मेरे संग की औरते – मृदुला गर्ग
मेरे संग की औरतें – मृदुला गर्ग (सारांश)
लेखिका: मृदुला गर्ग
पाठ: NCERT कक्षा 9 हिंदी पाठ्यपुस्तक – कृतिका भाग 1
सारांश:
“मेरे संग की औरतें” मृदुला गर्ग का एक आत्मकथात्मक संस्मरण है, जिसमें वे अपने जीवन में प्रभावशाली महिलाओं – अपनी माँ, मौसी, और नानी – के व्यक्तित्व, उनके विचारों, और उनके द्वारा दी गई सीखों का वर्णन करती हैं। यह पाठ नारी की स्वतंत्रता, साहस, और आत्मनिर्भरता को रेखांकित करता है, साथ ही सामाजिक रूढ़ियों के खिलाफ उनके संघर्ष को दर्शाता है।
लेखिका अपनी नानी को एक ऐसी महिला के रूप में प्रस्तुत करती हैं, जो अपने समय की परंपरागत सीमाओं को तोड़कर स्वतंत्र निर्णय लेती थीं। नानी ने अपने पति के देहांत के बाद विधवा जीवन को स्वीकार किया, लेकिन उन्होंने अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जिया। वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर थीं और अपने परिवार की जिम्मेदारी संभालती थीं। उनकी हिम्मत और बुद्धिमत्ता लेखिका के लिए प्रेरणा का स्रोत थीं।
लेखिका की माँ एक शिक्षित और प्रगतिशील महिला थीं, जो अपने बच्चों को स्वतंत्र विचारों और आत्मविश्वास के साथ जीने की प्रेरणा देती थीं। वे चाहती थीं कि उनकी बेटियाँ पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हों और समाज की रूढ़ियों से बंधकर न रहें। माँ की सख्ती और अनुशासन के साथ-साथ उनकी संवेदनशीलता ने लेखिका के व्यक्तित्व को गढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मौसी का व्यक्तित्व भी लेखिका को गहराई से प्रभावित करता है। मौसी एक विद्रोही स्वभाव की थीं, जो सामाजिक बंधनों को नहीं मानती थीं। वे खुलकर अपनी बात रखती थीं और अपनी जिंदगी अपने नियमों से जीती थीं। उनकी हँसमुख और बिंदास प्रकृति लेखिका को जीवन के प्रति उत्साह और साहस सिखाती है।
लेखिका इन तीनों महिलाओं के जीवन से मिली सीखों को साझा करती हैं, जो नारी सशक्तीकरण और स्वतंत्रता के प्रतीक हैं। यह पाठ दर्शाता है कि कैसे ये औरतें अपने समय की सामाजिक बंदिशों के बावजूद अपने व्यक्तित्व को बनाए रखती थीं और लेखिका को आत्मनिर्भरता, साहस, और स्वाभिमान की प्रेरणा देती थीं। यह संस्मरण नारी के संघर्ष, उनकी आंतरिक शक्ति, और समाज में उनके योगदान को उजागर करता है।
मुख्य संदेश:
यह पाठ नारी की स्वतंत्रता, आत्मविश्वास, और समाज में उनकी भूमिका को महत्व देता है। यह दर्शाता है कि महिलाएँ, चाहे किसी भी परिस्थिति में हों, अपनी मेहनत और हिम्मत से न केवल अपने लिए बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन सकती हैं।
प्रश्न-अभ्यास के उत्तर: मेरे संग की औरतें – मृदुला गर्ग
1. लेखिका ने अपनी नानी को कभी देखा भी नहीं फिर भी उनके व्यक्तित्व से वे क्यों प्रभावित थीं?
लेखिका ने अपनी नानी को कभी नहीं देखा, लेकिन उनकी कहानियाँ और उनके व्यक्तित्व के बारे में माँ और परिवार के अन्य सदस्यों से सुनी बातों ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया। नानी की स्वतंत्रता, साहस, और आत्मनिर्भरता की कहानियाँ लेखिका के लिए प्रेरणास्रोत थीं। नानी ने अपने पति के देहांत के बाद विधवा जीवन को स्वीकार किया, फिर भी आर्थिक रूप से स्वतंत्र रहीं और परिवार की जिम्मेदारी संभाली। उनकी बुद्धिमत्ता, दृढ़ता, और सामाजिक रूढ़ियों के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत ने लेखिका के मन में उनके प्रति गहरी श्रद्धा और प्रशंसा जगाई। ये गुण लेखिका को एक ऐसी नारी की छवि प्रदान करते थे, जो अपने समय की परंपराओं से परे थीं।
2. लेखिका की नानी की आज़ादी के आंदोलन में किस प्रकार की भागीदारी रही?
लेखिका की नानी ने आज़ादी के आंदोलन में अप्रत्यक्ष रूप से भाग लिया। वे स्वतंत्रता संग्राम के विचारों से प्रभावित थीं और अपने घर में स्वदेशी और आत्मनिर्भरता के मूल्यों को बढ़ावा देती थीं। उन्होंने अपने परिवार को स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने की प्रेरणा दी। इसके अलावा, उनकी आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक बंधनों को तोड़ने की हिम्मत ने स्वतंत्रता संग्राम की भावना को परोक्ष रूप से समर्थन दिया, क्योंकि वे एक ऐसी महिला थीं जो अपने विचारों और कार्यों से समाज में बदलाव लाने की प्रेरणा देती थीं।
3. लेखिका की माँ परंपरा का निर्वाह न करते हुए भी सबके दिलों पर राज करती थी। इस कथन के आलोक में-
(क) लेखिका की माँ के व्यक्तित्व की विशेषताएँ लिखिए।
लेखिका की माँ एक शिक्षित, प्रगतिशील, और स्वतंत्र विचारों वाली महिला थीं। उनकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- स्वतंत्रता और आत्मविश्वास: वे सामाजिक रूढ़ियों को नहीं मानती थीं और अपने बच्चों को भी स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देती थीं।
- अनुशासन और संवेदनशीलता: वे सख्त अनुशासन में विश्वास रखती थीं, लेकिन साथ ही उनकी संवेदनशीलता और प्रेम बच्चों के प्रति स्पष्ट था।
- शिक्षा के प्रति समर्पण: वे चाहती थीं कि उनकी बेटियाँ पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हों और समाज में अपनी पहचान बनाएँ।
- सहज नेतृत्व: परंपराओं का पालन न करते हुए भी, उनकी बुद्धिमत्ता और व्यवहारकुशलता के कारण वे परिवार और समाज में सम्मानित थीं और सबके दिलों पर राज करती थीं।
(ख) लेखिका की दादी के घर के माहौल का शब्द-चित्र अंकित कीजिए।
लेखिका की दादी का घर एक परंपरागत माहौल वाला था, जहाँ सामाजिक रीति-रिवाजों और धार्मिक मान्यताओं का पालन होता था। घर में अनुशासन और पारिवारिक एकता का वातावरण था, लेकिन साथ ही यह पुरुष-प्रधान समाज की छाया से प्रभावित था। दादी स्वयं एक धार्मिक और परंपरावादी महिला थीं, जो घर के कामकाज और परिवार की देखभाल में व्यस्त रहती थीं। फिर भी, उनके घर में नानी और माँ जैसे प्रगतिशील विचारों वाली महिलाओं की उपस्थिति के कारण एक तरह का वैचारिक टकराव और संतुलन भी था। यह माहौल परंपरा और आधुनिकता के बीच एक सेतु की तरह था, जहाँ नई पीढ़ी को स्वतंत्रता और शिक्षा के मूल्य सिखाए जा रहे थे।
4. आप अपनी कल्पना से लिखिए कि परदादी ने पतोहू के लिए पहले बच्चे के रूप में लड़की पैदा होने की मन्नत क्यों माँगी?
परदादी ने पतोहू के लिए पहले बच्चे के रूप में लड़की पैदा होने की मन्नत शायद इसलिए माँगी होगी क्योंकि वे एक ऐसी संतान की कामना करती थीं जो परिवार में नारी शक्ति को बढ़ाए। उस समय समाज में लड़कियों को कम महत्व दिया जाता था, लेकिन परदादी को लगता होगा कि एक बेटी के जन्म से परिवार में प्रेम, संवेदनशीलता, और नई सोच का समावेश होगा। संभवतः वे चाहती थीं कि उनकी पतोहू एक ऐसी बेटी को जन्म दे, जो भविष्य में स्वतंत्र और सशक्त बनकर समाज की रूढ़ियों को चुनौती दे। यह मन्नत उनकी प्रगतिशील सोच और नारी के महत्व को समझने की भावना को भी दर्शाती है।
5. डराने-धमकाने, उपदेश देने या दबाव डालने की जगह सहजता से किसी को भी सही राह पर लाया जा सकता है-पाठ के आधार पर तर्क सहित उत्तर दीजिए।
पाठ में लेखिका की माँ और नानी का उदाहरण इस कथन को सही साबित करता है। लेखिका की माँ बच्चों को सख्त अनुशासन में रखती थीं, लेकिन उनकी संवेदनशीलता और प्रेमपूर्ण व्यवहार के कारण बच्चे स्वाभाविक रूप से उनकी बात मानते थे। वे उपदेश देने के बजाय अपने व्यवहार और जीवनशैली से बच्चों को प्रेरित करती थीं। उदाहरण के लिए, माँ ने अपनी बेटियों को शिक्षा और आत्मनिर्भरता की प्रेरणा दी, न कि दबाव डालकर। इसी तरह, नानी की स्वतंत्रता और साहस की कहानियाँ लेखिका को बिना किसी दबाव के प्रेरित करती थीं। यह दृष्टिकोण सहजता और प्रेम से दूसरों को सही रास्ते पर लाने की उनकी शैली को दर्शाता है।
6. ‘शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है’- इस दिशा में लेखिका के प्रयासों का उल्लेख कीजिए।
लेखिका मृदुला गर्ग ने अपने लेखन और सामाजिक कार्यों के माध्यम से शिक्षा के महत्व को बढ़ावा दिया। हालांकि पाठ में उनके व्यक्तिगत प्रयासों का सीधा उल्लेख नहीं है, लेकिन उनकी माँ की प्रेरणा से शिक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता स्पष्ट है। लेखिका की माँ ने अपनी बेटियों को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दिया, और लेखिका ने इस विचार को अपने जीवन में अपनाया। लेखिका ने अपनी रचनाओं और सामाजिक गतिविधियों के माध्यम से नारी शिक्षा और सशक्तीकरण को प्रोत्साहित किया, जो बच्चों के शिक्षा के अधिकार को समर्थन देता है। उनकी लेखनी में नारी शिक्षा और स्वतंत्रता के मुद्दे प्रमुखता से उभरते हैं, जो समाज में शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने का एक प्रयास है।
7. पाठ के आधार पर लिखिए कि जीवन में कैसे इंसानों को अधिक श्रद्धा भाव से देखा जाता है?
पाठ के आधार पर, जीवन में उन लोगों को अधिक श्रद्धा भाव से देखा जाता है जो अपने साहस, स्वतंत्रता, और आत्मनिर्भरता से दूसरों को प्रेरित करते हैं। लेखिका की नानी, माँ, और मौसी जैसे व्यक्तित्व समाज की रूढ़ियों को चुनौती देने वाले, स्वतंत्र विचारों वाले, और दृढ़ संकल्प वाले थे। नानी की आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक बंधनों के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत, माँ की प्रगतिशीलता और अनुशासन, और मौसी की बिंदास और विद्रोही प्रकृति ने उन्हें श्रद्धा का पात्र बनाया। ऐसे लोग जो अपने कार्यों और विचारों से समाज में बदलाव लाते हैं और दूसरों को प्रेरित करते हैं, उन्हें अधिक सम्मान और श्रद्धा प्राप्त होती है।
8. ‘सच, अकेलेपन का मजा ही कुछ और है’- इस कथन के आधार पर लेखिका की बहन एवं लेखिका के व्यक्तित्व के बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
इस कथन से लेखिका और उनकी बहन के व्यक्तित्व की स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता झलकती है। लेखिका की बहन एक स्वच्छंद और आत्मविश्वासी व्यक्तित्व की धनी थीं, जो अकेले रहकर भी अपने जीवन का आनंद लेती थीं। यह उनके आत्ममुग्ध और आत्मनिर्भर स्वभाव को दर्शाता है। लेखिका स्वयं भी इस कथन के माध्यम से अपनी स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता को व्यक्त करती हैं। वे दोनों ऐसी महिलाएँ थीं जो सामाजिक अपेक्षाओं से बंधकर नहीं रहती थीं और अपने अकेलेपन को एक सकारात्मक अनुभव के रूप में देखती थीं। यह कथन उनकी आत्मिक शक्ति और जीवन के प्रति उनके सकारात्मक दृष्टिकोण को दर्शाता है, जो उन्हें परंपरागत नारी की छवि से अलग करता है।