MP Board 10th Grammar Ras Classification with Example : रस की परिभाषा, रस के अंग, रस के प्रकार के आधार पर विभिन्न भावों को समझने हेतु इस लेख को पूरा पढ़ें जो कक्षा 10 के हिन्दी विषय हेतु अत्यंत आवश्यक है ।
रस: अंग एवं प्रकार उदाहरण सहित
परिचय
रस काव्य का आत्मा है। यह वह तत्व है जो काव्य को भावनात्मक गहराई और आनंद प्रदान करता है। रस का अर्थ है वह आनंद जो काव्य पढ़ने या सुनने से प्राप्त होता है। यह कवि के भावों और पाठक या श्रोता के हृदय के बीच एक सेतु का कार्य करता है। यह लेख 10वीं कक्षा के छात्रों के लिए रस की परिभाषा, इसके अंगों, प्रकारों और प्रत्येक प्रकार के उदाहरण को सरल और स्पष्ट भाषा में समझाने के लिए तैयार किया गया है।
रस की परिभाषा
आचार्य भरत मुनि के अनुसार, “रस वह आनंद है जो स्थायी भाव के संयोग से विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के द्वारा उत्पन्न होता है।” रस काव्य में वह तत्व है जो पाठक या श्रोता के मन में भावनाओं को जागृत करता है और उसे काव्य के साथ एकरस करता है। इसे काव्य का प्राण कहा जाता है, क्योंकि यह काव्य को जीवंत और प्रभावशाली बनाता है।
रस के अंग
रस की उत्पत्ति के लिए चार प्रमुख अंग आवश्यक हैं:
- स्थायी भाव: यह वह मूल भाव है जो मानव हृदय में स्थायी रूप से विद्यमान रहता है। जैसे- रति (प्रेम), हास (हँसी), शोक (दुख), आदि।
- विभाव: यह वह कारण या परिस्थिति है जो स्थायी भाव को जागृत करता है। इसे दो भागों में बाँटा जाता है:
- आलंबन विभाव: वह पात्र जिसके प्रति भाव जागृत होता है, जैसे नायक-नायिका।
- उद्दीपन विभाव: वह परिस्थितियाँ या वातावरण जो भाव को प्रबल करते हैं, जैसे चाँदनी रात, फूलों का बगीचा।
- अनुभाव: यह वह बाहरी प्रभाव या कार्य है जो स्थायी भाव के जागृत होने पर दिखाई देता है, जैसे आँसू, मुस्कान, कंपन आदि।
- संचारी भाव: ये वे क्षणिक भाव हैं जो स्थायी भाव को और अधिक प्रबल करते हैं, जैसे उत्साह, चिंता, गर्व आदि।
उदाहरण
श्रृंगार रस में:
- स्थायी भाव: रति (प्रेम)
- विभाव: नायक-नायिका (आलंबन), चाँदनी रात (उद्दीपन)
- अनुभाव: नायिका की मुस्कान, नायक का प्रेम भरा व्यवहार
- संचारी भाव: उत्साह, उल्लास, लज्जा
रस के प्रकार
आचार्य भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में नौ रसों का उल्लेख किया है, जिन्हें नवरस कहा जाता है। ये हैं:
- श्रृंगार रस
- हास्य रस
- करुण रस
- रौद्र रस
- वीर रस
- भयानक रस
- बीभत्स रस
- अद्भुत रस
- शांत रस
आधुनिक विद्वानों ने इनमें भक्ति रस और वात्सल्य रस को भी जोड़ा है। नीचे प्रत्येक रस की परिभाषा, स्थायी भाव और उदाहरण दिए गए हैं।
1. श्रृंगार रस
परिभाषा: यह रस प्रेम और सौंदर्य का भाव जागृत करता है। यह प्रेमी-प्रेमिका के बीच संन्यास (संयोग) या वियोग (विप्रलंभ) के रूप में प्रकट होता है।
स्थायी भाव: रति
उदाहरण:
चंदन सी सौंधी तन की, सुंदर सलोनी साँझ।
नैनन में बसत नायक, प्रियतम की मधुर आँख।।
विश्लेषण: यहाँ नायिका के प्रेम और नायक के सौंदर्य का वर्णन श्रृंगार रस को दर्शाता है। चाँदनी रात और प्रियतम की आँखें उद्दीपन विभाव हैं।
2. हास्य रस
परिभाषा: यह रस हँसी और विनोद उत्पन्न करता है।
स्थायी भाव: हास
उदाहरण:
मूर्ख बोला मैं विद्वान, किताब लिए हाथ में।
पढ़ न पाया एक पन्ना, ज्ञान भरा माथ में।।
विश्लेषण: यहाँ मूर्ख व्यक्ति के विद्वान बनने का प्रयास हास्य उत्पन्न करता है।
3. करुण रस
परिभाषा: यह रस दुख, शोक और करुणा के भाव को जागृत करता है।
स्थायी भाव: शोक
उदाहरण:
सीता बिन राम व्याकुल, वन में भटकत नाथ।
अश्रु भरी नयनन में, प्रिय के बिछुड़े साथ।।
विश्लेषण: यहाँ राम का सीता के वियोग में दुख करुण रस को दर्शाता है।
4. रौद्र रस
परिभाषा: यह रस क्रोध और उग्रता का भाव उत्पन्न करता है।
स्थायी भाव: क्रोध
उदाहरण:
परशुराम क्रोधित भये, देख क्षत्रिय बलशाली।
जमदग्नि के पुत्र ने, छीनी धरती की थाली।।
विश्लेषण: परशुराम का क्षत्रियों के प्रति क्रोध रौद्र रस को दर्शाता है।
5. वीर रस
परिभाषा: यह रस साहस, उत्साह और वीरता का भाव जागृत करता है।
स्थायी भाव: उत्साह
उदाहरण:
राणा प्रताप न झुके, मेवाड़ की शान बनी।
तलवार लिए रण में, वीरता की पहचान बनी।।
विश्लेषण: राणा प्रताप की वीरता और युद्ध में उत्साह वीर रस को व्यक्त करता है।
6. भयानक रस
परिभाषा: यह रस भय और डर का भाव उत्पन्न करता है।
स्थायी भाव: भय
उदाहरण:
निशा अंधेरी घनघोर, जंगल में भटके पथिक।
सर्प साँय-साँय करे, भय से काँपे हथिक।।
विश्लेषण: अंधेरी रात और सर्प की आवाज भयानक रस को जागृत करती है।
7. बीभत्स रस
परिभाषा: यह रस घृणा और जुगुप्सा का भाव उत्पन्न करता है।
स्थायी भाव: जुगुप्सा
उदाहरण:
रक्त बिखरा रणभूमि में, शव पड़े हैं ढेर।
दुर्गंध से मन घबराए, मृत्यु का भयंकर खेल।।
विश्लेषण: युद्धभूमि का घृणित दृश्य बीभत्स रस को दर्शाता है।
8. अद्भुत रस
परिभाषा: यह रस आश्चर्य और विस्मय का भाव जागृत करता है।
स्थायी भाव: विस्मय
उदाहरण:
हनुमान ने लंका जलाई, समुद्र लाँघि गए वीर।
अद्भुत शक्ति देख सब, चकित हुए नर-नारी।।
विश्लेषण: हनुमान की अलौकिक शक्ति अद्भुत रस को जागृत करती है।
9. शांत रस
परिभाषा: यह रस मन की शांति और वैराग्य का भाव उत्पन्न करता है।
स्थायी भाव: निर्वेद
उदाहरण:
संसार मिथ्या सब जान, मन में वैराग्य जागा।
ध्यान लगाए योगीजन, मोक्ष पथ पर भागा।।
विश्लेषण: वैराग्य और शांति का भाव शांत रस को दर्शाता है।
10. भक्ति रस
परिभाषा: यह रस ईश्वर के प्रति भक्ति और समर्पण का भाव जागृत करता है।
स्थायी भाव: भक्ति (रति का विशेष रूप)
उदाहरण:
राम नाम जप मन माहीं, भक्ति रस में डूबा जीव।
तुलसीदास कहें हरि बिन, जीवन है सब अधूरी नीव।।
विश्लेषण: भगवान राम के प्रति भक्ति का भाव भक्ति रस को व्यक्त करता है।
11. वात्सल्य रस
परिभाषा: यह रस माता-पिता और संतान के बीच स्नेह का भाव जागृत करता है।
स्थायी भाव: वात्सल्य (रति का विशेष रूप)
उदाहरण:
यशोदा लाल को झुलावे, प्यार भरी गोद में।
नन्हा कृष्ण मुस्काए, ममता रस में डूबे।।
विश्लेषण: यशोदा का कृष्ण के प्रति ममता भरा स्नेह वात्सल्य रस को दर्शाता है।
रस का महत्व
रस काव्य को जीवंत और प्रभावशाली बनाता है। यह निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण है:
- भावनात्मक संनाद: रस पाठक के मन में भावनाओं को जागृत करता है।
- आनंद प्रदान: यह काव्य को आनंदमय बनाता है।
- सांस्कृतिक संरक्षण: रस के माध्यम से भारतीय संस्कृति और भावनाएँ संरक्षित होती हैं।
- नैतिक प्रेरणा: रस नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को प्रेरित करता है।
निष्कर्ष
रस काव्य का प्राण है, जो इसे भावनात्मक और आनंदमय बनाता है। इसके अंग—स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव—रस की उत्पत्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नवरस (श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, अद्भुत, शांत) के साथ-साथ भक्ति और वात्सल्य रस हिंदी काव्य को समृद्ध करते हैं। प्रत्येक रस अपने विशिष्ट भाव और उदाहरणों के माध्यम से पाठक के हृदय को छूता है। 10वीं कक्षा के छात्रों के लिए रस का अध्ययन न केवल पाठ्यक्रम का हिस्सा है, बल्कि यह उनकी भावनात्मक और साहित्यिक समझ को भी बढ़ाता है।