प्रथम: पाठ: शुचिपर्यावरणम
MP Board class 10 Sanskrut Shemushi Shuchiparyavarnam : यह काव्य आधुनिक संस्कृत कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा रचित संग्रह “लसल्लतिका” से लिया गया है। इस काव्य में कवि ने महानगरों में यंत्रों के अत्यधिक उपयोग से होने वाले प्रदूषण और उससे उत्पन्न समस्याओं पर चिंता व्यक्त की है। कवि महानगरीय जीवन की आपाधापी और प्रदूषण से त्रस्त होकर प्रकृति की शरण में जाने की इच्छा प्रकट करता है जहाँ स्वच्छ नदियाँ, हरियाली और पक्षियों का कलरव हो। यह काव्य प्रकृति के प्रति प्रेम और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है।
मंत्रों की व्याख्या (हिंदी में):
पहला श्लोक:
महानगरमध्ये चलदनिशं कालायसचक्रम्।
मन: शोषयत् तनू: पेषयद् भ्रमति सदा वक्रम्।
दुर्दानतैर्दशनैरमुना स्यानैव जनग्रसनम्। शुचि-पर्यावरणम्।
व्याख्या:
कवि कहता है कि महानगरों में निरंतर चलने वाला समय का लौहचक्र (यांत्रिक जीवन) मन और शरीर को सुखाता और कुचलता है। यह चक्र हमेशा टेढ़ा-मेढ़ा (असंतुलित) चलता है, जिससे लोगों का जीवन नष्ट होता है। इस चक्र के दांतों जैसे कठोर प्रभाव से लोग पीड़ित होते हैं। कवि स्वच्छ पर्यावरण की कामना करता है।
दूसरा श्लोक:
वायुमण्डलं भूशं न हि निर्मल जलम्।
कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यं समलं धरातलम्।
करणीयं बहिरन्तर्जगति तु बहु शुद्धीकरणम्। शुचि…
व्याख्या:
कवि वायुमंडल और जल की अशुद्धता पर दुख व्यक्त करता है। धरती पर भोजन और अन्य पदार्थ अशुद्ध वस्तुओं से मिश्रित हो गए हैं। वह कहता है कि बाहरी और आंतरिक दोनों ही स्तरों पर विश्व को शुद्ध करने की आवश्यकता है। यहाँ पर्यावरण और मन की शुद्धि की बात कही गई है।
चौथा श्लोक:
कदाचित् कालं नय मामस्मान्नगराद् बहुदूरम्।
प्रपश्यामि ग्रामान्ते नीर-नदी-पय:पूरम्।
एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे स्यात् सञ्चरणम्। शुचि…
व्याख्या:
कवि प्रार्थना करता है कि समय उसे इस प्रदूषित नगर से दूर ले जाए, जहाँ वह गाँव के पास स्वच्छ नदियों और जल से भरे स्थानों को देख सके। वह एकांत जंगल में कुछ क्षणों के लिए भी विचरण करना चाहता है, जहाँ प्रकृति की शांति मिले।
पाँचवाँ श्लोक:
हरिततरूणां ललितलतानां माला रमणीया।
कुसुमावलिः समीरचालिता स्यान्मे वरणीया।
नवमालिका रसालं मिलिता रुचिरं सङ्गमनम्। शुचि…
व्याख्या:
कवि हरे-भरे वृक्षों और सुंदर लताओं की माला को रमणीय बताता है। हवा से हिलती हुई फूलों की मालाएँ उसे आकर्षित करती हैं। वह ऐसी प्राकृतिक सुंदरता को चुनना चाहता है, जो रसपूर्ण और मनमोहक हो। यहाँ प्रकृति की शोभा का वर्णन है।
छठा श्लोक:
हे, अयि चल बन्धो! खगकुलकलरवगुञ्जितवनदेशम्।
पुर-कलरवसम्मूढितजनेभ्यो धृतसुखसन्देशम्।
चाकचिक्यजालं नो… कुर्याज्जीवितरसहरणम्। शुचि…
व्याख्या:
कवि अपने मित्र से कहता है कि उसे पक्षियों के मधुर कलरव से भरे वन में ले जाए, जो शहर के कोलाहल से भ्रमित लोगों को सुख का संदेश दे। वह नहीं चाहता कि यांत्रिक जीवन का जाल उसकी जीवन-रस को छीन ले। यह श्लोक प्रकृति की शांति और शहर के शोर के बीच अंतर को दर्शाता है।
सातवाँ श्लोक:
प्रस्तरतले लतातरुगुल्मा नो भवन्तु पिष्टाः।
पाषाणी सभ्यता निसर्गे स्यान्न समाविष्टा।
मानवाय जीवनं कामये नो जीवन्मरणम्। शुचि…
व्याख्या:
कवि कहता है कि पत्थरों की सभ्यता में लताएँ, वृक्ष और झाड़ियाँ कुचली न जाएँ। यह आधुनिक सभ्यता प्रकृति को नष्ट न करे। वह मानव के लिए सच्चा जीवन चाहता है, न कि ऐसा जीवन जो मृत्यु के समान हो। यह श्लोक प्रकृति संरक्षण और सभ्यता के दुष्प्रभावों पर गहरी चिंता व्यक्त करता है।
सारांश:
“लसल्लतिका” काव्य पर्यावरण प्रदूषण और आधुनिक यांत्रिक जीवन की समस्याओं पर प्रकाश डालता है। कवि महानगरों की अशांति और प्रदूषण से त्रस्त होकर प्रकृति की गोद में शांति और शुद्धता की खोज करता है। यह काव्य प्रकृति के प्रति प्रेम, पर्यावरण संरक्षण, और मानव जीवन को सार्थक बनाने का संदेश देता है।
संस्कृत शब्द | हिंदी अर्थ | अंग्रेज़ी अर्थ |
---|
दुर्वहम् / दुष्करम् | कठिन, दूभर | Difficult |
जीवितम् / जीवनम् | जीवन | Life |
अनिशम् / अहर्निशम् | दिन-रात | Day and Night |
कालायसचक्रम् / लौहचक्रम् | लोहे का चक्र | Iron Wheel |
शोषयत् / शुष्कीकुर्वत् | सुखाते हुए | Drying |
शरीराणि / तनूः | शरीर | Body |
पिष्टीकुर्वत् / पेषयद् | पीसते हुए | Grinding / Crushing |
वक्रम् | कुटिल | Crooked |
दुदन्तिः | भयङ्कर दाँत | Terrible Teeth |
दशनैः | दाँतों से | With Teeth |
अमुना | अनेन | By this |
जनग्रसनम् / जनभक्षणम् | मानवों का विनाश / भक्षण | Destruction / Consumption of Humans |
कज्जलमलिनम् | काजल के समान काला | Black as Kohl |
धूमः | धुआँ | Smoke |
मुञ्चति | छोड़ता है | Releasing |
शकटीयानानां शतम् | सैकड़ों मोटरगाड़ियाँ | Hundreds of Vehicles |
वाष्पयानमाला | रेलगाड़ियों की पंक्ति | Row of Trains |
वितरन्ती / ददती | देती हुई | Distributing |
ध्वानम् | कोलाहल, ध्वनि | Sound |
संसरणम् / सञ्चलनम् | चलना, गति | Movement |
भृशं | अत्यधिक | Enormous |
भक्ष्यम् / खाद्यपदार्थ | भोज्य पदार्थ | Eatable |
समलम् | मलयुक्त, गंदगी से युक्त | Dirty / Polluted |
मलिनम् | गंदा | Dirty |
त्यजति | छोड़ता है | Leaves / Abandons |
ग्रामान्ते / ग्रामस्य सीमायाम् | गाँव की सीमा पर | At village border |
पयःपूरम् / जलाशयम् | जल से भरा हुआ तालाब | Pond / Filled with water |
कान्तारे / वने | जंगल में | In the forest |
कुसुमावलिः / कुसुमानां पंक्तिः | फूलों की पंक्ति | Row of flowers |
समीरचालिता / वायुचा | हवा से चलायी हुई | Moved by wind |
रुचिरम् / सुन्दरम् | सुन्दर | Attractive / Beautiful |
खगकुलकलरव / खगकुलानां कलरवः | पक्षियों के समूह की ध्वनि | Chirping of birds |
चाकचिक्यजालम् | चकाचौंध भरी दुनिया / कृत्रिम प्रभाव | Web of dazzle |
जगत् शिलातले | पत्थरों के तल पर | On the surface of rocks |
लतातरुगुल्माः | लता, वृक्ष और झाड़ियाँ | Creepers, trees, and shrubs |
पाषाणी / प्रस्तरतले | पथरीली | Stony |
निसर्गे / प्रकृत्याम् | प्रकृति में | In nature |
प्रश्न और उत्तर (Questions and Answers)
1. प्रश्न (Question): अत्र जीवितं कीदृशं जातम्? (यहाँ जीवन कैसा हो गया है?)
उत्तर (Answer): दूर्भरम् (कठिन)
2. प्रश्न (Question): अनिशं महानगरमध्ये किं प्रचलति? (दिन-रात महानगर में क्या चलता है?)
उत्तर (Answer): कालायसचक्रम् (लोहे का चक्र)
3. प्रश्न (Question): कुत्सितवस्तुमिश्रितं किमस्ति? (किसमें अशुद्ध वस्तुएँ मिश्रित हैं?)
उत्तर (Answer): भक्ष्यम् (भोज्य पदार्थ)
4. प्रश्न (Question):
अहं कस्मै जीवनं कामये? (मैं किसके लिए जीवन की कामना करता हूँ?)
उत्तर (Answer): मानवाय (मानव के लिए)
5. प्रश्न (Question): केषां माला रमणीया? (किसकी माला रमणीय है?)
उत्तर (Answer): हरिततरूणाम् (हरे वृक्षों की)
प्रश्नानां उत्तराणि संस्कृतभाषया:
(क) प्रश्न: कवि: किमर्थं प्रकृतेः शरणम् इच्छति?
उत्तर: महानगरीयजीवनस्य प्रदूषणात् शान्तिसुखाय च।
(ख) प्रश्न: कस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते?
उत्तर: यन्त्राधिक्येन कालायसचक्रस्य च प्रवृत्तेः।
(ग) प्रश्न: अस्माकं पर्यावरणे किं किं दूषितम् अस्ति?
उत्तर: वायुमण्डलं, जलं, भक्ष्यं च धरातलम्।
(घ) प्रश्न: कवि: कुत्र सञ्चरणं कर्तुम् इच्छति?
उत्तर: ग्रामान्ते नीर-नदी-पयःपूरवति वनप्रदेशे।
(ड) प्रश्न: स्वस्थजीवनाय कीदृशे वातावरणे संनादति रमणीयम्?
उत्तर: हरिततरुललितलताकुसुमावलियुक्ते शुचिवातावरणे।
(च) प्रश्न: अन्तिमे श्लोके कवेः का कामना अस्ति?
उत्तर: मानवाय जीवन्मरणरहितं स्वस्थं जीवनम्।
सन्धि / सन्धिविच्छेद:
(क) प्रकृति: + एव = प्रकृतिरेव
सन्धिविच्छेद: प्रकृति: + एव
सन्धि: विसर्गसन्धि (विसर्ग का “र्” में परिवर्तन “एव” के “ए” के साथ)
विवरण: जब विसर्ग (:) के बाद “ए” वर्ण आता है, तो विसर्ग “र्” में बदल जाता है। अतः प्रकृति: + एव = प्रकृतिरेव।
(ख) स्यात् + एव = स्यादेव
सन्धिविच्छेद: स्यात् + एव
सन्धि: स्वरसन्धि (दीर्घसन्धि)
विवरण: “स्यात्” के अंतिम “आ” और “एव” के प्रारंभिक “ए” के मेल से दीर्घ “आ” बनता है, और परिणामस्वरूप स्यात् + एव = स्यादेव।
(ग) नो + एव = नोऽव
सन्धिविच्छेद: नो + एव
सन्धि: विसर्गसन्धि (विसर्ग का लोप और अवग्रह का प्रयोग)
विवरण: जब “नो” के बाद “एव” आता है, तो विसर्ग का लोप हो जाता है और अवग्रह (ऽ) का प्रयोग होता है। अतः नो + एव = नोऽव।
(घ) बहिः + अन्तः + जगति = बहिरन्तर्जगति
सन्धिविच्छेद: बहिः + अन्तः + जगति
सन्धि: विसर्गसन्धि
विवरण:
- प्रथम सन्धि: बहिः + अन्तः = बहिरन्तः (विसर्ग का “र्” में परिवर्तन “अ” के साथ)।
- द्वितीय सन्धि: बहिरन्तः + जगति = बहिरन्तर्जगति (विसर्ग का “र्” में परिवर्तन “ज” के साथ)।
अतः बहिः + अन्तः + जगति = बहिरन्तर्जगति।
(ड) कदाचित् + दूरम् = कदाचिद्दूरम्
सन्धिविच्छेद: कदाचित् + दूरम्
सन्धि: विसर्गसन्धि
विवरण: “कदाचित्” के अंतिम विसर्ग के बाद “दूरम्” का “द” आता है, तो विसर्ग “द्” में बदल जाता है। अतः कदाचित् + दूरम् = कदाचिद्दूरम्।
(च) सम् + चरणम् = सञ्चरणम्
सन्धिविच्छेद: सम् + चरणम्
सन्धि: व्यञ्जनसन्धि
विवरण: “सम्” के अंतिम “म्” और “चरणम्” के प्रारंभिक “च” के मेल से “म्” का “ञ्” में परिवर्तन होता है। अतः सम् + चरणम् = सञ्चरणम्।
(छ) धूम्रम् + मुखति = धूम्रमुखति
सन्धिविच्छेद: धूम्रम् + मुखति
सन्धि: व्यञ्जनसन्धि
विवरण: “धूम्रम्” के अंतिम “म्” और “मुखति” के प्रारंभिक “म” के मेल से कोई परिवर्तन नहीं होता, केवल संनादति (संयोजन) होता है। अतः धूम्रम् + मुखति = धूम्रमुखति।
सारांश तालिका (Summary Table):
प्रश्न | सन्धि | सन्धिविच्छेद | सन्धि का प्रकार |
---|---|---|---|
(क) | प्रकृतिरेव | प्रकृति: + एव | विसर्गसन्धि |
(ख) | स्यादेव | स्यात् + एव | स्वरसन्धि (दीर्घ) |
(ग) | नोऽव | नो + एव | विसर्गसन्धि |
(घ) | बहिरन्तर्जगति | बहिः + अन्तः + जगति | विसर्गसन्धि |
(ड) | कदाचिद्दूरम् | कदाचित् + दूरम् | विसर्गसन्धि |
(च) | सञ्चरणम् | सम् + चरणम् | व्यञ्जनसन्धि |
(छ) | धूम्रमुखति | धूम्रम् + मुखति | व्यञ्जनसन्धि |
रिक्तस्थानानि पूरयत (Fill in the Blanks):
(क) इदानीं वायुमण्डलं यथा प्रदूषितमस्ति।
विवरण: “यथा” (जैसे) यहाँ उपयुक्त है क्योंकि यह वायुमण्डल के प्रदूषित होने की तुलना या स्थिति को दर्शाता है।
पूर्ण वाक्य: इदानीं वायुमण्डलं यथा प्रदूषितमस्ति। (अब वायुमण्डल जैसे प्रदूषित है।)
(ख) यदा जीवनं दुर्बलम् अस्ति।
विवरण: “यदा” (जब) समय की स्थिति को दर्शाता है, जो जीवन के दुर्बल होने के संदर्भ में उपयुक्त है।
पूर्ण वाक्य: यदा जीवनं दुर्बलम् अस्ति। (जब जीवन दुर्बल होता है।)
(ग) प्राकृतिक-वातावरणे क्षणं अपि सञ्चरणम् लाभदायकं भवति।
विवरण: “अपि” (भी) यहाँ जोर देने के लिए उपयुक्त है, जो संकेत देता है कि थोड़ा-सा सञ्चरण भी लाभदायक है।
पूर्ण वाक्य: प्राकृतिक-वातावरणे क्षणं अपि सञ्चरणम् लाभदायकं भवति। (प्राकृतिक वातावरण में क्षण-भर भी सञ्चरण लाभदायक होता है।)
(घ) पर्यावरणस्य संरक्षणम् एव प्रकृतेः आराधना।
विवरण: “एव” (ही) यहाँ निश्चितता और विशेषता को दर्शाता है, जो पर्यावरण संरक्षण को प्रकृति की आराधना के रूप में पुष्ट करता है।
पूर्ण वाक्य: पर्यावरणस्य संरक्षणम् एव प्रकृतेः आराधना। (पर्यावरण का संरक्षण ही प्रकृति की आराधना है।)
(ङ) सदा समयस्य सदुपयोगः करणीयः।
विवरण: “सदा” (हमेशा) समय के निरंतर उपयोग को दर्शाता है, जो समय के सदुपयोग की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
पूर्ण वाक्य: सदा समयस्य सदुपयोगः करणीयः। (हमेशा समय का सदुपयोग करना चाहिए।)
(च) भूकम्पित-समये बहिः गमनमेव उचितं भवति।
विवरण: “बहिः” (बाहर) यहाँ स्थान को दर्शाता है, जो भूकम्प के समय बाहर जाने की उचितता को व्यक्त करता है।
पूर्ण वाक्य: भूकम्पित-समये बहिः गमनमेव उचितं भवति। (भूकम्प के समय बाहर जाना ही उचित होता है।)
(छ) यत्र हरितिमा तत्र शुचि पर्यावरणम्।
विवरण: “यत्र” (जहाँ) स्थान को दर्शाता है, जो हरितिमा और स्वच्छ पर्यावरण के बीच संबंध को स्पष्ट करता है।
पूर्ण वाक्य: यत्र हरितिमा तत्र शुचि पर्यावरणम्। (जहाँ हरियाली है, वहाँ स्वच्छ पर्यावरण है।)
सारांश तालिका (Summary Table):
प्रश्न | रिक्तस्थानम् | अव्ययम् | पूर्ण वाक्यम् |
---|---|---|---|
(क) | वायुमण्डलं _ प्रदूषितमस्ति | यथा | इदानीं वायुमण्डलं यथा प्रदूषितमस्ति। |
(ख) | _ जीवनं दुर्बलम् अस्ति | यदा | यदा जीवनं दुर्बलम् अस्ति। |
(ग) | क्षणं _ सञ्चरणम् लाभदायकं भवति | अपि | प्राकृतिक-वातावरणे क्षणं अपि सञ्चरणम् लाभदायकं भवति। |
(घ) | संरक्षणम् _ प्रकृतेः आराधना | एव | पर्यावरणस्य संरक्षणम् एव प्रकृतेः आराधना। |
(ङ) | _ समयस्य सदुपयोगः करणीयः | सदा | सदा समयस्य सदुपयोगः करणीयः। |
(च) | भूकम्पित-समये _ गमनमेव उचितं भवति | बहिः | भूकम्पित-समये बहिः गमनमेव उचितं भवति। |
(छ) | _ हरितिमा तत्र शुचि पर्यावरणम् | यत्र | यत्र हरितिमा तत्र शुचि पर्यावरणम्। |
पर्यायपद (Synonyms):
(क) सलिलम्
पर्यायपद: जलम्, नीरम्, तोयम्, अम्बु
विवरण: सलिलम् का अर्थ पानी है, और इसके समानार्थी शब्द जलम्, नीरम्, तोयम्, और अम्बु हैं।
(ख) आम्रम्
पर्यायपद: मङ्गीफलम्, चूतम्, रसालम्, अतिसौरभम्
विवरण: आम्रम् का अर्थ आम (फल) है, और इसके पर्याय मङ्गीफलम्, चूतम्, रसालम् आदि हैं।
(ग) वनम्
पर्यायपद: अरण्यम्, काननम्, विपिनम्, कुञ्जम्
विवरण: वनम् का अर्थ जंगल या वन है, और इसके समानार्थी शब्द अरण्यम्, काननम्, विपिनम् आदि हैं।
(घ) शरीरम्
पर्यायपद: देहम्, तनुः, कायः, गात्रम्
विवरण: शरीरम् का अर्थ शरीर है, और इसके पर्याय देहम्, तनुः, कायः आदि हैं।
(ड) कुटिलम्
पर्यायपद: वक्रम्, जिह्मम्, भङ्गुरम्, कुटम्
विवरण: कुटिलम् का अर्थ टेढ़ा-मेढ़ा या कपटपूर्ण है, और इसके समानार्थी शब्द वक्रम्, जिह्मम् आदि हैं।
(च) पाषाणः
पर्यायपद: शिला, प्रस्तरः, अश्मा, शैलः
विवरण: पाषाणः का अर्थ पत्थर है, और इसके पर्याय शिला, प्रस्तरः, अश्मा आदि हैं।
सारांश तालिका (Summary Table):
प्रश्न | पदम् | पर्यायपद |
---|---|---|
(क) | सलिलम् | जलम्, नीरम्, तोयम्, अम्बु |
(ख) | आम्रम् | मङ्गीफलम्, चूतम्, रसालम्, अतिसौरभम् |
(ग) | वनम् | अरण्यम्, काननम्, विपिनम्, कुञ्जम् |
(घ) | शरीरम् | देहम्, तनुः, कायः, गात्रम् |
(ड) | कुटिलम् | वक्रम्, जिह्मम्, भङ्गुरम्, कुटम् |
(च) | पाषाणः | शिला, प्रस्तरः, अश्मा, शैलः |
विलोमपदानि (Antonyms):
(क) सुकरम्
विलोमपद: दूर्भरम्
विवरण: “सुकरम्” का अर्थ आसान है। पाठ में “दूर्भरम्” (कठिन) शब्द का प्रयोग जीवितम् (जीवन) के लिए किया गया है (दुर्बहमत्र जीवितं जातम्), जो सुकरम् का विपरीत अर्थ दर्शाता है।
(ख) दूषितम्
विलोमपद: शुचि
विवरण: “दूषितम्” का अर्थ अशुद्ध या प्रदूषित है। पाठ में “शुचि” (स्वच्छ) शब्द का प्रयोग पर्यावरण के संदर्भ में किया गया है (शुचि-पर्यावरणम्), जो दूषितम् का विलोम है।
(ग) आन्तरम्
विलोमपद: बहिः
विवरण: “आन्तरम्” का अर्थ आंतरिक या भीतर है। पाठ में “बहिः” (बाहर) शब्द का प्रयोग है (बहिरन्तर्जगति), जो आन्तरम् का विलोम है।
(घ) निर्मलम्
विलोमपद: समलम्
विवरण: “निर्मलम्” का अर्थ स्वच्छ या शुद्ध है। पाठ में “समलम्” (गंदा, मलयुक्त) शब्द का प्रयोग भक्ष्य और धरातल के लिए किया गया है (समलं धरातलम्), जो निर्मलम् का विलोम है।
(ड) दानवाय
विलोमपद: मानवाय
विवरण: “दानवाय” का अर्थ दानव (राक्षस) के लिए है। पाठ में “मानवाय” (मनुष्य के लिए) शब्द का प्रयोग है (मानवाय जीवनं कामये), जो दानवाय का विलोम है।
(च) हरितिमा
विलोमपद: कज्जलमलिनम्
विवरण: “हरितिमा” का अर्थ हरियाली है। पाठ में “कज्जलमलिनम्” (काजल-सा काला) शब्द प्रदूषण के संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है, जो हरितिमा का विपरीत अर्थ दर्शाता है।
सारांश तालिका (Summary Table):
प्रश्न | पदम् | विलोमपदम् | पाठ से संदर्भ |
---|---|---|---|
(क) | सुकरम् | दूर्भरम् | दुर्बहमत्र जीवितं जातम् |
(ख) | दूषितम् | शुचि | शुचि-पर्यावरणम् |
(ग) | आन्तरम् | बहिः | बहिरन्तर्जगति |
(घ) | निर्मलम् | समलम् | समलं धरातलम् |
(ड) | दानवाय | मानवाय | मानवाय जीवनं कामये |
(च) | हरितिमा | कज्जलमलिनम् | कज्जलमलिनम् (प्रदूषण का संदर्भ) |
समस्तपदानि, विग्रहवाक्यानि, समासनाम (Compound Words, Analysis, and Type):
(क) मलेन सहितम् – समलम् – अव्ययीभाव
विग्रहवाक्य: मलेन सहितम् (मल के साथ युक्त)
समस्तपद: समलम्
समास का नाम: अव्ययीभाव
विवरण: यहाँ “मल” के साथ “सम्” (सहित) का संयोग है, जो अव्ययीभाव समास का उदाहरण है। पाठ में “समलं धरातलम्” में इसका प्रयोग है।
(ख) हरिताः च ये तरवः (तेषां) – हरिततरूणाम् – बहुव्रीहि
विग्रहवाक्य: हरिताः च ये तरवः (हरियाली युक्त जो वृक्ष हैं, उनका)
समस्तपद: हरिततरूणाम्
समास का नाम: बहुव्रीहि
विवरण: पाठ में “हरिततरूणां” (हरिततरूणां ललितलतानां माला) का प्रयोग है। यह बहुव्रीहि समास है, क्योंकि यहाँ “हरित” और “तरवः” मिलकर एक विशेषण बनाते हैं, जो तृतीय पुरुष (वृक्षों) को संदर्भित करता है।
(ग) ललिताः च याः लताः (तासाम्) – ललितलतानाम् – बहुव्रीहि
विग्रहवाक्य: ललिताः च याः लताः (सुंदर जो लताएँ हैं, उनका)
समस्तपद: ललितलतानाम्
समास का नाम: बहुव्रीहि
विवरण: पाठ में “ललितलतानाम्” (हरिततरूणां ललितलतानां माला) का प्रयोग है। यह बहुव्रीहि समास है, क्योंकि “ललित” और “लताः” मिलकर लताओं के समूह को विशेषण के रूप में दर्शाते हैं।
(घ) नवा मालिका – नवमालिका – कर्मधारय
विग्रहवाक्य: नवा च सा मालिका (नई जो मालिका है)
समस्तपद: नवमालिका
समास का नाम: कर्मधारय
विवरण: पाठ में “नवमालिका” (नवमालिका रसालं मिलिता) का प्रयोग है। यह कर्मधारय समास है, क्योंकि “नवा” (विशेषण) और “मालिका” (संज्ञा) का संयोग है।
(ङ) धृतः सुखसन्देशः येन (तम्) – धृतसुखसन्देशम् – बहुव्रीहि
विग्रहवाक्य: धृतः सुखसन्देशः येन (सुख का संदेश धारण करने वाला जो है, उसे)
समस्तपद: धृतसुखसन्देशम्
समास का नाम: बहुव्रीहि
विवरण: पाठ में “धृतसुखसन्देशम्” (पुर-कलरवसम्मूढितजनेभ्यो धृतसुखसन्देशम्) का प्रयोग है। यह बहुव्रीहि समास है, क्योंकि यह सुखसंदेश धारण करने वाले को संदर्भित करता है।
(च) कज्जलम् इव मलिनम् – कज्जलमलिनम् – कर्मधारय
विग्रहवाक्य: कज्जलम् इव मलिनम् (काजल के समान जो मलिन है)
समस्तपद: कज्जलमलिनम्
समास का नाम: कर्मधारय
विवरण: पाठ में “कज्जलमलिनम्” (कज्जलमलिनम् संदर्भित प्रदूषण) का प्रयोग है। यह कर्मधारय समास है, क्योंकि “कज्जल” (उपमान) और “मलिन” (विशेषण) का संयोग है।
(छ) दुर्दान्तैः दशनैः – दुर्दान्तदशनैः – तत्पुरुष
विग्रहवाक्य: दुर्दान्तैः दशनैः (दुर्जन दांतों द्वारा)
समस्तपद: दुर्दान्तदशनैः
समास का नाम: तत्पुरुष
विवरण: पाठ में “दुर्दान्तैर्दशनैः” (दुर्दानतैर्दशनैरमुना स्यानैव जनग्रसनम्) का प्रयोग है। यह तत्पुरुष समास है, क्योंकि “दुर्दान्त” (विशेषण) और “दशन” (संज्ञा) का संयोग है, जिसमें दशन मुख्य है।
सारांश तालिका (Summary Table):
प्रश्न | विग्रहवाक्य | समस्तपद | समास का नाम |
---|---|---|---|
(क) | मलेन सहितम् | समलम् | अव्ययीभाव |
(ख) | हरिताः च ये तरवः (तेषां) | हरिततरूणाम् | बहुव्रीहि |
(ग) | ललिताः च याः लताः (तासाम्) | ललितलतानाम् | बहुव्रीहि |
(घ) | नवा च सा मालिका | नवमालिका | कर्मधारय |
(ङ) | धृतः सुखसन्देशः येन (तम्) | धृतसुखसन्देशम् | बहुव्रीहि |
(च) | कज्जलम् इव मलिनम् | कज्जलमलिनम् | कर्मधारय |
(छ) | दुर्दान्तैः दशनैः | दुर्दान्तदशनैः | तत्पुरुष |
रेखांकित-पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणम् (Question Formation Based on Underlined Words):
(क) वाक्य: शकटीयानम् कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति।
प्रश्न: शकटीयानं कीदृशं धूमं मुञ्चति?
विवरण: रेखांकित पद “कज्जलमलिनं” (काजल-सा काला) विशेषण है, जो धूम का वर्णन करता है। प्रश्न में “कीदृशं” (कैसा) का उपयोग विशेषण के लिए उपयुक्त है।
अंग्रेजी अनुवाद: What kind of smoke does the vehicle emit?
(ख) वाक्य: उद्याने पक्षिणां कलरवं चेतः प्रसादयति।
प्रश्न: उद्याने किं चेतः प्रसादयति?
विवरण: रेखांकित पद “कलरवं” (पक्षियों का मधुर शब्द) संज्ञा है, जो कर्ता का कार्य करता है। प्रश्न में “किं” (क्या) का उपयोग संज्ञा के लिए उपयुक्त है।
अंग्रेजी अनुवाद: What in the garden pleases the mind?
(ग) वाक्य: पाषाणीसभ्यतायां लतातरुगुल्माः प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति।
प्रश्न: पाषाणीसभ्यतायां लतातरुगुल्माः कुत्र पिष्टाः सन्ती?
विवरण: रेखांकित पद “प्रस्तरतले” (पत्थर के तल पर) स्थानसूचक संज्ञा है। प्रश्न में “कुत्र” (कहाँ) का उपयोग स्थान के लिए उपयुक्त है।
अंग्रेजी अनुवाद: Where are creepers, trees, and shrubs crushed in the stone civilization?
(घ) वाक्य: महानगरेषु वाहनानां पङ्क्तयः धावन्ति।
प्रश्न: महानगरेषु वाहनानां किं धावति?
विवरण: रेखांकित पद “पङ्क्तयः” (पंक्तियाँ) संज्ञा है, जो वाहनानां का वर्णन करती है। प्रश्न में “किं” (क्या) का उपयोग संज्ञा के लिए उपयुक्त है।
अंग्रेजी अनुवाद: What of the vehicles runs in the cities?
(ङ) वाक्य: प्रकृत्याः सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते।
प्रश्न: प्रकृत्याः कुत्र वास्तविकं सुखं विद्यते?
विवरण: रेखांकित पद “सन्निधौ” (समीप में) स्थानसूचक संज्ञा है। प्रश्न में “कुत्र” (कहाँ) का उपयोग स्थान के लिए उपयुक्त है।
अंग्रेजी अनुवाद: Where in nature is true happiness found?
सारांश तालिका (Summary Table):
प्रश्न | वाक्य | रेखांकित पद | प्रश्न | अंग्रेजी अनुवाद |
---|---|---|---|---|
(क) | शकटीयानम् कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति। | कज्जलमलिनं | शकटीयानं कीदृशं धूमं मुञ्चति? | What kind of smoke does the vehicle emit? |
(ख) | उद्याने पक्षिणां कलरवं चेतः प्रसादयति। | कलरवं | उद्याने किं चेतः प्रसादयति? | What in the garden pleases the mind? |
(ग) | पाषाणीसभ्यतायां लतातरुगुल्माः प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ती। | प्रस्तरतले | पाषाणीसभ्यतायां लतातरुगुल्माः कुत्र पिष्टाः सन्ती? | Where are creepers, trees, and shrubs crushed in the stone civilization? |
(घ) | महानगरेषु वाहनानां पङ्क्तयः धावन्ति। | पङ्क्तयः | महानगरेषु वाहनानां किं धावति? | What of the vehicles runs in the cities? |
(ङ) | प्रकृत्याः सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते। | सन्निधौ | प्रकृत्याः कुत्र वास्तविकं सुखं विद्यते? | Where in nature is true happiness found? |