Mastering Sanskrit Pratyayāḥ: A Comprehensive Guide for MP Board Class 11th & 12th
Mastering Sanskrit Pratyayāḥ: संस्कृत व्याकरण में प्रत्यय (Pratyayāḥ) का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये वे शब्दांश होते हैं जो किसी धातु (क्रिया के मूल रूप), संज्ञा, विशेषण या अव्यय के बाद लगकर नए शब्दों का निर्माण करते हैं। इन नए शब्दों में मूल शब्द से भिन्न या विशिष्ट अर्थ होता है। MP Board की कक्षा 11वीं और 12वीं की परीक्षाओं में प्रत्ययों से संबंधित प्रश्न अनिवार्य रूप से पूछे जाते हैं। यह लेख आपको प्रत्ययों के प्रकार, उनके प्रयोग और उनसे होने वाले अर्थगत परिवर्तनों को गहराई से समझने में मदद करेगा ताकि आप न केवल परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकें बल्कि संस्कृत के शब्द निर्माण की प्रक्रिया को भी भली-भाँति समझ सकें।
Introduction: Sanskrit में प्रत्यय – शब्द निर्माण के आधारभूत तत्व
संस्कृत भाषा की असीमित शब्द-संपदा का एक बड़ा कारण उसकी प्रत्यय-प्रणाली है। प्रत्यय वे महत्वपूर्ण व्याकरणिक इकाइयाँ हैं जो शब्दों के अंत में जुड़कर उनके रूप और अर्थ को परिवर्तित करती हैं। ये भाषा को गतिशीलता और नवीनता प्रदान करते हैं, जिससे एक ही धातु या शब्द से अनेकों अर्थों वाले शब्द बनाए जा सकते हैं।
1.1 प्रत्यय (Pratyayāḥ) क्या हैं?
“क्रियते विधीयते इति प्रत्ययः” – जिसका अर्थ है, ‘जिसके द्वारा किसी शब्द की रचना की जाए, वह प्रत्यय है।’ प्रत्यय वे शब्दांश होते हैं जो किसी शब्द (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण) या धातु के अंत में जुड़कर नए शब्द बनाते हैं। ये स्वयं स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त नहीं होते, बल्कि किसी अन्य के साथ जुड़कर ही अर्थवान होते हैं।
उदाहरण:
- पठ् (पढ़ना – धातु) से:
- पठ् + तव्यत् = पठितव्यम् (पढ़ने योग्य/पढ़ना चाहिए)
- पठ् + तुमुन् = पठितुम् (पढ़ने के लिए)
- बाल (बच्चा – शब्द) से:
- बाल + त्व = बालत्वम् (बचपना)
- बाल + ईप् = बाला (स्त्रीलिंग)
1.2 MP Board परीक्षाओं के लिए प्रत्यय क्यों महत्वपूर्ण हैं?
MP Board की कक्षा 11वीं और 12वीं की संस्कृत व्याकरण में प्रत्यय एक महत्वपूर्ण और अंकदायी खंड है। परीक्षाओं में प्रायः निम्न प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं:
- प्रत्यय पहचान (Identification of Pratyaya): एक शब्द देकर उसमें प्रयुक्त प्रत्यय को पहचानने और मूल धातु या शब्द को अलग करने को कहा जाता है।
- प्रत्यय-योग (Pratyaya-Yoga / Formation): एक धातु/शब्द और एक प्रत्यय देकर उनका योग करके नया शब्द बनाने और उसका अर्थ बताने को कहा जाता है।
- वाक्य प्रयोग (Sentence Usage): प्रत्यय-युक्त शब्दों का वाक्य में प्रयोग करने को कहा जाता है।
प्रत्ययों का ज्ञान न केवल इन प्रश्नों को हल करने में मदद करता है, बल्कि संस्कृत ग्रंथों को पढ़ने, उनका सही अर्थ निकालने और स्वयं संस्कृत में प्रभावी वाक्य बनाने के लिए भी यह एक आधारभूत कौशल है। यह आपकी संस्कृत शब्द-संपदा को भी अत्यंत समृद्ध करता है।
1.3 प्रत्ययों के प्रमुख भेद
प्रत्ययों को मुख्य रूप से दो बड़े वर्गों में विभाजित किया जाता है:
- कृत् प्रत्यय (Krit Pratyayas): जो प्रत्यय धातुओं (क्रिया के मूल रूप) के अंत में जुड़कर संज्ञा, विशेषण या अव्यय बनाते हैं। इन्हें ‘कृदन्त’ भी कहते हैं।
- तद्धित प्रत्यय (Taddhita Pratyayas): जो प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि शब्दों के अंत में जुड़कर नए संज्ञा, विशेषण, या अव्यय शब्द बनाते हैं।
- स्त्रीप्रत्यय (Stri Pratyayas): जो प्रत्यय पुल्लिङ्ग शब्दों को स्त्रीलिङ्ग में परिवर्तित करते हैं। (कुछ विद्वान इसे तद्धित के अंतर्गत भी मानते हैं)।
2. आधारभूत अवधारणाएँ: प्रत्यय समझने से पहले आवश्यक ज्ञान
प्रत्ययों के विस्तृत अध्ययन से पहले कुछ बुनियादी अवधारणाओं की स्पष्टता आवश्यक है।
2.1 धातु (Dhatu) और शब्द (Shabda) का महत्व
- धातु: जैसा कि धातुरूपाणि में बताया गया, धातु क्रिया का मूल रूप है (जैसे पठ्, गम्, लिख्)। कृत् प्रत्यय धातुओं से जुड़ते हैं।
- शब्द: संज्ञा (जैसे बालक), सर्वनाम (जैसे तत्), विशेषण (जैसे सुन्दर) आदि शब्दों को शब्द कहते हैं। तद्धित और स्त्रीप्रत्यय शब्दों से जुड़ते हैं।
2.2 ‘इत्’ संज्ञा और लोप (It-Samjña and Lopa)
संस्कृत व्याकरण में प्रत्ययों के कुछ वर्णों को ‘इत्’ (It) कहा जाता है। ‘इत्’ वर्णों का प्रयोजन केवल व्याकरणिक प्रक्रिया (जैसे किसी विशेष परिवर्तन को प्रेरित करना) के लिए होता है, और वास्तविक शब्द निर्माण में उनका लोप (हटना) हो जाता है। उदाहरण के लिए, तुमुन् प्रत्यय में ‘उ’ और ‘न्’ की ‘इत्’ संज्ञा होकर लोप हो जाता है, केवल ‘तुम्’ शेष रहता है। यह प्रत्ययों को शुद्ध रूप से पहचानने के लिए महत्वपूर्ण है।
2.3 ‘सार्वधातुक’ और ‘आर्धधातुक’ प्रत्यय
यह कृत् प्रत्ययों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण विभाजन है:
- सार्वधातुक प्रत्यय: वे प्रत्यय जो ‘शप्’, ‘श्यन्’ जैसे विकरणों (धातु और प्रत्यय के बीच आने वाले अंश) के साथ लगते हैं। ये मुख्य रूप से लकारों में क्रियापद बनाने में प्रयुक्त होते हैं।
- आर्धधातुक प्रत्यय: वे प्रत्यय जो बिना किसी विकरण के सीधे धातु से जुड़ते हैं। अधिकांश कृत् प्रत्यय आर्धधातुक होते हैं। इनके लगने पर धातु में कभी-कभी ‘गुण’ या ‘वृद्धि’ आदि परिवर्तन हो सकते हैं।
3. कृत् प्रत्यय (Krit Pratyayas): धातुओं से बनने वाले शब्द
कृत् प्रत्यय धातुओं के अंत में जुड़कर संज्ञा, विशेषण या अव्यय बनाते हैं। ये कई प्रकार के होते हैं, जिनमें से MP Board के पाठ्यक्रम के लिए प्रमुख ये हैं:
3.1 क्त (Kta) और क्तवतु (Ktavatu) प्रत्यय – भूतकालिक कृदंत
- नियम: ये दोनों प्रत्यय भूतकाल की क्रिया को दर्शाते हैं।
- क्त: कर्मवाच्य या भाववाच्य में प्रयुक्त होता है और विशेषण की तरह काम करता है। इसमें केवल ‘त‘ शेष रहता है।
- क्तवतु: कर्तृवाच्य में प्रयुक्त होता है और विशेषण की तरह काम करता है। इसमें केवल ‘तवत्‘ शेष रहता है।
- प्रयोग:
- पठ् + क्त = पठितः (पढ़ा गया – पुं.), पठिता (स्त्री.), पठितम् (नपुं.)
- गम् + क्त = गतः, गता, गतम् (गया हुआ)
- कृ + क्त = कृतः, कृता, कृतम् (किया गया)
- पठ् + क्तवतु = पठितवान् (पुं.), पठितवती (स्त्री.), पठितवत् (नपुं.) (पढ़ा हुआ)
- गम् + क्तवतु = गतवान्, गतवती, गतवत् (गया हुआ)
3.2 तुमुन् (Tumun) प्रत्यय – के लिए / उद्देश्य
- नियम: ‘के लिए’ या ‘उद्देश्य’ अर्थ में प्रयुक्त होता है। इसमें केवल ‘तुम्‘ शेष रहता है।
- प्रयोग:
- पठ् + तुमुन् = पठितुम् (पढ़ने के लिए)
- गम् + तुमुन् = गन्तुम् (जाने के लिए)
- खाद् + तुमुन् = खादितुम् (खाने के लिए)
3.3 क्त्वा (Ktva) प्रत्यय – कर / करके
- नियम: ‘कर’ या ‘करके’ अर्थ में प्रयुक्त होता है (एक क्रिया को समाप्त करके दूसरी करना)। इसमें केवल ‘त्वा‘ शेष रहता है।
- प्रयोग:
- पठ् + क्त्वा = पठित्वा (पढ़कर)
- गम् + क्त्वा = गत्वा (जाकर)
- कृ + क्त्वा = कृत्वा (करके)
3.4 ल्यप् (Lyap) प्रत्यय – कर / करके (उपसर्ग-युक्त धातु के लिए)
- नियम: ‘कर’ या ‘करके’ अर्थ में प्रयुक्त होता है, लेकिन यह केवल उन धातुओं के साथ लगता है जिनके पहले उपसर्ग लगा हो। इसमें केवल ‘य‘ शेष रहता है।
- प्रयोग:
- प्र + नम् + ल्यप् = प्रणम्य (प्रणाम करके)
- आ + गम् + ल्यप् = आगम्य (आकर)
- वि + हस् + ल्यप् = विहस्य (हँसकर)
3.5 तव्यत् (Tavyat) और अनीयर् (Anīyar) प्रत्यय – चाहिए / योग्य
- नियम: ‘चाहिए’ या ‘योग्य’ अर्थ में प्रयुक्त होते हैं।
- तव्यत्: इसमें केवल ‘तव्य‘ शेष रहता है।
- अनीयर्: इसमें केवल ‘अनीय‘ शेष रहता है।
- प्रयोग:
- पठ् + तव्यत् = पठितव्यः (पढ़ना चाहिए/पढ़ने योग्य – पुं.)
- गम् + तव्यत् = गन्तव्यः (जाना चाहिए/जाने योग्य)
- कृ + तव्यत् = कर्तव्यः (करना चाहिए/करने योग्य)
- पठ् + अनीयर् = पठनीयः (पढ़ने योग्य/पढ़ना चाहिए – पुं.)
- गम् + अनीयर् = गमनीयः (जाने योग्य/जाना चाहिए)
- कृ + अनीयर् = करणीयः (करने योग्य/करना चाहिए)
3.6 शतृ (Shatṛ) और शानच् (Shānac) प्रत्यय – वर्तमान कृदंत
- नियम: ये प्रत्यय ‘करता हुआ’ या ‘करते हुए’ अर्थ में वर्तमान काल की क्रिया को दर्शाते हैं।
- शतृ: परस्मैपदी धातुओं से लगता है। इसमें केवल ‘अत्‘ (अन्त्) शेष रहता है और यह विशेषण की तरह काम करता है।
- शानच्: आत्मनेपदी धातुओं से लगता है। इसमें केवल ‘आन‘ (मान/शान) शेष रहता है और यह विशेषण की तरह काम करता है।
- प्रयोग:
- पठ् (परस्मैपदी) + शतृ = पठन् (पढ़ता हुआ – पुं.), पठन्ती (स्त्री.), पठत् (नपुं.)
- गम् (परस्मैपदी) + शतृ = गच्छन्, गच्छन्ती, गच्छत् (जाता हुआ)
- सेव् (आत्मनेपदी) + शानच् = सेवमानः (सेवा करता हुआ – पुं.), सेवमाना (स्त्री.), सेवमानम् (नपुं.)
- वृध् (आत्मनेपदी) + शानच् = वर्धमानः (बढ़ता हुआ)
4. तद्धित प्रत्यय (Taddhita Pratyayas): शब्दों से बनने वाले शब्द
तद्धित प्रत्यय संज्ञा, विशेषण, अव्यय आदि शब्दों के अंत में जुड़कर नए शब्द बनाते हैं। ये संबंध, भाव, स्थान, आदि विभिन्न अर्थों को व्यक्त करते हैं। MP Board के पाठ्यक्रम के लिए प्रमुख तद्धित प्रत्यय:
4.1 त्व (Tva) और तल् (Tal) प्रत्यय – भाववाचक
- नियम: ये प्रत्यय भाववाचक संज्ञाएँ बनाते हैं (जैसे ‘बचपना’)।
- त्व: इसमें केवल ‘त्व‘ शेष रहता है और बनने वाला शब्द नपुंसक लिंग होता है।
- तल्: इसमें केवल ‘ता‘ शेष रहता है और बनने वाला शब्द स्त्रीलिंग होता है।
- प्रयोग:
- मनुष्य + त्व = मनुष्यत्वम् (मनुष्यता)
- देव + त्व = देवत्वम् (देवता)
- मनुष्य + तल् = मनुष्यता (मनुष्यता)
- देव + तल् = देवता (देवता)
4.2 इन् (Ini) / ठन् (Thañ) / ठक् (Thak) / णिनि (Ṇini) प्रत्यय – वाला / संबंधी
ये प्रत्यय ‘वाला’, ‘संबंधी’ या ‘युक्त’ अर्थ में प्रयुक्त होते हैं और विशेषण या संज्ञा बनाते हैं।
- इन्: इसमें केवल ‘इन्‘ (ई) शेष रहता है।
- दण्ड + इन् = दण्डी (दण्ड वाला)
- धन + इन् = धनी (धन वाला)
- ठन् / ठक्: दोनों का ‘इक‘ शेष रहता है।
- धर्म + ठक् = धार्मिकः (धर्म से संबंधित)
- लोक + ठन् = लौकिकः (लोक से संबंधित)
- णिनि: इसमें केवल ‘इन्‘ (ई) शेष रहता है।
- स्वप्न + णिनि = स्वप्नी (स्वप्न देखने वाला)
4.3 मतुप् (Matup) प्रत्यय – युक्त / वाला
- नियम: ‘वाला’ या ‘युक्त’ अर्थ में प्रयुक्त होता है। इसमें केवल ‘मत्‘ या ‘वत्‘ शेष रहता है।
- प्रयोग:
- धन + मतुप् = धनवान् (धन वाला – पुं.), धनवती (स्त्री.), धनवत् (नपुं.)
- बुद्धि + मतुप् = बुद्धिमान्, बुद्धिमती, बुद्धिमत् (बुद्धि वाला)
- शक्ति + मतुप् = शक्तिमान्, शक्तिमती, शक्तिमत् (शक्ति वाला)
5. स्त्रीप्रत्यय (Stri Pratyayas): पुल्लिङ्ग से स्त्रीलिङ्ग बनाना
स्त्रीप्रत्यय पुल्लिङ्ग शब्दों को स्त्रीलिङ्ग में परिवर्तित करते हैं। इनमें से प्रमुख ये हैं:
5.1 टाप् (Ṭāp) प्रत्यय
- नियम: अकारान्त (अ से अंत होने वाले) पुल्लिङ्ग शब्दों को स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए लगता है। इसमें केवल ‘आ‘ शेष रहता है।
- प्रयोग:
- बालक + टाप् = बालिका
- अश्व + टाप् = अश्वा
- छात्र + टाप् = छात्रा
5.2 ङीप् (Ṅīp) प्रत्यय
- नियम: ऋकारान्त, न्-कारान्त, और कुछ विशेष अकारान्त पुल्लिङ्ग शब्दों को स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए लगता है। इसमें केवल ‘ई‘ शेष रहता है।
- प्रयोग:
- नर्तक् + ङीप् = नर्तकी
- कुमार + ङीप् = कुमारी
- दाशरथि + ङीप् = दाशरथी (यह विशेष नियम के तहत है)
5.3 ङीष् (Ṅīṣ) प्रत्यय
- नियम: कुछ विशेष शब्दों (जैसे जातिवाचक, उगीत्, आदि) को स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए लगता है। इसमें भी केवल ‘ई‘ शेष रहता है।
- प्रयोग:
- ब्राह्मण + ङीष् = ब्राह्मणी
- गोप + ङीष् = गोपी
6. अभ्यास का महत्व (Importance of Practice)
प्रत्ययों पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए निरंतर और व्यवस्थित अभ्यास अत्यंत आवश्यक है।
- प्रत्ययों को पहचानें: प्रत्येक प्रत्यय के शेष रहने वाले अंश (जैसे ‘तुम्’, ‘त्वा’, ‘तव्य’) को याद रखें।
- अर्थ और प्रयोग: प्रत्येक प्रत्यय का अर्थ क्या है और वह किस प्रकार के शब्द (धातु या शब्द) से जुड़ता है, इसे समझें।
- उदाहरणों पर ध्यान दें: पाठ्यपुस्तक में दिए गए उदाहरणों का गहन अध्ययन करें और स्वयं नए शब्दों का निर्माण करने का प्रयास करें।
- सन्धि और प्रत्यय का मिश्रण: कई बार प्रत्यय जुड़ने पर सन्धि के नियम भी लागू होते हैं (विशेषकर धातु और प्रत्यय के बीच)। इन परिवर्तनों को समझें।
- पिछले वर्षों के प्रश्नपत्र: MP Board के पिछले वर्षों के प्रश्नपत्रों से प्रत्यय से संबंधित प्रश्नों का अभ्यास करें।
- संस्कृत पाठों में पहचान: जब आप संस्कृत के पाठ पढ़ें, तो प्रत्यय-युक्त शब्दों को पहचानने और उनमें मूल धातु/शब्द तथा प्रत्यय को अलग करने का प्रयास करें।
7. निष्कर्ष (Conclusion): संस्कृत व्याकरण में प्रत्ययों की आपकी महारत
प्रत्यय संस्कृत व्याकरण के शब्द निर्माण की कुंजी हैं। ये भाषा को उसकी अद्भुत अभिव्यंजक शक्ति प्रदान करते हैं। प्रत्ययों पर आपकी पकड़ न केवल आपको MP Board की परीक्षाओं में उत्कृष्ट अंक प्राप्त करने में सहायता करेगी, बल्कि संस्कृत के विशाल शब्द-सागर को समझने और उसमें गोता लगाने की आपकी क्षमता को भी बढ़ाएगी। यह आपकी संस्कृत यात्रा में एक महत्वपूर्ण और आनंददायक कदम है। धैर्यपूर्वक अभ्यास करते रहें और संस्कृत के अर्थवान शब्दों के जादू का अनुभव करें!
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. कृत् प्रत्यय और तद्धित प्रत्यय में मुख्य अंतर क्या है? कृत् प्रत्यय हमेशा धातुओं (क्रिया के मूल रूप) से जुड़ते हैं और उनसे संज्ञा, विशेषण या अव्यय शब्द बनाते हैं। तद्धित प्रत्यय हमेशा संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि शब्दों से जुड़ते हैं और उनसे नए संज्ञा, विशेषण, या अव्यय शब्द बनाते हैं।
2. क्या सभी धातुओं और शब्दों के साथ सभी प्रत्यय लग सकते हैं? नहीं, ऐसा नहीं है। प्रत्येक प्रत्यय के अपने विशिष्ट नियम होते हैं कि वह किस प्रकार की धातु या शब्द (जैसे अकारान्त, इकारान्त, सान्त, आदि) के साथ जुड़ सकता है, और जुड़ने पर क्या परिवर्तन होंगे। कुछ प्रत्यय विशेष अर्थों के लिए ही प्रयोग होते हैं।
3. प्रत्ययों को याद करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है? सबसे अच्छा तरीका है नियमों को समझना और प्रत्येक प्रत्यय के कम से कम 2-3 उदाहरणों को कंठस्थ करना। केवल रटने से नहीं, बल्कि उनका वाक्य में प्रयोग करके या शब्दों में उनकी पहचान करके अभ्यास करने से ही वे स्थायी रूप से याद रहते हैं। सारणियाँ बनाना और नियमित पुनरावृत्ति (revision) भी बहुत सहायक होती है।