MP Board 12th Indian Rural Urban Distribution भारत का ग्रामीण-नगरीय वितरण: एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण (NCERT विशेष)

MP Board 12th Indian Rural Urban Distribution : कक्षा 12 के समाजशास्त्र के छात्रों के लिए, यह समझना महत्वपूर्ण है कि ‘ग्रामीण’ (Rural) और ‘नगरीय’ (Urban) केवल दो भौगोलिक स्थान नहीं हैं। ये दो अलग-अलग जीवन शैलियाँ, सामाजिक संरचनाएँ, आर्थिक गतिविधियाँ और चुनौतियाँ हैं।

🌐 भारत का ग्रामीण-नगरीय वितरण: एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण (NCERT विशेष)


1. प्रस्तावना: भारतीय समाज को समझना

भारतीय समाज (Indian Society) एक बहुरंगी मोज़ेक है, जिसकी जटिलता और विविधता को समझने के लिए इसके जनसांख्यिकीय पैटर्न (Demographic Patterns) का अध्ययन करना आवश्यक है। जब हम भारत की जनसांख्यिकीय संरचना (Demographic Structure) की बात करते हैं, तो लिंग अनुपात (Sex Ratio) और आयु संरचना (Age Structure) के साथ-साथ, जो सबसे महत्वपूर्ण पहलू उभरता है, वह है ग्रामीण-नगरीय वितरण (Rural-Urban Distribution)

महात्मा गांधी ने कहा था कि “भारत की आत्मा गाँवों में बसती है।” यह कथन आज भी काफी हद तक सच है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की लगभग 68.8% आबादी आज भी गाँवों में रहती है।1 लेकिन, इसके साथ ही एक और सच्चाई है: भारत अभूतपूर्व दर से शहरीकरण (Urbanization) कर रहा है। शहर (Cities) आर्थिक विकास के इंजन बन गए हैं और अवसरों के केंद्र के रूप में देखे जाते हैं।

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कक्षा 12 के समाजशास्त्र के छात्रों के लिए, यह समझना महत्वपूर्ण है कि ‘ग्रामीण’ (Rural) और ‘नगरीय’ (Urban) केवल दो भौगोलिक स्थान नहीं हैं। ये दो अलग-अलग जीवन शैलियाँ, सामाजिक संरचनाएँ, आर्थिक गतिविधियाँ और चुनौतियाँ हैं।

  • ग्रामीण भारत कृषि, जाति व्यवस्था (Caste System), नातेदारी (Kinship) और सामुदायिक जीवन (Community Life) से परिभाषित होता है।
  • नगरीय भारत उद्योग (Industry), सेवा क्षेत्र (Service Sector), वर्ग-आधारित स्तरीकरण (Class-based Stratification), गुमनामी (Anonymity) और औपचारिक संबंधों (Formal Relations) की विशेषता रखता है।

लेकिन क्या यह विभाजन इतना स्पष्ट है? क्या गाँव और शहर दो अलग-थलग दुनिया हैं? समाजशास्त्र हमें सिखाता है कि ऐसा नहीं है। आधुनिक भारत में, गाँव और शहर एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। इनके बीच एक “ग्रामीण-नगरीय सातत्य” (Rural-Urban Continuum) मौजूद है।

यह लेख NCERT पाठ्यक्रम के आधार पर, मध्य प्रदेश (MP Board) के छात्रों को परीक्षा की दृष्टि से तैयार करने के लिए, ग्रामीण-नगरीय वितरण की अवधारणाओं, भारत की जनगणना द्वारा दी गई परिभाषाओं, दोनों क्षेत्रों की विशेषताओं, उनके बीच के संबंधों (Linkages) और इस वितरण से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का विस्तृत समाजशास्त्रीय विश्लेषण प्रस्तुत करेगा।


2. ‘ग्रामीण’ और ‘नगरीय’ को परिभाषित करना: जनगणना का दृष्टिकोण

परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त करने के लिए, आम बोलचाल की भाषा और आधिकारिक परिभाषा के बीच का अंतर समझना महत्वपूर्ण है। आम तौर पर, हम सोचते हैं कि गाँव वह है जहाँ खेती होती है और शहर वह है जहाँ कारखाने और ऊँची इमारतें होती हैं। लेकिन समाजशास्त्रीय और प्रशासनिक अध्ययन के लिए, हमें एक स्पष्ट और मानक परिभाषा (Standard Definition) की आवश्यकता होती है।

भारत में, भारत की जनगणना (Census of India) यह परिभाषित करने का अंतिम अधिकार है कि क्या ‘नगरीय’ (Urban) है। जो क्षेत्र ‘नगरीय’ के रूप में वर्गीकृत नहीं होता, उसे स्वचालित रूप से ‘ग्रामीण’ (Rural) मान लिया जाता है।

Census 2011 के अनुसार, एक ‘नगरीय’ क्षेत्र में दो श्रेणियां शामिल हैं:

2.1. वैधानिक नगर (Statutory Towns)

ये वे क्षेत्र हैं जिन्हें कानून द्वारा ‘नगरीय’ घोषित किया गया है। यदि किसी स्थान पर:

  • नगर पालिका (Municipality)
  • निगम (Corporation)
  • छावनी बोर्ड (Cantonment Board)
  • या अधिसूचित नगर क्षेत्र समिति (Notified Town Area Committee) है,तो उसे जनगणना के उद्देश्य से ‘वैधानिक नगर’ (Statutory Town) माना जाता है, चाहे वह जनसंख्या या घनत्व के मानदंडों को पूरा करता हो या नहीं।

2.2. जनगणना नगर (Census Towns)

यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण अवधारणा है, जो ग्रामीण-नगरीय सातत्य को दर्शाती है। ये वे क्षेत्र हैं जो प्रशासनिक रूप से तो गाँव (यानी पंचायत के अधीन) होते हैं, लेकिन उनमें शहरों जैसी विशेषताएँ विकसित हो गई होती हैं। एक क्षेत्र को ‘जनगणना नगर’ (Census Town) घोषित होने के लिए तीन शर्तों को एक साथ पूरा करना होता है:

  1. जनसंख्या (Population): न्यूनतम जनसंख्या 5,000 होनी चाहिए।
  2. घनत्व (Density): जनसंख्या घनत्व कम से कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर (400 persons per sq. km) होना चाहिए।
  3. व्यावसायिक संरचना (Occupational Structure): यह सबसे महत्वपूर्ण शर्त है। उस क्षेत्र की कार्यशील पुरुष आबादी का कम से कम 75% हिस्सा गैर-कृषि गतिविधियों (Non-Agricultural Activities) (जैसे उद्योग, व्यापार, सेवाएँ) में लगा होना चाहिए।

ग्रामीण क्षेत्र (Rural Area) क्या है?

जनगणना के अनुसार, “वह सभी क्षेत्र जो ‘नगरीय’ (उपरोक्त दोनों श्रेणियों में) के रूप में वर्गीकृत नहीं हैं, उन्हें ‘ग्रामीण’ माना जाता है।”


3. भारत में ग्रामीण-नगरीय वितरण: आँकड़े और रुझान

आँकड़े हमें समाज में हो रहे बदलावों की एक स्पष्ट तस्वीर देते हैं।

  • आजादी के समय (1951): 1951 की जनगणना में, भारत की केवल 17.3% आबादी नगरीय क्षेत्रों में रहती थी। विशाल बहुमत (82.7%) गाँवों में निवास करता था।
  • जनगणना 2011: यह नवीनतम विस्तृत आँकड़ा है।
    • ग्रामीण जनसंख्या: 83.3 करोड़ (कुल का 68.84%)
    • नगरीय जनसंख्या: 37.7 करोड़ (कुल का 31.16%)2
  • रुझान (Trends): ये आँकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि हालाँकि भारत अभी भी मुख्य रूप से एक ग्रामीण देश है, लेकिन शहरीकरण (Urbanization) की प्रक्रिया लगातार और तेज़ी से बढ़ रही है। 1951 में 17% से बढ़कर 2011 में 31% होना एक बहुत बड़ा जनसांख्यिकीय बदलाव (Demographic Shift) है।3

यह रुझान हमें बताता है कि लाखों लोग गाँवों से शहरों की ओर जा रहे हैं, या फिर गाँव खुद शहरों में बदल रहे हैं (जैसा कि ‘जनगणना नगरों’ के मामले में देखा गया है)।


4. ग्रामीण समाज की प्रमुख विशेषताएँ (Characteristics of Rural Society)

ग्रामीण समाजशास्त्र (Rural Sociology) गाँवों की अनूठी विशेषताओं पर प्रकाश डालता है:

  1. कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था (Agriculture-based Economy):
    • गाँव का मुख्य आधार कृषि और उससे संबंधित गतिविधियाँ (Allied Activities) जैसे पशुपालन, मछली पकड़ना और वानिकी है।
    • आजीविका सीधे तौर पर भूमि (Land) और प्रकृति (Nature) से जुड़ी होती है।
    • यहाँ प्रच्छन्न बेरोज़गारी (Disguised Unemployment) आम है, जहाँ ज़रूरत से ज़्यादा लोग एक ही खेत पर काम करते दिखते हैं।
  2. सामाजिक संरचना (Social Structure):
    • जाति व्यवस्था (Caste System): जाति ग्रामीण भारत में सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) का मुख्य आधार बनी हुई है।4 यह न केवल व्यवसाय, बल्कि सामाजिक संबंधों और विवाह को भी दृढ़ता से नियंत्रित करती है।
    • नातेदारी और परिवार (Kinship and Family): ग्रामीण समाजों में रक्त-संबंध (Blood-relations) और नातेदारी के बंधन बहुत मज़बूत होते हैं। संयुक्त परिवार (Joint Family) प्रणाली को प्राथमिकता दी जाती है।
    • जजमानी व्यवस्था: हालाँकि अब यह कमज़ोर पड़ गई है, लेकिन परंपरागत रूप से यह विभिन्न जातियों के बीच सेवाओं के आदान-प्रदान की एक प्रणाली थी।
  3. कम जनसंख्या घनत्व (Low Population Density):
    • लोग फैले हुए क्षेत्रों में रहते हैं, और प्रति वर्ग किलोमीटर कम लोग होते हैं, जिससे अधिक खुलापन और प्रकृति से निकटता होती है।
  4. अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण (Informal Social Control):
    • शहरों की तरह यहाँ पुलिस और कानून (Formal Control) का वर्चस्व नहीं होता।
    • व्यवहार को परंपराओं (Traditions), रीति-रिवाजों (Customs), धर्म (Religion) और पंचायत या जाति पंचायत जैसे अनौपचारिक संस्थानों द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
    • “लोग क्या कहेंगे” का डर एक बड़ा नियंत्रक होता है।
  5. जीवन की धीमी गति (Slow Pace of Life):
    • जीवन प्रकृति के चक्र (मौसम, फसल) के अनुसार चलता है। यहाँ शहरों जैसी भागदौड़ और गुमनामी (Anonymity) नहीं होती।

4.1. आधुनिक ग्रामीण चुनौतियाँ

  • कृषि संकट (Agrarian Distress): किसानों पर बढ़ता कर्ज़, आत्महत्याएँ, और कृषि का अलाभकारी होना।5
  • गरीबी और बेरोज़गारी: रोज़गार के अवसरों की कमी, जिससे प्रवासन (Migration) होता है।
  • बुनियादी सुविधाओं का अभाव: कई क्षेत्रों में आज भी अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, बिजली और स्वच्छ पानी की कमी है।

5. नगरीय समाज की प्रमुख विशेषताएँ (Characteristics of Urban Society)

शहरी समाजशास्त्र (Urban Sociology) शहरों के जटिल जीवन का अध्ययन करता है, जो गाँवों से बिलकुल भिन्न है।

  1. गैर-कृषि अर्थव्यवस्था (Non-Agricultural Economy):
    • शहरों में आजीविका मुख्य रूप से उद्योग (Industry), विनिर्माण (Manufacturing), व्यापार (Trade), वाणिज्य (Commerce) और सेवा क्षेत्र (Service Sector) (जैसे IT, बैंकिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य) पर आधारित होती है।
    • यहाँ श्रम का जटिल विभाजन (Complex Division of Labour) होता है, यानी लोग विभिन्न प्रकार के विशिष्ट (Specialized) काम करते हैं।
  2. सामाजिक संरचना (Social Structure):
    • वर्ग-आधारित स्तरीकरण (Class-based Stratification): शहरों में जाति का महत्व कम नहीं हुआ है, लेकिन स्तरीकरण का मुख्य आधार आर्थिक वर्ग (Economic Class) बन जाता है। आपकी सामाजिक स्थिति आपकी आय, व्यवसाय और जीवन शैली (Lifestyle) से तय होती है।
    • एकल परिवार (Nuclear Family): उच्च लागत, छोटे आवास और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की इच्छा के कारण शहरों में एकल परिवार (पति, पत्नी और बच्चे) आम हैं।6
    • गुमनामी (Anonymity): शहरों की विशालता और घनत्व के कारण, लोग अक्सर एक-दूसरे को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते हैं। इसे “गुमनाम भीड़” कहा जाता है।
  3. उच्च जनसंख्या घनत्व (High Population Density):
    • शहरों में बहुत कम जगह में बहुत अधिक लोग रहते हैं, जिससे भीड़-भाड़ (Overcrowding) और संसाधनों पर दबाव पड़ता है।7
  4. औपचारिक सामाजिक नियंत्रण (Formal Social Control):
    • शहरों में विविधता और गुमनामी के कारण, परंपरा या समुदाय का दबाव काम नहीं करता।
    • यहाँ व्यवस्था बनाए रखने के लिए औपचारिक साधनों का उपयोग किया जाता है, जैसे पुलिस (Police), कानून (Law), अदालतें (Courts) और प्रशासन (Administration)
  5. “नगरीयता” एक जीवन शैली के रूप में (Urbanism as a Way of Life):
    • समाजशास्त्री लुई विर्थ (Louis Wirth) के अनुसार, नगरीयता सिर्फ एक स्थान नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है।8
    • इसमें द्वितीयक संबंध (Secondary Relations) (जो अवैयक्तिक और काम-से-काम रखने वाले होते हैं), व्यक्तिवाद (Individualism), और जीवन की तेज़ गति शामिल है।

5.1. आधुनिक नगरीय चुनौतियाँ

  • आवास की समस्या और गंदी बस्तियाँ (Slums): घरों की कमी और उच्च किराए के कारण लाखों लोग गंदी बस्तियों (Slums) (जैसे मुंबई में धारावी) में अमानवीय परिस्थितियों में रहने को मज़बूर हैं।
  • संसाधनों पर दबाव: पानी, बिजली और परिवहन (Transport) जैसी बुनियादी सुविधाओं पर अत्यधिक दबाव।
  • प्रदूषण और पर्यावरण: वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण शहरों की प्रमुख समस्याएँ हैं।
  • अपराध और सामाजिक विघटन: गुमनामी और तनाव के कारण अपराध दर (Crime Rate) और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ अधिक हो सकती हैं।

6. ग्रामीण-नगरीय सातत्य (The Rural-Urban Continuum)

NCERT पाठ्यक्रम इस बात पर ज़ोर देता है कि 12वीं के छात्रों को यह समझना चाहिए कि भारत में ‘गाँव’ और ‘शहर’ दो अलग-थलग डिब्बे नहीं हैं। इनके बीच की रेखाएँ धुंधली (Blurry) हो रही हैं।

ग्रामीण-नगरीय सातत्य (Rural-Urban Continuum) वह अवधारणा है जो बताती है कि गाँव और शहर एक पैमाने (Scale) के दो विपरीत छोर हैं, और इनके बीच में कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें दोनों की विशेषताएँ पाई जाती हैं।9

उदाहरण के लिए, एक ‘विशुद्ध गाँव’ (Pure Rural) से शुरू होकर, हम एक ‘गाँव जो शहर के पास है’ (Peri-urban) की ओर बढ़ते हैं, फिर ‘उपनगर’ (Suburb) आता है, और अंत में ‘महानगर का केंद्र’ (Metropolitan Core) आता है।

यह ‘सातत्य’ या ‘जुड़ाव’ (Linkage) निम्नलिखित तरीकों से प्रकट होता है:

6.1. प्रवासन (Migration): सबसे मज़बूत कड़ी

यह गाँव और शहर को जोड़ने वाली सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है।

  • गाँव से शहर (Rural-to-Urban): यह प्रवासन का सबसे प्रमुख प्रकार है।
    • धकेलने वाले कारक (Push Factors): लोगों को गाँव छोड़ने के लिए मजबूर करने वाले कारक।10 जैसे: गरीबी, बेरोज़गारी, कृषि में घाटा, जातिगत भेदभाव।
    • आकर्षित करने वाले कारक (Pull Factors): शहरों की ओर खींचने वाले कारक। जैसे: रोज़गार के बेहतर अवसर (Better Job Opportunities), उच्च शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ, और गुमनामी में रहकर एक नई पहचान बनाने की आज़ादी।
  • शहर से गाँव (Urban-to-Rural): यह कम होता है, लेकिन इसमें सेवानिवृत्ति (Retirement) के बाद वापस लौटना, या महामारी (जैसे COVID-19 लॉकडाउन) के दौरान “रिवर्स माइग्रेशन” (Reverse Migration) शामिल है।

6.2. आर्थिक जुड़ाव (Economic Linkage)

  • रेमिटेंस (Remittances): प्रवासी श्रमिक शहरों में कमाया गया पैसा (Remittance) अपने गाँवों में परिवारों को भेजते हैं, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक बड़ा सहारा है।11
  • बाज़ार (Market): गाँव शहरों के लिए कच्चा माल (Raw Material), अनाज, सब्ज़ियाँ और दूध की आपूर्ति करते हैं। वहीं, शहर गाँवों के लिए ट्रैक्टर, उर्वरक, मोबाइल फोन और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं (Consumer Goods) का बाज़ार हैं।

6.3. सांस्कृतिक जुड़ाव (Cultural Linkage)

  • मीडिया और संचार (Media and Communication): टेलीविज़न, इंटरनेट और स्मार्टफोन ने शहरी संस्कृति, फैशन और विचारों को भारत के दूर-दराज़ के गाँवों तक पहुँचा दिया है।
  • “नगरीयता का प्रसार” (Diffusion of Urbanism): अब ग्रामीण युवा भी शहरी जीवन शैली (Urban Lifestyles) और आकांक्षाओं (Aspirations) को अपना रहे हैं।
  • इसके विपरीत, शहर में रहने वाले प्रवासी अपनी ग्रामीण संस्कृति (जैसे छठ पूजा, बिहू, या पोंगल) को अपने साथ लाते हैं, जिससे शहर भी सांस्कृतिक रूप से समृद्ध होते हैं।

7. उभरती अवधारणाएँ: बदलता परिदृश्य

यह सातत्य कुछ नई भौगोलिक और सामाजिक संरचनाओं को जन्म दे रहा है:

  1. उपनगरीकरण (Suburbanization):
    • यह वह प्रक्रिया है जिसमें लोग शहर के भीड़-भाड़ वाले केंद्र को छोड़कर बाहरी इलाकों, यानी उपनगरों (Suburbs) में बसने लगते हैं।
    • वे काम के लिए शहर पर निर्भर रहते हैं लेकिन रहने के लिए शांतिपूर्ण, खुली जगह पसंद करते हैं। यह ‘कम्यूटर’ (Commuter) आबादी को जन्म देता है।
  2. पेरी-अर्बन क्षेत्र (Peri-Urban Areas):
    • यह शहर की बाहरी सीमा पर स्थित वह ‘धुंधला’ क्षेत्र है, जहाँ न तो पूरी तरह से गाँव होता है और न ही पूरी तरह से शहर।
    • यहाँ भूमि का उपयोग (Land Use) बहुत तेज़ी से बदलता है (खेती की ज़मीन पर कॉलोनियाँ कटना)।12
  3. जनगणना नगर (Census Towns) – सातत्य का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण:
    • जैसा कि पहले बताया गया है, ये वे स्थान हैं जो ‘कागज़’ पर गाँव हैं (पंचायत है) लेकिन ‘चरित्र’ में शहर हैं (75% गैर-कृषि कार्य)। यह ग्रामीण-नगरीय सातत्य का सबसे स्पष्ट प्रमाण है।
  4. रर्बन (Rurban):
    • यह ‘Rural’ + ‘Urban’ से मिलकर बना शब्द है।
    • यह उन बड़े गाँवों या ग्रामीण क्लस्टरों को संदर्भित करता है जो आर्थिक रूप से शहरों से जुड़े हुए हैं और शहरी सुविधाएँ (जैसे स्कूल, बाज़ार, बैंक) प्रदान करते हैं।
    • भारत सरकार की “श्यामा प्रसाद मुखर्जी रर्बन मिशन” (SPMRM) जैसी योजनाएँ इन्हीं क्षेत्रों को विकसित करने पर केंद्रित हैं, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में ही शहरी सुविधाएँ देकर प्रवासन को कम किया जा सके।13

8. निष्कर्ष: परीक्षा की दृष्टि से

12वीं कक्षा के समाजशास्त्र के छात्र के रूप में, आपके लिए ‘ग्रामीण-नगरीय वितरण’ पर एक प्रश्न का उत्तर देते समय निम्नलिखित बिंदुओं को शामिल करना महत्वपूर्ण है:

  1. परिभाषा से शुरू करें: हमेशा भारत की जनगणना (Census of India) द्वारा दी गई ‘वैधानिक नगर’ (Statutory Town) और ‘जनगणना नगर’ (Census Town) की सटीक परिभाषा (तीनों शर्तों सहित) लिखें।
  2. डेटा का प्रयोग करें: 2011 की जनगणना के आँकड़ों (68.8% ग्रामीण, 31.2% नगरीय) का उल्लेख करें और शहरीकरण के ‘रुझान’ (Trend) को दर्शाएँ।
  3. विशेषताएँ गिनाएँ: ग्रामीण और नगरीय समाज की विशेषताओं की तुलना करें (अर्थव्यवस्था, सामाजिक संरचना, नियंत्रण, घनत्व के आधार पर)।
  4. सातत्य (Continuum) पर ज़ोर दें: यह तर्क दें कि गाँव और शहर अब दो अलग दुनिया नहीं हैं। ‘ग्रामीण-नगरीय सातत्य’ की अवधारणा को समझाएँ।
  5. जुड़ाव (Linkages) स्पष्ट करें: प्रवासन (Migration – Push/Pull factors), रेमिटेंस (Remittances) और मीडिया के माध्यम से दोनों क्षेत्रों के बीच के संबंधों को विस्तार से बताएँ।
  6. चुनौतियों का उल्लेख करें: दोनों क्षेत्रों (ग्रामीण संकट और शहरी झुग्गियों) की चुनौतियों पर प्रकाश डालें।

यह समझना कि भारत एक ही समय में ‘ग्रामीण’ और ‘नगरीय’ दोनों है, और यह संतुलन तेज़ी से बदल रहा है, आधुनिक भारतीय समाज को समझने की कुंजी है। यह केवल भूगोल या अर्थशास्त्र का विषय नहीं है; यह हमारे सामाजिक संबंधों, हमारे परिवारों और हमारी पहचान के बदलते स्वरूप का अध्ययन है।

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