MP Board 12th Social Institution Continuity and Changes : NCERT पाठ्यक्रम का मुख्य विषय ‘निरन्तरता एवं परिवर्तन’ (Continuity and Change) है। यह लेख इसी विषय पर आधारित है। हम यह विश्लेषण करेंगे कि भारत में परिवार और विवाह किन पहलुओं में आज भी वैसे ही हैं जैसे सदियों से थे (निरन्तरता), और किन पहलुओं में वे वैश्वीकरण (globalization), शहरीकरण (urbanization), शिक्षा और कानूनी सुधारों के कारण बदल रहे हैं (परिवर्तन)।
इकाई 2: सामाजिक संस्थाएँ; निरन्तरता एवं परिवर्तन : परिवार और विवाह
1. प्रस्तावना: सामाजिक संस्थाओं को समझना
सामाजिक संस्था (Social Institution) समाजशास्त्र में एक मौलिक अवधारणा है। यह केवल एक इमारत या एक संगठन नहीं है; बल्कि, यह समाज की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए स्थापित नियमों, मानदंडों (norms), मूल्यों (values) और व्यवहार के सुस्थापित प्रतिमानों (established patterns) का एक जटिल ताना-बाना है। ये संस्थाएँ हमारे व्यवहार को निर्देशित करती हैं, समाज को संरचना प्रदान करती हैं और पीढ़ी-दर-पीढ़ी ज्ञान और संस्कृति को हस्तांतरित करती हैं।
इस इकाई में, हम दो सबसे बुनियादी और सार्वभौमिक (universal) सामाजिक संस्थाओं पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं: परिवार (Family) और विवाह (Marriage)।
ये दोनों संस्थाएँ इतनी गहरी जड़ें जमा चुकी हैं कि हम अक्सर इन्हें ‘प्राकृतिक’ (natural) मान लेते हैं। लेकिन समाजशास्त्र हमें सिखाता है कि वे ‘प्राकृतिक’ नहीं, बल्कि ‘सामाजिक रूप से निर्मित’ (socially constructed) हैं। इसका अर्थ है कि वे समय, स्थान और संस्कृति के अनुसार बदलती हैं।
NCERT पाठ्यक्रम का मुख्य विषय ‘निरन्तरता एवं परिवर्तन’ (Continuity and Change) है। यह लेख इसी विषय पर आधारित है। हम यह विश्लेषण करेंगे कि भारत में परिवार और विवाह किन पहलुओं में आज भी वैसे ही हैं जैसे सदियों से थे (निरन्तरता), और किन पहलुओं में वे वैश्वीकरण (globalization), शहरीकरण (urbanization), शिक्षा और कानूनी सुधारों के कारण बदल रहे हैं (परिवर्तन)।
यह लेख कक्षा 12 के समाजशास्त्र के छात्रों को परीक्षा की दृष्टि से एक व्यापक समझ प्रदान करने के लिए तैयार किया गया है, जिसमें इन दोनों संस्थाओं की परिभाषा, प्रकार, पारंपरिक स्वरूप और आधुनिक परिवर्तनों का विस्तृत विश्लेषण शामिल है।
2. विवाह संस्था (The Institution of Marriage)
विवाह को अक्सर परिवार की नींव माना जाता है। यह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं है, बल्कि यह दो परिवारों, नातेदारी समूहों और कभी-कभी पूरे समुदायों को जोड़ता है।
2.1. विवाह की समाजशास्त्रीय परिभाषा
समाजशास्त्रीय रूप से, विवाह को दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच एक सामाजिक रूप से स्वीकृत और कानूनी रूप से मान्य (socially sanctioned and legally valid) संबंध के रूप में परिभाषित किया जाता है। इस संस्था के मुख्य कार्य हैं:
- यौन संबंधों को नियमित (regulate) करना।
- संतानोत्पत्ति (reproduction) को वैधता प्रदान करना।
- बच्चों के समाजीकरण (socialization) के लिए एक स्थिर इकाई प्रदान करना।
- पति-पत्नी और उनके नातेदारों के बीच अधिकारों और कर्तव्यों (rights and obligations) को परिभाषित करना।
2.2. विवाह के पारंपरिक प्रकार एवं नियम (Traditional Forms and Rules)
भारत की सांस्कृतिक विविधता इसके विवाह के प्रकारों में भी झलकती है:
- एकल विवाह (Monogamy): एक समय में एक पुरुष का एक महिला से विवाह। यह भारत और दुनिया में विवाह का सबसे आम और कानूनी रूप से स्वीकृत स्वरूप है।
- बहुविवाह (Polygamy): एक समय में एक से अधिक साथियों से विवाह।
- बहुपत्नी विवाह (Polygyny): एक पुरुष का एक से अधिक पत्नियों से विवाह। यह परंपरागत रूप से भारत के कुछ समुदायों में प्रचलित रहा है।
- बहुपति विवाह (Polyandry): एक महिला का एक से अधिक पतियों से विवाह। यह बहुत दुर्लभ है, लेकिन NCERT के अनुसार, यह हिमालयी क्षेत्र के कुछ समुदायों (जैसे उत्तराखंड के खस) में पाया जाता रहा है।
2.3. विवाह में ‘निरन्तरता’ (Continuity in Marriage)
भले ही समाज बदल रहा हो, भारतीय विवाह प्रणाली के कुछ मुख्य तत्व आज भी मज़बूती से कायम हैं। यह ‘निरन्तरता’ परीक्षा की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण विषय है।
1. अंतर्विवाह (Endogamy) का प्रभुत्व:
यह भारतीय विवाह की सबसे कठोर और निरंतर विशेषता है। अंतर्विवाह का अर्थ है कि अपने ही सामाजिक समूह के भीतर विवाह करना। यह समूह हो सकता है:
- जाति अंतर्विवाह (Caste Endogamy): यह नियम कि व्यक्ति को अपनी ही जाति या उप-जाति में विवाह करना चाहिए। यह आज भी भारत में विवाह का सबसे प्रमुख नियम है। अंतर-जातीय विवाह (inter-caste marriages) आज भी दुर्लभ हैं और उन्हें अक्सर सामाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है।
- धर्म अंतर्विवाह (Religious Endogamy): व्यक्ति से अपने ही धर्म में विवाह करने की अपेक्षा की जाती है।
2. बहिर्विवाह (Exogamy) के नियम:
इसका अर्थ है अपने समूह के बाहर विवाह करना। यह अंतर्विवाह के साथ-साथ चलता है।
- गोत्र बहिर्विवाह (Gotra Exogamy): हिंदू विवाह में, एक ही ‘गोत्र’ (एक पौराणिक पूर्वज से वंश का दावा) के सदस्यों के बीच विवाह वर्जित है, क्योंकि उन्हें ‘भाई-बहन’ माना जाता है।
- ग्राम बहिर्विवाह (Village Exogamy): उत्तर भारत के कई समुदायों में, अपने ही गाँव के भीतर विवाह करने की मनाही होती है।
3. तयशुदा विवाह (Arranged Marriage) की प्रधानता:
हालाँकि ‘प्रेम विवाह’ (Love Marriage) बढ़ रहे हैं, लेकिन भारत में आज भी अधिकांश विवाह तयशुदा (Arranged) होते हैं। ये विवाह दो व्यक्तियों के बजाय दो परिवारों के बीच एक ‘गठबंधन’ (alliance) माने जाते हैं। माता-पिता और नातेदार जीवन साथी चुनने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। यह ‘निरन्तरता’ का एक स्पष्ट उदाहरण है।
4. पितृसत्तात्मक मूल्य (Patriarchal Values):
विवाह की कई रस्में और उसके बाद का जीवन पितृसत्तात्मक मूल्यों को दर्शाता है।
- कन्यादान: यह विचार कि पिता अपनी पुत्री का ‘दान’ करता है।
- पितृ-स्थानीय निवास (Patrilocal Residence): विवाह के बाद पत्नी का अपने पति के घर (या पति के माता-पिता के घर) जाकर रहना। यह भारत में लगभग सार्वभौमिक है।
2.4. विवाह में ‘परिवर्तन’ (Change in Marriage)
आधुनिक भारत में विवाह संस्था स्थिर नहीं है; यह गहरे परिवर्तनों के दौर से गुज़र रही है।
1. जीवन साथी चुनने की प्रक्रिया में बदलाव:
- “लव-कम-अरेंज्ड” विवाह (Love-cum-Arranged): यह एक नई श्रेणी है जहाँ युवा अपनी पसंद के व्यक्ति से अपने माता-पिता को मिलवाते हैं और फिर परिवार ‘अरेंज्ड’ विवाह की औपचारिकताएँ पूरी करते हैं।
- मैट्रिमोनियल वेबसाइट और ऐप्स (Matrimonial Websites): यह ‘तयशुदा विवाह’ का ही एक आधुनिक रूप है। यह तकनीक का उपयोग करके जाति और धर्म के भीतर (अंतर्विवाह) ही जीवन साथी खोजने का एक तरीका है, लेकिन यह युवाओं को पहले की तुलना में अधिक विकल्प और थोड़ी अधिक स्वतंत्रता (agency) देता है।
- प्रेम विवाह (Love Marriage) की स्वीकृति: शहरी क्षेत्रों और शिक्षित वर्गों में प्रेम विवाह, अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक विवाहों की स्वीकृति धीरे-धीरे बढ़ रही है, हालाँकि इन्हें अभी भी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
2. विवाह की आयु में वृद्धि (Increase in Age of Marriage):
- कानूनी कारक: बाल विवाह निषेध अधिनियम (2006) ने लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष निर्धारित की है।
- शैक्षिक और आर्थिक कारक: महिला शिक्षा के प्रसार और करियर बनाने की आकांक्षाओं के कारण, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में, महिलाएँ देर से विवाह कर रही हैं। यह एक बहुत महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय और सामाजिक परिवर्तन है।
3. विवाह के उद्देश्यों में परिवर्तन:
- परंपरागत रूप से, विवाह का मुख्य उद्देश्य ‘धर्म’ (कर्तव्य), ‘प्रजा’ (संतान) और ‘रति’ (आनंद) था।
- आधुनिक समय में, साहचर्य (Companionship), भावनात्मक समर्थन (emotional support) और व्यक्तिगत खुशी (personal happiness) विवाह के प्रमुख उद्देश्य बनते जा रहे हैं।
4. विवाह-विच्छेद (Divorce) की बढ़ती दर:
- परंपरागत रूप से, हिंदू विवाह को एक ‘अटूट’ बंधन माना जाता था और तलाक (Divorce) को एक सामाजिक कलंक (taboo) समझा जाता था।
- हालाँकि आज भी तलाक की दर पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत कम है, लेकिन इसमें वृद्धि देखी जा रही है। इसके कारण हैं: महिलाओं की बढ़ती आर्थिक स्वतंत्रता, बदलती सामाजिक मानसिकता और कानूनी प्रक्रिया का सुलभ होना।
3. परिवार संस्था (The Institution of Family)
परिवार समाज की सबसे छोटी और सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिक समूह (Primary Group) है। यह समाजीकरण की पहली पाठशाला है, जहाँ बच्चा संस्कृति, मूल्य और मानदंड सीखता है।
3.1. परिवार की समाजशास्त्रीय परिभाषा
परिवार को उन लोगों के समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है जो रक्त (Blood), विवाह (Marriage) या गोद लेने (Adoption) के आधार पर एक-दूसरे से संबंधित होते हैं, एक साथ रहते हैं (common residence), आर्थिक सहयोग (economic cooperation) करते हैं और बच्चों का पालन-पोषण करते हैं।
3.2. परिवार के पारंपरिक प्रकार (Traditional Forms of Family)
भारतीय समाजशास्त्र में परिवार के विभिन्न स्वरूपों का अध्ययन महत्वपूर्ण है।
1. संरचना के आधार पर (Based on Structure):
- एकल परिवार (Nuclear Family): इसमें पति, पत्नी और उनके अविवाहित बच्चे शामिल होते हैं। यह छोटा और लचीला होता है।
- संयुक्त परिवार (Joint Family): यह भारतीय संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें दो या दो से अधिक पीढ़ियों के लोग एक साथ रहते हैं, एक ही रसोई (common kitchen) का खाना खाते हैं, जिनकी संपत्ति साझी (common property) होती है और जो एक-दूसरे से नातेदारी के बंधनों से जुड़े होते हैं।
2. सत्ता के आधार पर (Based on Authority):
- पितृसत्तात्मक परिवार (Patriarchal Family): सत्ता और अधिकार घर के सबसे बुज़ुर्ग पुरुष (पिता या दादा) के हाथ में होता है। संपत्ति और वंश का नाम पिता से पुत्र को हस्तांतरित होता है। यह भारत में परिवार का सबसे प्रमुख रूप है।
- मातृसत्तात्मक परिवार (Matriarchal Family): सत्ता और अधिकार महिला के हाथ में होता है। (यह ‘मातृवंशीय’ से भिन्न है)।
3. वंश और निवास के आधार पर (Based on Descent and Residence):
- पितृवंशीय (Patrilineal) और पितृ-स्थानीय (Patrilocal): वंश पिता के नाम से चलता है और पत्नी पति के घर रहती है। (भारत में आम)।
- मातृवंशीय (Matrilineal) और मातृ-स्थानीय (Matrilocal): वंश माँ के नाम से चलता है और पति पत्नी के घर आकर रहता है। NCERT के अनुसार, इसके उदाहरण भारत में मेघालय की खासी (Khasis) और गारो (Garos) तथा केरल के नायर (Nairs) समुदाय हैं। इन समाजों में संपत्ति का अधिकार महिलाओं (माँ से बेटी) को मिलता है।
3.3. परिवार में ‘निरन्तरता’ (Continuity in Family)
परिवर्तन के दावों के बावजूद, भारतीय परिवार में कई तत्व निरंतर बने हुए हैं:
1. समाजीकरण की प्राथमिक इकाई:
परिवार आज भी बच्चे के समाजीकरण, मूल्य-शिक्षण और पहचान-निर्माण की सबसे महत्वपूर्ण संस्था है।
2. नातेदारी का महत्व (Importance of Kinship):
भले ही लोग एकल परिवारों में रह रहे हों, लेकिन नातेदारी (Kinship) के बंधन बहुत मज़बूत हैं। शादी, त्योहारों और संकट के समय पूरा ‘कुटुंब’ (विस्तारित परिवार) एक साथ आता है।
3. पितृसत्तात्मक ढाँचा:
परिवार का स्वरूप बदल गया हो, लेकिन सत्ता का ढाँचा अभी भी काफी हद तक पितृसत्तात्मक है। महत्वपूर्ण निर्णय (वित्तीय, करियर) अभी भी पुरुषों द्वारा लिए जाते हैं, हालाँकि इसमें धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है।
4. सामाजिक सुरक्षा का जाल (Social Security Net):
भारत जैसे देश में, जहाँ राज्य द्वारा प्रदान की जाने वाली सामाजिक सुरक्षा (जैसे बेरोज़गारी भत्ता, वृद्धावस्था देखभाल) सीमित है, परिवार आज भी अपने सदस्यों के लिए मुख्य ‘सामाजिक सुरक्षा जाल’ (Social Safety Net) के रूप में कार्य करता है—बीमारी, बेरोज़गारी और बुढ़ापे में यही सहारा देता है।
3.4. परिवार में ‘परिवर्तन’ (Change in Family)
यह इस इकाई का सबसे महत्वपूर्ण खंड है। भारतीय परिवार गहरे परिवर्तनों से गुज़र रहा है।
1. संयुक्त परिवार से एकल परिवार की ओर रुझान (Trend from Joint to Nuclear):
यह आधुनिक भारत में सबसे बड़ा सामाजिक परिवर्तन है। इसके मुख्य कारण हैं:
- शहरीकरण (Urbanization): शहरों में आवास (Housing) की कमी और छोटे घर संयुक्त परिवार के लिए उपयुक्त नहीं होते।
- प्रवासन (Migration): लोग शिक्षा और रोज़गार (employment) के लिए अपने पैतृक गाँव या कस्बे को छोड़कर दूसरे शहरों में जाते हैं, जिससे वे अपने मूल परिवार से अलग हो जाते हैं।
- औद्योगीकरण (Industrialization): नई नौकरियाँ कृषि-आधारित न होकर व्यक्ति-आधारित होती हैं, जिससे परिवार की आर्थिक एकजुटता कम होती है।
- व्यक्तिवाद (Individualism): आधुनिक शिक्षा गोपनीयता (privacy) और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर ज़ोर देती है, जो कभी-कभी संयुक्त परिवार के सामूहिक जीवन से मेल नहीं खाती।
2. “कार्यात्मक रूप से संयुक्त” परिवार (Functionally Joint Family):
समाजशास्त्री कहते हैं कि भले ही परिवार ‘संरचनात्मक’ (structurally) रूप से (यानी एक छत के नीचे) संयुक्त न रह गए हों, वे आज भी ‘कार्यात्मक’ (functionally) रूप से संयुक्त हैं। इसका मतलब है कि एकल परिवार में रहने वाले बच्चे अभी भी आर्थिक रूप से (पैसा भेजना), भावनात्मक रूप से और निर्णय लेने में (माता-पिता से सलाह लेना) अपने मूल परिवार से गहराई से जुड़े हुए हैं।
3. परिवार के कार्यों में परिवर्तन (Change in Functions):
परंपरागत रूप से, परिवार ही शिक्षा, स्वास्थ्य और मनोरंजन का केंद्र था।
- आधुनिक परिवर्तन: अब ये कार्य अन्य संस्थाओं ने ले लिए हैं, जैसे:
- शिक्षा: स्कूल, कॉलेज और कोचिंग सेंटर।
- स्वास्थ्य: अस्पताल और क्लिनिक।
- मनोरंजन: सिनेमा, टेलीविजन और इंटरनेट।
- अब परिवार का मुख्य कार्य भावनात्मक समर्थन (Emotional Support) और समाजीकरण (Socialization) तक सीमित होता जा रहा है।
4. महिलाओं की बदलती स्थिति (Changing Status of Women):
- यह परिवार के भीतर परिवर्तन का सबसे बड़ा चालक (driver) है।
- महिलाओं के शिक्षित होने और आर्थिक रूप से स्वतंत्र (Economically Independent) होने (नौकरी करने) से परिवार के भीतर सत्ता-संतुलन (power dynamics) बदल रहा है।
- वे अब केवल ‘देखभाल’ करने वाली नहीं हैं, बल्कि ‘निर्णय लेने’ (decision-making) वाली भी बन रही हैं। इससे पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं (traditional gender roles) को चुनौती मिल रही है।
5. नई पारिवारिक संरचनाओं का उदय (Emergence of New Family Forms):
- एकल-अभिभावक परिवार (Single-Parent Families): तलाक की बढ़ती दर या बिना विवाह के बच्चे होने (हालाँकि यह भारत में दुर्लभ है) के कारण इनकी संख्या बढ़ रही है।
- लिव-इन-रिलेशनशिप (Live-in Relationships): हालाँकि सामाजिक रूप से अभी भी व्यापक रूप से अस्वीकृत हैं, लेकिन महानगरीय क्षेत्रों में यह एक उभरता हुआ चलन है, जिसे कानूनी मान्यता भी मिल रही है।
- द्वि-कैरियर परिवार (Dual-Career Families): जहाँ पति और पत्नी दोनों काम करते हैं, जिससे बच्चों की देखभाल (child-care) और घरेलू काम के बँटवारे को लेकर नए सवाल उठ रहे हैं।
4. निष्कर्ष
यह लेख भारतीय समाज की दो सबसे महत्वपूर्ण संस्थाओं—परिवार और विवाह—के जटिल स्वरूप का विश्लेषण करता है।
कक्षा 12 के समाजशास्त्र के छात्रों के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि ये संस्थाएँ ‘स्थिर’ (static) नहीं हैं। NCERT का ‘निरन्तरता एवं परिवर्तन’ (Continuity and Change) का विषय हमें यही सिखाता है कि कुछ चीज़ें आश्चर्यजनक रूप से वैसी ही बनी हुई हैं (जैसे जाति अंतर्विवाह, परिवार का एक सुरक्षा जाल के रूप में महत्व), वहीं दूसरी ओर, बहुत कुछ तेज़ी से बदल रहा है (जैसे संयुक्त से एकल परिवार, महिलाओं की बढ़ती भूमिका, और जीवन साथी चुनने की स्वतंत्रता)।
परिवार और विवाह ‘खत्म’ नहीं हो रहे हैं, जैसा कि कुछ लोग कहते हैं। बल्कि, वे ‘अनुकूलन’ (Adapting) कर रहे हैं। वे आधुनिक चुनौतियों—जैसे शहरीकरण, व्यक्तिवाद और लैंगिक समानता—का सामना करने के लिए अपने स्वरूप को बदल रहे हैं। एक समाजशास्त्री का काम इसी नाजुक संतुलन, इसी ‘निरन्तरता’ और ‘परिवर्तन’ के ताने-बाने को समझना और उसका विश्लेषण करना है।