कक्षा 9 विज्ञान मानव नेत्र एवं रंग बिरंगा संसार : MP Board Class 9 Science Human eye

MP Board Class 9 Science Human eye

कक्षा 9 विज्ञान मानव नेत्र एवं रंग बिरंगा संसार

मानव नेत्र: संरचना और कार्य (Human Eye: Structure and Function)

(कक्षा 10 विज्ञान के छात्रों के लिए महत्वपूर्ण नोट्स)

1. परिचय (Introduction)

मानव नेत्र एक अत्यंत मूल्यवान और सुग्राही ज्ञानेंद्रिय है। यह हमें इस अद्भुत संसार और हमारे चारों ओर के रंगों को देखने में सक्षम बनाता है। आँखों के बिना, रंगों को पहचान पाना असंभव है। सभी ज्ञानेंद्रियों में, मानव नेत्र सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें हमारे रंग-बिरंगे संसार को देखने योग्य बनाता है।

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2. मानव नेत्र एक कैमरे की भाँति (Human Eye as a Camera)

मानव नेत्र एक कैमरे की तरह काम करता है। इसका लेंस-निकाय (lens system) एक प्रकाश-सुग्राही परदे पर प्रतिबिंब बनाता है, जिसे रेटिना (Retina) या दृष्टिपटल कहते हैं।

3. मानव नेत्र के प्रमुख भाग और उनके कार्य (Main Parts of Human Eye and Their Functions)

मानव नेत्र की संरचना में कई महत्वपूर्ण भाग होते हैं, जो मिलकर देखने की प्रक्रिया को पूरा करते हैं:

3.1 कॉर्निया (Cornea) या स्वच्छ मंडल

  • यह एक पतली पारदर्शी झिल्ली होती है जिससे होकर प्रकाश नेत्र में प्रवेश करता है।
  • यह नेत्र गोलक (eyeball) के अग्र पृष्ठ पर एक पारदर्शी उभार बनाती है।
  • नेत्र में प्रवेश करने वाली प्रकाश किरणों का अधिकांश अपवर्तन (refraction) कॉर्निया के बाहरी पृष्ठ पर ही होता है।

3.2 नेत्र गोलक (Eyeball)

  • इसकी आकृति लगभग गोलाकार होती है।
  • इसका व्यास लगभग 2.3 cm होता है।

3.3 क्रिस्टलीय लेंस (Crystalline Lens) या अभिनेत्र लेंस

  • यह कॉर्निया के पीछे स्थित होता है।
  • इसका मुख्य कार्य विभिन्न दूरियों पर रखी वस्तुओं को रेटिना पर फोकसित (focus) करने के लिए आवश्यक फोकस दूरी में सूक्ष्म समायोजन (fine adjustment) करना है।
  • यह रेटिना पर किसी वस्तु का उलटा तथा वास्तविक प्रतिबिंब बनाता है।

3.4 परितारिका (Iris)

  • यह कॉर्निया के पीछे एक संरचना होती है।
  • परितारिका एक गहरा पेशीय डायफ्राम (muscular diaphragm) होता है जो पुतली (pupil) के साइज़ को नियंत्रित करता है।

3.5 पुतली (Pupil)

  • यह परितारिका के केंद्र में एक छोटा छिद्र होता है।
  • पुतली नेत्र में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है।

3.6 रेटिना (Retina) या दृष्टिपटल

  • यह एक कोमल सूक्ष्म झिल्ली होती है।
  • इसमें बृहत् संख्या में प्रकाश-सुग्राही कोशिकाएँ (light-sensitive cells) होती हैं।
  • जब प्रकाश इन कोशिकाओं पर पड़ता है (प्रदीप्ति होने पर), तो वे सक्रिय हो जाती हैं और विद्युत सिग्नल (electrical signals) उत्पन्न करती हैं।

3.7 दृक्‌ तंत्रिकाएँ (Optic Nerves)

  • ये नसें प्रकाश-सुग्राही कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न विद्युत सिग्नलों को मस्तिष्क (brain) तक पहुँचाती हैं।
  • मस्तिष्क इन सिग्नलों की व्याख्या करता है और अंततः इस सूचना को संसाधित (process) करता है, जिससे हम किसी वस्तु को जैसा है, वैसा ही देख पाते हैं।

4. नेत्र की प्रकाश के प्रति अनुकूलन क्षमता (Adaptation to Light Intensity)

मानव नेत्र विभिन्न प्रकाश स्थितियों में देखने के लिए खुद को अनुकूलित कर सकता है:

  • पुतली का कार्य: आँख की पुतली एक परिवर्ती द्वारक (variable aperture) की भाँति कार्य करती है, जिसके साइज़ को परितारिका की सहायता से बदला जा सकता है।
  • तेज प्रकाश में: जब प्रकाश अत्यधिक चमकीला होता है, तो परितारिका सिकुड़ कर पुतली को छोटा बना देती है, जिससे आँख में कम प्रकाश प्रवेश कर सके।
  • मंद प्रकाश में: जब प्रकाश मंद होता है, तो परितारिका फैलकर पुतली को बड़ा बना देती है, जिससे आँख में अधिक प्रकाश प्रवेश कर सके।
    • यही कारण है कि जब आप तीव्र प्रकाश से किसी मंद प्रकाशित कमरे में प्रवेश करते हैं, तो आरंभ में कुछ देर तक आप उस कमरे की वस्तुओं को नहीं देख पाते। तथापि, कुछ समय पश्चात्‌ आप उसी मंद प्रकाशित कमरे की वस्तुओं को देख पाते हैं क्योंकि परितारिका फैलकर पुतली को बड़ा कर देती है।

5. दृष्टि प्रकार्यों में क्षति (Damage to Vision Functions)

दृष्टि तंत्र के किसी भी भाग के क्षतिग्रस्त होने अथवा कुसंक्रियाओं (malfunctioning) से दृष्टि प्रकार्यों में सार्थक क्षति हो सकती है।

  • उदाहरण: प्रकाश संचरण में सम्मिलित कोई भी संरचना (जैसे कॉर्निया, पुतली, अभिनेत्र लेंस, नेत्रोद तथा काचाभ द्रव), अथवा रेटिना जैसी संरचना (जो प्रकाश को विद्युत सिग्नल में परिवर्तित करने के लिए उत्तरदायी है) या दृक्‌ तंत्रिका (जो इन सिग्नलों को मस्तिष्क तक पहुँचाती है) भी क्षतिग्रस्त होने पर चाक्षुष-विकृति (visual impairment) उत्पन्न करती है।

6. समंजन क्षमता (Power of Accommodation)

अभिनेत्र लेंस रेशेदार जेलीवत पदार्थ का बना होता है। इसकी वक्रता में कुछ सीमाओं तक पक्ष्माभी पेशियों (ciliary muscles) द्वारा रूपांतरण किया जा सकता है। अभिनेत्र लेंस की वक्रता में परिवर्तन होने पर इसकी फोकस दूरी भी परिवर्तित हो जाती है।

  • दूर की वस्तुओं को देखना: जब पक्ष्माभी पेशियाँ शिथिल (relaxed) होती हैं, तो अभिनेत्र लेंस पतला हो जाता है। इस प्रकार इसकी फोकस दूरी बढ़ जाती है। इस स्थिति में हम दूर रखी वस्तुओं को स्पष्ट देख पाने में समर्थ होते हैं।
  • निकट की वस्तुओं को देखना: जब आप आँख के निकट की वस्तुओं को देखते हैं, तब पक्ष्माभी पेशियाँ सिकुड़ जाती हैं। इससे अभिनेत्र लेंस की वक्रता बढ़ जाती है। अभिनेत्र लेंस अब मोटा हो जाता है। परिणामस्वरूप, अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी घट जाती है। इससे हम निकट रखी वस्तुओं को स्पष्ट देख सकते हैं।

समंजन क्षमता की परिभाषा: अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित (adjust) कर लेता है, समंजन (Accommodation) कहलाती है।

  • निकट-बिंदु (Near Point) या सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी: तथापि अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी एक निश्चित न्यूनतम सीमा से कम नहीं होती। किसी छपे हुए पृष्ठ को आँख के अत्यंत निकट रखकर उसे पढ़ने का प्रयास कीजिए। आप अनुभव करेंगे कि प्रतिबिंब धुँधला है या इससे आपके नेत्रों पर तनाव पड़ता है। किसी वस्तु को आराम से सुस्पष्ट देखने के लिए, आपको इसे अपने नेत्रों से कम से कम 25 cm दूर रखना होगा। वह न्यूनतम दूरी जिस पर रखी कोई वस्तु बिना किसी तनाव के अत्यधिक स्पष्ट देखी जा सकती है, उसे सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी कहते हैं। इसे नेत्र का निकट-बिंदु भी कहते हैं। किसी सामान्य दृष्टि के तरुण वयस्क के लिए निकट बिंदु की आँख से दूरी लगभग 25 cm होती है।
  • दूर-बिंदु (Far Point): वह दूरतम बिंदु जिस तक कोई नेत्र वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकता है, नेत्र का दूर-बिंदु कहलाता है। सामान्य नेत्र के लिए यह अनंत दूरी (infinity) पर होता है।
  • इस प्रकार, एक सामान्य नेत्र 25 cm से अनंत दूरी तक रखी सभी वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकता है।

6.1 मोतियाबिंद (Cataract)

  • कभी-कभी अधिक आयु के कुछ व्यक्तियों के नेत्र का क्रिस्टलीय लेंस दूधिया (milky) तथा धुँधला (cloudy) हो जाता है। इस स्थिति को मोतियाबिंद (Cataract) कहते हैं।
  • इसके कारण नेत्र की दृष्टि में कमी या पूर्ण रूप से दृष्टि क्षय हो जाता है।
  • मोतियाबिंद की शल्य चिकित्सा (surgery) के पश्चात्‌ दृष्टि का वापस लौटना संभव होता है।

7. दृष्टि के लिए हमारे दो नेत्र क्यों हैं? (Why do we have two eyes for vision?)

एक नेत्र की बजाय दो नेत्र होने के हमें अनेक लाभ हैं:

  • विस्तृत दृष्टि-क्षेत्र (Wider Field of View): इससे हमारा दृष्टि-क्षेत्र विस्तृत हो जाता है। मानव के एक नेत्र का क्षैतिज दृष्टि क्षेत्र लगभग 150° होता है, जबकि दो नेत्रों द्वारा यह लगभग 180° हो जाता है।
  • मंद प्रकाशित वस्तु का संसूचन (Detection of Dim Objects): वास्तव में, किसी मंद प्रकाशित वस्तु के संसूचन की सामर्थ्य एक की बजाय दो संसूचकों (detectors) से बढ़ जाती है।
  • त्रिविम चाक्षुषिकी (Stereoscopic Vision / Three-dimensional Vision):
    • शिकार करने वाले जंतुओं के दो नेत्र प्रायः उनके सिर पर विपरीत दिशाओं में स्थित होते हैं, जिससे कि उन्हें अधिकतम विस्तृत दृष्टि-क्षेत्र प्राप्त हो सके।
    • परंतु हमारे दोनों नेत्र सिर पर सामने की ओर स्थित होते हैं। इस प्रकार हमारा दृष्टि क्षेत्र तो कम हो जाता है परंतु हमें त्रिविम चाक्षुषिकी (depth perception) का लाभ मिल जाता है।
    • एक नेत्र बंद कीजिए, आपको संसार चपटा (flat) – केवल द्विविम (two-dimensional) लगेगा। दोनों नेत्र खोलिए आपको संसार की वस्तुओं में गहराई की तीसरी विमा (third dimension of depth) दिखाई देगी।
    • क्योंकि हमारे नेत्रों के बीच कुछ सेंटीमीटर का पृथकन (separation) होता है, इसलिए प्रत्येक नेत्र किसी वस्तु का थोड़ा-सा भिन्न प्रतिबिंब देखता है। हमारा मस्तिष्क दोनों प्रतिबिंबों का संयोजन करके एक प्रतिबिंब बना देता है। इस प्रकार अतिरिक्त सूचना का उपयोग करके हम यह बता देते हैं कि कोई वस्तु हमारे कितनी पास या दूर है।

8. दृष्टि दोष तथा उनका संशोधन (Defects of Vision and their Correction)

कभी-कभी नेत्र धीरे-धीरे अपनी समंजन क्षमता खो सकते हैं। ऐसी स्थितियों में व्यक्ति वस्तुओं को आराम से सुस्पष्ट नहीं देख पाते। नेत्र में अपवर्तन दोषों के कारण दृष्टि धुँधली हो जाती है। प्रमुख रूप से दृष्टि के तीन सामान्य अपवर्तन दोष होते हैं। इन दोषों को उपयुक्त गोलीय लेंस के उपयोग से संशोधित किया जा सकता है।

8.1 निकट-दृष्टि दोष (Myopia / Near-sightedness)

  • परिभाषा: निकट दृष्टि दोषयुक्त कोई व्यक्ति निकट रखी वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है, परंतु दूर रखी वस्तुओं को वह सुस्पष्ट नहीं देख पाता।
  • कारण:
    • अभिनेत्र लेंस की वक्रता का अत्यधिक होना (अर्थात् लेंस का अधिक मोटा हो जाना)।
    • नेत्र गोलक का लंबा हो जाना।
  • प्रभाव: ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का दूर-बिंदु अनंत पर न होकर नेत्र के पास आ जाता है। दूर रखी वस्तु का प्रतिबिंब दृष्टिपटल (रेटिना) पर न बनकर, दृष्टिपटल के सामने बनता है।
  • संशोधन: इस दोष को किसी उपयुक्त क्षमता के अवतल लेंस (concave lens) या अपसारी लेंस (diverging lens) के उपयोग द्वारा संशोधित किया जा सकता है। अवतल लेंस वस्तु के प्रतिबिंब को वापस दृष्टिपटल (रेटिना) पर ले आता है, तथा इस प्रकार इस दोष का संशोधन हो जाता है।

8.2 दीर्घ-दृष्टि दोष (Hypermetropia / Far-sightedness)

  • परिभाषा: दीर्घ-दृष्टि दोषयुक्त कोई व्यक्ति दूर की वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है, परंतु निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाता।
  • कारण:
    • अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी का अत्यधिक हो जाना (अर्थात् लेंस का अधिक पतला हो जाना)।
    • नेत्र गोलक का छोटा हो जाना।
  • प्रभाव: ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का निकट-बिंदु सामान्य निकट बिंदु (25 cm) से दूर हट जाता है। पास रखी वस्तु से आने वाली किरणें दृष्टिपटल (रेटिना) के पीछे फोकसित होती हैं।
  • संशोधन: इस दोष को उपयुक्त क्षमता के अभिसारी लेंस (converging lens) या उत्तल लेंस (convex lens) का उपयोग करके संशोधित किया जा सकता है। उत्तल लेंस युक्त चश्मे दृष्टिपटल पर वस्तु का प्रतिबिंब फोकसित करने के लिए आवश्यक अतिरिक्त क्षमता प्रदान करते हैं।

8.3 जरा-दूरदृष्टिता (Presbyopia)

  • परिभाषा: आयु में वृद्धि होने के साथ-साथ मानव नेत्र की समंजन-क्षमता घट जाती है। अधिकांश व्यक्तियों का निकट-बिंदु दूर हट जाता है, जिससे उन्हें पास की वस्तुओं को आराम से सुस्पष्ट देखने में कठिनाई होती है। इस दोष को जरा-दूरदृष्टिता कहते हैं।
  • कारण:
    • पक्ष्माभी पेशियों के धीरे-धीरे दुर्बल होने के कारण।
    • क्रिस्टलीय लेंस के लचीलेपन में कमी आने के कारण।
  • संशोधन:
    • कभी-कभी किसी व्यक्ति के नेत्र में दोनों ही प्रकार के दोष (निकट-दृष्टि तथा दूर-दृष्टि दोष) हो सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों को वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकने के लिए प्रायः द्विफोकसी लेंसों (Bi-focal lens) की आवश्यकता होती है।
    • सामान्य प्रकार के द्विफोकसी लेंसों में अवतल तथा उत्तल दोनों लेंस होते हैं।
      • ऊपरी भाग: अवतल लेंस होता है, जो दूर की वस्तुओं को सुस्पष्ट देखने में सहायता करता है।
      • निचला भाग: उत्तल लेंस होता है, जो पास की वस्तुओं को सुस्पष्ट देखने में सहायक होता है।

8.4 अन्य संशोधन विधियाँ (Other Correction Methods)

आजकल संस्पर्श लेंस (Contact lens) अथवा शल्य हस्तक्षेप (surgical intervention) द्वारा भी दृष्टि दोषों का संशोधन संभव है।

  1. नेत्र की समंजन क्षमता से क्या अभिप्राय है?
  2. उत्तर: मानव नेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को स्वतः समायोजित करके निकट और दूर स्थित वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देख पाता है, नेत्र की समंजन क्षमता कहलाती है। जब हम दूर की वस्तुएँ देखते हैं, तो नेत्र लेंस पतला हो जाता है और उसकी फोकस दूरी बढ़ जाती है; वहीं, जब हम पास की वस्तुएँ देखते हैं, तो नेत्र लेंस मोटा होकर अपनी फोकस दूरी कम कर लेता है।
  1. निकट दृष्टिदोष का कोई व्यक्ति 1.2 m से अधिक दूरी पर रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाता है। इस दोष को दूर करने के लिए प्रयुक्त संशोधक लेंस किस प्रकार का होना चाहिए?
  2. उत्तर: यदि कोई व्यक्ति 1.2 मीटर से अधिक दूरी पर रखी वस्तुओं को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाता है, तो वह निकट दृष्टिदोष (Myopia) से पीड़ित है। इस दोष को दूर करने के लिए अवतल लेंस (Concave Lens) का प्रयोग किया जाता है। अवतल लेंस प्रकाश किरणों को अपसरित करता है, जिससे रेटिना पर वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिंब बन पाता है।
  1. मानव नेत्र की सामान्य दृष्टि के लिए दूर बिंदु तथा निकट बिंदु नेत्र से कितनी दूरी पर होते हैं?
  2. उत्तर:
    • दूर बिंदु (Far Point): सामान्य दृष्टि के लिए दूर बिंदु अनंत (Infinity) पर होता है। इसका अर्थ है कि एक सामान्य आँख अनंत पर रखी वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देख सकती है।
    • निकट बिंदु (Near Point): सामान्य दृष्टि के लिए निकट बिंदु नेत्र से लगभग 25 cm की दूरी पर होता है। इसे सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी भी कहते हैं।
  1. अंतिम पंक्ति में बैठे किसी विद्यार्थी को श्यामपट्ट पढ़ने में कठिनाई होती है। यह विद्यार्थी किस दृष्टि दोष से पीड़ित है? इसे किस प्रकार संशोधित किया जा सकता है?
  2. उत्तर: यदि अंतिम पंक्ति में बैठे किसी विद्यार्थी को श्यामपट्ट (जो दूर होता है) पढ़ने में कठिनाई होती है, तो यह विद्यार्थी निकट दृष्टिदोष (Myopia) से पीड़ित है।संशोधन: इस दोष को संशोधित करने के लिए उसे उचित फोकस दूरी के अवतल लेंस (Concave Lens) वाले चश्मे का उपयोग करना चाहिए। अवतल लेंस प्रकाश किरणों को इस प्रकार अपसरित करेगा कि श्यामपट्ट से आने वाली प्रकाश किरणें रेटिना पर केंद्रित हो सकें, जिससे विद्यार्थी को श्यामपट्ट स्पष्ट दिखाई देगा।

11.3 प्रिज्म से प्रकाश का अपवर्तन

हम पहले ही पढ़ चुके हैं कि एक आयताकार काँच के स्लैब से प्रकाश कैसे अपवर्तित होता है। काँच के स्लैब में, समांतर अपवर्तक पृष्ठों के कारण, अपवर्तित किरण आपतित किरण के समानांतर होती है, लेकिन पार्श्व रूप से थोड़ी विस्थापित हो जाती है।

अब हम यह समझेंगे कि एक पारदर्शी प्रिज्म से गुजरने पर प्रकाश कैसे अपवर्तित होता है। एक त्रिभुजाकार काँच के प्रिज्म में दो त्रिभुजाकार आधार और तीन आयताकार पार्श्व-पृष्ठ होते हैं। ये पृष्ठ एक-दूसरे पर झुके होते हैं। इसके दो पार्श्व फलकों के बीच के कोण को प्रिज्म कोण कहते हैं।

प्रिज्म में प्रकाश का अपवर्तन: एक अवलोकन

जब प्रकाश की किरण प्रिज्म के पहले पृष्ठ पर पड़ती है, तो वह अभिलंब की ओर मुड़ती है। जब यह दूसरे पृष्ठ से बाहर निकलती है, तो यह अभिलंब से दूर मुड़ती है।

  • आपतन कोण और अपवर्तन कोण की तुलना: प्रिज्म के प्रत्येक अपवर्तक पृष्ठ पर आपतन कोण और अपवर्तन कोण की तुलना करने पर, यह काँच के स्लैब में हुए झुकाव से भिन्न होता है।
  • विचलन कोण: प्रिज्म की विशेष आकृति के कारण, निर्गत किरण, आपतित किरण की दिशा से एक कोण बनाती है। इस कोण को विचलन कोण कहते हैं (जैसा कि चित्र 11.5 में D द्वारा दर्शाया गया है)।

11.4 काँच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण

आपने इंद्रधनुष में सुंदर रंग देखे होंगे। लेकिन सूर्य के श्वेत प्रकाश से हमें इंद्रधनुष के विभिन्न रंग कैसे मिलते हैं? इस प्रश्न पर विचार करने से पहले, आइए फिर से प्रिज्म से प्रकाश के अपवर्तन को देखें। काँच के प्रिज्म के झुके हुए अपवर्तक पृष्ठ एक दिलचस्प घटना दर्शाते हैं।

श्वेत प्रकाश का विक्षेपण

जब श्वेत प्रकाश एक प्रिज्म से होकर गुजरता है, तो यह संभवतः रंगों (वर्णों) की एक पट्टी में विभाजित हो जाता है। इस रंगीन पट्टी के दोनों सिरों पर दिखाई देने वाले रंग हैं:

  • बैंगनी (violet)
  • जामुनी (indigo)
  • नीला (blue)
  • हरा (green)
  • पीला (yellow)
  • नारंगी (orange)
  • लाल (red)

यह क्रम प्रसिद्ध परिवर्णी शब्द VIBGYOR (V-Violet, I-Indigo, B-Blue, G-Green, Y-Yellow, O-Orange, R-Red) द्वारा याद रखा जा सकता है।

  • स्पेक्ट्रम: प्रकाश के अवयवी वर्णों के इस बैंड को स्पेक्ट्रम कहते हैं।
  • प्रकाश का विक्षेपण: श्वेत प्रकाश का उसके अवयवी वर्णों में विभाजन प्रकाश का विक्षेपण कहलाता है।

विक्षेपण क्यों होता है?

आपने देखा कि श्वेत प्रकाश प्रिज्म द्वारा इसके सात अवयवी वर्णों में विक्षेपित हो जाता है। हमें ये वर्ण इसलिए प्राप्त होते हैं क्योंकि किसी प्रिज्म से गुजरने के पश्चात, प्रकाश के विभिन्न वर्ण, आपतित किरण के सापेक्ष अलग-अलग कोणों पर झुकते (मुड़ते) हैं।

  • लाल प्रकाश सबसे कम झुकता है।
  • बैंगनी प्रकाश सबसे अधिक झुकता है।

इसलिए, प्रत्येक वर्ण की किरणें अलग-अलग पथों के अनुदिश निर्गत होती हैं और सुस्पष्ट दिखाई देती हैं। यही सुस्पष्ट वर्णों का बैंड हमें स्पेक्ट्रम के रूप में दिखाई देता है।

न्यूटन का प्रयोग

आइज़क न्यूटन ने सबसे पहले सूर्य का स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए काँच के प्रिज्म का उपयोग किया था। उन्होंने एक दूसरा समान प्रिज्म (पहले प्रिज्म के सापेक्ष उलटी स्थिति में) रखकर श्वेत प्रकाश के स्पेक्ट्रम के वर्णों को और अधिक विभक्त करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें और अधिक वर्ण नहीं मिले। इसके बजाय, उन्होंने देखा कि दूसरे प्रिज्म से श्वेत प्रकाश का किरण पुंज निर्गत हो रहा है (जैसा कि चित्र 11.6 में दर्शाया गया है)।

इस अवलोकन से न्यूटन को यह विचार आया कि सूर्य का प्रकाश सात वर्णों से मिलकर बना है। कोई भी प्रकाश जो सूर्य के प्रकाश के सदृश स्पेक्ट्रम बनाता है, प्रायः श्वेत प्रकाश कहलाता है।

इंद्रधनुष: एक प्राकृतिक स्पेक्ट्रम

इंद्रधनुष, वर्षा के पश्चात आकाश में जल के सूक्ष्म कणों में दिखाई देने वाला एक प्राकृतिक स्पेक्ट्रम है (चित्र 11.7)। यह वायुमंडल में उपस्थित जल की सूक्ष्म बूँदों द्वारा सूर्य के प्रकाश के परिक्षेपण के कारण प्राप्त होता है।

  • इंद्रधनुष सदैव सूर्य के विपरीत दिशा में बनता है।
  • जल की सूक्ष्म बूँदें छोटे प्रिज्मों की भाँति कार्य करती हैं।

सूर्य के आपतित प्रकाश को ये बूँदें अपवर्तित तथा विक्षेपित करती हैं, तत्पश्चात इसे आंतरिक परावर्तित करती हैं, और अंततः जल की बूँद से बाहर निकलते समय प्रकाश को पुनः अपवर्तित करती हैं (चित्र 11.8)। प्रकाश के परिक्षेपण तथा आंतरिक परावर्तन के कारण विभिन्न वर्ण प्रेक्षक के नेत्रों तक पहुँचते हैं।

यदि सूर्य आपकी पीठ की ओर हो, और आप आकाश की ओर धूप वाले किसी दिन किसी जल प्रपात अथवा जल के फव्वारे से देखें, तो आप इंद्रधनुष का दृश्य देख सकते हैं।

11.5 वायुमंडलीय अपवर्तन

आपने शायद कभी आग या हीटर के ऊपर से उठती गर्म हवा में धूल के कणों की अजीब, अनियमित या अस्थिर गति देखी होगी। यह एक प्रकार की झिलमिलाहट होती है। आग के ठीक ऊपर की हवा अपने ऊपर की हवा की तुलना में अधिक गर्म होती है। गर्म हवा ठंडी हवा से हल्की (कम सघन) होती है, और इसका अपवर्तनांक ठंडी हवा की तुलना में थोड़ा कम होता है।

चूंकि अपवर्तक माध्यम (हवा) की भौतिक अवस्थाएं स्थिर नहीं होतीं, इसलिए गर्म हवा से देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति बदलती रहती है। यह अस्थिरता हमारे स्थानीय वातावरण में छोटे पैमाने पर वायुमंडलीय अपवर्तन (पृथ्वी के वायुमंडल के कारण प्रकाश का अपवर्तन) का ही एक प्रभाव है। तारों का टिमटिमाना एक बड़े पैमाने पर ऐसी ही घटना है। आइए देखें कि हम इसकी व्याख्या कैसे कर सकते हैं।

तारों का टिमटिमाना

तारे वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण टिमटिमाते हुए प्रतीत होते हैं। पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने के बाद, तारे का प्रकाश पृथ्वी की सतह तक पहुंचने तक लगातार अपवर्तित होता रहता है। वायुमंडलीय अपवर्तन ऐसे माध्यम में होता है जिसका अपवर्तनांक धीरे-धीरे बदलता रहता है।

  • आभासी स्थिति में परिवर्तन: चूंकि वायुमंडल तारे के प्रकाश को अभिलंब की ओर मोड़ देता है, तारे की आभासी स्थिति उसकी वास्तविक स्थिति से थोड़ी भिन्न प्रतीत होती है। क्षितिज के पास देखने पर (चित्र 11.9), कोई तारा अपनी वास्तविक स्थिति से थोड़ा ऊपर प्रतीत होता है।
  • अस्थिर आभासी स्थिति: इसके अलावा, जैसा कि पहले बताया गया है, तारे की यह आभासी स्थिति भी स्थायी नहीं होती बल्कि धीरे-धीरे थोड़ी बदलती रहती है, क्योंकि पृथ्वी के वायुमंडल की भौतिक अवस्थाएं स्थायी नहीं होतीं।
  • टिमटिमाहट का प्रभाव: चूंकि तारे बहुत दूर हैं, वे प्रकाश के बिंदु-स्रोत के बहुत करीब होते हैं। तारों से आने वाली प्रकाश किरणों का पथ थोड़ा-थोड़ा बदलता रहता है, जिससे तारे की आभासी स्थिति विचलित होती रहती है। इससे हमारी आँखों में प्रवेश करने वाले तारों के प्रकाश की मात्रा भी घटती-बढ़ती रहती है – जिसके कारण कोई तारा कभी चमकीला प्रतीत होता है तो कभी धुंधला, यही टिमटिमाहट का प्रभाव है।

ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते?

ग्रह तारों की तुलना में पृथ्वी के बहुत पास हैं और इसीलिए उन्हें विस्तृत स्रोत की तरह माना जा सकता है। यदि हम ग्रह को बिंदु-आकार के अनेक प्रकाश स्रोतों का संग्रह मान लें, तो सभी बिंदु-आकार के प्रकाश-स्रोतों से हमारी आँखों में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा में कुल परिवर्तन का औसत मान शून्य होगा। यही कारण है कि ग्रह टिमटिमाते हुए प्रतीत नहीं होते।

अग्रिम सूर्योदय तथा विलंबित सूर्यास्त

वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण सूर्य हमें वास्तविक सूर्योदय से लगभग 2 मिनट पहले दिखाई देने लगता है और वास्तविक सूर्यास्त के लगभग 2 मिनट बाद तक दिखाई देता रहता है। वास्तविक सूर्योदय का अर्थ है, सूर्य द्वारा वास्तव में क्षितिज को पार करना।

चित्र 11.10 में सूर्य की क्षितिज के सापेक्ष वास्तविक तथा आभासी स्थितियां दर्शाई गई हैं। वास्तविक सूर्यास्त तथा आभासी सूर्यास्त के बीच समय का अंतर लगभग 2 मिनट होता है। इसी परिघटना के कारण ही सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य की चक्रिका चपटी प्रतीत होती है।

1.6 प्रकाश का प्रकीर्णन

प्रकाश और हमारे चारों ओर की वस्तुओं के बीच की अंतःक्रिया के कारण हमें प्रकृति में कई आश्चर्यजनक घटनाएँ देखने को मिलती हैं। आकाश का नीला रंग, गहरे समुद्र के पानी का रंग, और सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य का लालिमायुक्त दिखना, कुछ ऐसी अद्भुत घटनाएँ हैं जिनसे हम परिचित हैं। पिछली कक्षा में हमने कोलॉइडी कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन के बारे में पढ़ा था। एक वास्तविक विलयन से गुजरने वाले प्रकाश किरण पुंज का मार्ग हमें दिखाई नहीं देता, लेकिन एक कोलॉइडी विलयन में, जहाँ कणों का आकार अपेक्षाकृत बड़ा होता है, यह मार्ग दिखाई देता है।

11.6.1 टिंडल प्रभाव

पृथ्वी का वायुमंडल सूक्ष्म कणों का एक विषम मिश्रण है। इन कणों में धुआँ, पानी की सूक्ष्म बूँदें, धूल के निलंबित कण और वायु के अणु शामिल होते हैं। जब कोई प्रकाश किरण पुंज ऐसे महीन कणों से टकराता है, तो उस किरण पुंज का मार्ग दिखाई देने लगता है। इन कणों से विसरित प्रकाश परावर्तित होकर हम तक पहुँचता है।

  • परिभाषा: कोलॉइडी कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन की परिघटना टिंडल प्रभाव उत्पन्न करती है, जिसके बारे में आप कक्षा 9 में पढ़ चुके हैं।
  • उदाहरण: इस घटना को तब देखा जा सकता है जब धुएँ से भरे किसी कमरे में किसी सूक्ष्म छिद्र से कोई पतला प्रकाश किरण पुंज प्रवेश करता है। इस प्रकार, प्रकाश का प्रकीर्णन कणों को दृश्य बनाता है। जब किसी घने जंगल के वितान (canopy) से सूर्य का प्रकाश गुजरता है, तो टिंडल प्रभाव को देखा जा सकता है। जंगल के कोहरे में पानी की सूक्ष्म बूँदें प्रकाश का प्रकीर्णन कर देती हैं।

प्रकीर्णित प्रकाश का रंग, प्रकीर्णन करने वाले कणों के आकार पर निर्भर करता है:

  • अत्यंत सूक्ष्म कण मुख्य रूप से नीले प्रकाश को प्रकीर्ण करते हैं।
  • बड़े आकार के कण अधिक तरंगदैर्घ्य के प्रकाश को प्रकीर्ण करते हैं।
  • यदि प्रकीर्णन करने वाले कणों का आकार बहुत अधिक है, तो प्रकीर्णित प्रकाश श्वेत भी प्रतीत हो सकता है।

11.6.2 स्वच्छ आकाश का रंग नीला क्यों होता है?

वायुमंडल में वायु के अणु और अन्य सूक्ष्म कणों का आकार दृश्य प्रकाश की तरंगदैर्घ्य की तुलना में नीले रंग की ओर की कम तरंगदैर्घ्य के प्रकाश को प्रकीर्णित करने में अधिक प्रभावी है। लाल रंग के प्रकाश की तरंगदैर्घ्य नीले प्रकाश की अपेक्षा लगभग 1.8 गुना है।

अतः जब सूर्य का प्रकाश वायुमंडल से गुजरता है, तो वायु के सूक्ष्म कण लाल रंग की अपेक्षा नीले रंग (छोटी तरंगदैर्घ्य) को अधिक प्रबलता से प्रकीर्ण करते हैं। प्रकीर्णित हुआ नीला प्रकाश हमारी आँखों में प्रवेश करता है।

  • वायुमंडल की अनुपस्थिति: यदि पृथ्वी पर वायुमंडल न होता तो कोई प्रकीर्णन न हो पाता। तब, आकाश काला प्रतीत होता। अत्यधिक ऊँचाई पर उड़ते हुए यात्रियों को आकाश काला प्रतीत होता है, क्योंकि इतनी ऊँचाई पर प्रकीर्णन सुस्पष्ट नहीं होता।

खतरे के संकेत लाल क्यों होते हैं? शायद आपने देखा होगा कि “खतरे” के संकेत (सिग्नल) का प्रकाश लाल रंग का होता है। इसका कारण यह है कि लाल रंग कोहरे या धुएँ से सबसे कम प्रकीर्ण होता है। इसीलिए यह दूर से देखने पर भी लाल रंग का ही दिखाई देता है, जिससे उसकी दृश्यता बनी रहती है।

अभ्यास प्रश्न

1. मानव नेत्र अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी को समायोजित करके विभिन्‍न दूरियों पर रखी वस्तुओं को ‘फोकसित कर सकता है। ऐसा हो पाने का कारण है- (b) समंजन

2. मानव नेत्र जिस भाग पर किसी वस्तु का प्रतिबिंब बनाते हैं वह है- (d) दृष्टिपटल

3. सामान्य दृष्टि के वयस्क के लिए सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी होती है, लगभग- (c) 25cm

4. अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी में परिवर्तन किया जाता है- (c) पश्ष्माभी द्वारा

5. किसी व्यक्ति को अपनी दूर की दृष्टि को संशोधित करने के लिए – 5.5 डाइऑप्टर क्षमता के लेंस की आवश्यकता है। अपनी निकट की दृष्टि को संशोधित करने के लिए उसे +1.5 डाइऑप्टर क्षमता के लेंस की आवश्यकता है। संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की फोकस दूरी क्या होगी-

6. किसी निकट-दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति का दूर बिंदु नेत्र के सामने 80 cm दूरी पर है। इस दोष को संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की प्रकृति तथा क्षमता कया होगी?

निकट-दृष्टि दोष में व्यक्ति दूर की वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख पाता। इस दोष को दूर करने के लिए अवतल लेंस का उपयोग किया जाता है।

दूर बिंदु (v) = -80 cm (प्रतिबिंब नेत्र के सामने बनता है) हम चाहते हैं कि अनंत पर स्थित वस्तु (u = ∞) का प्रतिबिंब व्यक्ति के दूर बिंदु पर बने।

7. चित्र बनाकर दर्शाइए कि दीर्घ-दृष्टि दोष कैसे संशोधित किया जाता है। एक दीर्घ-दृष्टि दोषयुक्त नेत्र का निकट बिंदु 1 m है। इस दोष को संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की क्षमता क्या होगी? यह मान लीजिए कि सामान्य नेत्र का निकट बिंदु 25 cm है।

दीर्घ-दृष्टि दोष (Hypermetropia) का संशोधन: दीर्घ-दृष्टि दोष में, प्रकाश किरणें रेटिना के पीछे अभिसरित होती हैं, जिससे व्यक्ति पास की वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख पाता। इस दोष को संशोधित करने के लिए उत्तल (अभिसारी) लेंस का उपयोग किया जाता है।

(यहां एक चित्र बनाना होगा जो दीर्घ-दृष्टि दोष और उसके संशोधन को दर्शाता है। चित्र में:

  1. बिना संशोधन के, 25 cm पर रखी वस्तु से आने वाली प्रकाश किरणें रेटिना के पीछे मिलती हुई दिखनी चाहिए।
  2. उत्तल लेंस का उपयोग करने पर, 25 cm पर रखी वस्तु से आने वाली प्रकाश किरणें लेंस से अपवर्तित होकर रेटिना पर फोकस होती हुई दिखनी चाहिए।)

लेंस की क्षमता की गणना: दीर्घ-दृष्टि दोषयुक्त नेत्र का निकट बिंदु (v’) = 1 m = 100 cm सामान्य नेत्र का निकट बिंदु (u) = 25 cm

हमें एक ऐसे लेंस की आवश्यकता है जो 25 cm पर रखी वस्तु से आने वाली किरणों को अपवर्तित करके ऐसा आभासी प्रतिबिंब बनाए जो दीर्घ-दृष्टि दोषयुक्त नेत्र के लिए 100 cm पर हो। अतः, वस्तु दूरी (u) = -25 cm (लेंस के सामने) प्रतिबिंब दूरी (v) = -100 cm (लेंस के सामने, आभासी)

8. सामान्य नेत्र 25 cm से निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट क्यों नहीं देख पाते?

सामान्य नेत्र की समंजन क्षमता की एक सीमा होती है। जब कोई वस्तु 25 cm से अधिक निकट रखी जाती है, तो अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी को और अधिक कम कर पाना संभव नहीं होता है। ऐसी स्थिति में, वस्तु से आने वाली प्रकाश किरणें दृष्टिपटल पर स्पष्ट रूप से अभिसरित नहीं हो पाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप दृष्टिपटल पर धुंधला या अस्पष्ट प्रतिबिंब बनता है। यह नेत्र के अधिकतम समंजन की सीमा के कारण होता है।

9. जब हम नेत्र से किसी वस्तु की दूरी को बढ़ा देते हैं तो नेत्र में प्रतिबिंब-दूरी का क्या होता है?

मानव नेत्र में, अभिनेत्र लेंस और दृष्टिपटल के बीच की दूरी लगभग स्थिर होती है। यह प्रतिबिंब-दूरी होती है। जब हम नेत्र से किसी वस्तु की दूरी को बढ़ाते हैं, तो अभिनेत्र लेंस अपनी फोकस दूरी को समायोजित (समंजन) करता है ताकि वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिंब हमेशा दृष्टिपटल पर ही बने। इसलिए, नेत्र में प्रतिबिंब-दूरी लगभग अपरिवर्तित रहती है।

10. तारे क्यों टिमटिमाते हैं?

तारे टिमटिमाने का मुख्य कारण वायुमंडलीय अपवर्तन है। पृथ्वी के वायुमंडल में वायु की विभिन्न परतें होती हैं, जिनकी भौतिक स्थितियाँ (घनत्व और तापमान) लगातार बदलती रहती हैं। इससे इन परतों का अपवर्तनांक भी लगातार बदलता रहता है। जब तारों से प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो उसे इन विभिन्न अपवर्तनांक वाली परतों से होकर गुजरना पड़ता है। प्रत्येक परत प्रकाश को थोड़ा विचलित करती है। चूंकि ये परतें लगातार हिलती-डुलती रहती हैं, इसलिए तारे से आने वाला प्रकाश कभी हमारी आँखों तक थोड़ा अधिक पहुँचता है तो कभी थोड़ा कम। इससे तारे की आभासी स्थिति और उसकी चमक लगातार बदलती रहती है, और हमें तारे टिमटिमाते हुए प्रतीत होते हैं।

11. व्याख्या कौजिए कि ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते।

ग्रह तारों की तुलना में पृथ्वी के बहुत करीब हैं।

  • बड़ा प्रकाश स्रोत: तारे बिंदु प्रकाश स्रोत के समान होते हैं क्योंकि वे हमसे बहुत दूर हैं। ग्रह, चूंकि हमारे करीब हैं, वे विस्तारित प्रकाश स्रोत के रूप में माने जा सकते हैं – अर्थात, वे अनेक बिंदु प्रकाश स्रोतों के समूह के रूप में दिखाई देते हैं।
  • औसत प्रभाव: जब ग्रह से प्रकाश हमारी आँखों तक पहुँचता है, तो यह कई समानांतर प्रकाश किरणों के रूप में आता है। वायुमंडलीय अशांति इन किरणों में से कुछ को विचलित कर सकती है, लेकिन एक ही समय में सभी किरणों को एक ही दिशा में विचलित नहीं करती। कुछ किरणें विचलित होती हैं तो कुछ नहीं। इन विचलनों का प्रभाव एक दूसरे को औसत कर देता है।
  • स्थिरता: नतीजतन, ग्रह से आने वाले प्रकाश की कुल मात्रा हमारी आँखों में काफी हद तक स्थिर रहती है, और इसलिए वे टिमटिमाते हुए प्रतीत नहीं होते हैं।

12. सूर्योदय के समय सूर्य रक्‍्ताभ क्यों प्रतीत होता है?

सूर्योदय (और सूर्यास्त) के समय सूर्य क्षितिज के करीब होता है। इस स्थिति में, सूर्य के प्रकाश को हमारी आँखों तक पहुँचने के लिए वायुमंडल की सबसे मोटी परत से होकर गुजरना पड़ता है।

  • प्रकाश का प्रकीर्णन: श्वेत प्रकाश में विभिन्न रंगों के घटक होते हैं, और नीले रंग के प्रकाश की तरंग दैर्ध्य सबसे कम होती है, इसलिए इसका प्रकीर्णन (फैलाव) सबसे अधिक होता है।
  • अधिकतम प्रकीर्णन: जब सूर्य का प्रकाश वायुमंडल की मोटी परत से गुजरता है, तो अधिकांश नीले और बैंगनी प्रकाश (छोटी तरंग दैर्ध्य वाले) वायुमंडल में कणों द्वारा प्रकीर्णित हो जाते हैं और हमारी आँखों तक नहीं पहुँच पाते।
  • लाल रंग की प्रधानता: लाल प्रकाश की तरंग दैर्ध्य सबसे अधिक होती है, इसलिए यह सबसे कम प्रकीर्णित होता है। नतीजतन, हमारी आँखों तक पहुँचने वाले प्रकाश में लाल और नारंगी रंग की प्रधानता होती है, जिससे सूर्य रक्‍्ताभ (लाल-नारंगी) प्रतीत होता है।

13. किसी अतंरिक्षयात्री को आकाश नीले की अपेक्षा काला क्यों प्रतीत होता है?

अतंरिक्षयात्री पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर होते हैं।

  • वायुमंडल की अनुपस्थिति: आकाश का नीला रंग वायुमंडल में उपस्थित धूल कणों और गैसों के अणुओं द्वारा सूर्य के प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता है (विशेषकर नीले प्रकाश का अधिक प्रकीर्णन)।
  • प्रकीर्णन का अभाव: अंतरिक्ष में कोई वायुमंडल नहीं होता है, जिसका अर्थ है कि प्रकाश को प्रकीर्णित करने के लिए कोई कण या अणु नहीं होते हैं।
  • प्रकाश का सीधा मार्ग: सूर्य का प्रकाश अंतरिक्ष में सीधे फैलता है और प्रकीर्णित नहीं होता। इसलिए, अतंरिक्षयात्री को कोई प्रकीर्णित नीला प्रकाश दिखाई नहीं देता, और आकाश काला प्रतीत होता है क्योंकि कोई प्रकाश उनकी आँखों में वापस नहीं आता है।

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