कक्षा 10 क्षितिज कविता सौन्दर्य बोध तथा भाव एवं विषय वस्तु पर आधारित प्रश्न : MP Board 10th Hindi Kshitij Poetry Question Answer

MP Board 10th Hindi Kshitij Poetry Question Answer : सूरदास भ्रमरगीत: 1.उधो, तुम हो आती बड़भागी, 2.मन की मन ही माँझ रही, 3.हमारे हरि हारिल की लकरी, 4.हरि हैं राजनीति पढ़ी आए, तुलसीदास : राम लक्ष्मण परशुराम संवाद, जयशंकर प्रसाद : आत्मकथ्य, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला : 1. उत्साह, 2. अट नहीं रही है, नागार्जुन : 1. यह दंतुरित मुस्कान, 2. फसल, मगलेश डबराल : संगतकार

MP Board 10th Hindi Kshitij Poetry Question Answer

प्रश्न-अभ्यास: सूरदास के भ्रमरगीत (सूरसागर)

प्रश्नों के उत्तर:

  1. गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
    गोपियाँ उद्धव को “अति बड़भागी” कहकर व्यंग्य करती हैं, क्योंकि वे प्रेम के बंधन से मुक्त हैं और विरह की वेदना से अछूते हैं। यह व्यंग्य इस बात पर है कि उद्धव का मन प्रेम के रस से अछूता है, जिसके कारण वे गोपियों की भावनाओं को नहीं समझ सकते। गोपियाँ उनके इस भावशून्य दृष्टिकोण को भाग्यशाली कहकर तंज कसती हैं।
  2. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
    उद्धव के व्यवहार की तुलना निम्नलिखित से की गई है:
    • कमल के पत्ते (पद १): जो पानी में रहकर भी उसका रस ग्रहण नहीं करता।
    • तेल की गागर (पद १): जो पानी में डूबने पर भी नहीं भीगती।
    • कड़वी ककड़ी (पद ३): उद्धव का योग उपदेश गोपियों को कड़वा और बेस्वाद लगता है।
  3. गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
    गोपियाँ निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहना देती हैं:
    • कमल का पत्ता और तेल की गागर (पद १): उद्धव के प्रेम से अछूते होने का प्रतीक।
    • कड़वी ककड़ी (पद ३): उद्धव के योग उपदेश को बेकार और कड़वा बताने के लिए।
    • राजनीति और गुरु-ग्रंथ (पद ४): कृष्ण के बदले हुए व्यवहार और उद्धव के संदेश को तंज के रूप में।
    • मन चकरी (पद ३): गोपियों का मन कृष्ण के प्रेम में चक्कर खाता है, जबकि उद्धव का उपदेश उनके लिए बेकार है।
  4. उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
    उद्धव का योग और निर्गुण उपदेश गोपियों के प्रेम मार्ग के विपरीत था। गोपियाँ कृष्ण के प्रति भावनात्मक और प्रेमपूर्ण समर्पण में डूबी थीं, जबकि उद्धव का शुष्क ज्ञान मार्ग उनकी भावनाओं को समझने में असमर्थ था। इस उपदेश ने उनकी विरह वेदना को शांत करने के बजाय और बढ़ा दिया, जैसे आग में घी डालने से आग और भड़कती है।
  5. मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
    ‘मरजादा न लही’ से गोपियाँ अपनी आत्मिक मर्यादा और सामाजिक सम्मान के खोने की बात कहती हैं। कृष्ण के मथुरा चले जाने और उद्धव के शुष्क उपदेश ने उनकी प्रेम की तीव्रता को ठेस पहुँचाई, जिससे वे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में असमर्थ और अपमानित महसूस करती हैं। यह उनकी प्रेममयी मर्यादा के हनन का प्रतीक है।
  6. कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
    गोपियाँ अपने अनन्य प्रेम को निम्नलिखित रूपों में व्यक्त करती हैं:
    • पद २: उनकी मन की अभिलाषाएँ मन में ही रह गईं, जो कृष्ण के प्रति उनकी गहन प्रेमाभिव्यक्ति है।
    • पद ३: वे कहती हैं कि उनका मन, कर्म, और वचन केवल कृष्ण के लिए समर्पित है, जैसे हारिल पक्षी की लकड़ी।
    • दिन-रात स्मरण: वे जागते-सोते, स्वप्न में केवल कृष्ण का नाम जपती हैं, जो उनके एकनिष्ठ प्रेम को दर्शाता है।
  7. गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
    गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि योग की शिक्षा उन्हें दी जाए, जिन्होंने इसे सुनने की सलाह दी (पद ३: “तिनहिं लै सौंपौ, जिनके सुनी न करी”)। वे व्यंग्य करती हैं कि यह शुष्क उपदेश उनके लिए नहीं, बल्कि उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो प्रेम के बजाय ज्ञान मार्ग को अपनाते हैं।
  8. प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए।
    गोपियाँ योग-साधना को शुष्क, कड़वा, और प्रेम के विपरीत मानती हैं। वे इसे “कड़वी ककड़ी” (पद ३) के समान बताकर तिरस्कार करती हैं। उनका मानना है कि प्रेम मार्ग ही श्रेष्ठ है, और उद्धव का योग उपदेश उनकी विरह वेदना को शांत करने के बजाय और बढ़ाता है। वे प्रेम के सहज और भावनात्मक मार्ग को योग के ज्ञान मार्ग से ऊपर मानती हैं।
  9. गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
    गोपियाँ कहती हैं कि राजा का धर्म प्रजा को सताए बिना उनका हित करना है (पद ४: “राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए”)। यह सूरदास की लोकधर्मिता को दर्शाता है, जहाँ गोपियाँ उद्धव को यह याद दिलाती हैं कि सच्चा राजधर्म प्रजा की भलाई और उनके दुखों को कम करने में निहित है।
  10. गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?
    गोपियाँ कहती हैं कि कृष्ण अब राजनीति सीख आए हैं और पहले से अधिक चतुर हो गए हैं (पद ४: “हरि हैं राजनीति पढ़ि आए”)। पहले वे गोपियों के प्रेम में सरल और सहज थे, लेकिन अब गुरु और ग्रंथों ने उनकी बुद्धि बढ़ा दी है, जिसके कारण उन्होंने योग का संदेश भेजा। गोपियाँ इसे कृष्ण के व्यवहार में परिवर्तन मानती हैं और कहती हैं कि अब वे अपने मन को वापस पा लेंगी, क्योंकि कृष्ण ने उनका मन “चुराया” था।
  11. गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए।
    गोपियों के वाक्चातुर्य की विशेषताएँ:
    • व्यंग्य और तंज: उद्धव को “बड़भागी” और उनके उपदेश को “कड़वी ककड़ी” कहकर तंज करना।
    • उपमा और प्रतीक: कमल के पत्ते, तेल की गागर, और हारिल की लकड़ी जैसे प्रतीकों का उपयोग।
    • भावनात्मक गहराई: अपने प्रेम और विरह को मार्मिक ढंग से व्यक्त करना।
    • लोकधर्मिता: राजधर्म और प्रजा के हित की बात को शामिल कर सामाजिक चेतना दिखाना।
    • सहजता और सरसता: ब्रजभाषा में सरल, सहज, और भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
  12. संकलित पदों के आधार पर सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
    सूरदास के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ:
    • वियोग शृंगार रस: गोपियों का कृष्ण के प्रति प्रेम और विरह का मार्मिक चित्रण।
    • वाक्चातुर्य और व्यंग्य: गोपियों का उद्धव पर तंज और उनके उपदेश का तिरस्कार।
    • लोकधर्मिता: राजधर्म और प्रजा हित की बात को शामिल करना।
    • ब्रजभाषा की सरसता: सहज, सरल, और भावपूर्ण भाषा का प्रयोग।
    • अलंकारों का उपयोग: उपमा, व्यंग्योक्ति, और अनुप्रास जैसे अलंकारों का सुंदर समावेश।
    • प्रेम मार्ग की श्रेष्ठता: प्रेम को योग और ज्ञान मार्ग से ऊपर दिखाना।
  13. गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।
    गोपियाँ कह सकती थीं:
    • “उद्धव, तुम्हारी योग विद्या किताबों तक सीमित है, पर हमारा प्रेम हृदय की गहराई से निकलता है। क्या तुमने कभी प्रेम की उस आग को अनुभव किया, जो रात-दिन जलती है?”
    • “जैसे सूरज की किरणें बिना छुए फूल को खिला देती हैं, वैसे ही कृष्ण का प्रेम हमारे हृदय को जीवंत करता है। तुम्हारा योग हमें इस जीवन से कैसे जोड़ेगा?”
    • “तुम कहते हो निर्गुण ब्रह्म, पर हमने तो कृष्ण के सगुण रूप में ही सारा संसार देख लिया। तुम्हारी विद्या हमें क्योंकर भाए?”
  14. उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?
    गोपियों के पास प्रेम की शक्ति थी, जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हुई। यह प्रेम सहज, गहन, और एकनिष्ठ था, जो उद्धव के तर्कसंगत और शुष्क ज्ञान मार्ग को परास्त कर गया। उनकी भावनात्मक गहराई, व्यंग्य, और सहज अभिव्यक्ति ने उनके तर्कों को प्रभावी बनाया। प्रेम की यह शक्ति उनकी आत्मिक दृढ़ता और कृष्ण के प्रति समर्पण से उत्पन्न हुई थी।
  15. गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए।
    गोपियाँ कहती हैं कि कृष्ण अब राजनीति सीख आए हैं, क्योंकि वे पहले सहज और प्रेममय थे, लेकिन मथुरा जाने के बाद उनकी चतुराई बढ़ गई और उन्होंने उद्धव के माध्यम से योग का संदेश भेजा, जो गोपियों को उनके प्रेम से दूर करने का प्रयास था। यह उनके व्यवहार में आए परिवर्तन को दर्शाता है।
    समकालीन राजनीति में विस्तार: समकालीन राजनीति में भी नेताओं द्वारा जनता के प्रति प्रेम और समर्पण का दावा किया जाता है, लेकिन कई बार उनके निर्णय और नीतियाँ स्वार्थ, चतुराई, या सत्ता की रणनीति से प्रेरित होती हैं। जैसे गोपियाँ कृष्ण की चतुराई पर व्यंग्य करती हैं, वैसे ही आज जनता नेताओं के दोहरे चरित्र और वादों पर सवाल उठाती है। उदाहरण के लिए, जनता के हित की बात करने वाले नेता कई बार नीतियों में बदलाव कर जनता से दूरी बना लेते हैं, जो गोपियों के “राजनीति पढ़ आए” के तंज से मिलता-जुलता है।


प्रश्न-अभ्यास: राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

  1. परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?
    लक्ष्मण ने परशुराम के क्रोध का जवाब देते हुए निम्नलिखित तर्क दिए:
    • धनुष पुराना था, जिसके टूटने से कोई विशेष हानि या लाभ नहीं हुआ (“का छति लाभु जून धनु तोरें”)।
    • राम ने धनुष को केवल छुआ और वह टूट गया, इसमें राम का कोई दोष नहीं (“छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू”)।
    • लक्ष्मण व्यंग्य करते हैं कि उन्होंने बचपन में कई धनुष तोड़े हैं, तो इस धनुष के प्रति इतनी ममता क्यों (“बहु धनुही तोरी लरिकाईं, येहि धनु पर ममता केहि हेतू”)।
    • वे कहते हैं कि सभी धनुष एक समान हैं, तो इस धनुष के टूटने पर इतना क्रोध क्यों (“सुनहु देव सब धनुष समाना”)।
  2. परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं, उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
    • राम का स्वभाव: राम इस प्रसंग में विनम्र, शांत, और संयमित हैं। परशुराम के क्रोध के बावजूद वे कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं देते, जो उनकी मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि को दर्शाता है। उनकी चुप्पी और संयम उनके धैर्य, शील, और परिपक्वता को प्रकट करते हैं। वे परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए विश्वामित्र को मध्यस्थता करने देते हैं, जो उनकी कूटनीतिक बुद्धि को भी दिखाता है।
    • लक्ष्मण का स्वभाव: लक्ष्मण निर्भीक, वाक्पटु, और व्यंग्यप्रिय हैं। वे परशुराम के क्रोध का जवाब तीखे और व्यंग्यपूर्ण शब्दों से देते हैं, जो उनके साहस और बुद्धिमत्ता को दर्शाता है। उनकी उक्तियाँ जैसे “कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं” और “पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु” उनकी चतुराई और हास्यप्रियता को उजागर करती हैं। साथ ही, वे राम के प्रति पूर्ण निष्ठा और रक्षा की भावना रखते हैं।
  3. लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
    मुझे सबसे अच्छा अंश: “बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी। पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू।”
    संवाद शैली में अपने शब्दों में:
    लक्ष्मण (मुस्कुराते हुए, नरम स्वर में): अहो मुनिवर, आप तो स्वयं को महान योद्धा मानते हैं! बार-बार अपनी कुल्हाड़ी दिखाकर क्या पहाड़ उड़ा देंगे?
    परशुराम (क्रोधित होकर): रे नन्हा राजकुमार, तुझे मेरे स्वभाव का पता नहीं! यह साधारण कुल्हाड़ी नहीं, यह क्षत्रियों का नाश करने वाली है!
    लक्ष्मण (व्यंग्य के साथ): यहाँ कोई कमजोर नहीं जो आपकी तर्जनी देखकर डर जाए। हम रघुकुल के हैं, आपकी कुल्हाड़ी से नहीं डरते!
  4. परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए:
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुलद्रोही। भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही। सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा। मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।
    परशुराम ने सभा में अपने बारे में निम्नलिखित बातें कहीं:
    • वे बाल ब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी स्वभाव के हैं।
    • वे विश्वविख्यात क्षत्रियकुल के शत्रु हैं।
    • अपनी भुजबल से उन्होंने पृथ्वी को कई बार राजविहीन किया और ब्राह्मणों को दान दिया।
    • उन्होंने सहस्रबाहु के भुज काटे थे।
    • उनकी कुल्हाड़ी (परशु) अत्यंत घातक है, जो गर्भ के शिशुओं को भी नष्ट कर सकती है।
    • वे राम को चेतावनी देते हैं कि वह कुछ ऐसा न करें जिससे उनके माता-पिता को शोक हो।
  5. लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं?
    लक्ष्मण ने परशुराम के संदर्भ में वीर योद्धा की निम्नलिखित विशेषताएँ बताईं:
    • परशुराम स्वयं को महान योद्धा मानते हैं (“महाभट मानी”)।
    • वे अपनी कुल्हाड़ी को इतना शक्तिशाली बताते हैं कि वह पहाड़ उड़ा सकती है (“चहत उड़ावन फूँकि पहारू”)।
    • उनकी धमकियाँ डरावनी हैं, पर लक्ष्मण व्यंग्य करते हैं कि यहाँ कोई कमजोर (“कुम्हड़बतिया”) नहीं जो उनकी तर्जनी से डर जाए।
    • लक्ष्मण यह भी संकेत करते हैं कि सच्चा योद्धा वही है जो पाप न करे, जैसे देवता, ब्राह्मण, हरिजन, या गाय को न मारना।
  6. साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
    यह कथन इस प्रसंग में राम और लक्ष्मण के स्वभाव के माध्यम से सटीक बैठता है। साहस और शक्ति एक योद्धा की पहचान हैं, लेकिन विनम्रता उसे महान बनाती है। राम इस प्रसंग में अपनी शक्ति को प्रदर्शित करने के बजाय विनम्र और संयमित रहते हैं, जो उनकी मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि को मजबूत करता है। दूसरी ओर, लक्ष्मण साहसी और वाक्पटु हैं, पर उनकी तीखी उक्तियाँ परशुराम के क्रोध को और भड़काती हैं। यदि लक्ष्मण के साहस के साथ विनम्रता होती, तो संवाद अधिक संतुलित हो सकता था। विनम्रता से साहस और शक्ति का प्रभाव बढ़ता है, क्योंकि यह दूसरों के प्रति सम्मान और संयम दर्शाता है, जो सामाजिक और नैतिक दृष्टि से आदर्श है।
  7. भाव स्पष्ट कीजिए:
    (क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी। पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू।
    भाव: लक्ष्मण परशुराम के क्रोध और उनकी कुल्हाड़ी की धमकी पर व्यंग्य करते हैं। वे नरम स्वर में, पर तंज के साथ कहते हैं कि परशुराम स्वयं को महान योद्धा मानते हैं और बार-बार अपनी कुल्हाड़ी दिखाकर डराने की कोशिश कर रहे हैं, जैसे कि वे इस कुल्हाड़ी से पहाड़ उड़ा देंगे। यह लक्ष्मण की निर्भीकता और वाक्चातुर्य को दर्शाता है।

(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं। देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।
भाव: लक्ष्मण व्यंग्य करते हैं कि यहाँ कोई कमजोर (“कुम्हड़बतिया”) नहीं है जो परशुराम की तर्जनी (उँगली) या कुल्हाड़ी देखकर डर जाए। वे कहते हैं कि परशुराम की धनुष-बाण और कुल्हाड़ी देखकर भी वे अभिमान के साथ बोल रहे हैं, क्योंकि रघुकुल में कोई उनकी धमकियों से डरता नहीं। यह उनके साहस और रघुकुल के गौरव को दर्शाता है।

  1. पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
    तुलसीदास की भाषा का सौंदर्य इस प्रसंग में उनकी अवधी भाषा की सरसता और संवादमय शैली में स्पष्ट झलकता है। उनकी भाषा सहज, सरल, और जनसामान्य के लिए ग्राह्य है, जो भावों को जीवंत बनाती है। लक्ष्मण की व्यंग्यपूर्ण उक्तियाँ, जैसे “कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं”, भाषा की चतुराई और हास्य को दर्शाती हैं। परशुराम के क्रोध भरे वचनों में गंभीरता और शक्ति का समन्वय है। तुलसी ने चौपाई और दोहे का उपयोग कर संवादों को लयबद्ध और प्रभावी बनाया। अलंकारों जैसे व्यंग्योक्ति, उपमा, और अनुप्रास का सुंदर प्रयोग भाषा को समृद्ध करता है। उनकी भाषा में लोकधर्मिता और नैतिक मूल्यों का समावेश है। संवादों की नाटकीयता पाठक को बाँधे रखती है। अवधी के मुहावरेदार शब्द, जैसे “फूँकि पहारू” और “तरजनी देखि”, भाषा को जीवंत और चित्रात्मक बनाते हैं। तुलसी की भाषा भक्ति, वीरता, और हास्य का अनूठा संगम प्रस्तुत करती है।
  2. इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
    इस प्रसंग में व्यंग्य का सौंदर्य लक्ष्मण की उक्तियों में प्रमुखता से उजागर होता है, जो परशुराम के क्रोध को हल्का करने के साथ-साथ उनके साहस को दर्शाता है।
    • उदाहरण 1: “बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी। पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू।”
      व्यंग्य: लक्ष्मण परशुराम के योद्धा होने के दावे और उनकी कुल्हाड़ी की धमकी पर तंज कसते हैं कि क्या वे इस कुल्हाड़ी से पहाड़ उड़ा देंगे। यह व्यंग्य परशुराम की अतिशयोक्ति को हास्यास्पद बनाता है।
    • उदाहरण 2: “इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।”
      व्यंग्य: लक्ष्मण कहते हैं कि यहाँ कोई कमजोर नहीं जो उनकी उँगली की धमकी से डर जाए, जिससे परशुराम का क्रोध हास्य का विषय बन जाता है।
      व्यंग्य का सौंदर्य इसकी सूक्ष्मता और चतुराई में है, जो लक्ष्मण की बुद्धिमत्ता को उजागर करता है और प्रसंग को रोचक बनाता है।
  3. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए:
    (क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
    अलंकार: अनुप्रास (ध्वनि की पुनरावृत्ति: “बालकु बोलि बधौं” में ‘ब’ की बार-बार आवृत्ति)।
    (ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
    अलंकार: उपमा (परशुराम के शब्दों की तुलना कोटि वज्रों से की गई है)।

प्रश्न-अभ्यास: आत्मकथ्य (जयशंकर प्रसाद)
उत्तर

1. कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है?
जयशंकर प्रसाद आत्मकथा लिखने से इसलिए बचना चाहते हैं क्योंकि वे अपने जीवन को साधारण और अभावग्रस्त मानते हैं, जिसमें कोई ऐसी उज्ज्वल या रोचक गाथा नहीं है जो लोगों की प्रशंसा बटोरे। वे कहते हैं कि उनकी आत्मकथा “गागर रीती” (खाली घड़ा) की तरह है, जिसे सुनकर लोग सुख तो पा सकते हैं, पर वे उनकी सादगी का उपहास भी उड़ा सकते हैं। वे अपनी भूलों या दूसरों की प्रवंचना को उजागर करने से भी हिचकते हैं, क्योंकि यह उनकी सरलता और आत्मसम्मान के खिलाफ है। कवि अपनी निजी व्यथा को सार्वजनिक करने के बजाय मौन रहना बेहतर मानते हैं।

2. आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में अभी समय भी नहींकवि ऐसा क्यों कहता है?
कवि का कहना है कि उनकी “मौन व्यथा” अभी थकी हुई और सोई हुई है, अर्थात् उनकी जीवन की पीड़ा और अनुभव अभी व्यक्त करने के लिए तैयार नहीं हैं। वे मानते हैं कि आत्मकथा लिखने का यह उचित समय नहीं है, क्योंकि उनके जीवन की साधारणता और दुखों को उजागर करने से कोई विशेष लाभ नहीं होगा। यह कथन उनकी विनम्रता और निजता को संरक्षित करने की इच्छा को दर्शाता है। वे यह भी संकेत करते हैं कि उनकी व्यथा को अभी और समय चाहिए, और इसे जगाने से पहले वे दूसरों की कहानियाँ सुनना पसंद करेंगे।

3. स्मृति को पाथेयबनाने से कवि का क्या आशय है?
कवि अपनी प्रेम की स्मृति को “पाथेय” (यात्रा का सहारा) कहते हैं, जिसका अर्थ है कि उनके जीवन की प्रेममयी स्मृतियाँ उनके थके हुए जीवन (पथिक की पंथा) का आधार और प्रेरणा बनी हैं। यह स्मृति उनके लिए वह शक्ति है जो उन्हें जीवन की कठिन यात्रा में आगे बढ़ने का बल देती है। प्रेम की यह स्मृति, जो “अनुरागिनी उषा” और “मधुमाया” जैसे बिंबों में व्यक्त हुई है, उनके जीवन का एकमात्र सकारात्मक और सुंदर हिस्सा है, जो उन्हें जीवंत रखता है।

4. भाव स्पष्ट कीजिए:
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
भाव: कवि यहाँ अपने जीवन के उस सुख की बात करते हैं जो उन्होंने स्वप्न में देखा, लेकिन जागने पर वह खो गया। यह सुख प्रेम और आत्मिक संतुष्टि का प्रतीक है, जो उनके जीवन में क्षणभंगुर रहा। “आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया” से तात्पर्य है कि यह सुख उनकी पहुँच के इतने करीब था कि वे उसे गले लगाने वाले थे, लेकिन वह शरमाकर या हँसकर दूर चला गया। यह उनके जीवन की अधूरी इच्छाओं और प्रेम की क्षणभंगुरता को दर्शाता है।

(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
भाव: कवि यहाँ प्रेम की स्मृति को एक सुंदर और मादक बिंब के माध्यम से व्यक्त करते हैं। “अरुण कपोल” (लालिमा लिए गाल) और “मतवाली सुंदर छाया” प्रेम की सौंदर्यपूर्ण और मादक छवि को दर्शाते हैं। “अनुरागिनी उषा” प्रेममयी और उत्साहपूर्ण प्रभात का प्रतीक है, जो “निज सुहाग मधुमाया” (प्रेममय आनंद) में डूबी थी। यह बिंब प्रेम के उन पलों को दर्शाता है जो कवि के जीवन में संक्षिप्त लेकिन मधुर थे और उनकी स्मृति अब भी उनके हृदय में जीवित है।

5. ‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’ – कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
इस कथन के माध्यम से कवि अपनी आत्मकथा को उज्ज्वल या रोचक बताने में अपनी असमर्थता और अनिच्छा व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि उनके जीवन में ऐसी कोई महान या सुखद घटनाएँ नहीं हैं जो “मधुर चाँदनी रातों” की तरह आकर्षक और प्रशंसनीय हों। उनका जीवन साधारण और अभावग्रस्त रहा है, जिसमें कोई ऐसी गाथा नहीं जो लोगों को प्रभावित करे। यह उनकी विनम्रता और जीवन के यथार्थ को स्वीकार करने की भावना को दर्शाता है।

6. ‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
‘आत्मकथ्य’ की काव्यभाषा छायावादी शैली की विशेषताओं से युक्त है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • लालित्य और कोमलता: भाषा में मधुरता और भावात्मक गहराई है। उदाहरण: “अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।”
  • प्रतीकात्मकता और बिंब: कविता में सूक्ष्म और नवीन बिंबों का प्रयोग है। उदाहरण: “मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ” जीवन की क्षणभंगुरता को दर्शाता है।
  • संस्कृतनिष्ठ शब्द: शुद्ध हिंदी और संस्कृत आधारित शब्दों का सुंदर प्रयोग। उदाहरण: “गंभीर अनंत-नीलिमा”, “पाथेय”, “उज्ज्वल गाथा”।
  • प्रश्नोक्ति और व्यंजना: कवि प्रश्नों के माध्यम से अपनी अनिच्छा व्यक्त करते हैं। उदाहरण: “तब भी कहते हो–कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती?”
  • प्रकृति और भाव का समन्वय: प्रकृति के बिंबों के साथ मनोभावों का मिश्रण। उदाहरण: “मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी।”

7. कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था, उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?
कवि ने अपने जीवन में देखे गए सुख के स्वप्न को प्रेम और सौंदर्य के बिंबों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। इस सुख को वे एक क्षणभंगुर और मादक अनुभव के रूप में चित्रित करते हैं, जो उनके जीवन में आया, पर स्थायी नहीं रहा। उदाहरण के लिए:

  • “मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।” यहाँ सुख को एक प्रेममयी आलिंगन के रूप में दर्शाया गया है, जो शरमाकर भाग गया।
  • “जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।” यहाँ प्रेम को “अनुरागिनी उषा” और “मधुमाया” जैसे बिंबों के साथ व्यक्त किया गया है, जो सौंदर्य और मधुरता का प्रतीक है। यह सुख उनकी स्मृति में बचा है, जो उनके जीवन का सहारा बना।

8. इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
‘आत्मकथ्य’ कविता के माध्यम से जयशंकर प्रसाद का व्यक्तित्व एक संवेदनशील, विनम्र, और दार्शनिक कवि के रूप में उजागर होता है। वे अपने जीवन को साधारण और अभावग्रस्त मानते हैं, जिसमें कोई महान गाथा नहीं है। उनकी विनम्रता इस बात में झलकती है कि वे अपनी दुर्बलताओं और भूलों को सार्वजनिक करने से बचते हैं। उनका प्रेम और सौंदर्य के प्रति गहरा लगाव उनकी स्मृतियों के बिंबों में दिखता है, जैसे “अनुरागिनी उषा” और “मधुमाया”। वे अपनी निजता को संरक्षित रखना चाहते हैं और मौन रहकर दूसरों की कहानियाँ सुनना पसंद करते हैं। उनकी भाषा और बिंबों में छायावादी सूक्ष्मता और दार्शनिक गहराई स्पष्ट है, जो उनके चिंतनशील और भावुक स्वभाव को दर्शाती है।

9. आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?
मैं निम्नलिखित व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहूँगा:

  • महात्मा गांधी: उनकी आत्मकथा “सत्य के प्रयोग” सत्य, अहिंसा, और आत्म-संघर्ष की प्रेरणा देती है। मैं उनकी नैतिकता और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को गहराई से समझना चाहता हूँ।
  • ए.पी.जे. अब्दुल कलाम: उनकी आत्मकथा “विंग्स ऑफ फायर” उनके साधारण जीवन से वैज्ञानिक और राष्ट्रपति बनने की प्रेरणादायक यात्रा को दर्शाती है। यह मेहनत और सपनों की शक्ति को समझने में मदद करेगी।
  • बेबी हालदार: उनकी आत्मकथा “आलो आंधारि” एक साधारण घरेलू सहायिका के संघर्ष और साहस की कहानी है, जो मुझे सामान्य लोगों के असाधारण जीवन को समझने की प्रेरणा देगी।
    मैं इन आत्मकथाओं को इसलिए पढ़ना चाहूँगा क्योंकि ये विभिन्न पृष्ठभूमियों से प्रेरणा, साहस, और जीवन के यथार्थ को दर्शाती हैं।

प्रश्न-अभ्यास: उत्साह और अट नहीं रही है (सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’)

उत्साह: प्रश्न-अभ्यास

1. कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर गरजनेके लिए कहता है, क्यों?
कवि बादल से “गरजने” के लिए कहता है, क्योंकि गरजना बादल की शक्ति, उग्रता, और क्रांतिकारी स्वरूप को दर्शाता है। “फुहार” या “रिमझिम” जैसे शब्द कोमलता और सौम्यता का प्रतीक हैं, जबकि “गरजो” में विध्वंस, क्रांति, और नवजीवन की प्रेरणा का भाव निहित है। निराला बादल को केवल वर्षा का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक और साहित्यिक बदलाव का प्रतीक मानते हैं। “गरजो” का आह्वान कवि की क्रांतिकारी चेतना और शोषित जन की आकांक्षाओं को जगाने की पुकार को दर्शाता है।

2. कविता का शीर्षक उत्साहक्यों रखा गया है?
कविता का शीर्षक “उत्साह” इसलिए रखा गया है, क्योंकि यह कविता कवि के अंतर्मन में उमड़ते उत्साह, प्रेरणा, और क्रांतिकारी भाव को व्यक्त करती है। बादल का आह्वान “गरजो” कवि की ऊर्जा और नवजीवन की आकांक्षा को दर्शाता है। यह उत्साह केवल प्रकृति की शक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक बदलाव, नूतन कविता, और पीड़ित जन की राहत के लिए प्रेरणा का प्रतीक है। कविता का स्वर और भाव उत्साहपूर्ण और प्रेरणादायक हैं, जो शीर्षक को सार्थक बनाते हैं।

3. कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है?
कविता में बादल निम्नलिखित अर्थों की ओर संकेत करता है:

  • प्रकृतिक शक्ति: बादल वर्षा के माध्यम से तप्त धरती और प्यासे जन को शीतलता प्रदान करता है।
  • क्रांति का प्रतीक: “वज्र छिपा” और “नूतन कविता” के माध्यम से बादल सामाजिक और साहित्यिक क्रांति का प्रतीक है।
  • नवजीवन का संदेशवाहक: यह नवीन प्रेरणा और जीवन की नई शुरुआत का प्रतीक है।
  • सौंदर्य और शक्ति का समन्वय: “ललित-बाल-घन-के-से काले घुँघराले” और “विद्युत-छबि” जैसे बिंब बादल के सौंदर्य और शक्ति को दर्शाते हैं।
  • शोषित जन की आकांक्षा: बादल “विकल विश्व के निदाघ के सकल जन” की पीड़ा को दूर करने का प्रतीक है।

4. शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।
नाद-सौंदर्य कविता में ध्वन्यात्मक प्रभाव और लय पैदा करने वाले शब्दों से उत्पन्न होता है। उत्साह कविता में नाद-सौंदर्य के उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  • बादल, गरजो!: “गरजो” शब्द में गर्जना की तीव्रता और लय है, जो क्रांति और शक्ति का भाव पैदा करता है।
  • ललित-बाल-घन-के-से काले घुँघराले: “घुँघराले” में ध्वनि की लय और सौंदर्य का चित्रण है।
  • वज्र छिपा: “वज्र” शब्द में कठोरता और शक्ति की ध्वनि है।
  • उन्मन, विकल विकल: “विकल विकल” की पुनरावृत्ति में व्याकुलता और लयात्मक प्रभाव है।
  • अनंत के घन: “घन” शब्द बादल की गंभीरता और ध्वनि को व्यक्त करता है।
    ये शब्द कविता में शक्ति, सौंदर्य, और क्रांति के भाव को ध्वन्यात्मक रूप से जीवंत करते हैं।

अट नहीं रही है: प्रश्न-अभ्यास

1. छायावाद की एक खास विशेषता है अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।
छायावाद की विशेषता अंतर्मन और बाह्य प्रकृति के बीच सामंजस्य है। निम्नलिखित पंक्तियाँ इस धारणा को पुष्ट करती हैं:

  • आभा फागुन की तन सट नहीं रही है: फागुन की बाह्य सुंदरता कवि के तन-मन से सट रही है, जो अंतर्मन की प्रसन्नता को दर्शाता है।
  • कहीं साँस लेते हो, घर-घर भर देते हो: फागुन की साँसें (प्रकृति) कवि के मन और समाज में उल्लास भरती हैं।
  • पत्तों से लदी डाल कहीं हरी, कहीं लाल, कहीं पड़ी है उर में मंद-गंध-पुष्प-माल: प्रकृति की डालियाँ और फूलों की सुगंध कवि के हृदय (उर) में बसती हैं, जो बाह्य और अंतर्मन के सामंजस्य को दिखाता है।
    ये पंक्तियाँ प्रकृति के सौंदर्य और कवि के मन की उमंग के बीच गहरा तालमेल दर्शाती हैं।

2. कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?
कवि की आँख फागुन की सुंदरता से इसलिए नहीं हट रही, क्योंकि फागुन का सौंदर्य सर्वव्यापी, मादक, और मन को बाँधने वाला है। पंक्ति “आँख हटाता हूँ त हट नहीं रही है” दर्शाती है कि फागुन की शोभा इतनी आकर्षक है कि कवि का मन उससे मुक्त नहीं हो पाता। फागुन की हरियाली, रंगबिरंगी डालियाँ, और मंद सुगंध कवि के अंतर्मन को आल्हादित करती हैं, जिससे उनकी नजरें बार-बार उसी सौंदर्य की ओर खिंचती हैं।

3. प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है?
कवि ने प्रकृति की व्यापकता को निम्नलिखित रूपों में चित्रित किया है:

  • आभा और उमंग: “आभा फागुन की तन सट नहीं रही है” में फागुन की सर्वव्यापी शोभा और उमंग।
  • साँसों का प्रभाव: “कहीं साँस लेते हो, घर-घर भर देते हो” में फागुन की साँसें हर घर और मन को उल्लास से भर देती हैं।
  • आकाश में उड़ान: “उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो” में फागुन की गति और आकाश में फैलता सौंदर्य।
  • रंगबिरंगी प्रकृति: “पत्तों से लदी डाल कहीं हरी, कहीं लाल” में प्रकृति की विविधता और रंग।
  • सुगंध और फूल: “मंद-गंध-पुष्प-माल” में फूलों की सुगंध और सौंदर्य।
  • शोभा-श्री: “शोभा-श्री पाट-पाट पट नहीं रही है” में प्रकृति की सर्वत्र फैली शोभा।

4. फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है?
फागुन (वसंत ऋतु) में प्रकृति का सौंदर्य और उल्लास बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है, क्योंकि:

  • सर्वव्यापी उमंग: फागुन में हरियाली, फूलों की सुगंध, और रंगबिरंगी डालियाँ प्रकृति को जीवंत बनाती हैं, जो मन को आल्हादित करती हैं।
  • नवजीवन का प्रतीक: फागुन नवीन पत्तियों, फूलों, और हरियाली के साथ नए जीवन का संदेश देता है, जो अन्य ऋतुओं में कम देखने को मिलता है।
  • मादकता: फागुन की “मंद-गंध” और “शोभा-श्री” में एक मादक आकर्षण है, जो मन को बाँध लेता है।
  • सामाजिक उल्लास: फागुन में होली जैसे उत्सव मनाए जाते हैं, जो सामाजिक एकता और आनंद को बढ़ाते हैं, जो अन्य ऋतुओं में कम होता है।

5. इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।
निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • मुक्त छंद: दोनों कविताओं में मुक्त छंद का प्रयोग, जो काव्य को स्वतंत्र और लयबद्ध बनाता है। उदाहरण: “बादल, गरजो!” और “अट नहीं रही है” की लय।
  • प्रतीकात्मकता: बादल (उत्साह) में क्रांति और नवजीवन का प्रतीक, फागुन (अट नहीं रही है) में उमंग और सौंदर्य का प्रतीक।
  • ललित शब्द-चयन: “काले घुँघराले”, “मंद-गंध-पुष्प-माल”, “शोभा-श्री” जैसे भावपूर्ण शब्द।
  • नाद-सौंदर्य: “विकल विकल”, “पाट-पाट” जैसे शब्दों में ध्वन्यात्मक लय।
  • प्रकृति और मन का समन्वय: दोनों कविताएँ प्रकृति (बादल, फागुन) और अंतर्मन की भावनाओं को जोड़ती हैं।
  • सामाजिक चेतना: उत्साह में शोषित जन और क्रांति का भाव, जबकि अट नहीं रही है में व्यक्तिगत उमंग और सौंदर्य।
  • छायावादी लालित्य: दोनों कविताओं में छायावादी सूक्ष्मता, बिंब, और भावात्मक गहराई।

प्रश्न-अभ्यास: यह दंतुरित मुसकान (नागार्जुन)
प्रश्नोत्तर

1. बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
बच्चे की दंतुरित मुसकान कवि के मन पर गहरा और सकारात्मक प्रभाव डालती है। यह मुसकान कवि के हृदय को आनंद, प्रेरणा, और जीवन-ऊर्जा से भर देती है। कविता में निम्नलिखित प्रभाव स्पष्ट हैं:

  • जीवनदायिनी शक्ति: “मृतक में भी डाल देगी जान” पंक्ति से पता चलता है कि यह मुसकान कवि के मन को जीवंत और उत्साहित करती है।
  • कठोरता का पिघलना: “पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण” से कवि का कठोर या उदास मन बच्चे की मुसकान से कोमल और भावुक हो जाता है।
  • प्रकृति से जुड़ाव: बच्चे की मुसकान कवि को प्रकृति की सुंदरता (जलजात, शेफालिका के फूल) से जोड़ती है, जिससे उनके मन में सौंदर्यबोध जाग्रत होता है।
  • आत्मीयता और स्नेह: बच्चे की चंचलता और कनखियों से देखने का अंदाज कवि के मन में स्नेह और आत्मीयता का भाव उत्पन्न करता है।

2. बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?
बच्चे की मुसकान और बड़े व्यक्ति की मुसकान में निम्नलिखित अंतर हैं:

  • निश्छलता: बच्चे की मुसकान निश्छल, स्वाभाविक, और निर्मल होती है, जबकि बड़े व्यक्ति की मुसकान में अक्सर औपचारिकता, बनावट, या छिपे भाव (जैसे व्यंग्य, दुख) हो सकते हैं।
  • प्रभाव: बच्चे की मुसकान, जैसा कि कविता में कहा गया है, “मृतक में भी जान डाल” सकती है, क्योंकि यह मासूम और शुद्ध होती है। बड़े व्यक्ति की मुसकान में यह गहन प्रभाव कम ही देखने को मिलता है।
  • चंचलता: बच्चे की मुसकान में कनखियों का बाँकपन और चंचलता होती है, जो कवि को “छविमान” लगती है। बड़े व्यक्ति की मुसकान में ऐसी चंचलता और सहजता कम होती है।
  • प्रेरणा: बच्चे की मुसकान जीवन, आशा, और सादगी का प्रतीक है, जबकि बड़े व्यक्ति की मुसकान में जीवन के अनुभव, थकान, या जटिल भावनाएँ झलक सकती हैं।

3. कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है?
कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को निम्नलिखित बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है:

  • जलजात (कमल): “छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात” में बच्चे की मुसकान को कमल की तरह शुद्ध और सुंदर बताया गया है, जो कवि की साधारण झोंपड़ी में भी सौंदर्य बिखेरती है।
  • शेफालिका के फूल: “छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल” में बच्चे का स्पर्श और मुसकान प्रकृति की सुंदरता (हरसिंगार के फूल) को उभारती है।
  • पिघलता पाषाण: “पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण” में मुसकान की शक्ति को कठोर पत्थर को जल की तरह कोमल करने वाले बिंब से दर्शाया गया है।
  • कनखी का बाँकपन: “देखते तुम इधर कनखी मार” में बच्चे की चंचल नजरें और मुसकान को आकर्षक और “छविमान” बताया गया है।
  • जीवनदायिनी शक्ति: “मृतक में भी डाल देगी जान” में मुसकान को जीवन और ऊर्जा प्रदान करने वाले बिंब के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

4. भाव स्पष्ट कीजिए:
(क) छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात।

  • भाव: इस पंक्ति में कवि बच्चे की उपस्थिति और उसकी मुसकान के प्रभाव को चित्रित करता है। बच्चा तालाब के कमल (जलजात) जैसे सुंदर और शुद्ध सौंदर्य को छोड़कर कवि की साधारण झोंपड़ी में आया है। उसकी मुसकान और मासूमियत से कवि का साधारण जीवन भी कमल की तरह सुंदर और जीवंत हो उठा है। यह पंक्ति बच्चे की मुसकान के सौंदर्य और उसके परिवर्तनकारी प्रभाव को दर्शाती है, जो साधारण स्थान को भी असाधारण बना देता है।

(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल, बाँस था कि बबूल?

  • भाव: इस पंक्ति में बच्चे के स्पर्श और मुसकान की जादुई शक्ति को प्रकृति के साथ जोड़ा गया है। बच्चे के छूने मात्र से शेफालिका (हरसिंगार) के फूल झरने लगते हैं, जो प्रकृति की संवेदनशीलता और बच्चे के सौंदर्य का समन्वय दर्शाता है। “बाँस था कि बबूल?” में कवि मजाकिया और आत्मीय अंदाज में बच्चे से पूछता है कि क्या वह कठोर बाँस या बबूल जैसा है, जबकि उसकी मुसकान और स्पर्श कोमल और प्रभावशाली हैं। यह पंक्ति बच्चे की चंचलता, मासूमियत, और प्रकृति से उसके गहरे जुड़ाव को व्यक्त करती है।

प्रश्न-अभ्यास: संगतकार (मंगलेश डबराल)
1. संगतकार के माध्यम से कवि किस प्रकार के व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है?
कवि संगतकार के माध्यम से उन व्यक्तियों की ओर संकेत करता है जो पृष्ठभूमि में रहकर निस्वार्थ भाव से दूसरों की सफलता में योगदान देते हैं। ये लोग अपनी प्रतिभा और मेहनत से मुख्य व्यक्ति को सहारा देते हैं, परंतु स्वयं प्रसिद्धि से दूर रहते हैं। उनकी हिचक और स्वर को ऊँचा न उठाने की कोशिश उनकी विनम्रता और मानवीयता को दर्शाती है।

2. संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा और किन-किन क्षेत्रों में दिखाई देते हैं?

  • नाटक और फिल्म: सहायक कलाकार, लेखक, निर्देशक, तकनीशियन।
  • खेल: कोच, प्रशिक्षक, सहायक खिलाड़ी।
  • शिक्षा: शिक्षक, मार्गदर्शक, सहपाठी।
  • समाज और इतिहास: परिवार, मित्र, समुदाय के लोग।
  • कार्यस्थल: सहकर्मी, अधीनस्थ।

3. संगतकार किन-किन रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं?

  • स्वर समन्वय: मुख्य गायक की भारी आवाज़ में सुंदर, काँपती आवाज़ मिलाकर संतुलन बनाता है।
  • स्थायी सँभालना: गायक के अंतरे की जटिल तानों में खोने पर स्थायी को बनाए रखता है।
  • प्रेरणा और ढांढ़स: तारसप्तक में स्वर बैठने या उत्साह कम होने पर ढांढ़स बँधाता है।
  • साथ देना: गायक को अकेलेपन से बचाने और पुनः गाने की प्रेरणा देता है।
  • स्मरण कराना: गायक के बचपन या नौसिखिएपन की याद दिलाकर आधार देता है।

5. भाव स्पष्ट कीजिए:
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है उसे विफलता नहीं उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
संगतकार की आवाज़ में हिचक और स्वर को ऊँचा न उठाने की कोशिश उसकी पृष्ठभूमि में रहने की इच्छा को दर्शाती है। यह उसकी कमजोरी नहीं, बल्कि विनम्रता, निस्वार्थता और मुख्य गायक को चमकने देने की मानवीयता है।

रचना और अभिव्यक्ति (5):
किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि पाने वाले लोगों को अनेक लोग तरह-तरह से अपना योगदान देते हैं। कोई एक उदाहरण देकर इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उदाहरण: सचिन तेंडुलकर की सफलता में कोच रमाकांत आचरेकर का योगदान।
विचार: सचिन की बल्लेबाजी में तकनीकी और मानसिक मजबूती का श्रेय रमाकांत आचरेकर को है, जिन्होंने पृष्ठभूमि में रहकर उनकी प्रतिभा को निखारा। कोच का अनुशासन और मार्गदर्शन सफलता का आधार बना, पर वे स्वयं सुर्खियों से दूर रहे। यह दर्शाता है कि सहयोगियों की निस्वार्थ भूमिका प्रसिद्धि के लिए आवश्यक है।

6. कभी-कभी तारसप्तक की ऊँचाई पर पहुँचकर मुख्य गायक का स्वर बिखरता नज़र आता है, उस समय संगतकार उसे बिखरने से बचा लेता है। इस कथन के आलोक में संगतकार की विशेष भूमिका को स्पष्ट कीजिए।

  • स्वर को स्थिर करना: तारसप्तक में स्वर बिखरने पर संगतकार अपनी आवाज़ से स्थिरता और आधार देता है।
  • प्रेरणा देना: ढांढ़स बँधाकर गायक का आत्मविश्वास बढ़ाता है।
  • राग की निरंतरता: स्थायी को सँभालकर राग की लय बनाए रखता है।
  • सहयोगी भूमिका: गायक को अकेलेपन से बचाता और पुनः गाने की हिम्मत देता है।

7. सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाता है, तब सहयोगी उसे किस तरह सँभालते हैं?

  • मार्गदर्शन: सही दिशा दिखाकर भटकने से बचाते हैं।
  • प्रेरणा: आत्मविश्वास और उत्साह बढ़ाते हैं।
  • सहारा: भावनात्मक और तकनीकी समर्थन प्रदान करते हैं।
  • संतुलन: कमियों को समेटकर प्रदर्शन को स्थिर करते हैं।
  • स्मरण: मूल उद्देश्य और शुरुआती प्रेरणा की याद दिलाते हैं।

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