कक्षा 10 भारत और समकालीन विश्व II भारत में राष्ट्रवाद प्रश्नोत्तर :MP Board Class 10th Bharat Me Rashtravaad Question Answer

MP Board Class 10th Bharat Me Rashtravaad Question Answer

अध्याय 2: भारत में राष्ट्रवाद

परिचय: भारत में राष्ट्रवाद का उदय

  • उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन: यूरोप की तरह, भारत में भी आधुनिक राष्ट्रवाद का उदय उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन के साथ गहराई से जुड़ा हुआ था। औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ संघर्ष के दौरान लोगों ने आपसी एकता को पहचानना शुरू किया।
  • साझा भाव: उत्पीड़न और दमन के साझा भाव ने विभिन्न समूहों को एक-दूसरे से बाँध दिया।
  • एकता में टकराव: महात्मा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने इन समूहों को इकट्ठा करके एक विशाल आंदोलन खड़ा किया, परंतु इस एकता में टकराव के बिंदु भी निहित थे क्योंकि हर वर्ग और समूह पर उपनिवेशवाद का असर एक जैसा नहीं था।

1. पहला विश्वयुद्ध, खिलाफत और असहयोग

1.1 प्रथम विश्वयुद्ध का भारत पर प्रभाव (1914-1918)

प्रथम विश्वयुद्ध ने भारत में एक नई आर्थिक और राजनीतिक स्थिति पैदा कर दी, जिसके कारण राष्ट्रवादी आंदोलन को बल मिला।

  • आर्थिक प्रभाव:
    • रक्षा व्यय में वृद्धि: युद्ध के कारण रक्षा व्यय में भारी इजाफा हुआ, जिसकी भरपाई के लिए कर्जे लिए गए और करों में वृद्धि की गई। सीमा शुल्क बढ़ा दिया गया और आयकर शुरू किया गया।
    • मूल्य वृद्धि: युद्ध के दौरान कीमतें तेजी से बढ़ीं और 1913 से 1918 के बीच कीमतें दोगुनी हो गईं, जिससे आम लोगों की मुश्किलें बढ़ गईं।
    • खाद्य पदार्थों का अभाव: 1918-19 और 1920-21 में देश के बहुत सारे हिस्सों में फसल खराब हो गई, जिससे खाद्य पदार्थों का भारी अभाव पैदा हो गया।
  • सामाजिक प्रभाव:
    • जबरन भर्ती: गाँवों में सिपाहियों की जबरन भर्ती की गई, जिससे ग्रामीण इलाकों में व्यापक गुस्सा था।
    • महामारी: उसी समय फ्लू जैसी महामारी फैल गई। 1921 की जनगणना के मुताबिक, दुर्भिक्ष और महामारी के कारण 120-130 लाख लोग मारे गए।

2. सत्याग्रह का विचार

2.1 महात्मा गाँधी का आगमन और सत्याग्रह का अर्थ

  • गाँधीजी का भारत आगमन: महात्मा गाँधी जनवरी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे। वहाँ उन्होंने नस्लभेदी सरकार के खिलाफ एक नए तरह के आंदोलन, सत्याग्रह, का सफलतापूर्वक प्रयोग किया था।
  • सत्याग्रह का विचार:
    • सत्याग्रह का विचार सत्य की शक्ति पर आग्रह और सत्य की खोज पर जोर देता है।
    • इसका अर्थ था कि अगर आपका उद्देश्य सच्चा है और आपका संघर्ष अन्याय के खिलाफ है, तो उत्पीड़क से मुकाबला करने के लिए आपको किसी शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं है।
    • सत्याग्रह शारीरिक बल नहीं, बल्कि आत्मबल है। यह अहिंसा पर आधारित है।
    • गाँधीजी का विश्वास था कि अहिंसा का यह धर्म सभी भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकता है।

2.2 गाँधीजी के प्रारंभिक सत्याग्रह आंदोलन

भारत आने के बाद गाँधीजी ने कई स्थानों पर सत्याग्रह आंदोलन चलाए:

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  1. चंपारण सत्याग्रह (1917): बिहार के चंपारण इलाके में उन्होंने दमनकारी बागान व्यवस्था के खिलाफ किसानों को संघर्ष के लिए प्रेरित किया।
  2. खेड़ा सत्याग्रह (1917): गुजरात के खेड़ा जिले में फसल खराब हो जाने और प्लेग की महामारी के कारण किसान लगान चुकाने की हालत में नहीं थे। गाँधीजी ने यहाँ किसानों की मदद के लिए सत्याग्रह का आयोजन किया।
  3. अहमदाबाद मिल सत्याग्रह (1918): उन्होंने अहमदाबाद में सूती कपड़ा कारखानों के मजदूरों के बीच सत्याग्रह आंदोलन चलाया।

3. रॉलट एक्ट (1919)

  • पृष्ठभूमि: प्रारंभिक सत्याग्रहों की कामयाबी से उत्साहित होकर गाँधीजी ने 1919 में प्रस्तावित रॉलट एक्ट के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह चलाने का फैसला लिया।
  • कानून के प्रावधान:
    • यह कानून इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ने भारतीय सदस्यों के भारी विरोध के बावजूद बहुत जल्दबाजी में पारित कर दिया था।
    • इस कानून के ज़रिए सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने और राजनीतिक कैदियों को दो साल तक बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद रखने का अधिकार मिल गया था।
  • गाँधीजी का विरोध:
    • महात्मा गाँधी ऐसे अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ अहिंसक नागरिक अवज्ञा चाहते थे।
    • इसे 6 अप्रैल 1919 को एक हड़ताल से शुरू होना था।
    • विभिन्न शहरों में रैली-जुलूसों का आयोजन किया गया, रेलवे वर्कशॉप में कामगार हड़ताल पर चले गए और दुकानें बंद हो गईं।

3.1 जलियाँवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल, 1919)

  • घटना: उस दिन अमृतसर में बहुत सारे गाँव वाले सालाना बैसाखी मेले में शिरकत करने के लिए जलियाँवाला बाग में जमा हुए थे। काफी लोग सरकार द्वारा लागू किए गए दमनकारी कानून का विरोध करने के लिए भी एकत्रित हुए।
  • मार्शल लॉ: शहर से बाहर होने के कारण वहाँ जुटे लोगों को यह पता नहीं था कि इलाके में मार्शल लॉ लागू किया जा चुका है।
  • जनरल डायर की कार्रवाई: जनरल डायर हथियारबंद सैनिकों के साथ वहाँ पहुँचा और उसने मैदान से बाहर निकलने के सारे रास्तों को बंद कर दिया। इसके बाद सिपाहियों ने भीड़ पर अंधाधंध गोलीबारी कर दी, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए।
  • उद्देश्य: डायर ने बाद में बताया कि वह सत्याग्रहियों के जहन में दहशत और विस्मय का भाव पैदा करके एक ‘नैतिक प्रभाव’ उत्पन्न करना चाहता था।
  • परिणाम: जैसे ही यह खबर फैली, उत्तर भारत के शहरों में लोग सड़कों पर उतर आए, हड़तालें होने लगीं और सरकारी इमारतों पर हमले हुए। हिंसा फैलते देख महात्मा गाँधी ने आंदोलन वापस ले लिया।

4. खिलाफत और असहयोग आंदोलन

  • आंदोलन की आवश्यकता: रॉलट सत्याग्रह मुख्य रूप से शहरों और कस्बों तक ही सीमित था। गाँधीजी पूरे भारत में एक और भी बड़ा जनांदोलन खड़ा करना चाहते थे। उनका मानना था कि हिंदू-मुसलमानों को एक-दूसरे के नजदीक लाए बिना ऐसा कोई आंदोलन नहीं चलाया जा सकता।
  • खिलाफत का मुद्दा:
    • प्रथम विश्वयुद्ध में ऑटोमन तुर्की की हार हो चुकी थी। अफवाहें थीं कि इस्लामिक विश्व के आध्यात्मिक नेता (खलीफा) ऑटोमन सम्राट पर एक बहुत सख्त शांति संधि थोपी जाएगी।
    • खलीफा की शक्तियों की रक्षा के लिए मार्च 1919 में बंबई में एक खिलाफत समिति का गठन किया गया।
    • मोहम्मद अली और शौकत अली बंधुओं ने इस मुद्दे पर संयुक्त जन-कार्रवाई की संभावना तलाशने के लिए गाँधीजी के साथ चर्चा शुरू की।
  • गाँधीजी का समर्थन: गाँधीजी को यह हिंदू-मुसलमानों को एक साथ लाने का एक सुनहरा अवसर लगा।
  • कांग्रेस का निर्णय: सितंबर 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाँधीजी ने दूसरे नेताओं को इस बात पर राजी कर लिया कि खिलाफत आंदोलन के समर्थन और स्वराज के लिए एक असहयोग आंदोलन शुरू किया जाना चाहिए।

4.1 असहयोग ही क्यों?

  • गाँधीजी का विचार: अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ (1909) में महात्मा गाँधी ने कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से ही स्थापित हुआ था और यह शासन इसी सहयोग के कारण चल पा रहा है।
  • रणनीति: अगर भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले लें, तो साल भर के भीतर ब्रिटिश शासन ढह जाएगा और स्वराज की स्थापना हो जाएगी।

4.2 आंदोलन का कार्यक्रम

गाँधीजी का सुझाव था कि यह आंदोलन चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ना चाहिए:

  1. पहला चरण (बहिष्कार):
    • लोगों को सरकार द्वारा दी गई पदवियाँ लौटा देनी चाहिए।
    • सरकारी नौकरियों, सेना, पुलिस, अदालतों, विधायी परिषदों, स्कूलों और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना चाहिए।
  2. दूसरा चरण (सविनय अवज्ञा):
    • अगर सरकार दमन का रास्ता अपनाती है, तो व्यापक सविनय अवज्ञा अभियान भी शुरू किया जाए।
  • आंदोलन की स्वीकृति: दिसंबर 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में एक समझौता हुआ और असहयोग कार्यक्रम पर स्वीकृति की मुहर लगा दी गई।

5. आंदोलन के भीतर अलग-अलग धाराएँ

असहयोग-खिलाफत आंदोलन जनवरी 1921 में शुरू हुआ। इस आंदोलन में विभिन्न सामाजिक समूहों ने हिस्सा लिया लेकिन हरेक की अपनी-अपनी आकांक्षाएँ थीं। सभी ने स्वराज के आह्वान को स्वीकार तो किया लेकिन उनके लिए उसके अर्थ अलग-अलग थे।

5.1 शहरों में आंदोलन

  • मध्यम वर्ग की भागीदारी: आंदोलन की शुरुआत शहरी मध्यवर्ग की हिस्सेदारी के साथ हुई। हजारों विद्यार्थियों ने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिए, शिक्षकों ने इस्तीफे सौंप दिए और वकीलों ने मुकदमे लड़ना बंद कर दिया।
  • परिषद् चुनावों का बहिष्कार: मद्रास के अलावा ज्यादातर प्रांतों में परिषद् चुनावों का बहिष्कार किया गया। (मद्रास में गैर-ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई जस्टिस पार्टी का मानना था कि काउंसिल में प्रवेश के जरिए उन्हें वे अधिकार मिल सकते हैं जो सामान्य रूप से केवल ब्राह्मणों को मिल पाते हैं, इसलिए उन्होंने चुनावों का बहिष्कार नहीं किया)।
  • आर्थिक प्रभाव:
    • विदेशी सामानों का बहिष्कार किया गया, शराब की दुकानों की पिकेटिंग की गई और विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई।
    • 1921 से 1922 के बीच विदेशी कपड़ों का आयात आधा रह गया। व्यापारियों ने विदेशी चीजों का व्यापार करने से इनकार कर दिया।
    • भारतीय कपड़ा मिलों और हथकरघों का उत्पादन बढ़ने लगा।
  • आंदोलन का धीमा पड़ना:
    • खादी का कपड़ा महंगा था जिसे गरीब खरीद नहीं सकते थे।
    • ब्रिटिश संस्थानों के बहिष्कार के लिए वैकल्पिक भारतीय संस्थानों की स्थापना की प्रक्रिया बहुत धीमी थी
    • फलस्वरूप, विद्यार्थी और शिक्षक सरकारी स्कूलों में लौटने लगे और वकील दोबारा सरकारी अदालतों में दिखाई देने लगे।

5.2 ग्रामीण इलाकों में विद्रोह

  • अवध के किसान:
    • नेतृत्व: अवध में बाबा रामचंद्र किसानों का नेतृत्व कर रहे थे, जो पहले फिजी में गिरमिटिया मजदूर के तौर पर काम कर चुके थे।
    • कारण: यह आंदोलन तालुकदारों और जमींदारों के खिलाफ था जो किसानों से भारी-भरकम लगान और तरह-तरह के कर वसूल रहे थे। किसानों को बेगार करनी पड़ती थी।
    • माँग: किसानों की माँग थी कि लगान कम किया जाए, बेगार खत्म हो और दमनकारी जमींदारों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए। कई जगहों पर नाई-धोबी बंद का फैसला लिया गया।
    • संगठन: जून 1920 में जवाहरलाल नेहरू ने अवध के गाँवों का दौरा किया। अक्टूबर तक नेहरू, बाबा रामचंद्र और कुछ अन्य लोगों के नेतृत्व में अवध किसान सभा का गठन कर लिया गया।
    • कांग्रेस से मतभेद: जब असहयोग आंदोलन शुरू हुआ, तो कांग्रेस ने अवध के किसान संघर्ष को इसमें शामिल करने का प्रयास किया। लेकिन किसानों के आंदोलन में ऐसे स्वरूप विकसित हुए जिनसे कांग्रेस का नेतृत्व खुश नहीं था। 1921 में आंदोलन फैलने पर तालुकदारों और व्यापारियों के मकानों पर हमले होने लगे, बाजारों में लूटपाट होने लगी। स्थानीय नेता किसानों को समझा रहे थे कि गाँधीजी ने ऐलान कर दिया है कि अब कोई लगान नहीं भरेगा और जमीन गरीबों में बाँट दी जाएगी।
  • आदिवासी किसान (आंध्र प्रदेश):
    • कारण: आंध्र प्रदेश की गूदेम पहाड़ियों में 1920 के दशक की शुरुआत में एक उग्र गुरिल्ला आंदोलन फैल गया। यहाँ अंग्रेजी सरकार ने बड़े-बड़े जंगलों में लोगों के दाखिल होने पर पाबंदी लगा दी थी। लोग न तो मवेशियों को चरा सकते थे, न ही जलावन के लिए लकड़ी और फल बीन सकते थे। जब सरकार ने उन्हें सड़कों के निर्माण के लिए बेगार करने पर मजबूर किया, तो लोगों ने बगावत कर दी।
    • नेतृत्व: उनका नेतृत्व करने वाले अल्लूरी सीताराम राजू एक दिलचस्प व्यक्ति थे। उनका दावा था कि उनके पास बहुत सारी विशेष शक्तियाँ हैं, वे लोगों को स्वस्थ कर सकते हैं तथा गोलियाँ भी उन्हें नहीं मार सकतीं।
    • गाँधीजी से प्रेरणा: राजू, महात्मा गाँधी की महानता के गुण गाते थे। उनका कहना था कि वह असहयोग आंदोलन से प्रेरित हैं और लोगों को खादी पहनने तथा शराब छोड़ने के लिए प्रेरित किया।
    • हिंसा का समर्थन: साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया कि भारत अहिंसा के बल पर नहीं, बल्कि केवल बलप्रयोग के जरिए ही आजाद हो सकता है।
    • परिणाम: गूदेम विद्रोहियों ने पुलिस थानों पर हमले किए और स्वराज प्राप्ति के लिए गुरिल्ला युद्ध चलाते रहे। 1924 में राजू को फाँसी दे दी गई।

5.3 बागानों में स्वराज

  • मजदूरों के लिए स्वराज का अर्थ: असम के बागानी मजदूरों के लिए आजादी का मतलब यह था कि वे उन चारदीवारियों से जब चाहें आ-जा सकते हैं जिनमें उनको बंद करके रखा गया था। उनके लिए आजादी का मतलब था कि वे अपने गाँवों से संपर्क रख पाएँगे।
  • कानून: 1859 के इनलैंड इमिग्रेशन एक्ट के तहत बागानों में काम करने वाले मजदूरों को बिना इजाजत बागान से बाहर जाने की छूट नहीं होती थी।
  • आंदोलन का प्रभाव: जब उन्होंने असहयोग आंदोलन के बारे में सुना, तो हजारों मजदूर अपने अधिकारियों की अवहेलना करने लगे। उन्होंने बागान छोड़ दिए और अपने घर चल दिए। उनको लगता था कि अब गाँधी राज आ रहा है और अब तो हरेक को गाँव में जमीन मिल जाएगी।
  • परिणाम: लेकिन वे अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच पाए। रेलवे और स्टीमरों की हड़ताल के कारण वे रास्ते में ही फँस गए। उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया और उनकी बुरी तरह पिटाई हुई।
  • निष्कर्ष: इन स्थानीय आंदोलनों ने स्वराज शब्द का अपने-अपने हिसाब से अर्थ निकाला था। उनके लिए यह एक ऐसे युग का प्रतीक था जब सारे कष्ट और सारी मुसीबतें खत्म हो जाएँगी।

6. सविनय अवज्ञा की ओर

6.1 आंदोलन वापसी और नई रणनीति

  • असहयोग आंदोलन वापसी (फरवरी 1922): चौरी-चौरा में हुई हिंसक घटना के कारण महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया।
  • कांग्रेस में मतभेद:
    • स्वराज पार्टी का गठन: सी. आर. दास और मोतीलाल नेहरू जैसे कुछ नेता परिषद् चुनावों में हिस्सा लेना चाहते थे ताकि परिषदों में रहते हुए ब्रिटिश नीतियों का विरोध कर सकें। इसके लिए उन्होंने कांग्रेस के भीतर ही स्वराज पार्टी का गठन किया।
    • पूर्ण स्वतंत्रता की मांग: जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस जैसे युवा नेता ज्यादा उग्र जनांदोलन और पूर्ण स्वतंत्रता के पक्ष में थे।

6.2 साइमन कमीशन (1928)

  • गठन का कारण: ब्रिटेन की टोरी सरकार ने भारत में संवैधानिक व्यवस्था की कार्यशैली का अध्ययन करने और सुझाव देने के लिए सर जॉन साइमन के नेतृत्व में एक वैधानिक आयोग का गठन किया।
  • विरोध का कारण: इस आयोग में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था, सारे अंग्रेज थे।
  • परिणाम: 1928 में जब साइमन कमीशन भारत पहुँचा तो उसका स्वागत ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ (Simon Go Back) के नारों से किया गया। कांग्रेस और मुस्लिम लीग, सभी पार्टियों ने प्रदर्शनों में हिस्सा लिया।

6.3 पूर्ण स्वराज की मांग

  • डोमिनियन स्टेटस का ऐलान: विरोध को शांत करने के लिए वायसराय लॉर्ड इरविन ने अक्टूबर 1929 में भारत के लिए ‘डोमिनियन स्टेटस’ का गोलमोल सा ऐलान कर दिया।
  • कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन (दिसंबर 1929):
    • इस प्रस्ताव से कांग्रेस के नेता संतुष्ट नहीं थे। जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुए इस अधिवेशन में ‘पूर्ण स्वराज’ की माँग को औपचारिक रूप से मान लिया गया।
    • यह तय किया गया कि 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाएगा और उस दिन लोग पूर्ण स्वराज के लिए संघर्ष की शपथ लेंगे।

7. नमक यात्रा और सविनय अवज्ञा आंदोलन

7.1 दांडी यात्रा (12 मार्च – 6 अप्रैल, 1930)

  • पृष्ठभूमि: देश को एकजुट करने के लिए महात्मा गाँधी को नमक एक शक्तिशाली प्रतीक दिखाई दिया।
  • गाँधीजी की 11 माँगें: 31 जनवरी 1930 को उन्होंने वायसराय इरविन को एक पत्र लिखा जिसमें 11 माँगों का उल्लेख था। सबसे महत्वपूर्ण माँग नमक कर को खत्म करने के बारे में थी।
  • यात्रा की शुरुआत: इरविन के झुकने को तैयार न होने पर, महात्मा गाँधी ने अपने 78 विश्वस्त वॉलंटियरों के साथ नमक यात्रा शुरू कर दी।
  • मार्ग: यह यात्रा साबरमती में गाँधीजी के आश्रम से 240 किलोमीटर दूर दांडी नामक गुजराती तटीय कस्बे में जाकर खत्म होनी थी।
  • यात्रा का प्रभाव: गाँधीजी जहाँ भी रुकते, हजारों लोग उन्हें सुनने आते। उन्होंने स्वराज का अर्थ स्पष्ट किया और शांतिपूर्वक अंग्रेजों की अवज्ञा करने का आह्वान किया।
  • नमक कानून का उल्लंघन: 6 अप्रैल को वह दांडी पहुँचे और उन्होंने समुद्र का पानी उबालकर नमक बनाना शुरू कर दिया। यह कानून का उल्लंघन था।

7.2 सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रसार

  • यहीं से सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू होता है। यह आंदोलन असहयोग आंदोलन के मुकाबले इस तरह अलग था कि इस बार लोगों को न केवल अंग्रेजों का सहयोग न करने के लिए, बल्कि औपनिवेशिक कानूनों का उल्लंघन करने के लिए आह्वान किया जाने लगा।
  • देश भर में प्रतिक्रिया:
    • हजारों लोगों ने नमक कानून तोड़ा और सरकारी नमक कारखानों के सामने प्रदर्शन किए।
    • विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया जाने लगा। शराब की दुकानों की पिकेटिंग होने लगी।
    • किसानों ने लगान और चौकीदारी कर चुकाने से इनकार कर दिया।
    • गाँवों में तैनात कर्मचारी इस्तीफे देने लगे। बहुत सारे स्थानों पर लोगों ने वन कानूनों का उल्लंघन किया।
  • सरकार की दमनकारी नीति:
    • सरकार ने कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया।
    • अप्रैल 1930 में जब अब्दुल गफ्फार खान को गिरफ्तार किया गया तो गुस्साई भीड़ ने पेशावर की सड़कों पर हिंसक प्रदर्शन किए।
    • महीने भर बाद जब गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया तो शोलापुर के औद्योगिक मजदूरों ने अंग्रेजी शासन का प्रतीक पुलिस चौकियों, नगरपालिका भवनों, अदालतों और रेलवे स्टेशनों पर हमले शुरू कर दिए।
    • सरकार ने निर्मम दमन का रास्ता अपनाया। शांतिपूर्ण सत्याग्रहियों पर हमले किए गए, औरतों व बच्चों को मारा-पीटा गया और लगभग एक लाख लोग गिरफ्तार किए गए।

7.3 गांधी-इरविन समझौता और आंदोलन की वापसी

  • गांधी-इरविन समझौता (5 मार्च, 1931): महात्मा गाँधी ने एक बार फिर आंदोलन वापस ले लिया। उन्होंने इरविन के साथ एक समझौते पर दस्तखत किए।
  • समझौते की शर्तें:
    • गाँधीजी ने लंदन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने पर अपनी सहमति व्यक्त की।
    • इसके बदले सरकार राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर राजी हो गई।
  • दूसरे गोलमेज सम्मेलन का परिणाम: दिसंबर 1931 में गाँधीजी लंदन गए, लेकिन वार्ता बीच में ही टूट गई और उन्हें निराश वापस लौटना पड़ा।
  • आंदोलन का पुनः आरंभ: भारत आकर उन्होंने पाया कि सरकार ने फिर से दमन शुरू कर दिया है। महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन दोबारा शुरू कर दिया। साल भर तक आंदोलन चला, लेकिन 1934 तक आते-आते उसकी गति मंद पड़ने लगी।

8. लोगों ने आंदोलन को कैसे लिया

8.1 किसान

  • संपन्न किसान (गुजरात के पाटीदार और उत्तर प्रदेश के जाट):
    • कारण: व्यावसायिक फसलों की खेती करने के कारण व्यापार में मंदी और गिरती कीमतों से वे बहुत परेशान थे। लगान चुकाना नामुमकिन हो गया था।
    • स्वराज का अर्थ: उनके लिए स्वराज की लड़ाई भारी लगान के खिलाफ लड़ाई थी।
    • निराशा: जब 1931 में लगानों के घटे बिना आंदोलन वापस ले लिया गया, तो उन्हें बड़ी निराशा हुई। फलस्वरूप, 1932 में जब आंदोलन दोबारा शुरू हुआ तो उनमें से बहुतों ने उसमें हिस्सा लेने से इनकार कर दिया।
  • गरीब किसान:
    • कारण: वे जमींदारों से पट्टे पर जमीन लेकर खेती कर रहे थे। महामंदी के कारण वे किराया चुकाने में असमर्थ थे। वे चाहते थे कि उन्हें जमींदारों को जो भाड़ा चुकाना था उसे माफ कर दिया जाए।
    • कांग्रेस का रुख: कांग्रेस ‘भाड़ा विरोधी’ आंदोलनों को समर्थन देने में हिचकिचाती थी क्योंकि उसे अमीर किसानों और जमींदारों की नाराजगी का भय था। इसी कारण गरीब किसानों और कांग्रेस के बीच संबंध अनिश्चित बने रहे।

8.2 व्यवसायी वर्ग

  • कारण: वे अपने कारोबार को फैलाने के लिए ऐसी औपनिवेशिक नीतियों का विरोध करते थे जिनसे उनकी व्यावसायिक गतिविधियों में रुकावट आती थी। वे विदेशी वस्तुओं के आयात से सुरक्षा चाहते थे।
  • संगठन: उन्होंने 1920 में भारतीय औद्योगिक एवं व्यावसायिक कांग्रेस (इंडियन इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल कांग्रेस) और 1927 में भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग परिसंघ (फिक्की – FICCI) का गठन किया।
  • समर्थन: उन्होंने आंदोलन को आर्थिक सहायता दी और आयातित वस्तुओं को खरीदने या बेचने से इनकार कर दिया।
  • स्वराज का अर्थ: उनके लिए स्वराज का अर्थ था एक ऐसा युग जहाँ कारोबार पर औपनिवेशिक पाबंदियाँ नहीं होंगी और व्यापार व उद्योग निर्बाध ढंग से फल-फूल सकेंगे।
  • मोहभंग: गोलमेज सम्मेलन की विफलता और कांग्रेस के युवा सदस्यों में समाजवाद के बढ़ते प्रभाव से वे चिंतित थे, जिसके कारण उनका उत्साह मंद पड़ गया।

9. सविनय अवज्ञा की सीमाएँ

9.1 औद्योगिक श्रमिक वर्ग

  • सीमित भागीदारी: औद्योगिक श्रमिक वर्ग ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में नागपुर के अलावा और कहीं भी बहुत बड़ी संख्या में हिस्सा नहीं लिया। जैसे-जैसे उद्योगपति कांग्रेस के नजदीक आ रहे थे, मजदूर कांग्रेस से छिटकने लगे थे।
  • गाँधीवादी विचारों का उपयोग: कुछ मजदूरों ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार जैसे कुछ गाँधीवादी विचारों को कम वेतन व खराब कार्यस्थितियों के खिलाफ अपनी लड़ाई से जोड़ लिया था। 1930 में रेलवे कामगारों और 1932 में गोदी कामगारों की हड़ताल हुई। छोटानागपुर की टिन खानों के हजारों मजदूरों ने गाँधी टोपी पहनकर रैलियों और बहिष्कार अभियानों में हिस्सा लिया।
  • कांग्रेस का संकोच: फिर भी, कांग्रेस अपने कार्यक्रम में मजदूरों की माँगों को समाहित करने में हिचकिचा रही थी। कांग्रेस को लगता था कि इससे उद्योगपति आंदोलन से दूर चले जाएँगे और साम्राज्यवाद विरोधी ताकतों में फूट पड़ेगी।

9.2 महिलाएँ

  • बड़ी भागीदारी: सिविल नाफरमानी आंदोलन में औरतों ने बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया। गाँधीजी के नमक सत्याग्रह के दौरान हजारों औरतें उनकी बात सुनने के लिए घर से बाहर आ जाती थीं।
  • गतिविधियाँ: उन्होंने जुलूसों में हिस्सा लिया, नमक बनाया, विदेशी कपड़ों व शराब की दुकानों की पिकेटिंग की। बहुत सारी महिलाएँ जेल भी गईं।
  • सामाजिक पृष्ठभूमि: शहरी इलाकों में ज्यादातर ऊँची जातियों की महिलाएँ सक्रिय थीं, जबकि ग्रामीण इलाकों में संपन्न किसान परिवारों की महिलाएँ आंदोलन में हिस्सा ले रही थीं।
  • कांग्रेस और गाँधीजी का दृष्टिकोण:
    • गाँधीजी का मानना था कि घर चलाना, चूल्हा-चौका सँभालना, अच्छी माँ व अच्छी पत्नी की भूमिकाओं का निर्वाह करना ही औरत का असली कर्तव्य है।
    • इसीलिए लंबे समय तक कांग्रेस संगठन में किसी भी महत्वपूर्ण पद पर औरतों को जगह देने से हिचकिचाती रही। कांग्रेस को उनकी प्रतीकात्मक उपस्थिति में ही दिलचस्पी थी।

9.3 ‘अछूत’ या दलित

  • कांग्रेस का दृष्टिकोण: कांग्रेस ने लंबे समय तक दलितों पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि कांग्रेस रूढ़िवादी सवर्ण हिंदू सनातनपंथियों से डरी हुई थी।
  • गाँधीजी के प्रयास:
    • महात्मा गाँधी ने ऐलान किया कि अस्पृश्यता (छुआछूत) को खत्म किए बिना सौ साल तक भी स्वराज की स्थापना नहीं की जा सकती।
    • उन्होंने अछूतों को ‘हरिजन’ यानी ईश्वर की संतान बताया।
    • उन्होंने मंदिरों में उनके प्रवेश, सार्वजनिक तालाबों, सड़कों और कुओं पर उनके इस्तेमाल के अधिकार के लिए सत्याग्रह किया।

अध्याय 2: भारत में राष्ट्रवाद – अभ्यास प्रश्न और उत्तर

1. व्याख्या करें

(क) उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई क्यों थी?

उत्तर: उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से गहराई से जुड़ी हुई थी क्योंकि:

  • साझा उत्पीड़न का भाव: औपनिवेशिक शासकों द्वारा किए जा रहे उत्पीड़न और दमन ने विभिन्न सामाजिक समूहों को एक-दूसरे से बाँध दिया। लोगों ने यह महसूस करना शुरू कर दिया कि उनकी परेशानियाँ और उनके दुश्मन (औपनिवेशिक शासक) एक ही हैं।
  • एकता की खोज: औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर्ष के दौरान लोगों ने आपसी एकता को पहचानना और बनाना शुरू किया। स्वतंत्रता की लड़ाई ने उन्हें एक साझा राष्ट्रीय पहचान के सूत्र में पिरो दिया।
  • नए विचारों का उदय: उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष ने स्वतंत्रता, समानता और राष्ट्र-राज्य जैसे आधुनिक विचारों को लोकप्रिय बनाया, जिसने राष्ट्रवाद की भावना को और मजबूत किया।

(ख) पहले विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया?

उत्तर: पहले विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में निम्नलिखित तरीकों से योगदान दिया:

  • आर्थिक कठिनाइयाँ: युद्ध के कारण ब्रिटिश सरकार का रक्षा व्यय बहुत बढ़ गया था, जिसकी भरपाई के लिए उन्होंने कर्जे लिए और करों में भारी वृद्धि कर दी। सीमा शुल्क बढ़ा दिया गया और आयकर शुरू किया गया।
  • मूल्य वृद्धि: युद्ध के दौरान चीजों की कीमतें दोगुनी हो गईं, जिससे आम लोगों की आर्थिक मुश्किलें बहुत बढ़ गईं।
  • जबरन भर्ती: ब्रिटिश सरकार ने गाँवों से जबरन सिपाहियों की भर्ती की, जिससे ग्रामीण इलाकों में सरकार के खिलाफ भारी गुस्सा था।
  • अकाल और महामारी: 1918-21 के बीच देश के कई हिस्सों में फसलें खराब हो गईं और फ्लू जैसी महामारी फैल गई, जिसमें लाखों लोग मारे गए। सरकार ने इस स्थिति को संभालने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए।

इन सभी कारणों से भारतीय जनता में ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष बढ़ा और उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

(ग) भारत के लोग रॉलट एक्ट के विरोध में क्यों थे?

उत्तर: भारत के लोग रॉलट एक्ट (1919) के विरोध में थे क्योंकि:

  • अन्यायपूर्ण कानून: यह एक काला कानून था जिसे इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ने भारतीय सदस्यों के भारी विरोध के बावजूद जल्दबाजी में पारित कर दिया था।
  • मौलिक अधिकारों का हनन: इस कानून ने सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने की असीमित शक्ति दे दी थी।
  • बिना मुकदमा चलाए जेल: इसके तहत किसी भी राजनीतिक कैदी को बिना मुकदमा चलाए दो साल तक जेल में बंद रखा जा सकता था, जो नागरिक अधिकारों का घोर उल्लंघन था।

(घ) गांधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फ़ैसला क्यों लिया?

उत्तर: महात्मा गाँधी ने फरवरी 1922 में असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला लिया क्योंकि:

  • आंदोलन का हिंसक होना: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित चौरी-चौरा नामक स्थान पर आंदोलनकारियों की एक भीड़ ने पुलिस थाने में आग लगा दी, जिसमें कई पुलिसकर्मी मारे गए।
  • अहिंसा के सिद्धांत का उल्लंघन: गाँधीजी का मानना था कि कोई भी बड़ा आंदोलन अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए। इस हिंसक घटना से उन्हें लगा कि आंदोलन अपनी दिशा से भटक रहा है।
  • सत्याग्रहियों के प्रशिक्षण की कमी: उन्हें यह भी महसूस हुआ कि सत्याग्रहियों को व्यापक प्रशिक्षण दिए बिना बड़े जनांदोलनों के लिए तैयार नहीं किया जा सकता।

2. सत्याग्रह के विचार का क्या मतलब है?

उत्तर: सत्याग्रह का विचार सत्य की शक्ति पर आग्रह और सत्य की खोज पर आधारित है। इसका अर्थ है कि यदि आपका उद्देश्य सच्चा है और आपका संघर्ष अन्याय के खिलाफ है, तो आपको उत्पीड़क से मुकाबला करने के लिए शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं है।

  • अहिंसा और आत्मबल: यह प्रतिशोध या आक्रामकता का सहारा लिए बिना, केवल अहिंसा के माध्यम से सफल हो सकता है। सत्याग्रही अपने शत्रु को कष्ट नहीं पहुँचाता, बल्कि उसकी चेतना को झिंझोड़कर उसे सत्य स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है।
  • संघर्ष का तरीका: यह शारीरिक बल नहीं, बल्कि आत्मबल है। गाँधीजी का विश्वास था कि अहिंसा का यह धर्म सभी भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकता है।

3. निम्नलिखित पर अखबार के लिए रिपोर्ट लिखें

(क) जलियाँवाला बाग हत्याकांड

अमृतसर एक्सप्रेस

14 अप्रैल, 1919

अमृतसर में बर्बरता: जलियाँवाला बाग में शांतिपूर्ण भीड़ पर गोलियाँ, सैकड़ों की मौत

अमृतसर: कल, 13 अप्रैल को बैसाखी के दिन शहर के जलियाँवाला बाग में एक अमानवीय घटना घटी, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। रॉलट एक्ट के विरोध में और वार्षिक मेले में शामिल होने के लिए जमा हुई हजारों की निहत्थी भीड़ पर जनरल डायर के आदेश पर अंधाधंध गोलीबारी की गई।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, बाग के एकमात्र निकास द्वार को बंद कर दिया गया था और बिना किसी चेतावनी के सैनिकों ने लगभग 10 मिनट तक गोलियाँ चलाईं। बाग में बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों सहित हजारों लोग मौजूद थे, जिन्हें भागने का कोई मौका नहीं मिला। अनुमान है कि इस घटना में सैकड़ों लोग मारे गए हैं और हजारों घायल हुए हैं। जनरल डायर ने अपने इस क्रूर कदम को “नैतिक प्रभाव” उत्पन्न करने की कार्रवाई बताया है। इस हत्याकांड के बाद पूरे शहर में मार्शल लॉ लगा दिया गया है और दहशत का माहौल है।

(ख) साइमन कमीशन

भारत समाचार

4 फरवरी, 1928

‘साइमन वापस जाओ’ के नारों से गूंजा भारत, राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन

नई दिल्ली: भारत में संवैधानिक सुधारों पर सुझाव देने के लिए ब्रिटेन द्वारा गठित सर जॉन साइमन की अध्यक्षता वाला वैधानिक आयोग कल भारत पहुँचा। आयोग के पहुँचते ही पूरे देश में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। कांग्रेस, मुस्लिम लीग और अन्य सभी प्रमुख दलों ने आयोग का बहिष्कार किया है।

विरोध का मुख्य कारण यह है कि सात सदस्यीय इस आयोग में एक भी भारतीय सदस्य नहीं है। भारतीयों का मानना है कि यह उनका अपमान है और अंग्रेज उनके भविष्य का फैसला बिना उनकी भागीदारी के नहीं कर सकते। देश भर में ‘साइमन वापस जाओ’ (Simon Go Back) के नारे लगाए जा रहे हैं और आयोग को काले झंडे दिखाए जा रहे हैं। सरकार प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग कर रही है, लेकिन लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ है।

4. इस अध्याय में दी गई भारत माता की छवि और अध्याय 1 में दी गई जर्मेनिया की छवि की तुलना कीजिए।

उत्तर: भारत माता और जर्मेनिया की छवियों में निम्नलिखित समानताएँ और अंतर हैं:

समानताएँ:

  • राष्ट्र का मानवीकरण: दोनों ही छवियाँ एक अमूर्त विचार (राष्ट्र) को एक ठोस, मानवीय रूप देने का प्रयास हैं। दोनों को नारी रूप में चित्रित किया गया है।
  • राष्ट्रवाद की प्रेरणा: दोनों का उद्देश्य अपने-अपने देश के लोगों में राष्ट्रीयता, एकता और गौरव की भावना जगाना था।

अंतर:

विशेषताभारत माताजर्मेनिया
प्रतीकभारत माता को अक्सर एक संन्यासिनी के रूप में चित्रित किया गया है जो शांत, गंभीर और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है। उनके हाथों में अक्सर त्रिशूल, धान की बाली, पुस्तक आदि होते हैं जो आस्था, समृद्धि और ज्ञान को दर्शाते हैं।जर्मेनिया को एक वीर स्त्री के रूप में दिखाया गया है, जो बलूत (Oak) के पत्तों का मुकुट पहनती है, जो वीरता का प्रतीक है। उसके हाथ में तलवार होती है जो मुकाबले की तैयारी को दर्शाती है।
पृष्ठभूमिभारत माता की छवि भारत के प्राचीन और आध्यात्मिक अतीत से प्रेरणा लेती है।जर्मेनिया की छवि जर्मन साम्राज्य की वीरता और सैन्य शक्ति को दर्शाती है।
भावभारत माता की छवि में शांति, त्याग और आध्यात्मिकता का भाव प्रमुख है।जर्मेनिया की छवि में शौर्य, वीरता और रक्षा का भाव प्रमुख है।

अतिरिक्त लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1: खिलाफत आंदोलन क्यों शुरू हुआ?

उत्तर: खिलाफत आंदोलन (1919-1924) भारतीय मुसलमानों द्वारा प्रथम विश्व युद्ध के बाद तुर्की के खलीफा (ऑटोमन सम्राट) के समर्थन में शुरू किया गया था। युद्ध में हार के बाद मित्र राष्ट्रों द्वारा खलीफा पर एक अपमानजनक संधि थोपे जाने की आशंका थी, जिससे दुनिया भर के मुसलमानों की धार्मिक भावनाएँ आहत होतीं। भारत में मोहम्मद अली और शौकत अली जैसे नेताओं ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया।

प्रश्न 2: अवध के किसान आंदोलन के दो मुख्य कारण क्या थे?

उत्तर: अवध के किसान आंदोलन के दो मुख्य कारण थे:

  1. भारी लगान: तालुकदार और जमींदार किसानों से बहुत अधिक लगान वसूलते थे।
  2. बेगार: किसानों को बिना किसी भुगतान के जमींदारों के खेतों और घरों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता था, जिसे ‘बेगार’ कहते थे।

प्रश्न 3: अल्लूरी सीताराम राजू कौन थे?

उत्तर: अल्लूरी सीताराम राजू आंध्र प्रदेश की गूदेम पहाड़ियों में आदिवासी किसानों के विद्रोह के नेता थे। वे गाँधीजी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित थे लेकिन उनका मानना था कि भारत केवल बल प्रयोग से ही आजाद हो सकता है, अहिंसा से नहीं। उन्होंने गुरिल्ला युद्ध का नेतृत्व किया और 1924 में उन्हें फाँसी दे दी गई।

प्रश्न 4: ‘पूर्ण स्वराज’ का प्रस्ताव कब और कहाँ पारित किया गया?

उत्तर: ‘पूर्ण स्वराज’ का प्रस्ताव दिसंबर 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पारित किया गया था। इस अधिवेशन की अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू ने की थी।

प्रश्न 5: गांधी-इरविन समझौते की मुख्य शर्त क्या थी?

उत्तर: 5 मार्च, 1931 को हुए गांधी-इरविन समझौते की मुख्य शर्त यह थी कि गाँधीजी लंदन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेंगे और इसके बदले में ब्रिटिश सरकार सभी राजनीतिक कैदियों (जिन पर हिंसा का आरोप नहीं था) को रिहा कर देगी।

प्रश्न 6: पूना पैक्ट क्या था?

उत्तर: पूना पैक्ट (सितंबर 1932) महात्मा गाँधी और डॉ. बी. आर. अंबेडकर के बीच हुआ एक समझौता था। इसके तहत, दलित वर्गों के लिए प्रांतीय और केंद्रीय विधान परिषदों में सीटें आरक्षित कर दी गईं, लेकिन उनके लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की माँग को समाप्त कर दिया गया। इन आरक्षित सीटों पर मतदान सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों के माध्यम से ही होना था।

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