Mastering Sanskrit Sandhi
A Comprehensive Guide for MP Board Class 11th & 12th
Mastering Sanskrit Sandhi: संस्कृत व्याकरण में सन्धि का अध्ययन छात्रों के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि समास का। यह शब्दों को जोड़ने और उनके उच्चारण को मधुर बनाने की एक कला है। MP Board की कक्षा 11वीं और 12वीं की परीक्षाओं में सन्धि से संबंधित प्रश्न भी प्रमुखता से पूछे जाते हैं। यह लेख आपको सन्धि के विभिन्न पहलुओं को गहराई से समझने में मदद करेगा, ताकि आप परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकें और संस्कृत भाषा की ध्वन्यात्मक संरचना को बेहतर ढंग से समझ सकें।
Introduction: Sanskrit में सन्धि – वर्णों के मधुर मेल की कला
संस्कृत भाषा की एक अनूठी विशेषता उसकी ध्वन्यात्मक शुद्धता और प्रवाह है, जिसमें सन्धि का अहम योगदान है। सन्धि का शाब्दिक अर्थ है ‘मेल’ या ‘जोड़’। जब दो अत्यंत निकटवर्ती वर्णों के मिलने से उनमें कोई परिवर्तन आता है, तो उस मेल को सन्धि कहते हैं। यह वर्णों का विकारयुक्त मेल है, जो उच्चारण को सुगम और श्रुतिमधुर बनाता है।
1.1 सन्धि (Sandhi) क्या है?
“परः सन्निकर्षः संहिता” – अर्थात्, अत्यंत समीपता को संहिता कहते हैं और यही संहिता सन्धि कहलाती है। जब दो पद या एक ही पद के भीतर दो वर्ण (स्वर या व्यंजन) पास-पास आते हैं, तो उच्चारण की सुविधा के लिए उनमें कुछ परिवर्तन (जैसे लोप, आगम, आदेश) हो जाते हैं। इस परिवर्तन सहित मेल को ही सन्धि कहते हैं।
उदाहरण:
- विद्या + आलयः = विद्यालयः (यहाँ ‘आ’ और ‘आ’ के मिलने से ‘आ’ हो गया)
- इति + आदि = इत्यादि (यहाँ ‘इ’ और ‘आ’ के मिलने से ‘य’ हो गया)
1.2 MP Board परीक्षाओं के लिए सन्धि क्यों महत्वपूर्ण है?
MP Board की कक्षा 11वीं और 12वीं की संस्कृत व्याकरण में सन्धि एक अनिवार्य भाग है। परीक्षाओं में प्रायः निम्न प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं:
- सन्धि-विच्छेद (Sandhi Split): आपको एक सन्धि-युक्त पद दिया जाता है, और आपको उसे अलग-अलग करके (विच्छेद करके) सन्धि का नाम बताना होता है।
- सन्धि-विधान (Sandhi Formation): आपको दो या अधिक पद दिए जाते हैं, और आपको उनकी सन्धि करके सन्धि-युक्त पद तथा सन्धि का नाम बताना होता है।
सन्धि का ज्ञान न केवल इन प्रश्नों को हल करने में सहायक है, बल्कि संस्कृत के श्लोकों, गद्यांशों और जटिल वाक्यों का सही उच्चारण और अर्थ समझने के लिए भी यह अत्यंत आवश्यक है।
1.3 सन्धि के प्रमुख भेदों पर एक नज़र
संस्कृत व्याकरण में सन्धि के मुख्य रूप से तीन भेद माने जाते हैं, जो इस बात पर आधारित हैं कि मिलने वाले वर्णों में से कौन सा वर्ण (स्वर या व्यंजन) अंतिम है और कौन सा प्रारंभिक:
- स्वर सन्धि (Svara Sandhi / Ach Sandhi): जब दो स्वरों का मेल होता है।
- व्यंजन सन्धि (Vyanjana Sandhi / Hal Sandhi): जब किसी स्वर या व्यंजन का मेल किसी व्यंजन से होता है।
- विसर्ग सन्धि (Visarga Sandhi): जब विसर्ग (ः) का मेल किसी स्वर या व्यंजन से होता है।
2. आधारभूत अवधारणाएँ: सन्धि समझने से पहले आवश्यक ज्ञान
सन्धि के विस्तृत अध्ययन से पहले कुछ बुनियादी व्याकरणिक अवधारणाओं का स्पष्ट होना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
2.1 वर्ण (Varna) और उनके प्रकार: स्वर, व्यंजन, और विसर्ग
सन्धि वर्णों का मेल है, इसलिए वर्णों का ज्ञान अनिवार्य है:
- स्वर (Vowels): वे वर्ण जिनका उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता है, बिना किसी अन्य वर्ण की सहायता के। संस्कृत में मूल स्वर अ, इ, उ, ऋ, लृ हैं, और दीर्घ स्वर आ, ई, ऊ, ॠ, ए, ऐ, ओ, औ हैं।
- व्यंजन (Consonants): वे वर्ण जिनका उच्चारण स्वरों की सहायता से होता है। ये क से ह तक होते हैं। प्रत्येक व्यंजन को हलन्त (्) लगाकर दिखाया जाता है जब तक कि उसमें कोई स्वर न मिला हो।
- विसर्ग (Visarga): ‘ह’ के समान उच्चारित होने वाला दो बिंदुओं (ः) वाला चिह्न, जो प्रायः स्वर के बाद आता है। जैसे: रामः, हरिः।
सन्धि में इन वर्णों के विभिन्न संयोग और उनके परिणामस्वरूप होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है।
2.2 संहिता (Samhita) की अवधारणा
‘संहिता’ का अर्थ है ‘निकटता’। सन्धि तभी होती है जब दो वर्ण अत्यंत समीप हों, अर्थात् उनके बीच कोई अन्य वर्ण, व्यवधान या विराम न हो। जहाँ संहिता अनिवार्य है (जैसे एक पद के भीतर, उपसर्ग और धातु के बीच), वहाँ सन्धि करनी ही पड़ती है। जहाँ संहिता ऐच्छिक है (जैसे दो अलग-अलग पदों के बीच), वहाँ सन्धि करना या न करना वक्ता की इच्छा पर निर्भर करता है, यद्यपि सन्धि करना भाषा को अधिक स्वाभाविक बनाता है।
2.3 सन्धि-विच्छेद (Sandhi Split) और सन्धि-युक्त पद (Sandhi-yukta Pada)
- सन्धि-विच्छेद: किसी सन्धि-युक्त पद को उसके मूल वर्णों या शब्दों में अलग-अलग करना सन्धि-विच्छेद कहलाता है। उदाहरण: हिमालयः का विच्छेद हिम + आलयः।
- सन्धि-युक्त पद: दो या दो से अधिक वर्णों या शब्दों को सन्धि के नियमों के अनुसार मिलाकर एक नया पद बनाना सन्धि-विधान या सन्धि-युक्त पद निर्माण कहलाता है। उदाहरण: सु + आगतम् = स्वागतम्।
3. सन्धि के प्रमुख प्रकारों का विस्तृत विश्लेषण (Detailed Analysis of Major Sandhi Types)
आइए अब सन्धि के तीनों प्रमुख प्रकारों का विस्तार से अध्ययन करें।
3.1 स्वर सन्धि (Svara Sandhi / Ach Sandhi): स्वरों का मेल
स्वर सन्धि तब होती है जब एक स्वर का मेल दूसरे स्वर से होता है। इस मेल के परिणामस्वरूप स्वरों में विभिन्न प्रकार के परिवर्तन होते हैं। स्वर सन्धि के प्रमुख भेद इस प्रकार हैं:
- 3.1.1 दीर्घ सन्धि (Dirgha Sandhi):
- नियम: जब ह्रस्व या दीर्घ ‘अ, इ, उ, ऋ’ के बाद समान ह्रस्व या दीर्घ ‘अ, इ, उ, ऋ’ आता है, तो दोनों मिलकर दीर्घ ‘आ, ई, ऊ, ॠ’ हो जाते हैं।
- सूत्र: अकः सवर्णे दीर्घः
- उदाहरण:
- देव + आलयः = देवआलयः (अ + आ = आ)
- गिरि + ईशः = गिरईशः (इ + ई = ई)
- भानु + उदयः = भानूदयः (उ + उ = ऊ)
- पितृ + ऋणम् = पितृणम् (ऋ + ऋ = ॠ)
- 3.1.2 गुण सन्धि (Guna Sandhi):
- नियम: जब ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘इ’ या ‘ई’ आए तो ‘ए’ हो जाता है; ‘उ’ या ‘ऊ’ आए तो ‘ओ’ हो जाता है; और ‘ऋ’ या ‘ॠ’ आए तो ‘अर्’ हो जाता है।
- सूत्र: आद् गुणः
- उदाहरण:
- उप + इन्द्रः = उपेन्द्रः (अ + इ = ए)
- महा + ईशः = महेशः (आ + ई = ए)
- ज्ञान + उदयः = ज्ञानोदयः (अ + उ = ओ)
- महा + ऊर्मिः = महोर्मिः (आ + ऊ = ओ)
- देव + ऋषिः = देवर्षिः (अ + ऋ = अर्)
- तव + लृकारः = तवल्कारः (अ + लृ = अल्)
- 3.1.3 वृद्धि सन्धि (Vriddhi Sandhi):
- नियम: जब ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए’ या ‘ऐ’ आए तो ‘ऐ’ हो जाता है; और ‘ओ’ या ‘औ’ आए तो ‘औ’ हो जाता है।
- सूत्र: वृद्धिरेचि
- उदाहरण:
- एक + एकम् = एकैकम् (अ + ए = ऐ)
- महा + ऐश्वर्यम् = महैश्वर्यम् (आ + ऐ = ऐ)
- जल + ओघः = जलौघः (अ + ओ = औ)
- महा + औषधम् = महौषधम् (आ + औ = औ)
- 3.1.4 यण सन्धि (Yana Sandhi):
- नियम: जब ‘इ’ या ‘ई’, ‘उ’ या ‘ऊ’, ‘ऋ’ या ‘ॠ’, ‘लृ’ के बाद कोई असमान स्वर आए, तो क्रमशः ‘इ/ई’ का ‘य’, ‘उ/ऊ’ का ‘व’, ‘ऋ/ॠ’ का ‘र’, और ‘लृ’ का ‘ल’ हो जाता है।
- सूत्र: इको यणचि
- उदाहरण:
- इति + आदि = इत्यआदि = इत्यादि (इ + आ = य + आ)
- सु + आगतम् = स्वआगतम् = स्वागतम् (उ + आ = व + आ)
- पितृ + आज्ञा = पित्रआज्ञा = पित्राज्ञा (ऋ + आ = र + आ)
- लृ + आकृतिः = लाकृतिः (लृ + आ = ला)
- 3.1.5 अयादि सन्धि (Ayadi Sandhi):
- नियम: जब ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’, ‘औ’ के बाद कोई भी स्वर आए, तो क्रमशः ‘ए’ का ‘अय’, ‘ऐ’ का ‘आय’, ‘ओ’ का ‘अव’, और ‘औ’ का ‘आव’ हो जाता है।
- सूत्र: एचोऽयवायावः
- उदाहरण:
- ने + अनम् = नयनम् (ए + अ = अय + अ)
- गै + अकः = गायकः (ऐ + अ = आय + अ)
- पो + अनम् = पवनम् (ओ + अ = अव + अ)
- पौ + अकः = पावकः (औ + अ = आव + अ)
3.2 व्यंजन सन्धि (Vyanjana Sandhi / Hal Sandhi): व्यंजनों का मेल
व्यंजन सन्धि तब होती है जब किसी व्यंजन का मेल स्वर या अन्य व्यंजन से होता है। व्यंजन सन्धि के नियम जटिल होते हैं, क्योंकि इनमें वर्णों में कई प्रकार के परिवर्तन (आदेश, आगम, लोप) हो सकते हैं। कुछ महत्वपूर्ण व्यंजन सन्धियाँ:
- 3.2.1 श्चुत्व सन्धि (Schutva Sandhi):
- नियम: ‘स्’ या ‘त-वर्ग’ (त्, थ्, द्, ध्, न्) के बाद ‘श्’ या ‘च-वर्ग’ (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) आए, तो ‘स्’ का ‘श्’ और ‘त-वर्ग’ का ‘च-वर्ग’ हो जाता है।
- उदाहरण:
- सत् + चित् = सच्चित् (त् + च् = च्च्)
- रामस् + शेते = रामश्शेते (स् + श् = श्श्)
- शरत् + चन्द्रः = शरच्चन्द्रः (त् + च् = च्च्)
- 3.2.2 ष्टुत्व सन्धि (Sthutva Sandhi):
- नियम: ‘स्’ या ‘त-वर्ग’ (त्, थ्, द्, ध्, न्) के बाद ‘ष्’ या ‘ट-वर्ग’ (ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्) आए, तो ‘स्’ का ‘ष्’ और ‘त-वर्ग’ का ‘ट-वर्ग’ हो जाता है।
- उदाहरण:
- तत् + टीका = तट्टीका (त् + ट् = ट्ट्)
- इष् + त = इष्ट (ष् + त् = ष्ट्)
- चतुर् + षष्ट = चतुष्षष्टि (र के बाद ष् का ष्)
- 3.2.3 जश्त्व सन्धि (Jashtva Sandhi):
- नियम: वर्ग के प्रथम अक्षर (क्, च्, ट्, त्, प्) के बाद कोई भी स्वर, या वर्ग का तीसरा/चौथा अक्षर (ग्, घ्, ज्, झ्, आदि), या ‘ह, य, व, र’ आए, तो प्रथम अक्षर अपने ही वर्ग के तीसरे अक्षर में बदल जाता है (क् का ग्, च् का ज्, ट् का ड्, त् का द्, प् का ब्)।
- सूत्र: झलां जशोऽन्ते
- उदाहरण:
- दिक् + गजः = दिग्गजः (क् + ग् = ग्ग्)
- जगत् + ईशः = जगदीशः (त् + ई = द् + ई)
- षट् + आननः = षडाननः (ट् + आ = ड् + आ)
- 3.2.4 अनुस्वार सन्धि (Anusvara Sandhi):
- नियम: पद के अंत में आने वाले ‘म्’ के बाद यदि कोई व्यंजन आता है, तो ‘म्’ अनुस्वार (ं) में बदल जाता है। यदि स्वर आता है, तो ‘म्’ वैसा ही रहता है।
- सूत्र: मोऽनुस्वारः
- उदाहरण:
- हरिम् + वन्दे = हरिं वन्दे (म् + व् = ं)
- गृहम् + गच्छति = गृहं गच्छति (म् + ग् = ं)
- बालकम् + आह्वयति = बालकमाह्वयति (म् + आ = मा) – यहाँ म में स्वर मिल गया।
- 3.2.5 परसवर्ण सन्धि (Parasavarna Sandhi):
- नियम: अनुस्वार (ं) के बाद यदि कोई भी व्यंजन आता है, तो अनुस्वार उस व्यंजन के वर्ग के पंचम वर्ण (ङ्, ञ्, ण्, न्, म्) में बदल जाता है।
- उदाहरण:
- शम् + करः = शङ्करः (म् + क् = ङ्क)
- पम् + चम = पञ्चम (म् + च = ञ्च)
- सन् + तोषः = सन्तोषः (न् + त् = न्त) – यहाँ न् का न् ही रहता है क्योंकि वह त् वर्ग का पंचम है।
- 3.2.6 लत्व सन्धि (Latva Sandhi):
- नियम: ‘त्’ या ‘द्’ के बाद ‘ल्’ आए, तो ‘त्/द्’ का ‘ल्’ हो जाता है। यदि ‘न्’ के बाद ‘ल्’ आए, तो ‘न्’ का अनुनासिक ‘ँल्’ हो जाता है।
- उदाहरण:
- तत् + लीनः = तल्लीनः (त् + ल् = ल्ल)
- महान् + लाभः = महाँल्लाभः (न् + ल् = ँल्)
3.3 विसर्ग सन्धि (Visarga Sandhi): विसर्ग का परिवर्तन
विसर्ग सन्धि तब होती है जब विसर्ग (ः) का मेल किसी स्वर या व्यंजन से होता है। विसर्ग में कई प्रकार के परिवर्तन हो सकते हैं, जैसे ‘स्’, ‘र्’, ‘ओ’, ‘लोप’ आदि में बदलना।
- 3.3.1 सत्व विसर्ग सन्धि (Satva Visarga Sandhi):
- नियम: विसर्ग (ः) के बाद ‘ख्, च्, छ्, ट्, ठ्, त्, थ्’ आएं, तो विसर्ग क्रमशः ‘श्, ष्, स्’ में बदल जाता है।
- उदाहरण:
- रामः + चिनोति = रामश्चिनोति (ः + च् = श्च्)
- हरिः + ठक्कुरः = हरिष्ठक्कुरः (ः + ठ् = ष्ठ्)
- नमः + ते = नमस्ते (ः + त् = स्त्)
- 3.3.2 उत्व विसर्ग सन्धि (Utva Visarga Sandhi):
- नियम: ‘अ’ के बाद आने वाले विसर्ग (ः) के बाद यदि ‘अ’ या कोई मृदु व्यंजन (वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण, या य, र, ल, व, ह) आए, तो विसर्ग ‘ओ’ में बदल जाता है और यदि ‘अ’ आता है तो उसका अवग्रह (ऽ) हो जाता है।
- उदाहरण:
- मनः + रथः = मनोरथः (ः + र् = ओर्)
- सः + अयम् = सोऽयम् (ः + अ = ओऽ)
- रामः + हसति = रामो हसति (ः + ह् = ओह)
- 3.3.3 रुत्व विसर्ग सन्धि (Rutva Visarga Sandhi):
- नियम: ‘अ’ या ‘आ’ को छोड़कर किसी अन्य स्वर के बाद आने वाले विसर्ग (ः) के बाद यदि कोई स्वर या मृदु व्यंजन आए, तो विसर्ग ‘र्’ में बदल जाता है।
- उदाहरण:
- कविः + अयम् = कविरयम् (इः + अ = इर)
- धनुः + वेदः = धनुर्वेदः (उः + व् = उर्व)
- पुनः + रमते = पुनारमते (विसर्ग का र और र के बाद र होने पर लोप)
- 3.3.4 विसर्ग लोप सन्धि (Visarga Lopa Sandhi):
- नियम 1: यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद आने वाले विसर्ग (ः) के बाद ‘अ’ को छोड़कर कोई अन्य स्वर या कोई व्यंजन (क, ख, प, फ को छोड़कर) आए तो विसर्ग का लोप हो जाता है।
- उदाहरण: नृपः + आगच्छति = नृप आगच्छति (यहाँ अ के बाद विसर्ग का लोप हो गया)
- नियम 2: ‘एषः’ और ‘सः’ के विसर्ग के बाद कोई भी वर्ण आने पर विसर्ग का लोप हो जाता है।
- उदाहरण: सः + गच्छति = स गच्छति
- उदाहरण: एषः + विष्णुः = एष विष्णुः
- नियम 1: यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद आने वाले विसर्ग (ः) के बाद ‘अ’ को छोड़कर कोई अन्य स्वर या कोई व्यंजन (क, ख, प, फ को छोड़कर) आए तो विसर्ग का लोप हो जाता है।
4. विशेष बिंदु और महत्वपूर्ण सुझाव (Special Points and Important Tips)
सन्धि का अभ्यास करते समय कुछ अतिरिक्त बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।
4.1 सन्धि और समास में अंतर (Difference between Sandhi and Samasa):
जैसा कि ऊपर बताया गया, यह एक सामान्य भ्रम है।
- सन्धि: दो वर्णों के मेल से होने वाला परिवर्तन है। यह ध्वन्यात्मक होती है और उच्चारण की सुगमता के लिए आवश्यक है।
- समास: दो या दो से अधिक पदों (शब्दों) को संक्षिप्त करके एक नया पद बनाने की प्रक्रिया है। यह अर्थगत होती है और भाषा को संक्षिप्त व प्रभावी बनाती है। हालांकि, सन्धि के बाद बने हुए समस्त पदों में भी सन्धि के नियम लागू हो सकते हैं।
4.2 सन्धि पहचान की त्वरित युक्तियाँ (Quick Tips for Sandhi Identification):
- दीर्घ स्वर (आ, ई, ऊ, ॠ) देखें: प्रायः दीर्घ सन्धि।
- ए, ओ, अर्, अल् देखें: प्रायः गुण सन्धि।
- ऐ, औ देखें: प्रायः वृद्धि सन्धि।
- य, व, र, ल से पहले आधा अक्षर देखें: प्रायः यण सन्धि।
- अय, आय, अव, आव ध्वनि देखें: प्रायः अयादि सन्धि।
- अनुस्वार (ं) या पंचम वर्ण (ङ्, ञ्, ण्, न्, म्) देखें: प्रायः अनुस्वार/परसवर्ण सन्धि।
- ‘स्, श्, ष्’ का परिवर्तन देखें: प्रायः विसर्ग सन्धि या व्यंजन सन्धि।
- ‘ओ’ या ‘र्’ में विसर्ग का बदलना देखें: प्रायः विसर्ग सन्धि।
4.3 अभ्यास का महत्व (Importance of Practice):
सन्धि के नियमों को केवल याद करना पर्याप्त नहीं है। उनकी सही पहचान और प्रयोग के लिए निरंतर अभ्यास की आवश्यकता होती है।
- पाठ्यपुस्तक के सभी उदाहरणों का अभ्यास करें।
- पिछले वर्षों के प्रश्नपत्रों को हल करें।
- संस्कृत पाठों को पढ़ते समय, सन्धि-युक्त पदों को पहचानें और उनका विच्छेद करने का प्रयास करें।
- अपने स्वयं के उदाहरण बनाकर उनका सन्धि-विधान और विच्छेद करने का अभ्यास करें। नियमित अभ्यास से ही इसमें पूर्णता आती है।
5. निष्कर्ष (Conclusion): संस्कृत व्याकरण में सन्धि की आपकी महारत
सन्धि संस्कृत व्याकरण का एक आधारभूत स्तंभ है। इसकी समझ आपको संस्कृत भाषा की प्रकृति, उसके शुद्ध उच्चारण और उसके ग्रंथों की गहरी समझ प्रदान करती है। MP Board की परीक्षाओं में सन्धि से संबंधित प्रश्न आपकी व्याकरणिक कुशलता को परखते हैं, और इस विषय पर आपकी पकड़ आपको उत्कृष्ट अंक प्राप्त करने में सहायता करेगी। नियमों को आत्मसात करें, खूब अभ्यास करें, और संस्कृत के मधुर प्रवाह का आनंद लें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. स्वर सन्धि और व्यंजन सन्धि में मुख्य अंतर क्या है?
मुख्य अंतर यह है कि स्वर सन्धि केवल स्वरों के मेल से होती है और इसमें स्वरों में ही परिवर्तन आता है। जबकि, व्यंजन सन्धि में एक व्यंजन का मेल किसी स्वर या अन्य व्यंजन से होता है, और इसमें व्यंजन में ही परिवर्तन (या लोप/आगम) होता है।
2. एक ही पद में सन्धि और समास दोनों हो सकते हैं क्या?
हाँ, बिल्कुल हो सकते हैं। पहले पदों का समास हो सकता है, और उसके बाद जो नया समस्त पद बनता है, उसमें आगे सन्धि के नियम लागू हो सकते हैं। उदाहरण: महात्मा (महान् आत्मा – कर्मधारय समास) + इति। पहले यहाँ महान् आत्मा से महात्मा समास हुआ। अब महात्मा + इति में सन्मासीकरण के बाद सन्धि: महात्मा + इति = महात्मति (यण सन्धि)। (यह उदाहरण थोड़ा जटिल है, पर यह दर्शाता है कि दोनों प्रक्रियाएं हो सकती हैं)।
3. क्या सन्धि करना हमेशा अनिवार्य होता है?
एक पद के भीतर, उपसर्ग और धातु के बीच तथा समास में सन्धि करना अनिवार्य होता है। इसे ‘नित्य सन्धि’ कहते हैं। लेकिन दो अलग-अलग पदों के बीच सन्धि करना वैकल्पिक होता है, इसे ‘ऐच्छिक सन्धि’ कहते हैं। यद्यपि संस्कृत के विद्वान और कवि भाषा के प्रवाह और सौंदर्य के लिए प्रायः सन्धि का प्रयोग करते हैं।