छंद: परिचय एवं प्रकार (सोरठा, कवित्त, सवैया एवं रुबाइयाँ)
Hindi Chhand Soratha kavitta Savaiya Rubaiya : हिंदी काव्यशास्त्र में ‘छंद’ एक महत्वपूर्ण अंग है, जो कविता को एक लय, गति और संगीतात्मकता प्रदान करता है। मध्य प्रदेश बोर्ड कक्षा 12वीं के छात्रों के लिए ‘छंद’ का विस्तृत परिचय, उसके प्रकार और आपके द्वारा पूछे गए विशिष्ट छंदों के उदाहरण सहित एक संपूर्ण आलेख यहाँ प्रस्तुत है:
छंद: काव्य का अनुशासन और संगीतमय प्रवाह
1. छंद का परिचय (परिभाषा एवं महत्व)
छंद का शाब्दिक अर्थ है ‘बंधन’ या ‘नियम’। काव्य में वर्णों (अक्षरों) या मात्राओं की संख्या, क्रम, गति (प्रवाह), यति (विराम) और तुक (अंतिम ध्वनि की समानता) के निश्चित नियमों के अनुसार की गई रचना को छंद कहते हैं। छंद कविता को एक विशिष्ट लय और संगीत प्रदान करता है, जिससे वह अधिक आकर्षक और स्मरणीय बनती है। यह काव्य को अनुशासन में बांधकर उसे एक निश्चित ढाँचा देता है।
छंद के प्रमुख अंग:
- वर्ण (Letter): अक्षर। ये दो प्रकार के होते हैं:
- लघु (I): एक मात्रा का वर्ण (अ, इ, उ, ऋ, क, ख, ग, आदि)। इसका चिह्न ‘I’ होता है।
- गुरु (S): दो मात्रा का वर्ण (आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः)। इसका चिह्न ‘S’ होता है। संयुक्त अक्षर के पूर्व का लघु वर्ण गुरु हो जाता है, यदि वह संयुक्त अक्षर के साथ बोला जाए।
- मात्रा (Mora): किसी वर्ण के उच्चारण में लगने वाला समय। लघु वर्ण की एक मात्रा और गुरु वर्ण की दो मात्राएँ होती हैं।
- यति (Pause): छंद को पढ़ते समय जहाँ ठहराव या विराम आता है, उसे यति कहते हैं।
- गति (Rhythm): छंद के पढ़ने का स्वाभाविक प्रवाह या लय।
- तुक (Rhyme): छंद के चरणों के अंत में वर्णों की समानता।
- चरण (Foot/Line): छंद की एक पंक्ति को चरण कहते हैं। सामान्यतः एक छंद में चार चरण होते हैं।
2. छंद के प्रकार
छंदों को मुख्य रूप से उनकी रचना के आधार पर तीन वर्गों में बांटा गया है:
- मातृक छंद (Matrik Chhand):
- इन छंदों की रचना मात्राओं की गणना के आधार पर होती है। इसमें वर्णों की संख्या निश्चित नहीं होती, केवल मात्राओं की संख्या का नियम होता है।
- उदाहरण: दोहा, सोरठा, चौपाई, रोला, हरिगीतिका, गीतिका आदि।
- वार्णिक छंद (Varnik Chhand):
- इन छंदों की रचना वर्णों की गणना (वर्णों की संख्या और उनका क्रम) के आधार पर होती है। इसमें मात्राओं की संख्या निश्चित नहीं होती। इसमें गणों (तीन वर्णों का समूह) का विशेष महत्व होता है।
- उदाहरण: कवित्त, सवैया, इंद्रवज्रा, उपेंद्रवज्रा आदि।
- मुक्त छंद (Mukt Chhand):
- इन छंदों में मात्राओं या वर्णों की संख्या का कोई बंधन नहीं होता। ये सभी बंधनों से मुक्त होते हैं और कवि अपनी इच्छानुसार लय और प्रवाह को नियंत्रित करता है।
- उदाहरण: आधुनिक कविताएँ।
आपके द्वारा पूछे गए विशिष्ट छंद (Detailed Alankars)
- सोरठा (Soratha)
- भेद: मातृक छंद (अर्ध-सम मातृक छंद)
- पहचान/विशेषताएँ:
- यह दोहे का उल्टा होता है।
- इसके चार चरण होते हैं।
- पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
- दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
- सम चरणों (दूसरे और चौथे) के अंत में तुक मिलती है।
- उदाहरण:
- जो सुमिरत सिधि होइ, (I I I I I I S I = 11 मात्राएँ)
- गननायक करिबर बदन। (I I S I I I I I S = 13 मात्राएँ)
- करहु अनुग्रह सोइ, (I I I I I S I = 11 मात्राएँ)
- बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।। (I I S I I I I I I = 13 मात्राएँ)
- कवित्त (Kavitt)
- भेद: वार्णिक छंद (दंडक वार्णिक छंद)
- पहचान/विशेषताएँ:
- यह एक दंडक वार्णिक छंद है, जिसमें वर्णों की संख्या पर बल दिया जाता है।
- इसके चार चरण होते हैं।
- प्रत्येक चरण में 31 से 33 वर्ण होते हैं।
- प्रत्येक चरण के अंत में गुरु (S) वर्ण का होना अनिवार्य है।
- इसमें 16 और 15 वर्णों पर यति (विराम) होती है।
- भावों की गंभीर अभिव्यक्ति के लिए कवित्त का प्रयोग होता है।
- उदाहरण:
- सेस महेस गनेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरन्तर गावैं।
- जाहि अनादि अनंत अखण्ड अछेद अभेद सुबेद बतावैं।।
- नारद से सुक व्यास रटें पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं।
- ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पे नाच नचावैं।। (यहाँ प्रत्येक चरण में 31 वर्ण हैं और अंत में गुरु है।)
- सवैया (Savaiya)
- भेद: वार्णिक छंद
- पहचान/विशेषताएँ:
- यह भी एक वार्णिक छंद है, जिसमें 22 से 26 वर्ण प्रति चरण होते हैं।
- इसके कई प्रकार होते हैं (जैसे मत्तगयंद सवैया, किरीट सवैया, दुर्मिल सवैया आदि) जो गणों के क्रम और वर्ण संख्या में भिन्न होते हैं।
- इसका प्रयोग भक्ति और रीतिकाल के कवियों ने खूब किया है।
- यह मधुरता और प्रवाह के लिए जाना जाता है।
- उदाहरण (मत्तगयंद सवैया – 23 वर्ण प्रति चरण):
- भोरहिं ते निकसै ब्रजबालन, लीन्हें फिरे सिर पै दधि-भारो।
- कान्ह अहे निकसै मग रोकत, बोलत बोल रसाल तिहारो।।
- कोउ न मानत है, अरु ग्वारिन, मारत नैन हँसै रससारो।
- बाँह गहे अँकवार भरे अँत, सोहत साँवरो नंद को लारो।। (यहाँ प्रत्येक चरण में 23 वर्ण हैं।)
- रुबाइयाँ (Rubaiyan)
- भेद: वार्णिक छंद (उर्दू/फारसी से हिंदी में आया)
- पहचान/विशेषताएँ:
- यह मूलतः फारसी और उर्दू का छंद है जो बाद में हिंदी में भी प्रचलित हुआ।
- यह चार पंक्तियों (चरणों) का छंद होता है।
- इसकी पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति में तुक (लय) मिलती है जबकि तीसरी पंक्ति स्वतंत्र होती है (अ-अ-ब-अ)।
- इसमें गहन भाव, दर्शन, या जीवन के किसी सत्य को संक्षेप में व्यक्त किया जाता है।
- इसमें प्रत्येक पंक्ति में मात्राओं या वर्णों का निश्चित क्रम और संख्या होती है जो फारसी के ‘हज़ज’ बहर पर आधारित होती है।
- उदाहरण (फिराक गोरखपुरी की रुबाई):
- आँगन में ठुनक रहा है जिदियाया है।
- बालक तो चाँद पे ललचाया है।
- दर्पण उसे देके कहा माँ ने देख।
- चाँद उतर आया है आँगन में। (यहाँ ‘जिदियाया है’, ‘ललचाया है’ और ‘आँगन में’ में तुक मिल रही है, जबकि तीसरी पंक्ति ‘देख’ स्वतंत्र है।)
कुछ अन्य महत्वपूर्ण छंद (Other Important Chhands)
- दोहा (Doha):
- भेद: मातृक छंद (अर्ध-सम मातृक छंद)
- पहचान: चार चरण। पहले और तीसरे में 13-13 मात्राएँ, दूसरे और चौथे में 11-11 मात्राएँ। सम चरणों के अंत में तुक।
- उदाहरण: “रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। <br> पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।”
- चौपाई (Chaupai):
- भेद: मातृक छंद (सम मातृक छंद)
- पहचान: चार चरण। प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ। चरणों के अंत में तुक।
- उदाहरण: “मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सो दसरथ अजिर बिहारी।।”
- हरिगीतिका (Harigitika):
- भेद: मातृक छंद (सम मातृक छंद)
- पहचान: चार चरण। प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ। 16 और 12 मात्राओं पर यति। अंत में लघु-गुरु (IS) होना अनिवार्य।
- उदाहरण: “कहते हुए यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए। <br> हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए।।”
- गीतिका (Gitika):
- भेद: मातृक छंद (सम मातृक छंद)
- पहचान: चार चरण। प्रत्येक चरण में 26 मात्राएँ। 14 और 12 मात्राओं पर यति। अंत में लघु-गुरु (IS) होना अनिवार्य।
- उदाहरण: “हे प्रभु आनंददाता! ज्ञान हमको दीजिए। <br> शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए।।”
छंद: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्र1: छंद का काव्य में क्या महत्व है?
उ1: छंद काव्य को लय, गति, संगीतात्मकता और सौंदर्य प्रदान करते हैं। वे कविता को गेय बनाते हैं, उसे याद रखने में आसान बनाते हैं और कवि के भावों को अधिक प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने में मदद करते हैं।
प्र2: ‘मात्रा गिनना’ कैसे सीखें?
उ2: मात्रा गिनने के लिए दो नियम याद रखें:
- लघु वर्ण (I): अ, इ, उ, ऋ, क, ख, ग… आदि (अकेले स्वर या व्यंजन)। इनकी एक मात्रा होती है।
- गुरु वर्ण (S): आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः (दीर्घ स्वर या अनुस्वार/विसर्ग सहित)। इनकी दो मात्राएँ होती हैं।
- संयुक्त अक्षर (जैसे ‘कक्षा’ में ‘क्ष’) से ठीक पहले वाला लघु वर्ण (जैसे ‘क’) गुरु (S) हो जाता है, यदि उस पर बल पड़ रहा हो।
प्र3: मातृक छंद और वार्णिक छंद में मुख्य अंतर क्या है?
उ3: मातृक छंद में मात्राओं की संख्या निश्चित होती है, जबकि वर्णों की संख्या निश्चित नहीं होती। वार्णिक छंद में वर्णों की संख्या और उनका क्रम (गणों के अनुसार) निश्चित होता है, मात्राओं की संख्या निश्चित नहीं होती।
प्र4: परीक्षा में छंद से संबंधित किस प्रकार के प्रश्न आते हैं?
उ4: परीक्षा में निम्नलिखित प्रकार के प्रश्न आ सकते हैं:
- छंद की परिभाषा लिखिए।
- छंद के अंगों के नाम लिखिए।
- किसी विशिष्ट छंद (जैसे सोरठा, कवित्त) की परिभाषा/विशेषताएँ लिखिए और उदाहरण दीजिए।
- दी गई पंक्तियों में छंद पहचानिए और उसकी विशेषताएँ बताइए।
- उदाहरण देकर मात्राएँ/वर्ण गिनने के लिए भी कहा जा सकता है।
प्र5: क्या सभी छंदों के उदाहरण याद रखना आवश्यक है?
उ5: प्रत्येक प्रमुख छंद (विशेषकर जो आपके पाठ्यक्रम में हैं) की परिभाषा/विशेषताएँ और कम से कम एक सटीक उदाहरण याद रखना अत्यंत आवश्यक है। उदाहरण ऐसा हो जो उस छंद की पहचान को स्पष्ट करता हो।
छंद: महत्वपूर्ण बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) – उत्तर सहित
प्रश्न 1: छंद का शाब्दिक अर्थ क्या है?
(अ) संगीत
(ब) बंधन
(स) गति
(द) आनंद
उत्तर: (ब) बंधन
प्रश्न 2: किसी वर्ण के उच्चारण में लगने वाला समय क्या कहलाता है?
(अ) यति
(ब) गति
(स) मात्रा
(द) तुक
उत्तर: (स) मात्रा
प्रश्न 3: लघु वर्ण का चिह्न क्या होता है?
(अ) S
(ब) I
(स) +
(द) X
उत्तर: (ब) I
प्रश्न 4: छंद को पढ़ते समय जहाँ ठहराव या विराम आता है, उसे क्या कहते हैं?
(अ) गति
(ब) तुक
(स) चरण
(द) यति
उत्तर: (द) यति
प्रश्न 5: छंद की एक पंक्ति को क्या कहते हैं?
(अ) पद
(ब) चरण
(स) यति
(द) तुक
उत्तर: (ब) चरण
प्रश्न 6: जिन छंदों की रचना मात्राओं की गणना के आधार पर होती है, वे क्या कहलाते हैं?
(अ) वार्णिक छंद
(ब) मातृक छंद
(स) मुक्त छंद
(द) गणिक छंद
उत्तर: (ब) मातृक छंद
प्रश्न 7: जिन छंदों में वर्णों की संख्या और उनका क्रम निश्चित होता है, वे क्या कहलाते हैं?
(अ) मातृक छंद
(ब) वार्णिक छंद
(स) मुक्त छंद
(द) पद छंद
उत्तर: (ब) वार्णिक छंद
प्रश्न 8: ‘दोहा’ किस प्रकार का छंद है?
(अ) वार्णिक छंद
(ब) मातृक छंद
(स) मुक्त छंद
(द) विषम छंद
उत्तर: (ब) मातृक छंद
प्रश्न 9: ‘सोरठा’ छंद के पहले और तीसरे चरण में कितनी मात्राएँ होती हैं?
(अ) 13-13
(ब) 11-11
(स) 16-16
(द) 28-28
उत्तर: (ब) 11-11
प्रश्न 10: ‘सोरठा’ छंद किस छंद का उल्टा होता है?
(अ) चौपाई
(ब) रोला
(स) दोहा
(द) हरिगीतिका
उत्तर: (स) दोहा
प्रश्न 11: ‘कवित्त’ छंद के प्रत्येक चरण में कितने वर्ण होते हैं?
(अ) 22-26
(ब) 16-16
(स) 31-33
(द) 28-28
उत्तर: (स) 31-33
प्रश्न 12: ‘कवित्त’ छंद किस प्रकार का छंद है?
(अ) मातृक छंद
(ब) वार्णिक छंद
(स) मुक्त छंद
(द) विषम छंद
उत्तर: (ब) वार्णिक छंद
प्रश्न 13: ‘सवैया’ छंद के प्रत्येक चरण में सामान्यतः कितने वर्ण होते हैं?
(अ) 16-16
(ब) 28-28
(स) 11-13
(द) 22-26
उत्तर: (द) 22-26
प्रश्न 14: ‘रुबाइयाँ’ छंद में कितनी पंक्तियाँ होती हैं?
(अ) दो
(ब) तीन
(स) चार
(द) पाँच
उत्तर: (स) चार
प्रश्न 15: ‘रुबाइयाँ’ छंद की कौन सी पंक्तियों में तुक मिलती है?
(अ) पहली और तीसरी
(ब) दूसरी और चौथी
(स) तीसरी और चौथी
(द) पहली, दूसरी और चौथी
उत्तर: (द) पहली, दूसरी और चौथी
प्रश्न 16: ‘चौपाई’ छंद के प्रत्येक चरण में कितनी मात्राएँ होती हैं?
(अ) 11
(ब) 13
(स) 16
(द) 28
उत्तर: (स) 16
प्रश्न 17: ‘हरिगीतिका’ छंद के प्रत्येक चरण में कितनी मात्राएँ होती हैं?
(अ) 16
(ब) 24
(स) 28
(द) 31
उत्तर: (स) 28
प्रश्न 18: “जो सुमिरत सिधि होइ, गननायक करिबर बदन।” – इन पंक्तियों में कौन सा छंद है?
(अ) दोहा
(ब) सोरठा
(स) चौपाई
(द) रोला
उत्तर: (ब) सोरठा
प्रश्न 19: “मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सो दसरथ अजिर बिहारी।।” – इन पंक्तियों में कौन सा छंद है?
(अ) दोहा
(ब) सोरठा
(स) चौपाई
(द) रोला
उत्तर: (स) चौपाई
प्रश्न 20: ‘मुक्त छंद’ की प्रमुख विशेषता क्या है?
(अ) मात्राओं की निश्चित संख्या
(ब) वर्णों का निश्चित क्रम
(स) चरणों का निश्चित होना
(द) कोई निश्चित बंधन न होना
उत्तर: (द) कोई निश्चित बंधन न होना