MP Board 12th Indian Demographic Changes Challenges भारत में जनसांख्यिकीय परिवर्तन और चुनौतियाँ: एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण

MP Board 12th Indian Demographic Changes Challenges : कक्षा 12 के समाजशास्त्र के पाठ्यक्रम के लिए, इन परिवर्तनों और इनसे जुड़ी चुनौतियों (Challenges) को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह लेख NCERT के पाठ्यक्रम के अनुरूप, भारत के इन जनसांख्यिकीय बदलावों के मूल में स्थित सिद्धांत, वर्तमान परिदृश्य और भविष्य की प्रमुख चुनौतियों का विस्तृत विश्लेषण करेगा।

📈 भारत में जनसांख्यिकीय परिवर्तन और चुनौतियाँ: एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण


1. प्रस्तावना: बदलता भारतीय समाज

जनसांख्यिकी (Demography), जैसा कि हमने समझा है, केवल जनसंख्या का गिनती मात्र नहीं है; यह आबादी की संरचना, वितरण और परिवर्तन का वैज्ञानिक अध्ययन है। ‘जनसांख्यिकीय परिवर्तन’ (Demographic Change) का तात्पर्य किसी देश की आबादी की संरचना (आयु, लिंग, निवास) में समय के साथ होने वाले बदलावों से है।

भारत, दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश, वर्तमान में एक अभूतपूर्व जनसांख्यिकीय परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है। यह परिवर्तन केवल आँकड़ों का खेल नहीं है, बल्कि यह हमारी अर्थव्यवस्था, समाज, राजनीति और भविष्य को गहराई से प्रभावित कर रहा है।

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कक्षा 12 के समाजशास्त्र के पाठ्यक्रम के लिए, इन परिवर्तनों और इनसे जुड़ी चुनौतियों (Challenges) को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह लेख NCERT के पाठ्यक्रम के अनुरूप, भारत के इन जनसांख्यिकीय बदलावों के मूल में स्थित सिद्धांत, वर्तमान परिदृश्य और भविष्य की प्रमुख चुनौतियों का विस्तृत विश्लेषण करेगा।


2. जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धांत (The Theory of Demographic Transition)

यह समाजशास्त्र और जनसांख्यिकी का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो जनसंख्या परिवर्तन को समझाता है। यह सिद्धांत बताता है कि जैसे-जैसे कोई समाज कृषि-आधारित, अशिक्षित और ग्रामीण से औद्योगिक, शिक्षित और नगरीय बनता है, उसकी जनसंख्या की गतिशीलता भी बदलती है। यह परिवर्तन मुख्य रूप से जन्म दर (Birth Rate) और मृत्यु दर (Death Rate) में बदलाव के माध्यम से होता है।

यह सिद्धांत आमतौर पर चार (या कभी-कभी पाँच) चरणों में होता है:

  • चरण 1: उच्च स्थिर (High Stationary)
    • विशेषता: उच्च जन्म दर और उच्च मृत्यु दर।
    • परिणाम: जनसंख्या लगभग स्थिर रहती है या बहुत धीमी गति से बढ़ती है।
    • कारण: समाज अविकसित होता है। महामारियाँ, अकाल, और खराब स्वास्थ्य सेवाओं के कारण मृत्यु दर अधिक होती है। परिवार बड़े होते हैं क्योंकि बच्चों को ‘आर्थिक संपत्ति’ (काम में हाथ बंटाने वाले) और ‘सामाजिक सुरक्षा’ (बुढ़ापे का सहारा) माना जाता है। 1921 से पहले भारत इसी चरण में था।
  • चरण 2: प्रारंभिक विस्तार (Early Expanding)
    • विशेषता: जन्म दर उच्च बनी रहती है, लेकिन मृत्यु दर तेज़ी से गिरती है
    • परिणाम: जनसंख्या में तीव्र वृद्धि, जिसे “जनसंख्या विस्फोट” (Population Explosion) कहा जाता है।
    • कारण: विज्ञान और चिकित्सा में प्रगति (जैसे टीके, एंटीबायोटिक्स), बेहतर स्वच्छता, और खाद्य सुरक्षा के कारण मृत्यु दर पर नियंत्रण हो जाता है। लेकिन सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंड (जैसे जल्दी शादी, बेटे की चाह) बदलने में समय लगता है, इसलिए जन्म दर ऊंची बनी रहती है। आज़ादी के बाद भारत ने इसी चरण का अनुभव किया।
  • चरण 3: देर से विस्तार (Late Expanding)
    • विशेषता: मृत्यु दर निम्न बनी रहती है, और जन्म दर भी गिरने लगती है
    • परिणाम: जनसंख्या वृद्धि दर धीमी होने लगती है।
    • कारण: साक्षरता (विशेषकर महिला शिक्षा) बढ़ती है, परिवार नियोजन (Family Planning) के साधन सुलभ होते हैं, शहरीकरण होता है, और बच्चे ‘आर्थिक संपत्ति’ के बजाय ‘आर्थिक ज़िम्मेदारी’ (उनकी शिक्षा पर खर्च) बन जाते हैं। भारत वर्तमान में इसी संक्रमणकालीन चरण में है।
  • चरण 4: निम्न स्थिर (Low Stationary)
    • विशेषता: निम्न जन्म दर और निम्न मृत्यु दर।
    • परिणाम: जनसंख्या फिर से स्थिर हो जाती है, या बहुत धीमी गति से बढ़ती है (जैसे यूरोप, जापान)।

3. भारतीय संदर्भ: जनसंख्या विस्फोट और क्षेत्रीय असमानताएँ

भारत का जनसांख्यिकीय इतिहास संक्रमण सिद्धांत का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

  • 1921: “महान विभाजक वर्ष” (The Great Divide)
    • 1921 से पहले, भारत की जनसंख्या वृद्धि अनियमित थी क्योंकि उच्च जन्म दर को उच्च मृत्यु दर (अकाल और महामारियों के कारण) संतुलित कर देती थी।
    • 1921 के बाद, बेहतर स्वास्थ्य और स्वच्छता के कारण मृत्यु दर में लगातार गिरावट शुरू हुई, और भारत ने चरण 2 (जनसंख्या विस्फोट) में प्रवेश किया।
  • जनसंख्या की गति (Population Momentum)
    • यह एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। इसका मतलब है कि भले ही आज भारत में प्रति महिला बच्चों की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate – TFR) गिरकर प्रतिस्थापन स्तर (replacement level – 2.1) के करीब आ गई हो, फिर भी हमारी आबादी बढ़ती रहेगी।
    • क्यों? क्योंकि अतीत की उच्च जन्म दर के कारण, आज हमारे पास ‘युवाओं’ (जो जल्द ही माता-पिता बनेंगे) की एक बहुत बड़ी आबादी है। यह ठीक एक तेज़ रफ़्तार ट्रेन की तरह है जिसे ब्रेक लगाने के बाद भी रुकने में समय लगता है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ (Regional Disparities)
    • भारत का जनसांख्यिकीय परिवर्तन एकसमान नहीं है।
    • दक्षिण भारत (जैसे केरल, तमिलनाडु): ये राज्य संक्रमण के चरण 4 के करीब हैं। यहाँ TFR प्रतिस्थापन स्तर से भी नीचे चला गया है और जनसंख्या स्थिर हो रही है।
    • उत्तर भारत (जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश): ये राज्य अभी भी संक्रमण के चरण 3 में हैं। यहाँ TFR अभी भी अपेक्षाकृत अधिक है, जिससे इन राज्यों में जनसंख्या वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है।

4. प्रमुख चुनौती 1: जनसांख्यिकीय लाभांश या आपदा? (Demographic Dividend or Disaster?)

यह आज भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती और सबसे बड़ा अवसर है।

जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend) क्या है?
यह एक “अवसर की खिड़की” (window of opportunity) है। जब किसी देश की आयु संरचना में परिवर्तन होता है और उसकी कार्यशील आयु की जनसंख्या (15-59 वर्ष) का हिस्सा, आश्रित जनसंख्या (0-14 वर्ष और 60+ वर्ष) की तुलना में बढ़ जाता है, तो उस देश को आर्थिक विकास का एक अनूठा अवसर मिलता है।

  • अवसर: कम आश्रितों का मतलब है कि परिवार अधिक बचत (Savings) कर सकते हैं, और सरकार स्वास्थ्य और शिक्षा पर कम खर्च करके उस पैसे को बुनियादी ढाँचे और उद्योगों में निवेश कर सकती है। एक बड़ी युवा आबादी का मतलब है एक बड़ा कार्यबल (Workforce) और बड़ा बाज़ार।

लाभांश को भुनाने की चुनौतियाँ (The Challenges):

यह लाभांश स्वचालित (automatic) नहीं है। यह “लाभांश” आसानी से “जनसांख्यिकीय आपदा” (Demographic Disaster) में बदल सकता है यदि हम इन चुनौतियों का समाधान नहीं करते हैं:

  1. शिक्षा और कौशल (Education and Skills):
    • चुनौती: हमारे पास एक बड़ी युवा आबादी है, लेकिन क्या वे रोज़गार के योग्य (Employable) हैं? भारत की शिक्षा प्रणाली अक्सर रटने पर आधारित होती है और उद्योगों को जिस ‘कौशल’ (Skill) की ज़रूरत है, वह नहीं दे पाती।
    • आवश्यकता: शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और बड़े पैमाने पर कौशल विकास (Skill Development) कार्यक्रम।
  2. रोजगार सृजन (Job Creation):
    • चुनौती: भारतीय अर्थव्यवस्था “रोज़गारहीन वृद्धि” (Jobless Growth) का सामना कर रही है, जहाँ GDP तो बढ़ रही है, लेकिन उस अनुपात में अच्छी गुणवत्ता वाली नौकरियाँ पैदा नहीं हो रही हैं।
    • आवश्यकता: विनिर्माण (Manufacturing) और सेवा क्षेत्रों में लाखों रोज़गार पैदा करना।
  3. कम महिला श्रम बल भागीदारी (Low Female Labour Force Participation):
    • चुनौती: भारत में महिला श्रम बल की भागीदारी (LFPR) दुनिया में सबसे कम (लगभग 25-30%) है। इसका मतलब है कि हम अपनी आधी आबादी की क्षमता का उपयोग ही नहीं कर रहे हैं।
    • आवश्यकता: महिलाओं के लिए सुरक्षित और सुलभ रोज़गार के अवसर पैदा करना।
  4. स्वास्थ्य (Health):
    • चुनौती: एक कुपोषित (Malnourished) और अस्वस्थ युवा आबादी उत्पादक (productive) नहीं हो सकती।
    • आवश्यकता: सार्वजनिक स्वास्थ्य में भारी निवेश।

यदि हम इन युवाओं को शिक्षित और रोज़गार नहीं दे पाए, तो यही युवा आबादी बेरोज़गार, असंतुष्ट और सामाजिक अशांति का कारण बन सकती है।


5. प्रमुख चुनौती 2: वृद्ध होती जनसंख्या (The Ageing Population)

यह एक उभरती हुई चुनौती है जो जनसांख्यिकीय संक्रमण का तार्किक परिणाम है।

  • क्यों हो रहा है? क्योंकि जन्म दर गिर रही है (कम बच्चे पैदा हो रहे हैं) और जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) बढ़ रही है (लोग अधिक समय तक जीवित हैं)।
  • आँकड़े: अनुमान है कि 2036 तक भारत में 60+ आयु वर्ग के लोगों की संख्या लगभग 23 करोड़ (कुल आबादी का 15%) हो जाएगी।

वृद्ध होती आबादी की चुनौतियाँ:

  1. सामाजिक चुनौती (Social Challenge):
    • परंपरागत रूप से, भारत में बुजुर्गों की देखभाल संयुक्त परिवार (Joint Family) करता था।
    • लेकिन शहरीकरण और एकल परिवारों (Nuclear Families) के उदय के साथ, यह पारंपरिक सहारा तंत्र (support system) कमज़ोर पड़ रहा है। इससे बुजुर्गों में अकेलापन और उपेक्षा की समस्या बढ़ रही है।
  2. आर्थिक चुनौती (Economic Challenge):
    • भारत में अधिकांश लोग असंगठित क्षेत्र (Informal Sector) में काम करते हैं, जहाँ कोई औपचारिक पेंशन (Pension) या सामाजिक सुरक्षा (Social Security) नहीं होती है।
    • इससे वृद्धावस्था में वित्तीय निर्भरता और गरीबी का ख़तरा बढ़ जाता है।
  3. स्वास्थ्य चुनौती (Health Challenge):
    • वृद्धावस्था अपने साथ कई स्वास्थ्य समस्याएँ (जैसे मधुमेह, हृदय रोग) लाती है।
    • भारत का स्वास्थ्य ढाँचा वृद्ध-विशिष्ट स्वास्थ्य सेवाओं (Geriatric Care) के लिए तैयार नहीं है।
  4. वृद्धावस्था का नारीकरण (Feminization of Ageing):
    • चूंकि महिलाएँ पुरुषों की तुलना में अधिक समय तक जीवित रहती हैं, इसलिए वृद्ध आबादी में महिलाओं, विशेष रूप से विधवाओं की संख्या अधिक होती है, जो अक्सर आर्थिक और सामाजिक रूप से अधिक असुरक्षित होती हैं।

6. सतत चुनौतियाँ: लिंग अनुपात और शहरीकरण

ये वे चुनौतियाँ हैं जो परिवर्तन के साथ-साथ लगातार बनी हुई हैं:

  1. विषम लिंग अनुपात (Skewed Sex Ratio):
    • चुनौती: जैसा कि हमने पहले पढ़ा है, भारत में पितृसत्ता (Patriarchy), पुत्र-मोह (Son Preference) और प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग (लिंग-चयनात्मक गर्भपात) के कारण बाल लिंग अनुपात (Child Sex Ratio – CSR) खतरनाक स्तर पर गिर गया (2011 में 919)।
    • परिणाम: यह न केवल महिलाओं के खिलाफ गहरे भेदभाव को दर्शाता है, बल्कि भविष्य में “विवाह संकट” (Marriage Squeeze) और महिलाओं के खिलाफ हिंसा में वृद्धि जैसी गंभीर सामाजिक समस्याएँ पैदा करता है।
  2. अनियोजित शहरीकरण (Unplanned Urbanization):
    • चुनौती: जनसांख्यिकीय परिवर्तन में केवल आयु ही नहीं, बल्कि निवास (Residence) का परिवर्तन भी शामिल है। लाखों लोग रोज़गार की तलाश में गाँवों से शहरों की ओर प्रवासन (Migration) कर रहे हैं।
    • परिणाम: यह प्रवासन शहरों पर भारी दबाव डालता है, जिससे गंदी बस्तियों (Slums), पानी, बिजली, परिवहन और आवास की कमी, और गंभीर प्रदूषण की चुनौतियाँ पैदा होती हैं।

7. नीतिगत प्रतिक्रिया: राष्ट्रीय जनसंख्या नीति (National Population Policy – NPP) 2000

इन सभी परिवर्तनों और चुनौतियों के जवाब में, भारत सरकार ने समय-समय पर जनसंख्या नीतियाँ अपनाई हैं।

  • आपातकाल (1975-77) का सबक: इस दौरान बड़े पैमाने पर ज़बरन नसबंदी (Forced Sterilization) कार्यक्रम चलाए गए, जो अलोकतांत्रिक थे और बुरी तरह विफल रहे।
  • राष्ट्रीय जनसंख्या नीति (NPP) 2000:
    • इस नीति ने आपातकाल के “जबरदस्ती” वाले दृष्टिकोण को पूरी तरह से बदल दिया।
    • इसका मुख्य दर्शन (Philosophy) “स्वैच्छिक और सूचित विकल्प” (Voluntary and Informed Choice) और “लक्ष्य-मुक्त दृष्टिकोण” (Target-Free Approach) है।
    • यह नीति समझती है कि जनसंख्या नियंत्रण केवल गर्भनिरोधक (Contraception) बाँटने से नहीं होगा, बल्कि जीवन की गुणवत्ता (Quality of Life) में सुधार करके होगा।

NPP 2000 के मुख्य उद्देश्य:

  1. तात्कालिक: गर्भनिरोधक और स्वास्थ्य सेवाओं की अधूरी ज़रूरतों (Unmet Needs) को पूरा करना।
  2. मध्यम-अवधि: कुल प्रजनन दर (TFR) को 2010 तक 2.1 (प्रतिस्थापन स्तर) तक लाना।
  3. दीर्घ-अवधि: 2045 तक जनसंख्या को स्थिर (Stable) करना।

यह नीति जनसंख्या को केवल एक ‘समस्या’ के रूप में नहीं देखती, बल्कि यह मानती है कि यदि शिक्षा (विशेषकर बालिकाओं की), शिशु मृत्यु दर (IMR) और मातृ मृत्यु दर (MMR) को कम किया जाए, और विवाह की आयु बढ़ाई जाए, तो लोग स्वयं छोटे परिवारों को अपनाएंगे।


8. निष्कर्ष

भारत आज एक जनसांख्यिकीय चौराहे (Demographic Crossroads) पर खड़ा है। हम न तो चीन की तरह “बूढ़े” (Ageing) हुए हैं और न ही नाइजीरिया की तरह “अत्यधिक युवा” (High Fertility) हैं। हम “संक्रमण” के मध्य में हैं।

  • हमारे पास “जनसांख्यिकीय लाभांश” के रूप में एक अनूठा अवसर है, जो अगले 20-30 वर्षों तक रहेगा।
  • लेकिन इस अवसर को भुनाने के लिए हमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल और रोज़गार (विशेषकर महिलाओं के लिए) में युद्ध-स्तर पर निवेश करना होगा।
  • साथ ही, हमें वृद्ध होती आबादी की देखभाल के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रणालियाँ विकसित करनी होंगी, लिंग अनुपात में समानता लानी होगी और अपने शहरीकरण को सुव्यवस्थित करना होगा।

एक समाजशास्त्र के छात्र के रूप में, यह समझना महत्वपूर्ण है कि जनसांख्यिकी नियति (Destiny) नहीं है; यह सही नीतियों और सामाजिक परिवर्तनों के माध्यम से आकार दी जा सकने वाली एक प्रक्रिया है। भारत का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि हम इन जनसांख्यिकीय चुनौतियों को कितनी कुशलता से अवसरों में बदलते हैं।

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