आवश्यक पोषक तत्वों का वर्गीकरण Classification of Necessary Nutrients Primary Secondary and Micronutrients

आवश्यक पोषक तत्वों का वर्गीकरण

Classification of Necessary Nutrients Primary Secondary and Micronutrients

Classification of Necessary Nutrients Primary Secondary and Micronutrients: पौधों को अपनी वृद्धि, विकास और जीवन चक्र को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए 17 आवश्यक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इन पोषक तत्वों को उनकी आवश्यकता की मात्रा के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। Primary Nutrients वे पोषक तत्व हैं जिनकी पौधों को सबसे अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है, जिनमें नाइट्रोजन (N), फास्फोरस (P), और पोटैशियम (K) शामिल हैं; ये अक्सर मिट्टी में कम पाए जाते हैं और फसल की अच्छी पैदावार के लिए इनकी बाहरी पूर्ति आवश्यक होती है। Secondary Nutrients की आवश्यकता Primary Nutrients से कम होती है लेकिन सूक्ष्म पोषक तत्वों से अधिक होती है; इस श्रेणी में कैल्शियम (Ca), मैग्नीशियम (Mg), और सल्फर (S) आते हैं, जो पौधों के सामान्य विकास और विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं। अंत में, Micronutrients वे पोषक तत्व हैं जिनकी पौधों को बहुत कम मात्रा में आवश्यकता होती है, फिर भी इनकी कमी से पौधों की वृद्धि और उपज पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं; इनमें लोहा (Fe), जिंक (Zn), बोरॉन (B), मैंगनीज (Mn), कॉपर (Cu), मोलिब्डेनम (Mo), क्लोरीन (Cl) और निकल (Ni) शामिल हैं। पौधों की स्वस्थ वृद्धि और अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए इन सभी पोषक तत्वों का उचित संतुलन और उपलब्धता अत्यंत महत्वपूर्ण है।

🌿 इकाई 2: पादप पोषण (Plant Nutrition)

पौधों के स्वस्थ विकास और उपज के लिए विभिन्न पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। ये पोषक तत्व मिट्टी, जल और वायुमंडल से प्राप्त होते हैं। इन्हें तीन मुख्य वर्गों में बाँटा गया है:

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1. प्राथमिक पोषक तत्व (Primary Nutrients)

ये तत्व पौधों को सबसे अधिक मात्रा में चाहिए होते हैं और इनकी कमी से फसल पर सीधा प्रभाव पड़ता है:

  • नाइट्रोजन (Nitrogen – N): पत्तियों की वृद्धि, हरियाली और प्रोटीन निर्माण में सहायक।
  • फॉस्फोरस (Phosphorus – P): जड़ विकास, फूल और फल बनने में मदद करता है।
  • पोटेशियम (Potassium – K): रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और फलों की गुणवत्ता सुधारता है।

🟡 2. द्वितीयक पोषक तत्व (Secondary Nutrients)

इनकी आवश्यकता प्राथमिक तत्वों से थोड़ी कम होती है, लेकिन ये भी पौधों के लिए आवश्यक हैं:

  • कैल्शियम (Calcium – Ca): कोशिका भित्ति की मजबूती और जड़ वृद्धि में सहायक।
  • मैग्नीशियम (Magnesium – Mg): क्लोरोफिल का मुख्य घटक, प्रकाश संश्लेषण में आवश्यक।
  • सल्फर (Sulfur – S): प्रोटीन और विटामिन निर्माण में सहायक।

🧪 3. सूक्ष्म पोषक तत्व (Micronutrients)

ये तत्व बहुत कम मात्रा में चाहिए होते हैं, लेकिन इनकी कमी से पौधों में विकार उत्पन्न हो सकते हैं:

  • लौह (Iron – Fe): क्लोरोफिल निर्माण और एंजाइम क्रियाओं में सहायक।
  • जिंक (Zinc – Zn): हार्मोन निर्माण और वृद्धि में सहायक।
  • बोरॉन (Boron – B): फूल और फल बनने की प्रक्रिया में आवश्यक।
  • कॉपर (Copper – Cu): एंजाइम क्रियाओं और रोग प्रतिरोधक क्षमता में सहायक।
  • मोलिब्डेनम (Molybdenum – Mo): नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक।
  • मैंगनीज (Manganese – Mn): प्रकाश संश्लेषण और एंजाइम क्रियाओं में सहायक।

📌 परीक्षा उपयोगी बिंदु:

  • कुल आवश्यक पोषक तत्वों की संख्या: 17
  • प्राथमिक, द्वितीयक और सूक्ष्म पोषक तत्वों का वर्गीकरण याद रखें।
  • प्रत्येक तत्व की भूमिका और कमी से होने वाले लक्षणों को समझें।
  • नाइट्रोजन की कमी से पत्तियाँ पीली पड़ती हैं।
  • फॉस्फोरस की कमी से जड़ें कमजोर होती हैं।
  • पोटेशियम की कमी से पौधा रोगों के प्रति संवेदनशील हो जाता है।

🌱 प्राथमिक पोषक तत्व – नाइट्रोजन (Nitrogen – N)

🔸 प्रभाव (Effect of Nitrogen on Plants)

  1. नाइट्रोजन पौधों में क्लोरोफिल के निर्माण में सहायक होता है, जिससे पत्तियाँ हरी और स्वस्थ रहती हैं।
  2. यह प्रोटीन, एंजाइम और न्यूक्लिक एसिड के निर्माण में आवश्यक होता है, जो कोशिकीय कार्यों के लिए जरूरी हैं।
  3. नाइट्रोजन की उपस्थिति से पौधों की पत्तियों, शाखाओं और तनों की वृद्धि तीव्र होती है।
  4. यह पत्तियों की सतह क्षेत्र को बढ़ाता है, जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्षमता बढ़ती है।
  5. नाइट्रोजन पौधों की जैविक उपज को बढ़ाता है और सूखे व नमक तनाव के प्रति सहनशीलता प्रदान करता है।
  6. यह जड़ों की लंबाई, क्षेत्रफल और सूखा भार को बढ़ाता है, जिससे पोषक तत्वों का अवशोषण बेहतर होता है।
  7. नाइट्रोजन की पर्याप्त मात्रा से पौधे जल्दी फूलते हैं और अच्छी गुणवत्ता वाले फल उत्पन्न करते हैं।

🔸 कमी के लक्षण (Deficiency Symptoms of Nitrogen)

  1. नाइट्रोजन की कमी से पुरानी पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं, जिसे क्लोरोसिस कहा जाता है।
  2. पौधे की वृद्धि रुक जाती है और वह बौना रह जाता है।
  3. पत्तियाँ छोटी और पतली हो जाती हैं तथा उनका रंग हल्का पड़ जाता है।
  4. फूल और फल बनने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है या रुक जाती है।
  5. पौधे में प्रकाश संश्लेषण की क्षमता घट जाती है, जिससे ऊर्जा निर्माण प्रभावित होता है。
  6. जड़ प्रणाली कमजोर हो जाती है, जिससे पोषक तत्वों का अवशोषण कम होता है。
  7. फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में गिरावट आती है।

🔸 अधिकता के प्रभाव (Effects of Excess Nitrogen)

  1. नाइट्रोजन की अधिकता से पौधे में अत्यधिक हरियाली आती है, लेकिन फल और फूल कम बनते हैं
  2. पौधे की कोशिकाएँ कोमल हो जाती हैं, जिससे वह कीट और रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है。
  3. वृद्धि असंतुलित हो जाती है – पत्तियाँ और तना तो बढ़ते हैं, लेकिन जड़ें कमजोर रह जाती हैं।
  4. फसल की परिपक्वता में देरी होती है, जिससे कटाई का समय प्रभावित होता है。
  5. अधिक नाइट्रोजन से अन्य पोषक तत्वों जैसे पोटेशियम और मैग्नीशियम का अवशोषण बाधित होता है。
  6. पौधे में नाइट्रेट की मात्रा अधिक हो जाती है, जो पशुओं के लिए विषाक्त हो सकती है (नाइट्रेट विषाक्तता)।
  7. मिट्टी में नाइट्रोजन का असंतुलन पर्यावरण प्रदूषण का कारण बन सकता है, जैसे नाइट्रेट लीचिंग और अमोनिया वाष्पीकरण

🌱 प्राथमिक पोषक तत्व – फॉस्फोरस (Phosphorus – P)

🔸 प्रभाव (Effect of Phosphorus on Plants)

  1. फॉस्फोरस पौधों में ऊर्जा स्थानांतरण के लिए आवश्यक होता है, विशेष रूप से ATP के निर्माण में।
  2. यह जड़ों की वृद्धि को प्रोत्साहित करता है, जिससे पौधा मिट्टी से अधिक पोषक तत्व और जल ग्रहण कर पाता है।
  3. फॉस्फोरस फूलों और बीजों के निर्माण में सहायक होता है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ता है।
  4. यह कोशिका विभाजन और नई कोशिकाओं के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  5. फॉस्फोरस पौधों की परिपक्वता को तेज करता है, जिससे फसल समय पर तैयार होती है।
  6. यह प्रोटीन और न्यूक्लिक एसिड के निर्माण में भी भाग लेता है, जो पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक हैं।

🔸 कमी के लक्षण (Deficiency Symptoms of Phosphorus)

  1. फॉस्फोरस की कमी से पत्तियाँ गहरे हरे से बैंगनी रंग की हो जाती हैं, विशेषकर निचली पत्तियाँ।
  2. पौधे की वृद्धि धीमी हो जाती है और वह बौना रह जाता है।
  3. जड़ प्रणाली कमजोर हो जाती है, जिससे पोषक तत्वों का अवशोषण कम होता है।
  4. फूल और फल कम बनते हैं, जिससे उत्पादन घटता है।
  5. फसल की परिपक्वता में देरी होती है, जिससे कटाई प्रभावित होती है।
  6. पत्तियों पर लाल या बैंगनी धब्बे दिखाई दे सकते हैं, जो गंभीर कमी का संकेत हैं।

🔸 अधिकता के प्रभाव (Effects of Excess Phosphorus)

  1. फॉस्फोरस की अधिकता से जिंक और आयरन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी उत्पन्न हो सकती है।
  2. पौधों में पोषक तत्वों का असंतुलन हो जाता है, जिससे उनकी वृद्धि प्रभावित होती है।
  3. मिट्टी में फॉस्फोरस का जमाव हो सकता है, जिससे अन्य तत्वों का अवशोषण बाधित होता है।
  4. अधिक फॉस्फोरस से जड़ें अधिक फैलती हैं, लेकिन ऊपर की वृद्धि कमजोर हो सकती है।
  5. पर्यावरणीय दृष्टि से, फॉस्फोरस की अधिकता से जल स्रोतों में प्रदूषण हो सकता है (यूट्रोफिकेशन)।

🌱 प्राथमिक पोषक तत्व – पोटेशियम (Potassium – K)

🔸 प्रभाव (Effect of Potassium on Plants)

  1. पोटेशियम पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, जिससे वे कीट और रोगों से सुरक्षित रहते हैं।
  2. यह जल संतुलन बनाए रखने में मदद करता है, जिससे पौधे सूखे में भी जीवित रह सकते हैं।
  3. पोटेशियम एंजाइम क्रियाओं को सक्रिय करता है, जो पौधों की जैविक प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक हैं।
  4. यह फल की गुणवत्ता, रंग, स्वाद और आकार को सुधारता है।
  5. पोटेशियम प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को बेहतर बनाता है।
  6. यह तने को मजबूत करता है और पौधे को गिरने से बचाता है।

🔸 कमी के लक्षण (Deficiency Symptoms of Potassium)

  1. पत्तियों के किनारे जलने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं, जिन्हें स्कॉर्चिंग कहते हैं।
  2. पत्तियाँ पीली और मुड़ी हुई हो जाती हैं, विशेषकर पुरानी पत्तियाँ।
  3. पौधे की वृद्धि धीमी हो जाती है और तना कमजोर हो जाता है।
  4. फल छोटे और कम गुणवत्ता वाले बनते हैं।
  5. पौधा रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है।
  6. पत्तियों में भूरे धब्बे या किनारों पर सूखापन दिखाई देता है।

🔸 अधिकता के प्रभाव (Effects of Excess Potassium)

  1. पोटेशियम की अधिकता से मैग्नीशियम और कैल्शियम का अवशोषण बाधित होता है।
  2. पौधों में पोषक तत्वों का असंतुलन उत्पन्न होता है, जिससे उनकी वृद्धि प्रभावित होती है।
  3. अधिक पोटेशियम से मिट्टी की संरचना बदल सकती है, जिससे अन्य पोषक तत्व उपलब्ध नहीं हो पाते।
  4. फसल की परिपक्वता जल्दी हो सकती है, लेकिन गुणवत्ता घट सकती है।
  5. अत्यधिक पोटेशियम से नमक विषाक्तता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

बिलकुल Surendra ji! नीचे दिए गए लेख में कैल्शियम (Calcium), मैग्नीशियम (Magnesium) और सल्फर (Sulfur) के प्रभाव, कमी के लक्षण, और अधिकता के प्रभाव को पूर्ण वाक्यों और अधिकतम बिंदुओं के साथ प्रस्तुत किया गया है। यह लेख MP Board Class 12th – फसल उत्पादन एवं बागवानी विषय की इकाई 2: पादप पोषण के लिए अत्यंत उपयोगी है।


🌿 द्वितीयक पोषक तत्व – कैल्शियम (Calcium – Ca)

🔸 प्रभाव (Effect of Calcium on Plants)

  1. कैल्शियम पौधों की कोशिका भित्ति (cell wall) को मजबूत बनाता है, जिससे पौधे की संरचना टिकाऊ होती है।
  2. यह कोशिका विभाजन और नई कोशिकाओं के निर्माण में आवश्यक होता है।
  3. कैल्शियम जड़ों की वृद्धि को प्रोत्साहित करता है और उन्हें मजबूत बनाता है।
  4. यह नाइट्रेट नाइट्रोजन को प्रोटीन में परिवर्तित करने में सहायक होता है।
  5. कैल्शियम एंजाइम क्रियाओं को सक्रिय करता है और पौधों की जैविक प्रक्रियाओं को सुचारू बनाता है।
  6. यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और फलों की गुणवत्ता सुधारता है।
  7. मिट्टी में कैल्शियम की उपस्थिति अम्लता को कम करती है और मोलिब्डेनम जैसे तत्वों की उपलब्धता बढ़ाती है।

🔸 कमी के लक्षण (Deficiency Symptoms of Calcium)

  1. कैल्शियम की कमी से नई पत्तियाँ मुड़ी हुई, विकृत और चिपकी हुई दिखाई देती हैं।
  2. जड़ें काली और कमजोर हो जाती हैं तथा उनका विकास रुक जाता है।
  3. वृद्धि बिंदु (growing point) मर जाता है, जिससे पौधा बढ़ना बंद कर देता है।
  4. फूल और फल गिरने लगते हैं, जिससे उत्पादन प्रभावित होता है।
  5. फल सड़ने लगते हैं, जैसे टमाटर में ब्लॉसम एंड रॉट।
  6. पत्तियों पर जलसिक्त धब्बे और विकृति दिखाई देती है।
  7. नई वृद्धि रुक जाती है और पौधा बौना रह जाता है।

🔸 अधिकता के प्रभाव (Effects of Excess Calcium)

  1. कैल्शियम की अधिकता से मैग्नीशियम और पोटेशियम का अवशोषण बाधित होता है।
  2. मिट्टी का pH अत्यधिक बढ़ जाता है, जिससे सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे आयरन, जिंक, मैंगनीज की उपलब्धता घट जाती है।
  3. पौधों में पोषक तत्वों का असंतुलन उत्पन्न होता है, जिससे उनकी वृद्धि प्रभावित होती है।
  4. मिट्टी की संरचना कठोर हो सकती है, जिससे जल धारण क्षमता कम हो जाती है।
  5. अत्यधिक कैल्शियम से फसल की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

🌿 द्वितीयक पोषक तत्व – मैग्नीशियम (Magnesium – Mg)

🔸 प्रभाव (Effect of Magnesium on Plants)

  1. मैग्नीशियम क्लोरोफिल का केंद्रीय घटक होता है, जिससे प्रकाश संश्लेषण संभव होता है।
  2. यह फॉस्फोरस और नाइट्रोजन के चयापचय में सहायक होता है।
  3. मैग्नीशियम प्रोटीन, शर्करा, वसा और अमीनो अम्लों के निर्माण में आवश्यक होता है।
  4. यह एंजाइम क्रियाओं को सक्रिय करता है और कोशिका विभाजन में भाग लेता है।
  5. मैग्नीशियम फसल की समान परिपक्वता और प्रारंभिक वृद्धि को सुनिश्चित करता है।
  6. यह फोटोसिंथेटिक उत्पादों के स्थानांतरण में सहायक होता है।

🔸 कमी के लक्षण (Deficiency Symptoms of Magnesium)

  1. मैग्नीशियम की कमी से पुरानी पत्तियाँ पीली हो जाती हैं जबकि नसें हरी रहती हैं (इंटरवेनियल क्लोरोसिस)।
  2. पत्तियाँ पतली, भंगुर और मुड़ी हुई हो जाती हैं।
  3. पत्तियों के किनारे लाल या बैंगनी रंग के हो सकते हैं, विशेषकर कपास जैसी फसलों में।
  4. फोटोसिंथेसिस की क्षमता घट जाती है, जिससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है।
  5. फसल बौनी और कमजोर हो जाती है।
  6. पत्तियाँ झड़ने लगती हैं और पौधा अस्वस्थ दिखता है।

🔸 अधिकता के प्रभाव (Effects of Excess Magnesium)

  1. मैग्नीशियम की अधिकता से कैल्शियम और पोटेशियम का अवशोषण बाधित हो सकता है।
  2. मिट्टी में नमक विषाक्तता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  3. पौधों में पोषक तत्वों का असंतुलन हो जाता है, जिससे उनकी वृद्धि प्रभावित होती है।
  4. मिट्टी की संरचना बिगड़ सकती है, विशेषकर रेतीली मिट्टी में।
  5. अत्यधिक मैग्नीशियम से फसल की गुणवत्ता और उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

🌿 द्वितीयक पोषक तत्व – सल्फर (Sulfur – S)

🔸 प्रभाव (Effect of Sulfur on Plants)

  1. सल्फर प्रोटीन और अमीनो अम्लों के निर्माण में आवश्यक होता है।
  2. यह विटामिन और एंजाइम के निर्माण में सहायक होता है।
  3. सल्फर नाइट्रोजन के उपयोग को बेहतर बनाता है और नाइट्रोजन स्थिरीकरण में भाग लेता है।
  4. यह फसल की गुणवत्ता, विशेषकर तेलीय फसलों में, सुधारता है।
  5. सल्फर नोड्यूल निर्माण में सहायक होता है, विशेषकर दलहनी फसलों में।
  6. यह फलों के स्वाद और सुगंध को बेहतर बनाता है।

🔸 कमी के लक्षण (Deficiency Symptoms of Sulfur)

  1. सल्फर की कमी से नई पत्तियाँ पीली हो जाती हैं, जबकि पुरानी पत्तियाँ हरी रहती हैं।
  2. पौधे की वृद्धि धीमी हो जाती है और वह बौना रह जाता है।
  3. फसल की परिपक्वता में देरी होती है।
  4. पत्तियाँ हल्की हरी या पीली दिखाई देती हैं, जिससे नाइट्रोजन की कमी जैसा भ्रम हो सकता है।
  5. बीज और फल छोटे बनते हैं तथा उनकी गुणवत्ता घट जाती है।
  6. फसल की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।

🔸 अधिकता के प्रभाव (Effects of Excess Sulfur)

  1. सल्फर की अधिकता से मिट्टी की अम्लता बढ़ सकती है, जिससे अन्य पोषक तत्वों की उपलब्धता घट जाती है।
  2. जड़ें प्रभावित हो सकती हैं और उनका विकास रुक सकता है।
  3. पौधों में विषाक्तता के लक्षण दिखाई दे सकते हैं, जैसे पत्तियों का जलना।
  4. मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि प्रभावित हो सकती है।
  5. अत्यधिक सल्फर से फसल की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

बिलकुल Surendra ji! नीचे दिया गया लेख सूक्ष्म पोषक तत्वों (Micronutrients) — जैसे लौह (Fe), जिंक (Zn), मैंगनीज (Mn), तांबा (Cu), बोरॉन (B), मोलिब्डेनम (Mo), क्लोरीन (Cl) — के प्रभाव, कमी के लक्षण, और अधिकता के प्रभाव को MP Board Class 12th – फसल उत्पादन एवं बागवानी विषय की इकाई 2: पादप पोषण के अनुसार प्रस्तुत करता है।

🧪 3. सूक्ष्म पोषक तत्व (Micronutrients)

🌱 लौह (Iron – Fe)

🔸 प्रभाव

  • क्लोरोफिल निर्माण में सहायक होता है।
  • श्वसन क्रिया और एंजाइम क्रियाओं में भाग लेता है।
  • ऊर्जा उत्पादन और प्रोटीन संश्लेषण में सहायक।

🔸 कमी के लक्षण

  • नई पत्तियाँ पीली, नसें हरी (Interveinal Chlorosis)।
  • वृद्धि रुक जाती है, पौधा बौना रह जाता है।
  • फोटोसिंथेसिस घट जाती है, उपज कम होती है।

🔸 अधिकता के प्रभाव

  • फॉस्फोरस की उपलब्धता घटती है
  • जड़ों का विकास बाधित होता है।
  • पत्तियाँ जल सकती हैं, विषाक्तता के लक्षण।

🌱 जिंक (Zinc – Zn)

🔸 प्रभाव

  • ऑक्सिन हार्मोन के निर्माण में सहायक।
  • एंजाइम क्रियाओं को सक्रिय करता है।
  • बीज अंकुरण और कोशिका विभाजन में भाग लेता है।

🔸 कमी के लक्षण

  • पत्तियाँ छोटी, संकरी और विकृत होती हैं।
  • पत्तियों पर सफेद धब्बे या रोसेटिंग
  • फसल की वृद्धि रुक जाती है, उपज घटती है।

🔸 अधिकता के प्रभाव

  • लौह और मैंगनीज का अवशोषण बाधित।
  • पत्तियाँ पीली और जलनयुक्त हो सकती हैं।
  • मिट्टी की अम्लता बढ़ सकती है

🌱 मैंगनीज (Manganese – Mn)

🔸 प्रभाव

  • क्लोरोफिल संश्लेषण में सहायक।
  • श्वसन क्रिया और नाइट्रोजन चयापचय में भाग लेता है।
  • एंजाइम क्रियाओं को सक्रिय करता है।

🔸 कमी के लक्षण

  • Interveinal Chlorosis, विशेषकर पुरानी पत्तियों में।
  • पत्तियाँ भंगुर और विकृत हो जाती हैं।
  • फसल की वृद्धि धीमी हो जाती है।

🔸 अधिकता के प्रभाव

  • लौह, जिंक और मैग्नीशियम की उपलब्धता घटती है।
  • पत्तियों पर भूरे धब्बे, जलन के लक्षण।
  • जड़ें प्रभावित, विषाक्तता के संकेत।

🌱 तांबा (Copper – Cu)

🔸 प्रभाव

  • प्रोटीन और एंजाइम निर्माण में सहायक।
  • लिग्निन संश्लेषण में भाग लेता है, जिससे पौधों की मजबूती बढ़ती है।
  • प्रजनन क्रियाओं में सहायक।

🔸 कमी के लक्षण

  • पत्तियाँ मुड़ी हुई और नीली-हरी
  • फूल और फल गिरने लगते हैं
  • वृद्धि बिंदु मर जाता है, पौधा बौना रह जाता है।

🔸 अधिकता के प्रभाव

  • जिंक और आयरन का अवशोषण बाधित।
  • मिट्टी में विषाक्तता, सूक्ष्मजीव प्रभावित।
  • पत्तियाँ जल सकती हैं, फसल की गुणवत्ता घटती है।

🌱 बोरॉन (Boron – B)

🔸 प्रभाव

  • कोशिका विभाजन और दीवार निर्माण में सहायक।
  • फूल और फल निर्माण में आवश्यक।
  • शर्करा स्थानांतरण में भाग लेता है।

🔸 कमी के लक्षण

  • वृद्धि बिंदु मर जाता है, नई पत्तियाँ विकृत।
  • फूल और फल गिरते हैं, फसल की गुणवत्ता घटती है।
  • जड़ें काली और कमजोर हो जाती हैं।

🔸 अधिकता के प्रभाव

  • पत्तियों के किनारे जलते हैं, भूरे धब्बे।
  • मिट्टी की अम्लता बढ़ती है, सूक्ष्मजीव प्रभावित।
  • फसल की उपज और गुणवत्ता घटती है

🌱 मोलिब्डेनम (Molybdenum – Mo)

🔸 प्रभाव

  • नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक।
  • नाइट्रेट को अमीनो अम्लों में बदलने में भाग लेता है।
  • दलहनी फसलों में नोड्यूल निर्माण में सहायक।

🔸 कमी के लक्षण

  • पत्तियाँ पीली और विकृत, विशेषकर फूलगोभी में।
  • नाइट्रेट का संचय, विषाक्तता के लक्षण।
  • फसल की वृद्धि रुक जाती है

🔸 अधिकता के प्रभाव

  • सल्फर और तांबा की उपलब्धता घटती है।
  • पत्तियाँ जल सकती हैं, विषाक्तता के संकेत।
  • फसल की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव

🌱 क्लोरीन (Chlorine – Cl)

🔸 प्रभाव

  • ऑस्मोसिस और आयन संतुलन में सहायक।
  • फोटोसिंथेसिस में भाग लेता है, विशेषकर पानी के विघटन में।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

🔸 कमी के लक्षण

  • पत्तियाँ मुरझा जाती हैं, किनारे सूखते हैं।
  • फसल की वृद्धि धीमी, उपज घटती है।
  • जड़ें कमजोर, पौधा अस्वस्थ दिखता है।

🔸 अधिकता के प्रभाव

  • मिट्टी की अम्लता बढ़ती है, अन्य पोषक तत्व बाधित।
  • पत्तियाँ जल सकती हैं, विषाक्तता के लक्षण।
  • फसल की गुणवत्ता पर असर, विशेषकर नम मिट्टी में।

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