कक्षा 9 विज्ञान पृथक्करण की विधियाँ : MP Board Class 9 Science separation methods

MP Board Class 9 Science separation methods

पृथक्करण की विधियाँ: मिश्रणों को अलग करना

पिछले अध्याय में हमने विभिन्न प्रकार के मिश्रणों (समांगी, विषमांगी, विलयन, निलंबन, कोलाइड) के बारे में पढ़ा। दैनिक जीवन में हमें अक्सर मिश्रणों से उनके शुद्ध घटकों को अलग करने की आवश्यकता होती है। ऐसा करने के लिए विभिन्न पृथक्करण विधियों का उपयोग किया जाता है। ये विधियाँ इस सिद्धांत पर आधारित होती हैं कि मिश्रण के घटकों के भौतिक गुणों में अंतर होता है।

1. ठोस-ठोस मिश्रणों के पृथक्करण की विधियाँ

जब दो या दो से अधिक ठोस पदार्थ आपस में मिले हों, तो उन्हें अलग करने के लिए विभिन्न विधियों का उपयोग किया जाता है:

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a) हाथ से चुनना (Handpicking):

  • विधि: इस विधि का उपयोग तब किया जाता है जब मिश्रण के घटक आकार, रंग या बनावट में भिन्न होते हैं और उन्हें नंगी आँखों से आसानी से पहचाना जा सकता है।
  • उदाहरण: चावल से पत्थर या कंकड़ अलग करना, दाल से गंदगी साफ करना।

b) चालन (Sieving):

  • विधि: यह विधि मिश्रण के घटकों के आकार में अंतर पर आधारित है। मिश्रण को एक जाली (छलनी) से गुजारा जाता है जिसके छिद्र एक घटक को गुजरने देते हैं जबकि दूसरे को रोक लेते हैं।
  • उदाहरण: आटे से चोकर अलग करना, रेत से कंकड़ अलग करना।

c) चुंबकीय पृथक्करण (Magnetic Separation):

  • विधि: इस विधि का उपयोग तब किया जाता है जब मिश्रण में एक घटक चुंबकीय होता है और दूसरा गैर-चुंबकीय। एक चुंबक को मिश्रण के ऊपर घुमाने पर चुंबकीय घटक चुंबक से चिपक जाता है।
  • उदाहरण: लोहे के बुरादे को रेत से अलग करना।

2. ठोस-द्रव मिश्रणों के पृथक्करण की विधियाँ

जब एक ठोस पदार्थ किसी द्रव में घुला हो या निलंबित हो, तो उसे अलग करने के लिए कई विधियाँ अपनाई जाती हैं:

a) निस्पंदन (Filtration):

  • विधि: यह विधि ठोस और अघुलनशील द्रव घटकों को अलग करने के लिए उपयोग की जाती है। मिश्रण को एक फिल्टर पेपर या किसी अन्य फिल्टर माध्यम से गुजारा जाता है। ठोस कण फिल्टर पर रह जाते हैं (अवशेष) और द्रव गुजर जाता है (फिल्ट्रेट)।
  • उदाहरण: पानी से मिट्टी के कणों को अलग करना (निलंबन), चाय की पत्ती को चाय से अलग करना।

b) अवसादन (Sedimentation) और निस्तारण (Decantation):

  • विधि: इस विधि का उपयोग तब किया जाता है जब द्रव में अघुलनशील ठोस कण भारी होने के कारण नीचे बैठ जाते हैं (अवसादन)। कणों के नीचे बैठने के बाद, ऊपर के साफ द्रव को सावधानीपूर्वक दूसरे बर्तन में उड़ेल लिया जाता है (निस्तारण)।
  • उदाहरण: मिट्टी युक्त पानी से मिट्टी को नीचे बैठाकर साफ पानी को अलग करना।

c) वाष्पीकरण (Evaporation):

  • विधि: इस विधि का उपयोग विलेय ठोस को उसके विलयन से प्राप्त करने के लिए किया जाता है। द्रव (विलायक) को गर्म करके वाष्पीकृत किया जाता है, जिससे ठोस (विलेय) पीछे रह जाता है।
  • उदाहरण: समुद्री जल से नमक प्राप्त करना, नीला थोथा (कॉपर सल्फेट) के घोल से कॉपर सल्फेट प्राप्त करना।

d) अपकेंद्रण (Centrifugation):

  • विधि: इस विधि का उपयोग तब किया जाता है जब मिश्रण में बहुत महीन निलंबित कण होते हैं जिन्हें छानने से अलग नहीं किया जा सकता। मिश्रण को तेजी से घुमाया जाता है, जिससे भारी कण केंद्र से दूर बल महसूस करते हुए नीचे बैठ जाते हैं।
  • अनुप्रयोग:
    • दूध से क्रीम निकालना (क्रीम हल्की होने के कारण ऊपर तैरती है)।
    • वॉशिंग मशीन में गीले कपड़ों से पानी निचोड़ना।
    • प्रयोगशालाओं में रक्त और मूत्र की जाँच।

3. द्रव-द्रव मिश्रणों के पृथक्करण की विधियाँ

जब दो या दो से अधिक द्रव आपस में मिले हों, तो उन्हें अलग करने के लिए उनकी विशेषताओं के आधार पर विधियाँ अपनाई जाती हैं:

a) पृथक्करण कीप का उपयोग (Using Separating Funnel):

  • विधि: इस विधि का उपयोग उन अमिश्रणीय द्रवों (जो आपस में नहीं घुलते) को अलग करने के लिए किया जाता है जिनकी घनत्व में अंतर होता है। मिश्रण को पृथक्करण कीप में डाला जाता है और शांत छोड़ दिया जाता है, जिससे वे दो अलग-अलग परतें बना लेते हैं। भारी द्रव नीचे की परत बनाता है, जिसे नॉब खोलकर निकाला जाता है।
  • उदाहरण: तेल और पानी के मिश्रण को अलग करना, मिट्टी के तेल और पानी के मिश्रण को अलग करना।

b) आसवन (Distillation):

  • विधि: आसवन एक ऐसी विधि है जिसका उपयोग उन दो या अधिक मिश्रणीय द्रवों को अलग करने के लिए किया जाता है जिनके क्वथनांक में पर्याप्त अंतर होता है (कम से कम 25°C का अंतर)। मिश्रण को गर्म किया जाता है, कम क्वथनांक वाला द्रव पहले वाष्पीकृत होता है, फिर संघनित होकर अलग से एकत्र किया जाता है।
  • उपयोग: शराब और पानी के मिश्रण को अलग करना, आसुत जल (distilled water) बनाना।

c) प्रभाजी आसवन (Fractional Distillation):

  • विधि: यह आसवन का एक परिष्कृत रूप है जिसका उपयोग उन मिश्रणीय द्रवों को अलग करने के लिए किया जाता है जिनके क्वथनांक में बहुत कम अंतर (25°C से कम) होता है। इसमें एक प्रभाजी स्तंभ का उपयोग किया जाता है जो वाष्पीकरण और संघनन की क्रिया को कई बार दोहराता है।
  • अनुप्रयोग:
    • पेट्रोलियम उत्पादों (पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल आदि) को उनके कच्चे तेल से अलग करना।
    • वायु से विभिन्न गैसों (ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, आर्गन) को अलग करना।

4. अन्य महत्वपूर्ण पृथक्करण विधियाँ

a) क्रोमैटोग्राफी (Chromatography):

  • विधि: यह एक ऐसी विधि है जिसका उपयोग उन घटकों को अलग करने के लिए किया जाता है जो एक ही विलायक में घुलनशील होते हैं लेकिन उनकी घुलनशीलता या अधिशोषण क्षमता भिन्न होती है। विभिन्न घटक एक स्थिर प्रावस्था (जैसे फिल्टर पेपर) पर अलग-अलग गति से चलते हैं, जिससे वे अलग हो जाते हैं।
  • अनुप्रयोग:
    • रंगों में से डाई के घटकों को अलग करना (जैसे स्याही के विभिन्न रंग)।
    • रक्त से नशीले पदार्थों को अलग करना।
    • प्राकृतिक रंगों से पिगमेंट (वर्णक) को अलग करना।

b) क्रिस्टलीकरण (Crystallization):

  • विधि: यह विधि अशुद्ध ठोस को उसके विलयन से शुद्ध क्रिस्टल के रूप में प्राप्त करने के लिए उपयोग की जाती है। संतृप्त विलयन को गर्म करके या ठंडा करके ठोस को क्रिस्टल के रूप में अलग किया जाता है। यह वाष्पीकरण से बेहतर है क्योंकि यह शुद्ध ठोस प्रदान करता है और अशुद्धियों को हटाता है।
  • अनुप्रयोग:
    • अशुद्ध कॉपर सल्फेट (नीला थोथा) को शुद्ध करना।
    • समुद्री जल से शुद्ध नमक प्राप्त करना।
    • फिटकरी के क्रिस्टल बनाना।

c) ऊर्ध्वपातन (Sublimation):

  • विधि: इस विधि का उपयोग उन ठोस मिश्रणों को अलग करने के लिए किया जाता है जिनमें एक घटक ऊर्ध्वपातज (जो गर्म करने पर सीधे गैस में बदल जाता है) होता है और दूसरा नहीं। मिश्रण को गर्म करने पर ऊर्ध्वपातज घटक वाष्प में बदल जाता है और ठंडा होने पर सीधे ठोस में संघनित हो जाता है।
  • उदाहरण: अमोनियम क्लोराइड (नौसादर) को नमक से अलग करना, कपूर को रेत से अलग करना, नैफ़्थलीन और एंथ्रासीन को अलग करना।

सारांश (Summary)

मिश्रणों के घटकों को अलग करने के लिए विभिन्न पृथक्करण विधियों का उपयोग किया जाता है। इन विधियों का चुनाव घटकों के भौतिक गुणों (जैसे आकार, घनत्व, घुलनशीलता, क्वथनांक, चुंबकीय गुण) में अंतर पर निर्भर करता है। इन विधियों का उपयोग वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं से लेकर औद्योगिक प्रक्रियाओं और दैनिक जीवन तक में किया जाता है।

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