना, कचरे को सही जगह फेंकना, जल स्रोतों को प्रदूषित न करना।
- सरकारी नीतियों का समर्थन: पर्यावरण संरक्षण से संबंधित सरकारी नीतियों और अभियानों का समर्थन करना तथा उनमें भाग लेना।
- प्रश्न उठाना: पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाली गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठाना।
13. प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है? प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं, लिखें।
उत्तर: हाँ, पाठ में प्रदूषण के कारण स्नोफॉल (बर्फबारी) में कमी का जिक्र किया गया है, जिसका अर्थ है कि बढ़ते प्रदूषण से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। प्रदूषण के और भी कई गंभीर दुष्परिणाम सामने आए हैं:
- वैश्विक तापन (Global Warming): ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, जिससे ग्लेशियर पिघल रहे हैं, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और मौसम में अप्रत्याशित बदलाव आ रहे हैं।
- मौसम में बदलाव: अत्यधिक गर्मी, असमय वर्षा, सूखे, बाढ़ और तूफानों की बढ़ती आवृत्ति व तीव्रता।
- वायु प्रदूषण: सांस संबंधी बीमारियाँ (जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस), फेफड़ों के रोग और हृदय रोग में वृद्धि। धुंध (स्मॉग) का बढ़ना।
- जल प्रदूषण: नदियों, झीलों और भूजल का दूषित होना, जिससे पीने के पानी की कमी और जल जनित बीमारियाँ बढ़ती हैं। जलीय जीवन का नष्ट होना।
- मिट्टी का प्रदूषण: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता में कमी और खाद्य श्रृंखला में हानिकारक तत्वों का प्रवेश।
- जैव विविधता का नुकसान: प्रदूषण के कारण अनेक पौधों और जीवों की प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं, जिससे पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ रहा है।
- ओजोन परत का क्षरण: कुछ प्रदूषक गैसें ओजोन परत को नुकसान पहुँचा रही हैं, जिससे हानिकारक पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुँच रही हैं और त्वचा कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है।
- मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव: विभिन्न प्रकार के कैंसर, तंत्रिका संबंधी विकार और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ।
14. “कटाओ” पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए?
उत्तर: “कटाओ” पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए निश्चित रूप से वरदान है। मेरी राय में इसके पक्ष में कई मजबूत तर्क हैं:
- अक्षुण्ण प्राकृतिक सौंदर्य: दुकानों की अनुपस्थिति से कटाओ का प्राकृतिक सौंदर्य बरकरार रहता है। व्यावसायिक गतिविधियाँ हमेशा भीड़, कचरा और अनियोजित निर्माण लाती हैं, जो उस स्थान की नैसर्गिक सुंदरता को नष्ट कर देते हैं। दुकानों के अभाव में कटाओ अपनी शुद्धता और अछूतेपन को बनाए रख पाता है।
- प्रदूषण मुक्त वातावरण: दुकानें और पर्यटकों की भीड़ अक्सर कूड़ा-करकट, प्लास्टिक और अन्य प्रदूषण का कारण बनती हैं। दुकानों के न होने से यहाँ प्रदूषण का स्तर न्यूनतम रहता है, जिससे हवा, पानी और बर्फ की पवित्रता बनी रहती है।
- शांत और एकांत अनुभव: सैलानी कटाओ में शांति और एकांत का अनुभव कर पाते हैं। कोई शोर-शराबा या व्यावसायिक दबाव नहीं होता, जिससे वे प्रकृति के साथ गहरे स्तर पर जुड़ पाते हैं। यह उन्हें आत्म-चिंतन और सुकून का अवसर देता है।
- अद्वितीय अनुभव: यह सैलानियों को एक अद्वितीय और दुर्लभ अनुभव प्रदान करता है जो उन्हें अन्य वाणिज्यिक पर्यटन स्थलों पर नहीं मिलता। यह एहसास कि वे ऐसी जगह पर हैं जहाँ अभी तक शहरीकरण का दुष्प्रभाव नहीं पड़ा है, यात्रा को और भी विशेष बना देता है।
- संरक्षण को बढ़ावा: दुकानों का न होना स्थानीय लोगों और प्रशासन को उस स्थान के संरक्षण और प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करता है, बजाय इसके कि वे इसे व्यावसायिक लाभ के लिए उपयोग करें।
इसलिए, कटाओ पर दुकानों का न होना उसे एक अनमोल प्राकृतिक विरासत बनाए रखने में मदद करता है।
15. प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?
उत्तर: प्रकृति ने जल संचय (Water Harvesting) की अद्भुत और कुशल व्यवस्था की है, जो पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए अनिवार्य है। यह व्यवस्था विभिन्न चरणों में काम करती है:
- बर्फ के रूप में जल संचय (ग्लेशियर): पहाड़ों पर, विशेषकर हिमालय जैसे विशाल पर्वतों पर, बर्फ के रूप में पानी का विशाल भंडार संचित होता है। ये ग्लेशियर करोड़ों वर्षों से जमे हुए हैं।
- धीरे-धीरे पिघलना: गर्मी के मौसम में ये बर्फ की चट्टानें (ग्लेशियर) धीरे-धीरे पिघलती हैं। यह पिघला हुआ पानी नदियों, झरनों और धाराओं के रूप में बहता है।
- नदियों द्वारा प्रवाह: पिघला हुआ बर्फ का पानी नदियों को साल भर जल से परिपूर्ण रखता है, जिससे मैदानी इलाकों तक पानी पहुँचता है।
- भूजल संचय: वर्षा का जल और नदियों का कुछ जल धरती के भीतर रिसकर भूजल के रूप में जमा हो जाता है। यह भूजल कुओं, हैंडपंपों और झरनों के माध्यम से हमें उपलब्ध होता है।
- बादलों और वर्षा का चक्र: सूर्य की गर्मी से समुद्रों, नदियों और झीलों का पानी वाष्पीकृत होकर बादल बनाता है। ये बादल हवा के साथ चलते हैं और अनुकूल परिस्थितियों में वर्षा या बर्फबारी के रूप में जल को पृथ्वी पर वापस लौटाते हैं, जिससे यह चक्र निरंतर चलता रहता है।
- वनस्पतियों का योगदान: वन और पेड़-पौधे वर्षा के जल को सीधे जमीन में रिसने में मदद करते हैं, मिट्टी के कटाव को रोकते हैं और भूजल स्तर को बढ़ाते हैं।
इस प्रकार, प्रकृति ने बर्फ, नदी, भूजल और वर्षा के माध्यम से एक स्वचालित और निरंतर जल संचय प्रणाली विकसित की है, जो पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
16. देश की सीमा पर बैठे फौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?
उत्तर: देश की सीमा पर बैठे फौजी हर पल अपनी जान जोखिम में डालकर अत्यधिक कठिन और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से जूझते हैं:
- अत्यधिक विषम जलवायु: वे भयानक ठंड (माइनस 15-20 डिग्री सेल्सियस), तेज बर्फीली हवाओं, भारी बर्फबारी, या फिर अत्यधिक गर्मी और नमी वाले इलाकों में तैनात रहते हैं। उन्हें हर मौसम की मार झेलनी पड़ती है।
- भौगोलिक चुनौतियाँ: ऊँचे, दुर्गम पहाड़, बर्फीले रेगिस्तान, घने जंगल, दलदली भूमि – ऐसी जगहों पर उन्हें लगातार गश्त लगानी पड़ती है और चौकन्ना रहना पड़ता है।
- परिवार से दूरी: वे महीनों, बल्कि सालों तक अपने परिवार से दूर रहते हैं, जिससे उन्हें भावनात्मक और सामाजिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
- मानसिक दबाव और तनाव: हर पल दुश्मन के हमले का खतरा, आतंकवाद, घुसपैठ का डर और अपने साथियों को खोने का दुख उन्हें भारी मानसिक दबाव में रखता है।
- सीमित संसाधन: दुर्गम इलाकों में कई बार उन्हें भोजन, पानी, चिकित्सा सुविधा और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कमी का भी सामना करना पड़ता है।
- शारीरिक जोखिम: गोलीबारी, बम विस्फोट, बारूदी सुरंगें, और प्राकृतिक आपदाओं (हिमस्खलन) के कारण शारीरिक चोटों और मृत्यु का खतरा हमेशा बना रहता है।
उनके प्रति हमारा उत्तरदायित्व:
- सम्मान और कृतज्ञता: हमें उनके बलिदान और सेवा के प्रति हमेशा सम्मान और कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए।
- नैतिक समर्थन: हमें उनके और उनके परिवारों को नैतिक और भावनात्मक समर्थन देना चाहिए।
- सामाजिक सहयोग: शहीद हुए सैनिकों के परिवारों और घायल सैनिकों की हर संभव आर्थिक और सामाजिक मदद करनी चाहिए।
- देशभक्ति का भाव: हमें देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए और देश के कानूनों का पालन करते हुए एक जिम्मेदार नागरिक बनना चाहिए।
- सुरक्षित वातावरण बनाए रखना: देश के आंतरिक सौहार्द और शांति को बनाए रखना, ताकि उन्हें सीमाओं पर अतिरिक्त दबाव का सामना न करना पड़े।
- जन जागरूकता: उनके संघर्षों और बलिदानों के बारे में समाज में जागरूकता फैलाना, ताकि युवा पीढ़ी प्रेरित हो सके।
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