वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत MP Board 12th Biology Principles of Inheritance and Variation
विषय-सूची
- मेंडल के वंशागति के नियम (Mendel’s Laws of Inheritance)
- एक जीन की वंशागति (Inheritance of One Gene)
- दो जीनों की वंशागति (Inheritance of Two Genes)
- बहुजीनी वंशागति (Polygenic Inheritance)
- बहुप्रभाविता (Pleiotropy)
- लिंग निर्धारण (Sex Determination)
- उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) (Mutation)
- आनुवांशिक विकार (Genetic Disorders)
MP Board 12th Biology Principles of Inheritance and Variation : वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत (अध्याय 4, कक्षा जीव विज्ञान) पर आधारित नोट्स को और अधिक विस्तृत व्याख्या, अतिरिक्त उदाहरणों तथा परीक्षा में उपयोगी बिंदुओं के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह विस्तृत नोट्स आपको विषय की गहन समझ प्रदान करेगा।
अध्याय 4: वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत (Principles of Inheritance and Variation) – विस्तृत नोट्स
आनुवंशिकी (Genetics) जीव विज्ञान की वह शाखा है जो वंशागति (माता-पिता से संतानों में लक्षणों का जाना) और विविधता (संतानों में मौजूद विभिन्नताएँ) का अध्ययन करती है। यह इस बात का अध्ययन है कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में सूचनाएँ कैसे संकेतित (coded), संगृहीत (stored) और व्यक्त (expressed) होती हैं।
4.1 मेंडल के वंशागति के नियम (Mendel’s Laws of Inheritance)
ग्रेगर जॉन मेंडल ने वीं शताब्दी में उद्यान मटर पर
वर्षों तक प्रयोग किए। उन्होंने आनुवंशिकी की नींव रखी, इसलिए उन्हें आनुवंशिकी का जनक कहा जाता है।
मेंडल के प्रयोगों में सफलता के कारण:
- सांख्यिकीय विश्लेषण: उन्होंने अपने परिणामों का सावधानीपूर्वक रिकॉर्ड रखा और गणितीय तर्क लागू किया।
- कारक (Factors) की अवधारणा: उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि कुछ स्थायी और असतत इकाइयाँ (जिन्हें आज हम जीन कहते हैं) लक्षणों को नियंत्रित करती हैं।
- शुद्ध नस्ल का उपयोग: उन्होंने
किस्मों में से
शुद्ध प्रजनन (True-breeding) किस्मों को चुना, जिससे प्रयोगों के परिणाम विश्वसनीय रहे।
महत्त्वपूर्ण आनुवंशिकी शब्दावली की गहन समझ:
पद | परिभाषा | उदाहरण |
---|---|---|
जीन (Gene) | ![]() | वह इकाई जो मटर में ‘ऊँचाई’ का लक्षण तय करती है। |
युग्मविकल्पी (Allele) | एक ही जीन के थोड़े भिन्न रूप जो एक गुणसूत्र पर समान स्थान (लोकस) पर मौजूद होते हैं। | लम्बेपन के लिए ![]() ![]() |
समयुग्मजी | किसी लक्षण के लिए एक जैसे युग्मविकल्पी का जोड़ा। | ![]() ![]() |
विषमयुग्मजी | किसी लक्षण के लिए भिन्न युग्मविकल्पी का जोड़ा। | ![]() |
फिनोटाइप | जीव की बाहरी, प्रेक्षणीय विशेषता। | लम्बा या बौना पौधा। |
जीनोटाइप | जीव का आनुवंशिक संघटन (युग्मविकल्पियों का जोड़ा)। | ![]() ![]() ![]() |
4.2 एक जीन की वंशागति (Monohybrid Cross)
मेंडल का एकसंकर संकरण () केवल एक विपर्यास लक्षण (जैसे तने की ऊँचाई) की वंशागति का अध्ययन करता है।
प्रयोग का चरण-दर-चरण विश्लेषण:
- P (जनक) पीढ़ी: शुद्ध लम्बा (
)
शुद्ध बौना (
)।
पीढ़ी: सभी पौधे विषमयुग्मजी लम्बे (
) थे। यहाँ अप्रभावी लक्षण (
) व्यक्त नहीं हो पाया।
पीढ़ी:
का स्व-परागण (
) कराने पर लम्बे और बौने पौधे
के अनुपात में प्राप्त हुए।
पीढ़ी का पुननेट वर्ग (Punnett Square) विश्लेषण:
फिनोटाइप अनुपात:
लम्बे :
बौना
जीनोटाइप अनुपात:
(
) :
(
) :
(
)
मेंडल के नियम (
परिणामों पर आधारित):
1. प्रभाविता का नियम (Law of Dominance):
- यह नियम बताता है कि विषमयुग्मजी अवस्था में, केवल प्रभावी युग्मविकल्पी (
) ही स्वयं को व्यक्त करता है, जबकि अप्रभावी युग्मविकल्पी (
) अभिव्यक्त नहीं हो पाता।
- नैदानिक महत्त्व: यह नियम कई आनुवंशिक रोगों (जैसे हंटिंगटन रोग) के वंशागति पैटर्न को समझने में मदद करता है, जो अक्सर प्रभावी होते हैं।
2. विसंयोजन का नियम (Law of Segregation):
- यह नियम युग्मक (Gametes) की शुद्धता पर आधारित है।
- जब युग्मक बनते हैं, तो प्रत्येक युग्मविकल्पी एक-दूसरे से अलग हो जाता है (विसंयोजित)।
- इसलिए, प्रत्येक युग्मक किसी भी लक्षण के लिए केवल एक युग्मविकल्पी धारण करता है (जैसे
या
), जिससे युग्मक शुद्ध रहते हैं।
प्रभाविता से विचलन (Deviations from Dominance):
(i) अपूर्ण प्रभाविता (Incomplete Dominance):
- यह प्रभाविता के नियम का एक अपवाद है।
- परिभाषा:
संकर दोनों जनकों से न मिलकर मध्यवर्ती (Intermediate) लक्षण प्रदर्शित करता है।
- उदाहरण:स्नैपड्रैगन (
) के पुष्प का रंग।
- लाल (
)
सफेद (
)
में गुलाबी (
) पुष्प।
- महत्त्व: इसमें
पीढ़ी में फिनोटाइप और जीनोटाइप अनुपात दोनों
होता है।
- लाल (
(ii) सहप्रभाविता (Co-dominance):
- परिभाषा:
विषमयुग्मजी में, दोनों युग्मविकल्पी (Alleles) स्वयं को समान रूप से और पूरी तरह से व्यक्त करते हैं।
- उदाहरण:मानव
रक्त समूह।
- जीन
के
और
युग्मविकल्पी सहप्रभावी होते हैं। जब ये दोनों उपस्थित होते हैं (
), तो व्यक्ति का रक्त समूह
होता है, जिसका अर्थ है कि
और
दोनों प्रकार के एंटीजन व्यक्त होते हैं।
- बहुविकल्पता (Multiple Allelism):
रक्त समूह सहप्रभाविता के साथ-साथ बहुविकल्पता (जब एक जीन के दो से अधिक युग्मविकल्पी जनसंख्या में मौजूद हों) का भी उदाहरण है, क्योंकि यहाँ
,
और
तीन युग्मविकल्पी हैं।
- जीन
4.3 दो जीनों की वंशागति (Dihybrid Cross)
मेंडल का द्विसंकर संकरण () दो अलग-अलग लक्षणों (जैसे बीज का आकार
और रंग
) की वंशागति का एक साथ अध्ययन करता है।
पीढ़ी का परिणाम:
पीढ़ी (
) के स्व-परागण के बाद
पीढ़ी में
संभावित संयोजन (पुननेट वर्ग में) प्राप्त हुए।
फिनोटाइप अनुपात:
गोल-पीले
गोल-हरे (जनकों से भिन्न नया संयोजन)
झुर्रीदार-पीले (जनकों से भिन्न नया संयोजन)
झुर्रीदार-हरा
मेंडल का तीसरा नियम:
स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment)
- यह नियम बताता है कि जब दो जोड़े युग्मविकल्पी (
और
) का संकरण होता है, तो एक युग्मविकल्पी जोड़े का विसंयोजन (Segregation) दूसरे युग्मविकल्पी जोड़े से पूरी तरह से स्वतंत्र होता है।
- दूसरे शब्दों में, गोल (
) होने का लक्षण, पीले (
) होने के लक्षण के साथ वंशागत होने के लिए बाध्य नहीं है।
सहलग्नता (Linkage) और पुनर्संयोजन (Recombination):
- मॉर्गन (
Morgan) ने फल मक्खी ड्रोसोफिला (Drosophila) पर प्रयोग करके पाया कि सभी जीन स्वतंत्र रूप से अपव्यूहित नहीं होते हैं।
- सहलग्नता: जब एक ही गुणसूत्र पर स्थित जीन एक साथ वंशागत होने की प्रवृत्ति रखते हैं, तो इसे सहलग्नता कहते हैं। यह स्वतंत्र अपव्यूहन के नियम का अपवाद है।
- पुनर्संयोजन: वह प्रक्रिया जिसके कारण युग्मक जनकीय (Parental) संयोजनों से भिन्न जीन संयोजन प्रदर्शित करते हैं। यह जीन विनिमय (Crossing Over) के कारण होता है।
- महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष:
- जीन के बीच की दूरी जितनी कम होती है, सहलग्नता उतनी अधिक होती है और पुनर्संयोजन उतना कम होता है।
- एल्फ्रेड स्टर्टेवैंट ने जीन मानचित्रण (Gene Mapping) के लिए पुनर्संयोजन आवृत्ति का उपयोग किया।
वंशागति का गुणसूत्रीय सिद्धांत (Chromosomal Theory of Inheritance):
- सटन (Sutton) और बोवेरी (Boveri) द्वारा प्रस्तावित।
- यह सिद्धांत बताता है कि मेंडल के ‘कारक’ जीन हैं और ये गुणसूत्रों पर स्थित होते हैं।
- युग्मक निर्माण के समय गुणसूत्रों का व्यवहार (
), मेंडल के विसंयोजन और स्वतंत्र अपव्यूहन के नियमों के व्यवहार के साथ समानता रखता है। इस प्रकार, गुणसूत्र ही वंशागति का आधार हैं।
.4 बहुजीनी वंशागति (Polygenic Inheritance)
- परिभाषा: जब एक एकल लक्षण का नियंत्रण तीन या अधिक स्वतंत्र जीन द्वारा किया जाता है।
- बहुजीनी लक्षण अक्सर सतत भिन्नता (Continuous Variation) प्रदर्शित करते हैं और
पीढ़ी में बेल के आकार का वितरण (Bell-shaped curve) बनाते हैं।
- उदाहरण: मनुष्यों में त्वचा का रंग (कम से कम तीन जीन,
,
,
द्वारा नियंत्रित) और ऊँचाई।
- योगशील प्रभाव (Additive Effect): इस प्रकार की वंशागति में, प्रत्येक प्रभावी युग्मविकल्पी phenotype में कुछ ‘योग’ (Add) करता है।
4.5 बहुप्रभाविता (Pleiotropy)
- परिभाषा: जब एक एकल जीन एक से अधिक फिनोटाइपिक अभिव्यक्तियों (लक्षणों) को प्रभावित करता है।
- जीन का प्राथमिक कार्य एक विशेष प्रोटीन (जैसे एंजाइम) का उत्पादन करना होता है, और उस प्रोटीन की कमी या दोष के कारण कई शारीरिक प्रक्रियाएँ प्रभावित होती हैं, जिससे बहुप्रभाविता उत्पन्न होती है।
- उदाहरण:
- फिनाइलकीटोनूरिया (
): एक जीन में उत्परिवर्तन के कारण फिनाइलएलानिन हाइड्रोक्सीलेज एंजाइम नहीं बन पाता। इसका परिणाम मानसिक मंदता, बालों का रंग हल्का होना और मूत्र में फिनाइलएलानिन का उत्सर्जन जैसे कई लक्षण होते हैं।
- मटर में स्टार्च संश्लेषण: एक ही जीन स्टार्च कणिकाओं का आकार (गोल या झुर्रीदार) और बीज के आकार को भी नियंत्रित करता है।
- फिनाइलकीटोनूरिया (
4.6 लिंग निर्धारण (Sex Determination)
विभिन्न जीवों में लिंग निर्धारण के लिए विभिन्न आनुवंशिक तंत्र होते हैं:
तंत्र का प्रकार | उदाहरण | नर का गुणसूत्र | मादा का गुणसूत्र | निर्धारण कारक |
---|---|---|---|---|
![]() | मनुष्य, ड्रोसोफिला | ![]() | ![]() | पुरुष का शुक्राणु (![]() ![]() |
![]() | पक्षी, कुछ सरीसृप | ![]() | ![]() | मादा का अंडाणु (![]() ![]() |
![]() | टिड्डे (Grasshoppers) | ![]() | ![]() | नर का शुक्राणु (![]() ![]() |
अगुणित-द्विगुणित | मधुमक्खियाँ | अगुणित (Haploid) | द्विगुणित (Diploid) | निषेचन की घटना |
- मनुष्य में लिंग निर्धारण: गुणसूत्र
पर
(Sex-determining Region of
) जीन मौजूद होता है, जो पुरुष जनन अंगों के विकास को प्रेरित करता है। इसलिए
गुणसूत्र की उपस्थिति ही लिंग निर्धारण का आधार है।
4.7 उत्परिवर्तन (Mutation)
उत्परिवर्तन आनुवंशिक सामग्री ( या
) के क्रम (Sequence) में अचानक, अनियमित परिवर्तन है। यह विविधता का एक प्रमुख स्रोत है।
उत्परिवर्तन के प्रकार:
- बिंदु उत्परिवर्तन (Point Mutation):
में केवल एकल क्षार युग्म के परिवर्तन के कारण होता है।
- उदाहरण: सिकल सेल एनीमिया। इसमें
जीन में बीटा ग्लोबिन शृंखला के
वें कोडॉन
(
) में
के स्थान पर
आने से
(
) बन जाता है।
- फ्रेम शिफ्ट उत्परिवर्तन (Frame Shift Mutation):
अनुक्रम में एक या दो क्षार युग्मों के निवेश (Insertion) या विलोपन (Deletion) के कारण होता है।
- इससे पूरा पठन फ्रेम (
) बदल जाता है, जिससे आगे के सभी अमीनो एसिड बदल जाते हैं और एक कार्यहीन प्रोटीन बन जाता है।
4.8 आनुवांशिक विकार (Genetic Disorders)
ये में असामान्यताओं के कारण होते हैं और
मुख्य समूहों में विभाजित हैं:
1. मेंडेलियन विकार (Mendelian Disorders)
ये मेंडल के वंशागति पैटर्न का पालन करते हैं और एकल जीन में दोष के कारण होते हैं।
रोग | वंशागति | प्रमुख लक्षण |
---|---|---|
हीमोफिलिया | ![]() | एक थक्का कारक की कमी के कारण रक्तस्राव का न रुकना। |
वर्णान्धता | ![]() | लाल और हरे रंग में भेद न कर पाना। |
सिकल सेल एनीमिया | अलिंगसूत्री अप्रभावी | लाल रक्त कोशिकाओं का ![]() ![]() |
थैलेसीमिया | अलिंगसूत्री अप्रभावी | ![]() ![]() ![]() |
महत्वपूर्ण तथ्य: -सहलग्न अप्रभावी विकार पुरुषों में अधिक सामान्य हैं, क्योंकि पुरुषों में (
) केवल एक
गुणसूत्र होता है।
2. गुणसूत्रीय विकार (Chromosomal Disorders)
ये गुणसूत्रों की संख्या या संरचना में बदलाव के कारण होते हैं।
(i) एन्यूप्लोइडी (Aneuploidy):
- किसी गुणसूत्र की एक या अधिक प्रतियों की हानि या लाभ (अर्धसूत्रीविभाजन के दौरान गैर-विसंयोजन के कारण)।
- ट्राइसोमी (Trisomy): गुणसूत्र की तीन प्रतियाँ (जैसे
)।
- मोनोसोमी (Monosomy): गुणसूत्र की एक प्रति की हानि (जैसे
)।
विकार का नाम | कारण (Anueploidy) | जीनोटाइप | लक्षण |
---|---|---|---|
डाउन सिंड्रोम | ![]() | ![]() ![]() ![]() | छोटा कद, गोल चेहरा, मानसिक और शारीरिक विकास में देरी। |
क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम | ![]() | ![]() ![]() | बाँझ पुरुष, विकसित स्तन (![]() |
टर्नर सिंड्रोम | एक ![]() | ![]() ![]() | बाँझ मादा, अविकसित अंडाशय, जालयुक्त ग्रीवा (![]() |
परीक्षा हेतु उपयोगी सुझाव:
- क्रॉस (Crosses) का अभ्यास: एकसंकर और द्विसंकर संकरण के परिणामों (जीनोटाइप और फिनोटाइप अनुपात) को याद करें और पुननेट वर्ग का अभ्यास करें।
- अपवादों पर ध्यान दें: अपूर्ण प्रभाविता, सहप्रभाविता, बहुप्रभाविता और सहलग्नता स्वतंत्र अपव्यूहन के अपवाद हैं; इन्हें उदाहरणों के साथ याद करें।
- रोगों का वर्गीकरण: आनुवंशिक विकारों को उनके वंशागति पैटर्न (
/
और
/
) के आधार पर वर्गीकृत करें।
- परिभाषाएँ: सभी महत्त्वपूर्ण तकनीकी पदों (जैसे
,
,
,
,
) की परिभाषाएँ स्पष्ट रखें।
निश्चित रूप से! यह जीव विज्ञान के ‘वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत’ (Principles of Inheritance and Variation) अध्याय का अभ्यास है। मैं आपके लिए प्रत्येक प्रश्न का विस्तृत उत्तर हिंदी में प्रदान कर रहा हूँ, जो आपकी कक्षा वीं की परीक्षा के लिए उपयोगी होगा।
FAQS अध्याय 4: वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत – अभ्यास के प्रश्न और उत्तर
1. मेंडल द्वारा प्रयोगों के लिए मटर के पौधे चुनने से क्या लाभ हुए?
उत्तर:
मेंडल ने उद्यान मटर (Pisum sativum) का चुनाव किया, जिससे उनके प्रयोग सफल हुए। इसके निम्नलिखित लाभ थे:
- विपर्यास लक्षण: मटर के पौधे में
जोड़ी सुस्पष्ट विपर्यास लक्षण (जैसे लम्बा/बौना, पीला/हरा बीज) मौजूद थे, जिससे परिणामों का विश्लेषण करना सरल था।
- छोटा जीवन चक्र: मटर का जीवन चक्र छोटा होता है, जिससे वह कम समय में कई पीढ़ियों का अध्ययन कर सके।
- स्व-परागण और पर-परागण की सुगमता:
- यह प्राकृतिक रूप से स्व-परागण करता है, जिससे शुद्ध नस्लें (Pure Lines) प्राप्त करना सरल होता है।
- कृत्रिम रूप से पर-परागण (Cross-pollination) कराना भी आसान था (विपुंसन द्वारा), जिससे संकरण संभव हुआ।
- अधिक संख्या में बीज: एक पौधे से बड़ी संख्या में बीज प्राप्त होते थे, जिससे सांख्यिकीय विश्लेषण (Statistical analysis) विश्वसनीय बनता था।
2. निम्न में भेद करो –
(क) प्रभाविता और अप्रभाविता
विशेषताएँ | प्रभाविता (Dominance) | अप्रभाविता (Recessiveness) |
---|---|---|
परिभाषा | वह लक्षण जो विषमयुग्मजी अवस्था (![]() | वह लक्षण जो विषमयुग्मजी अवस्था (![]() |
अभिव्यक्ति | यह ![]() ![]() | यह केवल ![]() ![]() |
उदाहरण | लम्बापन (![]() ![]() | बौनापन (![]() ![]() |
(ख) समयुग्मजी और विषमयुग्मजी
विशेषताएँ | समयुग्मजी (Homozygous) | विषमयुग्मजी (Heterozygous) |
---|---|---|
परिभाषा | वह स्थिति जब किसी लक्षण के लिए दोनों युग्मविकल्पी समान होते हैं। | वह स्थिति जब किसी लक्षण के लिए दोनों युग्मविकल्पी भिन्न होते हैं। |
शुद्धता | इसे ‘शुद्ध’ (Pure) कहते हैं और यह सदैव अपने लक्षण को व्यक्त करता है। | इसे ‘संकर’ (Hybrid) कहते हैं और यह केवल प्रभावी लक्षण को व्यक्त करता है। |
युग्मक | केवल एक प्रकार के युग्मक बनाता है। | दो प्रकार के युग्मक बनाता है। |
उदाहरण | ![]() ![]() | ![]() ![]() |
(ग) एकसंकर और द्विसंकर
विशेषताएँ | एकसंकर (Monohybrid) | द्विसंकर (Dihybrid) |
---|---|---|
संकरण का आधार | केवल एक विपर्यास लक्षण की वंशागति का अध्ययन। | दो विपर्यास लक्षणों की वंशागति का एक साथ अध्ययन। |
उदाहरण | लम्बे ![]() | गोल-पीले ![]() |
![]() | फिनोटाइप अनुपात ![]() | फिनोटाइप अनुपात ![]() |
नियम | प्रभाविता और विसंयोजन के नियम का आधार। | स्वतंत्र अपव्यूहन के नियम का आधार। |
3. कोई द्विगुणित जीन
स्थलों के लिए विषमयुग्मजी है, कितने प्रकार के युग्मकों का उत्पादन संभव है?
उत्तर:
यह प्रश्न स्वतंत्र अपव्यूहन पर आधारित है।
यदि कोई जीव स्थलों के लिए विषमयुग्मजी हो, तो उसके द्वारा उत्पादित युग्मकों की संख्या का सूत्र निम्नलिखित है:
जहाँ

प्रश्न में, विषमयुग्मजी स्थलों की संख्या () =
।
अतः, स्थलों के लिए विषमयुग्मजी जीव द्वारा
प्रकार के युग्मकों का उत्पादन संभव है।
4. एकसंकर क्रॉस का प्रयोग करते हुए, प्रभाविता नियम की व्याख्या करो।
उत्तर:
प्रभाविता का नियम (Law of Dominance)
मेंडल ने अपने एकसंकर संकरण प्रयोग में जब शुद्ध लम्बे () पौधे का संकरण शुद्ध बौने (
) पौधे से कराया:
- कारक का जोड़ा: उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि लक्षण कारक (जीन) नामक इकाइयों द्वारा नियंत्रित होते हैं, जो जोड़ों (युग्मविकल्पी) में मौजूद होते हैं।
- विषमयुग्मजी अवस्था:
पीढ़ी में प्राप्त सभी पौधे विषमयुग्मजी (
) थे।
- अभिव्यक्ति:
पीढ़ी में, सभी पौधे लम्बे थे, अर्थात् ‘लम्बेपन’ का कारक (
) उपस्थित होने पर ही खुद को व्यक्त कर रहा था, जबकि ‘बौनेपन’ का कारक (
) व्यक्त नहीं हो पाया, वह छिपा रहा।
नियम की व्याख्या:
प्रभाविता का नियम कहता है कि जब कारक का एक विषमयुग्मजी जोड़ा मौजूद होता है, तो केवल एक कारक (प्रभावी) ही स्वयं को व्यक्त करता है, जबकि दूसरा कारक (अप्रभावी) छिपा रहता है।
5. परीक्षार्थ संकरण की परिभाषा लिखो और चित्र बनाओ।
उत्तर:
परीक्षार्थ संकरण (Test Cross)
परिभाषा:
यह वह संकरण है जिसमें किसी जीव का अप्रभावी जनक के साथ संकरण कराया जाता है। इसका उपयोग यह जानने के लिए किया जाता है कि वह जीव, जिसका फिनोटाइप प्रभावी है (जैसे लम्बा पौधा), समयुग्मजी () है या विषमयुग्मजी (
)।
उपयोगिता: यह संकरण किसी प्रभावी फिनोटाइप वाले जीव के जीनोटाइप को ज्ञात करने के लिए किया जाता है।
चित्र (उदाहरण: मटर में ऊँचाई के लिए):
परीक्षार्थ संकरण में, अज्ञात लम्बे पौधे () का संकरण शुद्ध बौने (
) पौधे से कराया जाता है।
स्थिति | संकरण | ![]() | निष्कर्ष |
---|---|---|---|
1. | यदि ![]() | सभी संतानें लम्बी (![]() | अज्ञात जनक समयुग्मजी लम्बा (![]() |
2. | यदि ![]() | लम्बे (![]() ![]() ![]() | अज्ञात जनक विषमयुग्मजी लम्बा (![]() |
6. एक ही जीन स्थल वाले समयुग्मजी मादा और विषमयुग्मजी नर के संकरण से प्राप्त प्रथम संतति पीढ़ी के फिनोटाइप वितरण को पुननेट वर्ग बनाकर प्रदर्शन करें।
उत्तर:
मान लीजिए, यहाँ प्रभावी लक्षण ‘A’ और अप्रभावी लक्षण ‘a’ है।
- समयुग्मजी मादा (Homozygous Female):
(प्रभावी) या
(अप्रभावी)। हम
मानते हैं।
- विषमयुग्मजी नर (Heterozygous Male):
संकरण:
पुननेट वर्ग (Punnett Square):
युग्मक | ![]() | ![]() |
---|---|---|
A (मादा) | ![]() | ![]() |
A (मादा) | ![]() | ![]() |
प्रथम संतति पीढ़ी () का वितरण:
- जीनोटाइप:
या
- फिनोटाइप:
(प्रभावी फिनोटाइप) =
(प्रभावी फिनोटाइप) =
- कुल फिनोटाइप वितरण: सभी संतति (
) प्रभावी फिनोटाइप (लक्षण
) प्रदर्शित करेंगी।
7. पीले बीज वाले लम्बे पौधों (
) का संकरण हरे बीज वाले लम्बे (
) पौधे से करने पर निम्न में से किस प्रकार के फिनोटाइप संतति की आशा की जा सकती है:
(क) लम्बे-हरे
(ख) बौने हरे।
उत्तर:
यह द्विसंकर संकरण (Dihybrid Cross) का एक प्रकार है।
जनक 1: पीला, लम्बा ()
जनक 2: हरा, लम्बा (
)
युग्मक:
से युग्मक:
से युग्मक:
(क) लम्बे-हरे (yy T_) प्राप्त होने की संभावना:
![]() | ![]() | |
---|---|---|
YT | ![]() | ![]() |
Yt | ![]() | ![]() |
yT | ![]() | ![]() |
yt | ![]() | ![]() |
पुननेट वर्ग में कुल खाने बनते हैं। इनमें
(yy TT, yy Tt, yy Tt) खाने लम्बे-हरे फिनोटाइप को दर्शाते हैं।
अतः, लम्बे-हरे फिनोटाइप संतति की आशा की जा सकती है।
(ख) बौने हरे (yy tt) प्राप्त होने की संभावना:
पुननेट वर्ग में खाना yy tt (बौने-हरे) फिनोटाइप को दर्शाता है।
अतः, बौने-हरे फिनोटाइप संतति की आशा की जा सकती है।
8. दो विषमयुग्मजी जनकों का क्रॉस
और
किया गया। मान लें दो स्थल (
) सहलग्न हैं, तो द्विसंकर क्रॉस में
पीढ़ी के फिनोटाइप के लक्षणों का वितरण क्या होगा?
उत्तर:
सामान्य द्विसंकर क्रॉस में, जहाँ जीन स्वतंत्र अपव्यूहन करते हैं, फिनोटाइप वितरण होता है।
लेकिन, यहाँ कहा गया है कि दो स्थल (जीन) सहलग्न () हैं।
- सहलग्नता (Linkage): सहलग्नता का अर्थ है कि दोनों जीन एक ही गुणसूत्र पर स्थित हैं और एक साथ अगली पीढ़ी में वंशागत होने की प्रवृत्ति रखते हैं।
- पुनर्संयोजन की अनुपस्थिति/कमी: यदि सहलग्नता पूर्ण है (जीन के बीच की दूरी शून्य), तो कोई पुनर्संयोजन (Crossing over) नहीं होगा।
- वितरण: इस स्थिति में, केवल जनकीय फिनोटाइप (Parental Phenotypes) ही प्राप्त होंगे, और नया संयोजन (Recombinant) नहीं बनेगा।
वितरण: परिणाम एकसंकर संकरण (
) के समान होगा, जिसमें दोनों जीन एक एकल इकाई के रूप में व्यवहार करेंगे।
- यदि जीन पूर्ण रूप से सहलग्न हैं: फिनोटाइप वितरण लगभग
के करीब होगा (जनकीय फिनोटाइप प्रबल होंगे)।
- यदि आंशिक सहलग्नता है: जनकीय फिनोटाइप का प्रतिशत (
से अधिक) अधिक होगा और पुनर्संयोजन (
और
) फिनोटाइप का प्रतिशत
से कम होगा।
चूँकि जीन सहलग्न हैं, फिनोटाइप वितरण से काफी हद तक विचलित होगा और जनकीय प्रकारों (
) की संख्या अधिक होगी।
9. आनुवंशिकी में टी.एच. मॉर्गन के योगदान का संक्षेप में उल्लेख करें।
उत्तर:
थॉमस हंट मॉर्गन (T.H. Morgan) को प्रायोगिक आनुवंशिकी का जनक कहा जाता है। उन्होंने फल मक्खी (Drosophila melanogaster) पर काम किया।
- मॉडल जीव का चुनाव: उन्होंने ड्रोसोफिला को सफलतापूर्वक आनुवंशिकी प्रयोगों के लिए एक मॉडल जीव के रूप में स्थापित किया।
- सहलग्नता और पुनर्संयोजन की खोज: उन्होंने पाया कि कुछ जीन एक साथ वंशागत होते हैं, जिसे उन्होंने सहलग्नता (Linkage) कहा। उन्होंने यह भी दर्शाया कि जीन के विनिमय से पुनर्संयोजन (Recombination) होता है।
- वंशागति के क्रोमोसोम सिद्धांत की प्रायोगिक पुष्टि: उन्होंने ड्रोसोफिला में लिंग से जुड़े वंशागति (Sex-linked inheritance) का प्रदर्शन करके सटन और बोवेरी द्वारा दिए गए वंशागति के गुणसूत्रीय सिद्धांत की प्रायोगिक पुष्टि की।
- जीन मैपिंग की नींव: उनके छात्र अल्फ्रेड स्टर्टेवैंट ने पुनर्संयोजन आवृत्ति का उपयोग करके गुणसूत्रों पर जीन के मानचित्रण (Gene Mapping) की नींव रखी।
10. वंशावली विश्लेषण क्या है? यह विश्लेषण किस प्रकार उपयोगी है?
उत्तर:
वंशावली विश्लेषण (Pedigree Analysis)
परिभाषा:
यह मनुष्यों में विशिष्ट लक्षणों (सामान्य या रोग संबंधी) की वंशागति के पैटर्न को एक पारिवारिक वृक्ष या वंशावली चार्ट के रूप में चित्रित करने की प्रक्रिया है। इसमें प्रतीकों का उपयोग करके कई पीढ़ियों के व्यक्तियों के बीच संबंधों और लक्षणों की अभिव्यक्ति को दर्शाया जाता है।
उपयोगिता:
- रोग के पैटर्न को समझना: यह किसी विशिष्ट रोग (जैसे हीमोफिलिया, सिकल सेल एनीमिया) के वंशागति के पैटर्न को समझने में मदद करता है कि यह अलिंगसूत्री प्रभावी है, अलिंगसूत्री अप्रभावी है या लिंग-सहलग्न है।
- परामर्श और भविष्यवाणी: आनुवंशिक परामर्शदाता (Genetic Counselors) इस चार्ट का उपयोग करके भविष्य की संतानों में किसी आनुवंशिक रोग की पुनरावृत्ति की संभावना (Probability of Recurrence) की भविष्यवाणी कर सकते हैं।
- वाहक (Carrier) की पहचान: यह चार्ट यह पता लगाने में मदद करता है कि क्या कोई व्यक्ति (जो स्वयं स्वस्थ है) किसी अप्रभावी रोग के लिए वाहक है।
- अध्ययन की कमी को दूर करना: मनुष्यों में नियंत्रित संकरण संभव नहीं है, इसलिए वंशावली विश्लेषण उपलब्ध परिवार के इतिहास के अध्ययन का एक सशक्त विकल्प प्रदान करता है।
11. मानव में लिंग-निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर:
मानव में लिंग निर्धारण प्रकार के गुणसूत्रीय तंत्र द्वारा होता है।
- गुणसूत्रों की संरचना: मानव में
जोड़ी गुणसूत्र होते हैं:
जोड़ी अलिंगसूत्र (Autosomes) जो नर और मादा दोनों में समान होते हैं।
जोड़ी लिंग गुणसूत्र (Sex Chromosomes) जो लिंग का निर्धारण करते हैं।
- नर और मादा का जीनोटाइप:
- मादा: समयुग्मजी,
(
जोड़े अलिंगसूत्र
)
- नर: विषमयुग्मजी,
(
जोड़े अलिंगसूत्र
)
- मादा: समयुग्मजी,
- युग्मक निर्माण:
- मादा केवल एक प्रकार के अंडाणु बनाती है, जिसमें
गुणसूत्र होता है।
- नर दो प्रकार के शुक्राणु बनाता है:
में
गुणसूत्र और
में
गुणसूत्र होता है।
- मादा केवल एक प्रकार के अंडाणु बनाती है, जिसमें
- लिंग का निर्धारण:
- यदि
शुक्राणु अंडाणु को निषेचित करता है
मादा (लड़की)।
- यदि
शुक्राणु अंडाणु को निषेचित करता है
नर (लड़का)।
- यदि
इस प्रकार, संतान का लिंग पूरी तरह से पिता द्वारा प्रदान किए गए शुक्राणु पर निर्भर करता है।
12. शिशु का रुधिर वर्ग
है। पिता का रुधिर वर्ग
और माता का
है। जनकों के जीनोटाइप मालूम करें और अन्य संतति में प्रत्याशित जीनोटाइपों की जानकारी प्राप्त करें।
उत्तर:
मानव रुधिर वर्ग बहुविकल्पता (
) और
,
के बीच सहप्रभाविता का उदाहरण है।
- शिशु का रुधिर वर्ग
: रुधिर वर्ग
का जीनोटाइप केवल
हो सकता है। इसका मतलब है कि शिशु को एक
युग्मविकल्पी पिता से और दूसरा
युग्मविकल्पी माता से मिला होगा।
- जनकों के जीनोटाइप:
- पिता का रुधिर वर्ग
: चूँकि पिता ने
युग्मविकल्पी शिशु को दिया है, इसलिए पिता का जीनोटाइप
होना चाहिए (विषमयुग्मजी
)।
- माता का रुधिर वर्ग
: चूँकि माता ने
युग्मविकल्पी शिशु को दिया है, इसलिए माता का जीनोटाइप
होना चाहिए (विषमयुग्मजी
)।
- पिता का रुधिर वर्ग
- प्रत्याशित जीनोटाइप और फिनोटाइप (अन्य संतति में):
संकरण:
युग्मक | ![]() | ![]() |
---|---|---|
![]() | ![]() | ![]() |
![]() | ![]() | ![]() |
जीनोटाइप | फिनोटाइप (रुधिर वर्ग) | प्रतिशत |
---|---|---|
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![]() | ![]() | ![]() |
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अतः, अन्य संतति में ,
,
और
चारों रुधिर वर्गों के जीनोटाइप (
,
,
,
) प्रत्याशित हैं।
13. निम्न शब्दों को उदाहरण समेत समझाएँ
(अ) सह प्रभाविता (Co-dominance)
परिभाषा:
यह प्रभाविता के नियम का एक अपवाद है, जिसमें विषमयुग्मजी जीव में, एक जीन के दोनों युग्मविकल्पी स्वयं को पूरी तरह से और एक साथ व्यक्त करते हैं।
उदाहरण:
- मानव
रुधिर वर्ग: जब युग्मविकल्पी
और
एक साथ मौजूद होते हैं (
), तो व्यक्ति का रुधिर वर्ग
होता है। इसका मतलब है कि लाल रक्त कोशिका की सतह पर
और
दोनों प्रकार के शर्करा बहुलक (एंटीजन) बनते हैं।
(ब) अपूर्ण प्रभाविता (Incomplete Dominance)
परिभाषा:
यह प्रभाविता के नियम का दूसरा अपवाद है, जिसमें संकर जीव का फिनोटाइप दोनों जनकों के बीच का (Intermediate) होता है।
उदाहरण:
- स्नैपड्रैगन (
) में पुष्प का रंग:
- लाल पुष्प (
) का संकरण सफेद पुष्प (
) से कराने पर
पीढ़ी में गुलाबी (
) पुष्प प्राप्त होते हैं।
- यहाँ
युग्मविकल्पी
पर अपनी प्रभाविता पूरी तरह से व्यक्त नहीं कर पाता है।
- लाल पुष्प (
14. बिंदु-उत्परिवर्तन क्या है? एक उदाहरण दें।
उत्तर:
बिंदु-उत्परिवर्तन (Point Mutation)
परिभाषा: अनुक्रम में एक एकल क्षार युग्म (Single Base Pair) के परिवर्तन के कारण होने वाले उत्परिवर्तन को बिंदु उत्परिवर्तन कहते हैं। यह क्षार युग्म के प्रतिस्थापन (Substitution) के कारण होता है।
उदाहरण: सिकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anemia)
- इस रोग में हीमोग्लोबिन जीन के
अनुक्रम में केवल एक क्षार युग्म का प्रतिस्थापन होता है।
- बीटा-ग्लोबिन शृंखला में
वें कोडॉन
(
) में
के स्थान पर
आने से यह
(
) में बदल जाता है।
- इस एकल परिवर्तन से लाल रक्त कोशिकाओं का आकार गोलाकार से बदलकर हँसिए के आकार (Sickle shape) का हो जाता है।
15. वंशागति के क्रोमोसोम वाद को किसने प्रस्तावित किया?
उत्तर:
वंशागति के क्रोमोसोम वाद (Chromosomal Theory of Inheritance) को वॉल्टर सटन (Walter Sutton) और थियोडोर बोवेरी (Theodor Boveri) ने संयुक्त रूप से में प्रस्तावित किया था।
सिद्धांत का मुख्य बिंदु:
यह सिद्धांत प्रस्तावित करता है कि जीन में स्थित होते हैं और यह गुणसूत्र (Chromosomes) हैं जो मेंडल के कारकों की तरह व्यवहार करते हैं और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागति का आधार हैं।
16. किन्हीं दो अलिंग सूत्री आनुवंशिक विकारों का उनके लक्षणों सहित उल्लेख करो।
उत्तर:
अलिंगसूत्री (Autosomal) आनुवंशिक विकार वे हैं जो जोड़ी अलिंगसूत्रों में से किसी एक पर स्थित जीन या गुणसूत्र की संख्या में परिवर्तन के कारण होते हैं।
1. सिकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anemia)
- वंशागति: अलिंगसूत्री अप्रभावी विकार (Autosomal Recessive).
- लक्षण:
- लाल रक्त कोशिकाओं (RBC) का आकार
की कम सान्द्रता में गोलाकार से बदलकर हँसिए (Sickle) के आकार का हो जाता है।
- इससे वाहिकाओं में
का अवरोध होता है और रोगी को गंभीर एनीमिया और शारीरिक दर्द होता है।
- लाल रक्त कोशिकाओं (RBC) का आकार
2. फिनाइलकीटोनूरिया (
)
- वंशागति: अलिंगसूत्री अप्रभावी विकार (Autosomal Recessive).
- लक्षण:
- यह जन्मजात उपापचयी दोष (Inborn Error of Metabolism) है।
- इसमें एक एंजाइम (फिनाइलएलानिन हाइड्रोक्सीलेज) की कमी हो जाती है, जो अमीनो एसिड फिनाइलएलानिन को
में बदलता है।
- फिनाइलएलानिन शरीर और मस्तिष्क में जमा होकर मानसिक मंदता (Mental Retardation), त्वचा पर पिगमेंटेशन की कमी और मूत्र के साथ उत्सर्जन का कारण बनता है।