Mastering Sanskrit Paryāyāḥ: A Comprehensive Guide for MP Board Class 11th & 12th
Mastering Sanskrit Paryāyāḥ: संस्कृत भाषा अपनी समृद्ध शब्दावली और अर्थगत गहराई के लिए जानी जाती है, और इस विशाल शब्दकोश का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं पर्यायवाची शब्द (Paryāyāḥ)। ये वे शब्द होते हैं जो भिन्न-भिन्न होते हुए भी समान या लगभग समान अर्थ व्यक्त करते हैं। MP Board की कक्षा 11वीं और 12वीं की परीक्षाओं में पर्यायवाची शब्दों से संबंधित प्रश्न अप्रत्यक्ष रूप से (अनुवाद, अपठित गद्यांश) और प्रत्यक्ष रूप से (शब्द-युग्मन, पर्यायवाची लेखन) दोनों तरह से पूछे जाते हैं। यह लेख आपको पर्यायवाची शब्दों की प्रकृति, उनके महत्व और संस्कृत साहित्य में उनके प्रयोग को गहराई से समझने में मदद करेगा, ताकि आप न केवल परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकें, बल्कि संस्कृत भाषा के सौंदर्य और उसकी सूक्ष्मताओं को भी भली-भाँति आत्मसात कर सकें।
Introduction: Sanskrit में पर्यायाः – अर्थ के विविध रंग
किसी भी भाषा में एक ही अर्थ को व्यक्त करने के लिए अनेक शब्दों का होना उसकी संपन्नता का प्रतीक होता है, और संस्कृत इस मामले में अत्यंत समृद्ध है। पर्यायवाची शब्द हमें अपनी अभिव्यक्ति को अधिक सटीक, प्रभावी और सुंदर बनाने का अवसर प्रदान करते हैं। वे न केवल शब्द-दोहराव से बचाते हैं, बल्कि अर्थ के विभिन्न पहलुओं या बारीकियों को भी उजागर करते हैं।
1.1 पर्यायाः (Paryāyāḥ) क्या हैं?
“समानार्थकाः शब्दाः पर्यायाः कथ्यन्ते।” – अर्थात्, समान अर्थ वाले शब्दों को पर्यायवाची कहा जाता है। जब दो या दो से अधिक शब्द व्याकरणिक रूप से भिन्न होते हुए भी एक ही वस्तु, विचार, गुण या क्रिया का बोध कराते हैं, तो वे एक दूसरे के पर्यायवाची कहलाते हैं। हालांकि, यह समझना महत्वपूर्ण है कि भाषाओं में ‘पूर्ण पर्याय’ (absolute synonyms) बहुत कम होते हैं। प्रायः प्रत्येक पर्यायवाची शब्द का अपना एक विशिष्ट संदर्भ, सूक्ष्म अर्थ-भेद या भावनात्मक संबंध होता है।
उदाहरण:
- जलम् (पानी) के पर्यायवाची: वारि, तोयम्, सलिलम्, नीरम्, अम्बु।
- सूर्यः (सूरज) के पर्यायवाची: रविः, भानुः, भास्करः, दिवाकरः, अर्कः, सवितृः।
1.2 MP Board परीक्षाओं के लिए पर्यायवाची शब्द क्यों महत्वपूर्ण हैं?
MP Board की कक्षा 11वीं और 12वीं की संस्कृत व्याकरण और साहित्य खंड में पर्यायवाची शब्दों का ज्ञान अत्यंत मूल्यवान है। इनकी महत्ता के कई कारण हैं:
- शब्द-संपदा का विकास: पर्यायवाची शब्दों को जानने से आपकी संस्कृत शब्दावली में अत्यधिक वृद्धि होती है, जिससे आप अधिक प्रभावी ढंग से पढ़ और लिख सकते हैं।
- गद्यांश/पद्यांश की समझ: अपठित गद्यांशों और पद्यांशों को समझने के लिए विभिन्न शब्दों के पर्यायों का ज्ञान आवश्यक है, क्योंकि कवि या लेखक एक ही अर्थ के लिए भिन्न-भिन्न शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं।
- अनुवाद कौशल में सुधार: संस्कृत से हिंदी या हिंदी से संस्कृत अनुवाद करते समय सही पर्यायवाची शब्द का चुनाव आपके अनुवाद को अधिक सटीक और प्राकृतिक बनाता है।
- साहित्यिक सौंदर्य: संस्कृत काव्य और नाट्य में पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग भाषा में विविधता, मधुरता और अर्थगत गहराई लाता है। इन्हें समझने से आप साहित्यिक सौंदर्य की सराहना कर सकते हैं।
- परीक्षा के सीधे प्रश्न: कभी-कभी सीधे प्रश्न पूछे जाते हैं जहाँ किसी शब्द के पर्यायवाची लिखने होते हैं या सही पर्यायवाची का मिलान करना होता है।
2. आधारभूत अवधारणाएँ: पर्यायवाची शब्दों की प्रकृति को समझना
पर्यायवाची शब्दों को केवल याद कर लेने से उनकी वास्तविक महत्ता नहीं समझी जा सकती। उनकी प्रकृति और संस्कृत भाषा में उनके विशेष स्थान को जानना आवश्यक है।
2.1 पूर्ण पर्याय बनाम आंशिक पर्याय (Absolute Synonyms vs. Partial Synonyms)
- पूर्ण पर्याय: व्याकरणिक, शैलीगत, और अर्थगत रूप से पूरी तरह से समान शब्द। ऐसी स्थिति भाषाओं में बहुत दुर्लभ होती है। उदाहरण के लिए, ‘पद्मम्’ और ‘कमलम्’ को अक्सर पूर्ण पर्याय माना जाता है, लेकिन कुछ विशिष्ट संदर्भों में इनके प्रयोग में भी सूक्ष्म भेद हो सकते हैं।
- आंशिक पर्याय: अधिकांश पर्यायवाची शब्द आंशिक पर्याय ही होते हैं। इनका मूल अर्थ समान होता है, लेकिन प्रयोग के संदर्भ, भावनात्मक अर्थ (connotation), या शैलीगत भेद (stylistic nuance) के कारण ये पूरी तरह से एक-दूसरे का स्थान नहीं ले सकते।
- उदाहरण: ‘महान्’ और ‘विशालः’ दोनों ‘बड़ा’ अर्थ देते हैं। लेकिन ‘महान्’ प्रायः गुणों या प्रतिष्ठा में बड़े को दर्शाता है (जैसे ‘महान् पुरुषः’), जबकि ‘विशालः’ आकार में बड़े को दर्शाता है (जैसे ‘विशालः वृक्षः’)।
2.2 पर्यायता और बहुअर्थकता (Paryāyatā and Polysemy – Nānārthatā)
यह समझना महत्वपूर्ण है कि पर्यायवाची शब्द (एक ही अर्थ के लिए अनेक शब्द) और बहुअर्थी शब्द (एक ही शब्द के अनेक अर्थ – अनेकार्थकता) दो भिन्न अवधारणाएँ हैं:
- पर्यायता (Paryāyatā): जहाँ कई शब्द एक ही अर्थ को व्यक्त करते हैं। (जैसे ‘सूर्यः, रविः, भानुः’ – सभी ‘सूरज’ अर्थ देते हैं)।
- बहुअर्थकता (Nānārthatā / Polysemy): जहाँ एक ही शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, जो संदर्भ के अनुसार बदलते हैं। (जैसे ‘हरिः’ – विष्णु, सिंह, वानर, सूर्य, इंद्र, घोड़ा आदि अनेक अर्थ देता है)। संस्कृत में शब्दों की बहुअर्थकता अत्यंत प्रचलित है, जिससे पर्यायवाची शब्दों की जटिलता और भी बढ़ जाती है।
2.3 कोश-ग्रन्थों (Lexicons) की भूमिका
संस्कृत में पर्यायवाची शब्दों को संकलित करने वाले कई प्राचीन कोश-ग्रन्थ (शब्दकोश) उपलब्ध हैं, जिनमें अमरकोश (Amarakosha) सबसे प्रसिद्ध है। इसे ‘नामलिङ्गानुशासनम्’ भी कहते हैं। ऐसे कोश पर्यायवाची शब्दों को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करते हैं और छात्रों के लिए अत्यंत उपयोगी होते हैं। ये कोश प्रायः शब्दों को उनके लिंग और अर्थ के अनुसार वर्गीकृत करते हैं।
3. पर्यायवाची शब्दों के प्रकार और उनका प्रयोग (Types and Usage of Synonyms)
पर्यायवाची शब्दों को उनकी प्रकृति और प्रयोग के आधार पर कई श्रेणियों में बांटा जा सकता है।
3.1 सामान्य पर्यायवाची (General Synonyms): ये वे शब्द हैं जिनका उपयोग सामान्य बातचीत या लेखन में एक-दूसरे के स्थान पर किया जा सकता है, क्योंकि उनके अर्थ में कोई बड़ा सूक्ष्म भेद नहीं होता।
- सूर्यः: रविः, भानुः, भास्करः, दिवाकरः, अर्कः, सवितृः।
- चन्द्रः: शशी, सोमः, इन्दुः, विधुः, राकेशः, निशाकरः।
- जलम्: वारि, तोयम्, सलिलम्, नीरम्, अम्बु, पयः।
- पृथ्वी: भूमिः, धरा, धरित्री, मही, वसुधा, वसुन्धरा, अवनिः, क्षितिः।
- अग्निः: पावकः, वह्निः, अनलः, कृशानुः, हुताशनः, वैश्वानरः।
- वायुः: पवनः, अनिलः, समीरः, मारुतः, वातः, प्रकम्पनः।
- कमलम्: पद्मम्, नलिनम्, पंकजम्, नीरजम्, सरोजम्, अम्बुजम्, राजीवम्।
- वृक्षः: पादपः, तरुः, द्रुमः, महीरुहः, विटपः, शाखी।
- पुत्रः: सुतः, तनयः, आत्मजः, नन्दनः, सूनुः।
- पुत्री: सुता, तनया, आत्मजा, नन्दिनी, दुहिता।
- गुरुः: आचार्यः, उपाध्यायः, शिक्षकः।
- मित्रम्: सखा, सुहृद्, वयस्यः, प्रियबन्धुः।
3.2 सूक्ष्म अर्थ-भेद वाले पर्यायवाची (Synonyms with Subtle Nuances): ये शब्द एक ही मूल अर्थ साझा करते हैं, लेकिन उनके प्रयोग में संदर्भ, तीव्रता या भावनात्मक रंगत का सूक्ष्म भेद होता है। संस्कृत साहित्य में कवियों द्वारा इन सूक्ष्म भेदों का बहुत सौंदर्यपूर्ण प्रयोग किया जाता है।
- ज्ञानम्: विद्या, बोधः, प्रज्ञा, मतिः, चेतना।
- ज्ञानम् सामान्य जानकारी।
- विद्या विशेष अध्ययन या शिक्षा द्वारा प्राप्त ज्ञान।
- प्रज्ञा बुद्धि की गहराई, अंतर्दृष्टि।
- क्रोधः: अमर्षः, रोषः, मन्युः, प्रतिघातः।
- क्रोधः सामान्य गुस्सा।
- अमर्षः अन्याय के प्रति उत्पन्न होने वाला गुस्सा।
- रोषः तीव्र गुस्सा।
- मन्युः दुःख के कारण उत्पन्न गुस्सा।
- युद्धम्: संग्रामः, समरः, आहवः, रणम्, विग्रहः, कलहः।
- युद्धम् एक सामान्य लड़ाई।
- संग्रामः बड़ा, संगठित युद्ध।
- रणम् युद्धभूमि।
- कलहः मौखिक या छोटी लड़ाई।
- हस्तः: करः, पाणिः, बाहुः।
- हस्तः सामान्य हाथ।
- करः देने या करने वाला हाथ (विशेषतः दान में)।
- पाणिः अंजलि या विशेष क्रिया वाला हाथ (जैसे पाणिग्रहणम्)।
- बाहुः भुजा, कंधों से कोहनी तक का हिस्सा।
- शरीरम्: देहः, गात्रम्, वपुः, कलेवरम्, तनुः।
- शरीरम् सामान्य शरीर।
- देहः जीवयुक्त शरीर।
- गात्रम् शरीर का कोई अंग।
- वपुः सुंदर, सुडौल शरीर।
- कलेवरम् मृत शरीर।
3.3 संदर्भ-विशिष्ट पर्यायवाची (Context-Specific Synonyms): कुछ शब्द विशेष संदर्भों या शास्त्रों में भिन्न-भिन्न पर्यायों के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
- गतिः:
- यात्रा के संदर्भ में: गमनम्, प्रयाणम्, यानम्।
- दशा या अवस्था के संदर्भ में: दशा, अवस्था, स्थितिः।
- ज्ञान के संदर्भ में: ज्ञानम्, बोधः, उपलब्धिः।
- कालः:
- समय के संदर्भ में: समयः, वेला, अवसरः, क्षणः।
- मृत्यु के संदर्भ में: मृत्युः, यमः, अन्तकालः।
- देवः:
- सामान्य देवता: सुरः, अमरः, गीर्वाणः, निर्जरः, त्रिदशः।
- भगवान विष्णु: विष्णुः, केशवः, जनार्दनः, चक्रपाणिः, माधवः, नारायणः।
- भगवान शिव: शिवः, शङ्करः, महादेवः, नीलकण्ठः, शम्भुः, चंद्रशेखरः।
3.4 उपसर्गों द्वारा अर्थ-परिवर्तन (Meaning Change through Prefixes): कई बार एक ही मूल धातु से बने विभिन्न शब्द उपसर्गों के कारण पर्यायवाची बन जाते हैं।
- गम् (जाना) से:
- प्रयाणम् (प्र + याणम् – प्रस्थान)
- गमनम् (गम् + ल्युट् – जाना) ये दोनों ‘जाना’ के पर्यायवाची हैं, लेकिन ‘प्रयाणम्’ में ‘आगे की ओर जाना’ का भाव अधिक है।
4. छात्रों के लिए पर्यायवाची शब्दों का महत्व (Importance of Synonyms for Students)
MP Board के विद्यार्थियों के लिए पर्यायवाची शब्दों का ज्ञान कई दृष्टियों से अत्यंत लाभकारी है:
4.1 शब्द-संपदा का विस्तार (Vocabulary Expansion): पर्यायवाची शब्दों को जानने से आपकी संस्कृत शब्दावली कई गुना बढ़ जाती है। एक शब्द के कई विकल्प जानने से आप अपने लेखन और मौखिक अभिव्यक्ति में विविधता ला सकते हैं, जिससे आपकी भाषा अधिक प्रभावशाली बनती है। यह आपको संस्कृत वाक्यों को समझने में भी मदद करता है जहाँ एक ही अवधारणा को विभिन्न शब्दों से व्यक्त किया जा सकता है।
4.2 गहन समझ और अर्थ-बोध (Enhanced Comprehension and Meaning-Making): संस्कृत काव्य और शास्त्र अपने अर्थगत गांभीर्य के लिए प्रसिद्ध हैं। कवि अक्सर अपनी बात को प्रभावी बनाने के लिए या छंद के अनुकूल शब्द खोजने के लिए पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग करते हैं। यदि आप पर्यायों के सूक्ष्म भेदों को समझते हैं, तो आप श्लोकों और गद्यांशों का केवल शाब्दिक अर्थ ही नहीं, बल्कि उनका निहितार्थ (implied meaning) और भावनात्मक रंगत भी समझ पाते हैं। यह आपको अपठित गद्यांशों और पद्यांशों को हल करने में विशेष रूप से सहायक होगा।
4.3 अभिव्यक्ति में सुधार और दोहराव से बचाव (Improved Expression and Avoiding Repetition): जब आपके पास एक ही अर्थ को व्यक्त करने के लिए कई शब्द होते हैं, तो आप लेखन या बातचीत में शब्दों के दोहराव से बच सकते हैं। यह आपकी भाषा को अधिक धाराप्रवाह और रुचिकर बनाता है। उदाहरण के लिए, बार-बार ‘सूर्यः’ कहने के बजाय, आप ‘भानुः’, ‘रविः’, ‘दिवाकरः’ जैसे शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं, जिससे आपकी शैली में निखार आता है।
4.4 परीक्षा में प्रदर्शन में वृद्धि (Improved Exam Performance): जैसा कि पहले उल्लेख किया गया, पर्यायवाची शब्द सीधे प्रश्नों के रूप में आ सकते हैं। इसके अतिरिक्त, अनुवाद, भावार्थ लेखन और सारांश लेखन जैसे प्रश्नों में सही पर्यायवाची का चयन आपके उत्तर की गुणवत्ता को बढ़ाता है और आपको अधिक अंक दिलाने में मदद करता है। संस्कृत से हिंदी या हिंदी से संस्कृत अनुवाद करते समय, समानार्थी शब्दों का ज्ञान एक अनिवार्य उपकरण है।
5. पर्यायवाची शब्द सीखने की रणनीतियाँ (Strategies for Learning Synonyms)
पर्यायवाची शब्दों को प्रभावी ढंग से सीखने और उन्हें याद रखने के लिए कुछ उपयोगी रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं:
5.1 संदर्भ में सीखना (Learning in Context): केवल शब्दों की सूची याद करने के बजाय, उन्हें वाक्यों या श्लोकों के संदर्भ में सीखें। जब आप देखते हैं कि एक विशेष शब्द का प्रयोग किस संदर्भ में और कैसे किया गया है, तो आप उसके सूक्ष्म अर्थ-भेद को बेहतर ढंग से समझते हैं।
- जैसे, ‘जलम्’ के सभी पर्याय ‘वारि, तोयम्, सलिलम्’ को एक साथ देखने के बजाय, विभिन्न श्लोकों में इनके प्रयोग पर ध्यान दें:
- “सलिलम् सलिलं जनम्।” (पानी में पानी को मिलाना)
- “जीवनं तोयम्।” (जीवन जल है)
- “वारि वहति।” (पानी बहता है)
5.2 विश्वसनीय शब्दकोशों/कोश-ग्रंथों का उपयोग (Using Reliable Dictionaries/Lexicons): संस्कृत-हिंदी या संस्कृत-अंग्रेजी शब्दकोशों का नियमित रूप से उपयोग करें। ‘अमरकोश’ जैसे पारंपरिक कोश-ग्रंथ भी पर्यायवाची शब्दों का खजाना हैं, हालांकि उन्हें समझना थोड़ा अधिक प्रयास मांग सकता है।
5.3 अर्थ/विषय के अनुसार समूहीकरण (Grouping by Meaning/Theme): समान अर्थ या विषय से संबंधित पर्यायवाची शब्दों को एक साथ समूहित करें। उदाहरण के लिए, सभी ‘अग्नि’ के पर्यायों को एक साथ, या सभी ‘देवताओं’ के नामों को एक साथ याद करें।
- उदाहरण (स्वर्ग): स्वर्गः, नाकः, त्रिदिवम्, द्यौः, सुरलोकः, दिवम्।
- उदाहरण (पुष्प): पुष्पम्, कुसुमम्, सुमनम्, प्रसूनम्, गुलम्।
5.4 नियमित पुनरावृत्ति (Regular Revision): सीखे हुए पर्यायवाची शब्दों को नियमित रूप से दोहराएँ। फ्लैशकार्ड बनाना, स्वयं का परीक्षण करना या दोस्तों के साथ अभ्यास करना प्रभावी हो सकता है।
5.5 दृश्य-स्मृति का उपयोग (Using Visual Memory): यदि संभव हो, तो पर्यायवाची शब्दों को लिखते समय उनके सामने चित्र या संबंधित दृश्य की कल्पना करें। यह अवचेतन मन में शब्दों को बेहतर ढंग से स्थापित करने में मदद करता है।
5.6 धातु/प्रत्यय आधारित पहचान (Dhatu/Pratyaya Based Identification): जब आप धातुओं और प्रत्ययों का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, तो आप अक्सर मूल धातु या प्रत्यय के आधार पर पर्यायवाची शब्दों की पहचान कर सकते हैं या उनके अर्थ का अनुमान लगा सकते हैं।
- जैसे, ‘कृ’ (करना) धातु से: कार्यम्, कृतिः, क्रिया। ये सभी ‘करने’ से संबंधित हैं।
6. सामान्य गलतियाँ और उनसे बचने के उपाय (Common Mistakes and How to Avoid Them)
पर्यायवाची शब्दों के अध्ययन में कुछ सामान्य गलतियाँ होती हैं जिनसे बचना आवश्यक है:
6.1 पूर्ण समतुल्यता मानना (Assuming Exact Equivalence): सबसे बड़ी गलती यह मान लेना है कि सभी पर्यायवाची शब्दों का अर्थ बिल्कुल समान होता है। जैसा कि पहले बताया गया, अधिकांश पर्यायों में सूक्ष्म अर्थ-भेद होता है। हमेशा संदर्भ पर ध्यान दें।
- गलत प्रयोग: ‘सिंहः’ (शेर) और ‘मृगराजः’ (जानवरों का राजा) दोनों शेर के पर्याय हैं, लेकिन आप हर जगह ‘सिंहः’ के स्थान पर ‘मृगराजः’ का प्रयोग नहीं कर सकते, जब तक कि आप उसके राजसी गुण पर जोर न देना चाहें।
6.2 संदर्भ की अनदेखी (Ignoring Contextual Usage): एक शब्द का पर्यायवाची दूसरे संदर्भ में अनुपयुक्त हो सकता है। उदाहरण के लिए, ‘चक्षुः’ और ‘लोचनम्’ दोनों ‘आँख’ के पर्याय हैं, लेकिन ‘सूर्यस्य लोचनम्’ (सूर्य की आँख) कहना अधिक उपयुक्त है बजाय ‘सूर्यस्य चक्षुः’ के।
6.3 अनावश्यक दोहराव (Unnecessary Repetition): कभी-कभी छात्र एक ही वाक्य में एक ही अर्थ वाले दो या तीन पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग कर देते हैं, जिससे वाक्य अनावश्यक रूप से भारी हो जाता है। इसका उद्देश्य दोहराव से बचना है, न कि उसे बढ़ाना।
बचने के उपाय:
- अधिक पढ़ें: संस्कृत साहित्य, कहानियाँ और सरल पाठ पढ़ने से आपको शब्दों का वास्तविक प्रयोग समझ में आएगा।
- शिक्षक से पूछें: जब भी किसी शब्द के प्रयोग में संदेह हो, तो अपने शिक्षक से स्पष्टीकरण लें।
- शब्दकोश में ‘प्रयोग’ खंड देखें: कई आधुनिक शब्दकोश शब्दों के विभिन्न प्रयोगों और संबंधित मुहावरों का उल्लेख करते हैं।
7. निष्कर्ष (Conclusion): संस्कृत व्याकरण में पर्यायवाची शब्दों की आपकी महारत
पर्यायवाची शब्द संस्कृत भाषा के अलंकार हैं, जो इसकी अभिव्यक्ति को समृद्ध, विविध और सुंदर बनाते हैं। इनका अध्ययन न केवल आपकी शब्द-संपदा को बढ़ाता है, बल्कि आपको संस्कृत के गूढ़ अर्थों और काव्य सौंदर्य को समझने की अंतर्दृष्टि भी प्रदान करता है। MP Board की परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करने के लिए पर्यायवाची शब्दों पर अच्छी पकड़ बनाना अनिवार्य है। धैर्यपूर्वक अभ्यास करें, संदर्भों को समझें और संस्कृत की इस अर्थ-समृद्ध दुनिया का आनंद लें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. संस्कृत में पर्यायवाची शब्द सीखने का सबसे प्रभावी तरीका क्या है? सबसे प्रभावी तरीका है शब्दों को संदर्भ में (वाक्य या श्लोकों में) सीखना और उनके सूक्ष्म अर्थ-भेदों को समझना। केवल सूची याद करने के बजाय, विभिन्न पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग करके वाक्य बनाने या दिए गए वाक्यों में सही पर्यायवाची चुनने का अभ्यास करें। नियमित पुनरावृत्ति और विश्वसनीय शब्दकोशों का उपयोग भी महत्वपूर्ण है।
2. क्या सभी पर्यायवाची शब्द लिंग में समान होते हैं? नहीं, पर्यायवाची शब्द भिन्न-भिन्न लिंगों में हो सकते हैं, भले ही उनका अर्थ समान हो। उदाहरण के लिए:
- अग्निः (पुंल्लिंग) – वह्निः (पुंल्लिंग) – हुताशनः (पुंल्लिंग)
- जलम् (नपुंसक लिंग) – वारि (नपुंसक लिंग) – तोयम् (नपुंसक लिंग)
- पृथ्वी (स्त्रीलिंग) – भूमिः (स्त्रीलिंग) – धरा (स्त्रीलिंग) यह भी संभव है कि एक ही वस्तु के लिए पुंल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसक लिंग में अलग-अलग पर्यायवाची हों। उदाहरणार्थ, ‘कमलम्’ (नपुं), ‘पद्मम्’ (नपुं), ‘अरविंदम्’ (नपुं) होते हुए भी कुछ अन्य पर्याय भिन्न लिंग में मिल सकते हैं, हालांकि सामान्यतः कमल के पर्याय नपुंसक लिंग में ही होते हैं।
3. क्या मुझे सभी 22 उपसर्गों के पर्यायवाची याद रखने होंगे? उपसर्ग स्वयं अव्यय होते हैं, वे किसी शब्द के पर्यायवाची नहीं होते। वे धातुओं के साथ जुड़कर अर्थ बदलते हैं। आपको 22 उपसर्गों के नाम और उनके द्वारा धातुओं के अर्थ में होने वाले सामान्य परिवर्तन याद रखने चाहिए। उपसर्गों के कोई पर्यायवाची नहीं होते, बल्कि वे विभिन्न अर्थों का बोध कराने वाले अव्यय हैं।
4. ‘अनेकार्थी शब्द’ और ‘पर्यायवाची शब्द’ में क्या अंतर है?
- अनेकार्थी शब्द (Polysemous words): एक ही शब्द जिसके कई अलग-अलग अर्थ हों, जो संदर्भ के अनुसार बदलते हैं।
- उदाहरण: हरिः (विष्णु, बंदर, शेर, घोड़ा, सूर्य)।
- पर्यायवाची शब्द (Synonyms): कई अलग-अलग शब्द जिनका अर्थ समान या लगभग समान हो।
- उदाहरण: सूर्यः, रविः, भानुः (ये सभी सूरज का अर्थ देते हैं)। संक्षेप में, अनेकार्थी में एक शब्द, अनेक अर्थ; पर्यायवाची में अनेक शब्द, एक अर्थ।