Effect on Soil and Crop by Drainage :
जल निकास का मृदा और फसल पर प्रभाव
Effect on Soil and Crop by Drainage : जल निकास (Drainage) खेत से अतिरिक्त पानी को हटाने की प्रक्रिया है। यह भूमि की उत्पादकता बनाए रखने और फसल की स्वस्थ वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। इसके मृदा और फसल पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं:
मृदा (मिट्टी) पर प्रभाव:
सकारात्मक प्रभाव:
- वायु संचार में सुधार (Improved Aeration): जब मिट्टी में पानी भर जाता है, तो मिट्टी के कणों के बीच की हवा बाहर निकल जाती है। जल निकास से अतिरिक्त पानी हट जाता है, जिससे मिट्टी में हवा का संचार बेहतर होता है। यह पौधों की जड़ों को ऑक्सीजन प्रदान करने के लिए आवश्यक है, जो उनकी श्वसन क्रिया के लिए महत्वपूर्ण है।
- मृदा तापक्रम में वृद्धि (Increased Soil Temperature): जल-भराव वाली मिट्टी ठंडी रहती है क्योंकि पानी की विशिष्ट ऊष्मा अधिक होती है। जल निकास से मिट्टी सूखती है और तेजी से गर्म होती है, जिससे वसंत ऋतु में बुवाई जल्दी की जा सकती है और पौधों की वृद्धि के लिए अनुकूल वातावरण बनता है।
- सूक्ष्मजीवों की गतिविधि में वृद्धि (Enhanced Microbial Activity): मिट्टी में मौजूद लाभकारी सूक्ष्मजीवों को सक्रिय रहने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। उचित जल निकास से ऑक्सीजन की उपलब्धता बढ़ती है, जिससे ये सूक्ष्मजीव जैविक पदार्थ के विघटन और पोषक तत्वों के चक्रण में अधिक प्रभावी होते हैं।
- मृदा संरचना में सुधार (Improved Soil Structure): जल-भराव से मिट्टी के कण एक साथ चिपक जाते हैं, जिससे मिट्टी की संरचना खराब हो जाती है। जल निकास से मिट्टी की ढीली और दानेदार संरचना बनी रहती है, जिससे जड़ों का विकास आसान होता है और पानी का उचित संचलन होता है।
- लवणता नियंत्रण (Salinity Control): खराब जल निकास वाले क्षेत्रों में, पानी के वाष्पीकरण से मिट्टी की सतह पर लवण जमा हो जाते हैं, जिससे मिट्टी लवणीय हो जाती है। उचित जल निकास से अतिरिक्त पानी के साथ इन लवणों को जड़ क्षेत्र से नीचे या बाहर निकाला जा सकता है, जिससे मिट्टी की लवणता कम होती है।
- पोषक तत्वों की उपलब्धता में सुधार (Improved Nutrient Availability): अच्छी तरह से निकासित मिट्टी में पोषक तत्व पौधों के लिए अधिक उपलब्ध होते हैं, क्योंकि उचित वायु संचार से पोषक तत्वों का ऑक्सीकरण और उनकी घुलनशीलता बढ़ती है।
नकारात्मक प्रभाव (यदि अत्यधिक या अनुचित जल निकास हो):
- पोषक तत्वों का निक्षालन (Nutrient Leaching): यदि जल निकास अत्यधिक हो, विशेष रूप से हल्की या बलुई मिट्टी में, तो पानी के साथ आवश्यक पोषक तत्व (जैसे नाइट्रोजन) जड़ क्षेत्र से नीचे रिस सकते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता कम हो सकती है।
- मृदा कटाव (Soil Erosion): सतही जल निकास प्रणालियों (जैसे खुली नालियां) में यदि ढलान बहुत अधिक हो या पानी का वेग तेज हो, तो मिट्टी का कटाव हो सकता है।
- मृदा में जैविक पदार्थ की कमी (Loss of Organic Matter): कुछ मामलों में, अत्यधिक जल निकास से जैविक पदार्थ के अपघटन की दर बढ़ सकती है, जिससे मिट्टी में जैविक पदार्थ की कमी हो सकती है।
फसल पर प्रभाव:
सकारात्मक प्रभाव:
- स्वस्थ जड़ विकास (Healthy Root Development): जल-भराव वाली मिट्टी में ऑक्सीजन की कमी के कारण जड़ें सड़ने लगती हैं या उनका विकास रुक जाता है। उचित जल निकास से जड़ें गहराई तक फैल पाती हैं, जिससे वे अधिक पानी और पोषक तत्वों को अवशोषित कर पाती हैं।
- बढ़ी हुई उपज (Increased Yield): स्वस्थ जड़ों, बेहतर पोषक तत्व उपलब्धता और अनुकूल मिट्टी के वातावरण के कारण फसल की वृद्धि अच्छी होती है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च पैदावार मिलती है।
- फसल के रोगों में कमी (Reduced Crop Diseases): कई फंगल और बैक्टीरियल रोग जल-भराव वाली परिस्थितियों में पनपते हैं। उचित जल निकास ऐसे रोगों के प्रसार को कम करता है।
- समय पर बुवाई और कटाई (Timely Sowing and Harvesting): अच्छी तरह से निकासित खेत जल्दी सूख जाते हैं, जिससे किसानों को समय पर बुवाई, निराई-गुड़ाई और कटाई जैसे कृषि कार्य करने में आसानी होती है।
- खरपतवारों का नियंत्रण (Weed Control): कुछ खरपतवार प्रजातियां जल-भराव वाली परिस्थितियों में पनपती हैं। जल निकास से ऐसी खरपतवारों की वृद्धि नियंत्रित होती है।
- सूखे के प्रति बेहतर सहनशीलता (Improved Drought Tolerance): जब जड़ें गहराई तक विकसित होती हैं, तो वे सूखे की स्थिति में भी मिट्टी की निचली परतों से पानी प्राप्त कर पाती हैं, जिससे फसल की सूखे के प्रति सहनशीलता बढ़ती है।
नकारात्मक प्रभाव (यदि अत्यधिक या अनुचित जल निकास हो):
- फसल को पानी की कमी (Water Scarcity for Crops): यदि जल निकास अत्यधिक या अनावश्यक हो, तो यह पौधों के लिए उपलब्ध पानी की मात्रा को कम कर सकता है, खासकर शुष्क या अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में जहां पानी की कमी एक समस्या है। इससे फसल पर सूखे का तनाव बढ़ सकता है।
- पौधों का मुरझाना (Wilting of Plants): यदि मिट्टी बहुत जल्दी सूख जाती है, तो पौधे मुरझा सकते हैं, जिससे उनकी वृद्धि और उपज प्रभावित हो सकती है।
- पोषक तत्वों की कमी (Nutrient Deficiency): जैसा कि मृदा पर प्रभाव में बताया गया है, अत्यधिक निक्षालन से पौधों के लिए पोषक तत्वों की कमी हो सकती है, जिससे विकास बाधित होता है।
निष्कर्ष:
संक्षेप में, जल निकास एक महत्वपूर्ण कृषि अभ्यास है जो मिट्टी की भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में सुधार करके और फसल को एक स्वस्थ वातावरण प्रदान करके कृषि उत्पादकता को बढ़ाता है। हालांकि, इसकी योजना और कार्यान्वयन करते समय मिट्टी के प्रकार, फसल की आवश्यकता और पर्यावरणीय कारकों को ध्यान में रखना आवश्यक है ताकि इसके अधिकतम लाभ प्राप्त किए जा सकें और संभावित नकारात्मक प्रभावों से बचा जा सके।