माता का आँचल: शिवपूजन सहाय द्वारा लिखित प्रश्नोत्तर Krutika Mata Ka Aanchal Shivpujan Sahay Question Answer

Krutika Mata Ka Aanchal Shivpujan Sahay Question Answer

1. प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?

उत्तर: भोलानाथ का अपने पिता से गहरा जुड़ाव होने के बावजूद विपदा के समय माँ की शरण लेने की मुख्य वजह माँ का भावनात्मक आश्रय और जन्मजात संबंध है। पिता भले ही बच्चे के साथ खूब खेलते हों और घुमाते हों, लेकिन भावनात्मक सुरक्षा, कोमलता और असीम ममता का जो भाव माँ के आँचल में मिलता है, वह अद्वितीय होता है। संकट के समय बच्चे को सहज रूप से सबसे अधिक भावनात्मक संबल की आवश्यकता होती है, और यह माँ ही प्रदान कर सकती है। माँ और बच्चे का संबंध गर्भकाल से ही शुरू हो जाता है, जो एक अनकहा और गहरा बंधन बनाता है, यही बंधन विपत्ति में बच्चे को माँ की ओर खींचता है।


2. आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?

उत्तर: भोलानाथ का अपने साथियों को देखकर सिसकना भूल जाने के पीछे बच्चों का सहज स्वभाव और खेल का प्रबल आकर्षण मुख्य कारण है। बच्चों का मन बहुत चंचल होता है और उनका ध्यान आसानी से भटक जाता है। जब भोलानाथ अपने साथियों को खेलते और मस्ती करते देखता है, तो उसका मन भी उस खेल में शामिल होने के लिए उत्सुक हो उठता है। खेल बच्चों के लिए एक बहुत बड़ा आकर्षण होता है, जिसमें उन्हें अपनी दुनिया और आजादी का अनुभव होता है। समूह में रहने की चाह और खेल की उत्तेजना उसे अपने दुख और सिसकी को भुला देती है।


3. आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खाते समय किसी न किसी प्रकार की तुकबंदी करते हैं। आपको यदि अपने खेलों आदि से जुड़ी तुकबंदी याद हो तो लिखिए।

उत्तर: हाँ, मुझे भी अपने बचपन के खेलों से जुड़ी कुछ तुकबंदियाँ याद हैं:

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  • आँख-मिचौली (छुपन-छुपाई) में: अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बो, अस्सी-नब्बे पूरे सौ। सौ में लगा धागा, चोर निकल के भागा।
  • रस्सी कूदते समय: एक लड़की मोटी-मोटी, खाती थी रोज़ रोटी। दौड़ी-दौड़ी स्कूल गई, टीचर ने पूछा, ‘कैसी होटी?’

4. भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर: भोलानाथ और उसके साथियों के खेल तथा खेलने की सामग्री आज के खेलों से प्राकृतिक, कल्पनाशील और शारीरिक होने के कारण भिन्न है:

  • भोलानाथ के खेल: वे धूल, मिट्टी, गोबर, पत्ते, लकड़ी, टूटे-फूटे बर्तन जैसी आसपास उपलब्ध प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करते थे। उनके खेल जैसे मिट्टी के घर बनाना, बारात का स्वांग रचना, खेती करना आदि अत्यधिक कल्पनाशील और रचनात्मक होते थे। ये खेल अधिकांशतः खुले में खेले जाने वाले (आउटडोर) और शारीरिक श्रम वाले होते थे।
  • आज के बच्चों के खेल: आज के बच्चों के खेल अक्सर बाजार से खरीदे गए पूर्वनिर्मित खिलौनों, वीडियो गेम्स, स्मार्टफ़ोन और टैबलेट जैसे गैजेट्स पर आधारित होते हैं। ये खेल अक्सर घर के अंदर (इंडोर) खेले जाते हैं, कम कल्पनाशील होते हैं, और इनमें शारीरिक श्रम कम होता है।

मुख्य भिन्नता यह है कि भोलानाथ के खेल प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित, रचनात्मक और सामूहिक थे, जबकि आज के खेल अधिक तकनीकी, पूर्वनिर्मित और व्यक्तिगत होते जा रहे हैं।


5. पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?

उत्तर: ‘माता का आँचल’ पाठ में कई प्रसंग मन को छू जाते हैं, लेकिन कुछ खास प्रसंग ये हैं:

  • पिता द्वारा भोलानाथ को कंधे पर बिठाकर गंगा स्नान के लिए ले जाना और राम-नाम लिखना: यह प्रसंग पिता और पुत्र के गहरे आत्मीय संबंध, पिता के स्नेह और बच्चे को संस्कार देने की प्रवृत्ति को दर्शाता है। भोलानाथ का अपने पिता के कंधे पर बैठकर घूमना बचपन की मासूमियत और सुरक्षा की भावना को उभारता है।
  • साँप से डरकर माँ के आँचल में दुबक जाना: यह सबसे मार्मिक प्रसंग है। जब भोलानाथ और उसके साथी साँप को देखकर बुरी तरह डर जाते हैं, तो भोलानाथ सीधे अपनी माँ की गोद में जाकर छिप जाता है। इस क्षण माँ का आँचल केवल कपड़ा नहीं, बल्कि सुरक्षा, ममता और असीम शांति का प्रतीक बन जाता है। यह दिखाता है कि विपत्ति के समय माँ का आश्रय ही बच्चे के लिए सबसे बड़ा सहारा होता है।

6. उपन्यास अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं?

उत्तर: ‘माता का आँचल’ में चित्रित तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति और आज की ग्रामीण संस्कृति में कई बड़े परिवर्तन आए हैं:

  • तकनीकी हस्तक्षेप: पहले गाँवों में तकनीक का नाममात्र प्रभाव था, जबकि आज गाँवों में बिजली, मोबाइल फोन, टेलीविजन और इंटरनेट की सुविधाएँ व्यापक हो गई हैं। लोग स्मार्टफ़ोन का उपयोग करते हैं और मनोरंजन के लिए तकनीक पर निर्भर हैं।
  • शिक्षा और जागरूकता: पहले शिक्षा का स्तर कम था। अब गाँवों में स्कूल अधिक हैं, और लोग अपने बच्चों को पढ़ाने के प्रति अधिक जागरूक हुए हैं, जिससे अंधविश्वासों में कमी आई है।
  • परिवहन और संपर्क: पहले शहरों से संपर्क सीमित था। अब पक्की सड़कें बनी हैं और परिवहन बेहतर हुआ है, जिससे ग्रामीण आसानी से शहरों तक पहुँच पाते हैं और शहरी जीवन शैली का प्रभाव भी उन पर पड़ा है।
  • पारंपरिक खेलों में कमी: पहले बच्चे प्राकृतिक सामग्री से बने खेल खेलते थे। अब गाँवों में भी वीडियो गेम्स और मोबाइल गेम्स का प्रचलन बढ़ा है, जिससे पारंपरिक और सामूहिक आउटडोर खेल कम हो गए हैं।
  • संयुक्त परिवार से एकल परिवार की ओर: पहले संयुक्त परिवार प्रथा अधिक थी। अब धीरे-धीरे एकल परिवारों का चलन बढ़ा है, जिससे सामाजिक संरचना में बदलाव आया है।

संक्षेप में, आज की ग्रामीण संस्कृति पहले की तुलना में अधिक आधुनिक, तकनीकी रूप से उन्नत और शहरी जीवन शैली से प्रभावित है, जिससे पारंपरिक मूल्यों और प्रथाओं में बदलाव आया है।


7. पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।

उत्तर:

प्रिय डायरी,

आज मैंने ‘माता का आँचल’ पाठ पढ़ा और सच कहूँ तो मेरा मन बचपन की गलियों में खो गया। भोलानाथ और उसके माता-पिता के बीच का जो प्यार और संबंध था, उसने मुझे अपने मम्मी-पापा की याद दिला दी।

मुझे याद है, कैसे पापा भी मुझे बचपन में कंधे पर बिठाकर घुमाया करते थे। उनका वह मजबूत कंधा मेरे लिए दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह थी। जब मैं छोटा था और किसी बात पर जिद करता था या रोता था, तो पापा मुझे हँसाने के लिए तरह-तरह की बातें करते थे। उनकी गोद में बैठकर कहानियाँ सुनना, वो पल कितने अनमोल थे!

और मम्मी… मम्मी तो बस मम्मी हैं! उनकी ममता का कोई जवाब नहीं। जब भी मैं बीमार पड़ता या कहीं गिर जाता और चोट लग जाती, तो सबसे पहले मम्मी ही दौड़कर आती थीं। उनके हाथों का स्पर्श, उनकी वो मीठी डाँट और फिर वो प्यार भरा सहलाना… आज भी उनकी गोद में सिर रखकर मुझे दुनिया की सारी चिंताएँ भूल जाती हैं। जैसे भोलानाथ साँप से डरकर सीधे माँ के आँचल में जा छिपा, मुझे भी लगता है कि दुनिया में सबसे सुरक्षित जगह मेरी माँ का आँचल ही है।

इस पाठ ने मुझे एहसास कराया कि माता-पिता का प्यार कितना निस्वार्थ और अमूल्य होता है। मुझे लगता है कि मुझे उन्हें और अधिक समय देना चाहिए, उनकी बातों को सुनना चाहिए और उन्हें बताना चाहिए कि मैं उनसे कितना प्यार करता हूँ।

आज का दिन मुझे अपने माता-पिता के प्रति और भी अधिक कृतज्ञ महसूस करा गया।

शुभ रात्रि, [आपका नाम]


8. यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर: ‘माता का आँचल’ पाठ में माता-पिता का बच्चे (भोलानाथ) के प्रति असीम और गहरा वात्सल्य व्यक्त हुआ है।

पिता का वात्सल्य: पिता का प्रेम भोलानाथ के प्रति मित्रवत और सहभागितापूर्ण दिखाई देता है। वे भोलानाथ को सुबह उठाते हैं, साथ में गंगा नहाने जाते हैं, अपने हाथों से खिलाते हैं, और रामनाम बही में राम-नाम लिखवाते हैं। वे उसके बचपन के खेलों में भी उत्साह से शामिल होते हैं, चाहे वह कुश्ती लड़ना हो या बच्चों द्वारा रची गई बारात का खेल देखना। पिता का प्रेम बच्चे को आजादी और सुरक्षा दोनों देता है, जिससे बच्चा उनके साथ खुलकर रह पाता है। वे उसे जीवन के छोटे-छोटे अनुभव और संस्कार भी देते हैं।

माँ का वात्सल्य: माँ का प्रेम ममतामय, सुरक्षात्मक और भावनात्मक है। जहाँ पिता बाहरी दुनिया में बच्चे के साथी हैं, वहीं माँ उसके आंतरिक जगत की पोषणकर्ता है। वह अपने बच्चे को जबरदस्ती पकड़कर तेल लगाती है, काजल लगाती है, और सजाती-संवारती है, भले ही बच्चा रोए। यह उसकी चिंता और देखभाल का प्रतीक है। विपदा के समय, जब भोलानाथ साँप से डरकर चीखता हुआ आता है, तो वह सीधे अपनी माँ की गोद में छिप जाता है। माँ उसे अपने आँचल में छुपाकर सांत्वना और असीम सुरक्षा देती है, उसके आँसू पोंछती है और घावों पर हल्दी लगाती है। यह दर्शाता है कि संकट के समय माँ ही बच्चे का परम आश्रय और भावनात्मक सहारा होती है, जिसकी ममता की कोई सीमा नहीं होती।

संक्षेप में, यह पाठ माता-पिता के वात्सल्य के दो अलग-अलग, पर एक-दूसरे के पूरक रूपों को दर्शाता है – पिता का प्रेम जो खेल और संस्कार के माध्यम से व्यक्त होता है, और माँ की ममता जो भावनात्मक सुरक्षा और निस्वार्थ देखभाल के रूप में प्रकट होती है।


9. माता का अँचल शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।

उत्तर: ‘माता का आँचल’ शीर्षक इस पाठ के लिए अत्यंत उपयुक्त और सार्थक है। इसकी उपयुक्तता निम्नलिखित कारणों से है:

  • केंद्रीय भाव: कहानी का केंद्रीय भाव माँ की ममता और बच्चे के लिए उसकी गोद की सुरक्षा है। भले ही बच्चे का पिता से अधिक जुड़ाव दिखाया गया है, लेकिन संकट की घड़ी में बच्चा अंततः माँ की शरण में ही जाता है, जो यह दर्शाता है कि माँ का आँचल ही परम आश्रय है।
  • प्रतीकात्मकता: ‘आँचल’ शब्द केवल कपड़े का टुकड़ा नहीं, बल्कि प्रेम, सुरक्षा, ममता, शांति और निस्वार्थता का प्रतीक है। यह शीर्षक पाठक के मन में भावनात्मक जुड़ाव पैदा करता है।
  • सारगर्भिता: यह शीर्षक पूरी कहानी के सार को एक ही वाक्यांश में समेट लेता है, खासकर कहानी के अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण प्रसंग को।

कोई अन्य शीर्षक:

इस पाठ के लिए एक अन्य उपयुक्त शीर्षक “बचपन और माँ की छाँव” हो सकता है।

  • यह शीर्षक कहानी के दो प्रमुख तत्वों को दर्शाता है: बचपन की दुनिया (खेल, पिता के साथ संबंध, शरारतें) और माँ की छाँव (माँ का सुरक्षात्मक और ममतामय प्रेम)।
  • ‘छाँव’ शब्द भी ‘आँचल’ की तरह ही सुरक्षा, सुकून और आश्रय का भाव लिए हुए है, जो कहानी के मूल संदेश को व्यक्त करता है।

10. बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?

उत्तर: बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कई सहज और मासूम तरीकों से अभिव्यक्त करते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख तरीके ये हैं:

  • उनकी नकल करना: बच्चे अक्सर अपने माता-पिता की आदतों और व्यवहार की नकल करते हैं। यह नकल करना उनके प्रेम और प्रशंसा का ही एक तरीका है, जैसे भोलानाथ का अपने पिता की तरह पूजन करना।
  • उनके साथ समय बिताना: बच्चे माता-पिता के साथ खेलना, बातें करना या बस उनके पास बैठे रहना पसंद करते हैं। यह उनकी उपस्थिति को महत्व देने और उनके साथ भावनात्मक जुड़ाव महसूस करने का तरीका है।
  • उनकी हर बात मानना (अक्सर): भले ही बच्चे कभी-कभी जिद करें, लेकिन आमतौर पर वे अपने माता-पिता की बात मानते हैं, क्योंकि वे उन्हें खुश देखना चाहते हैं।
  • छोटी-छोटी मदद करना: बच्चे अपनी क्षमता अनुसार माता-पिता की मदद करने की कोशिश करते हैं, जैसे चीजें उठाकर देना या छोटे-मोटे काम करना। यह उनका प्रेम और सहयोग व्यक्त करने का तरीका है।
  • शारीरिक स्पर्श: गले लगाना, चूमना, हाथ पकड़ना या बस उनके पास चिपककर बैठना, बच्चों के प्रेम व्यक्त करने के सबसे सीधे और स्वाभाविक तरीके हैं। भोलानाथ का साँप से डरकर माँ के आँचल में दुबक जाना, चरम प्रेम और भरोसे की अभिव्यक्ति है।
  • अपनी बातें साझा करना: बच्चे अपने दिन भर की घटनाओं, खुशियों और समस्याओं को माता-पिता के साथ साझा करते हैं, जो उनके विश्वास और प्रेम को दर्शाता है।
  • उनका बचाव करना: जब कोई माता-पिता को डाँटता है या उनके बारे में कुछ बुरा कहता है, तो बच्चे अक्सर उनका बचाव करने की कोशिश करते हैं।

11. इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?

उत्तर: ‘माता का आँचल’ पाठ में तीस के दशक के ग्रामीण बचपन की दुनिया का चित्रण है, जो मेरे (आज के) बचपन की दुनिया से काफी भिन्न है:

  • खेल और खेल सामग्री:
    • पाठ की दुनिया: बच्चे प्राकृतिक चीजों जैसे मिट्टी, गोबर, लकड़ी, पत्तों, टूटे-फूटे बर्तनों से खेलते थे। उनके खेल कल्पनाशील और रचनात्मक थे (मिट्टी के घर बनाना, बारात का खेल, खेती करना)। ये खेल मुख्य रूप से बाहर खुले में खेले जाते थे।
    • मेरी दुनिया: मेरे बचपन में पूर्वनिर्मित प्लास्टिक के खिलौने, वीडियो गेम्स, मोबाइल गेम्स और कंप्यूटर/टैबलेट का बोलबाला था। खेल अक्सर घर के अंदर (इंडोर) खेले जाते थे और उनमें कल्पनाशीलता की गुंजाइश कम थी, क्योंकि नियम पहले से तय होते थे।
  • प्रकृति से जुड़ाव:
    • पाठ की दुनिया: बच्चे प्रकृति के बेहद करीब थे। वे नदी, पेड़-पौधे, जानवर और खेतों के बीच बड़े होते थे। उनका जीवन प्रकृति के साथ घुलमिल कर चलता था।
    • मेरी दुनिया: मेरा बचपन शहरों या कस्बों में बीता, जहाँ प्रकृति से सीधा जुड़ाव कम था। पार्क या खेल का मैदान होता था, पर खेतों, नदियों और गाँव की खुली हवा का अनुभव नहीं था।
  • सामाजिक परिवेश और समूह खेल:
    • पाठ की दुनिया: बच्चे एक बड़े समूह में और अपने पड़ोस के दोस्तों के साथ खेलते थे। सामुदायिक भावना प्रबल थी। बड़ों का बच्चों के खेलों में भी सहज हस्तक्षेप और भागीदारी होती थी।
    • मेरी दुनिया: मेरे बचपन में दोस्तों का दायरा अक्सर स्कूल तक सीमित रहता था। सामूहिक खेल कम होते गए और व्यक्तिगत या छोटे समूह वाले खेल अधिक प्रचलित हुए। माता-पिता की निगरानी अधिक होती थी।
  • साधारण जीवन शैली:
    • पाठ की दुनिया: जीवन शैली बहुत सादगीपूर्ण थी। मनोरंजन के साधन सीमित थे और बच्चे अपने आसपास की चीजों से ही खुशी ढूंढ लेते थे।
    • मेरी दुनिया: जीवन शैली अधिक आधुनिक और सुविधासंपन्न थी। मनोरंजन के अनेक साधन (टीवी, इंटरनेट) उपलब्ध थे, जिससे सादगी और प्राकृतिक आनंद की कमी महसूस होती थी।

संक्षेप में, पाठ में वर्णित बचपन अधिक प्राकृतिक, सामूहिक और कल्पनाशील था, जबकि मेरा बचपन अधिक तकनीकी, व्यक्तिगत और सुविधा-केंद्रित रहा है।


12. फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आंचलिक रचनाओं को पढ़िए।

उत्तर: फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन हिंदी साहित्य के दो प्रमुख आंचलिक साहित्यकार हैं। आंचलिक साहित्य वह होता है जो किसी विशेष अंचल (क्षेत्र) की बोली, रीति-रिवाजों, संस्कृति, लोक-जीवन और समस्याओं को अपनी रचनाओं का आधार बनाता है। इनकी रचनाएँ पढ़कर आप भारत के ग्रामीण और क्षेत्रीय जीवन को गहराई से समझ सकते हैं।

यहाँ उनकी कुछ प्रमुख आंचलिक रचनाएँ दी गई हैं, जिन्हें आप पढ़ सकते हैं:

फणीश्वरनाथ रेणु की आंचलिक रचनाएँ:

  • मैला आँचल: यह हिंदी का पहला और सबसे प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यास माना जाता है। यह बिहार के पूर्णिया जिले के मेरीगंज नामक एक काल्पनिक गाँव की कहानी है, जो स्वातंत्र्योत्तर भारत के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तनों को दर्शाता है। इसमें ग्रामीण जीवन की समस्याओं, अंधविश्वासों और विभिन्न जातियों के संघर्ष का सजीव चित्रण है।
  • परती परिकथा: यह भी एक आंचलिक उपन्यास है जो कोसी नदी के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र और वहाँ के जनजीवन का वर्णन करता है।
  • तीसरी कसम (उर्फ मारे गए गुलफाम): यह एक प्रसिद्ध कहानी संग्रह है, जिसकी “तीसरी कसम” कहानी पर फिल्म भी बनी है। इसमें भी ग्रामीण परिवेश और उसके भोले-भाले चरित्रों का मर्मस्पर्शी चित्रण है।
  • अग्निखोर: यह भी एक कहानी संग्रह है जिसमें ग्रामीण जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया गया है।

नागार्जुन की आंचलिक रचनाएँ:

  • बलचनमा: यह नागार्जुन का एक महत्वपूर्ण आंचलिक उपन्यास है जो बिहार के ग्रामीण जीवन, सामंती व्यवस्था और शोषण को दर्शाता है। यह एक बालक ‘बलचनमा’ के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती कहानी है।
  • रतिनाथ की चाची: यह भी एक आंचलिक उपन्यास है जो ग्रामीण समाज और उसकी रूढ़ियों, रिश्तों तथा समस्याओं पर प्रकाश डालता है।
  • बाबा बटेसरनाथ: यह उपन्यास एक वट वृक्ष के माध्यम से ग्रामीण जीवन के बदलावों और पुरानी पीढ़ियों के संघर्ष को दर्शाता है।
  • वरुण के बेटे: यह मिथिलांचल के मछुआरों के जीवन और उनके संघर्षों पर आधारित आंचलिक उपन्यास है।

इन रचनाओं को पढ़कर आपको भारत के ग्रामीण अंचलों की विविधता, वहाँ की बोली, रीति-रिवाजों और लोगों के जीवन-संघर्ष की गहरी समझ मिलेगी।

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