कक्षा 10 नेताजी का चश्मा स्वयं प्रकाश : MP Board 10th Hindi Kshitij Netaji ka Chashma Swayam Prakash

स्वयं प्रकाश – जीवन परिचय

नेताजी का चश्मा : स्वयं प्रकाश का जन्म सन् 1947 में इंदौर (मध्यप्रदेश) में हुआ। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में नौकरी करने वाले स्वयं प्रकाश का बचपन और नौकरी का बड़ा हिस्सा राजस्थान में बीता। वे बसुधा पत्रिका के संपादन से जुड़े रहे।

आठवें दशक में उभरे स्वयं प्रकाश आज समकालीन कहानी के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। उनके तेरह कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें सूरज कब निकलेगा, आएंगे कि अच्छे दिन भी, आदमी जात का आदमी और संधान उल्लेखनीय हैं। उनके बीच में विनय और ईंधन उपन्यास चर्चित रहे हैं। उन्हें पहल सम्मान, बनमाली पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार आदि पुरस्कारों से पुरस्कृत किया जा चुका है। इनका निधन 2019 में हुआ। स्वयं प्रकाश मध्यवर्गीय जीवन के कुशल चितेरे थे।

उनकी कहानियों में वर्ग-शोषण के विरुद्ध चेतना है तो हमारे सामाजिक जीवन में जाति, संप्रदाय और लिंग के आधार पर हो रहे भेदभाव के खिलाफ प्रतिकार का स्वर भी है। रोचक किस्सागोई शैली में लिखी गई उनकी कहानियाँ हिंदी की वाचिक परंपरा को समृद्ध करती हैं।


नेताजी का चश्मा: पाठ का सारांश (हिंदी में)

लेखक: स्वयं प्रकाश
मूल पाठ: नेताजी का चश्मा
विषय: देशभक्ति, सामान्य नागरिकों का योगदान, और छोटे-छोटे कार्यों में निहित बड़े भाव।

सारांश:
“नेताजी का चश्मा” कहानी एक छोटे कस्बे में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की संगमरमर की मूर्ति और उस पर बदलते चश्मों के इर्द-गिर्द घूमती है, जो देशभक्ति की अनूठी मिसाल पेश करती है। यह कहानी सामान्य नागरिकों, विशेष रूप से एक लंगड़े चश्मे वाले व्यक्ति “कैप्टन” के माध्यम से, देश के लिए छोटे लेकिन सार्थक योगदान को उजागर करती है।

हालदार साहब, जो अपने काम के सिलसिले में हर पंद्रह दिन में इस कस्बे से गुजरते हैं, मुख्य चौराहे पर नेताजी की मूर्ति पर ध्यान देते हैं। कस्बा छोटा है, जिसमें कुछ पक्के मकान, एक बाजार, स्कूल, और नगरपालिका है। नगरपालिका ने नेताजी की बस्त (bust) मूर्ति लगवाई, जो संगमरमर की है और सुंदर दिखती है, लेकिन उसमें एक कमी है—नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं है। इसके बजाय, मूर्ति पर असली चश्मे लगाए जाते हैं, जो समय-समय पर बदलते रहते हैं।

पहली बार हालदार साहब इसे देखकर मुस्कुराते हैं और सोचते हैं कि यह कस्बे वालों का अनोखा और सराहनीय प्रयास है। हर बार गुजरते समय वे मूर्ति पर अलग-अलग चश्मे (कभी चौकोर, कभी गोल, कभी रंगीन) देखते हैं। उत्सुकता बढ़ने पर वे पानवाले से पूछते हैं, जिससे पता चलता है कि यह काम “कैप्टन चश्मेवाला” करता है। कैप्टन, एक बूढ़ा, लंगड़ा, और सड़क पर चश्मे बेचने वाला व्यक्ति है, जो मूर्ति को बिना चश्मे के देखकर असहज होता है। वह अपनी छोटी-सी संदूकची से चश्मे निकालकर मूर्ति पर लगाता है और जब ग्राहक को वही चश्मा चाहिए होता है, तो वह मूर्ति से चश्मा उतारकर ग्राहक को दे देता है और दूसरा चश्मा लगा देता है।

हालदार साहब को पता चलता है कि मूर्तिकार, शायद मास्टर मोतीलाल, ने जल्दबाजी या तकनीकी कठिनाई के कारण मूर्ति पर संगमरमर का चश्मा नहीं बनाया। कैप्टन की यह हरकत पानवाले को मजाक लगती है, और वह उसे “पागल” कहकर हँसता है। हालदार साहब को कैप्टन की देशभक्ति पर गर्व होता है, लेकिन पानवाले का मजाक उन्हें खटकता है। वे सोचते हैं कि क्या कैप्टन आजाद हिंद फौज का सिपाही रहा होगा, पर पानवाला बताता है कि वह सिर्फ एक साधारण, लंगड़ा व्यक्ति है।

दो साल तक हालदार साहब मूर्ति पर बदलते चश्मे देखते रहते हैं, जो उनकी धूलभरी यात्रा में कौतुक और प्रफुल्लता लाते हैं। लेकिन एक दिन मूर्ति पर कोई चश्मा नहीं होता। पानवाला उदास होकर बताता है कि कैप्टन मर गया। हालदार साहब स्तब्ध और दुखी हो जाते हैं। वे सोचते हैं कि ऐसी कौम का क्या होगा जो अपने देश के लिए सब कुछ न्योछावर करने वालों का मजाक उड़ाती है।

मुख्य संदेश:
कहानी देशभक्ति की गहरी भावना को दर्शाती है, जो बड़े-बड़े कार्यों में नहीं, बल्कि छोटे-छोटे प्रयासों में भी प्रकट हो सकती है। कैप्टन चश्मेवाला, एक साधारण और हाशिए पर रहने वाला व्यक्ति, अपनी सीमित क्षमता में नेताजी के सम्मान को बनाए रखता है, जो सच्ची देशभक्ति का प्रतीक है। यह कहानी हमें सिखाती है कि देश का निर्माण हर नागरिक के छोटे-छोटे योगदानों से होता है, और हमें ऐसे प्रयासों का सम्मान करना चाहिए।

कथानक की विशेषताएँ:

  • पात्र: हालदार साहब (पर्यवेक्षक), कैप्टन चश्मेवाला (देशभक्त), पानवाला (सामान्य दृष्टिकोण), मास्टर मोतीलाल (मूर्तिकार, काल्पनिक)।
  • स्थान: एक छोटा कस्बा, मुख्य चौराहा, नेताजी की मूर्ति।
  • विषयवस्तु: देशभक्ति, सामान्य नागरिकों का योगदान, और सामाजिक दृष्टिकोण।
  • शैली: सरल, हास्य और भावनात्मक मिश्रण, व्यंग्यात्मक टिप्पणियाँ।

प्रमुख बिंदु:

  1. देशभक्ति केवल बड़े कार्यों तक सीमित नहीं; यह छोटे, निस्वार्थ प्रयासों में भी झलकती है।
  2. कैप्टन चश्मेवाला जैसे साधारण लोग भी देश के प्रति अपनी भक्ति दिखा सकते हैं।
  3. समाज में देशभक्तों का मजाक उड़ाने की प्रवृत्ति पर व्यंग्य।
  4. नेताजी की मूर्ति और चश्मे का प्रतीकात्मक महत्व—सम्मान और देखभाल का भाव।

निष्कर्ष:
“नेताजी का चश्मा” एक मार्मिक कहानी है जो हमें देशभक्ति की नई परिभाषा देती है। यह दर्शाती है कि देश का निर्माण सिर्फ नेताओं या सैनिकों का काम नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति का योगदान है जो अपने तरीके से देश के सम्मान और समृद्धि के लिए प्रयास करता है। कैप्टन चश्मेवाला का छोटा-सा कार्य हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति दिल से निकलती है, चाहे वह कितनी ही साधारण क्यों न दिखे।

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