कक्षा 9 विज्ञान पादप ऊतक : MP Board Class 9 Science Plant Tissues Basic Information

MP Board Class 9 Science Plant Tissues Basic Information

पादप ऊतक (Plant Tissues)

ऊतक की मूल अवधारणा (Basic Concept of Tissues)

परिभाषा: ऊतक (Tissue) कोशिकाओं का एक ऐसा समूह होता है, जिनकी उत्पत्ति (origin) समान होती है, वे संरचना (structure) में समान या लगभग समान होती हैं और एक विशिष्ट कार्य (specific function) को मिलकर अत्यंत दक्षतापूर्वक संपन्न करती हैं।

मुख्य विचार:

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  1. कोशिकाएँ जीवन की मूल इकाई हैं: सभी जीवित जीव कोशिकाओं से बने होते हैं।
  2. श्रम विभाजन (Division of Labor):
    • एककोशिकीय जीव (Unicellular Organisms): जैसे अमीबा में सभी जैविक कार्य (भोजन लेना, गति करना, उत्सर्जन करना) एक ही कोशिका द्वारा किए जाते हैं। यहाँ कोई श्रम विभाजन नहीं होता।
    • बहुकोशिकीय जीव (Multicellular Organisms): जैसे पौधे और जंतु, बहुत सारी कोशिकाओं से बने होते हैं। इन जीवों में, विभिन्न कोशिकाएँ विभिन्न विशिष्ट कार्य करती हैं। इस प्रकार विशिष्ट कार्य करने के लिए कोशिकाओं के समूह बन जाते हैं, और इसे श्रम विभाजन कहते हैं।
  3. संगठन का स्तर (Levels of Organization): बहुकोशिकीय जीवों में संगठन का एक पदानुक्रम होता है:
    • कोशिकाएँ (Cells) → ऊतक (Tissues) → अंग (Organs) → अंग तंत्र (Organ Systems) → जीव (Organism)
    • ऊतक इस पदानुक्रम में कोशिकाओं से ऊपर का स्तर हैं। कोशिकाएँ मिलकर ऊतक बनाती हैं।
  4. दक्षता में वृद्धि (Increased Efficiency): कोशिकाओं के एक साथ समूह में काम करने से कार्य करने की दक्षता (efficiency) बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, मांसपेशी कोशिकाएँ समूह में काम करके गति को अधिक प्रभावी बनाती हैं।

ऊतक के उदाहरण:

  • मनुष्यों में: रक्त, पेशीय ऊतक, तंत्रिका ऊतक, त्वचा।
  • पौधों में: जाइलम, फ्लोएम, पैरेन्काइमा।

यह ऊतक की बुनियादी अवधारणा है। अब हम पादप ऊतकों पर विस्तृत नोट्स देखेंगे।

पादप ऊतक (Plant Tissues)

पौधों में वृद्धि कुछ विशिष्ट क्षेत्रों तक ही सीमित रहती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन क्षेत्रों में लगातार विभाजित होने वाली कोशिकाएँ मौजूद होती हैं। इन्हीं कोशिकाओं के समूह को हम ऊतक कहते हैं।

6.2.1 विभज्योतक (Meristematic Tissue)

  • परिभाषा: पौधों के वे ऊतक जिनमें कोशिकाएँ जीवन भर लगातार विभाजित होती रहती हैं, विभज्योतक कहलाते हैं। इन्हीं ऊतकों के कारण पौधों में वृद्धि होती है।
  • विशेषता: ये ऊतक पौधों के वृद्धि क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

विभज्योतक के प्रकार (स्थिति के आधार पर): विभज्योतक अपनी उपस्थिति के आधार पर तीन मुख्य प्रकार के होते हैं:

  1. शीर्षस्थ विभज्योतक (Apical Meristem):
    • स्थान: ये जड़ों (मूल) और तनों (प्ररोह) के बिलकुल ऊपरी सिरे (वृद्धि बिंदु) पर पाए जाते हैं।
    • कार्य: ये ऊतक पौधे की लंबाई बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होते हैं। जैसे, जड़ और तने का ऊपर की ओर बढ़ना।
  2. पार्श्व विभज्योतक (Lateral Meristem) / कैंबियम (Cambium):
    • स्थान: ये तने और जड़ की परिधि (मोटाई) वाले हिस्से में पाए जाते हैं।
    • कार्य: ये ऊतक पौधे के तने या जड़ की चौड़ाई (मोटाई) बढ़ाने का कार्य करते हैं। यही कारण है कि पेड़ों के तने मोटे होते जाते हैं।
  3. अंतर्विष्ट विभज्योतक (Intercalary Meristem):
    • स्थान: ये कुछ पौधों में पर्वसंधियों (nodes) के पास पाए जाते हैं, जहाँ से पत्तियाँ या शाखाएँ निकलती हैं। घास जैसे पौधों में ये पर्वों के आधार पर भी होते हैं।
    • कार्य: ये ऊतक मुख्य रूप से पर्वों (internodes) की लंबाई बढ़ाने में मदद करते हैं और शाकाहारी पशुओं द्वारा खाए गए हिस्सों की पुनःवृद्धि में सहायक होते हैं।

विभज्योतक की कोशिकाओं की विशेषताएँ (जो इन्हें खास बनाती हैं):

  • अत्यधिक क्रियाशील: ये कोशिकाएँ बहुत सक्रिय होती हैं क्योंकि इन्हें लगातार विभाजित होना होता है।
  • पतली कोशिका भित्ति: इनकी बाहरी दीवारें (भित्तियाँ) पतली और लचीली होती हैं, जो विभाजन के लिए अनुकूल हैं।
  • स्पष्ट केंद्रक: इनमें एक साफ और बड़ा केंद्रक होता है, जो कोशिका गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
  • अधिक कोशिकाद्रव्य: कोशिकाओं के अंदर सघन तरल पदार्थ (साइटोप्लाज्म) की मात्रा अधिक होती है।
  • रसधानी अनुपस्थित (या बहुत छोटी): इनमें आमतौर पर बड़ी रसधानियाँ (vacuoles) नहीं होती हैं, क्योंकि ये मुख्य रूप से विभाजन का कार्य करती हैं, भंडारण का नहीं।

कोशिका विभेदीकरण (Cell Differentiation):

  • विभज्योतक से बनने वाली नई कोशिकाएँ शुरुआत में विभज्योतक जैसी ही होती हैं (विभाजन की क्षमता वाली)।
  • लेकिन, जैसे-जैसे ये कोशिकाएँ बढ़ती और परिपक्व होती हैं, वे अपनी विभाजन की क्षमता खो देती हैं।
  • इसके साथ ही, वे एक विशिष्ट कार्य करने के लिए निश्चित आकार और आकृति ले लेती हैं। कोशिकाओं की इस विशेष कार्य को अपनाने की प्रक्रिया को विभेदीकरण कहते हैं।
  • विभेदीकरण के बाद ये कोशिकाएँ स्थायी ऊतकों का निर्माण करती हैं।

6.2.2 स्थायी ऊतक (Permanent Tissue)

  • परिभाषा: वे ऊतक जिनकी कोशिकाओं ने विभाजन की अपनी शक्ति खो दी है और एक विशिष्ट कार्य करने के लिए स्थायी आकार और आकृति ले ली है, स्थायी ऊतक कहलाते हैं।
  • उत्पत्ति: ये विभज्योतक ऊतक से ही बनते हैं, लेकिन विभेदीकरण की प्रक्रिया से गुजर चुके होते हैं।

स्थायी ऊतक मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं: सरल स्थायी ऊतक और जटिल स्थायी ऊतक

6.2.2 (i) सरल स्थायी ऊतक (Simple Permanent Tissue)
  • विशेषता: ये ऊतक केवल एक ही प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं, जो संरचना (आकृति) और कार्य में समान होती हैं। ये पौधों को सहारा या भोजन भंडारण जैसे सामान्य कार्य प्रदान करते हैं।

सरल स्थायी ऊतक के प्रकार:

  1. पैरेन्काइमा (Parenchyma):
    • विशेषताएँ:
      • यह पौधों में सबसे अधिक पाया जाने वाला और सबसे सामान्य सरल स्थायी ऊतक है।
      • इसकी कोशिकाएँ पतली कोशिका भित्ति वाली, आमतौर पर गोलाकार या अंडाकार होती हैं, और ढीली-ढाली (loose) व्यवस्थित होती हैं।
      • इन कोशिकाओं के बीच काफी रिक्त स्थान (अंतराकोशिकीय स्थान – intercellular spaces) पाया जाता है।
      • ये कोशिकाएँ जीवित होती हैं।
    • मुख्य कार्य:
      • भोजन का भंडारण करना (जैसे आलू के कंद में स्टार्च, फलों में शर्करा)।
      • पौधे को भरने (packing) वाले ऊतक के रूप में कार्य करना।
      • क्लोरेन्काइमा (Chlorenchyma) / हरित ऊतक: यदि पैरेन्काइमा कोशिकाओं में क्लोरोफिल (प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक हरा वर्णक) मौजूद होता है, तो वे प्रकाश संश्लेषण (पौधों द्वारा भोजन बनाने की प्रक्रिया) करती हैं। पत्तियों के मेसोफिल में यह ऊतक होता है।
      • ऐरेन्काइमा (Aerenchyma): जलीय पौधों (जैसे जलकुंभी, कमल) में, पैरेन्काइमा कोशिकाओं के बीच हवा की बड़ी खाली जगहें या गुहिकाएँ (cavities) होती हैं। ये हवा की जगहें पौधों को पानी में तैरने (उत्प्लावन शक्ति प्रदान करना) में मदद करती हैं।
  2. कॉलेन्काइमा (Collenchyma):
    • विशेषताएँ:
      • इसकी कोशिकाएँ जीवित, लंबी और किनारों पर (कोनों पर) अनियमित रूप से मोटी होती हैं। कोशिका भित्ति पर पेक्टिन का जमाव होता है।
      • कोशिकाओं के बीच बहुत कम स्थान होता है (या बिल्कुल नहीं होता)।
    • मुख्य कार्य:
      • पौधों को लचीलापन प्रदान करना (ताकि वे हवा या अन्य तनावों के कारण बिना टूटे झुक सकें, जैसे हवा में पत्ती के डंठल का हिलना)।
      • पौधों को यांत्रिक सहायता (Mechanical Support) यांत्रिक सहारा) देना।
    • उपस्थिति: यह अक्सर पत्ती के डंठल (पर्णवृंत), युवा तनों के एपिडर्मिस के नीचे और पत्तियों की शिराओं में पाया जाता है।
  3. स्क्लेरेन्काइमा (Sclerenchyma):
    • विशेषताएँ:
      • यह ऊतक पौधे को कठोर और मजबूत बनाता है।
      • इसकी कोशिकाएँ मृत होती हैं। ये अपनी पूर्ण वृद्धि के बाद मर जाती हैं।
      • ये लंबी और पतली होती हैं।
      • इनकी कोशिका भित्ति लिग्निन (Lignin) नामक एक जटिल और अत्यंत कठोर रासायनिक पदार्थ के जमाव के कारण बहुत मोटी होती है। लिग्निन पानी के लिए अभेद्य होता है।
      • लिग्निन जमा होने के कारण, कोशिका के अंदर का स्थान (ल्यूमेन – lumen) बहुत छोटा या अनुपस्थित होता है।
    • मुख्य कार्य:
      • पौधे के विभिन्न भागों को यांत्रिक सहारा और दृढ़ता (strength) प्रदान करना। यह पौधे को सख्त और मजबूत बनाता है।
      • पौधे को बाहरी दबावों और तनावों से बचाता है।
    • उपस्थिति:
      • उदाहरण: नारियल का रेशेदार छिलका (जो बहुत कठोर होता है) स्क्लेरेन्काइमा ऊतक से बना होता है।
      • यह तने (जैसे सन और जूट के रेशे), पत्तों की शिराओं (जैसे पत्तियों में जाल जैसी संरचना), और बीजों व फलों के कठोर छिलकों (जैसे बादाम, अखरोट, नाशपाती में किरकिरापन) में पाया जाता है।

रक्षी ऊतक (Protective Tissue)

ये ऊतक पौधे के बाहरी सतहों की रक्षा करने का कार्य करते हैं।

  1. एपिडर्मिस (Epidermis):
    • स्थान: यह पौधे के सभी वायवीय (aerial) भागों (पत्तियों, तने, फूल) और जड़ों की सबसे बाहरी परत होती है।
    • संरचना: यह आमतौर पर कोशिकाओं की एक ही परत की बनी होती है। इसकी कोशिकाएँ बिना किसी खाली स्थान के एक-दूसरे से कसकर सटी होती हैं, जिससे एक अखंड (continuous) परत बनती है। शुष्क स्थानों में उगने वाले पौधों में यह मोटी हो सकती है, जिससे पानी के नुकसान को रोका जा सके।
    • कार्य:
      • यह पौधे को पानी के नुकसान (वाष्पोत्सर्जन) से बचाता है।
      • यांत्रिक आघात (चोट या खरोंच) और परजीवी कवक (fungi) जैसे बाहरी हानिकारक जीवों के प्रवेश से रक्षा करती है।
      • इसकी बाहरी सतह पर अक्सर एक मोम जैसी जल प्रतिरोधी (water-resistant) परत होती है जिसे क्यूटिकल (Cuticle) कहते हैं, जो पानी के वाष्पीकरण को कम करती है।
    • स्टोमेटा (Stomata):
      • स्थान: पत्ती की एपिडर्मिस पर छोटे-छोटे छिद्र होते हैं, जिन्हें स्टोमेटा कहते हैं।
      • संरचना: ये छिद्र दो वृक्क (किडनी) के आकार की रक्षी कोशिकाओं (Guard Cells) से घिरे होते हैं। ये रक्षी कोशिकाएँ स्टोमेटा के खुलने और बंद होने को नियंत्रित करती हैं।
      • कार्य:
        • वायुमंडल से गैसों का आदान-प्रदान (कार्बन डाइऑक्साइड अंदर लेना, ऑक्सीजन बाहर छोड़ना) इन्हीं से होता है, जो प्रकाश संश्लेषण और श्वसन के लिए आवश्यक है।
        • वाष्पोत्सर्जन (Transpiration): पौधे से पानी का वाष्प के रूप में बाहर निकलना भी स्टोमेटा द्वारा ही होता है।
    • जड़ों की एपिडर्मल कोशिकाएँ: इनमें अक्सर बाल जैसे प्रवर्ध (extensions) होते हैं जिन्हें मूल रोम (Root Hairs) कहते हैं। ये मूल रोम जड़ों की कुल अवशोषक सतह को बढ़ाते हैं, जिससे मिट्टी से पानी और खनिज लवणों का अवशोषण अधिक प्रभावी होता है।
  2. कॉर्क (Cork) / छाल (Bark):
    • स्थान: जैसे-जैसे पौधा पुराना होता है (खासकर पेड़ों में), तने और जड़ की बाहरी सुरक्षात्मक ऊतकों में बदलाव आता है। बाहरी एपिडर्मिस फट जाती है और कॉर्टेक्स (Cortex) में एक नई विभज्योतक पट्टी विकसित होती है, जो कॉर्क नामक कोशिकाओं की परतें बनाती है। यही हमारी जानी-पहचानी पेड़ की छाल है।
    • संरचना: कॉर्क की कोशिकाएँ मृत होती हैं और बिना किसी अंतःकोशिकीय स्थान के एक-दूसरे से कसकर व्यवस्थित होती हैं।
    • विशेषता: इनकी भित्तियों पर सुबेरिन (Suberin) नामक एक रासायनिक पदार्थ जमा होता है।
    • कार्य: सुबेरिन के कारण ये छालें हवा और पानी के लिए अभेद्य (impermeable) हो जाती हैं, जिससे पौधे को:
      • पानी की हानि से बचाता है।
      • संक्रमण (सूक्ष्मजीवों द्वारा) से बचाता है।
      • बाहरी भौतिक चोटों से सुरक्षा प्रदान करता है।
6.2.2 (ii) जटिल स्थायी ऊतक (Complex Permanent Tissue)
  • विशेषता: ये ऊतक एक से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं। ये सभी विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ एक साथ मिलकर एक विशिष्ट (और अक्सर महत्वपूर्ण) कार्य को संपन्न करती हैं।
  • महत्व: जाइलम और फ्लोएम जटिल ऊतक के उदाहरण हैं। इन दोनों को संवहन ऊतक (Vascular Tissue) भी कहते हैं क्योंकि ये पदार्थों का संवहन करते हैं। ये मिलकर संवहन बंडल (Vascular Bundle) का निर्माण करते हैं। संवहन ऊतक जटिल पौधों (जैसे बड़े पेड़) की एक महत्वपूर्ण विशेषता है जो उन्हें स्थलीय वातावरण में (जहाँ पानी और भोजन को लंबी दूरी तय करनी होती है) सफलतापूर्वक रहने के लिए अनुकूल बनाती है।

जटिल स्थायी ऊतक के प्रकार:

  1. जाइलम (Xylem):
    • कार्य: जाइलम पौधे में जल (water) और खनिज लवणों (minerals) का संवहन करता है, मुख्य रूप से जड़ों से लेकर पौधे के सभी वायवीय भागों (तने, पत्तियाँ, फूल) तक। यह एक-दिशात्मक (unidirectional) प्रवाह होता है।
    • अन्य कार्य: यह पौधे को यांत्रिक सहारा भी प्रदान करता है।
    • संघटक (Components): जाइलम चार प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बना होता है:
      • ट्रैकीड (Tracheids) / वाहिनिकाएँ: ये लंबी, पतली और मृत कोशिकाएँ होती हैं, जिनके सिरे नुकीले होते हैं। ये छोटे छिद्रों (pits) के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं।
      • वाहिका (Vessels): ये भी मृत और नलिकाकार कोशिकाएँ होती हैं, लेकिन इनकी चौड़ाई ट्रैकीड से अधिक होती है। ये एक के ऊपर एक जुड़कर एक लंबी पाइप जैसी संरचना बनाती हैं, जिससे पानी का कुशल परिवहन होता है।
      • जाइलम पैरेन्काइमा (Xylem Parenchyma): ये जीवित कोशिकाएँ होती हैं और मुख्य रूप से भोजन का भंडारण (जैसे स्टार्च और वसा) करती हैं। ये जल के पार्श्व संवहन में भी मदद करती हैं।
      • जाइलम फाइबर (Xylem Fibers) / जाइलम रेशे: ये मृत कोशिकाएँ होती हैं और मुख्य रूप से जाइलम को यांत्रिक सहारा प्रदान करती हैं, जिससे पौधा मजबूत रहता है।
  2. फ्लोएम (Phloem):
    • कार्य: फ्लोएम पत्तियों में बने भोजन (मुख्यतः शर्करा) को पौधे के विभिन्न भागों तक (जैसे जड़ों, फलों, और वृद्धि वाले क्षेत्रों तक) पहुँचाता है। यह संवहन बहु-दिशात्मक (multidirectional) होता है, यानी भोजन ऊपर और नीचे दोनों दिशाओं में जा सकता है।
    • संघटक (Components): फ्लोएम पांच प्रकार के अवयवों से मिलकर बना होता है:
      • चालनी कोशिकाएँ (Sieve Cells) और चालनी नलिकाएँ (Sieve Tubes): ये लंबी, नलिकाकार कोशिकाएँ होती हैं जिनकी अंतःभित्तियों (end walls) में छिद्र होते हैं, जिन्हें चालनी प्लेट (Sieve Plates) कहते हैं। ये मुख्य रूप से भोजन के संवहन में शामिल होती हैं। ये कोशिकाएँ जीवित होती हैं लेकिन इनमें केंद्रक नहीं होता।
      • साथी कोशिकाएँ (Companion Cells): ये चालनी नलिकाओं के बगल में स्थित जीवित कोशिकाएँ होती हैं। इनमें केंद्रक और अन्य कोशिकांग होते हैं, और ये चालनी नलिकाओं के कार्यों को नियंत्रित करती हैं, क्योंकि चालनी नलिकाओं में केंद्रक नहीं होता।
      • फ्लोएम पैरेन्काइमा (Phloem Parenchyma): ये जीवित कोशिकाएँ होती हैं और भोजन का भंडारण करती हैं।
      • फ्लोएम रेशे (Phloem Fibers): ये मुख्य रूप से मृत कोशिकाएँ होती हैं और फ्लोएम ऊतक को यांत्रिक सहारा प्रदान करती हैं। (यह ध्यान दें कि फ्लोएम रेशों को छोड़कर, फ्लोएम की अन्य सभी कोशिकाएँ जीवित होती हैं, जो इसे जाइलम से अलग बनाती हैं जहाँ अधिकांश कोशिकाएँ मृत होती हैं)।

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