MP Board 10th Hindi Kshitij Kavi Parichay : सूरदास, तुलसीदास, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, नागार्जुन एवं मंगलेश डबराल का जीवन परिचय परीक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है ।
सूरदास
सूरदास का जन्म सन् 1478 में माना जाता है। एक मान्यता के अनुसार उनका जन्म मथुरा के निकट रुनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ, जबकि दूसरी मान्यता के अनुसार उनका जन्म-स्थान दिल्ली के पास सीही माना जाता है। महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य सूरदास, अष्टछाप के कवियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। वे मथुरा और वृंदावन के बीच गऊघाट पर रहते थे और श्रीनाथ के मंदिर में भजन-कीर्तन करते थे। सन् 1583 में पारसौली में उनका निधन हुआ।
उनके तीन ग्रंथों—सूरसागर, साहित्य लहरी, और सूर सारावली—में सूरसागर सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ। सूरदास की कविता में खेती और पशुपालन पर आधारित भारतीय समाज का दैनिक जीवन और मानव की स्वाभाविक वृत्तियों का जीवंत चित्रण मिलता है। वे वात्सल्य और शृंगार रस के श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। कृष्ण और गोपियों के प्रेम का चित्रण उनकी कविता में सहज मानवीय प्रेम की अभिव्यक्ति करता है। सूरदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामान्य मनुष्यों को हीनता बोध से मुक्त कर, उनमें जीवन के प्रति उत्साह और ललक जगाई।
उनकी कविता में ब्रजभाषा का परिष्कृत और निखरा हुआ रूप देखने को मिलता है, जो लोकगीतों की समृद्ध परंपरा की श्रेष्ठ कड़ी है।
तुलसीदास : जीवन-परिचय
तुलसीदास का जन्म सन् 1532 में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर गाँव में हुआ था। कुछ विद्वानों के अनुसार उनका जन्मस्थान एटा जिले का सोरों भी माना जाता है। तुलसी का बचपन अत्यंत संघर्षपूर्ण रहा। जीवन के प्रारंभिक वर्षों में ही उनके माता-पिता से बिछोह हो गया। कहा जाता है कि गुरुकृपा से उन्हें रामभक्ति का मार्ग प्राप्त हुआ। वे मानव-मूल्यों के उपासक कवि थे। सन् 1623 में काशी में उनका देहावसान हुआ।
रामभक्ति और साहित्यिक योगदान
रामभक्ति परंपरा में तुलसीदास का स्थान अतुलनीय है। उनकी रचनाएँ रामभक्ति और मानवीय आदर्शों का सुंदर समन्वय प्रस्तुत करती हैं। उनकी प्रमुख रचना रामचरितमानस उनकी अनन्य रामभक्ति और सृजनात्मक कौशल का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस महाकाव्य में राम को मानवीय मर्यादाओं और आदर्शों के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है, जिनके माध्यम से तुलसी ने नीति, स्नेह, शील, विनय, और त्याग जैसे उदात्त आदर्शों को प्रतिष्ठित किया। रामचरितमानस उत्तरी भारत की जनता में अत्यंत लोकप्रिय है।
तुलसी की अन्य प्रमुख रचनाएँ हैं:
- कवितावली
- गीतावली
- दोहावली
- कृष्णगीतावली
- विनयपत्रिका
भाषा और काव्य-शैली
तुलसीदास ने अवधी और ब्रजभाषा दोनों पर समान अधिकार रखा। रामचरितमानस की रचना अवधी में की गई, जबकि विनयपत्रिका और कवितावली ब्रजभाषा में रचित हैं। उनकी रचनाओं में उस समय प्रचलित सभी काव्य रूपों का समावेश देखा जा सकता है।
- रामचरितमानस: इसका मुख्य छंद चौपाई है, जिसमें बीच-बीच में दोहे, सोरठे, हरिगीतिका, और अन्य छंद पिरोए गए हैं। यह प्रबंध काव्य का उत्कृष्ट उदाहरण है।
- विनयपत्रिका: गेय पदों में रचित, यह भक्ति और विनय भाव की उत्कृष्ट रचना है।
- कवितावली: इसमें सवैया और कवित्त छंदों की छटा देखने को मिलती है।
तुलसी की रचनाओं में प्रबंध (महाकाव्य) और मुक्तक (स्वतंत्र रचनाएँ) दोनों प्रकार के काव्यों का सुंदर समन्वय है। उनकी रचनाएँ सरल, सहज, और भावपूर्ण होने के साथ-साथ गहन दार्शनिक और नैतिक मूल्यों को भी व्यक्त करती हैं।
साहित्यिक विशेषताएँ
- रामभक्ति: तुलसी की रचनाएँ राम के प्रति अनन्य भक्ति और उनके आदर्शों को स्थापित करती हैं।
- मानवीय मूल्य: नीति, स्नेह, शील, और त्याग जैसे मूल्यों का चित्रण।
- भाषा की सरसता: अवधी और ब्रजभाषा का सहज और मधुर प्रयोग।
- छंद और अलंकार: चौपाई, दोहे, सवैया, और कवित्त जैसे छंदों के साथ उपमा, रूपक, और अनुप्रास जैसे अलंकारों का समन्वय।
- लोकप्रियता: रामचरितमानस की लोकप्रियता इसे जन-जन का काव्य बनाती है।
जयशंकर प्रसाद : जीवन-परिचय
जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ। उन्होंने काशी के प्रसिद्ध क्वींस कॉलेज में शिक्षा शुरू की, लेकिन प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण आठवीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ सके। बाद में उन्होंने घर पर ही संस्कृत, हिंदी, और फ़ारसी का अध्ययन किया। छायावाद की काव्य-प्रवृत्ति के प्रमुख स्तंभों में से एक, प्रसाद का निधन सन् 1937 में हुआ।
साहित्यिक योगदान
जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य में छायावाद के प्रमुख कवि, नाटककार, और गद्यकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाएँ कोमलता, माधुर्य, शक्ति, और ओज का अनूठा समन्वय प्रस्तुत करती हैं।
प्रमुख काव्य-कृतियाँ:
- चित्राधार
- कानन कुसुम
- झरना
- आँसू
- लहर
- कामायनी (आधुनिक हिंदी की श्रेष्ठतम काव्य-कृति, जिसके लिए उन्हें मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ)
नाटक:
- अजातशत्रु
- चंद्रगुप्त
- स्कंदगुप्त
- ध्रुवस्वामिनी
उपन्यास:
- कंकाल
- तितली
- इरावती
कहानी संग्रह:
- आकाशदीप
- आँधी
- इंद्रजाल
साहित्य की विशेषताएँ
प्रसाद का साहित्य जीवन के सौंदर्य, भावनाओं, और दार्शनिक गहराई का प्रतीक है। उनकी रचनाओं की प्रमुख विशेषताएँ हैं:
- छायावादी काव्य: अतिशय काल्पनिकता, सौंदर्य का सूक्ष्म चित्रण, और प्रकृति-प्रेम।
- देश-प्रेम: उनकी रचनाओं में राष्ट्रीयता और देशभक्ति की भावना प्रबल है।
- शैली की लाक्षणिकता: उनकी भाषा में लालित्य, प्रतीकात्मकता, और भावात्मक गहराई है।
- इतिहास और दर्शन में रुचि: उनके नाटक और काव्य में ऐतिहासिक घटनाओं और दार्शनिक चिंतन का समन्वय दिखता है।
- भाषा: प्रसाद की हिंदी सरल, शुद्ध, और भावपूर्ण है, जिसमें संस्कृतनिष्ठ शब्दों का सुंदर प्रयोग है।
महत्व
- कामायनी: यह छायावाद का सर्वोच्च काव्य माना जाता है, जिसमें मानव जीवन, प्रेम, और दर्शन का चित्रण है।
- नाटक और गद्य: उनके नाटकों में ऐतिहासिक और सामाजिक विषयों का गहन चित्रण है, जबकि उपन्यास और कहानियाँ सामाजिक यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं को दर्शाती हैं।
- छायावाद का आधार-स्तंभ: प्रसाद ने छायावाद को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया, जिसमें प्रकृति, प्रेम, और आत्मिक चेतना का समन्वय है।
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘
जीवन-परिचय
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन् 1899 में बंगाल के महिषादल में हुआ। वे मूलतः उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोला गाँव के निवासी थे। उनकी औपचारिक शिक्षा नौवीं कक्षा तक महिषादल में हुई। इसके बाद उन्होंने स्वाध्याय से संस्कृत, बांग्ला, और अंग्रेज़ी का ज्ञान अर्जित किया। वे संगीत और दर्शनशास्त्र के गहरे अध्येता थे। रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद की विचारधारा ने उनके जीवन और साहित्य पर गहरा प्रभाव डाला।
निराला का पारिवारिक जीवन दुखों और संघर्षों से भरा था। आत्मीय जनों के असामयिक निधन ने उन्हें भावनात्मक रूप से तोड़ दिया। साहित्यिक क्षेत्र में भी उन्होंने अनवरत संघर्ष किया। उनका देहांत सन् 1961 में हुआ।
साहित्यिक योगदान
निराला हिंदी साहित्य के छायावाद के प्रमुख कवि, उपन्यासकार, कहानीकार, आलोचक, और निबंधकार थे। उनकी रचनाएँ दार्शनिकता, विद्रोह, प्रेम, और प्रकृति के उदात्त चित्रण के लिए जानी जाती हैं। उनकी रचनाएँ निराला रचनावली के आठ खंडों में संकलित हैं।
प्रमुख काव्य-रचनाएँ:
- अनामिका
- परिमल
- गीतिका
- कुकुरमुत्ता
- नए पत्ते
अन्य रचनाएँ:
- उपन्यास: अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरुपमा, चमेली की शादी।
- कहानी संग्रह: लिली, सखी, सुकुल की बीवी।
- आलोचना और निबंध: प्रबंध-पद्म, प्रबंध-प्रतिभा, रवींद्र-कविता-कानन।
साहित्य की विशेषताएँ
- छायावाद और नवाचार:
- निराला छायावाद के प्रमुख कवि थे, जिन्होंने सबसे पहले मुक्त छंद का प्रयोग किया, जिससे कविता के शिल्प में क्रांति आई।
- उनकी कविता में प्रकृति का विराट और उदात्त चित्रण, प्रेम की तरलता, और दार्शनिक गहराई दिखती है।
- विद्रोही स्वभाव:
- उनकी रचनाओं में शोषित, उपेक्षित, और पीड़ित वर्ग के प्रति गहरी सहानुभूति और शोषक वर्ग व सत्ता के प्रति प्रचंड विरोध का भाव है।
- उनकी कविताएँ सामाजिक अन्याय और विसंगतियों के खिलाफ विद्रोह का स्वर बुलंद करती हैं।
- विविधता:
- निराला की रचनाओं में दार्शनिकता, क्रांति, प्रेम, और प्रकृति का समन्वय है।
- उनकी कविता में भाव-जगत और शिल्प-जगत में नए प्रयोग दिखते हैं।
- भाषा और शैली:
- उनकी भाषा में संस्कृतनिष्ठ हिंदी, ब्रज, और खड़ी बोली का मिश्रण है।
- मुक्त छंद के साथ-साथ पारंपरिक छंदों का भी उपयोग किया।
- उनकी शैली में भावात्मक तीव्रता, प्रतीकात्मकता, और लाक्षणिकता है।
महत्व
- छायावाद का विकास: निराला ने छायावाद को नई दिशा दी और मुक्त छंद के प्रयोग से काव्य-शिल्प में नवीनता लाई।
- सामाजिक चेतना: उनकी रचनाएँ शोषित वर्ग की आवाज बनीं और सामाजिक सुधार की प्रेरणा दीं।
- बहुमुखी प्रतिभा: कविता, कहानी, उपन्यास, और आलोचना में उनकी ख्याति अविस्मरणीय है।
- प्रभाव: उनकी रचनाओं ने आधुनिक हिंदी साहित्य को समृद्ध किया और प्रगतिशील विचारधारा को बल दिया।
नागार्जुन : जीवन-परिचय
नागार्जुन का जन्म सन् 1911 में बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में हुआ। उनका मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत पाठशाला में हुई। बाद में उन्होंने बनारस और कलकत्ता (कोलकाता) में अध्ययन किया। सन् 1936 में वे श्रीलंका गए, जहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म में दीक्षा ली। दो वर्ष वहाँ रहने के बाद सन् 1938 में वे भारत लौटे।
नागार्जुन का स्वभाव घुमक्कड़ और अक्खड़ था। उन्होंने कई बार संपूर्ण भारत की यात्रा की। सन् 1998 में उनका देहांत हो गया।
साहित्यिक योगदान
नागार्जुन हिंदी और मैथिली साहित्य के प्रमुख कवि, उपन्यासकार, और गद्य लेखक थे। उनकी रचनाएँ लोकजीवन, सामाजिक विसंगतियों, और राजनैतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ सशक्त आवाज उठाती हैं। उनका संपूर्ण कृतित्व नागार्जुन रचनावली के सात खंडों में प्रकाशित है।
प्रमुख काव्य-कृतियाँ:
- युगधारा
- सतरंगे पंखों वाली
- हज़ार-हज़ार बाँहों वाली
- तुमने कहा था
- पुरानी जूतियों का कोरस
- आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने
- मैं मिलटरी का बूढ़ा घोड़ा
अन्य रचनाएँ:
- उपन्यास: रतिनाथ की चाची, बाबा बटेसरनाथ, बलचनमा, नई पौध।
- गद्य: संस्मरण, यात्रा-वृत्तांत, और आलोचना।
भाषाएँ:
- हिंदी और मैथिली में समान रूप से लेखन।
- मैथिली में वे ‘यात्री’ उपनाम से विख्यात हैं।
- बांग्ला और संस्कृत में भी कविताएँ लिखीं।
पुरस्कार और सम्मान
- हिंदी अकादमी, दिल्ली: शिखर सम्मान
- उत्तर प्रदेश: भारत भारती पुरस्कार
- बिहार: राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार
- साहित्य अकादेमी पुरस्कार: मैथिली कविता के लिए
साहित्य की विशेषताएँ
- लोकजीवन से जुड़ाव:
- नागार्जुन की रचनाएँ ग्रामीण जीवन, किसानों, और मजदूरों की पीड़ा को व्यक्त करती हैं।
- उनकी भाषा सरल, सहज, और लोक-संस्कृति से ओतप्रोत है।
- व्यंग्य की धार:
- भ्रष्टाचार, राजनीतिक स्वार्थ, और सामाजिक पतन पर तीखा व्यंग्य।
- उदाहरण: “पुरानी जूतियों का कोरस” में सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार।
- जनवादी दृष्टिकोण:
- उनकी कविताएँ शोषित और उपेक्षित वर्ग की आवाज बनती हैं।
- सामाजिक अन्याय और शोषण के खिलाफ सशक्त विरोध।
- भाषा और शैली:
- लोकभाषा: हिंदी और मैथिली में लोक-शब्दों और मुहावरों का प्रयोग।
- सादगी: उनकी भाषा सहज और प्रभावशाली है।
- प्रतीकात्मकता: सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों को प्रतीकों के माध्यम से प्रस्तुत करना।
- राजनैतिक सक्रियता:
- नागार्जुन ने सामाजिक और राजनैतिक आंदोलनों में सक्रिय भाग लिया।
- उनकी राजनैतिक सक्रियता के कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा।
महत्व
- जनकवि: नागार्जुन को ‘जनकवि’ कहा जाता है, क्योंकि उनकी रचनाएँ आम जनता की भावनाओं और संघर्षों को व्यक्त करती हैं।
- लोक और शास्त्र का समन्वय: उनकी रचनाओं में लोक-संस्कृति और दार्शनिक चिंतन का सुंदर मिश्रण है।
- बहुभाषी योगदान: हिंदी, मैथिली, बांग्ला, और संस्कृत में लेखन ने उन्हें बहुआयामी साहित्यकार बनाया।
- सामाजिक जागरूकता: उनकी रचनाएँ समाज में बदलाव और जागरूकता की प्रेरणा देती हैं।
मंगलेश डबराल– जीवन-परिचय
मंगलेश डबराल का जन्म सन् 1948 में उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के काफलपानी गाँव में हुआ। उनकी शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई। दिल्ली आकर उन्होंने हिंदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष, और आसपास पत्रिकाओं में कार्य किया। इसके बाद वे भोपाल में भारत भवन से प्रकाशित पूर्वग्रह पत्रिका में सहायक संपादक रहे। उन्होंने इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ समय नौकरी की। सन् 1983 में वे जनसत्ता अखबार में साहित्य संपादक बने। बाद में सहारा समय में संपादन कार्य किया और फिर नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े। उनका निधन सन् 2020 में हुआ।
साहित्यिक योगदान
मंगलेश डबराल समकालीन हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि, अनुवादक, और लेखक हैं। उनकी कविताएँ सामाजिक यथार्थ, लोक-संवेदना, और सौंदर्यबोध की गहरी समझ को दर्शाती हैं। वे सामंती बोध और पूँजीवादी छल-छद्म का प्रतिकार अपनी कविताओं में करते हैं, लेकिन यह प्रतिकार शोर-शराबे के बजाय एक सुंदर सपने और सूक्ष्म सौंदर्यबोध के माध्यम से होता है। उनकी भाषा पारदर्शी और भावनात्मक है, जो पाठक के हृदय तक सीधे पहुँचती है।
प्रमुख कविता संग्रह:
- पहाड़ पर लालटेन
- घर का रास्ता
- हम जो देखते हैं
- आवाज़ भी एक जगह है
अन्य लेखन:
- मंगलेश डबराल ने साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम, और संस्कृति के विषयों पर नियमित लेखन किया।
- वे एक कुशल अनुवादक भी थे। उनकी कविताओं का अनुवाद भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, स्पानी, पोल्स्की, और बल्गारी भाषाओं में प्रकाशित हुआ।
पुरस्कार और सम्मान
- साहित्य अकादेमी पुरस्कार
- पहल सम्मान
- अन्य साहित्यिक सम्मान
साहित्य की विशेषताएँ
- सामाजिक और राजनैतिक चेतना:
- मंगलेश की कविताएँ सामंती व्यवस्था और पूँजीवादी शोषण के खिलाफ हैं।
- वे सामाजिक अन्याय और असमानता पर सूक्ष्म टिप्पणी करते हैं, लेकिन उनकी शैली में आक्रामकता के बजाय संवेदनशीलता और सपनों का समावेश है।
- सौंदर्यबोध:
- उनकी कविताओं में प्रकृति, लोक-जीवन, और साधारण जीवन की सुंदरता का सूक्ष्म चित्रण है।
- सौंदर्यबोध उनकी कविताओं को भावनात्मक गहराई और आकर्षण प्रदान करता है।
- पारदर्शी भाषा:
- मंगलेश की भाषा सहज, सरल, और पारदर्शी है।
- यह आम जनता और साहित्य प्रेमियों दोनों को समान रूप से आकर्षित करती है।
- लोक-संवेदना:
- उनकी कविताएँ पहाड़ी जीवन, गाँव की सादगी, और मानवीय रिश्तों को चित्रित करती हैं।
- वे साधारण लोगों की भावनाओं और संघर्षों को काव्यात्मक रूप में प्रस्तुत करते हैं।
- प्रतिकार और सपना:
- मंगलेश का प्रतिकार शोर-शराबे वाला नहीं, बल्कि एक सुंदर सपने के निर्माण के माध्यम से होता है।
- उनकी कविताएँ आशा और वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं।
महत्व
- मंगलेश डबराल की कविताएँ समकालीन हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखती हैं।
- उनकी रचनाएँ सामाजिक यथार्थ और सौंदर्यबोध का सुंदर समन्वय प्रस्तुत करती हैं।
- पहाड़ी संस्कृति और लोक-जीवन को उनकी कविताओं ने साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।
- उनकी अनुवाद कला ने हिंदी साहित्य को वैश्विक मंच पर पहुँचाया।
- उनकी कविताएँ सामाजिक जागरूकता, मानवीय संवेदना, और आशावाद का संदेश देती हैं।
संगतकार मंगलेश डबराल की एक संवेदनशील और विचारोत्तेजक कविता है, जो संगीत में संगतकार की भूमिका के महत्व को रेखांकित करती है। यह कविता केवल संगीत तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज, इतिहास, और दृश्य माध्यमों (नाटक, फिल्म, नृत्य) में उन सहयोगियों की महत्ता को उजागर करती है, जो मुख्य नायक की सफलता में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, परंतु अक्सर पृष्ठभूमि में रहते हैं। कविता हमें यह संवेदनशीलता सिखाती है कि प्रत्येक सहयोगी का अपना महत्व है, और उनका सामने न आना उनकी कमजोरी नहीं, बल्कि मानवीयता और निस्वार्थता का प्रतीक है।