कक्षा 10 तुलसीदास राम लक्षमण परशुराम संवाद : MP Board Class 10th Hindi Ram Lakshaman Parshuram Sanvad

MP Board Class 10th Hindi Ram Lakshaman Parshuram Sanvad :

तुलसीदास : जीवन-परिचय

तुलसीदास का जन्म सन् 1532 में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर गाँव में हुआ था। कुछ विद्वानों के अनुसार उनका जन्मस्थान एटा जिले का सोरों भी माना जाता है। तुलसी का बचपन अत्यंत संघर्षपूर्ण रहा। जीवन के प्रारंभिक वर्षों में ही उनके माता-पिता से बिछोह हो गया। कहा जाता है कि गुरुकृपा से उन्हें रामभक्ति का मार्ग प्राप्त हुआ। वे मानव-मूल्यों के उपासक कवि थे। सन् 1623 में काशी में उनका देहावसान हुआ।

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रामभक्ति और साहित्यिक योगदान

रामभक्ति परंपरा में तुलसीदास का स्थान अतुलनीय है। उनकी रचनाएँ रामभक्ति और मानवीय आदर्शों का सुंदर समन्वय प्रस्तुत करती हैं। उनकी प्रमुख रचना रामचरितमानस उनकी अनन्य रामभक्ति और सृजनात्मक कौशल का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस महाकाव्य में राम को मानवीय मर्यादाओं और आदर्शों के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है, जिनके माध्यम से तुलसी ने नीति, स्नेह, शील, विनय, और त्याग जैसे उदात्त आदर्शों को प्रतिष्ठित किया। रामचरितमानस उत्तरी भारत की जनता में अत्यंत लोकप्रिय है।

तुलसी की अन्य प्रमुख रचनाएँ हैं:

  • कवितावली
  • गीतावली
  • दोहावली
  • कृष्णगीतावली
  • विनयपत्रिका

भाषा और काव्य-शैली

तुलसीदास ने अवधी और ब्रजभाषा दोनों पर समान अधिकार रखा। रामचरितमानस की रचना अवधी में की गई, जबकि विनयपत्रिका और कवितावली ब्रजभाषा में रचित हैं। उनकी रचनाओं में उस समय प्रचलित सभी काव्य रूपों का समावेश देखा जा सकता है।

  • रामचरितमानस: इसका मुख्य छंद चौपाई है, जिसमें बीच-बीच में दोहे, सोरठे, हरिगीतिका, और अन्य छंद पिरोए गए हैं। यह प्रबंध काव्य का उत्कृष्ट उदाहरण है।
  • विनयपत्रिका: गेय पदों में रचित, यह भक्ति और विनय भाव की उत्कृष्ट रचना है।
  • कवितावली: इसमें सवैया और कवित्त छंदों की छटा देखने को मिलती है।

तुलसी की रचनाओं में प्रबंध (महाकाव्य) और मुक्तक (स्वतंत्र रचनाएँ) दोनों प्रकार के काव्यों का सुंदर समन्वय है। उनकी रचनाएँ सरल, सहज, और भावपूर्ण होने के साथ-साथ गहन दार्शनिक और नैतिक मूल्यों को भी व्यक्त करती हैं।

साहित्यिक विशेषताएँ

  • रामभक्ति: तुलसी की रचनाएँ राम के प्रति अनन्य भक्ति और उनके आदर्शों को स्थापित करती हैं।
  • मानवीय मूल्य: नीति, स्नेह, शील, और त्याग जैसे मूल्यों का चित्रण।
  • भाषा की सरसता: अवधी और ब्रजभाषा का सहज और मधुर प्रयोग।
  • छंद और अलंकार: चौपाई, दोहे, सवैया, और कवित्त जैसे छंदों के साथ उपमा, रूपक, और अनुप्रास जैसे अलंकारों का समन्वय।
  • लोकप्रियता: रामचरितमानस की लोकप्रियता इसे जन-जन का काव्य बनाती है।

तुलसीदास: रामचरितमानस (बालकांड)
संदर्भ

यह अंश राम लक्षमण परशुराम संवाद तुलसीदास के रामचरितमानस के बालकांड से लिया गया है, जिसमें सीता स्वयंवर के प्रसंग का वर्णन है। इस प्रसंग में राम द्वारा शिव-धनुष भंग किए जाने की खबर सुनकर मुनि परशुराम क्रोधित होकर जनकपुर पहुँचते हैं। शिव-धनुष को खंडित देखकर उनका गुस्सा और भड़क उठता है। इस बीच राम, लक्ष्मण, और परशुराम के बीच संवाद होता है, जिसमें लक्ष्मण की व्यंग्यपूर्ण और वीर रस से पूर्ण उक्तियाँ प्रमुख हैं। राम की विनम्रता, विश्वामित्र के समझाने, और राम की शक्ति की परीक्षा के बाद परशुराम का क्रोध शांत होता है।

विशेषताएँ

  1. वीर रस और व्यंग्योक्ति:
    इस प्रसंग की सबसे बड़ी विशेषता लक्ष्मण की वीर रस से पगी व्यंग्योक्तियाँ हैं। परशुराम के क्रोध भरे वचनों का जवाब लक्ष्मण अपनी चतुर और व्यंग्यपूर्ण शैली में देते हैं, जो उनके साहस और बुद्धिमत्ता को दर्शाता है।
  2. राम की विनम्रता:
    राम इस प्रसंग में विनय और शील का परिचय देते हैं। परशुराम के क्रोध के बावजूद वे शांत और संयमित रहते हैं, जो उनकी मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि को उजागर करता है।
  3. विश्वामित्र की मध्यस्थता:
    विश्वामित्र परशुराम को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो उनकी बुद्धिमत्ता और संतुलित व्यक्तित्व को दर्शाता है।
  4. परशुराम का चरित्र:
    परशुराम का क्रोध और शिव-धनुष के प्रति उनकी निष्ठा उनके भगवान शिव के प्रति भक्ति और क्षत्रिय-विरोधी स्वभाव को प्रकट करती है। राम की शक्ति की परीक्षा के बाद उनका क्रोध शांत होना उनके चरित्र की गहराई को दर्शाता है।
  5. भाषा और शैली:
    • अवधी भाषा: तुलसीदास की अवधी इस प्रसंग में सरस, सहज, और भावपूर्ण है।
    • छंद: चौपाई और दोहों का प्रयोग, जो रामचरितमानस की विशेषता है।
    • अलंकार: व्यंग्योक्ति, उपमा, और अनुप्रास जैसे अलंकार लक्ष्मण के संवादों को प्रभावशाली बनाते हैं।
    • व्यंजना शैली: लक्ष्मण की उक्तियाँ व्यंजना से भरी हैं, जो उनके कथन को सूक्ष्म और प्रभावी बनाती हैं।

साहित्यिक महत्व

  • वीर रस का समन्वय: लक्ष्मण की वीरता और व्यंग्य इस प्रसंग को जीवंत बनाते हैं, जो वीर रस के साथ हास्य और व्यंग्य का सुंदर मिश्रण प्रस्तुत करता है।
  • राम की मर्यादा: राम की विनम्रता और शक्ति का प्रदर्शन उनके मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरूप को और सशक्त करता है।
  • लोकधर्मिता: तुलसीदास ने इस प्रसंग में मानवीय भावनाओं (क्रोध, विनय, साहस) को इस तरह प्रस्तुत किया है कि यह सामान्य जन के लिए भी प्रासंगिक है।
  • नाटकीयता: संवादों में नाटकीय तत्व इस प्रसंग को रोचक और जीवंत बनाते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • प्रसंग: सीता स्वयंवर में शिव-धनुष भंग होने पर परशुराम का क्रोध और राम-लक्ष्मण के साथ संवाद।
  • मुख्य पात्र: राम, लक्ष्मण, परशुराम, और विश्वामित्र।
  • भाव: वीर रस, व्यंग्य, और भक्ति भाव का समन्वय।
  • उद्देश्य: राम की शक्ति, विनम्रता, और मर्यादा को स्थापित करना।

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
संदर्भ

यह अंश तुलसीदास के रामचरितमानस के बालकांड से लिया गया है, जिसमें सीता स्वयंवर के दौरान राम द्वारा शिव-धनुष भंग किए जाने के बाद मुनि परशुराम के क्रोध और राम-लक्ष्मण के साथ उनके संवाद का वर्णन है। परशुराम का क्रोध शिव-धनुष के प्रति उनकी निष्ठा और भक्ति को दर्शाता है, जबकि लक्ष्मण की व्यंग्यपूर्ण उक्तियाँ और राम की विनम्रता इस प्रसंग को नाटकीय और रोचक बनाती हैं। विश्वामित्र की मध्यस्थता और राम की शक्ति की परीक्षा के बाद परशुराम का क्रोध शांत होता है।

मूल पाठ

अरिकरनी करि करिअ लराई।। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
न त मारे जैहहिं सब राजा।। बोले परसुध अवमाने।।
कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।। नाथ संभुधनु भंजनिहारा।।
होइहि केउ एक दास तुम्हारा।। आयेसु काह कहिअ किन मोही।।
सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।। सेवकु सो जो करै सेवकाई।।
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा।। सो बिलगाउ बिहाइ समाजा।।
सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने।। बहु धनुही तोरी लरिकाईं।।
येहि धनु पर ममता केहि हेतू।। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

भावार्थ

  1. परशुराम का क्रोध:
    परशुराम क्रोध में कहते हैं कि जो शिव-धनुष को तोड़ेगा, वह उनके लिए सहस्रबाहु जैसे शत्रु के समान है। वे धमकी देते हैं कि यदि वह व्यक्ति नहीं मारा गया, तो सभी राजा मारे जाएँगे। वे विश्वामित्र से कहते हैं कि उन्होंने कभी इतना क्रोध नहीं किया और पूछते हैं कि धनुष तोड़ने वाला उनका कौन-सा दास है। वे राम को चुनौती देते हैं कि जिसने धनुष तोड़ा, वह सामने आए, अन्यथा सारा समाज नष्ट हो जाएगा।
  2. लक्ष्मण की व्यंग्योक्ति:
    परशुराम के क्रोध भरे वचनों को सुनकर लक्ष्मण मुस्कुराते हैं और व्यंग्य करते हैं कि उन्होंने बचपन में कई धनुष तोड़े हैं, फिर इस धनुष के प्रति इतनी ममता क्यों? लक्ष्मण परशुराम को “नृपबालक” (राजकुमार) कहकर और उनके क्रोध को काल (मृत्यु) के वश में बताकर तंज कसते हैं।
  3. परशुराम का जवाब:
    परशुराम लक्ष्मण की बात सुनकर और क्रोधित होकर कहते हैं कि लक्ष्मण को यह नहीं समझ है कि वे किसके बारे में बोल रहे हैं। वे शिव-धनुष को “त्रिपुरारि (शिव) का धनुष” बताते हैं, जो पूरे संसार में प्रसिद्ध है, और इसका अपमान असहनीय है।

साहित्यिक विशेषताएँ

  1. रस:
    • वीर रस: परशुराम का क्रोध और लक्ष्मण की नन्हीं चुनौती वीर रस को प्रबल करते हैं।
    • हास्य रस: लक्ष्मण की व्यंग्यपूर्ण उक्तियाँ हास्य का पुट देती हैं।
  2. अलंकार:
    • व्यंग्योक्ति: लक्ष्मण की उक्तियाँ, जैसे “बहु धनुही तोरी लरिकाईं” और “येहि धनु पर ममता केहि हेतू”, व्यंग्य और तंज से भरी हैं।
    • उपमा: परशुराम द्वारा धनुष तोड़ने वाले की तुलना सहस्रबाहु से।
    • अनुप्रास: “सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही” में ध्वनि की पुनरावृत्ति।
  3. भाषा:
    • अवधी: तुलसीदास की अवधी भाषा सरस, सहज, और भावपूर्ण है।
    • संवाद शैली: संवादों में नाटकीयता और जीवंतता है, जो पाठक को बाँधे रखती है।
  4. छंद:
    • चौपाई: इस अंश का मुख्य छंद चौपाई है, जो रामचरितमानस की विशेषता है।
    • दोहा: बीच-बीच में दोहे संवाद को गति और प्रभाव देते हैं।
  5. विशेषता:
    • लक्ष्मण की वाक्चातुर्य: लक्ष्मण की व्यंग्यपूर्ण उक्तियाँ उनकी बुद्धिमत्ता और साहस को दर्शाती हैं।
    • परशुराम का चरित्र: उनका क्रोध और शिव-भक्ति उनके क्षत्रिय-विरोधी स्वभाव और भक्ति भाव को उजागर करती है।
    • राम की अनुपस्थिति में भी उपस्थिति: हालाँकि इस अंश में राम प्रत्यक्ष रूप से बोलते नहीं दिखते, उनकी शक्ति और मर्यादा का आभास परशुराम के क्रोध और लक्ष्मण के आत्मविश्वास में झलकता है।

प्रमुख बिंदु

  • प्रसंग: सीता स्वयंवर में शिव-धनुष भंग होने पर परशुराम का क्रोध और राम-लक्ष्मण के साथ संवाद।
  • मुख्य पात्र: परशुराम, लक्ष्मण, और विश्वामित्र (राम पृष्ठभूमि में उपस्थित हैं)।
  • भाव: वीर रस, व्यंग्य, और भक्ति भाव का समन्वय।
  • उद्देश्य: राम की शक्ति और मर्यादा को स्थापित करना, साथ ही लक्ष्मण की वाक्पटुता और साहस को उजागर करना।

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद (जारी)

संदर्भ

यह अंश तुलसीदास के रामचरितमानस के बालकांड से लिया गया है, जो सीता स्वयंवर में राम द्वारा शिव-धनुष भंग किए जाने के बाद मुनि परशुराम के क्रोध और राम-लक्ष्मण के साथ संवाद का हिस्सा है। इस अंश में परशुराम का क्रोध और लक्ष्मण की व्यंग्यपूर्ण उक्तियाँ इस प्रसंग को नाटकीय और वीर रस से परिपूर्ण बनाती हैं। लक्ष्मण की वाक्पटुता और परशुराम की प्रतिक्रिया इस संवाद की विशेषता है।

मूल पाठ

लखन कहा हसि हमरे जाना। का छति लाभु जून धनु तोरें।
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। बोले चितै परसु की ओरा।
बालकु बोलि बधौं नहि तोही। बाल ब्रह्मचारी अति कोही।
सुनहु देव सब धनुष समाना। देखा राम नयन के भोरें।
मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।
केवल मुनि जड़ जानहि मोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।
सहसबाहु भुज छेद निहारा। परसु बिलोकु महीप कुमारा।

मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।

बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू।
तरजनी देखि मरि जाहीं। सरासन बाना।
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। देखि कुठारु हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।
मारतहू पापरिअ तुम्हारें। सुर महिसुर हरिजन अरु गाई।
अपकीरति हारें। बधें पापु ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।

जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर।

भावार्थ

  1. लक्ष्मण की व्यंग्योक्ति:
    लक्ष्मण हँसते हुए परशुराम से कहते हैं कि पुराना धनुष टूटने से क्या हानि-लाभ हुआ? राम ने तो इसे केवल छुआ और यह टूट गया, इसमें राम का कोई दोष नहीं। वे परशुराम के क्रोध पर व्यंग्य करते हैं कि क्या सभी धनुष एक समान नहीं हैं? लक्ष्मण परशुराम को “सठ” (मूर्ख) कहकर तंज कसते हैं कि वे उनके स्वभाव को नहीं जानते। वे कहते हैं कि परशुराम को केवल मुनि समझना भूल है, क्योंकि वे विश्वविख्यात क्षत्रियकुल के शत्रु हैं, जिन्होंने अपनी भुजबल से पृथ्वी को कई बार राजविहीन किया और सहस्रबाहु के भुज काटे।
  2. परशुराम का क्रोध:
    परशुराम क्रोधित होकर कहते हैं कि वे लक्ष्मण को केवल बालक और ब्रह्मचारी होने के कारण नहीं मार रहे। वे धमकी देते हैं कि उनका परशु (कुल्हाड़ी) गर्भ के शिशुओं को भी नष्ट करने में सक्षम है। वे राम को देखकर कहते हैं कि वह धनुष तोड़ने वाले को सामने लाएँ, अन्यथा माता-पिता को शोक में डालने वाला परिणाम भुगतना पड़ेगा।
  3. लक्ष्मण की प्रतिक्रिया:
    लक्ष्मण फिर से मृदु (नरम) किंतु व्यंग्यपूर्ण बाणी में कहते हैं कि परशुराम स्वयं को महान योद्धा मानते हैं और बार-बार अपनी कुल्हाड़ी दिखाकर पहाड़ को उड़ाने की बात करते हैं। वे तंज कसते हैं कि यहाँ कोई “कुम्हड़बतिया” (कमजोर व्यक्ति) नहीं है। लक्ष्मण कहते हैं कि उनके कुल में कोई परशुराम की कुल्हाड़ी से डरता नहीं, और यदि वे देवता, ब्राह्मण, हरिजन, या गाय को मारते हैं, तो यह पाप होगा। लक्ष्मण परशुराम के शब्दों को वज्र के समान कठोर बताते हैं और कहते हैं कि धनुष-बाण और कुल्हाड़ी व्यर्थ हैं। अंत में, वे क्षमा माँगते हुए कहते हैं कि यदि कुछ अनुचित कहा हो, तो धीर मुनि उसे क्षमा करें।
  4. परशुराम का जवाब:
    परशुराम लक्ष्मण की बात सुनकर और क्रोधित होकर गंभीर स्वर में बोलते हैं (अंश यहाँ समाप्त होता है, आगे का संवाद अगले अंश में होगा)।

साहित्यिक विशेषताएँ

  1. रस:
    • वीर रस: परशुराम का क्रोध और लक्ष्मण की निर्भीकता वीर रस को प्रबल करते हैं।
    • हास्य रस: लक्ष्मण की व्यंग्यपूर्ण उक्तियाँ, जैसे “कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं” और “उड़ावन फूँकि पहारू”, हास्य का पुट देती हैं।
  2. अलंकार:
    • व्यंग्योक्ति: लक्ष्मण की उक्तियाँ, जैसे “पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु” और “कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं”, व्यंग्य से परिपूर्ण हैं।
    • उपमा: परशुराम के शब्दों को “कोटि कुलिस सम” कहना।
    • अनुप्रास: “बालकु बोलि बधौं नहि तोही” और “पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु” में ध्वनि की पुनरावृत्ति।
  3. भाषा:
    • अवधी: तुलसीदास की अवधी भाषा सरस, सहज, और संवादमय है, जो पात्रों के चरित्र को जीवंत करती है।
    • संवाद शैली: संवादों में नाटकीयता और तीक्ष्णता है, जो पाठक को बाँधे रखती है।
  4. छंद:
    • चौपाई: इस अंश का मुख्य छंद चौपाई है, जो रामचरितमानस की विशेषता है।
    • दोहा: संवादों को गति और समापन देने के लिए दोहों का प्रयोग।
  5. विशेषता:
    • लक्ष्मण की वाक्चातुर्य: लक्ष्मण की व्यंग्यपूर्ण और साहसपूर्ण उक्तियाँ उनकी बुद्धिमत्ता और निर्भीकता को दर्शाती हैं।
    • परशुराम का चरित्र: उनका क्रोध, शिव-भक्ति, और क्षत्रिय-विरोधी स्वभाव उनके चरित्र की गहराई को उजागर करता है।
    • नाटकीयता: संवादों में नाटकीय तत्व इस प्रसंग को जीवंत और रोचक बनाते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • प्रसंग: सीता स्वयंवर में शिव-धनुष भंग होने पर परशुराम का क्रोध और लक्ष्मण के साथ संवाद।
  • मुख्य पात्र: परशुराम, लक्ष्मण (राम पृष्ठभूमि में उपस्थित हैं)।
  • भाव: वीर रस, हास्य, और व्यंग्य का समन्वय।
  • उद्देश्य: लक्ष्मण की वाक्पटुता और साहस को उजागर करना, साथ ही परशुराम के क्रोध और शिव-भक्ति को दर्शाना।

प्रश्न-अभ्यास: राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

  1. परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?
    लक्ष्मण ने परशुराम के क्रोध का जवाब देते हुए निम्नलिखित तर्क दिए:
    • धनुष पुराना था, जिसके टूटने से कोई विशेष हानि या लाभ नहीं हुआ (“का छति लाभु जून धनु तोरें”)।
    • राम ने धनुष को केवल छुआ और वह टूट गया, इसमें राम का कोई दोष नहीं (“छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू”)।
    • लक्ष्मण व्यंग्य करते हैं कि उन्होंने बचपन में कई धनुष तोड़े हैं, तो इस धनुष के प्रति इतनी ममता क्यों (“बहु धनुही तोरी लरिकाईं, येहि धनु पर ममता केहि हेतू”)।
    • वे कहते हैं कि सभी धनुष एक समान हैं, तो इस धनुष के टूटने पर इतना क्रोध क्यों (“सुनहु देव सब धनुष समाना”)।
  2. परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं, उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
    • राम का स्वभाव: राम इस प्रसंग में विनम्र, शांत, और संयमित हैं। परशुराम के क्रोध के बावजूद वे कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं देते, जो उनकी मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि को दर्शाता है। उनकी चुप्पी और संयम उनके धैर्य, शील, और परिपक्वता को प्रकट करते हैं। वे परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए विश्वामित्र को मध्यस्थता करने देते हैं, जो उनकी कूटनीतिक बुद्धि को भी दिखाता है।
    • लक्ष्मण का स्वभाव: लक्ष्मण निर्भीक, वाक्पटु, और व्यंग्यप्रिय हैं। वे परशुराम के क्रोध का जवाब तीखे और व्यंग्यपूर्ण शब्दों से देते हैं, जो उनके साहस और बुद्धिमत्ता को दर्शाता है। उनकी उक्तियाँ जैसे “कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं” और “पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु” उनकी चतुराई और हास्यप्रियता को उजागर करती हैं। साथ ही, वे राम के प्रति पूर्ण निष्ठा और रक्षा की भावना रखते हैं।
  3. लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
    मुझे सबसे अच्छा अंश: “बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी। पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू।”
    संवाद शैली में अपने शब्दों में:
    लक्ष्मण (मुस्कुराते हुए, नरम स्वर में): अहो मुनिवर, आप तो स्वयं को महान योद्धा मानते हैं! बार-बार अपनी कुल्हाड़ी दिखाकर क्या पहाड़ उड़ा देंगे?
    परशुराम (क्रोधित होकर): रे नन्हा राजकुमार, तुझे मेरे स्वभाव का पता नहीं! यह साधारण कुल्हाड़ी नहीं, यह क्षत्रियों का नाश करने वाली है!
    लक्ष्मण (व्यंग्य के साथ): यहाँ कोई कमजोर नहीं जो आपकी तर्जनी देखकर डर जाए। हम रघुकुल के हैं, आपकी कुल्हाड़ी से नहीं डरते!
  4. परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए:
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुलद्रोही। भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही। सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा। मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।
    परशुराम ने सभा में अपने बारे में निम्नलिखित बातें कहीं:
    • वे बाल ब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी स्वभाव के हैं।
    • वे विश्वविख्यात क्षत्रियकुल के शत्रु हैं।
    • अपनी भुजबल से उन्होंने पृथ्वी को कई बार राजविहीन किया और ब्राह्मणों को दान दिया।
    • उन्होंने सहस्रबाहु के भुज काटे थे।
    • उनकी कुल्हाड़ी (परशु) अत्यंत घातक है, जो गर्भ के शिशुओं को भी नष्ट कर सकती है।
    • वे राम को चेतावनी देते हैं कि वह कुछ ऐसा न करें जिससे उनके माता-पिता को शोक हो।
  5. लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं?
    लक्ष्मण ने परशुराम के संदर्भ में वीर योद्धा की निम्नलिखित विशेषताएँ बताईं:
    • परशुराम स्वयं को महान योद्धा मानते हैं (“महाभट मानी”)।
    • वे अपनी कुल्हाड़ी को इतना शक्तिशाली बताते हैं कि वह पहाड़ उड़ा सकती है (“चहत उड़ावन फूँकि पहारू”)।
    • उनकी धमकियाँ डरावनी हैं, पर लक्ष्मण व्यंग्य करते हैं कि यहाँ कोई कमजोर (“कुम्हड़बतिया”) नहीं जो उनकी तर्जनी से डर जाए।
    • लक्ष्मण यह भी संकेत करते हैं कि सच्चा योद्धा वही है जो पाप न करे, जैसे देवता, ब्राह्मण, हरिजन, या गाय को न मारना।
  6. साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
    यह कथन इस प्रसंग में राम और लक्ष्मण के स्वभाव के माध्यम से सटीक बैठता है। साहस और शक्ति एक योद्धा की पहचान हैं, लेकिन विनम्रता उसे महान बनाती है। राम इस प्रसंग में अपनी शक्ति को प्रदर्शित करने के बजाय विनम्र और संयमित रहते हैं, जो उनकी मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि को मजबूत करता है। दूसरी ओर, लक्ष्मण साहसी और वाक्पटु हैं, पर उनकी तीखी उक्तियाँ परशुराम के क्रोध को और भड़काती हैं। यदि लक्ष्मण के साहस के साथ विनम्रता होती, तो संवाद अधिक संतुलित हो सकता था। विनम्रता से साहस और शक्ति का प्रभाव बढ़ता है, क्योंकि यह दूसरों के प्रति सम्मान और संयम दर्शाता है, जो सामाजिक और नैतिक दृष्टि से आदर्श है।
  7. भाव स्पष्ट कीजिए:
    (क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी। पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू।
    भाव: लक्ष्मण परशुराम के क्रोध और उनकी कुल्हाड़ी की धमकी पर व्यंग्य करते हैं। वे नरम स्वर में, पर तंज के साथ कहते हैं कि परशुराम स्वयं को महान योद्धा मानते हैं और बार-बार अपनी कुल्हाड़ी दिखाकर डराने की कोशिश कर रहे हैं, जैसे कि वे इस कुल्हाड़ी से पहाड़ उड़ा देंगे। यह लक्ष्मण की निर्भीकता और वाक्चातुर्य को दर्शाता है।

(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं। देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।
भाव: लक्ष्मण व्यंग्य करते हैं कि यहाँ कोई कमजोर (“कुम्हड़बतिया”) नहीं है जो परशुराम की तर्जनी (उँगली) या कुल्हाड़ी देखकर डर जाए। वे कहते हैं कि परशुराम की धनुष-बाण और कुल्हाड़ी देखकर भी वे अभिमान के साथ बोल रहे हैं, क्योंकि रघुकुल में कोई उनकी धमकियों से डरता नहीं। यह उनके साहस और रघुकुल के गौरव को दर्शाता है।

  1. पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
    तुलसीदास की भाषा का सौंदर्य इस प्रसंग में उनकी अवधी भाषा की सरसता और संवादमय शैली में स्पष्ट झलकता है। उनकी भाषा सहज, सरल, और जनसामान्य के लिए ग्राह्य है, जो भावों को जीवंत बनाती है। लक्ष्मण की व्यंग्यपूर्ण उक्तियाँ, जैसे “कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं”, भाषा की चतुराई और हास्य को दर्शाती हैं। परशुराम के क्रोध भरे वचनों में गंभीरता और शक्ति का समन्वय है। तुलसी ने चौपाई और दोहे का उपयोग कर संवादों को लयबद्ध और प्रभावी बनाया। अलंकारों जैसे व्यंग्योक्ति, उपमा, और अनुप्रास का सुंदर प्रयोग भाषा को समृद्ध करता है। उनकी भाषा में लोकधर्मिता और नैतिक मूल्यों का समावेश है। संवादों की नाटकीयता पाठक को बाँधे रखती है। अवधी के मुहावरेदार शब्द, जैसे “फूँकि पहारू” और “तरजनी देखि”, भाषा को जीवंत और चित्रात्मक बनाते हैं। तुलसी की भाषा भक्ति, वीरता, और हास्य का अनूठा संगम प्रस्तुत करती है।
  2. इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
    इस प्रसंग में व्यंग्य का सौंदर्य लक्ष्मण की उक्तियों में प्रमुखता से उजागर होता है, जो परशुराम के क्रोध को हल्का करने के साथ-साथ उनके साहस को दर्शाता है।
    • उदाहरण 1: “बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी। पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू।”
      व्यंग्य: लक्ष्मण परशुराम के योद्धा होने के दावे और उनकी कुल्हाड़ी की धमकी पर तंज कसते हैं कि क्या वे इस कुल्हाड़ी से पहाड़ उड़ा देंगे। यह व्यंग्य परशुराम की अतिशयोक्ति को हास्यास्पद बनाता है।
    • उदाहरण 2: “इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।”
      व्यंग्य: लक्ष्मण कहते हैं कि यहाँ कोई कमजोर नहीं जो उनकी उँगली की धमकी से डर जाए, जिससे परशुराम का क्रोध हास्य का विषय बन जाता है।
      व्यंग्य का सौंदर्य इसकी सूक्ष्मता और चतुराई में है, जो लक्ष्मण की बुद्धिमत्ता को उजागर करता है और प्रसंग को रोचक बनाता है।
  3. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए:
    (क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
    अलंकार: अनुप्रास (ध्वनि की पुनरावृत्ति: “बालकु बोलि बधौं” में ‘ब’ की बार-बार आवृत्ति)।
    (ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
    अलंकार: उपमा (परशुराम के शब्दों की तुलना कोटि वज्रों से की गई है)।

रचना और अभिव्यक्ति: तुलसीदास (राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद)
प्रश्नों के उत्तर

11. “सामाजिक जीवन में क्रोध की ज़रूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।” आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।

पक्ष में मत:
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का यह कथन सही है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक नहीं होता; यह सकारात्मक भी हो सकता है, विशेषकर जब इसका उपयोग अन्याय के खिलाफ प्रतिकार या सकारात्मक बदलाव के लिए किया जाए। इस प्रसंग में परशुराम का क्रोध शिव-धनुष के प्रति उनकी भक्ति और क्षत्रिय अत्याचारों के प्रति उनके विरोध को दर्शाता है। यह क्रोध उनकी नैतिकता और धर्म की रक्षा के लिए प्रेरित करता है। सामाजिक जीवन में भी क्रोध तब सकारात्मक होता है जब यह अन्याय, शोषण, या अनैतिकता के खिलाफ आवाज उठाने का साधन बनता है। उदाहरण के लिए, स्वतंत्रता संग्राम में नेताओं का क्रोध औपनिवेशिक शासन के खिलाफ जनता को संगठित करने में सहायक था। क्रोध, यदि संयमित और उचित दिशा में हो, साहस और परिवर्तन का प्रतीक हो सकता है।

विपक्ष में मत:
हालाँकि, क्रोध का अक्सर दुरुपयोग होता है, जिससे यह विनाशकारी और नकारात्मक बन जाता है। इस प्रसंग में परशुराम का क्रोध अनियंत्रित और अतिशयोक्तिपूर्ण प्रतीत होता है, जो लक्ष्मण के व्यंग्य को जन्म देता है। सामाजिक जीवन में भी क्रोध अक्सर हिंसा, वैमनस्य, और संबंधों में दरार का कारण बनता है। उदाहरण के लिए, छोटी-छोटी बातों पर क्रोध करने से पारिवारिक या सामाजिक तनाव बढ़ता है। क्रोध के बजाय संवाद और धैर्य से समस्याओं का समाधान अधिक प्रभावी हो सकता है।

निष्कर्ष: क्रोध सकारात्मक हो सकता है यदि यह अन्याय के खिलाफ सही दिशा में और संयम के साथ व्यक्त हो, लेकिन इसका अनियंत्रित रूप हानिकारक है।

12. अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।
मेरे मित्र राहुल का स्वभाव अत्यंत सौम्य और सहयोगी है। वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहता है, जो उसकी उदारता को दर्शाता है। उसकी वाणी में मृदुता और हास्य का समन्वय है, जिससे वह किसी भी तनावपूर्ण स्थिति को हल्का कर देता है। वह साहसी है और कठिन परिस्थितियों में धैर्य बनाए रखता है। उसका अध्ययनशील स्वभाव और बौद्धिक चिंतन उसे गंभीर विषयों पर तार्किक ढंग से विचार करने में सक्षम बनाता है। हालाँकि, वह कभी-कभी अति भावुक हो जाता है, जो उसकी संवेदनशीलता को दर्शाता है। उसका यह स्वभाव उसे एक विश्वसनीय और प्रिय मित्र बनाता है।

13. दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए – इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।

शीर्षक: एक गाँव का सबक
एक गाँव में रमेश नाम का एक युवक रहता था, जो अपनी तलवारबाजी के लिए प्रसिद्ध था। वह गर्व से कहता, “इस गाँव में मुझसे बेहतर कोई तलवारबाज नहीं।” एक दिन गाँव में मेला लगा, जिसमें एक अनजान व्यक्ति, श्याम, ने तलवारबाजी प्रतियोगिता में भाग लिया। रमेश ने श्याम को साधारण समझकर उसका मजाक उड़ाया, “तुम्हारी पतली कलाई में क्या ताकत होगी?”

प्रतियोगिता शुरू हुई। श्याम ने अपनी तलवार इतनी कुशलता से चलाई कि रमेश को पहले ही चरण में हार का सामना करना पड़ा। गाँववाले हैरान थे। बाद में पता चला कि श्याम एक साधारण कारीगर था, जिसने वर्षों तक मेहनत से तलवारबाजी सीखी थी। रमेश ने शर्मिंदगी महसूस करते हुए श्याम से माफी माँगी और कहा, “मैंने तुम्हारी क्षमता को कम आँका। आज तुमने मुझे सिखाया कि किसी को उसकी बाहरी बनावट से नहीं आँकना चाहिए।”

सबक: दूसरों की क्षमताओं को कम आँकने से पहले उनकी मेहनत और कौशल को समझना चाहिए।

14. उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
एक बार स्कूल में मेरे एक सहपाठी को कुछ बड़े बच्चे बेवजह तंग कर रहे थे। वे उसका टिफिन छीनकर उसका मजाक उड़ा रहे थे। यह देखकर मुझे गुस्सा आया, क्योंकि वह मेरा दोस्त था और उसने कुछ गलत नहीं किया था। मैंने हिम्मत जुटाकर उन बड़े बच्चों से कहा, “यह गलत है, उसे परेशान करना बंद करो।” जब उन्होंने मेरी बात नहीं मानी, तो मैंने शिक्षक को इसकी सूचना दी। शिक्षक ने उन बच्चों को समझाया और मेरे दोस्त को राहत मिली। इस घटना ने मुझे सिखाया कि अन्याय के खिलाफ बोलना जरूरी है, भले ही वह छोटा-सा मामला हो।

15. अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
अवधी भाषा आज मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के मध्य और पूर्वी हिस्सों में बोली जाती है। यह निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रचलित है:

  • उत्तर प्रदेश: लखनऊ, रायबरेली, बाराबंकी, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, प्रयागराज, बहराइच, श्रावस्ती, गोंडा, फैजाबाद (अयोध्या), और अमेठी जैसे जिले।
  • बिहार: कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में, विशेषकर भोजपुरी भाषा के साथ मिश्रित रूप में।
  • मध्य प्रदेश: छतरपुर और पन्ना जैसे कुछ क्षेत्रों में अवधी का प्रभाव देखा जाता है।
  • दिल्ली और अन्य प्रवासी क्षेत्र: उत्तर प्रदेश से प्रवास करने वाले लोग अवधी को अपने साथ ले गए हैं।
    अवधी का साहित्यिक महत्व तुलसीदास की रामचरितमानस के कारण आज भी बना हुआ है, और यह लोकगीतों, काव्य, और रामलीला जैसे सांस्कृतिक आयोजनों में जीवित है।

पाठेतर सक्रियता

  1. तुलसी की अन्य रचनाएँ पुस्तकालय से लेकर पढ़ें।
    तुलसीदास की अन्य रचनाएँ जैसे विनयपत्रिका, कवितावली, गीतावली, दोहावली, और कृष्णगीतावली पुस्तकालय से प्राप्त करें। इन रचनाओं को पढ़कर तुलसी की भक्ति, भाषा, और छंदों की विविधता को समझें। विशेष रूप से विनयपत्रिका के गेय पदों और कवितावली के सवैया-कवित्त छंदों का अध्ययन करें।
  2. दोहा और चौपाई के वाचन का पारंपरिक ढंग।
    दोहा और चौपाई का वाचन लयबद्ध और संगीतमय ढंग से किया जाता है। इनके वाचन का अभ्यास करें:
    • लय: दोहे को राग भैरवी या मालकौंस में गाया जा सकता है, जो भक्ति और गंभीरता को व्यक्त करता है।
    • चौपाई: चौपाई को समान ताल में, धीमी और प्रभावशाली लय में गाया जाता है।
    • अभ्यास के लिए, इस अंश की चौपाइयों को किसी संगीत शिक्षक या ऑनलाइन संसाधनों की मदद से लय में गाने का प्रयास करें।
  3. रामलीला या रामकथा की नाट्य प्रस्तुति का अनुभव।
    पिछले वर्ष मैंने अपने गाँव में रामलीला देखी थी, जिसमें राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद का मंचन अत्यंत प्रभावशाली था। परशुराम का क्रोध और लक्ष्मण की व्यंग्यपूर्ण उक्तियाँ मंच पर जीवंत हो उठीं। परशुराम का किरदार लाल वस्त्र और नकली कुल्हाड़ी के साथ गंभीर स्वर में बोल रहा था, जबकि लक्ष्मण का किरदार हास्य और साहस का मिश्रण लिए था। दर्शकों की तालियों और हँसी ने माहौल को उत्साहपूर्ण बना दिया। यह अनुभव मुझे तुलसीदास की भाषा और उनके पात्रों की गहराई को समझने में सहायक रहा।
  4. इस प्रसंग की नाट्य प्रस्तुति करें।
    इस प्रसंग को नाट्य रूप में प्रस्तुत करने के लिए:
    • पात्र: परशुराम (क्रोधी मुनि), लक्ष्मण (वाक्पटु और साहसी), राम (विनम्र, पृष्ठभूमि में), और विश्वामित्र (मध्यस्थ)।
    • मंच सज्जा: सीता स्वयंवर का मंच, टूटा हुआ धनुष मध्य में, और सभा में अन्य राजा-महात्मा।
    • संवाद: लक्ष्मण की व्यंग्यपूर्ण पंक्तियों को हास्य और साहस के साथ प्रस्तुत करें। परशुराम के क्रोध को गंभीर स्वर और भारी आवाज में व्यक्त करें।
    • संगीत: पृष्ठभूमि में ढोलक और हारमोनियम का उपयोग कर भक्ति और नाटकीयता जोड़ी जा सकती है।
    • पोशाक: परशुराम के लिए साधु वेश, लक्ष्मण के लिए राजकुमार वेश, और राम के लिए सौम्य राजसी वेश।
  5. शब्द-संपदा: कोही, कुलिस, और अन्य शब्दों के बारे में कोश में जानकारी प्राप्त करें।
    • कोही: अर्थ – क्रोधी। कोश में यह शब्द संस्कृत मूल से लिया गया है, जो क्रोध करने वाले व्यक्ति को दर्शाता है। परशुराम के संदर्भ में यह उनके स्वभाव को व्यक्त करता है।
    • कुलिस: अर्थ – वज्र, कठोर हथियार। कोश में इसे इंद्र का शस्त्र बताया गया है। इस प्रसंग में लक्ष्मण परशुराम के शब्दों को “कोटि कुलिस सम” कहते हैं, जो उनकी तीक्ष्णता को दर्शाता है।
    • भंजनिहारा: अर्थ – तोड़ने वाला।
    • रिसाइ: अर्थ – क्रोध करना।
    • रिपु: अर्थ – शत्रु।
    • बिलगाउ: अर्थ – अलग करना, समाज से बहिष्कृत करना।
    • अवमाने: अर्थ – अपमान करना।
    • परसु: अर्थ – फरसा, कुल्हाड़ी की तरह का शस्त्र, परशुराम का प्रमुख हथियार।
    • महिदेव: अर्थ – ब्राह्मण।
    • बिलोक: अर्थ – देखकर।
    • अर्भक: अर्थ – बच्चा।
    • लरिकाईं: अर्थ – बचपन।

इन शब्दों की जानकारी हिंदी शब्दकोश (जैसे, डॉ. हरदेव बाहरी का शब्दकोश) या ऑनलाइन कोश (जैसे, शब्दकोश.com) से प्राप्त की जा सकती है।

शब्द-संपदा (संक्षेप में)

शब्दअर्थ
भंजनिहारातोड़ने वाला
रिसाइक्रोध करना
रिपुशत्रु
बिलगाउअलग करना, बहिष्कृत करना
अवमानेअपमान करना
परसुफरसा, कुल्हाड़ी (परशुराम का शस्त्र)
महिदेवब्राह्मण
बिलोकदेखकर
अर्भकबच्चा
लरिकाईंबचपन
कोहीक्रोधी
कुलिसवज्र, कठोर हथियार

शब्द-संपदा और यह भी जानें: राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
शब्द-संपदा

शब्दअर्थ
महाभटमहान योद्धा
महीधरती
कुठारुकुल्हाड़ा
कुम्हड़बतियाबहुत कमजोर, निर्बल व्यक्ति; काशीफल या कुम्हड़े का बहुत छोटा फल
तरजनीअँगूठे के पास की उँगली (तर्जनी उँगली)
कुलिसकठोर, वज्र
सरोषक्रोध सहित

यह भी जानें

  1. दोहा:
    दोहा एक लोकप्रिय मात्रिक छंद है, जिसमें चार पंक्तियाँ होती हैं।
    • पहली और तीसरी पंक्ति में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
    • दूसरी और चौथी पंक्ति में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
    • दोहा संक्षिप्त, प्रभावशाली, और भावपूर्ण होता है, जो रामचरितमानस में संवादों को गति और समापन प्रदान करता है।
  2. चौपाई:
    चौपाई भी एक मात्रिक छंद है, जिसमें चार पंक्तियाँ होती हैं, और प्रत्येक पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं।
    • यह छंद रामचरितमानस का मुख्य छंद है, जो कथानक को विस्तार और लय प्रदान करता है।
    • तुलसीदास ने चौपाई का उपयोग संवादों और कथन को सरस और नाटकीय बनाने के लिए किया।
  3. तुलसी से पहले अवधी में दोहा-चौपाई का प्रयोग:
    तुलसीदास से पहले सूफी कवियों ने भी अवधी भाषा में दोहा और चौपाई का प्रयोग किया। विशेष रूप से मलिक मुहम्मद जायसी की रचना पद्मावत इसका उल्लेखनीय उदाहरण है। जायसी ने अवधी में प्रेम और भक्ति के भाव को दोहा-चौपाई के माध्यम से व्यक्त किया, जो तुलसीदास की रचनाओं में और परिष्कृत रूप में देखने को मिलता है।
  4. परशुराम और सहस्रबाहु की कथा:
    पाठ में “सहसबाहु सम सो रिपु मोरा” का उल्लेख बार-बार आता है, जो परशुराम और सहस्रबाहु (कार्तवीर्य अर्जुन) के बीच वैर को दर्शाता है। महाभारत के अनुसार यह कथा इस प्रकार है:
    • परशुराम ऋषि जमदग्नि के पुत्र थे। उनके पिता के पास कामधेनु नामक एक विशेष गाय थी, जो सभी कामनाएँ पूरी करने में सक्षम थी।
    • एक बार राजा कार्तवीर्य सहस्रबाहु शिकार खेलते हुए जमदग्नि के आश्रम पहुँचे और उन्होंने कामधेनु गाय की माँग की।
    • ऋषि जमदग्नि ने गाय देने से मना किया, जिसके बाद सहस्रबाहु ने बलपूर्वक कामधेनु का अपहरण कर लिया।
    • क्रोधित होकर परशुराम ने सहस्रबाहु का वध कर दिया।
    • जमदग्नि ने इस हिंसा की निंदा की और परशुराम को प्रायश्चित करने को कहा।
    • उधर, सहस्रबाहु के पुत्रों ने प्रतिशोध में जमदग्नि का वध कर दिया।
    • इस पर परशुराम ने क्रोध में आकर पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करने की प्रतिज्ञा ली और कई बार क्षत्रियों का संहार किया।
      इस कथा का उल्लेख इस प्रसंग में परशुराम के क्षत्रिय-विरोधी स्वभाव और उनके क्रोध को रेखांकित करता है।

साहित्यिक महत्व

  • दोहा और चौपाई का प्रयोग: तुलसीदास ने दोहा और चौपाई के माध्यम से संवादों को लयबद्ध और प्रभावशाली बनाया। ये छंद न केवल कथानक को गति देते हैं, बल्कि भावनाओं को गहराई से व्यक्त करते हैं।
  • परशुराम का चरित्र: सहस्रबाहु की कथा परशुराम के क्रोधी और क्षत्रिय-विरोधी स्वभाव को उजागर करती है, जो इस प्रसंग में उनके क्रोध का आधार बनती है।
  • लक्ष्मण की वाक्पटुता: लक्ष्मण की व्यंग्यपूर्ण उक्तियाँ, जैसे “कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं”, इस कथा के संदर्भ में उनके साहस और चतुराई को और उभारती हैं।
  • अवधी की समृद्धि: अवधी भाषा की सरसता और मुहावरों (जैसे “फूँकि पहारू”, “तरजनी देखि”) का प्रयोग इस प्रसंग को लोकप्रिय और जीवंत बनाता है।

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