MP Board Class 10th Hindi Jayshankar Prasad Aatmkathya :
जयशंकर प्रसाद : जीवन-परिचय
जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ। उन्होंने काशी के प्रसिद्ध क्वींस कॉलेज में शिक्षा शुरू की, लेकिन प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण आठवीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ सके। बाद में उन्होंने घर पर ही संस्कृत, हिंदी, और फ़ारसी का अध्ययन किया। छायावाद की काव्य-प्रवृत्ति के प्रमुख स्तंभों में से एक, प्रसाद का निधन सन् 1937 में हुआ।
साहित्यिक योगदान
जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य में छायावाद के प्रमुख कवि, नाटककार, और गद्यकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाएँ कोमलता, माधुर्य, शक्ति, और ओज का अनूठा समन्वय प्रस्तुत करती हैं।
प्रमुख काव्य-कृतियाँ:
- चित्राधार
- कानन कुसुम
- झरना
- आँसू
- लहर
- कामायनी (आधुनिक हिंदी की श्रेष्ठतम काव्य-कृति, जिसके लिए उन्हें मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ)
नाटक:
- अजातशत्रु
- चंद्रगुप्त
- स्कंदगुप्त
- ध्रुवस्वामिनी
उपन्यास:
- कंकाल
- तितली
- इरावती
कहानी संग्रह:
- आकाशदीप
- आँधी
- इंद्रजाल
साहित्य की विशेषताएँ
प्रसाद का साहित्य जीवन के सौंदर्य, भावनाओं, और दार्शनिक गहराई का प्रतीक है। उनकी रचनाओं की प्रमुख विशेषताएँ हैं:
- छायावादी काव्य: अतिशय काल्पनिकता, सौंदर्य का सूक्ष्म चित्रण, और प्रकृति-प्रेम।
- देश-प्रेम: उनकी रचनाओं में राष्ट्रीयता और देशभक्ति की भावना प्रबल है।
- शैली की लाक्षणिकता: उनकी भाषा में लालित्य, प्रतीकात्मकता, और भावात्मक गहराई है।
- इतिहास और दर्शन में रुचि: उनके नाटक और काव्य में ऐतिहासिक घटनाओं और दार्शनिक चिंतन का समन्वय दिखता है।
- भाषा: प्रसाद की हिंदी सरल, शुद्ध, और भावपूर्ण है, जिसमें संस्कृतनिष्ठ शब्दों का सुंदर प्रयोग है।
महत्व
- कामायनी: यह छायावाद का सर्वोच्च काव्य माना जाता है, जिसमें मानव जीवन, प्रेम, और दर्शन का चित्रण है।
- नाटक और गद्य: उनके नाटकों में ऐतिहासिक और सामाजिक विषयों का गहन चित्रण है, जबकि उपन्यास और कहानियाँ सामाजिक यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं को दर्शाती हैं।
- छायावाद का आधार-स्तंभ: प्रसाद ने छायावाद को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया, जिसमें प्रकृति, प्रेम, और आत्मिक चेतना का समन्वय है।
आत्मकथ्य: जयशंकर प्रसाद
संदर्भ
जयशंकर प्रसाद की कविता आत्मकथ्य हंस पत्रिका के आत्मकथा विशेषांक (1932) के लिए लिखी गई थी। प्रेमचंद के संपादन में प्रकाशित इस विशेषांक के लिए प्रसाद के मित्रों ने उनसे आत्मकथा लिखने का आग्रह किया, लेकिन प्रसाद इसके लिए सहमत नहीं थे। उनकी इस असहमति के तर्क से प्रेरित होकर यह कविता रची गई। छायावादी शैली में लिखी गई यह कविता उनके जीवन के यथार्थ और अभाव पक्ष को मार्मिक ढंग से व्यक्त करती है, साथ ही उनकी विनम्रता को भी उजागर करती है।
कविता की विशेषताएँ
- छायावादी शैली:
- कविता में छायावाद की सूक्ष्मता, प्रतीकात्मकता, और भावात्मक गहराई स्पष्ट है।
- प्रसाद ने ललित, सुंदर, और नवीन शब्दों तथा बिंबों का प्रयोग कर अपने मनोभावों को व्यक्त किया है।
- यथार्थ और विनम्रता:
- कवि अपने जीवन को एक सामान्य व्यक्ति का जीवन बताते हैं, जिसमें कोई महान या रोचक घटना नहीं है जो लोगों की प्रशंसा बटोरे।
- वे अपने जीवन के अभाव और सादगी को स्वीकार करते हैं, जो उनकी विनम्रता को दर्शाता है।
- मनोभावों की अभिव्यक्ति:
- कविता में प्रसाद ने अपने जीवन के यथार्थ को स्वीकार करते हुए उसकी सादगी और सामान्यता को रेखांकित किया है।
- छायावादी शैली के अनुरूप, वे अपने अंतर्मन की भावनाओं को प्रतीकों और बिंबों के माध्यम से व्यक्त करते हैं।
- भाषा और शैली:
- हिंदी भाषा: प्रसाद की भाषा सरल, शुद्ध, और भावपूर्ण है, जिसमें संस्कृतनिष्ठ शब्दों का सुंदर प्रयोग है।
- बिंब और प्रतीक: नवीन और सूक्ष्म बिंबों का उपयोग, जो छायावाद की विशेषता है।
- लालित्य: कविता की शैली में कोमलता और सौंदर्य का समन्वय है।
साहित्यिक महत्व
- आत्मकथ्य छायावादी काव्य की विशेषताओं—सौंदर्य, प्रकृति, और आत्मिक चेतना—को दर्शाती है, लेकिन यह कविता अन्य छायावादी रचनाओं से भिन्न है क्योंकि यह व्यक्तिगत यथार्थ और विनम्रता पर केंद्रित है।
- कवि की असहमति और उनकी विनम्र स्वीकारोक्ति इस कविता को अनूठा बनाती है।
- यह कविता प्रसाद की दार्शनिक गहराई और जीवन के प्रति उनके संवेदनशील दृष्टिकोण को उजागर करती है।
प्रमुख बिंदु
- प्रकाशन: 1932 में हंस पत्रिका के आत्मकथा विशेषांक में।
- प्रेरणा: प्रेमचंद और मित्रों के आग्रह के बावजूद आत्मकथा लिखने की असहमति।
- विषय: जीवन के यथार्थ, अभाव, और विनम्रता का चित्रण।
- शैली: छायावादी, प्रतीकात्मक, और भावपूर्ण।
आत्मकथ्य: जयशंकर प्रसाद
मूल पाठ
मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ SEE कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो–कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे–यह गागर रीती।
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की।
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
संदर्भ
आत्मकथ्य जयशंकर प्रसाद की छायावादी कविता है, जो 1932 में हंस पत्रिका के आत्मकथा विशेषांक में प्रकाशित हुई थी। प्रेमचंद के संपादन में इस विशेषांक के लिए प्रसाद के मित्रों ने उनसे आत्मकथा लिखने का आग्रह किया, लेकिन प्रसाद इसके पक्ष में नहीं थे। उनकी इस असहमति से प्रेरित होकर यह कविता रची गई। कविता में प्रसाद ने अपने जीवन के यथार्थ, अभाव, और सादगी को विनम्रता के साथ व्यक्त किया है, जो छायावाद की सूक्ष्मता और प्रतीकात्मकता से परिपूर्ण है।
भावार्थ
- जीवन की सादगी और यथार्थ:
कवि कहते हैं कि उनका जीवन एक साधारण कहानी है, जैसे भँवरे (मधुप) का गुनगुनाना या पत्तियों का मुरझाकर गिरना। यह जीवन अनंत नीलिमा (आकाश) में असंख्य जीवन-इतिहासों की तरह है, जो व्यंग्य और उपहास के साथ बीत जाता है। - आत्मकथा लिखने की अनिच्छा:
प्रसाद आत्मकथा लिखने के लिए कहने वालों से पूछते हैं कि अपनी दुर्बलताओं और बीते जीवन को क्यों उजागर करें, जब वह “खाली गागर” की तरह है। वे व्यंग्य करते हैं कि लोग उनकी कहानी सुनकर सुख पाना चाहते हैं, पर क्या वे उनकी सादगी का मजाक नहीं उड़ाएँगे? - विनम्रता और आत्मसम्मान:
कवि अपनी सरलता और भूलों को उजागर करने से इनकार करते हैं। वे कहते हैं कि उनकी गलतियाँ या दूसरों की प्रवंचना को बताने से क्या लाभ? उनकी आत्मकथा कोई उज्ज्वल गाथा नहीं, बल्कि साधारण जीवन की कहानी है। - प्रेम और स्मृति:
कवि उस सुख की बात करते हैं जो स्वप्न में आया, पर जागने पर खो गया। वे प्रेम की स्मृति को “अनुरागिनी उषा” और “मधुमाया” जैसे बिंबों से व्यक्त करते हैं, जो उनके थके हुए जीवन की पंथा (यात्रा) का पाथेय (सहारा) बनी है। - मौन की श्रेष्ठता:
कवि कहते हैं कि उनके छोटे से जीवन में कोई बड़ी कथाएँ नहीं हैं। वे दूसरों की कहानियाँ सुनकर मौन रहना बेहतर मानते हैं। उनकी व्यथा “थकी सोई” है, और अभी उसे जगाने का समय नहीं है।
साहित्यिक विशेषताएँ
- छायावादी शैली:
- कविता में छायावाद की विशेषताएँ जैसे प्रतीकात्मकता, सूक्ष्म भाव, और प्रकृति के बिंब (मधुप, पत्तियाँ, नीलिमा, उषा) स्पष्ट हैं।
- भावनाओं की गहराई और आत्मिक चेतना का चित्रण छायावाद का मूल तत्व है।
- बिंब और प्रतीक:
- मधुप: जीवन की क्षणभंगुरता और सादगी का प्रतीक।
- मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ: जीवन के अभाव और क्षय का बिंब।
- गागर रीती: कवि के साधारण और अभावग्रस्त जीवन का प्रतीक।
- अनुरागिनी उषा: प्रेम और सौंदर्य का बिंब।
- कंथा की सीवन: जीवन की निजी और गोपनीय बातों का प्रतीक।
- भाषा:
- संस्कृतनिष्ठ हिंदी: प्रसाद की भाषा सरल, शुद्ध, और लालित्यपूर्ण है।
- लाक्षणिकता: शब्दों और बिंबों में गहरी प्रतीकात्मकता और सौंदर्य है।
- माधुर्य: कविता में कोमलता और भावात्मक गहराई है।
- अलंकार:
- उपमा: “मधुप गुन-गुना कर कह जाता”, “कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा” (पिछले पाठ से संदर्भित)।
- रूपक: “गागर रीती”, “अनुरागिनी उषा”।
- प्रश्नोक्ति: “तब भी कहते हो–कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती?”
- अनुप्रास: “मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ” में ध्वनि की पुनरावृत्ति।
- विनम्रता और यथार्थ:
- कवि की विनम्रता उनकी आत्मकथा को साधारण और सामान्य व्यक्ति की कहानी के रूप में प्रस्तुत करने में दिखती है।
- वे अपने जीवन के अभाव और सादगी को स्वीकार करते हैं, जो उनकी दार्शनिक गहराई को दर्शाता है।
प्रमुख बिंदु
- प्रकाशन: 1932 में हंस पत्रिका के आत्मकथा विशेषांक में।
- प्रेरणा: आत्मकथा लिखने की असहमति और जीवन की सादगी का चित्रण।
- विषय: यथार्थ, अभाव, विनम्रता, और मौन की श्रेष्ठता।
- शैली: छायावादी, प्रतीकात्मक, और लालित्यपूर्ण।
प्रश्न-अभ्यास: आत्मकथ्य (जयशंकर प्रसाद)
उत्तर
1. कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है?
जयशंकर प्रसाद आत्मकथा लिखने से इसलिए बचना चाहते हैं क्योंकि वे अपने जीवन को साधारण और अभावग्रस्त मानते हैं, जिसमें कोई ऐसी उज्ज्वल या रोचक गाथा नहीं है जो लोगों की प्रशंसा बटोरे। वे कहते हैं कि उनकी आत्मकथा “गागर रीती” (खाली घड़ा) की तरह है, जिसे सुनकर लोग सुख तो पा सकते हैं, पर वे उनकी सादगी का उपहास भी उड़ा सकते हैं। वे अपनी भूलों या दूसरों की प्रवंचना को उजागर करने से भी हिचकते हैं, क्योंकि यह उनकी सरलता और आत्मसम्मान के खिलाफ है। कवि अपनी निजी व्यथा को सार्वजनिक करने के बजाय मौन रहना बेहतर मानते हैं।
2. आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में ‘अभी समय भी नहीं‘ कवि ऐसा क्यों कहता है?
कवि का कहना है कि उनकी “मौन व्यथा” अभी थकी हुई और सोई हुई है, अर्थात् उनकी जीवन की पीड़ा और अनुभव अभी व्यक्त करने के लिए तैयार नहीं हैं। वे मानते हैं कि आत्मकथा लिखने का यह उचित समय नहीं है, क्योंकि उनके जीवन की साधारणता और दुखों को उजागर करने से कोई विशेष लाभ नहीं होगा। यह कथन उनकी विनम्रता और निजता को संरक्षित करने की इच्छा को दर्शाता है। वे यह भी संकेत करते हैं कि उनकी व्यथा को अभी और समय चाहिए, और इसे जगाने से पहले वे दूसरों की कहानियाँ सुनना पसंद करेंगे।
3. स्मृति को ‘पाथेय‘ बनाने से कवि का क्या आशय है?
कवि अपनी प्रेम की स्मृति को “पाथेय” (यात्रा का सहारा) कहते हैं, जिसका अर्थ है कि उनके जीवन की प्रेममयी स्मृतियाँ उनके थके हुए जीवन (पथिक की पंथा) का आधार और प्रेरणा बनी हैं। यह स्मृति उनके लिए वह शक्ति है जो उन्हें जीवन की कठिन यात्रा में आगे बढ़ने का बल देती है। प्रेम की यह स्मृति, जो “अनुरागिनी उषा” और “मधुमाया” जैसे बिंबों में व्यक्त हुई है, उनके जीवन का एकमात्र सकारात्मक और सुंदर हिस्सा है, जो उन्हें जीवंत रखता है।
4. भाव स्पष्ट कीजिए:
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
भाव: कवि यहाँ अपने जीवन के उस सुख की बात करते हैं जो उन्होंने स्वप्न में देखा, लेकिन जागने पर वह खो गया। यह सुख प्रेम और आत्मिक संतुष्टि का प्रतीक है, जो उनके जीवन में क्षणभंगुर रहा। “आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया” से तात्पर्य है कि यह सुख उनकी पहुँच के इतने करीब था कि वे उसे गले लगाने वाले थे, लेकिन वह शरमाकर या हँसकर दूर चला गया। यह उनके जीवन की अधूरी इच्छाओं और प्रेम की क्षणभंगुरता को दर्शाता है।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
भाव: कवि यहाँ प्रेम की स्मृति को एक सुंदर और मादक बिंब के माध्यम से व्यक्त करते हैं। “अरुण कपोल” (लालिमा लिए गाल) और “मतवाली सुंदर छाया” प्रेम की सौंदर्यपूर्ण और मादक छवि को दर्शाते हैं। “अनुरागिनी उषा” प्रेममयी और उत्साहपूर्ण प्रभात का प्रतीक है, जो “निज सुहाग मधुमाया” (प्रेममय आनंद) में डूबी थी। यह बिंब प्रेम के उन पलों को दर्शाता है जो कवि के जीवन में संक्षिप्त लेकिन मधुर थे और उनकी स्मृति अब भी उनके हृदय में जीवित है।
5. ‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’ – कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
इस कथन के माध्यम से कवि अपनी आत्मकथा को उज्ज्वल या रोचक बताने में अपनी असमर्थता और अनिच्छा व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि उनके जीवन में ऐसी कोई महान या सुखद घटनाएँ नहीं हैं जो “मधुर चाँदनी रातों” की तरह आकर्षक और प्रशंसनीय हों। उनका जीवन साधारण और अभावग्रस्त रहा है, जिसमें कोई ऐसी गाथा नहीं जो लोगों को प्रभावित करे। यह उनकी विनम्रता और जीवन के यथार्थ को स्वीकार करने की भावना को दर्शाता है।
6. ‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
‘आत्मकथ्य’ की काव्यभाषा छायावादी शैली की विशेषताओं से युक्त है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- लालित्य और कोमलता: भाषा में मधुरता और भावात्मक गहराई है। उदाहरण: “अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।”
- प्रतीकात्मकता और बिंब: कविता में सूक्ष्म और नवीन बिंबों का प्रयोग है। उदाहरण: “मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ” जीवन की क्षणभंगुरता को दर्शाता है।
- संस्कृतनिष्ठ शब्द: शुद्ध हिंदी और संस्कृत आधारित शब्दों का सुंदर प्रयोग। उदाहरण: “गंभीर अनंत-नीलिमा”, “पाथेय”, “उज्ज्वल गाथा”।
- प्रश्नोक्ति और व्यंजना: कवि प्रश्नों के माध्यम से अपनी अनिच्छा व्यक्त करते हैं। उदाहरण: “तब भी कहते हो–कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती?”
- प्रकृति और भाव का समन्वय: प्रकृति के बिंबों के साथ मनोभावों का मिश्रण। उदाहरण: “मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी।”
7. कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था, उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?
कवि ने अपने जीवन में देखे गए सुख के स्वप्न को प्रेम और सौंदर्य के बिंबों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। इस सुख को वे एक क्षणभंगुर और मादक अनुभव के रूप में चित्रित करते हैं, जो उनके जीवन में आया, पर स्थायी नहीं रहा। उदाहरण के लिए:
- “मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।” यहाँ सुख को एक प्रेममयी आलिंगन के रूप में दर्शाया गया है, जो शरमाकर भाग गया।
- “जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।” यहाँ प्रेम को “अनुरागिनी उषा” और “मधुमाया” जैसे बिंबों के साथ व्यक्त किया गया है, जो सौंदर्य और मधुरता का प्रतीक है। यह सुख उनकी स्मृति में बचा है, जो उनके जीवन का सहारा बना।
8. इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
‘आत्मकथ्य’ कविता के माध्यम से जयशंकर प्रसाद का व्यक्तित्व एक संवेदनशील, विनम्र, और दार्शनिक कवि के रूप में उजागर होता है। वे अपने जीवन को साधारण और अभावग्रस्त मानते हैं, जिसमें कोई महान गाथा नहीं है। उनकी विनम्रता इस बात में झलकती है कि वे अपनी दुर्बलताओं और भूलों को सार्वजनिक करने से बचते हैं। उनका प्रेम और सौंदर्य के प्रति गहरा लगाव उनकी स्मृतियों के बिंबों में दिखता है, जैसे “अनुरागिनी उषा” और “मधुमाया”। वे अपनी निजता को संरक्षित रखना चाहते हैं और मौन रहकर दूसरों की कहानियाँ सुनना पसंद करते हैं। उनकी भाषा और बिंबों में छायावादी सूक्ष्मता और दार्शनिक गहराई स्पष्ट है, जो उनके चिंतनशील और भावुक स्वभाव को दर्शाती है।
9. आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?
मैं निम्नलिखित व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहूँगा:
- महात्मा गांधी: उनकी आत्मकथा “सत्य के प्रयोग” सत्य, अहिंसा, और आत्म-संघर्ष की प्रेरणा देती है। मैं उनकी नैतिकता और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को गहराई से समझना चाहता हूँ।
- ए.पी.जे. अब्दुल कलाम: उनकी आत्मकथा “विंग्स ऑफ फायर” उनके साधारण जीवन से वैज्ञानिक और राष्ट्रपति बनने की प्रेरणादायक यात्रा को दर्शाती है। यह मेहनत और सपनों की शक्ति को समझने में मदद करेगी।
- बेबी हालदार: उनकी आत्मकथा “आलो आंधारि” एक साधारण घरेलू सहायिका के संघर्ष और साहस की कहानी है, जो मुझे सामान्य लोगों के असाधारण जीवन को समझने की प्रेरणा देगी।
मैं इन आत्मकथाओं को इसलिए पढ़ना चाहूँगा क्योंकि ये विभिन्न पृष्ठभूमियों से प्रेरणा, साहस, और जीवन के यथार्थ को दर्शाती हैं।
10. कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। उसके लिए विशिष्ट या बड़ा होना ज़रूरी नहीं। हरियाणा राज्य के गुड़गाँव में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा “आलो आंधारि” बहुतों के द्वारा सराही गई। आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए।
मेरी आत्मकथा (संक्षिप्त):
मेरा नाम [आपका नाम] है, और मैं एक साधारण परिवार से हूँ। मेरा बचपन गाँव की गलियों और स्कूल के खेल के मैदान में बीता। मेरे माता-पिता ने मुझे सदा मेहनत और ईमानदारी का पाठ पढ़ाया। स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ मैं किताबों और कविताओं का शौकीन रहा। एक बार, जब मेरे दोस्त को कुछ बड़े बच्चे तंग कर रहे थे, मैंने हिम्मत जुटाकर उनका विरोध किया, जो मेरे लिए गर्व का क्षण था। मेरे जीवन में सुख और दुख दोनों आए, पर मैंने हर अनुभव से कुछ नया सीखा। मेरे सपने बड़े हैं—मैं एक ऐसा इंसान बनना चाहता हूँ जो दूसरों के लिए प्रेरणा बने। मेरा मानना है कि जीवन की सादगी ही उसकी सबसे बड़ी कहानी है।
पाठेतर सक्रियता
- किसी भी चर्चित व्यक्ति का अपनी निजता को सार्वजनिक करना या दूसरों का उनसे ऐसी अपेक्षा करना सही है – इस विषय के पक्ष-विपक्ष में कक्षा में चर्चा कीजिए।
पक्ष में:- चर्चित व्यक्तियों की आत्मकथा समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत हो सकती है। उदाहरण के लिए, गांधी जी की आत्मकथा “सत्य के प्रयोग” ने लाखों लोगों को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया।
- निजता को साझा करने से उनके अनुभव और संघर्ष दूसरों को जीवन की चुनौतियों से निपटने की प्रेरणा दे सकते हैं।
- यह सामाजिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण दस्तावेज बन सकता है।
विपक्ष में:
- निजता को सार्वजनिक करना व्यक्ति की गोपनीयता का उल्लंघन हो सकता है। प्रसाद की तरह, कई लोग अपनी निजी बातों को उजागर करने में सहज नहीं होते।
- इससे उपहास या गलत व्याख्या का खतरा होता है, जैसा कि प्रसाद ने “अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं” में व्यक्त किया।
- समाज का दबाव किसी व्यक्ति को आत्मकथा लिखने के लिए बाध्य करना अनुचित है।
चर्चा का ढंग: कक्षा में दो समूह बनाएँ, एक पक्ष और एक विपक्ष में। प्रत्येक समूह अपने तर्क उदाहरणों के साथ प्रस्तुत करे। शिक्षक मॉडरेटर के रूप में निष्पक्ष निष्कर्ष निकाले।
- बिना ईमानदारी और साहस के आत्मकथा नहीं लिखी जा सकती। गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ पढ़कर पता लगाइए कि उसकी क्या-क्या विशेषताएँ हैं।
गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ की विशेषताएँ:- ईमानदारी: गांधी जी ने अपने जीवन की कमजोरियों, गलतियों, और संघर्षों को पूरी निष्ठा से स्वीकार किया, जैसे बचपन में मांसाहार और अन्य भूलें।
- साहस: उन्होंने अपनी निजी कमजोरियों को सार्वजनिक करने का साहस दिखाया, जो उनकी सत्यनिष्ठा को दर्शाता है।
- सत्य और अहिंसा: आत्मकथा में उनके जीवन का मूल आधार सत्य और अहिंसा का दर्शन है, जो उनके प्रयोगों और अनुभवों में झलकता है।
- सादगी: उनकी भाषा सरल और स्पष्ट है, जो सामान्य पाठक को प्रेरित करती है।
- नैतिकता और आत्मचिंतन: यह आत्मकथा केवल घटनाओं का विवरण नहीं, बल्कि आत्म-विश्लेषण और नैतिक चिंतन का दस्तावेज है।
- प्रेरणादायी: यह आत्मकथा पाठकों को अपने जीवन में सत्य और नैतिकता को अपनाने की प्रेरणा देती है।
इसकी विशेषताओं को समझने के लिए पुस्तक को पुस्तकालय से प्राप्त करें और विशेष रूप से उनके दक्षिण अफ्रीका और स्वतंत्रता संग्राम के अनुभवों को पढ़ें।
शब्द-संपदा
शब्द | अर्थ |
मधुप | मन रूपी भौंरा |
अनंत नीलिमा | अंतहीन विस्तार (आकाश का नीला विस्तार) |
व्यंग्य मलिन | खराब ढंग से निंदा करना |
गागर-रीती | ऐसा मन जिसमें कोई भाव नहीं, खाली घड़ा |
प्रवंचना | धोखा |
मुसक्या कर | मुस्कराकर |
अरुण-कपोल | लाल गाल |
अनुरागिनी उषा | प्रेम भरी भोर |
स्मृति पाथेय | स्मृति रूपी संबल (सहारा) |
पंथा | रास्ता, राह |
कंथा | अंतर्मन, गुदड़ी |
यह भी जानें
- हंस पत्रिका:
- हंस एक प्रगतिशील चेतना की साहित्यिक मासिक पत्रिका है, जिसे मुंशी प्रेमचंद ने सन् 1930 से 1936 तक संपादित किया।
- सन् 1986 से यह पत्रिका पुनः प्रकाशित हो रही है, और इसके संपादक राजेंद्र यादव हैं।
- यह पत्रिका हिंदी साहित्य में नवीन विचारों, सामाजिक चेतना, और साहित्यिक रचनाओं के लिए महत्वपूर्ण मंच रही है। प्रसाद की कविता आत्मकथ्य इसी पत्रिका के आत्मकथा विशेषांक (1932) में प्रकाशित हुई थी।
- हिंदी की पहली आत्मकथा:
- बनारसीदास जैन द्वारा रचित अर्धकथानक हिंदी की पहली आत्मकथा मानी जाती है।
- इसकी रचना सन् 1641 में हुई थी, और यह पद्यात्मक शैली में लिखी गई है।
- यह आत्मकथा जैन धर्म के अनुयायी के जीवन, व्यापार, और आध्यात्मिक यात्रा का वर्णन करती है, जो हिंदी साहित्य में आत्मकथात्मक लेखन की शुरुआत का प्रतीक है।
- आत्मकथ्य का एक अन्य रूप: बच्चन की आत्म-परिचय कविता
कवि हरिवंश राय बच्चन की कविता आत्म-परिचय का अंश इस प्रकार है:
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ। मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना, मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना; क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए, मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना! मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ, मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ; जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए, मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ!
विश्लेषण:
- बच्चन की इस कविता में आत्मकथ्य का स्वरूप जयशंकर प्रसाद की कविता से भिन्न है। जहाँ प्रसाद की आत्मकथ्य में विनम्रता, सादगी, और निजता को संरक्षित करने की भावना है, वहीं बच्चन की कविता में एक दीवानेपन, मस्ती, और भावनात्मक उच्छृंखलता का चित्रण है।
- बच्चन अपनी पीड़ा को काव्य और मस्ती का रूप देते हैं, और स्वयं को एक दीवाने के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो संसार को अपनी मादकता से प्रभावित करता है।
- दोनों कविताएँ आत्मकथ्य की शैली में हैं, लेकिन प्रसाद की कविता छायावादी सूक्ष्मता और दार्शनिक गहराई से युक्त है, जबकि बच्चन की कविता में प्रगतिशील और भावनात्मक तीव्रता है।
साहित्यिक महत्व
- जयशंकर प्रसाद की आत्मकथ्य: यह कविता छायावाद की विशेषताओं—प्रतीकात्मकता, भावात्मक सूक्ष्मता, और प्रकृति के बिंबों—को दर्शाती है। प्रसाद की विनम्रता और जीवन के यथार्थ को स्वीकार करने की भावना इस कविता को अद्वितीय बनाती है।
- हंस पत्रिका: प्रेमचंद द्वारा शुरू की गई यह पत्रिका हिंदी साहित्य में प्रगतिशील विचारों और नवीन रचनाओं का मंच रही। प्रसाद की कविता का इस पत्रिका में प्रकाशन उनके साहित्यिक कद को दर्शाता है।
- अर्धकथानक: हिंदी साहित्य में आत्मकथात्मक लेखन की शुरुआत का प्रतीक, जो आत्मकथ्य की परंपरा को समझने में सहायक है।
- बच्चन की आत्म-परिचय: यह कविता आत्मकथ्य का एक वैकल्पिक स्वरूप प्रस्तुत करती है, जिसमें कवि की भावनात्मक तीव्रता और स्वतंत्रता की भावना झलकती है।