MP Board Class 9 Number System Introduction
संख्या पद्धति भूमिका (Number System Introduction)
गणित की दुनिया में संख्याओं का एक महत्वपूर्ण स्थान है। संख्याओं के बिना गणित की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हम अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भी संख्याओं का बहुत उपयोग करते हैं चाहे वह किसी चीज़ की गिनती करना हो, समय बताना हो या पैसे का हिसाब रखना हो। संख्याओं के इस समूह को ‘संख्या पद्धति’ (Number System) कहा जाता है। आइए, कक्षा 9वीं के स्तर पर संख्या पद्धति और उसके विभिन्न प्रकारों को विस्तार से समझते हैं।
संख्या पद्धति क्या है?
संख्या पद्धति विभिन्न प्रकार की संख्याओं और उनके गुणों का अध्ययन है। यह हमें संख्याओं को वर्गीकृत करने और उनके बीच के संबंधों को समझने में मदद करती है।
संख्याओं के प्रकार (Types of Numbers)
संख्या पद्धति में कई प्रकार की संख्याएँ होती हैं। आइए कुछ प्रमुख प्रकारों को देखें:
- प्राकृतिक संख्याएँ (Natural Numbers): ये वे संख्याएँ हैं जिनका उपयोग हम गिनती के लिए करते हैं। इन्हें ‘N’ से दर्शाया जाता है। उदाहरण: 1, 2, 3, 4, 5, …
- पूर्ण संख्याएँ (Whole Numbers): जब हम प्राकृतिक संख्याओं के समूह में शून्य (0) को भी शामिल कर लेते हैं, तो वे पूर्ण संख्याएँ कहलाती हैं। इन्हें ‘W’ से दर्शाया जाता है। उदाहरण: 0, 1, 2, 3, 4, …
- पूर्णांक (Integers): पूर्णांक पूर्ण संख्याओं और ऋणात्मक संख्याओं (जैसे -1, -2, -3) का समूह है। इन्हें ‘Z’ से दर्शाया जाता है। उदाहरण: …, -3, -2, -1, 0, 1, 2, 3, …
परिमेय संख्याएँ (Rational Numbers):
एक संख्या जिसे p/q के रूप में व्यक्त किया जा सकता है, जहाँ p और q पूर्णांक हैं और q#0 (q शून्य के बराबर नहीं है), परिमेय संख्या कहलाती है। इन्हें ‘Q’ से दर्शाया जाता है।
विशेषताएँ:
- इन्हें भिन्न (fraction) के रूप में लिखा जा सकता है।
- इनका दशमलव प्रसार या तो सांत (terminating) होता है (जैसे 0.5,0.25) या अशांत आवर्ती (non-terminating repeating) होता है (जैसे 0.333…,0.142857142857…)।
उदाहरण:
- 1/2=0.5 (सांत दशमलव प्रसार)
- 3/4=0.75 (सांत दशमलव प्रसार)
- 1/3=0.333… (अशांत आवर्ती दशमलव प्रसार)
- 2 (इसे 2/1 के रूप में लिखा जा सकता है)
- −5 (इसे −5/1 के रूप में लिखा जा सकता है)
- 0 (इसे 0/1 के रूप में लिखा जा सकता है)
अपरिमेय संख्याएँ (Irrational Numbers):
एक संख्या जिसे p/q के रूप में व्यक्त नहीं किया जा सकता, जहाँ p और q पूर्णांक हैं और q# 0, अपरिमेय संख्या कहलाती है।
विशेषताएँ:
- इन्हें भिन्न के रूप में नहीं लिखा जा सकता।
- इनका दशमलव प्रसार अशांत अनावर्ती (non-terminating non-repeating) होता है। इसका अर्थ है कि दशमलव के बाद अंक न तो कभी समाप्त होते हैं और न ही किसी विशेष पैटर्न में दोहराते हैं।
उदाहरण:
(वृत्त की परिधि और व्यास का अनुपात)
(यूलर संख्या)
वास्तविक संख्याएँ (Real Numbers):
सभी परिमेय संख्याओं और अपरिमेय संख्याओं के संग्रह को वास्तविक संख्याएँ कहते हैं। इन्हें ‘R’ से दर्शाया जाता है। संख्या रेखा पर प्रत्येक वास्तविक संख्या का एक अद्वितीय बिंदु होता है, और संख्या रेखा पर प्रत्येक बिंदु एक अद्वितीय वास्तविक संख्या को दर्शाता है।
संख्या पद्धति में कुछ महत्वपूर्ण अवधारणाएँ:
- संख्या रेखा (Number Line): यह एक सीधी रेखा होती है जिस पर संख्याओं को दर्शाया जाता है। केंद्र में शून्य होता है, दाईं ओर धनात्मक संख्याएँ और बाईं ओर ऋणात्मक संख्याएँ होती हैं।
- परिमेय संख्याओं के बीच परिमेय संख्याएँ ज्ञात करना: किन्हीं दो परिमेय संख्याओं के बीच अनंत परिमेय संख्याएँ होती हैं। इन्हें ज्ञात करने के लिए विभिन्न विधियाँ हैं, जैसे औसत विधि या समतुल्य भिन्न विधि।
- अपरिमेय संख्याओं का संख्या रेखा पर निरूपण: कुछ अपरिमेय संख्याओं, जैसे
, आदि को पाइथागोरस प्रमेय का उपयोग करके संख्या रेखा पर दर्शाया जा सकता है।
निष्कर्ष:
संख्या पद्धति गणित की एक आधारशिला है। विभिन्न प्रकार की संख्याओं को समझना, विशेषकर परिमेय और अपरिमेय संख्याओं के बीच का अंतर जानना, गणितीय समस्याओं को हल करने और उच्च गणितीय अवधारणाओं को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह हमें संख्याओं के विशाल और विविध संसार को एक व्यवस्थित तरीके से देखने में मदद करता है।
उदाहरण 1 : नीचे दिए गए कथन सत्य हैं या असत्य? कारण के साथ अपने उत्तर दीजिए।
(1) प्रत्येक पूर्ण संख्या एक प्राकृत संख्या होती है।
Answer: असत्य (False) कारण: प्राकृत संख्याएँ (Natural Numbers) 1, 2, 3, 4,… से शुरू होती हैं, जबकि पूर्ण संख्याएँ (Whole Numbers) 0, 1, 2, 3, 4,… से शुरू होती हैं। पूर्ण संख्याओं में शून्य (0) शामिल होता है, जो कि एक प्राकृत संख्या नहीं है। इसलिए, प्रत्येक पूर्ण संख्या एक प्राकृत संख्या नहीं हो सकती (उदाहरण के लिए, 0 एक पूर्ण संख्या है लेकिन प्राकृत संख्या नहीं)।
(2) प्रत्येक पूर्णक एक परिमेय संख्या होता है।
सत्य (True) कारण: एक परिमेय संख्या (Rational Number) वह होती है जिसे p/q के रूप में व्यक्त किया जा सकता है, जहाँ p और q पूर्णांक हैं और q=0। प्रत्येक पूर्णांक (Integer) को p/1 के रूप में लिखा जा सकता है, जहाँ p कोई भी पूर्णांक हो सकता है और q=1 जो कि शून्य के बराबर नहीं है। उदाहरण के लिए:
- 5 को 5/1 के रूप में लिखा जा सकता है।
- −3 को −3/1 के रूप में लिखा जा सकता है।
- 0 को 0/1 के रूप में लिखा जा सकता है। इस प्रकार, सभी पूर्णांक परिमेय संख्याएँ होती हैं।
(3) प्रत्येक परिमेय संख्या एक पूर्णाक होती है।
असत्य (False)कारण: एक परिमेय संख्या को p/q के रूप में व्यक्त किया जाता है, लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि q हमेशा 1 हो। यदि q 1 के अलावा कोई और पूर्णांक है (और q#0) तो वह परिमेय संख्या पूर्णांक नहीं होगी। पूर्णांक वे संख्याएँ होती हैं जिनमें कोई भिन्नात्मक या दशमलव भाग नहीं होता (जैसे −2,−1,0,1,2)। उदाहरण के लिए:
- 1/2 एक परिमेय संख्या है, लेकिन यह एक पूर्णांक नहीं है।
- 3/4 एक परिमेय संख्या है, लेकिन यह एक पूर्णांक नहीं है।
- 0.5 (जो 1/2 के बराबर है) एक परिमेय संख्या है, लेकिन यह एक पूर्णांक नहीं है। इसलिए, प्रत्येक परिमेय संख्या पूर्णांक नहीं होती।
उदाहरण 2 :1 और 2 के बीच की पाँच परिमेय संख्याएँ ज्ञात कीजिए।
1 और 2 के बीच की पाँच परिमेय संख्याएँ ज्ञात करने के लिए कई तरीके हैं। यहाँ कुछ सामान्य तरीके दिए गए हैं:
विधि 1: समान हर (Denominator) वाली भिन्न बनाना
हम 1 और 2 को ऐसे भिन्नों के रूप में लिख सकते हैं जिनका हर बड़ा हो। क्योंकि हमें 5 परिमेय संख्याएँ ज्ञात करनी हैं, हम 5+1=6 या उससे बड़े हर का उपयोग कर सकते हैं। आइए हर को 6 लें:
1 को 6/6 के रूप में लिखा जा सकता है। 2 को 12/6 के रूप में लिखा जा सकता है।
अब, 6/6 और 12/6 के बीच की संख्याएँ आसानी से देखी जा सकती हैं: 7/6,8/6,9/6,10/6,11/6
ये पाँच परिमेय संख्याएँ हैं जो 1 और 2 के बीच हैं। इन्हें सरल भी किया जा सकता है: 7/6,4/3,3/2,5/3,11/6
विधि 2: औसत विधि (Mean Method)
दो परिमेय संख्याओं a और b के बीच एक परिमेय संख्या (a+b)/2 होती है। हम इस विधि का बार-बार उपयोग कर सकते हैं:
- पहली संख्या: 1 और 2 के बीच: (1+2)/2=3/2
- दूसरी संख्या: 1 और 3/2 के बीच: (1+3/2)/2=((2+3)/2)/2=(5/2)/2=5/4
- तीसरी संख्या: 3/2 और 2 के बीच: (3/2+2)/2=((3+4)/2)/2=(7/2)/2=7/4
- चौथी संख्या: 1 और 5/4 के बीच: (1+5/4)/2=((4+5)/4)/2=(9/4)/2=9/8
- पाँचवीं संख्या: 7/4 और 2 के बीच: (7/4+2)/2=((7+8)/4)/2=(15/4)/2=15/8
इस प्रकार, 1 और 2 के बीच की पाँच परिमेय संख्याएँ 3/2,5/4,7/4,9/8,15/8 हो सकती हैं।
विधि 3: दशमलव प्रसार का उपयोग करना
हम 1 और 2 के बीच कुछ दशमलव संख्याएँ लिख सकते हैं जो परिमेय हैं (अर्थात, उनका दशमलव प्रसार सांत या अशांत आवर्ती हो)।
उदाहरण के लिए: 1.1, 1.2, 1.3, 1.4, 1.5
इन सभी को भिन्न के रूप में व्यक्त किया जा सकता है: 1.1=11/10 1.2=12/10=6/5 1.3=13/10 1.4=14/10=7/5 1.5=15/10=3/2
आप इनमें से कोई भी विधि चुन सकते हैं। सभी विधियों से सही उत्तर प्राप्त होते हैं, क्योंकि किन्हीं भी दो परिमेय संख्याओं के बीच अनंत परिमेय संख्याएँ होती हैं।
प्रश्नावली 1.1
1. क्या शून्य एक परिमेय संख्या है? क्या इसे आप p/q के रूप में लिख सकते हैं, जहाँ p और q पूर्णांक हैं और q#0 है?
उत्तर: हाँ, शून्य (0) एक परिमेय संख्या है। हम इसे p/q के रूप में लिख सकते हैं। उदाहरण के लिए, हम 0 को 0/1,0/2,0/3, आदि के रूप में लिख सकते हैं, जहाँ p=0 (जो कि एक पूर्णांक है) और q=1,2,3 आदि (जो सभी पूर्णांक हैं और शून्य के बराबर नहीं हैं)।
2. 3 और 4 के बीच में छह परिमेय संख्याएँ ज्ञात कीजिए।
उत्तर: 3 और 4 के बीच छह परिमेय संख्याएँ ज्ञात करने के लिए, हम 3 और 4 को ऐसे भिन्नों के रूप में लिख सकते हैं जिनका हर 6+1=7 या उससे अधिक हो। आइए हर को 7 लें:
3 को 3×7/7=21/7 के रूप में लिखा जा सकता है। 4 को 4×7/7=28/7 के रूप में लिखा जा सकता है।
अब, 21/7 और 28/7 के बीच की संख्याएँ आसानी से देखी जा सकती हैं: 22/7,23/7,24/7,25/7,26/7,27/7
ये छह परिमेय संख्याएँ हैं जो 3 और 4 के बीच हैं।
3. 3/5 और 4/5 के बीच पाँच परिमेय संख्याएँ ज्ञात कीजिए।
उत्तर: 3/5 और 4/5 के बीच पाँच परिमेय संख्याएँ ज्ञात करने के लिए, हम भिन्नों के अंश और हर दोनों को 5+1=6 से गुणा कर सकते हैं (या किसी भी बड़ी संख्या से)।
3/5=(3×6)/(5×6)=18/30 4/5=(4×6)/(5×6)=24/30
अब, 18/30 और 24/30 के बीच की संख्याएँ आसानी से देखी जा सकती हैं: 19/30,20/30,21/30,22/30,23/30
ये पाँच परिमेय संख्याएँ हैं जो 3/5 और 4/5 के बीच हैं। इन्हें सरल भी किया जा सकता है: 19/30,2/3,7/10,11/15,23/30
4. नीचे दिए गए कथन सत्य हैं या असत्य? कारण के साथ अपने उत्तर दीजिए।
(i) प्रत्येक प्राकृत संख्या एक पूर्ण संख्या होती है।
उत्तर: सत्य (True) कारण: प्राकृत संख्याएँ (Natural Numbers) 1, 2, 3, … होती हैं, और पूर्ण संख्याएँ (Whole Numbers) 0, 1, 2, 3, … होती हैं। जैसा कि हम देख सकते हैं, सभी प्राकृत संख्याएँ पूर्ण संख्याओं के संग्रह में शामिल हैं।
(ii) प्रत्येक पूर्णांक एक पूर्ण संख्या होती है।
उत्तर: असत्य (False) कारण: पूर्णांक (Integers) में धनात्मक संख्याएँ, ऋणात्मक संख्याएँ और शून्य शामिल होते हैं (… -3, -2, -1, 0, 1, 2, 3 …)। जबकि पूर्ण संख्याएँ (Whole Numbers) केवल 0 और धनात्मक संख्याएँ होती हैं (0, 1, 2, 3 …)। ऋणात्मक पूर्णांक (जैसे -1, -2, -3) पूर्ण संख्याएँ नहीं हैं।
(iii) प्रत्येक परिमेय संख्या एक पूर्ण संख्या होती है।
उत्तर: असत्य (False) कारण: परिमेय संख्याएँ (Rational Numbers) वे होती हैं जिन्हें p/q के रूप में व्यक्त किया जा सकता है, जहाँ q#0 होता है। पूर्ण संख्याएँ (Whole Numbers) केवल 0, 1, 2, 3, … होती हैं। बहुत सी परिमेय संख्याएँ ऐसी होती हैं जो पूर्ण संख्याएँ नहीं होतीं, जैसे कि भिन्न (उदाहरण: 1/2,3/4) या ऋणात्मक परिमेय संख्याएँ (उदाहरण: −5/2)।