MP Board 12th Biology Human Reproductionअध्याय 2: मानव जनन

MP Board 12th Biology Human Reproduction : NCERT के पाठ्यक्रम के अनुसार, यहाँ कक्षा 12 जीव विज्ञान के छात्रों के लिए “अध्याय 2: मानव जनन” पर विस्तृत, परीक्षा-उपयोगी नोट्स हिंदी में दिए गए हैं। यह नोट्स प्रत्येक उपखंड को स्पष्ट रूप से समझाते हैं।

अध्याय 2: मानव जनन (Human Reproduction)

यह अध्याय मानवों में होने वाले जनन, जिसमें युग्मकों का निर्माण (Gametes), उनका संलयन, तथा भ्रूण का विकास शामिल है, का वर्णन करता है। मानव अलैंगिक रूप से जनन करने वाले, जरायुज (Viviparous) होते हैं।

2.1 पुरुष जनन तंत्र (Male Reproductive System)

पुरुष जनन तंत्र श्रोणि क्षेत्र (Pelvic Region) में स्थित होता है।

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प्राथमिक जनन अंग (Primary Sex Organ)

  • वृषण (Testes):
    • ये उदर गुहा (Abdominal Cavity) के बाहर वृषण कोष (Scrotum) में स्थित होते हैं। इसका कारण यह है कि शुक्राणुजनन के लिए शरीर के सामान्य तापमान से 2-2.5^\circ C कम तापमान आवश्यक होता है, जो वृषण कोष प्रदान करता है।
    • प्रत्येक वृषण अंडाकार होता है और लगभग 250 कक्षों में बंटा होता है, जिन्हें वृषण पालिकाएँ (Testicular Lobules) कहते हैं।
    • प्रत्येक पालिका में 1 से 3 अति कुंडलित शुक्रजनक नलिकाएँ (Seminiferous Tubules) होती हैं।
    • शुक्रजनक नलिका: यह अंदर से दो प्रकार की कोशिकाओं से अस्तरित होती है: नर जनन कोशिकाएँ (Male Germ Cells) जो शुक्राणु (Sperm) बनाती हैं, और सर्टोली कोशिकाएँ (Sertoli Cells) जो जनन कोशिकाओं को पोषण प्रदान करती हैं।
    • अंतराली अवकाश (Interstitial Spaces): ये नलिकाओं के बाहर स्थित होते हैं, जिनमें लेडिग कोशिकाएँ (Leydig Cells) या अंतराली कोशिकाएँ पाई जाती हैं। लेडिग कोशिकाएँ एण्ड्रोजेन्स (Androgens) (नर हार्मोन) का संश्लेषण और स्रावण करती हैं।

सहायक नलिकाएँ (Accessory Ducts)

ये शुक्राणुओं के परिवहन में सहायता करती हैं:

  1. वृषण जालिका (Rete Testis): शुक्रजनक नलिकाएँ इसमें खुलती हैं।
  2. शुक्र अपवाहिकाएँ (Vasa Efferentia): वृषण जालिका से निकलकर अधिवृषण (Epididymis) में खुलती हैं।
  3. अधिवृषण: यह वृषण की पश्च सतह पर स्थित होता है, जहाँ शुक्राणु अस्थायी रूप से संग्रहीत और परिपक्व होते हैं।
  4. शुक्रवाहक (Vas Deferens): अधिवृषण से निकलकर उदर गुहा तक जाती है और शुक्राशय (Seminal Vesicle) की वाहिनी से मिलकर स्खलन वाहिनी (Ejaculatory Duct) बनाती है।

सहायक ग्रंथियाँ (Accessory Glands)

ये ग्रंथियाँ शुक्र प्लाज्मा (Seminal Plasma) का स्राव करती हैं, जो शुक्राणुओं के साथ मिलकर वीर्य (Semen) बनाता है।

  1. शुक्राशय (Seminal Vesicles): एक जोड़ी, यह फ्रुक्टोज, कैल्शियम और कुछ एंजाइमों से भरपूर तरल पदार्थ स्रावित करती है।
  2. पुरस्थ ग्रंथि (Prostate Gland): एकल, यह एक तरल स्राव करती है जो शुक्राणु की गतिशीलता में सहायक होता है।
  3. बल्बोयूरेथ्रल ग्रंथियाँ (Bulbourethral Glands/काउपर ग्रंथि): एक जोड़ी, ये स्नेहन (Lubrication) में सहायक तरल स्रावित करती हैं।

बाह्य जननेंद्रिय (External Genitalia)

  • शिश्न (Penis): यह मैथुन में सहायक होता है। इसका अंतिम फूला हुआ भाग शिश्न मुंड (Glans Penis) कहलाता है, जो अग्रत्वचा (Foreskin) नामक एक ढीली त्वचा से ढका होता है।

2.2 स्त्री जनन तंत्र (Female Reproductive System)

स्त्री जनन तंत्र श्रोणि क्षेत्र में स्थित होता है और इसमें प्राथमिक जनन अंग, सहायक नलिकाएँ, ग्रंथियाँ और बाह्य जननेंद्रिय शामिल होते हैं।

प्राथमिक जनन अंग (Primary Sex Organ)

  • अंडाशय (Ovaries):
    • ये उदर के निचले भाग में गर्भाशय के दोनों ओर एक-एक करके स्थित होते हैं।
    • ये मादा युग्मक (अंडाणु/Ovum) और कई स्टीरॉइड हार्मोन (अंडाशयी हार्मोन) का उत्पादन करते हैं।
    • अंडाशय की परिधि को कोर्टेक्स (Cortex) और आंतरिक भाग को मेडुला (Medulla) कहा जाता है। कोर्टेक्स में अंडाशयी पुटिकाएँ (Ovarian Follicles) होती हैं जो विकास के विभिन्न चरणों में होती हैं।

सहायक नलिकाएँ (Accessory Ducts)

ये नलिकाएँ एक जोड़ी अंडवाहिनी (Oviducts), गर्भाशय (Uterus) और योनि (Vagina) से मिलकर बनी होती हैं।

  1. अंडवाहिनी (Fallopian Tubes): ये लगभग 10-12 cm लंबी होती हैं और तीन भागों में बंटी होती हैं:
    • कीपक (Infundibulum): अंडाशय के निकट का भाग, जिसमें झालर (Fimbriae) नामक उंगली जैसी संरचनाएँ होती हैं जो अंडोत्सर्ग (Ovulation) के बाद अंडाणु को इकट्ठा करने में मदद करती हैं।
    • तुंबिका (Ampulla): कीपक के पीछे का चौड़ा भाग, जहाँ सामान्यतः निषेचन (Fertilisation) होता है।
    • इस्थमस (Isthmus): अंडवाहिनी का अंतिम संकरा भाग, जो गर्भाशय से जुड़ता है।
  2. गर्भाशय (Uterus/बच्चेदानी):
    • यह उल्टा नाशपाती के आकार का होता है।
    • यह गर्भ धारण करता है।
    • यह तीन परतों से बना होता है:
      • परिमिति (Perimetrium): गर्भाशय की सबसे बाहरी पतली झिल्ली।
      • पेशी स्तर (Myometrium): मध्य की मोटी, चिकनी पेशी परत, जो प्रसव (Parturition) के दौरान मजबूत संकुचन करती है।
      • अंतः स्तर (Endometrium): सबसे आंतरिक ग्रंथि परत, जो मासिक धर्म के दौरान चक्रिक परिवर्तन से गुजरती है और भ्रूण के अंतर्रोपण (Implantation) का स्थल है।
  3. ग्रीवा (Cervix) और योनि (Vagina): गर्भाशय ग्रीवा द्वारा योनि में खुलता है। ग्रीवा गुहा को ग्रीवा नाल (Cervical Canal) कहते हैं। योनि मैथुन का मार्ग है और प्रसव नाल (Birth Canal) का हिस्सा भी है।

बाह्य जननेंद्रिय (External Genitalia / जघन शैल)

इसमें जघन शैल (Mons Pubis), भगोष्ठ (Labia Majora), लघु भगोष्ठ (Labia Minora), भगशिश्न (Clitoris) और योनिच्छद (Hymen) शामिल होते हैं।

स्तन ग्रंथियाँ (Mammary Glands)

  • ये संरचनात्मक रूप से एक जोड़ी होती हैं और कार्यात्मक रूप से स्तनपान (Lactation) में शामिल होती हैं।
  • प्रत्येक स्तन ग्रंथि में 15-20 स्तन पालियाँ (Mammary Lobes) होती हैं, जिनमें कोशिकाओं का समूह होता है जिसे कूपिकाएँ (Alveoli) कहते हैं। कूपिकाएँ दूध स्रावित करती हैं।
  • कूपिकाओं की नलिकाएँ मिलकर स्तन वाहिनी (Mammary Duct) बनाती हैं, जो आगे दुग्ध वाहिनी (Lactiferous Duct) से जुड़कर दूध को बाहर ले जाती हैं।

2.3 युग्मकजनन (Gametogenesis)

यह प्राथमिक जनन अंगों (वृषण और अंडाशय) में युग्मकों (शुक्राणु और अंडाणु) के बनने की प्रक्रिया है।

1. शुक्राणुजनन (Spermatogenesis)

  • यह प्रक्रिया यौवनारंभ (Puberty) के समय शुरू होती है।
  • शुक्रजनन कोशिकाएँ (Spermatogonia) (द्विगुणित, 2n) समसूत्री विभाजन द्वारा संख्या में बढ़ती हैं।
  • इनमें से कुछ कोशिकाएँ प्राथमिक शुक्र कोशिकाएँ (Primary Spermatocytes) (2n) कहलाती हैं।
  • प्राथमिक शुक्र कोशिकाएँ अर्धसूत्री विभाजन I द्वारा द्वितीयक शुक्र कोशिकाएँ (Secondary Spermatocytes) (n) बनाती हैं।
  • द्वितीयक शुक्र कोशिकाएँ अर्धसूत्री विभाजन II द्वारा शुक्र प्रशुक्र (Spermatids) (n) बनाती हैं।
  • शुक्र कायांतरण (Spermiogenesis): शुक्र प्रशुक्र का शुक्राणु (Spermatozoa) में रूपांतरण।
  • शुक्र उत्सर्ग (Spermiation): शुक्राणुओं का शुक्रजनक नलिकाओं से मुक्त होना।

2. शुक्राणु की संरचना (Structure of Sperm)

एक शुक्राणु में सिर (Head), ग्रीवा (Neck), मध्य खंड (Middle Piece) और पूँछ (Tail) होती है।

  • सिर: इसमें एक अगुणित (Haploid) केंद्रक होता है। केंद्रक के शीर्ष पर एक टोपी जैसी संरचना एक्रोसोम (Acrosome) होती है, जिसमें निषेचन में सहायक एंजाइम भरे होते हैं।
  • मध्य खंड: इसमें ऊर्जा उत्पादन के लिए माइटोकॉन्ड्रिया होता है, जो पूँछ को गतिशीलता प्रदान करता है।

3. अंडाणुजनन (Oogenesis)

  • यह प्रक्रिया भ्रूण विकास की अवस्था में ही शुरू हो जाती है।
  • जनन कोशिकाएँ (Oogonia) लाखों की संख्या में बनकर प्राथमिक अंडपुटक (Primary Follicle) बनाती हैं।
  • प्राथमिक पुटिकाएँ प्राथमिक अंड कोशिका (Primary Oocyte) (2n) का निर्माण करती हैं और अर्धसूत्री विभाजन I की प्रोफेज I अवस्था में ही अवरुद्ध (arrested) हो जाती हैं।
  • यौवनारंभ तक अधिकांश पुटिकाएँ अपह्रासित हो जाती हैं; केवल 60,000 से 80,000 पुटिकाएँ ही बचती हैं।
  • अंडोत्सर्ग (Ovulation): मासिक चक्र के मध्य (14वें दिन) द्वितीयक अंड कोशिका (Secondary Oocyte) (n) और एक प्रथम ध्रुवीय पिंड (First Polar Body) के रूप में अंडाणु मुक्त होता है।
  • द्वितीयक अंड कोशिका भी अर्धसूत्री विभाजन II में मेटाफेज II अवस्था में अवरुद्ध रहती है। यह विभाजन केवल तभी पूरा होता है जब शुक्राणु द्वारा निषेचन होता है। निषेचन के बाद द्वितीयक ध्रुवीय पिंड और एक अंडाणु (Ovum) बनता है।

2.4 आर्तव चक्र (Menstrual Cycle)

  • यह प्राइमेट्स (Primate) (जैसे मानव) में मादाओं के जनन अंगों में होने वाला एक चक्रीय परिवर्तन है।
  • यह चक्र यौवनारंभ (लगभग 12-13 वर्ष की आयु) में शुरू होता है जिसे रजोधर्म (Menarche) कहते हैं। यह 50 वर्ष की आयु में बंद हो जाता है जिसे रजनोवृत्ति (Menopause) कहते हैं।
  • यह चक्र लगभग 28/29 दिनों का होता है और अंडाशयी हार्मोन (एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन) तथा पीयूष हार्मोन (LH और FSH) द्वारा नियंत्रित होता है।

आर्तव चक्र के चरण

  1. आर्तव प्रावस्था (Menstrual Phase) – 1 से 5 दिन:
    • गर्भाशय का अंतःस्तर टूट जाता है और रक्त, श्लेष्मा (mucus) और अंतःस्तर के ऊतकों के साथ योनि से बाहर निकलता है।
  2. पुटकीय प्रावस्था (Follicular Phase) – 6 से 13 दिन:
    • प्राथमिक पुटिकाएँ पूर्ण रूप से परिपक्व पुटिका (Graafian Follicle) में विकसित होती हैं।
    • गर्भाशय का अंतःस्तर पुनर्जनन (Regeneration) करता है।
    • एस्ट्रोजन हार्मोन का स्राव बढ़ता है।
  3. अंडोत्सर्ग प्रावस्था (Ovulatory Phase) – 14वाँ दिन:
    • LH (Luteinising Hormone) का स्तर तेजी से बढ़ता है (LH सर्ज/LH Surge)।
    • LH सर्ज के कारण ग्रेफियन पुटिका फट जाती है और द्वितीयक अंड कोशिका (अंडाणु) अंडाशय से मुक्त हो जाती है (अंडोत्सर्ग)।
  4. पीतपिंड प्रावस्था (Luteal Phase) – 15 से 28 दिन:
    • फटी हुई ग्रेफियन पुटिका पीतपिंड (Corpus Luteum) में बदल जाती है।
    • पीतपिंड प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का भारी मात्रा में स्राव करता है, जो गर्भाशय के अंतःस्तर को सगर्भता (Pregnancy) के लिए तैयार रखता है।
    • यदि निषेचन नहीं होता है, तो पीतपिंड अपह्रासित हो जाता है, प्रोजेस्टेरोन का स्तर गिर जाता है, और अंतःस्तर टूट जाता है, जिससे अगला मासिक धर्म शुरू होता है।

2.5 निषेचन एवं अंतर्रोपण (Fertilisation and Implantation)

निषेचन (Fertilisation)

  • मैथुन (Copulation) के दौरान वीर्य योनि में स्खलित होता है। शुक्राणु तेजी से तैरकर तुंबिका (Ampulla) क्षेत्र तक पहुँचते हैं।
  • निषेचन तुंबिका-इस्थमस संधि (Ampullary-Isthmic Junction) पर ही होता है।
  • शुक्राणु द्वारा अंडाणु को भेदने के लिए, शुक्राणु के एक्रोसोम से एंजाइम मुक्त होते हैं।
  • निषेचन के बाद, अंडाणु की झिल्ली में परिवर्तन होता है ताकि एक से अधिक शुक्राणुओं का प्रवेश (Polyspermy) रोका जा सके।
  • अगुणित शुक्राणु और अंडाणु के केंद्रकों के संलयन से द्विगुणित युग्मनज (Zygote) (2n) बनता है।

विदलन (Cleavage)

  • युग्मनज तुरंत अंडवाहिनी से गर्भाशय की ओर गति करते हुए समसूत्री विभाजन द्वारा विभाजित होना शुरू कर देता है।
  • भ्रूण 2, 4, 8, 16 संतति कोशिकाओं में विभाजित होता है, जिन्हें ब्लास्टोमियर्स (Blastomeres) कहते हैं।
  • 8 से 16 ब्लास्टोमियर्स वाले भ्रूण को तूतक (Morula) कहते हैं।
  • तूतक आगे विभाजित होकर ब्लास्टोसिस्ट (Blastocyst) बनाता है।

अंतर्रोपण (Implantation)

  • ब्लास्टोसिस्ट में बाहर की ओर पोषकोरक (Trophoblast) परत और अंदर की ओर अंतरकोशिका समूह (Inner Cell Mass) होता है।
  • ब्लास्टोसिस्ट गर्भाशय के अंतःस्तर से जुड़ जाता है। इस प्रक्रिया को अंतर्रोपण कहते हैं।
  • अंतर्रोपण के बाद, अंतःस्तर पोषकोरक को ढक लेता है, और इस तरह सगर्भता (Pregnancy) शुरू हो जाती है।

2.6 सगर्भता एवं भ्रूण परिवर्धन (Pregnancy and Embryonic Development)

  • अंतर्रोपण के बाद, पोषकोरक से अंकुर (Chorionic Villi) निकलना शुरू हो जाते हैं, जो गर्भाशय ऊतक और मातृ रक्त से घिरे होते हैं।
  • अंकुर और गर्भाशय ऊतक एक दूसरे के साथ मिलकर अपरा (Placenta) नामक एक संरचनात्मक और कार्यात्मक इकाई बनाते हैं।

अपरा (Placenta) के कार्य

  1. पोषण और ऑक्सीजन: भ्रूण को ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति।
  2. उत्सर्जन: भ्रूण द्वारा उत्पादित कार्बन डाइऑक्साइड और उत्सर्जी (अपशिष्ट) पदार्थों को हटाना।
  3. हार्मोन उत्पादन: अपरा कई हार्मोन उत्पन्न करता है, जैसे hCG (Human Chorionic Gonadotropin), hPL (Human Placental Lactogen), एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन। hCG की उपस्थिति सगर्भता का परीक्षण करने का आधार है।

भ्रूणीय परिवर्धन

  • अंतरकोशिका समूह (Inner Cell Mass) जल्द ही तीन जननिक स्तरों (Germ Layers) में विभेदित हो जाता है: एक्टोडर्म (Ectoderm), मीसोडर्म (Mesoderm) और एण्डोडर्म (Endoderm)। ये सभी ऊतकों और अंगों को जन्म देते हैं।
  • सगर्भता की अवधि 9 महीने की होती है (इसे गर्भकाल/Gestation Period कहते हैं)।
  • 1 महीना: भ्रूण का हृदय बनता है।
  • दूसरा महीना: पाद और अंगुलियाँ विकसित होती हैं।
  • 12वाँ सप्ताह (प्रथम तिमाही): अधिकांश प्रमुख अंग तंत्र बन जाते हैं।
  • 5वाँ महीना: भ्रूण की पहली गति और सिर पर बाल दिखाई देते हैं।
  • 24वाँ सप्ताह (द्वितीय तिमाही): शरीर पर महीन बाल, पलकें अलग होती हैं।
  • 9वाँ महीना: भ्रूण पूरी तरह से विकसित हो जाता है और जन्म के लिए तैयार होता है।

2.7 प्रसव एवं दुग्धस्रवण (Parturition and Lactation)

प्रसव (Parturition)

  • भ्रूण के पूर्ण विकसित होने पर गर्भाशय से बच्चे के बाहर निकलने की प्रक्रिया को प्रसव कहते हैं।
  • यह एक जटिल तंत्रिका-अंतःस्रावी क्रियाविधि (Neuro-endocrine Mechanism) है।
  • पूर्ण विकसित भ्रूण और अपरा से उत्पन्न संकेतों से हल्के गर्भाशयी संकुचन शुरू होते हैं, जिन्हें भ्रूण निष्कासन प्रतिवर्त (Foetal Ejection Reflex) कहते हैं।
  • यह प्रतिवर्त पीयूष ग्रंथि से ऑक्सीटोसिन (Oxytocin) हार्मोन के स्राव को उत्तेजित करता है। ऑक्सीटोसिन गर्भाशय की पेशियों पर कार्य करता है, जिससे संकुचन और तेज हो जाते हैं।
  • तेज संकुचन बच्चे को ग्रीवा के माध्यम से प्रसव नाल से बाहर निकलने के लिए प्रेरित करते हैं।

दुग्धस्रवण (Lactation)

  • सगर्भता के अंत तक स्तन ग्रंथियों में दूध उत्पादन शुरू हो जाता है। इस प्रक्रिया को दुग्धस्रवण कहते हैं।
  • पहले कुछ दिनों में स्रावित होने वाले दूध को खीस (Colostrum) कहते हैं।
  • खीस में कई एंटीबॉडी (Antibodies) (जैसे \text{IgA}) होती हैं जो नवजात शिशु को निष्क्रिय प्रतिरक्षा (Passive Immunity) प्रदान करती हैं और रोगों से लड़ने में मदद करती हैं।
  • शिशु के विकास के लिए शुरुआती महीनों में माँ का दूध पिलाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

अध्याय 2: मानव जनन (सारांश नोट्स)

1. सामान्य परिचय और लैंगिकता

  • मानव लैंगिक रूप से जनन करने वाला और सजीवप्रजक (जरायुज/Viviparous) प्राणी है।
  • जनन प्रक्रिया में निम्नलिखित घटनाएँ शामिल हैं: युग्मकजनन, निषेचन, कोरकपुटी (Blasotocyst) का निर्माण, अंतर्रोपण (Implantation), सगर्भता, और प्रसव

2. पुरुष जनन तंत्र

  • पुरुष जनन तंत्र में एक जोड़ा वृषण (Testes), नर लिंग सहायक नलिकाएँ, सहायक ग्रंथियाँ और बाह्य जननेंद्रियाँ शामिल होती हैं।
  • वृषण की संरचना: प्रत्येक वृषण में लगभग 250 कक्ष होते हैं, जिन्हें वृषण पालिकाएँ (Testicular Lobules) कहते हैं।
  • शुक्रजनक नलिकाएँ (Seminiferous Tubules): प्रत्येक पालिका में 1 से 3 कुंडलित नलिकाएँ होती हैं। इनकी भीतरी सतह दो प्रकार की कोशिकाओं से अस्तरित होती है:
    1. शुक्राणुजन (Spermatogonia): ये अर्धसूत्री विभाजन के फलस्वरूप शुक्राणु का निर्माण करती हैं।
    2. सर्टोली कोशिकाएँ (Sertoli Cells): ये विभाजित होने वाली जर्म कोशिकाओं को पोषण प्रदान करती हैं।
  • लेडिग कोशिकाएँ (Leydig Cells): ये शुक्रजनक नलिकाओं के बाहर स्थित होती हैं और एण्ड्रोजन (पुरुष हार्मोन) का संश्लेषण और स्रावण करती हैं।
  • बाह्य जननेंद्रिय: पुरुष की बाहरी जननेंद्रिय को शिश्न (Penis) कहा जाता है।

3. स्त्री जनन तंत्र

  • स्त्री जनन तंत्र के अंतर्गत एक जोड़ा अंडाशय (Ovaries), एक जोड़ा अंडवाहिनी (Oviduct), एक गर्भाशय (Uterus), एक योनि (Vagina), बाह्य जननेंद्रियाँ और एक जोड़ा स्तन ग्रंथियाँ होती हैं।
  • अंडाशय का कार्य: ये मादा युग्मक (अंडाणु) तथा कुछ स्टीरॉइड हार्मोन (अंडाशयी हार्मोन) पैदा करते हैं। अंडाशयी पुटिकाएँ अपने परिवर्धन के विभिन्न चरणों में पीठिका (Stroma) में अंतःस्थापित होती हैं।
  • सहायक नलिकाएँ: अंडवाहिनी, गर्भाशय और योनि सहायक नलिकाएँ हैं।
  • गर्भाशय की दीवार: इसकी दीवार तीन स्तरों से बनी होती है: परिगर्भाशय (Perimetrium), गर्भाशय पेशीस्तर (Myometrium), और गर्भाशय अंतःस्तर (Endometrium)
  • बाह्य जननेंद्रिय: इसके अंतर्गत जघन शैल, वृहद् भगोष्ठ, लघु भगोष्ठ, योनिच्छद और भगशिश्न शामिल हैं।
  • स्तन ग्रंथियाँ: ये स्त्री का एक गौण लैंगिक अभिलक्षण हैं, जो दुग्धस्रवण में सहायक होती हैं।

4. युग्मकजनन (Gamete Formation)

  • शुक्राणुजनन (Spermatogenesis): शुक्राणुजन में अर्धसूत्री विभाजन के कारण शुक्राणु का निर्माण होता है।
  • अंडजनन (Oogenesis): एक परिपक्व युग्मक (अंडाणु) के निर्माण की प्रक्रिया को अंडजनन कहते हैं।
  • शुक्राणु की संरचना: एक सामान्य मानव शुक्राणु में एक शीर्ष (Head), ग्रीवा (Neck), मध्यखंड (Middle Piece) और एक पूँछ (Tail) होती है।

5. आर्तव चक्र (Menstrual Cycle)

  • मादा प्राइमेटों में जनन चक्र को आर्तव चक्र (Menstrual Cycle) कहते हैं।
  • इसकी शुरुआत लैंगिक रूप से परिपक्व होने (यौवनारंभ) पर ही होती है।
  • चक्रीय परिवर्तन: आर्तव चक्र के दौरान अंडाशय तथा गर्भाशय में चक्रीय परिवर्तन होते हैं, जो पीयूष ग्रंथि तथा अंडाशयी हार्मोन के स्तर में बदलाव से प्रेरित होते हैं।
  • अंडाणु विमोचन: प्रति आर्तव चक्र के दौरान केवल एक अंडाणु विमोचित (मुक्त) होता है।

6. निषेचन एवं सगर्भता (Fertilisation and Pregnancy)

  • शुक्राणुओं का परिवहन: मैथुन के अंत में शुक्राणु योनि से एक संकरीर्ण पथ (गर्भाशय और अंडवाहिनी) से होते हुए तुंबिका (Ampulla) की ओर वाहित होते हैं।
  • निषेचन: शुक्राणु, अंडवाहिनी के तुंबिका क्षेत्र में अंडाणु का निषेचन करता है।
  • युग्मनज (Zygote): निषेचन के पश्चात् द्विगुणित युग्मनज की रचना होती है।
  • लिंग निर्धारण: शुक्राणु में मौजूद X या Y गुणसूत्र के कारण भ्रूण का लिंग निर्धारित होता है।
  • कोरकपुटी (Blastocyst): युग्मनज में लगातार समसूत्री विभाजन होता है, जिससे कोरकपुटी का निर्माण होता है।
  • अंतर्रोपण (Implantation): यह कोरकपुटी गर्भाशय की भित्ति में अंतर्रोपित हो जाती है, जिसके फलस्वरूप गर्भधारण होता है।
  • भ्रूण विकास: लगभग नौ महीने तक गर्भ पूर्णरूप से विकसित होता है और प्रसव के लिए तैयार हो जाता है।

7. प्रसव एवं दुग्धस्रवण (Parturition and Lactation)

  • प्रसव (Parturition): शिशु-जन्म की प्रक्रिया को प्रसव कहा जाता है। यह एक जटिल तंत्रिका-अंतःस्रावी क्रियाविधि द्वारा प्रेरित होता है।
    • इसमें कॉर्टिसॉल, एस्ट्रोजन और ऑक्सीटोसिन जैसे हार्मोन शामिल होते हैं, जो गर्भाशय के संकुचन को बढ़ाते हैं।
  • दुग्धस्रवण (Lactation): सगर्भता के दौरान स्तन ग्रंथियों में कई प्रकार के परिवर्तन होते हैं और शिशु जन्म के बाद इससे दुग्धस्रवण होता है।
  • स्तनपान: जन्म के बाद प्रारंभ के कुछ महीनों तक माता द्वारा नवजात शिशु को दुग्धपान (स्तनपान) कराया जाता है, क्योंकि यह शिशु की प्रतिरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है।

आपके द्वारा प्रदान किए गए अभ्यास प्रश्नों के समाधान यहाँ NCERT पाठ्यक्रम के अनुसार दिए गए हैं:

1. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें:

(क) मानव लैंगिक उत्पत्ति वाला है। (अलैंगिक/लैंगिक)
(ख) मानव सजीवप्रजक है। (अंडप्रजक, सजीवप्रजक, अंडजरायुज)
(ग) मानव में आंतरिक निषेचन होता है। (बाह्य/आंतरिक)
(घ) नर एवं मादा युग्मक अगुणित होते हैं। (अगुणित/द्विगुणित)
(ङ) युग्मनज द्विगुणित होता है। (अगुणित/द्विगुणित)
(च) एक परिपक्व पुटक से अंडाणु (ओवम) के मोचित होने की प्रक्रिया को अंडोत्सर्ग (ओव्यूलेशन) कहते हैं।
(छ) अंडोत्सर्ग (ओव्यूलेशन) LH (ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन) नामक हार्मोन द्वारा प्रेरित होता है।
(ज) नर एवं स्त्री के युग्मक के संलयन (फ्यूजन) को निषेचन कहते हैं।
(झ) निषेचन अंडवाहिनी के तुंबिका-इस्थमस संधि (Ampullary-Isthmic Junction) में संपन्न होता है।
(ञ) युग्मनज विभक्त होकर कोरकपुटी (ब्लास्टोसिस्ट) की रचना करता है जो गर्भाशय में अंतर्रोपित (इंप्लांटेड) होता है।
(ट) भ्रूण और गर्भाशय के बीच संवहनी संपर्क बनाने वाली संरचना को अपरा (Placenta) कहते हैं।

2. पुरुष जनन-तंत्र का एक नामांकित आरेख बनाएँ।

(छात्रों को पुरुष जनन तंत्र का एक नामांकित आरेख बनाना चाहिए जिसमें निम्नलिखित अंग स्पष्ट रूप से दर्शाए गए हों: वृषण, वृषण कोष, शुक्रजनक नलिकाएँ, शुक्र अपवाहिका, अधिवृषण, शुक्रवाहक, शुक्राशय, पुरस्थ ग्रंथि, मूत्रमार्ग, और शिश्न।)

3. स्त्री जनन-तंत्र का एक नामांकित आरेख बनाएँ।

(छात्रों को स्त्री जनन तंत्र का एक नामांकित आरेख बनाना चाहिए जिसमें निम्नलिखित अंग स्पष्ट रूप से दर्शाए गए हों: अंडाशय, अंडवाहिनी (कीपक, तुंबिका, इस्थमस), गर्भाशय (अंतःस्तर, पेशी स्तर), ग्रीवा, और योनि।)

4. वृषण तथा अंडाशय के बारे में प्रत्येक के दो-दो प्रमुख कार्यों का वर्णन करें।

अंगकार्य 1 (युग्मक उत्पादन)कार्य 2 (हार्मोन उत्पादन)
वृषण (Testes)शुक्राणुजनन (Spermatogenesis) द्वारा नर युग्मक शुक्राणु का निर्माण करना।एण्ड्रोजन (मुख्यतः टेस्टोस्टेरोन) नामक नर हार्मोन का स्राव करना।
अंडाशय (Ovaries)अंडजनन (Oogenesis) द्वारा मादा युग्मक अंडाणु का निर्माण करना।एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे स्त्री हार्मोन का स्राव करना।

5. शुक्रजनक नलिका की संरचना का वर्णन करें।

शुक्रजनक नलिका (Seminiferous Tubule) वृषण की कार्यात्मक और संरचनात्मक इकाई है।

  1. स्थान: ये प्रत्येक वृषण पालिका में 1 से 3 की संख्या में अति कुंडलित रूप में पाई जाती हैं।
  2. भीतरी सतह (Internal Lining): इसकी भीतरी सतह दो प्रकार की कोशिकाओं से अस्तरित होती है:
    • नर जनन कोशिकाएँ (Male Germ Cells / शुक्राणुजन): ये कोशिकाएँ अर्धसूत्री विभाजन द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण करती हैं।
    • सर्टोली कोशिकाएँ (Sertoli Cells): ये जनन कोशिकाओं को पोषण प्रदान करती हैं और शुक्रजनन में सहायता करती हैं।
  3. बाहरी अवकाश (Interstitial Spaces): नलिकाओं के बाहर के अवकाश में लेडिग कोशिकाएँ होती हैं, जो एण्ड्रोजन स्रावित करती हैं।

6. शुक्राणुजनन क्या है? संक्षेप में शुक्राणुजनन की प्रक्रिया का वर्णन करें।

  • शुक्राणुजनन (Spermatogenesis): वृषण में शुक्रजनन कोशिकाओं (शुक्राणुजन) से शुक्राणुओं के निर्माण की प्रक्रिया को शुक्राणुजनन कहते हैं। यह प्रक्रिया यौवनारंभ से शुरू होती है।
  • प्रक्रिया का वर्णन:
    1. बहुगुणन प्रावस्था: शुक्राणुजन समसूत्री विभाजन द्वारा संख्या में बढ़ते हैं।
    2. वृद्धि प्रावस्था: कुछ शुक्राणुजन प्राथमिक शुक्र कोशिकाएँ (2n) कहलाती हैं।
    3. परिपक्वन प्रावस्था:
      • प्राथमिक शुक्र कोशिकाएँ अर्धसूत्री विभाजन I द्वारा द्वितीयक शुक्र कोशिकाओं (n) का निर्माण करती हैं।
      • द्वितीयक शुक्र कोशिकाएँ अर्धसूत्री विभाजन II द्वारा शुक्र प्रशुक्र (Spermatids) (n) बनाती हैं।
    4. शुक्र कायांतरण (Spermiogenesis): अगुणित शुक्र प्रशुक्र का रूपांतरण गतिशील शुक्राणुओं में होता है।

7. शुक्राणुजनन की प्रक्रिया के नियमन में शामिल हार्मोनों के नाम बताएँ?

शुक्राणुजनन की प्रक्रिया का नियमन पीयूष ग्रंथि और हाइपोथैलेमस से स्रावित हार्मोन द्वारा किया जाता है:

  1. GnRH (Gonadotropin Releasing Hormone): यह हार्मोन हाइपोथैलेमस द्वारा स्रावित होता है और पीयूष ग्रंथि को गोनैडोट्रॉपिन (LH और FSH) के स्राव के लिए प्रेरित करता है।
  2. LH (Luteinising Hormone): यह लेडिग कोशिकाओं पर कार्य करके उन्हें एण्ड्रोजन (टेस्टोस्टेरोन) हार्मोन स्रावित करने के लिए प्रेरित करता है, जो शुक्राणुजनन को उत्तेजित करता है।
  3. FSH (Follicle Stimulating Hormone): यह सर्टोली कोशिकाओं पर कार्य करता है और उन्हें कुछ कारकों को स्रावित करने के लिए प्रेरित करता है जो शुक्र कायांतरण में मदद करते हैं।
  4. एण्ड्रोजन (Androgens / टेस्टोस्टेरोन): ये सीधे शुक्राणुजनन की प्रक्रिया को उत्तेजित करते हैं।

8. शुक्राणुजनन एवं वीर्यसेचन (स्पर्मिएशन) की परिभाषा लिखें।

  • शुक्राणुजनन (Spermatogenesis): वृषण की शुक्रजनक नलिकाओं में शुक्राणुजन (Male Germ Cells) कोशिकाओं से शुक्राणुओं के निर्माण की प्रक्रिया को शुक्राणुजनन कहते हैं।
  • वीर्यसेचन (Spermiation): शुक्रजनन की प्रक्रिया के बाद, शुक्राणुओं के सिर सर्टोली कोशिकाओं में अंतःस्थापित हो जाते हैं। जब शुक्राणु परिपक्व हो जाते हैं, तो उन्हें शुक्रजनक नलिकाओं से मुक्त करने की प्रक्रिया को वीर्यसेचन (Spermiation) कहते हैं।

9. शुक्राणु का एक नामांकित आरेख बनाएँ।

(छात्रों को शुक्राणु की संरचना का एक नामांकित आरेख बनाना चाहिए, जिसमें निम्नलिखित भाग स्पष्ट रूप से दर्शाए गए हों: सिर (Head), ग्रीवा (Neck), मध्यखंड (Middle Piece), और पूँछ (Tail)। सिर में एक्रोसोम और केंद्रक; मध्यखंड में माइटोकॉन्ड्रिया दर्शाना आवश्यक है।)

10. शुक्रीय द्रव्य (सेमिनल प्लाज्मा) के प्रमुख संघटक क्या हैं?

शुक्रजनन नलिकाओं और सहायक ग्रंथियों के स्रावों को सामूहिक रूप से शुक्रीय द्रव्य (Seminal Plasma) कहते हैं। इसके प्रमुख संघटक निम्नलिखित हैं:

  1. फ्रुक्टोज (Fructose): यह शुक्राणुओं को ऊर्जा प्रदान करने वाली मुख्य शर्करा है।
  2. कैल्शियम आयन (\text{Ca}^{2+}): यह शुक्राणु की गतिशीलता में महत्वपूर्ण है।
  3. कुछ एंजाइम (Enzymes): विभिन्न चयापचय और कार्यात्मक एंजाइम।
  4. अन्य पदार्थ: प्रोस्टाग्लैंडिंस और अन्य कारक।

11. पुरुष की सहायक नलिकाओं एवं ग्रंथियों के प्रमुख कार्य क्या हैं?

  • सहायक नलिकाएँ (Accessory Ducts – वृषण जालिका, शुक्र अपवाहिका, अधिवृषण, शुक्रवाहक): इनका प्रमुख कार्य शुक्राणुओं का भंडारण और परिवहन करना है। अधिवृषण शुक्राणुओं के परिपक्वन में भी मदद करता है।
  • सहायक ग्रंथियाँ (Accessory Glands – शुक्राशय, पुरस्थ ग्रंथि, बल्बोयूरेथ्रल ग्रंथि): इनका कार्य शुक्र प्लाज्मा का स्राव करना है, जो शुक्राणुओं को पोषण प्रदान करता है, उनकी गतिशीलता को बढ़ाता है, और मैथुन के लिए स्नेहन प्रदान करता है।

12. अंडजनन क्या है? अंडजनन की संक्षिप्त व्याख्या करें।

  • अंडजनन (Oogenesis): अंडाशय में अंडजननी (Oogonia) कोशिकाओं से मादा युग्मक (अंडाणु) के निर्माण की प्रक्रिया को अंडजनन कहते हैं।
  • संक्षिप्त व्याख्या:
    1. शुरुआत: यह प्रक्रिया भ्रूण के विकास की अवस्था में ही शुरू हो जाती है, जहाँ अंडजननी समसूत्री विभाजन द्वारा संख्या में बढ़ती हैं।
    2. अवरोध (Arrest): ये कोशिकाएँ प्राथमिक अंडपुटक और फिर प्राथमिक अंड कोशिका (2n) बनाती हैं, जो अर्धसूत्री विभाजन I की प्रोफेज I अवस्था में ही अवरुद्ध हो जाती हैं।
    3. यौवनारंभ: यौवनारंभ के बाद, प्रत्येक मासिक चक्र में एक प्राथमिक अंड कोशिका अर्धसूत्री विभाजन I पूरा करती है, जिससे एक द्वितीयक अंड कोशिका (n) और एक छोटा प्रथम ध्रुवीय पिंड (n) बनता है।
    4. अंडोत्सर्ग: द्वितीयक अंड कोशिका अंडोत्सर्ग के रूप में अंडाशय से मुक्त होती है और यह अर्धसूत्री विभाजन II की मेटाफेज II अवस्था में अवरुद्ध रहती है।
    5. समाप्ति: यह विभाजन केवल निषेचन होने पर ही पूरा होता है, जिससे एक परिपक्व अंडाणु और एक द्वितीयक ध्रुवीय पिंड बनता है।

13. अंडाशय के अनुप्रस्थ काट (ट्रांसवर्स सेक्शन) का एक नामांकित आरेख बनाएँ।

(छात्रों को अंडाशय के अनुप्रस्थ काट का एक नामांकित आरेख बनाना चाहिए, जिसमें निम्नलिखित संरचनाएँ स्पष्ट रूप से दर्शाई गई हों: अंडाशयी पुटिकाएँ (प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक/ग्रेफियन), पीतपिंड (Corpus Luteum), पीठिका (Stroma) (कोर्टेक्स और मेडुला), और रुधिर वाहिकाएँ।)

14. ग्राफ़ी पुटक (ग्राफियन फॉलिकिल) का एक नामांकित आरेख बनाएँ।

(छात्रों को एक परिपक्व ग्राफ़ी पुटक का आरेख बनाना चाहिए, जिसमें निम्नलिखित संरचनाएँ स्पष्ट रूप से दर्शाई गई हों:

  1. द्वितीयक अंड कोशिका (Secondary Oocyte)
  2. जोना पेलुसिडा (Zona Pellucida) (द्वितीयक अंड कोशिका के चारों ओर की परत)
  3. क्यूम्युलस ऊफोरस (Cumulus Oophorus)
  4. एंट्रम (Antrum) (द्रव से भरी गुहा)
  5. ग्रेनुलोसा कोशिकाएँ (Granulosa Cells)
  6. थीका एक्सटर्ना (Theca Externa) और थीका इंटर्ना (Theca Interna) (पुटिका की बाहरी परतें))

15. निम्नलिखित के कार्य बताएँ—

(क) पीत पिंड (कॉर्पस ल्यूटियम):
यह अंडोत्सर्ग के बाद बची हुई ग्राफ़ी पुटक की कोशिकाओं से बनता है। इसका मुख्य कार्य बड़ी मात्रा में प्रोजेस्टेरोन (Progesterone) हार्मोन स्रावित करना है। यह हार्मोन गर्भाशय अंतःस्तर (Endometrium) को सगर्भता (Pregnancy) के लिए बनाए रखने और उसे अंतर्रोपण के लिए तैयार करने में आवश्यक है।

(ख) गर्भाशय अंतःस्तर (एंडोमीट्रियम):
यह गर्भाशय की सबसे आंतरिक ग्रंथि परत है। इसका मुख्य कार्य निषेचित अंडे (कोरकपुटी) के लिए अंतर्रोपण (Implantation) का स्थल प्रदान करना है। यदि सगर्भता नहीं होती है, तो यह परत टूट जाती है, जिससे आर्तव चक्र (Menstrual Cycle) शुरू होता है।

(ग) अग्रपिंडक (एक्रोसोम):
यह शुक्राणु के शीर्ष पर मौजूद टोपी जैसी संरचना है। इसमें हाइड्रोलाइटिक एंजाइम (Hydrolytic Enzymes) (जैसे हाइलूरोनिडेस) भरे होते हैं। इसका कार्य निषेचन के दौरान अंडाणु की झिल्लियों को भेदने में सहायता करना है, जिससे शुक्राणु का केंद्रक अंड कोशिका में प्रवेश कर सके।

(घ) शुक्राणु पुच्छ (स्पर्म टेल):
यह शुक्राणु का सबसे पीछे का भाग है। इसमें अक्षीय तंतु और माइटोकॉन्ड्रिया (मध्यखंड में) से प्राप्त ऊर्जा होती है। इसका मुख्य कार्य मादा जनन मार्ग में शुक्राणु को गतिशीलता (Motility) प्रदान करना है, जिससे वह निषेचन स्थल (तुंबिका-इस्थमस संधि) तक पहुँच सके।

(च) झालर (फिम्ब्री):
यह अंडवाहिनी (फैलोपियन ट्यूब) के कीपक (Infundibulum) नामक सिरे पर मौजूद उंगली जैसी संरचनाएँ हैं। अंडोत्सर्ग के बाद, इनका मुख्य कार्य अंडाशय से मुक्त हुए अंडाणु (Ovum) को पकड़ना और उसे अंडवाहिनी के अंदर धकेलना है।

16. सही या गलत कथनों को पहचानें—

(क) पुंजनों (एण्ड्रोजेन्स) का उत्पादन सर्टोली कोशिकाओं द्वारा होता है। (गलत)
सर्टोली कोशिकाएँ पोषण प्रदान करती हैं। पुंजनों (टेस्टोस्टेरोन) का उत्पादन लेडिग कोशिकाओं (Leydig Cells) द्वारा होता है।

(ख) शुक्राणु को सर्टोली कोशिकाओं से पोषण प्राप्त होता है। (सही)

(ग) लीडिंग कोशिकाएँ अंडाशय में पाई जाती हैं। (गलत)
लेडिग कोशिकाएँ वृषण के अंतराली अवकाश (Interstitial spaces) में पाई जाती हैं।

(घ) लीडिग कोशिकाएँ पुंजनों (एण्ड्रोजेन्स) को संश्लेषित करती हैं। (सही)

(ङ) अंडजनन पीत पिंड (कॉर्पस ल्यूटियम) में संपन्न होता है। (गलत)
अंडजनन की प्रक्रिया अंडाशय की पुटिकाओं के अंदर होती है। पीत पिंड अंडोत्सर्ग के बाद बनता है, यह अंडजनन का स्थल नहीं है।

(च) सगर्भता (प्रेगनेंसी) के दौरान आर्तव चक्र (मेन्स्ट्रुअल साइकिल) बंद होता है। (सही)
प्रोजेस्टेरोन के उच्च स्तर के कारण गर्भाशय अंतःस्तर बना रहता है, और इसलिए मासिक धर्म (आर्तव चक्र) रुक जाता है।

(छ) योनिच्छद (हाइमेन) की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति कौमार्य (वर्जिनिटी) या यौन अनुभव का विश्वसनीय संकेत नहीं है। (सही)
योनिच्छद व्यायाम, खेलकूद, या अचानक गिरने जैसी शारीरिक गतिविधियों के कारण भी फट सकता है, इसलिए यह एक विश्वसनीय संकेतक नहीं है।

17. आर्तव चक्र क्या है? आर्तव चक्र (मेन्स्ट्रुअल साइकिल) का कौन से हार्मोन नियमन करते हैं?

  • आर्तव चक्र: यह मादा प्राइमेटों (जैसे मनुष्य, बंदर) के जनन अंगों में होने वाला चक्रीय परिवर्तन है, जो रजोधर्म (Menstruation) के साथ शुरू होता है और लगभग 28/29 दिनों में दोहराया जाता है। इसका उद्देश्य गर्भाशय को हर महीने संभावित सगर्भता के लिए तैयार करना है।
  • हार्मोन जो नियमन करते हैं:
    1. पीयूष ग्रंथि हार्मोन:
      • LH (Luteinising Hormone): अंडोत्सर्ग को प्रेरित करता है (LH सर्ज के रूप में)।
      • FSH (Follicle Stimulating Hormone): पुटिकाओं (फॉलिकल्स) के विकास को प्रेरित करता है।
    2. अंडाशयी हार्मोन:
      • एस्ट्रोजन (Estrogen): पुटिकाओं के विकास और गर्भाशय अंतःस्तर के पुनर्जनन को प्रेरित करता है।
      • प्रोजेस्टेरोन (Progesterone): पीत पिंड द्वारा स्रावित होता है और गर्भाशय अंतःस्तर को सगर्भता के लिए बनाए रखता है।

18. प्रसव (पारट्यूरिशन) क्या है? प्रसव को प्रेरित करने में कौन से हार्मोन शामिल होते हैं?

  • प्रसव (Parturition): सगर्भता की अवधि (लगभग 9 महीने) पूरी होने के बाद, पूर्ण विकसित शिशु के गर्भाशय से बाहर निकलने की प्रक्रिया को प्रसव कहते हैं। यह एक जटिल तंत्रिका-अंतःस्रावी क्रियाविधि द्वारा प्रेरित होता है।
  • प्रसव को प्रेरित करने वाले हार्मोन:
    1. ऑक्सीटोसिन (Oxytocin): यह पीयूष ग्रंथि से स्रावित होता है। यह गर्भाशय की पेशियों में तेज संकुचन को प्रेरित करता है, जिससे प्रसव होता है।
    2. कॉर्टिसॉल और एस्ट्रोजन: पूर्ण विकसित भ्रूण और अपरा से उत्पन्न संकेत इन हार्मोनों के स्तर को बढ़ाते हैं, जो भ्रूण निष्कासन प्रतिवर्त (Foetal Ejection Reflex) को शुरू करने में मदद करते हैं, जिससे ऑक्सीटोसिन का स्राव प्रेरित होता है।

19. हमारे समाज में लड़कियाँ जन्म देने का दोष महिलाओं को दिया जाता है। बताएँ कि यह क्यों सही नहीं है?

यह कथन वैज्ञानिक रूप से पूरी तरह गलत है। यह सही क्यों नहीं है, इसके कारण निम्नलिखित हैं:

  1. लिंग निर्धारण का आधार: बच्चे का लिंग शुक्राणु पर निर्भर करता है, न कि अंडाणु पर।
  2. युग्मकों का गुणसूत्र:अंडाणु में हमेशा केवल X गुणसूत्र होता है। शुक्राणु में या तो X या Y गुणसूत्र हो सकता है।
    • लड़की: यदि X-युक्त शुक्राणु अंडाणु से निषेचन करता है (44 + XX) तो लड़की का जन्म होता है।
    • लड़का: यदि Y-युक्त शुक्राणु अंडाणु से निषेचन करता है (44 + XY) तो लड़के का जन्म होता है।
  3. पुरुष की भूमिका: शुक्राणु पुरुष द्वारा प्रदान किए जाते हैं, इसलिए बच्चे का लिंग (लिंग गुणसूत्र) पूरी तरह से पुरुष (पिता) पर निर्भर करता है। महिला की भूमिका केवल X गुणसूत्र वाला अंडाणु प्रदान करने की होती है।

20. एक माह में मानव अंडाशय से कितने अंडे मोचित होते हैं? यदि माता ने समरूप जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया हो तो आप क्या सोचते हैं कि कितने अंडे मोचित हुए होंगे? क्या आपका उत्तर बदलेगा यदि जन्मे हुए जुड़वाँ बच्चे, द्विअंडज यमज थे?

  1. मानव अंडाशय से मोचित अंडे: सामान्यतः, एक माह (एक आर्तव चक्र) में मानव अंडाशय से केवल एक अंडाणु (द्वितीयक अंड कोशिका) मोचित होता है।
  2. समरूप जुड़वाँ बच्चे (Identical Twins): यदि माता ने समरूप जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया है, तो केवल एक ही अंडाणु मोचित हुआ होगा।
    • कारण: समरूप जुड़वाँ बच्चे एक ही युग्मनज के विभाजन से बनते हैं, जिसका अर्थ है कि निषेचन केवल एक ही बार हुआ था।
  3. द्विअंडज यमज बच्चे (Fraternal Twins): हाँ, यदि जन्मे हुए जुड़वाँ बच्चे द्विअंडज यमज थे, तो हमारा उत्तर बदल जाएगा
    • कारण: द्विअंडज यमज तब होते हैं जब दो अलग-अलग अंडाणु मोचित होते हैं (अर्थात् एक माह में दो अंडे मोचित हुए होंगे) और ये दो अलग-अलग अंडाणु, दो अलग-अलग शुक्राणुओं द्वारा निषेचित होते हैं।

21. आप क्या सोचते हैं कि कुतिया, जिसने 6 बच्चों को जन्म दिया है, के अंडाशय से कितने अंडे मोचित हुए थे?

कुतिया (कुत्तों) में द्विअंडज यमज (Fraternal Twins) की तरह, एक बार में कई बच्चे पैदा होते हैं।

  • मोचित अंडे की संख्या: यदि कुतिया ने 6 बच्चों को जन्म दिया है, तो उसके अंडाशय से लगभग 6 अंडे मोचित हुए होंगे और उन सभी का अलग-अलग शुक्राणुओं द्वारा निषेचन हुआ होगा।
  • कारण: कुत्तों जैसे जंतुओं में एक ही प्रजनन काल में कई अंडों का अंडोत्सर्ग होता है, जिससे एक साथ कई बच्चों (लिटर) का जन्म संभव हो पाता है।

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