कक्षा 12 संस्कृत व्याकरण प्रत्ययाः MP Board Class 12 Sanskrut Grammar Pratyayah

MP Board Class 12 Sanskrut Grammar Pratyayah

प्रत्ययाः (प्रत्यय): संस्कृत में विस्तृत अध्ययन

1. परिचय (Introduction)

MP Board Class 12 Sanskrut Grammar Pratyayah; संस्कृत व्याकरण में प्रत्यय (Pratyaya) वे शब्दांश (morphemes/word-parts) होते हैं जो किसी धातु (root/verb) या शब्द के बाद (after) जुड़कर उसके अर्थ में परिवर्तन (change in meaning), विशिष्टता (specialization) या नवीनता (new meaning) लाते हैं। ये भाषा को समृद्ध करने और नए शब्दों का निर्माण करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। परीक्षा की दृष्टि से प्रत्ययों का सही ज्ञान और प्रयोग समझना आवश्यक है।

प्रत्यय (Pratyaya): धातु या शब्द के अंत में जुड़ने वाले वे शब्दांश जो उनके अर्थ में परिवर्तन या विशेषता लाते हैं।

2. प्रत्यय क्या हैं? (What are Pratyayas?)

प्रत्यय वे अविकारी शब्दांश होते हैं जो किसी धातु (क्रिया का मूल रूप) या प्रातिपदिक (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण) के बाद जोड़े जाते हैं। उपसर्गों के विपरीत, प्रत्यय शब्द या धातु के पीछे लगते हैं। ये स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं किए जा सकते, बल्कि किसी धातु या शब्द के साथ जुड़कर ही अर्थवान होते हैं।

प्रत्ययों के कार्य (Functions of Pratyayas):

  1. नवीन शब्द निर्माण (Creation of New Words): नए क्रियापद, संज्ञाएँ, विशेषण या अव्यय बनाते हैं।
  2. अर्थ परिवर्तन/विशिष्टता (Change/Specialization of Meaning): मूल शब्द या धातु के अर्थ को बदलते या विशिष्ट बनाते हैं।
  3. लिंग, वचन, काल निर्धारण (Determining Gender, Number, Tense): कुछ प्रत्यय लिंग, वचन या काल का निर्धारण करते हैं।

3. प्रत्यय के प्रकार (Types of Pratyayas)

संस्कृत में प्रत्यय मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं:

  1. कृत् प्रत्यय (Kṛt Pratyayas): जो प्रत्यय धातु (क्रिया के मूल रूप) के अंत में जुड़कर संज्ञा (noun), विशेषण (adjective) या अव्यय (indeclinable) बनाते हैं, उन्हें कृत् प्रत्यय कहते हैं। इन प्रत्ययों से बने शब्द ‘कृदंत’ कहलाते हैं।
    • प्रमुख कृत् प्रत्यय (Major Kṛt Pratyayas):
      • क्त्वा (ktvā):
        • अर्थ: ‘करके’ या ‘के बाद’ (Having done). पूर्वकालिक क्रिया बनाने के लिए।
        • नियम: धातु के बाद ‘त्वा’ जुड़ता है। सेट् धातुओं में ‘इ’ का आगम होता है।
        • संस्कृत उदाहरण:
          • पठ् + क्त्वा = पठित्वा (पढ़कर / having read)
          • गम् + क्त्वा = गत्वा (जाकर / having gone)
          • लिख् + क्त्वा = लिखित्वा (लिखकर / having written)
          • भू + क्त्वा = भूत्वा (होकर / having been)
      • ल्यप् (lyap):
        • अर्थ: ‘करके’ या ‘के बाद’। क्त्वा के समान ही अर्थ, परन्तु जब धातु से पहले उपसर्ग लगा हो। इसमें ‘ल’ और ‘प’ का लोप होकर केवल ‘य’ शेष रहता है।
        • नियम: उपसर्ग + धातु + ल्यप् = ‘य’ शेष।
        • संस्कृत उदाहरण:
          • प्र + दा + ल्यप् = प्रदाय (देकर / having given)
          • आ + गम् + ल्यप् = आगम्य (आकर / having come)
          • वि + लिख् + ल्यप् = विलिख्य (लिखकर / having written)
          • सम् + पूज् + ल्यप् = सम्पूज्य (पूजा करके / having worshipped)
      • तुमुन् (tumun):
        • अर्थ: ‘के लिए’ (In order to). हेतु या उद्देश्य बताने के लिए।
        • नियम: धातु के बाद ‘तुम्’ जुड़ता है। सेट् धातुओं में ‘इ’ का आगम।
        • संस्कृत उदाहरण:
          • पठ् + तुमुन् = पठितुम् (पढ़ने के लिए / in order to read)
          • गम् + तुमुन् = गन्तुम् (जाने के लिए / in order to go)
          • कृ + तुमुन् = कर्तुम् (करने के लिए / in order to do)
          • खाद् + तुमुन् = खादितुम् (खाने के लिए / in order to eat)
      • तव्यत् (tavyat):
        • अर्थ: ‘चाहिए’ या ‘योग्य’ (Should be done / fit to be done). कर्मवाच्य या भाववाच्य में प्रयोग।
        • नियम: धातु के बाद ‘तव्य’ जुड़ता है। तीनों लिंगों में रूप चलते हैं।
        • संस्कृत उदाहरण:
          • पठ् + तव्यत् = पठितव्यः / पठितव्या / पठितव्यम् (पढ़ना चाहिए / should be read)
          • कृ + तव्यत् = कर्तव्यः / कर्तव्या / कर्तव्यम् (करना चाहिए / should be done)
          • दा + तव्यत् = दातव्यः / दातव्या / दातव्यम् (देना चाहिए / should be given)
      • अनीयर् (anīyar):
        • अर्थ: ‘चाहिए’ या ‘योग्य’। तव्यत् के समान ही अर्थ, किन्तु अधिक मृदु (softer) अर्थ।
        • नियम: धातु के बाद ‘अनीय’ जुड़ता है। तीनों लिंगों में रूप चलते हैं।
        • संस्कृत उदाहरण:
          • पठ् + अनीयर् = पठनीयः / पठनीया / पठनीयम् (पढ़ने योग्य / fit to be read)
          • कृ + अनीयर् = करणीयः / करणीया / करणीयम् (करने योग्य / fit to be done)
          • दृश् + अनीयर् = दर्शनीयः / दर्शनीया / दर्शनीयम् (देखने योग्य / fit to be seen)
      • क्त (kta):
        • अर्थ: भूतकालिक कर्मवाच्य क्रिया (Past Participle Passive). ‘गया हुआ’, ‘किया हुआ’।
        • नियम: धातु के बाद ‘त’ जुड़ता है। तीनों लिंगों में रूप चलते हैं।
        • संस्कृत उदाहरण:
          • गम् + क्त = गतः / गता / गतम् (गया हुआ / gone)
          • पठ् + क्त = पठितः / पठिता / पठितम् (पढ़ा हुआ / read)
          • कृ + क्त = कृतः / कृता / कृतम् (किया हुआ / done)
      • क्तवतु (ktavatu):
        • अर्थ: भूतकालिक कर्तृवाच्य क्रिया (Past Participle Active). ‘कर चुका’, ‘गया’।
        • नियम: धातु के बाद ‘तवत्’ जुड़ता है। तीनों लिंगों में रूप चलते हैं।
        • संस्कृत उदाहरण:
          • पठ् + क्तवतु = पठितवान् / पठितवती / पठितवत् (पढ़ चुका था / had read)
          • गम् + क्तवतु = गतवान् / गतवती / गतवत् (जा चुका था / had gone)
          • हस् + क्तवतु = हसितवान् / हसितवती / हसितवत् (हँस चुका था / had laughed)
  2. तद्धित प्रत्यय (Taddhit Pratyayas): जो प्रत्यय संज्ञा (noun), विशेषण (adjective) या सर्वनाम (pronoun) के अंत में जुड़कर नए संज्ञा या विशेषण शब्द बनाते हैं, उन्हें तद्धित प्रत्यय कहते हैं। इनसे बने शब्द ‘तद्धितांत’ कहलाते हैं।
    • प्रमुख तद्धित प्रत्यय (Major Taddhit Pratyayas):
      • मतुप् (matup):
        • अर्थ: ‘वाला’, ‘युक्त’ (Having / Possessing). ‘वाला’ या ‘से युक्त’ अर्थ में।
        • नियम: अकारान्त/आकारान्त शब्दों के बाद ‘मत्’ और इकारान्त/उकारान्त/रेफान्त शब्दों के बाद ‘वत्’ जुड़ता है। तीनों लिंगों में रूप चलते हैं।
        • संस्कृत उदाहरण:
          • धन + मतुप् = धनवान् / धनवती / धनवत् (धन वाला / wealthy)
          • ज्ञान + मतुप् = ज्ञानवान् / ज्ञानवती / ज्ञानवत् (ज्ञान वाला / knowledgeable)
          • बुद्धि + मतुप् = बुद्धिमत् / बुद्धिमती / बुद्धिमत् (बुद्धि वाला / intelligent) (यहाँ ‘इ’ से अंत होने पर ‘वत्’ या ‘मत्’ दोनों आ सकते हैं, नियमानुसार ‘मत्’ की अधिक संभावना)
          • श्री + मतुप् = श्रीमान् / श्रीमती / श्रीमत् (श्री वाला / prosperous)
      • इन् (in):
        • अर्थ: ‘वाला’, ‘युक्त’ (Having / Possessing).
        • नियम: शब्दों के बाद ‘इन्’ जुड़ता है, जिससे पुल्लिंग में ‘ई’ (जैसे गुणी) और स्त्रीलिंग में ‘इनी’ (जैसे गुणनी) रूप बनता है।
        • संस्कृत उदाहरण:
          • गुण + इन् = गुणी (गुण वाला / virtuous)
          • धन + इन् = धनी (धन वाला / wealthy)
          • बल + इन् = बली (बल वाला / strong)
      • ठक् (ṭhak):
        • अर्थ: ‘संबंधी’, ‘इति’ (Related to, thus).
        • नियम: शब्दों के बाद ‘इक’ जुड़ता है। शब्द के पहले स्वर में वृद्धि हो सकती है।
        • संस्कृत उदाहरण:
          • धर्म + ठक् = धार्मिकः (धर्म से संबंधित / religious)
          • लोक + ठक् = लौकिकः (लोक से संबंधित / worldly)
          • दिन + ठक् = दैनिकः (दिन से संबंधित / daily)
      • त्व (tva):
        • अर्थ: ‘भाव’, ‘पन’ (Ness / Hood). नपुंसक लिंग एकवचन में ‘त्वम्’।
        • नियम: शब्दों के बाद ‘त्व’ जुड़ता है, जिससे भाववाचक संज्ञा बनती है।
        • संस्कृत उदाहरण:
          • मनुष्य + त्व = मनुष्यत्वम् (मनुष्यता / humanity)
          • देव + त्व = देवत्वम् (देवतापन / divinity)
          • गुरु + त्व = गुरुत्वम् (गुरुता / gravity/importance)
      • तल् (tal):
        • अर्थ: ‘भाव’, ‘पन’। स्त्रीलिंग में ‘ता’।
        • नियम: शब्दों के बाद ‘ता’ जुड़ता है, जिससे भाववाचक संज्ञा बनती है।
        • संस्कृत उदाहरण:
          • मनुष्य + तल् = मनुष्यता (मनुष्यता / humanity)
          • देव + तल् = देवता (देवता / deity)
          • लघु + तल् = लघुता (लघुता / smallness)
  3. स्त्री प्रत्यय (Strī Pratyayas): जो प्रत्यय पुल्लिंग शब्दों के अंत में जुड़कर उन्हें स्त्रीलिंग (feminine) बनाते हैं, उन्हें स्त्री प्रत्यय कहते हैं।
    • प्रमुख स्त्री प्रत्यय (Major Strī Pratyayas):
      • टाप् (ṭāp):
        • अर्थ: पुल्लिंग शब्द को स्त्रीलिंग बनाने के लिए।
        • नियम: अकारान्त पुल्लिंग शब्दों के बाद ‘आ’ जुड़ता है।
        • संस्कृत उदाहरण:
          • अश्व + टाप् = अश्वा (घोड़ी / mare)
          • बालक + टाप् = बालिका (लड़की / girl)
          • शिष्य + टाप् = शिष्या (शिष्या / female student)
      • ङीप् (ṅīp):
        • अर्थ: पुल्लिंग शब्द को स्त्रीलिंग बनाने के लिए।
        • नियम: नान्तात्, रेफान्तात्, प्रत्ययान्तात् और कुछ विशेष शब्दों के बाद ‘ई’ जुड़ता है।
        • संस्कृत उदाहरण:
          • कुमार + ङीप् = कुमारी (कुमारी / young girl)
          • नर्तक + ङीप् = नर्तकी (नर्तकी / female dancer)
          • श्रीमत् + ङीप् = श्रीमती (श्रीमती / Mrs.)
          • ब्राह्मण + ङीप् = ब्राह्मणी (ब्राह्मणी / Brahmin woman)

4. परीक्षा के लिए महत्व (Importance for Exams)

एमपी बोर्ड की 12वीं कक्षा की संस्कृत परीक्षाओं में प्रत्ययों से संबंधित प्रश्न निश्चित रूप से पूछे जाते हैं। इन पर पकड़ बनाने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें:

  • प्रत्ययों के प्रकार और उनके अर्थों को समझें: कृत्, तद्धित और स्त्री प्रत्ययों की परिभाषा और उनके कार्य को समझें।
  • प्रत्येक प्रत्यय के नियम याद करें: ‘क्त्वा’, ‘ल्यप्’, ‘तुमुन्’, ‘तव्यत्’, ‘अनीयर्’, ‘क्त’, ‘क्तवतु’, ‘मतुप्’, ‘इन्’, ‘ठक्’, ‘त्व’, ‘तल्’, ‘टाप्’, ‘ङीप्’ जैसे प्रमुख प्रत्ययों के जुड़ने के नियम और उनसे बनने वाले शब्दों को कंठस्थ करें।
  • उदाहरणों पर अभ्यास करें: दिए गए उदाहरणों को बार-बार लिखकर अभ्यास करें और नए शब्दों में प्रत्यय पहचानने या जोड़ने का प्रयास करें।
  • विग्रह/संयोजन का अभ्यास: प्रत्यय लगे हुए शब्दों का मूल धातु/शब्द और प्रत्यय अलग करना (विग्रह) सीखें और मूल धातु/शब्द में प्रत्यय जोड़कर नया शब्द बनाना (संयोजन) सीखें।
  • नियमित पुनरावृत्ति (Regular Revision): प्रत्ययों के नियमों और प्रयोगों की नियमित रूप से पुनरावृत्ति करें ताकि वे स्मृति में बने रहें।

इन बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करके आप संस्कृत में प्रत्ययों के प्रश्नों को प्रभावी ढंग से हल कर सकते हैं और परीक्षा में उत्कृष्ट अंक प्राप्त कर सकते हैं।

प्रत्यय पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) – संस्कृत

संस्कृत व्याकरण में ‘प्रत्यय’ कहाँ जुड़ते हैं?
a) धातु या शब्द के आरंभ में
b) धातु या शब्द के मध्य में
c) धातु या शब्द के अंत में
d) वाक्य के आरंभ में
उत्तर: c) धातु या शब्द के अंत में

जो प्रत्यय धातु के अंत में जुड़कर संज्ञा, विशेषण या अव्यय बनाते हैं, वे क्या कहलाते हैं?
a) तद्धित प्रत्यय
b) स्त्री प्रत्यय
c) कृत् प्रत्यय
d) अव्यय प्रत्यय
उत्तर: c) कृत् प्रत्यय

‘पठित्वा’ पद में कौन सा कृत् प्रत्यय है?
a) ल्यप्
b) तुमुन्
c) क्त्वा
d) तव्यत्
उत्तर: c) क्त्वा

‘गत्वा’ का अर्थ क्या है?
a) जाता है
b) जाएगा
c) जाकर
d) जाना चाहिए
उत्तर: c) जाकर

जब धातु से पहले उपसर्ग लगा हो और ‘करके’ अर्थ में प्रत्यय का प्रयोग करना हो, तो किस प्रत्यय का उपयोग होता है?
a) क्त्वा
b) तुमुन्
c) ल्यप्
d) क्त
उत्तर: c) ल्यप्

‘आगम्य’ इस पद में कौन सा प्रत्यय है?
a) क्त्वा
b) तुमुन्
c) ल्यप्
d) अनीयर्
उत्तर: c) ल्यप्

‘के लिए’ या ‘हेतु’ अर्थ बताने के लिए किस कृत् प्रत्यय का प्रयोग होता है?
a) क्त्वा
b) ल्यप्
c) तुमुन्
d) क्तवतु
उत्तर: c) तुमुन्

‘पठितुम्’ का अर्थ क्या है?
a) पढ़ चुका
b) पढ़ने के लिए
c) पढ़ना चाहिए
d) पढ़ता हुआ
उत्तर: b) पढ़ने के लिए

‘कर्तव्यम्’ पद में कौन सा कृत् प्रत्यय है?
a) तुमुन्
b) अनीयर्
c) तव्यत्
d) क्त
उत्तर: c) तव्यत्

‘चाहिए’ या ‘योग्य’ अर्थ में ‘तव्यत्’ प्रत्यय के समान ही अर्थ देने वाला प्रत्यय कौन सा है?
a) क्तवतु
b) ल्यप्
c) अनीयर्
d) क्त्वा
उत्तर: c) अनीयर्

‘दर्शनीयः’ में कौन सा प्रत्यय है?
a) क्त
b) अनीयर्
c) तुमुन्
d) तव्यत्
उत्तर: b) अनीयर्

‘गतः’ पद में कौन सा कृत् प्रत्यय है?
a) क्त्वा
b) तुमुन्
c) क्त
d) क्तवतु
उत्तर: c) क्त

‘पठितवान्’ किस प्रकार के वाच्य की भूतकालिक क्रिया दर्शाता है?
a) कर्मवाच्य
b) भाववाच्य
c) कर्तृवाच्य
d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: c) कर्तृवाच्य

जो प्रत्यय संज्ञा, विशेषण या सर्वनाम के अंत में जुड़कर नए संज्ञा या विशेषण शब्द बनाते हैं, उन्हें क्या कहते हैं?
a) कृत् प्रत्यय
b) स्त्री प्रत्यय
c) तद्धित प्रत्यय
d) उपसर्ग
उत्तर: c) तद्धित प्रत्यय

‘धनवान्’ में कौन सा तद्धित प्रत्यय है?
a) इन्
b) ठक्
c) त्व
d) मतुप्
उत्तर: d) मतुप्

‘धार्मिकः’ में ‘धर्म’ शब्द के साथ कौन सा तद्धित प्रत्यय जुड़ता है?
a) मतुप्
b) इन्
c) ठक्
d) त्व
उत्तर: c) ठक्

‘मनुष्यत्वम्’ में कौन सा तद्धित प्रत्यय है?
a) तल्
b) ठक्
c) त्व
d) मतुप्
उत्तर: c) त्व

‘लघुता’ में कौन सा तद्धित प्रत्यय है?
a) त्व
b) तल्
c) इन्
d) ठक्
उत्तर: b) तल्

‘बालिका’ पद में कौन सा स्त्री प्रत्यय है?
a) ङीप्
b) टाप्
c) इन्
d) त्व
उत्तर: b) टाप्

‘नर्तकी’ पद में कौन सा स्त्री प्रत्यय है?
a) टाप्
b) ङीप्
c) तल्
d) मतुप्
उत्तर: b) ङीप्

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