Class 12 Hindi Aaroh Surykant Tripathi Nirala Badal Raag
Class 12 Hindi Aaroh Surykant Tripathi Nirala Badal Raag : ‘बादल राग’ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित एक क्रांतिकारी और प्रकृतिवादी कविता है। यह कविता बादलों का आह्वान करती है, उन्हें क्रांति और बदलाव के प्रतीक के रूप में देखती है। निराला बादलों की गर्जना और वर्षा में विप्लव और नवसर्जन की शक्ति का अनुभव करते हैं।
कविता में बादल केवल वर्षा लाने वाले प्राकृतिक तत्व नहीं हैं बल्कि वे पीड़ितों और शोषितों की आशा के प्रतीक हैं। वे पुरानी, जर्जर व्यवस्था को ध्वस्त करके एक नए और बेहतर समाज की स्थापना के लिए आते हैं। कवि बादलों के प्रचंड रूप का वर्णन करता है, जो कमजोरों को भयभीत कर सकता है, लेकिन साथ ही वह उनकी करुणा और सृजन की भावना को भी व्यक्त करता है। ‘बादल राग’ कविता प्रकृति के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन की आकांक्षा को व्यक्त करती है।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
जन्म : सन् 1899, महिषादल (बंगाल के मेदिनीपुर जिले में), पारिवारिक गाँव-गढ़ाकोला (उन्नाव, उत्तर प्रदेश)।
प्रमुख रचनाएँ : अनामिका, परिमल, गीतिका, बेला, नए पत्ते, अणिमा, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता (कविता संग्रह); चतुरी चमार, प्रभावती, बिल्लेसुर बकरिहा, चोटी की पकड़, काले कारनामे (गद्य); आठ खंडों में ‘निराला रचनावली’ प्रकाशित। समन्वय, मतवाला पत्रिका का संपादन।
निधन : सन् 1961, इलाहाबाद में।
नव गति नव लय ताल छंद नव / नवल कंठ नव जलद मंद रव / नव नभ के नव विहग वृंद को / नव पर नव स्वर दे
कविता को नया स्वर देने वाले सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘ छायावाद के ऐसे कवि हैं जो एक ओर कबीर की परंपरा से जुड़ते हैं तो दूसरी ओर समकालीन कवियों के प्रेरणा स्रोत भी हैं। उनका यह विस्तृत काव्य-संसार अपने भीतर संघर्ष और जीवन, क्रांति और निर्माण, ओज और माधुर्य, आशा और निराशा के द्वंद्व को कुछ इस तरह समेटे हुए है कि वह किसी सीमा में बँध नहीं पाता। उनका यह निर्बंध और उदात्त काव्य-व्यक्तित्व कविता और जीवन में फाँक नहीं रखता। वे आपस में घुले-मिले हैं। उल्लास-शोक, राग-विराग, उत्थान-पतन, अंधकार-प्रकाश का सजीव कोलाज है उनकी कविता। जब वे मुक्त छंद की बात करते हैं तो केवल छंद, रूढ़ियों आदि के बंधन को ही नहीं तोड़ते बल्कि काव्य विषय और युग की सीमाओं को भी अतिक्रमित करते हैं।
विषयों और भावों की तरह भाषा की दृष्टि से भी निराला की कविता के कई रंग हैं। एक तरफ तत्सम सामासिक पदावली और ध्वन्यात्मक बिंबों से युक्त राम की शक्ति पूजा और कठिन छंद-साधना का प्रतिमान तुलसीदास है, तो दूसरी तरफ देशी टटके शब्दों का साँधापन लिए कुकुरमुत्ता, रानी और कानी, सहँगू महँगा रहा जैसी कविताएँ हैं।
घिक् जीवन जो / पाता ही आया विरोध, कहने वाले निराला उत्कट आत्मशक्ति और अद्भुत जिजीविषा के कवि हैं, जो हार नहीं मानते और निराशा के क्षणों में शक्ति की मौलिक कल्पना कर शक्ति का साधन जुटाते हैं।
इसीलिए इस शक्तिसाध्य कवि निराला को वर्षा ऋतु अधिक आकृष्ट करती है; क्योंकि बादल के भीतर सृजन और ध्वंस की ताकत एक साथ समाहित है। बादल उन्हें प्रिय है क्योंकि उनका व्यक्तित्व बादल के स्वभाव के करीब है। बादल किसान के लिए उल्लास एवं निर्माण का तो मज़दूर के संदर्भ में क्रांति एवं बदलाव का अग्रदूत है।
बादल राग कविता अनामिका में छह खंडों में प्रकाशित है। वहाँ उसका छठा खंड लिया गया है। लघुमानव (आम आदमी) के दुख से त्रस्त कवि यहाँ बादल का आह्वान क्रांति के रूप में कर रहा है क्योंकि विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते। किसान मजदूर की आकांक्षाएँ बादल को नव-निर्माण के राग के रूप में पुकार रही हैं।
क्रांति हमेशा वंचितों का प्रतिनिधित्व करती है- इस अर्थ में भी छोटे को देखा जा सकता है। अट्टालिका नहीं है रे! में भी वंचितों की पक्षधरता की अनुगूँज स्पष्ट हैं।
बादलों के अंग-अंग में विजलियाँ छिपी हैं, वज्रपात से उनके शरीर आहत भी हों तो भी हिम्मत नहीं हारते, बार-बार गिरकर उठते रहते हैं। गगन स्पर्शी, स्पर्धा-धीर ये बादल दरअसल पूँजीपतियों का एक प्रमत्त दल दिखाई देते हैं। किंतु ये विप्लव के बादल हैं, इसलिए गर्जन-तर्जन अमोघ है।
गरमी से तपी-झुलसी धरती पर क्रांति के संदेश की तरह बादल आए हैं। हर तरफ सब कुछ रूखा-सूखा और मुरझाया-सा है। अकाल की चिंता से व्याकुल किसान ‘हाड़-मात्र’ ही रह गए हैं- जीर्ण शरीर, अस्त नयनमुख। पूरी धरती का हृदय दग्ध है ऐसे में बादल का प्रकट होना, प्रकृति में और जगत में, कैसे परिवर्तन घटित कर रहा है-कविता इन बिंबों के माध्यम से इसका अत्यंत सजल और व्यंजक संकेत करती है।
धरती के भीतर सोए अंकुर नवजीवन की आशा में सिर ऊँचा करके बादल की उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं। क्रांति जो हरियाली लाएगी, उसके सबसे उत्फुल्ल धारक नए पौधे, छोटे बच्चे ही होंगे।
समीर-सागर के विराट बिंब से निराला की कविता शुरू होती है। यह इकलौता बिंब इतना विराट और व्यंजक है कि निराला का पूरा काव्य-व्यक्तित्व इसमें उमड़ता-घुमड़ता दिखाई देता है। इस तरह यह कविता लघुमानव की खुशहाली का राग बन गई है। इसीलिए बादल राग एक ओर जीवन निर्माण के नए राग का सूचक है तो दूसरी ओर उस भैरव संगीत का, जो नव निर्माण का कारण बनता है।
बादल राग
घिरती है समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया-
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया-
यह तेरी रण-तरी
भरी आकांक्षाओं से,
जन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के; आशाओं से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!
फिर-फिर
बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन सुन घोर वज्र-हुँकार
अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्धा धीर।
हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार-
शस्य श्यामल अपार,
हिल-हिल
खिल-खिल,
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।
अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन!
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन।
क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से
सदा छलकता नीर,
रोग-शोक में भी हँसता है
शैशव का सुकुमार शरीर।
रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष,
अंगना-अंग से लिपटे भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं।
धनी, वज्र-गर्जन से बादल!
त्रस्त-नयन मुख ढाँप रहे हैं।
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार!
कविता के साथ
1. अस्थिर सुख पर दुख की छाया पंक्ति में दुख की छाया किसे कहा गया है और क्यों?
‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया’ पंक्ति में ‘दुख की छाया’ पूंजीपतियों, शोषकों या धनवानों के जीवन पर मंडराने वाले भय और असुरक्षा को कहा गया है।
- अस्थिर सुख: कवि ने धनी वर्ग के सुख को ‘अस्थिर’ कहा है क्योंकि यह सुख दूसरों के शोषण पर आधारित है। यह कभी भी क्रांति या विद्रोह के कारण छिन सकता है। यह स्थायी नहीं है, बल्कि भय और अनिश्चितता से घिरा हुआ है।
- दुख की छाया: यह छाया शोषण, अन्याय और विषमता से उत्पन्न होने वाली क्रांति, विद्रोह या विनाश की है, जो पूंजीपतियों के सुख पर हमेशा मंडराती रहती है। उन्हें यह डर सताता रहता है कि कहीं उनकी संपत्ति, सत्ता और जीवन शैली उनसे छिन न जाए। गरीब और शोषित वर्ग का बढ़ता असंतोष उनके लिए हमेशा एक अदृश्य खतरा बना रहता है।
इसलिए, ‘दुख की छाया’ उस भय और आशंका को दर्शाती है जो धनी वर्ग के अस्थिर सुख के साथ जुड़ी हुई है।
2. अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया गया है?
‘अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ पंक्ति में पूंजीपतियों, सत्ताधारियों और समाज के शक्तिशाली तथा समृद्ध वर्ग की ओर संकेत किया गया है।
- उन्नत शत-शत वीर: ‘उन्नत’ शब्द उनकी ऊँची हैसियत, धन-संपत्ति और समाज में उनके प्रभुत्व को दर्शाता है। ‘शत-शत वीर’ उन्हें शक्तिशाली और बड़ी संख्या में होने का आभास देता है।
- अशनि-पात से शापित: ‘अशनि-पात’ का अर्थ है वज्रपात या बिजली का गिरना, जो विनाश का प्रतीक है। यह यहाँ क्रांति या विप्लव के रूप में आई है। ‘शापित’ होने का अर्थ है कि वे इस क्रांति के शिकार होंगे, उन्हें इसका कोप सहना पड़ेगा।
इस प्रकार, कवि यह कहना चाहता है कि क्रांति रूपी वज्रपात से समाज के जो ऊँचे और शक्तिशाली लोग हैं, वे ही सबसे अधिक प्रभावित होंगे और उनका विनाश होगा।
3. विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते पंक्ति में विप्लव-रव से क्या तात्पर्य है? छोटे हीं हैं शोभा पाते ऐसा क्यों कहा गया है?
- विप्लव-रव से क्या तात्पर्य है? ‘विप्लव-रव’ से तात्पर्य क्रांति की गर्जना, विद्रोह की आवाज़ या परिवर्तन के प्रचंड शोर से है। यहाँ ‘रव’ (आवाज़/गर्जना) बादलों की गर्जना का प्रतीक है, जो क्रांति और विनाश का संदेश लाती है।
- छोटे हीं हैं शोभा पाते ऐसा क्यों कहा गया है? ‘छोटे हीं हैं शोभा पाते’ ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि:
- वंचितों और शोषितों को लाभ: क्रांति हमेशा उन लोगों के लिए सकारात्मक परिणाम लाती है जो समाज में हाशिये पर हैं, जो वंचित और शोषित हैं। क्रांति के फलस्वरूप जो व्यवस्था परिवर्तन आता है, उससे उन्हें ही लाभ मिलता है, उनके जीवन में सुधार आता है और वे ‘शोभा पाते’ हैं, यानी उनका जीवन फलता-फूलता है।
- नव-निर्माण के वाहक: छोटे पौधे, जैसे अंकुर जो धरती के भीतर दबे होते हैं, वर्षा (क्रांति) के बाद ही फूटते हैं और नए जीवन का संचार करते हैं। वे ही नए निर्माण के वाहक होते हैं। इसी तरह, समाज के छोटे और दबे-कुचले लोग ही क्रांति के बाद एक नई व्यवस्था और समाज का निर्माण करते हैं, और इसी में उनकी सार्थकता और सौंदर्य है।
- निर्भयता और उल्लास: छोटे पौधे बारिश और आँधी में भी हिल-हिल कर, खिल-खिल कर झूमते हैं, जबकि बड़े पेड़ (अट्टालिकाएँ/पूंजीपति) तूफान में टूट जाते हैं। यह दिखाता है कि छोटे लोग क्रांति से डरते नहीं, बल्कि उल्लास के साथ उसका स्वागत करते हैं क्योंकि उन्हें खोने के लिए कुछ नहीं होता, पाने के लिए सब कुछ होता है।
4. बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती है?
बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले निम्नलिखित परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती है:
- भयंकर गर्जन और मूसलधार वर्षा: बादल आते ही अपनी गर्जना से पूरे संसार को डरा देते हैं और मूसलधार वर्षा करते हैं, जिससे पूरा संसार हृदय थाम लेता है।
- विनाशकारी वज्रपात: बादलों के साथ वज्रपात भी होता है, जिससे बड़े-बड़े उन्नत पेड़ (उन्नत शत-शत वीर) क्षत-विक्षत हो जाते हैं। यह विनाश का संकेत है।
- छोटे पौधों का प्रफुल्लित होना: जहाँ बड़े और उन्नत नष्ट होते हैं, वहीं छोटे-छोटे पौधे खुशी से खिल उठते हैं और हरे-भरे होकर शोभा पाते हैं। वे हिल-हिल कर, खिल-खिल कर बादलों को बुलाते हैं।
- धरती में नवजीवन का संचार: गर्मी से तपी-झुलसी धरती के भीतर सोए हुए अंकुर बादलों की उपस्थिति से नवजीवन की आशा में सिर उठाकर उन्हें ताकते हैं। यह नई हरियाली और जीवन के संचार का प्रतीक है।
- समीर-सागर का हिलना: कविता ‘समीर-सागर पर घिरती’ बादलों की छाया की बात करती है, जिससे वायुमंडल में भी गति और परिवर्तन आता है।
ये परिवर्तन एक ओर विध्वंस और विनाश का संकेत देते हैं, वहीं दूसरी ओर नवजीवन, हरियाली और छोटे/वंचितों के लिए आशा का संचार भी करते हैं।
व्याख्या कीजिए
1. घिरती है समीर-सागर पर अस्थिर सुख पर दुख की छाया- जग के दग्ध हृदय पर निर्दय विप्लव की प्लावित माया-
संदर्भ: ये पंक्तियाँ सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की प्रसिद्ध कविता ‘बादल राग’ के छठे खंड से ली गई हैं। इस कविता में कवि बादलों का आह्वान क्रांति के अग्रदूत के रूप में कर रहे हैं।
प्रसंग: कवि यहाँ बादलों के आगमन को समाज में होने वाली क्रांति के रूप में देखते हैं। वे बादलों के छाने के बिंब से समाज के दो वर्गों – शोषक (पूंजीपति) और शोषित (किसान-मजदूर) पर पड़ने वाले प्रभावों को दर्शाते हैं।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि आकाश में बादल इस प्रकार घिर रहे हैं, मानो हवा (समीर) के विशाल सागर पर दुख की काली छाया मंडरा रही हो। यहाँ ‘अस्थिर सुख’ उन धनी और शोषक वर्ग के सुख को कहा गया है, जो गरीबों के शोषण पर टिका है और इसलिए स्थायी नहीं है। यह सुख कभी भी क्रांति के कारण समाप्त हो सकता है, इसलिए इस पर दुख (विनाश और क्रांति) की छाया हमेशा मंडराती रहती है।
आगे कवि कहते हैं कि ये बादल ‘जग के दग्ध हृदय’ पर ‘निर्दय विप्लव की प्लावित माया’ हैं। ‘जग के दग्ध हृदय’ से तात्पर्य संसार के उस पीड़ित और शोषित वर्ग से है जो गर्मी (गरीबी, शोषण) से जल रहा है, कष्ट सह रहा है। ‘निर्दय विप्लव’ का अर्थ है कठोर या भयानक क्रांति। ‘प्लावित माया’ का अर्थ है चारों ओर छा जाने वाला प्रभाव या जाल। कवि कहना चाहता है कि ये बादल (क्रांति) संसार के शोषित और पीड़ित हृदय पर अपने भयानक और निर्मम विनाशकारी प्रभाव को लेकर आ रहे हैं। यह क्रांति शोषकों के लिए विनाशकारी होगी, लेकिन शोषितों के लिए मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगी। इस प्रकार, ये पंक्तियाँ बादलों को केवल प्राकृतिक परिघटना के रूप में न देखकर, सामाजिक क्रांति के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करती हैं, जो शोषकों के सुख को भंग कर शोषितों को मुक्ति दिलाती है।
2. अट्टालिका नहीं है रे आतंक-भवन सदा पंक पर ही होता जल-विप्लव-प्लावन
संदर्भ: ये पंक्तियाँ भी सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘बादल राग’ के छठे खंड से उद्धृत हैं।
प्रसंग: कवि बादलों को क्रांति का प्रतीक मानते हुए समाज में होने वाले परिवर्तन और उसके विभिन्न वर्गों पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन कर रहे हैं। वे स्पष्ट करते हैं कि क्रांति से किसे हानि होती है और किसे लाभ।
व्याख्या: कवि बादलों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे क्रांति के दूत! तुम उन ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं (भवनों) को मत देखो, जो दरअसल धनवानों और पूंजीपतियों के ‘आतंक-भवन’ हैं। ये अट्टालिकाएँ समृद्धि और शक्ति का प्रतीक हैं, लेकिन कवि इन्हें ‘आतंक-भवन’ कहता है क्योंकि ये शोषण, अन्याय और गरीबों पर किए गए अत्याचार पर निर्मित हुई हैं, और स्वयं भी गरीबों के मन में भय और आतंक उत्पन्न करती हैं।
आगे कवि कहते हैं कि ‘सदा पंक पर ही होता जल-विप्लव-प्लावन’। यहाँ ‘पंक’ का अर्थ है कीचड़, जो समाज के गरीब, शोषित और दबे-कुचले वर्ग का प्रतीक है। ‘जल-विप्लव-प्लावन’ का अर्थ है जल-क्रांति या बाढ़, जो क्रांति के विनाशकारी प्रभाव को दर्शाती है। कवि का कहने का आशय यह है कि क्रांति रूपी बाढ़ या जल-प्लावन हमेशा कीचड़ (अर्थात गरीबों और दबे-कुचले लोगों) को ही धोता है, उन्हें ही प्रभावित करता है। इसका मतलब यह नहीं कि वे नष्ट होते हैं, बल्कि क्रांति से उत्पन्न अशांति और परिवर्तन सबसे पहले उन्हीं के जीवन में आता है, क्योंकि वे ही सबसे अधिक प्रभावित होते हैं और अंततः उन्हें ही मुक्ति मिलती है। अट्टालिकाएँ और उनके मालिक तो वज्रपात से नष्ट होंगे, लेकिन ये ‘पंक’ (शोषित) ही हैं जो क्रांति के जल से धुलकर शुद्ध होंगे और नवजीवन प्राप्त करेंगे। यह पंक्ति दर्शाती है कि क्रांति का उद्भव और उसका प्रभाव सीधे शोषित वर्ग से जुड़ा होता है।
कविता के साथ
1. अस्थिर सुख पर दुख की छाया पंक्ति में दुख की छाया किसे कहा गया है और क्यों?
‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया’ पंक्ति में ‘दुख की छाया’ पूंजीपतियों, शोषकों या धनवानों के जीवन पर मंडराने वाले भय और असुरक्षा को कहा गया है।
- अस्थिर सुख: कवि ने धनी वर्ग के सुख को ‘अस्थिर’ कहा है क्योंकि यह सुख दूसरों के शोषण पर आधारित है। यह कभी भी क्रांति या विद्रोह के कारण छिन सकता है। यह स्थायी नहीं है, बल्कि भय और अनिश्चितता से घिरा हुआ है।
- दुख की छाया: यह छाया शोषण, अन्याय और विषमता से उत्पन्न होने वाली क्रांति, विद्रोह या विनाश की है, जो पूंजीपतियों के सुख पर हमेशा मंडराती रहती है। उन्हें यह डर सताता रहता है कि कहीं उनकी संपत्ति, सत्ता और जीवन शैली उनसे छिन न जाए। गरीब और शोषित वर्ग का बढ़ता असंतोष उनके लिए हमेशा एक अदृश्य खतरा बना रहता है।
इसलिए, ‘दुख की छाया’ उस भय और आशंका को दर्शाती है जो धनी वर्ग के अस्थिर सुख के साथ जुड़ी हुई है।
2. अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया गया है?
‘अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ पंक्ति में पूंजीपतियों, सत्ताधारियों और समाज के शक्तिशाली तथा समृद्ध वर्ग की ओर संकेत किया गया है।
- उन्नत शत-शत वीर: ‘उन्नत’ शब्द उनकी ऊँची हैसियत, धन-संपत्ति और समाज में उनके प्रभुत्व को दर्शाता है। ‘शत-शत वीर’ उन्हें शक्तिशाली और बड़ी संख्या में होने का आभास देता है।
- अशनि-पात से शापित: ‘अशनि-पात’ का अर्थ है वज्रपात या बिजली का गिरना, जो विनाश का प्रतीक है। यह यहाँ क्रांति या विप्लव के रूप में आई है। ‘शापित’ होने का अर्थ है कि वे इस क्रांति के शिकार होंगे, उन्हें इसका कोप सहना पड़ेगा।
इस प्रकार, कवि यह कहना चाहता है कि क्रांति रूपी वज्रपात से समाज के जो ऊँचे और शक्तिशाली लोग हैं, वे ही सबसे अधिक प्रभावित होंगे और उनका विनाश होगा।
3. विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते पंक्ति में विप्लव-रव से क्या तात्पर्य है? छोटे हीं हैं शोभा पाते ऐसा क्यों कहा गया है?
- विप्लव-रव से क्या तात्पर्य है? ‘विप्लव-रव’ से तात्पर्य क्रांति की गर्जना, विद्रोह की आवाज़ या परिवर्तन के प्रचंड शोर से है। यहाँ ‘रव’ (आवाज़/गर्जना) बादलों की गर्जना का प्रतीक है, जो क्रांति और विनाश का संदेश लाती है।
- छोटे हीं हैं शोभा पाते ऐसा क्यों कहा गया है? ‘छोटे हीं हैं शोभा पाते’ ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि:
- वंचितों और शोषितों को लाभ: क्रांति हमेशा उन लोगों के लिए सकारात्मक परिणाम लाती है जो समाज में हाशिये पर हैं, जो वंचित और शोषित हैं। क्रांति के फलस्वरूप जो व्यवस्था परिवर्तन आता है, उससे उन्हें ही लाभ मिलता है, उनके जीवन में सुधार आता है और वे ‘शोभा पाते’ हैं, यानी उनका जीवन फलता-फूलता है।
- नव-निर्माण के वाहक: छोटे पौधे, जैसे अंकुर जो धरती के भीतर दबे होते हैं, वर्षा (क्रांति) के बाद ही फूटते हैं और नए जीवन का संचार करते हैं। वे ही नए निर्माण के वाहक होते हैं। इसी तरह, समाज के छोटे और दबे-कुचले लोग ही क्रांति के बाद एक नई व्यवस्था और समाज का निर्माण करते हैं, और इसी में उनकी सार्थकता और सौंदर्य है।
- निर्भयता और उल्लास: छोटे पौधे बारिश और आँधी में भी हिल-हिल कर, खिल-खिल कर झूमते हैं, जबकि बड़े पेड़ (अट्टालिकाएँ/पूंजीपति) तूफान में टूट जाते हैं। यह दिखाता है कि छोटे लोग क्रांति से डरते नहीं, बल्कि उल्लास के साथ उसका स्वागत करते हैं क्योंकि उन्हें खोने के लिए कुछ नहीं होता, पाने के लिए सब कुछ होता है।
4. बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती है?
बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले निम्नलिखित परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती है:
- भयंकर गर्जन और मूसलधार वर्षा: बादल आते ही अपनी गर्जना से पूरे संसार को डरा देते हैं और मूसलधार वर्षा करते हैं, जिससे पूरा संसार हृदय थाम लेता है।
- विनाशकारी वज्रपात: बादलों के साथ वज्रपात भी होता है, जिससे बड़े-बड़े उन्नत पेड़ (उन्नत शत-शत वीर) क्षत-विक्षत हो जाते हैं। यह विनाश का संकेत है।
- छोटे पौधों का प्रफुल्लित होना: जहाँ बड़े और उन्नत नष्ट होते हैं, वहीं छोटे-छोटे पौधे खुशी से खिल उठते हैं और हरे-भरे होकर शोभा पाते हैं। वे हिल-हिल कर, खिल-खिल कर बादलों को बुलाते हैं।
- धरती में नवजीवन का संचार: गर्मी से तपी-झुलसी धरती के भीतर सोए हुए अंकुर बादलों की उपस्थिति से नवजीवन की आशा में सिर उठाकर उन्हें ताकते हैं। यह नई हरियाली और जीवन के संचार का प्रतीक है।
- समीर-सागर का हिलना: कविता ‘समीर-सागर पर घिरती’ बादलों की छाया की बात करती है, जिससे वायुमंडल में भी गति और परिवर्तन आता है।
ये परिवर्तन एक ओर विध्वंस और विनाश का संकेत देते हैं, वहीं दूसरी ओर नवजीवन, हरियाली और छोटे/वंचितों के लिए आशा का संचार भी करते हैं।
व्याख्या कीजिए
1. घिरती है समीर-सागर पर अस्थिर सुख पर दुख की छाया- जग के दग्ध हृदय पर निर्दय विप्लव की प्लावित माया-
संदर्भ: ये पंक्तियाँ सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की प्रसिद्ध कविता ‘बादल राग’ के छठे खंड से ली गई हैं। इस कविता में कवि बादलों का आह्वान क्रांति के अग्रदूत के रूप में कर रहे हैं।
प्रसंग: कवि यहाँ बादलों के आगमन को समाज में होने वाली क्रांति के रूप में देखते हैं। वे बादलों के छाने के बिंब से समाज के दो वर्गों – शोषक (पूंजीपति) और शोषित (किसान-मजदूर) पर पड़ने वाले प्रभावों को दर्शाते हैं।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि आकाश में बादल इस प्रकार घिर रहे हैं, मानो हवा (समीर) के विशाल सागर पर दुख की काली छाया मंडरा रही हो। यहाँ ‘अस्थिर सुख’ उन धनी और शोषक वर्ग के सुख को कहा गया है, जो गरीबों के शोषण पर टिका है और इसलिए स्थायी नहीं है। यह सुख कभी भी क्रांति के कारण समाप्त हो सकता है, इसलिए इस पर दुख (विनाश और क्रांति) की छाया हमेशा मंडराती रहती है।
आगे कवि कहते हैं कि ये बादल ‘जग के दग्ध हृदय’ पर ‘निर्दय विप्लव की प्लावित माया’ हैं। ‘जग के दग्ध हृदय’ से तात्पर्य संसार के उस पीड़ित और शोषित वर्ग से है जो गर्मी (गरीबी, शोषण) से जल रहा है, कष्ट सह रहा है। ‘निर्दय विप्लव’ का अर्थ है कठोर या भयानक क्रांति। ‘प्लावित माया’ का अर्थ है चारों ओर छा जाने वाला प्रभाव या जाल। कवि कहना चाहता है कि ये बादल (क्रांति) संसार के शोषित और पीड़ित हृदय पर अपने भयानक और निर्मम विनाशकारी प्रभाव को लेकर आ रहे हैं। यह क्रांति शोषकों के लिए विनाशकारी होगी, लेकिन शोषितों के लिए मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगी। इस प्रकार, ये पंक्तियाँ बादलों को केवल प्राकृतिक परिघटना के रूप में न देखकर, सामाजिक क्रांति के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करती हैं, जो शोषकों के सुख को भंग कर शोषितों को मुक्ति दिलाती है।
2. अट्टालिका नहीं है रे आतंक-भवन सदा पंक पर ही होता जल-विप्लव-प्लावन
संदर्भ: ये पंक्तियाँ भी सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘बादल राग’ के छठे खंड से उद्धृत हैं।
प्रसंग: कवि बादलों को क्रांति का प्रतीक मानते हुए समाज में होने वाले परिवर्तन और उसके विभिन्न वर्गों पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन कर रहे हैं। वे स्पष्ट करते हैं कि क्रांति से किसे हानि होती है और किसे लाभ।
व्याख्या: कवि बादलों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे क्रांति के दूत! तुम उन ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं (भवनों) को मत देखो, जो दरअसल धनवानों और पूंजीपतियों के ‘आतंक-भवन’ हैं। ये अट्टालिकाएँ समृद्धि और शक्ति का प्रतीक हैं, लेकिन कवि इन्हें ‘आतंक-भवन’ कहता है क्योंकि ये शोषण, अन्याय और गरीबों पर किए गए अत्याचार पर निर्मित हुई हैं, और स्वयं भी गरीबों के मन में भय और आतंक उत्पन्न करती हैं।
आगे कवि कहते हैं कि ‘सदा पंक पर ही होता जल-विप्लव-प्लावन’। यहाँ ‘पंक’ का अर्थ है कीचड़, जो समाज के गरीब, शोषित और दबे-कुचले वर्ग का प्रतीक है। ‘जल-विप्लव-प्लावन’ का अर्थ है जल-क्रांति या बाढ़, जो क्रांति के विनाशकारी प्रभाव को दर्शाती है। कवि का कहने का आशय यह है कि क्रांति रूपी बाढ़ या जल-प्लावन हमेशा कीचड़ (अर्थात गरीबों और दबे-कुचले लोगों) को ही धोता है, उन्हें ही प्रभावित करता है। इसका मतलब यह नहीं कि वे नष्ट होते हैं, बल्कि क्रांति से उत्पन्न अशांति और परिवर्तन सबसे पहले उन्हीं के जीवन में आता है, क्योंकि वे ही सबसे अधिक प्रभावित होते हैं और अंततः उन्हें ही मुक्ति मिलती है। अट्टालिकाएँ और उनके मालिक तो वज्रपात से नष्ट होंगे, लेकिन ये ‘पंक’ (शोषित) ही हैं जो क्रांति के जल से धुलकर शुद्ध होंगे और नवजीवन प्राप्त करेंगे। यह पंक्ति दर्शाती है कि क्रांति का उद्भव और उसका प्रभाव सीधे शोषित वर्ग से जुड़ा होता है।
कला की बात
1. कविता में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। आपको प्रकृति का कौन-सा मानवीय रूप पसंद आया और क्यों?
‘बादल राग’ कविता में प्रकृति, विशेषकर बादलों का, मानवीकरण कई रूपों में किया गया है। मुझे सबसे अधिक पसंद आया बादलों का ‘विप्लव के वीर‘ और ‘रण-तरी‘ (रण-तरी भरी आकांक्षाओं से) वाला मानवीय रूप।
- पसंद आने का कारण:
- क्रांतिकारी स्वरूप: यह रूप बादलों को केवल प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि एक सक्रिय, सचेत और शक्तिशाली क्रांतिकारी शक्ति के रूप में प्रस्तुत करता है। यह उन्हें सिर्फ वर्षा लाने वाले नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव के अग्रदूत के रूप में दिखाता है।
- उद्देश्यपूर्ण उपस्थिति: ‘रण-तरी’ का बिंब बादलों को आकांक्षाओं से भरी युद्धपोत के रूप में चित्रित करता है, जो किसी बड़े उद्देश्य को पूरा करने आया है। यह दर्शाता है कि बादलों का आगमन मात्र संयोग नहीं, बल्कि एक निश्चित लक्ष्य (शोषण का अंत और नव-निर्माण) को लेकर है।
- शोषितों का पक्षधर: ‘विप्लव के वीर’ संबोधन उन्हें उन नायकों के रूप में स्थापित करता है जो छोटे, दबे-कुचले लोगों (अंकुर, छोटे पौधे, कृषक) के लिए संघर्ष करते हैं और उनके जीवन में आशा व परिवर्तन लाते हैं। यह रूप बादलों के सामाजिक सरोकारों को गहराई से दर्शाता है।
- प्रेरणादायक: यह मानवीय रूप हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि कैसे प्रकृति की एक शक्ति भी सामाजिक विषमताओं को चुनौती देने और उन्हें बदलने का साहस रखती है। यह पाठकों में भी बदलाव की प्रेरणा जगाता है।
यह मानवीकरण बादलों को एक निष्क्रिय प्राकृतिक तत्व के बजाय एक गतिशील, उद्देश्यपूर्ण और सामाजिक न्याय के लिए लड़ने वाले नायक के रूप में प्रस्तुत करता है, जो मुझे बहुत प्रभावी लगा।
2. कविता में रूपक अलंकार का प्रयोग कहाँ-कहाँ हुआ है? संबंधित वाक्यांश को छाँटकर लिखिए।
कविता ‘बादल राग’ में रूपक अलंकार का प्रयोग इन स्थानों पर हुआ है:
- समीर-सागर: यहाँ ‘हवा’ (समीर) पर ‘सागर’ का आरोप किया गया है। हवा की विशालता और फैलाव को सागर के रूप में दर्शाया गया है।
- रण-तरी: यहाँ बादल को ‘युद्धपोत’ (रण-तरी) का रूप दिया गया है। बादल को युद्ध लड़ने वाले जहाज के समान बताया गया है, जो क्रांति के लिए आया है।
- आतंक-भवन: यहाँ अट्टालिकाओं (ऊँची इमारतों) को ‘आतंक का भवन’ (घर) कहा गया है। अट्टालिकाओं के माध्यम से पूंजीपतियों के आतंक और शोषण को दर्शाया गया है।
- जल-विप्लव-प्लावन: यहाँ जल (वर्षा) को ‘विद्रोह की बाढ़’ (विप्लव-प्लावन) का रूप दिया गया है। वर्षा को क्रांति के विनाशकारी प्रभाव के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
- जीवन के पारावार: यहाँ ‘जीवन’ पर ‘सागर’ (पारावार) का आरोप किया गया है। जीवन को एक अथाह और विस्तृत सागर के रूप में देखा गया है।
3. इस कविता में बादल के लिए ऐ विष्लव के वीर!, ऐ जीवन के पारावार! जैसे संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। बादल राग कविता के शेष पाँच खंडों में भी कई संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। जैसे- अरे वर्ष के @], मेरे पागल बादल!, ¢ निर्बंध!, ऐ स्वच्छंद/, ऐ उद्याम/, ऐ सम्राट! ऐ विप्लव के प्लावन!, ऐ अत के चंचल शिशु सुकुमार! उपर्युक्त संबोधनों की व्याख्या करें तथा बताएँ कि बादल के लिए इन संबोधनों का क्या औचित्य है?
शेष पाँच खंडों से संभावित संबोधन और उनकी व्याख्या:
(चूंकि प्रश्न में शेष पाँच खंडों से कुछ संबोधन अधूरे दिए गए हैं, मैं उन्हें पूरा करके और उनके आधार पर व्याख्या कर रहा हूँ। यहाँ दिए गए ‘अधूरे’ संबोधनों को मैंने सामान्यतः ज्ञात ‘बादल राग’ के अन्य खंडों में प्रयुक्त संबोधनों के आधार पर पूरा किया है, जैसे ‘अरे वर्ष के हर्षा (हर्ष)!’, ‘ऐ निर्बंध!’, ‘ऐ स्वच्छंद!’, ‘ऐ उद्दाम!’, ‘ऐ अंत के चंचल शिशु सुकुमार!’)
- अरे वर्ष के हर्ष!:
- व्याख्या: यहाँ बादल को ‘वर्ष का हर्ष’ यानी वर्षा ऋतु की खुशी और आनंद का कारण कहा गया है। यह संबोधन बादलों के उस रूप को दर्शाता है जो धरती पर हरियाली, जल और जीवन का संचार करता है, जिससे किसान और सामान्य जन प्रसन्न होते हैं।
- औचित्य: यह बादलों के सृजनात्मक, पोषणकारी और जीवनदायी पहलू को उजागर करता है, जो वर्षा के माध्यम से प्रकृति और जीवन में खुशहाली लाते हैं।
- मेरे पागल बादल!:
- व्याख्या: ‘पागल’ संबोधन बादलों की अप्रत्याशित, अनियंत्रित और प्रचंड शक्ति को दर्शाता है। यह उनकी उन्मुक्तता और किसी भी बंधन को न मानने वाले स्वभाव को इंगित करता है। ‘मेरे’ शब्द कवि के बादलों के प्रति आत्मीयता और उनके क्रांतिकारी स्वरूप से जुड़ाव को दिखाता है।
- औचित्य: यह संबोधन बादलों की अदम्य, बेलगाम शक्ति और विद्रोही स्वभाव को दर्शाता है, जो पुरानी व्यवस्था को तोड़ने के लिए आवश्यक है।
- ऐ निर्बंध!, ऐ स्वच्छंद!, ऐ उद्दाम!:
- व्याख्या: ये तीनों संबोधन बादलों की बंधनमुक्त, स्वतंत्र और प्रचंड शक्ति को दर्शाते हैं। ‘निर्बंध’ यानी जो किसी बंधन में न हो, ‘स्वच्छंद’ यानी अपनी इच्छा से विचरण करने वाला, और ‘उद्दाम’ यानी प्रचंड या अनियंत्रित। ये विशेषताएँ बादलों की उस शक्ति को रेखांकित करती हैं जो किसी नियम या सत्ता के अधीन नहीं होती।
- औचित्य: ये संबोधन बादलों के क्रांतिकारी स्वरूप को पुष्ट करते हैं। क्रांति किसी सीमा या बंधन को नहीं मानती, वह उन्मुक्त होती है और समाज की रूढ़ियों और स्थापित व्यवस्था को तोड़कर आगे बढ़ती है।
- ऐ सम्राट!:
- व्याख्या: यहाँ बादल को ‘सम्राट’ यानी राजा की तरह शक्तिशाली और सर्वोपरि बताया गया है। यह संबोधन बादलों की विशालता, उनके प्रभुत्व और उनकी सर्वोच्च शक्ति को दर्शाता है, जो पूरी प्रकृति और मानव जीवन पर अपना प्रभाव डालती है।
- औचित्य: यह बादलों की उस शक्ति को दर्शाता है जो अपने आगमन से सब कुछ बदल सकती है, जो समाज में एक नई सत्ता स्थापित करने में सक्षम है।
- ऐ विप्लव के प्लावन!:
- व्याख्या: यहाँ बादल को ‘क्रांति की बाढ़’ (विप्लव का प्लावन) कहा गया है। यह संबोधन बादलों के विनाशकारी लेकिन परिवर्तनकारी रूप को दर्शाता है, जो अपने प्रचंड वेग से सब कुछ बहा ले जाता है और एक नई शुरुआत का मार्ग प्रशस्त करता है।
- औचित्य: यह बादलों के विध्वंसक पहलू को उजागर करता है, जो शोषण और अन्याय की पुरानी व्यवस्था को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए आवश्यक है।
- ऐ अंत के चंचल शिशु सुकुमार!:
- व्याख्या: यह संबोधन थोड़ा विरोधाभासी लगता है लेकिन गहरा अर्थ रखता है। ‘अंत के’ का अर्थ है किसी चक्र के अंत में, या विनाश के बाद आने वाला। ‘चंचल शिशु सुकुमार’ नवजीवन, नवीनता और मासूमियत का प्रतीक है। यह उस नव-निर्माण की ओर संकेत करता है जो विनाश के बाद होता है।
- औचित्य: यह संबोधन क्रांति के दोहरे स्वरूप को दर्शाता है – एक ओर विध्वंस और दूसरी ओर नव-निर्माण की संभावना। विनाश के बाद ही नए, कोमल और सुंदर भविष्य का जन्म होता है।
बादल के लिए इन संबोधनों का औचित्य:
ये सभी संबोधन बादलों के विविध, बहुआयामी और प्रतीकात्मक स्वरूप को दर्शाने के लिए उचित हैं। निराला बादलों को केवल जल बरसाने वाले मेघ नहीं, बल्कि क्रांति के प्रतीक, सामाजिक परिवर्तन के अग्रदूत और नव-निर्माण के वाहक के रूप में देखते हैं। ये संबोधन बादलों की शक्ति, विशालता, उन्मुक्तता, विध्वंसक क्षमता और अंततः सृजनात्मकता को विभिन्न कोणों से प्रस्तुत करते हैं, जो निराला के प्रगतिवादी और विद्रोही काव्य-व्यक्तित्व के अनुरूप है। ये संबोधन बादलों के माध्यम से समाज में व्याप्त विषमता, शोषण और क्रांति की आवश्यकता को प्रभावी ढंग से व्यक्त करते हैं।
4. कवि बादलों को किस रूप में देखता है? कालिदास ने मेघदूत काव्य में मेघों को दूत के रूप में देखा। आप अपना कोई काल्पनिक बिंब दीजिए।
- कवि बादलों को किस रूप में देखता है? कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ बादलों को मुख्य रूप से क्रांति के अग्रदूत, विप्लव के वीर, शोषण के विरोधी और नव-निर्माण के वाहक के रूप में देखते हैं। वे बादलों में विनाश (पूंजीपतियों के लिए) और सृजन (किसानों-मजदूरों के लिए) दोनों की शक्ति एक साथ देखते हैं। उनके लिए बादल मात्र प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की एक प्रचंड शक्ति हैं।
- कालिदास ने मेघदूत काव्य में मेघों को दूत के रूप में देखा। आप अपना कोई काल्पनिक बिंब दीजिए। कालिदास ने मेघ को विरही यक्ष के संदेश को उसकी प्रेमिका तक ले जाने वाले ‘दूत’ के रूप में देखा, जो प्रेम और विरह की मानवीय भावना से ओत-प्रोत है।
मेरा काल्पनिक बिंब:
मैं बादलों को ‘अदृश्य स्वप्न-कारीगर‘ के रूप में देखता हूँ।
- व्याख्या: ये बादल आकाश की विशाल वर्कशॉप में लगातार गतिशील रहते हुए, दुनिया भर के अनगिनत सपनों को इकट्ठा करते हैं। वे किसानों के हरे-भरे खेतों के सपनों को, बच्चों के इंद्रधनुषी ख्वाबों को, प्रेमियों के मिलन की आशाओं को और संघर्षरत लोगों की न्याय की आकांक्षाओं को अपने भीतर समाहित करते हैं। फिर, वे बूंद-बूंद करके, धीमी वर्षा या मूसलधार बौछारों के रूप में उन सपनों को धरती पर उतारते हैं। उनकी गर्जना सपनों के साकार होने की घोषणा होती है, और उनकी बिजली चमक कर उन सपनों को रास्ता दिखाती है। वे सिर्फ पानी नहीं बरसाते, बल्कि उम्मीदों और संभावनाओं के बीज बोते हैं, जो अंततः जीवन के नए रूप लेते हैं। वे ऐसे कारीगर हैं जो चुपचाप, अदृश्य रूप से, मानवता के सामूहिक सपनों को आकार देते हैं और उन्हें वास्तविकता में बदलने का काम करते हैं।
5. कविता को प्रभावी बनाने के लिए कवि विशेषणों का सायास प्रयोग करता है जैसे- अस्थिर सुख। सुख के साथ अस्थिर विशेषण के प्रयोग ने सुख के अर्थ में विशेष प्रभाव पैदा कर दिया है। ऐसे अन्य विशेषणों को कविता से छाँटकर लिखें तथा बताएँ कि ऐसे शब्द-पदों के प्रयोग से कविता के अर्थ में क्या विशेष प्रभाव पैदा हुआ है?
कविता ‘बादल राग’ से ऐसे अन्य विशेषण और उनका प्रभाव:
- दग्ध हृदय:
- विशेषण: दग्ध (जला हुआ)
- किसके लिए: जग के हृदय (संसार के पीड़ित, शोषित लोगों के लिए)
- प्रभाव: यह विशेषण शोषित वर्ग की भयानक पीड़ा, कष्ट और शोषण से उत्पन्न आंतरिक जलन को तीव्रता से व्यक्त करता है। यह बताता है कि वे केवल भूखे या गरीब नहीं हैं, बल्कि उनका हृदय शोषण की अग्नि में झुलस चुका है।
- निर्दय विप्लव:
- विशेषण: निर्दय (दया रहित)
- किसके लिए: विप्लव (क्रांति)
- प्रभाव: यह विशेषण क्रांति के उस कठोर और निर्मम स्वरूप को दर्शाता है जो अपने रास्ते में आने वाली बाधाओं (शोषक वर्ग) के प्रति कोई दया नहीं दिखाती। यह क्रांति के प्रचंड और अनिवार्य रूप को रेखांकित करता है।
- प्लावित माया:
- विशेषण: प्लावित (डूबी हुई, छाई हुई)
- किसके लिए: माया (प्रभाव/जाल)
- प्रभाव: ‘माया’ (सामान्य अर्थ) के साथ ‘प्लावित’ विशेषण का प्रयोग क्रांति के सर्वव्यापी और overwhelming प्रभाव को दर्शाता है। यह बताता है कि क्रांति का प्रभाव इतना व्यापक होगा कि वह हर जगह छा जाएगा और किसी को भी नहीं बख्शेगा।
- सजग सुप्त अंकुर:
- विशेषण: सजग सुप्त (जागृत अवस्था में सोए हुए)
- किसके लिए: अंकुर (नए जीवन की आशा)
- प्रभाव: यह विरोधाभासी विशेषण (oxymoron) है। ‘सुप्त’ दिखाता है कि अंकुर धरती में दबे हैं, निष्क्रिय हैं, लेकिन ‘सजग’ दिखाता है कि वे बादलों की गर्जना सुनकर जागृत हो गए हैं और नवजीवन की आशा में सिर उठाए हुए हैं। यह शोषित वर्ग में क्रांति की आहट से उत्पन्न हुई आशा और चेतना को दर्शाता है।
- उन्नत शत-शत वीर:
- विशेषण: उन्नत (ऊँचे, समृद्ध)
- किसके लिए: वीर (पूंजीपति/सत्ताधारी)
- प्रभाव: ‘उन्नत’ विशेषण पूंजीपतियों की सामाजिक हैसियत, उनकी धन-संपत्ति और उनके दर्जे को दर्शाता है। यह बताता है कि वज्रपात (क्रांति) किसे निशाना बनाएगी – समाज के शीर्ष पर बैठे लोगों को।
- क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर:
- विशेषण: क्षत-विक्षत (घायल, लहूलुहान), हत (मारे गए)
- किसके लिए: अचल-शरीर (स्थिर, दृढ़) – यहाँ बड़े पेड़ या अट्टालिकाओं का प्रतीक
- प्रभाव: ये विशेषण क्रांति के विनाशकारी परिणाम को बहुत ही ग्राफिक रूप से प्रस्तुत करते हैं। ‘अचल’ होने के बावजूद उनका ‘क्षत-विक्षत’ और ‘हत’ होना क्रांति की प्रचंडता और उसके विध्वंसक सामर्थ्य को दर्शाता है।
- लघुभार (छोटे पौधे):
- विशेषण: लघुभार (कम भार वाले, हल्के)
- किसके लिए: छोटे पौधे
- प्रभाव: यह विशेषण छोटे पौधों की कोमलता, निर्बलता और नम्रता को दर्शाता है, लेकिन विरोधाभासी रूप से वे ही क्रांति के बाद शोभा पाते हैं। यह शोषित वर्ग की विनम्रता और उनके उत्थान की क्षमता को दर्शाता है।
- जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर:
- विशेषण: जीर्ण (पुरानी, कमजोर), शीर्ण (दुबला, कमजोर)
- किसके लिए: कृषक (किसान)
- प्रभाव: ये विशेषण किसान की गरीबी, शोषण और भूख के कारण हुई दयनीय शारीरिक दशा को मार्मिक रूप से चित्रित करते हैं। यह उसकी लाचारी और फिर भी क्रांति की आशा से जुड़े रहने की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
इन विशेषणों के सायास प्रयोग से कविता के अर्थ में गहराई, सजीवता और प्रतीकात्मकता आई है। ये केवल वस्तुओं या व्यक्तियों का वर्णन नहीं करते, बल्कि उनके पीछे के भाव, स्थिति और सामाजिक यथार्थ को सशक्त रूप से व्यक्त करते हैं। ये कवि के दृष्टिकोण और सामाजिक सरोकारों को भी स्पष्ट करते हैं।