MP Board 12th Biology Sexual Reproduction in Flowering Plants अध्याय 1:पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन

MP Board 12th Biology Sexual Reproduction in Flowering Plants

📝 जीव विज्ञान: जीवन का सार और जनन (Reproduction)

जीव विज्ञान पृथ्वी पर जीवन की कहानी का सार है। हालाँकि एक व्यष्टि (individual) जीव की मृत्यु निश्चित है, लेकिन प्रजातियाँ (species) लाखों वर्षों तक अस्तित्व में रह सकती हैं, जब तक कि उन्हें विलुप्ति का खतरा न हो।

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जनन का महत्व (Importance of Reproduction)

  • जनन एक मौलिक जैविक प्रक्रिया है जिसके बिना प्रजातियाँ लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकतीं।
  • प्रत्येक जीव लैंगिक (Sexual) या अलैंगिक (Asexual) साधनों का उपयोग करके अपनी संतति छोड़ता है।
  • लैंगिक जनन द्वारा नए रूपभेद (variations) विकसित होते हैं, जिससे प्रजातियों की उत्तरजीविता (survival) की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
  • कक्षा 12वीं में पुष्पीय पादपों (Flowering Plants) और मानवों (Humans) में होने वाली जनन प्रक्रियाओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

👨‍⚕️ मानव जनन स्वास्थ्य (Human Reproductive Health)

  • यह विषय मानव जनन के जीव विज्ञान को समझने पर ज़ोर देता है।
  • इसका एक महत्वपूर्ण पहलू जनन संबंधी बीमारियों से बचाव और जनन स्वास्थ्य को बनाए रखना है।

🔬 डॉ. पंचानन माहेश्वरी: वनस्पति विज्ञान के अग्रदूत

डॉ. पंचानन माहेश्वरी (जन्म: नवंबर 1904, जयपुर, राजस्थान) एक विश्व प्रसिद्ध वनस्पतिविद् (Botanist) थे।

प्रमुख योगदान और कार्य (Key Contributions)

क्षेत्रविवरण
शिक्षा और प्रेरणाउन्होंने इलाहाबाद से D.Sc. की उपाधि प्राप्त की और अमेरिकी शिक्षक डॉ. डब्ल्यू डजिआन से प्रेरित होकर वनस्पति विज्ञान की आकारिकी (Morphology) का अध्ययन किया।
भ्रूण विज्ञान (Embryology)उन्होंने भ्रूण विज्ञानीय पहलुओं पर कार्य किया और वर्गिकी (Taxonomy) में भ्रूण विज्ञानीय लक्षणों के उपयोग को लोकप्रिय बनाया।
संस्थापक कार्यउन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान विभाग की स्थापना की।
ऊतक संवर्धन (Tissue Culture)उन्होंने अपरिपक्व भ्रूण के कृत्रिम संवर्धन की आवश्यकता पर बल दिया। उनके कार्य ने ‘ऊतक संवर्धन’ को एक ऐतिहासिक वैज्ञानिक घटना बना दिया।
विश्वव्यापी कार्यउनके काम, जैसे कि टेस्ट ट्यूब निषेचन (Test Tube Fertilisation) और अंतःअंडाशयी परागण (Intra-ovarian Pollination), ने उन्हें विश्वभर में प्रसिद्धि दिलाई।
सम्मानउन्हें रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन (FRS) की फेलोशिप और इंडियन साइंस अकेडमी सहित कई संस्थानों से सम्मानित किया गया।
शिक्षा में सहयोगउन्होंने स्कूली शिक्षा को प्रोत्साहित किया। NCERT ने 1964 में हायर सेकेंडरी स्कूल के लिए जीव विज्ञान की पहली पुस्तक उन्हीं के नेतृत्व में प्रकाशित की थी।

अध्याय 1: पुष्पी पादपों (आवृतबीजियों) में लैंगिक जनन

1.1 पुष्प: एक आकर्षक अंग

  • परिचय: पुष्प आवृतबीजियों का लैंगिक जनन स्थल है। हम असंख्य प्रकार के पुष्पों को उनके सौंदर्य, सुगंध और रंग के लिए देखते हैं, जो सभी लैंगिक जनन में सहायक होते हैं।
  • मानव संबंध: प्राचीन काल से ही पुष्पों का मानव के साथ निकट संबंध रहा है। इनका उपयोग सौंदर्य, आभूषण, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व की वस्तुओं के रूप में होता है।
  • जैविक महत्व: पुष्पों की संरचना (आकारिकी) और पुष्पी अंगों की विविधता अनुकूलन दर्शाती है, जिससे लैंगिक जनन के अंतिम उत्पाद (फल और बीज) की रचना सुनिश्चित हो सके।

1.2 निषेचन-पूर्व संरचनाएँ एवं घटनाएँ

पुष्प के वास्तविक रूप से विकसित होने से पूर्व ही पादप में पुष्प आने का निर्धारण हो जाता है। हार्मोनल और संरचनात्मक परिवर्तनों के फलस्वरूप पुष्पीय आद्यक (Floral Primordium) के बीच विभेदन होता है, जिससे पुष्पक्रम की रचना होती है।

1.2.1 पुंकेसर (Stamen), लघुबीजाणुधानी (Microsporangium) तथा परागकण (Pollen Grain)

पुंकेसर (Stamen)

  • संरचना: एक विशिष्ट (प्रारूपी) पुंकेसर दो भागों में विभक्त होता है:
    1. तंतु (Filament): लंबा और पतला डंठल। इसका समीपस्थ छोर पुष्प के पुष्पासन या पुष्पदल से जुड़ा होता है।
    2. परागकोश (Anther): अंतिम सिरा, जो सामान्यतः द्विपालिक (Bifid/Bilobed) संरचना होती है।
  • विविधता: पुंकेसरों की संख्या और लंबाई विभिन्न प्रजातियों के पुष्पों में भिन्न होती है।

परागकोश की संरचना

  • एक प्रारूपी आवृतबीजी परागकोश द्विपालिक (bilobed) होता है, और प्रत्येक पालि में दो कोष्ठ होते हैं, अर्थात यह द्विकोष्ठीय या द्विक-प्रकोष्ठ (dithecous) होता है।
  • परागकोश एक चतुर्दीशीय (tetragonal) संरचना होती है, जिसमें चार कोनों पर लघुबीजाणुधानी समाहित होती है।
  • लघुबीजाणुधानी आगे विकसित होकर परागपुटी (Pollen Sacs) बन जाती है।
  • ये परागपुटी परागकणों से भरे होते हैं और परागकोश की लंबाई तक विस्तारित होते हैं।

लघुबीजाणुधानी की संरचना (Microsporangium Structure)

  • एक अनुप्रस्थ काट में, लघुबीजाणुधानी लगभग गोलाकार दिखती है और सामान्यतः चार भित्ति परतों से आवृत्त होती है (बाहर से भीतर):
    1. बाह्यत्वचा (Epidermis): सबसे बाहरी संरक्षी (protective) परत।
    2. अंतस्थीसियम (Endothecium): एक संरक्षी परत।
    3. मध्य परतें (Middle Layers): एक से तीन संरक्षी परतें।
    4. टेपीटम (Tapetum): सबसे आंतरिक परत। यह विकसित हो रहे परागकणों को पोषण देती है। टेपीटम की कोशिकाएँ सघन जीवद्रव्य से भरी होती हैं और सामान्यतः एक से अधिक केंद्रकों से युक्त होती हैं।
  • कार्य: बाहरी तीन परतें संरक्षण का कार्य करती हैं और परागकोश के स्फुटन (dehiscence) में मदद करके परागकणों को मुक्त करती हैं।

लघुबीजाणुजनन (Microsporogenesis)

  • बीजाणुजन ऊतक: जब परागकोश अपरिपक्व होता है, तब लघुबीजाणुधानी के केंद्र में सघन सुसम्बद्ध सजातीय कोशिकाओं का समूह होता है, जिसे बीजाणुजन ऊतक (Sporogenous Tissue) कहते हैं।
  • प्रक्रिया: जैसे-जैसे परागकोश विकसित होता है, बीजाणुजन ऊतकों की कोशिकाएँ अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis) द्वारा सूक्ष्म बीजाणु चतुष्टय (Microspore Tetrad) बनाती हैं।
  • बीजाणुजन ऊतक की प्रत्येक कोशिका एक सक्षम पराग मातृकोशिका (Pollen Mother Cell – PMC) होती है।
  • लघुबीजाणुजनन: एक पराग मातृकोशिका से अर्धसूत्री विभाजन द्वारा लघुबीजाणुओं के निर्माण की प्रक्रिया को लघुबीजाणुजनन कहते हैं।
  • परागकणों का मुक्त होना: जैसे ही परागकोश परिपक्व एवं स्फुरित होता है, लघुबीजाणु एक-दूसरे से विलग होकर परागकणों के रूप में विकसित हो जाते हैं और परागकोश के स्फुटन के साथ मुक्त होते हैं।

1.3 परागकण (Pollen Grain)

  • पहचान: परागकण नर युग्मकोद्भिद (Male Gametophyte) का प्रतिनिधित्व करता है। ये प्रायः गोलकार (गोलीय) होते हैं, जिनका व्यास लगभग 25-50 माइक्रोमीटर होता है।
  • भित्ति संरचना: परागकण में स्पष्ट रूप से दो परतों वाली भित्ति होती है:
    1. बाह्यचोल (Exine): कठोर बाहरी भित्ति, जो स्पोरोपोलेनिन (Sporopollenin) की बनी होती है।
      • विशेषता: स्पोरोपोलेनिन सबसे ज्ञात प्रतिरोधी कार्बनिक सामग्री है। यह उच्चताप, सुदृढ़ अम्लों और क्षारों के सम्मुख टिक सकती है। इसे निम्नीकृत करने वाला कोई एन्जाइम अभी तक ज्ञात नहीं है।
      • जीवाश्म: स्पोरोपोलेनिन की उपस्थिति के कारण परागकण जीवाश्मों की भाँति बहुत अच्छे से संरक्षित होते हैं।
      • जननछिद्र (Germ Pores): बाह्यचोल में वे क्षेत्र जहाँ स्पोरोपोलेनिन अनुपस्थित होता है, उन्हें जननछिद्र कहते हैं।
    2. अंतःचोल (Intine): भीतरी भित्ति। यह एक पतली तथा सतत परत होती है जो सेल्यूलोज एवं पेक्टिन की बनी होती है।
  • परिपक्व परागकण: परागकण का जीवद्रव्य (साइटोप्लाज्म) एक प्लाज्मा भित्ति से आवृत्त होता है। जब परागकण परिपक्व होता है, तब उसमें दो कोशिकाएँ समाहित होती हैं:
    1. कायिक कोशिका (Vegetative Cell): बड़ी होती है, जिसमें प्रचुर खाद्य भंडार तथा एक विशाल, अनियमित आकृति का केंद्रक होता है।
    2. जनन कोशिका (Generative Cell): छोटी होती है और कायिक कोशिका के जीवद्रव्य में तैरती रहती है। यह तर्कु आकृति की होती है, जिसमें घना जीवद्रव्य और एक केंद्रक होता है।
  • परागकण झड़ना:
    • दो-कोशीय चरण: 60% से अधिक आवृतबीजी पादपों के परागकण इसी दो-कोशीय चरण में झड़ते हैं।
    • तीन-कोशीय चरण: शेष प्रजातियों में, जनन कोशिका सम-सूत्री विभाजन द्वारा विभक्त होकर परागकण के झड़ने से पहले दो नर युग्मकों को बनाती है (अर्थात् यह तीन-कोशीय चरण में झड़ते हैं)।

1.3.1 परागकणों का महत्व (Significance of Pollen Grains)

  • एलर्जी और श्वसन विकार: कुछ प्रजातियों के परागकण (जैसे गाजर-घास/पार्थेनियम) कुछ लोगों में गंभीर एलर्जी और श्वसनी वेदना पैदा करते हैं, जो दमा, श्वसनी शोथ जैसे चिरकालिक श्वसन विकारों में विकसित हो सकते हैं।
  • पोषण पूरक: परागकण पोषण से भरपूर होते हैं। पश्चिमी देशों में पराग उत्पाद (गोलियाँ/सीरप) बाज़ारों में उपलब्ध हैं और माना जाता है कि ये खिलाड़ियों एवं धावक अश्वों (घोड़ों) की कार्यक्षमता में वृद्धि करते हैं।
  • जीवन क्षमता (Viability): परागकणों की जीवन क्षमता (अंकुरण क्षमता) भिन्न होती है और यह विद्यमान तापमान एवं आर्द्रता पर निर्भर करती है।
    • कम जीवन क्षमता: कुछ अनाजों (जैसे धान, गेहूँ) में यह लगभग 30 मिनट में समाप्त हो जाती है।
    • अधिक जीवन क्षमता: कुछ सदस्यों (जैसे रोज़ेसी, लेग्युमिनोसी, सोलेनेसी) में यह महीनों तक बनी रहती है।
  • पराग भंडार (Pollen Banks): बहुत सी प्रजातियों के परागकणों को द्रव नाइट्रोजन (−196∘C) में कई वर्षों तक भंडारित करना संभव है। इस भंडारित पराग का प्रयोग फसल प्रजनन कार्यक्रमों में बीज भंडार (बैंक) की भाँति किया जाता है।

1.2.2 स्त्रीकेसर (Pistil), गुरुबीजाणुधानी (बीजांड) तथा भ्रूणकोष

स्त्रीकेसर (Pistil / Gynoecium)

  • परिचय: जायंग (Gynoecium) पुष्प के स्त्री जनन अंग का प्रतिनिधित्व करता है।
  • प्रकार: जायंग एक स्त्रीकेसर (एकांडपी) या बहु स्त्रीकेसर (बहुअंडपी) हो सकता है।
    • युक्तांडपी (Syncarpous): यदि एक से अधिक स्त्रीकेसर आपस में संगलित (fused) हों।
    • वियुक्तांडपी (Apocarpous): यदि स्त्रीकेसर आपस में स्वतंत्र हों।
  • स्त्रीकेसर के भाग: प्रत्येक स्त्रीकेसर के तीन भाग होते हैं:
    1. वर्तिकाग्र (Stigma): परागकणों के अवतरण मंच (landing platform) का कार्य करता है।
    2. वर्तिका (Style): वर्तिकाग्र के नीचे स्थित दीर्घीकृत, पतला भाग।
    3. अंडाशय (Ovary): आधार पर उभरा (फूला हुआ) भाग।
  • अंडाशय के भीतर: अंडाशय के अंदर एक गर्भाशयी गुहा (कोष्टक) होती है, जिसके अंदर अपरा (Placenta) स्थित होती है।
  • बीजांड (Ovule): अपरा से उत्पन्न होने वाली दीर्घ बीजाणुधानी को सामान्यतः बीजांड कहते हैं। एक अंडाशय में बीजांडों की संख्या एक (जैसे गेहूँ, धान) से लेकर अनेक (जैसे पपीता, तरबूज, ऑर्किड) तक हो सकती है।

गुरुबीजाणुधानी (बीजांड) की संरचना

  • बीजांड एक छोटी संरचना है जो एक बीजांडवृंत (Funicle/Stalk) द्वारा अपरा से जुड़ी होती है।
  • नाभिका (Hilum): वह बिंदु जहाँ बीजांडवृंत, बीजांड के काय के साथ संगलित होता है।
  • अध्यावरण (Integuments): प्रत्येक बीजांड में दो अध्यावरण (संरक्षी आवरण) होते हैं, जो बीजांड को चारों ओर से घेरे रहते हैं।
  • बीजांडद्वार (Micropyle): अध्यावरणों द्वारा घिरा एक छोटा छिद्र, जहाँ अध्यावरण बीजांड को चारों ओर से नहीं घेरते।
  • निभाग (Chalaza): बीजांडद्वार सिरे के ठीक विपरीत भाग, जो बीजांड के आधारी भाग का प्रतिनिधित्व करता है।
  • बीजांडकाय (Nucellus): अध्यावरणों से घिरा कोशिकाओं का एक पुंज, जिसमें आरक्षित आहार सामग्री प्रचुर मात्रा में होती है।
  • भ्रूणकोष (Embryo Sac): बीजांडकाय के अंदर स्थित होता है और मादा युग्मकोद्भिद का प्रतिनिधित्व करता है। एक बीजांड में, सामान्यतः एक अकेला भ्रूणकोष होता है।

गुरुबीजाणुजनन तथा भ्रूणकोष का विकास

  • गुरुबीजाणुजनन (Megasporogenesis):गुरुबीजाणुमातृकोशिकाओं (Megaspore Mother Cells – MMC) से गुरुबीजाणुओं की रचना का प्रक्रम।
    • MMC, जो बीजांडकाय के बीजांडद्वारी क्षेत्र से विलग होती है, अर्धसूत्री विभाजन से गुजरकर चार गुरुबीजाणुओं का उत्पादन करती है।
  • मादा युग्मकोद्भिद (भ्रूणकोष): अधिकांश पुष्पी पादपों में चार गुरुबीजाणुओं में से केवल एक ही कार्यात्मक होता है, जबकि अन्य तीन अपविकसित (अपभ्रष्ट) हो जाते हैं।
    • एक-बीजाणुज विकास: एक अकेले गुरुबीजाणु से भ्रूणकोष के बनने की विधि को कहते हैं।
  • भ्रूणकोष का निर्माण: कार्यात्मक गुरुबीजाणु का केंद्रक समसूत्री विभाजन द्वारा 2-केंद्रीय, 4-केंद्रीय और तत्पश्चात 8-केंद्रीय (8-Nucleate) भ्रूणकोष की संरचना करता है।
    • ये विभाजन मुक्त केंद्रक (Free Nuclear) होते हैं (कोशिका भित्ति रचना के बिना)।
    • 8-केंद्रक चरण के पश्चात् कोशिका भित्ति की नींव पड़ती है, जिससे परिपक्व (प्रारूपी) भ्रूणकोष बनता है।

परिपक्व भ्रूणकोष का संगठन

एक प्रारूपी भ्रूणकोष परिपक्व होने पर 8-न्यूक्लीकृत (8-Nucleate) परंतु वास्तव में 7-कोशीय (7-Celled) होता है:

क्षेत्रकोशिकाएँसंरचना
बीजांडद्वारी सिरा3 कोशिकाएँअंड उपकरण (Egg Apparatus) का निर्माण। इसमें दो सहायक कोशिकाएँ (Synergids) तथा एक अंडकोशिका (Egg Cell) होती है।
सहायक कोशिकाएँबीजांडद्वारी छोर पर तंतुरूप समुच्चय (Filiform Apparatus) होता है, जो पराग नलिकाओं को दिशा निर्देश देता है।
निभागीय (कैलाजल) छोर3 कोशिकाएँप्रतिव्यासांत कोशिकाएँ (Antipodal Cells) कहलाती हैं।
केंद्र1 कोशिकावृहद केंद्रीय कोशिका, जिसमें दो ध्रुवीय न्यूक्लीआई होते हैं (ये दोनों न्यूक्लीआई एक ही कोशिका के भीतर स्थित होते हैं)।

1.2.3 परागण (Pollination)

  • परिचय: चूंकि नर युग्मक (परागकण) और मादा युग्मक (भ्रूणकोष में) दोनों ही अचल (non-motile) होते हैं, अतः निषेचन के लिए उन्हें एक साथ लाना आवश्यक है।
  • परागण की परिभाषा: परागकणों का परागकोश से स्त्रीकेसर के वर्तिकाग्र तक स्थानांतरण या संचारण को परागण कहा जाता है।
  • अनुकूलन: पुष्पी पादपों ने परागण प्राप्त करने के लिए वाह्य कारकों का उपयोग करते हुए अनुकूलन विकसित किए हैं।

परागण के प्रकार (Types of Pollination)

पराग के स्रोत को ध्यान में रखते हुए परागण को तीन प्रकारों में बाँटा जा सकता है:

(क) स्वयुग्मन (Autogamy)

  • परिभाषा: एक ही (उसी) पुष्प के परागकोश से वर्तिकाग्र तक परागकणों का स्थानांतरण (उसी पुष्प के अंदर परागण)।
  • शर्तें: पूर्ण स्वयुग्मन के लिए परागकोश एवं वर्तिकाग्र की विमुक्ति (रिलीज) में समकालिकता और उनका एक-दूसरे के पास अवस्थित होना आवश्यक है।
  • उदाहरण: कुछ पादप जैसे वायोला (Viola), ऑक्सैलिस (Oxalis) तथा कोमेलीना (Commelina) दो प्रकार के पुष्प पैदा करते हैं:
    1. उन्मील परागणी पुष्प (Chasmogamous): सामान्य पुष्पों के समान, जिनके परागकोश एवं वर्तिकाग्र अनावृत होते हैं।
    2. अनुन्मील परागणी पुष्प (Cleistogamous): ऐसे पुष्प जो कभी भी अनावृत नहीं होते (हमेशा बंद रहते हैं)।
  • विशेषता: अनुन्मील परागणी पुष्प सदेव स्वयुग्मक होते हैं क्योंकि यहाँ पर पर-परागण (cross-pollination) का अवसर नहीं होता, जिससे बीज बनना सुनिश्चित होता है।

(ख) सजादपुष्पी परागण (Geitonogamy)

  • परिभाषा: एक ही पादप के एक पुष्प के परागकणों का दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र तक स्थानांतरण।
  • विशेषता: यह क्रियात्मक रूप से पर-परागण जैसा है क्योंकि इसमें एक कारक (agent) सम्मिलित होता है, लेकिन आनुवंशिक रूप से स्वयुग्मन जैसा है क्योंकि परागकण उसी पादप से आते हैं।

(ग) परनिषेचन (Xenogamy / Cross-Pollination)

  • परिभाषा: भिन्न पादपों के परागकोश से भिन्न पादपों के वर्तिकाग्र तक परागकणों का स्थानांतरण।
  • विशेषता: यह एकमात्र ऐसा परागण प्रकार है, जिसमें परागण के समय आनुवंशिक रूप से भिन्न प्रकार के परागकणों का आगमन होता है।

परागण के कारक या अभिकर्मक (Agents of Pollination)

पौधे परागण के लिए दो प्रकार के कारकों का उपयोग करते हैं:

  1. अजीवी कारक (Abiotic Agents): वायु (Wind) एवं जल (Water)
  2. जीवी कारक (Biotic Agents): प्राणी (Animals) जैसे कीट, पक्षी, चमगादड़, आदि।
  • अधिकांश पुष्पी पादप परागण के लिए जीवी कारकों (प्राणियों) का उपयोग करते हैं।

1. वायु द्वारा परागण (Anemophily)

  • सामान्य: अजीवीय परागण में वायु द्वारा परागण सर्वाधिक सामान्य है।
  • अनुकूलन: वायु परागण हेतु:
    • परागकण: हल्के तथा चिपचिपाहाट रहित होते हैं (ताकि हवा के झोंकों के साथ संचरित हो सकें)।
    • पुंकेसर: अक्सर बेहतर अनावृत होते हैं (आसानी से हवा के बहाव में प्रसारित होने के लिए)।
    • वर्तिकाग्र: वृहद एवं प्रायः पिच्छिल (feather-like) होते हैं (ताकि आसानी से वायु के उड़ते परागकणों को आबद्ध किया जा सके)।
    • पुष्पक्रम: प्रायः प्रत्येक अंडाशय में एक अकेला बीजांड तथा एक पुष्प क्रम में असंख्य पुष्प गुच्छ होते हैं।
  • उदाहरण: घास और भुट्टा (मक्का)—भुट्टे में जो फुंदने (Tassels) दिखते हैं, वे वर्तिकाग्र और वर्तिका हैं जो हवा में झूमकर परागकणों को पकड़ते हैं।
  • क्षतिपूर्ति: वायु परागण एक संयोगात्मक घटना है, इसलिए परागकणों के ह्रास की क्षतिपूर्ति हेतु पौधे बीजांडों की तुलना में असंख्य मात्रा में परागकण उत्पन्न करते हैं।

2. जल द्वारा परागण (Hydrophily)

  • दुर्लभ: पुष्पी पादपों में जल द्वारा परागण काफी दुर्लभ है, यह लगभग 30 वंशों तक ही सीमित है, वह भी अधिकतर एकबीजपत्री पौधों में।
  • महत्व: निम्न पादप समूह (शैवाल, ब्रायोफाइट्स, टेरिडोफाइट्स) के नर युग्मकों के परिवहन हेतु जल नियमित साधन है, यही कारण है कि कुछ ब्रायोफाइट्स एवं टेरिडोफाइट्स का विस्तार सीमित है।
  • जल परागित उदाहरण:वैलीसनेरिया (Vallisneria) तथा हाइड्रिला (Hydrilla) (ताज़े पानी में) और कुछ समुद्र जलीय घासें (Seagrasses) जैसे जोस्टेरा (Zostera)
    • सतह पर परागण (जैसे वैलीसनेरिया): मादा पुष्प एक लंबे डंठल द्वारा जल की सतह पर आता है, और नर पुष्प/परागकण पानी की सतह पर अवमुक्त होकर निष्क्रिय रूप से बहते रहते हैं; कुछ संयुग्गात्मक रूप से मादा पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुँच जाते हैं।
    • जल के भीतर परागण (जैसे जोस्टेरा): बहुत सी प्रजातियों के परागकण लंबे, फीते जैसे होते हैं और जल के भीतर निष्क्रिय रूप से बहते रहते हैं।
  • संरक्षण: जल परागित अधिकतर प्रजातियों में परागकणों को पानी के भीतर गीले श्लेष्मक आवरण (mucilaginous sheath) द्वारा संरक्षित रखा जाता है।
  • अपवाद: अधिकांश जलीय पौधे (जैसे वॉटर हायसिंथ (Water Hyacinth) एवं वॉटर लिली (Water Lily)) पानी की सतह पर पैदा होते हैं, और इनका परागण कीटों एवं वायु से होता है।
  • विशेषता: वायु एवं जल परागित पुष्प न तो बहुत रंग युक्त होते हैं और न ही मकरंद (Nectar) पैदा करते हैं।

3. प्राणियों द्वारा परागण (Zoophily)

  • अधिकांश पुष्पी पादप परागण के लिए प्राणियों को परागण कर्मक/कारक के रूप में उपयोग करते हैं।
  • उदाहरण: मधुमक्खियाँ, भौंरे, तितलियाँ, बर्र, चीटियाँ, शलभ (moths), कीट, पक्षी, आदि।

  • प्रधान कारक: मधुमक्खियाँ, भौंरे, तितलियाँ, कीट, पक्षी (जैसे शकरखोरा/गुंजनपक्षी) तथा चमगादड़ सामान्य परागण अभिकर्मक हैं।
  • अनुकूलन:
    • पुष्प: कीट परागित पुष्प प्रायः बड़े, रंगीन, सुगंध युक्त तथा मकरंद से भरपूर होते हैं।
    • यदि पुष्प छोटे होते हैं, तो वे एक पुष्पवृंत में समूह बनाकर आकर्षित करते हैं।
    • मक्खियाँ/बीटल: इनसे परागित होने वाले पुष्प अक्सर मलिन गंध स्रावित करते हैं।
    • परागकण: प्राणी परागित फूलों में परागकण प्रायः चिपचिपाहाट युक्त होते हैं, ताकि वे प्राणी के शरीर से चिपक सकें।
  • पारितोषिक (पुरस्कार): परागण के बदले में पुष्प प्राणियों को कुछ लाभ या पारितोषिक प्रदान करते हैं:
    1. मकरंद और परागकण (खाद्य स्रोत)।
    2. कुछ पुष्पों में अंडा देने की सुरक्षित जगह (जैसे सबसे लंबा पुष्प एमोर्फोफैलस, लगभग 6 फीट ऊँचा)।
  • सह-संबंध (Mutualism): कुछ प्रजातियों में विशिष्ट सह-संबंध पाए जाते हैं, जैसे शल्भ (Moth) और युका (Yucca) पादप के बीच। दोनों प्रजातियाँ एक दूसरे के बिना अपना जीवन चक्र पूरा नहीं कर सकतीं।

प्राणियों द्वारा परागण (Zoophily)

1.2.4 बहि:प्रजनन युक्तियाँ (Outbreeding Devices)

अधिकांश पुष्पी पादप उभयलिंगी पुष्पों को उत्पन्न करते हैं, जिससे स्व-परागण की संभावना बढ़ जाती है। निरंतर स्व-परागण के फलस्वरूप अंतः प्रजनन अवनमन (Inbreeding Depression) होता है (जनन में घटती सफलता)। अतः, पुष्पी पादपों ने स्व-परागण को हतोत्साहित और पर-परागण को प्रोत्साहित करने के लिए कई युक्तियाँ विकसित की हैं:

  1. पराग अवमुक्ति और वर्तिकाग्र ग्राह्यता में असमकालिकता (Dichogamy):
    • या तो पराग वर्तिकाग्र के तैयार होने से पहले ही अवमुक्त कर दिए जाते हैं,
    • या फिर परागों के झड़ने से काफी पहले ही वर्तिकाग्र ग्राह्य बन जाता है।
  2. परागकोश और वर्तिकाग्र की भिन्न अवस्थिति (Heterostyly): परागकोश एवं वर्तिकाग्र अलग-अलग स्थानों पर अवस्थित होते हैं, जिससे उसी पुष्प में पराग वर्तिकाग्र के संपर्क में नहीं आ पाते। (दोनों युक्तियाँ स्वयुग्मन रोकती हैं)।
  3. स्व-असामंजस्य (Self-Incompatibility): यह एक वंशानुगत प्रक्रम है। यह उसी पुष्प या उसी पादप के अन्य पुष्प से बीजांड के निषेचन को रोक देता है (पराग अंकुरण या परागनलिका वृद्धि को रोककर)।
  4. एकलिंगी पुष्पों का उत्पादन (Unisexuality):
    • उभयलिंगाश्रयी (Monoecious): (जैसे अरंड, मक्का)। नर एवं मादा दोनों पुष्प एक ही पौधे पर होते हैं। यह केवल स्वयुग्मन को रोकता है, सजादपुष्पी परागण को नहीं।
    • एकलिंगाश्रयी (Dioecious): (जैसे पपीता)। नर एवं मादा पुष्प भिन्न पादपों पर होते हैं (अर्थात् प्रत्येक पादप या तो मादा या नर है)। यह स्वयुग्मन तथा सजादपुष्पी परागण दोनों को अवरोधित करती है।

1.2.5 पराग-स्त्रीकेसर संकर्षण (Pollen-Pistil Interaction)

  • परिचय: परागकणों का स्थानांतरण यह सुनिश्चित नहीं करता कि सही प्रजाति (सुयोग्य) के पराग ही वर्तिकाग्र पर पहुँचे। अक्सर गलत प्रकार के पराग (स्व-अयोग्य या अन्य प्रजाति के) भी आ पड़ते हैं।
  • पहचान: स्त्रीकेसर में यह क्षमता होती है कि वह पराग को पहचान सके कि वह सही प्रकार (सुयोग्य) का है या गलत प्रकार (अयोग्य) का। यह क्षमता स्वीकृति या अस्वीकृति द्वारा अनुपालित होती है, जो परागकणों एवं स्त्रीकेसर के बीच निरंतर रासायनिक घटकों के संकर्षण (संवाद) का परिणाम है।
  • अनुपालन (Follow-up):
    • सुयोग्य पराग: स्त्रीकेसर उसे स्वीकार कर लेता है तथा परागण-पश्च घटनाओं को प्रोत्साहित करता है।
    • गलत पराग: स्त्रीकेसर उसे अस्वीकार कर देता है और पराग अंकुरण या पराग नलिका वृद्धि रोककर पराग को हटा देता है।
  • पराग नलिका की वृद्धि:
    • सुयोग्य पराग के अनुपालन में, परागकण वर्तिकाग्र पर अंकुरित होते हैं, जिससे एक जनन छिद्र के माध्यम से एक पराग नलिका उत्पन्न होती है।
    • पराग नलिका वर्तिकाग्र तथा वर्तिका के ऊतकों के माध्यम से वृद्धि करती हुई अंडाशय तक पहुँचती है।
    • यह बीजांड द्वार के माध्यम से बीजांड में प्रविष्ट करती है, और तत्पश्चात् तंतुरूप समुच्चय के माध्यम से एक सहाय कोशिका में प्रविष्ट करती है।
  • तंतुरूप समुच्चय का कार्य: सहायक कोशिका के बीजांडद्वारी हिस्से पर उपस्थित तंतुरूप समुच्चय पराग नलिका के प्रवेश को दिशा निर्देशित करता है।
  • पराग-स्त्रीकेसर संकर्षण: वर्तिकाग्र पर पराग अवस्थित होने से लेकर बीजांड में पराग नलिका के प्रविष्ट होने तक की सभी घटनाओं को सामूहिक रूप में पराग-स्त्रीकेसर संकर्षण के नाम से जाना जाता है।
  • महत्व: यह एक गतिक प्रक्रम है। इस ज्ञान से पादप प्रजनकों को कृत्रिम संकरण कार्यक्रमों में मदद मिलती है।

कृत्रिम संकरण (Artificial Hybridisation)

  • उद्देश्य: फसल प्रजनन कार्यक्रमों के लिए वांछित विशिष्टता वाले उत्तम श्रेणी के जनन सम्पाक प्राप्त करना।
  • आवश्यकता: यह सुनिश्चित करना कि केवल अपेक्षित परागों का उपयोग परागण के लिए किया जाए तथा वर्तिकाग्र को संदूषण (अवांछित परागों) से बचाया जाए।
  • तकनीक: यह उपलब्धि विपुंसन तथा बोरवस्त्र तकनीक (बैगिंग) द्वारा पाई जा सकती है:
  1. विपुंसन (Emasculation):
    • यदि मादा जनक द्विलिंगी पुष्प धारण करता है, तो पराग के प्रस्फुटन से पहले एक जोड़ा चिमटी के इस्तेमाल से पुष्प कलिका से परागकोश के निष्कासन का प्रक्रम विपुंसन कहलाता है।
    • एकलिंगी पुष्प में विपुंसन की आवश्यकता नहीं होती।
  2. बैगिंग (बोरवस्त्र आवरण) (Bagging):
    • विपुंसित पुष्पों को उपयुक्त आकार की बटर पेपर (पतले कागज़) की थैली से आवृत्त किया जाता है, ताकि इसके वर्तिकाग्र को अवांछित परागों से बचाया जा सके।
    • जब वर्तिकाग्र सुग्राही (receptive) बन जाता है, तब अपेक्षित पराग का उपयोग करके परागण किया जाता है और पुष्प को पुनः आवृत्त (rebagged) कर दिया जाता है।

1.3 दोहरा निषेचन (Double Fertilisation)

सहाय कोशिका में प्रवेश करने के पश्चात् पराग नलिका द्वारा सहायक कोशिका के जीवद्रव्य में दो नर युग्मक अवमुक्त किए जाते हैं।

  1. युग्मक संलयन (Syngamy):
    • एक नर युग्मक अंड कोशिका की ओर गति करता है और केंद्रक के साथ संलयित होता है।
    • परिणाम: एक द्विगुणित (2n) कोशिका युग्मनज (Zygote) की रचना होती है।
  2. त्रिसंलयन (Triple Fusion):
    • दूसरा नर युग्मक केंद्रीय कोशिका में स्थित दो ध्रुवीय न्यूक्लीआई की ओर गति करता है और उनसे संलयित होकर त्रिगुणित (3n) प्राथमिक भ्रूणपोष केंद्रक (Primary Endosperm Nucleus – PEN) बनाता है (इसमें तीन अगुणित न्यूक्लीआई सम्मिलित होते हैं)।
    • परिणाम: केंद्रीय कोशिका प्राथमिक भ्रूणपोष कोशिका (PEC) बन जाती है।
  • दोहरा निषेचन: चूँकि एक भ्रूण कोष में दो प्रकार के संलयन (युग्मक संलयन तथा त्रिसंलयन) होते हैं, अतः इस परिघटना को दोहरा निषेचन कहा जाता है, जो पुष्पी पादपों के लिए एक अनूठी घटना है।

1.4 निषेचन-पश्च संरचनाएँ एवं घटनाएँ (Post-Fertilisation Events)

दोहरे निषेचन के अनुपालन में होने वाली सभी घटनाओं को सामूहिक रूप में निषेचन-पश्च घटनाएँ कहा जाता है। इसमें निम्नलिखित का विकास शामिल है:

  1. भ्रूणपोष (Endosperm) का विकास।
  2. भ्रूण (Embryo) का विकास।
  3. बीजांड का परिपक्व होकर बीज (Seed) में बदलना।
  4. अंडाशय का फल (Fruit) के रूप में विकसित होना।

1.4.1 भ्रूणपोष (Endosperm)

  • विकास: त्रिसंलयन के पश्चात् बनी प्राथमिक भ्रूणपोष कोशिका से भ्रूणपोष विकसित होता है। प्राथमिक भ्रूणपोष केंद्रक बार-बार विभाजित होकर त्रिगुणित (3n) भ्रूणपोष ऊतक की रचना करता है।
  • कार्य: भ्रूणपोष की कोशिकाएँ संरक्षित खाद्य सामग्री से पूरित होती हैं, जो विकासशील भ्रूण के पोषण के लिए उपयोग की जाती हैं।
  • प्रकार:
    • मुक्त केंद्रकी भ्रूणपोष (Free-Nuclear Endosperm): PEN उत्तरोत्तर केंद्रकी विभाजन से गुजरकर मुक्त केंद्रकों के रूप में पैदा होता है। (उदा. कच्चे नारियल का पानी)।
    • कोशिकीय भ्रूणपोष (Cellular Endosperm): कोशिका भित्ति रचना होने के बाद भ्रूणपोष कोशिकीय बन जाता है। (उदा. नारियल की सफ़ेद गिरी)।
  • उपयोग:
    • पूरी तरह उपभोग: बीज के परिपक्व होने से पहले भ्रूणपोष पूरी तरह से विकासशील भ्रूण द्वारा उपयोग कर लिया जाता है। (जैसे मटर, मूँगफली, सेम)।
    • विद्यमान: परिपक्व बीज में विद्यमान रहता है और बीज अंकुरण के समय इस्तेमाल किया जाता है। (जैसे अरंडी और नारियल, गेहूँ, चावल, मक्का)।

1.4.2 भ्रूण (Embryo)

  • विकास स्थल: भ्रूण भ्रूणकोष के बीजांडद्वारी सिरे पर विकसित होता है, जहाँ युग्मनज (Zygote) स्थित होता है।
  • अनुकूलन: अधिकतर युग्मनज तब विभाजित होते हैं जब कुछ निश्चित सीमा तक भ्रूणपोष विकसित हो जाता है, ताकि विकासशील भ्रूण को सुनिश्चित पोषण प्राप्त हो सके।
  • भ्रूणोद्भव (Embryogeny): भ्रूण विकास की प्रारंभिक अवस्था (प्राक्भ्रूण → गोलाकार → हृदयाकार) एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री दोनों में समान होती है।

A. द्विबीजपत्री भ्रूण (Dicot Embryo)

  • संरचना: एक भ्रूण अक्ष (Embryonal Axis) तथा दो बीजपत्र समाहित होते हैं।
  • बीजपत्रोपारिक (Epicotyl): बीजपत्रों के स्तर से ऊपर भ्रूणीय अक्ष का भाग। यह प्रांकुर (Plumule) या स्तंभ सिरे पर समाप्त होती है।
  • बीजपत्राधार (Hypocotyl): बीजपत्रों के स्तर से नीचे भ्रूणीय अक्ष का भाग। यह मूलांकुर (Radicle) या मूलज के शीर्षांत पर समाप्त होती है।
  • मूल गोप (Root Cap): मूलाग्र एक ढक्कन द्वारा आवृत्त होता है, जिसे मूल गोप कहते हैं।

B. एकबीजपत्री भ्रूण (Monocot Embryo) – घास परिवार में

  • बीजपत्र संख्या: केवल एक बीजपत्र होता है।
  • स्कुटेलम (Scutellum/प्रशल्क): घास परिवार में बीजपत्र को स्कुटेलम कहते हैं, जो भ्रूणीय अक्ष के एक तरफ स्थित होता है।
  • कोलिओराइजा (Colyorrhiza/मूलांकुर चोल): भ्रूणीय अक्ष के निचले सिरे पर एक गोलाकार और मूल आवरण बिना विभेदित परत से आवृत्त होता है, जिसे कोलिओराइजा कहते हैं।
  • बीजपत्रोपारिक: स्कुटेलम के जुड़ाव के स्तर से ऊपर भ्रूणीय अक्ष का भाग।
  • प्रांकुरचोल (Coleoptile): बीजपत्रोपारिक में प्ररोह शीर्ष तथा कुछ आदि कालिक (आद्य) पर्ण होते हैं, जो एक खोखला-पर्णीय संरचना को घेरते हैं।

1.4.3 बीज (Seed) और फल (Fruit)

बीज की संरचना और प्रकार

  • परिणाम: बीज आवृतबीजियों में लैंगिक जनन का अंतिम परिणाम है, इसे प्रायः एक निषेचित बीजांड के रूप में वर्णित किया जाता है।
  • भाग: एक बीज में बीज आवरण, बीजपत्र तथा भ्रूण अक्ष (अंखुआ) समाहित होते हैं।
  • बीज आवरण: बीजांड के अध्यावरण, बीज के ऊपर सख्त संरक्षणात्मक आवरण बन जाते हैं।
  • बीजांडद्वार: बीज के आवरण में एक छोटा छिद्र बीजांडद्वार के रूप में शेष रहता है, जो बीज अंकुरण के समय ऑक्सीजन एवं जल के प्रवेश को सुगम बनाता है।
  • भ्रूणपोष के आधार पर वर्गीकरण:
    1. गैर-एल्बूमिनस बीज (Non-Albuminous/एल्बूमिन रहित): परिपक्व बीज में अवशिष्ट भ्रूणपोष नहीं होता है, क्योंकि भ्रूण विकास के दौरान इसका पूर्णतः उपभोग कर लिया जाता है। (उदा. मटर, मूँगफली)।
    2. एल्बूमिनस बीज (Albuminous): परिपक्व बीज में भ्रूणपोष का कुछ भाग शेष रह जाता है। (उदा. गेहूँ, मक्का, बाजरा, अरंडी)।
  • परिपोष (Perisperm): कभी-कभार कुछ बीजों में बीजांडकाय (न्यूसेलम) भी शेष रह जाता है। अवशिष्ट उपस्थित बीजांडकाय को परिपोष कहते हैं। (उदा. काली मिर्च, चुकंदर)।

फल का विकास

  • रूपांतरण: जैसे-जैसे बीजांड परिपक्व होकर बीज बनते हैं, अंडाशय एक फल के रूप में विकसित हो जाता है।
  • फलभित्ति (Pericarp): अंडाशय की दीवार, फल की दीवार (छिलके) के रूप में विकसित होती है, जिसे फलभित्ति कहते हैं।
  • वास्तविक फल (True Fruit/यथार्थ फल): फल जो केवल अंडाशय से विकसित होते हैं। (ये फल निषेचन का परिणाम होते हैं)।
  • आभासी फल (False Fruit/मिथ्या फल): कुछ प्रजातियों में (जैसे सेब, स्ट्रॉबेरी, अखरोट), पुष्पासन भी फल की रचना में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाता है। ऐसे फलों को आभासी फल कहते हैं।
  • अनिषेक्जनित फल (Parthenocarpic Fruit): वे फल जो बिना निषेचन के विकसित होते हैं। ये बीज रहित होते हैं। (उदा. केला)। अनिषेकफलन को वृद्धि हार्मोन्स के प्रयोग से प्रेरित किया जा सकता है।

बीज की दीर्घायु और प्रसुप्ति (Viability and Dormancy)

  • जल की मात्रा: जैसे-जैसे बीज परिपक्व होता है, उसके अंदर जल की मात्रा घटने लगती है और बीज शुष्क होता है।
  • प्रसुप्ति (Dormancy): फलस्वरूप सामान्य चयापचयी क्रिया धीमी पड़ने लगती है और भ्रूण निष्क्रियता की दशा में प्रवेश कर जाता है, जिसे प्रसुप्ति कहते हैं।
  • अंकुरण: अनुकूल परिस्थितियाँ (पर्याप्त नमी, आर्द्रता, ऑक्सीजन) उपलब्ध होने पर ही बीज अंकुरित होते हैं।
  • जीवन क्षमता (Viability):
    • अधिकांश प्रजातियों के बीज कई वर्षों तक जीवनक्षम रहते हैं।
    • कुछ बीज सैकड़ों वर्षों तक जीवित रह सकते हैं (उदा. ल्यूपिनस आर्कटिकस – 10,000 वर्ष की प्रसुप्ति के बाद अंकुरित हुआ; फीनिक्स डैक्टिलीफेरा – 2000 वर्ष पुराना)।

1.5 असंगजनन एवं बहुभ्रूणता (Apomixis and Polyembryony)

असंगजनन (Apomixis)

  • परिभाषा: कुछ पुष्पी पादपों (जैसे एस्ट्रेसिया तथा घास) में बिना निषेचन के ही बीज पैदा करने की प्रक्रिया विकसित हो गई है, जिसे असंगजनन कहते हैं।
  • प्रकृति: असंगजनन एक प्रकार का अलिंगीय जनन है जो लैंगिक जनन का अनुहारक (mimics) है।
  • तरीके:
    1. द्विगुणित अंडकोशिका: द्विगुणित अंडकोशिका का निर्माण बिना अर्धसूत्री विभाजन के होता है, जो निषेचन के बिना ही भ्रूण में विकसित हो जाता है।
    2. बीजांडकायिक कोशिकाएँ (Nucellar Cells): कई अवसरों पर (नींबू वंश (Citrus) तथा आम की किस्मों में), भ्रूणकोष (पुटी) के आस-पास की कुछ बीजांड कायिक कोशिकाएँ विभाजित होने लगती हैं, भ्रूणकोष में प्रोट्रूडी होती हैं और भ्रूण के रूप में विकसित हो जाती हैं।
  • आनुवंशिक प्रकृति: असंगजनन से उत्पन्न भ्रूण आनुवंशिक रूप से क्लोन (पूर्वजक) होते हैं।

बहुभ्रूणता (Polyembryony)

  • परिभाषा: एक बीज में एक से अधिक भ्रूण की उपस्थिति को बहुभ्रूणता कहते हैं।
  • उदाहरण: साइट्रस (संतरे) और आम की किस्में।
  • कारण: बीजांडकायिक कोशिकाओं से भ्रूणों का विकसित होना बहुभ्रूणता का एक सामान्य कारण है।

बीज का महत्व

  • कृषि का आधार: बीज हमारी कृषि का आधार है।
  • भंडारण: परिपक्व बीजों का निर्जलीकरण (dehydration) एवं प्रसुप्ति बहुत ही महत्वपूर्ण है, जिससे उन्हें पूरे वर्ष खाद्यान्न के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • प्रसारण: बीज प्रसारण हेतु बेहतर अनुकूलित रणनीतियों से युक्त होते हैं तथा प्रजाति को अन्य क्षेत्रों में बसने में मदद करते हैं।
  • पोषण: इनमें पर्याप्त आरक्षित आहार भंडार होता है, जो अल्पविकसित नवोद्भिद को तब तक पोषण देते हैं, जब तक कि वह स्वयं प्रकाश संश्लेषण न करने लगे।
  • आनुवंशिक विविधता: लैंगिक जनन का उत्पाद होने की वजह से, ये नवीन जेनेटिक (वंशीय) सम्पाक पैदा करते हैं जो विविधता का रूप लेते हैं।

पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन (सारांश)

यह सारांश पुष्पी पादपों (आवृतबीजियों) में लैंगिक जनन के मूलभूत तत्वों को संक्षेप में प्रस्तुत करता है।

1. नर और मादा जनन अंग

  • पुंकेसर (Stamen):नर जनन अंग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • एक प्रारूपी परागकोश द्विपालिक (bilobed), द्विकोष्ठीय (dithecous) तथा चतुष्बीजाणुधानी (tetrasporangiate) होता है।
    • परागकण (जो नर युग्मकजनन पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं) लघुबीजाणुधानी के अंदर विकसित होते हैं।
    • लघुबीजाणुधानी की भित्ति: यह चार परतों (बाह्यत्वचा, अंतस्थीसियम, मध्य परत और टेपीटम) से आवृत्त होती है।
    • लघुबीजाणुजनन: लघुबीजाणुधानी के केंद्र में अवस्थित बीजाणुजन ऊतक की कोशिकाएँ अर्धसूत्री विभाजन से गुजरकर लघुबीजाणुओं की रचना करती हैं, जो परागकण के रूप में विकसित होते हैं।
  • स्त्रीकेसर (Pistil/जायांग):मादा जनन अंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • भाग: वर्तिकाग्र, वर्तिका तथा अंडाशय।
    • बीजांड: अंडाशय में बीजांड (Ovule) स्थित होता है, जिसमें एक डंठल (funicle/फ्यूनिकल) होता है।
    • भ्रूणकोष (Embryo Sac): बीजांडकाय में स्थित प्रसूतक कोशिका (गुरुबीजाणु मातृ कोशिका) अर्धसूत्री विभाजन से विभाजित होते हुए एक गुरुबीजाणु भ्रूण पुटी (मादा युग्मकोद्भिद) की रचना करती है।
    • परिपक्व भ्रूणकोष: 7-कोशकीय तथा 8-न्यूक्लीकृत होता है।
      • बीजांडद्वारी सिरा: अंड उपकरण (Egg Apparatus) – दो सहायक कोशिकाएँ तथा एक अंड कोशिका।
      • निभागीय छोर: तीन प्रतिव्यासांत (Antipodal) कोशिकाएँ।
      • केंद्र: एक वृहद् केंद्रीय कोशिका जिसमें दो ध्रुवीय न्यूक्लीआई होते हैं।

2. परागण एवं संकर्षण (Pollination and Interaction)

  • परागण (Pollination): वह प्रक्रम जिसमें परागकण परागकोश से वर्तिकाग्र तक स्थानांतरित होते हैं।
    • कारक (Agents): यह अजीवी (हवा और पानी) या जीवी (प्राणी वर्ग) हो सकते हैं।
  • पराग-स्त्रीकेसर संकर्षण (Pollen-Pistil Interaction): वर्तिकाग्र पर परागकण के झड़ने से लेकर भ्रूणकोष में परागनलिका के प्रवेश तक की सभी घटनाएँ इसमें शामिल हैं।
    • पहचान: स्त्रीकेसर में पराग को सुयोग्य या अयोग्य के रूप में पहचानने की क्षमता होती है।
    • पराग नलिका की वृद्धि: सुयोग्य पराग वर्तिकाग्र पर अंकुरित होता है, जिससे पराग नलिका बनती है जो वर्तिका के माध्यम से वृद्धि करती है, बीजांड में प्रवेश करती है, और अंत में एक सहायक कोशिका में दो नर युग्मकों का विसर्जन करती है।
  • परागकण की संरचना:
    • भित्ति: बाहरी बाह्यचोल (स्पोरोपोलेनिन से निर्मित और जनन छिद्र युक्त) तथा अंदर की ओर अंतःचोल
    • अवनमन के समय: दो कोशिकाएँ (कायिक कोशिका तथा जनन कोशिका) या तीन कोशिकाएँ (एक कायिक कोशिका तथा दो नर युग्मक) हो सकती हैं।

3. निषेचन और पश्च घटनाएँ (Fertilisation and Post-Events)

  • दोहरा निषेचन (Double Fertilisation): आवृतबीजी पौधों की एक अनूठी घटना जिसमें दो संलयन होते हैं:
    1. युग्मक संलयन (Syngamy): एक नर युग्मक अंड कोशिका से संलयन करके द्विगुणित युग्मनज (2n Zygote) बनाता है, जो भ्रूण में विकसित होता है।
    2. त्रिसंलयन (Triple Fusion): दूसरा नर युग्मक केंद्रीय कोशिका में स्थित दो ध्रुवीय न्यूक्लीआई से संलयन करके त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष केंद्रक (3n PEN) बनाता है।
  • भ्रूणपोष का निर्माण: प्राथमिक भ्रूणपोष कोशिका से भ्रूणपोष ऊतक का गठन होता है। इसका निर्माण सदैव भ्रूण के विकास को आगे बढ़ाता है (पोषण प्रदान करता है)।
  • भ्रूण का विकास: युग्मनज कई चरणों (प्राक्भ्रूण, गोलाकार, हृदयाकार) से गुजरता हुआ परिपक्व भ्रूण में विकसित होता है।
    • द्विबीजपत्री: दो बीजपत्र, प्रांकुरचोल सहित भ्रूणीय अक्ष और बीजपत्राधार।
    • एकबीजपत्री: एक अकेला बीजपत्र (घास में स्कुटेलम)।
  • अंतिम रूपांतरण: निषेचन के बाद, अंडाशय फल के रूप में और बीजांड बीज के रूप में विकसित होता है।

4. विशेष परिघटनाएँ (Special Phenomena)

  • असंगजनन (Apomixis): कुछ आवृतबीजियों (विशेष रूप से घास कुल में) में बिना निषेचन के बीज रचना की परिघटना। यह लैंगिक जनन का अनुहारक (mimics) है।
    • कृषि में महत्व: संकर बीजों की खेती में उत्पादकता बढ़ाने के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है। असंगजनन से तैयार संकर बीज संतति में कोई पृथक्करण (segregation) की विशिष्टताएँ नहीं दिखाते। इससे किसान को प्रतिवर्ष संकर बीज खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
  • बहुभ्रूणता (Polyembryony): कुछ आवृतबीजी (नींबू, आम की किस्में) अपने बीज में एक से अधिक भ्रूण उत्पन्न करते हैं।
    • यह प्रायः भ्रूणकोष के आस-पास की बीजांड कायिक कोशिकाओं के भ्रूण के रूप में विकसित होने के कारण होता है।


अध्याय 1: पुष्पी पादपों (आवृतबीजियों) में लैंगिक जनन

1.1 पुष्प – आवृतबीजियों का एक आकर्षक अंग

  • परिचय: पुष्प आवृतबीजी पौधों का लैंगिक जनन स्थल है।
  • महत्व:
    • जैविक: यह लैंगिक जनन को सुनिश्चित करता है, जिससे फल और बीज बनते हैं।
    • मानव: यह सौंदर्य, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए उपयोग होता है।

1.2 निषेचन-पूर्व-संरचनाएँ एवं घटनाएँ

निषेचन से पहले, पौधे में संरचनात्मक परिवर्तन होते हैं, और नर तथा मादा युग्मकों का निर्माण होता है।

A. नर जनन अंग: पुंकेसर, लघुबीजाणुधानी और परागकण

संरचनाविवरण
पुंकेसर (Stamen)यह नर जनन अंग है, जिसके दो भाग होते हैं: तंतु (Filament) और परागकोश (Anther)
परागकोश (Anther)यह द्विपालिक और चतुष्कोणीय (चार कोनों वाली) संरचना है, जिसमें चार लघुबीजाणुधानी होती हैं।
लघुबीजाणुधानीयह चार भित्ति परतों (बाह्यत्वचा, अंतस्थीसियम, मध्य परत और टेपीटम) से ढकी होती है। टेपीटम विकासशील परागकणों को पोषण देता है।
लघुबीजाणुजननपरागकोश के अंदर बीजाणुजन ऊतक की कोशिकाएँ अर्धसूत्री विभाजन द्वारा पराग मातृकोशिका से लघुबीजाणु चतुष्टय बनाती हैं, जो बाद में परागकण के रूप में विकसित होते हैं।
परागकण (Pollen)यह नर युग्मकोद्भिद का प्रतिनिधित्व करता है।
परागकण की भित्तिबाह्यचोल (Exine): कठोर बाहरी परत, स्पोरोपोलेनिन (सबसे प्रतिरोधी कार्बनिक पदार्थ) की बनी होती है। इसमें जनन छिद्र होते हैं। अंतःचोल (Intine): पतली, आंतरिक परत, सेल्यूलोज और पेक्टिन की बनी होती है।
परिपक्वतापरागकण दो-कोशीय (कायिक कोशिका + जनन कोशिका) या तीन-कोशीय (कायिक कोशिका + दो नर युग्मक) अवस्था में झड़ते हैं।

B. मादा जनन अंग: स्त्रीकेसर, बीजांड और भ्रूणकोष

संरचनाविवरण
स्त्रीकेसर (Pistil)यह मादा जनन अंग है, जिसके तीन भाग हैं: वर्तिकाग्र (पराग का अवतरण मंच), वर्तिका और अंडाशय
बीजांड (Ovule)यह अंडाशय के अंदर अपरा (Placenta) से जुड़ा होता है। इसमें दो अध्यावरण होते हैं, जो इसे चारों ओर से घेरते हैं, सिवाय एक छोटे से छिद्र बीजांडद्वार के।
गुरुबीजाणुजननगुरुबीजाणुमातृकोशिका (MMC) में अर्धसूत्री विभाजन से चार गुरुबीजाणुओं का निर्माण होता है। इनमें से केवल एक ही कार्यात्मक रहता है।
भ्रूणकोष (Embryo Sac)कार्यात्मक गुरुबीजाणु से विकसित होता है (इसे एक-बीजाणुज विकास कहते हैं)।
परिपक्व भ्रूणकोषयह संरचनात्मक रूप से 7-कोशीय और 8-न्यूक्लीकृत होती है।
कोशिकाओं का वितरणबीजांडद्वारी सिरा: अंड उपकरण (एक अंड कोशिका + दो सहायक कोशिकाएँ)। सहायक कोशिकाओं में तंतुरूप समुच्चय होता है, जो पराग नलिका को प्रवेश के लिए निर्देशित करता है। निभागीय सिरा: तीन प्रतिव्यासांत (Antipodal) कोशिकाएँ। केंद्र: एक वृहद् केंद्रीय कोशिका जिसमें दो ध्रुवीय न्यूक्लीआई होते हैं।

C. परागण (Pollination)

परागकणों का परागकोश से वर्तिकाग्र तक स्थानांतरण।

परागण के प्रकारपरिभाषाआनुवंशिक प्रकृति
स्वयुग्मन (Autogamy)उसी पुष्प में परागकोश से वर्तिकाग्र तक स्थानांतरण। (उदा. वायोला, ऑक्सैलिस के अनुन्मील परागणी पुष्प)।आनुवंशिक रूप से स्व-परागण।
सजादपुष्पी परागण (Geitonogamy)उसी पौधे के एक पुष्प से दूसरे पुष्प तक स्थानांतरण।क्रियात्मक रूप से पर-परागण, आनुवंशिक रूप से स्व-परागण।
परनिषेचन (Xenogamy)भिन्न पौधों के पुष्पों के बीच परागकणों का स्थानांतरण।आनुवंशिक रूप से भिन्न परागों का आगमन।

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परागण के कारकअनुकूलनउदाहरण
वायु (Wind)परागकण हल्के, चिपचिपाहाट रहित; वर्तिकाग्र बड़े, पिच्छिल; पुंकेसर अनावृत होते हैं।धान, गेहूँ, घास, मक्का (भुट्टा)।
जल (Water)दुर्लभ। परागकणों को श्लेष्मक आवरण से संरक्षित रखा जाता है।वैलीसनेरिया (सतह पर), जोस्टेरा (जल के भीतर)।
प्राणी (Animals)पुष्प रंगीन, सुगंधित, मकरंद से भरपूर होते हैं; परागकण चिपचिपाहाट युक्त होते हैं।मधुमक्खियाँ, तितलियाँ, पक्षी, चमगादड़।
  • बहि:प्रजनन युक्तियाँ: स्व-परागण (अंतः प्रजनन अवनमन से बचने के लिए) को रोकने की विधियाँ (उदा. असामयिक पराग अवमुक्ति, स्व-असामंजस्य, एकलिंगी पुष्पों का उत्पादन)।
  • पराग-स्त्रीकेसर संकर्षण: वर्तिकाग्र द्वारा सही पराग (सुयोग्य) को पहचानने और स्वीकारने या अयोग्य पराग को अस्वीकार करने की क्षमता।

1.3 दोहरा निषेचन (Double Fertilisation)

यह आवृतबीजी पौधों की अनूठी घटना है, जिसमें भ्रूणकोष के अंदर दो संलयन होते हैं:

संलयन का प्रकारकोशिकाएँपरिणाममहत्त्व
युग्मक संलयन (Syngamy)एक नर युग्मक (1n) + अंड कोशिका (1n)युग्मनज (Zygote) (2n)यह भ्रूण के विकास को जन्म देता है।
त्रिसंलयन (Triple Fusion)दूसरा नर युग्मक (1n) + दो ध्रुवीय न्यूक्लीआई (2n)प्राथमिक भ्रूणपोष केंद्रक (PEN) (3n)यह भ्रूणपोष के विकास को जन्म देता है।

1.4 निषेचन-पश्च-संरचनाएँ एवं घटनाएँ

निषेचन के बाद होने वाले विकास (भ्रूणपोष, भ्रूण, बीज, फल का निर्माण)।

घटनाएँरूपांतरणअंतिम उत्पाद
भ्रूणपोष का विकासप्राथमिक भ्रूणपोष केंद्रक (PEN) (3n)भ्रूणपोष ऊतक (विकासशील भ्रूण को पोषण देता है)।
भ्रूण का विकासयुग्मनज (Zygote) (2n)भ्रूण (द्विबीजपत्री या एकबीजपत्री)।
बीज का निर्माणबीजांडबीज (बीज आवरण, बीजपत्र, भ्रूण अक्ष)।
फल का निर्माणअंडाशयफल (फलभित्ति)।
  • भ्रूणपोष के आधार पर बीज:
    • गैर-एल्बूमिनस: भ्रूणपोष का उपभोग हो जाता है। (उदा. मटर, मूँगफली)।
    • एल्बूमिनस: भ्रूणपोष शेष रहता है। (उदा. गेहूँ, मक्का, अरंडी)।
  • फल के प्रकार:
    • वास्तविक फल: केवल अंडाशय से विकसित।
    • आभासी फल: पुष्पासन भी भागीदार होता है। (उदा. सेब, स्ट्रॉबेरी)।
    • अनिषेक्जनित फल: बिना निषेचन के विकसित (बीज रहित)। (उदा. केला)।
  • बीज प्रसुप्ति: जल की कमी के कारण भ्रूण निष्क्रियता की दशा में चला जाता है, जो अनुकूल परिस्थितियों में ही टूटती है।

1.5 असंगजनन एवं बहुभ्रूणता

परिघटनापरिभाषाउदाहरण
असंगजनन (Apomixis)बिना निषेचन के बीज बनने की प्रक्रिया। यह अलिंगीय जनन है जो लैंगिक जनन का अनुहारक है।एस्ट्रेसिया, घास कुल।
बहुभ्रूणता (Polyembryony)एक बीज में एक से अधिक भ्रूण की उपस्थिति। यह प्रायः बीजांडकायिक कोशिकाओं के भ्रूण में विकसित होने के कारण होता है।नींबू, आम।
  • असंगजनन का कृषि में महत्व: संकर बीज उद्योग के लिए बहुत महत्वपूर्ण। इससे संकर बीजों की संतति में कोई आनुवंशिक पृथक्करण नहीं होता (अर्थात् वे क्लोन होते हैं), इसलिए किसानों को हर साल नया बीज नहीं खरीदना पड़ता।

ये नोट्स आपको पूरे अध्याय को जल्दी से दोहराने में मदद करेंगे। क्या आप किसी विशिष्ट भाग, जैसे भ्रूण विकास या असंगजनन के महत्व को और अधिक विस्तार से समझना चाहेंगे?

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📝 पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन (कक्षा 12 जीव विज्ञान नोट्स)

ये नोट्स आपके द्वारा प्रदान की गई संपूर्ण पाठ्य सामग्री पर आधारित हैं, जिन्हें परीक्षा के लिए आवश्यक स्पष्टीकरण और सही शैक्षणिक टोन के साथ व्यवस्थित किया गया है।


1.1 पुष्प — आवृतबीजियों का एक आकर्षक अंग

पुष्प आवृतबीजी पौधों का लैंगिक जनन स्थल है। यह न केवल अपनी सुंदरता, सुगंध और रंग के कारण सांस्कृतिक एवं सामाजिक महत्व रखता है, बल्कि इसका मुख्य जैविक कार्य लैंगिक जनन को सुनिश्चित करना है, जिससे फल और बीज बनते हैं।


1.2 निषेचन-पूर्व-संरचनाएँ एवं घटनाएँ

निषेचन से पहले, पौधे में हार्मोनल और संरचनात्मक परिवर्तन होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप नर और मादा जनन अंगों का विकास होता है।

नर जनन अंग: पुंकेसर, लघुबीजाणुधानी और परागकण

  1. पुंकेसर (Stamen): यह नर जनन अंग है। इसका लंबा पतला डंठल तंतु (Filament) कहलाता है, और अंतिम सिरा परागकोश (Anther) कहलाता है। एक प्रारूपिक परागकोश द्विपालिक (bilobed) और चतुष्कोणीय संरचना होती है, जिसमें चार लघुबीजाणुधानी स्थित होती हैं।
  2. लघुबीजाणुधानी (Microsporangium): यह चार भित्ति परतों से ढकी होती है। सबसे भीतरी परत टेपीटम (Tapetum) है, जो विकासशील परागकणों को पोषण देती है।
  3. लघुबीजाणुजनन (Microsporogenesis): परागकोश के अंदर बीजाणुजन ऊतक की कोशिकाएँ अर्धसूत्री विभाजन द्वारा पराग मातृकोशिका से लघुबीजाणु चतुष्टय बनाती हैं, जो बाद में परागकण (Pollen Grain) के रूप में विकसित होते हैं।
  4. परागकण की संरचना: यह नर युग्मकोद्भिद का प्रतिनिधित्व करता है। इसकी बाहरी भित्ति बाह्यचोल (Exine) कहलाती है, जो सबसे प्रतिरोधी कार्बनिक पदार्थ स्पोरोपोलेनिन से बनी होती है। इसमें जनन छिद्र (Germ Pores) होते हैं जहाँ स्पोरोपोलेनिन अनुपस्थित होता है। भीतरी भित्ति अंतःचोल (Intine) कहलाती है। परिपक्व होने पर, परागकण कायिक कोशिका और जनन कोशिका (दो-कोशीय चरण) या फिर दो नर युग्मकों (तीन-कोशीय चरण) के साथ मुक्त होते हैं।

मादा जनन अंग: स्त्रीकेसर, बीजांड और भ्रूणकोष

  1. स्त्रीकेसर (Pistil/जायांग): यह मादा जनन अंग है, जिसके तीन भाग हैं: वर्तिकाग्र (Stigma) (पराग के लिए अवतरण मंच), वर्तिका (Style), और अंडाशय (Ovary)
  2. गुरुबीजाणुधानी (बीजांड/Ovule): यह अंडाशय के अंदर अपरा (Placenta) से जुड़ा होता है। बीजांड में एक छिद्र बीजांडद्वार (Micropyle) होता है।
  3. गुरुबीजाणुजनन (Megasporogenesis): गुरुबीजाणुमातृकोशिका (MMC) में अर्धसूत्री विभाजन से चार गुरुबीजाणु बनते हैं, जिनमें से केवल एक ही कार्यात्मक रहता है।
  4. भ्रूणकोष (Embryo Sac): कार्यात्मक गुरुबीजाणु समसूत्री विभाजन द्वारा विकसित होकर मादा युग्मकोद्भिद (भ्रूणकोष) बनाता है, जो संरचनात्मक रूप से 7-कोशीय और 8-न्यूक्लीकृत होता है:
    • बीजांडद्वारी सिरा: अंड उपकरण (एक अंड कोशिका + दो सहायक कोशिकाएँ) स्थित होता है। सहायक कोशिकाओं में तंतुरूप समुच्चय (Filiform Apparatus) होता है जो पराग नलिका के प्रवेश को निर्देशित करता है।
    • केंद्र: एक वृहद् केंद्रीय कोशिका जिसमें दो ध्रुवीय न्यूक्लीआई होते हैं।

परागण (Pollination)

परागकणों का परागकोश से वर्तिकाग्र तक स्थानांतरण। यह तीन प्रकार का होता है:

  1. स्वयुग्मन (Autogamy): उसी पुष्प में परागण।
  2. सजादपुष्पी परागण (Geitonogamy): उसी पौधे के अलग-अलग पुष्पों के बीच परागण (आनुवंशिक रूप से स्व-परागण)।
  3. परनिषेचन (Xenogamy): भिन्न पौधों के पुष्पों के बीच परागण (आनुवंशिक रूप से भिन्न परागों का आगमन)।
  • बहि:प्रजनन युक्तियाँ (Outbreeding Devices): स्व-परागण और अंतः प्रजनन अवनमन को रोकने के लिए विकसित विधियाँ (उदा. स्व-असामंजस्य, पराग की भिन्न अवस्थिति)।
  • कृत्रिम संकरण: वांछित संकर प्राप्त करने के लिए विपुंसन (Emasculation) (परागकोश को हटाना) और बैगिंग (Bagging) (वर्तिकाग्र को अवांछित पराग से बचाना) जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाता है।
  • पराग-स्त्रीकेसर संकर्षण: वर्तिकाग्र द्वारा सही पराग को पहचानने, स्वीकारने या अस्वीकार करने की रासायनिक प्रक्रिया।

1.3 दोहरा निषेचन (Double Fertilisation)

यह आवृतबीजी पौधों की एक अनूठी घटना है, जिसमें भ्रूणकोष के अंदर दो संलयन एक साथ होते हैं:

  1. युग्मक संलयन (Syngamy): एक नर युग्मक अंड कोशिका से संलयन करके द्विगुणित युग्मनज (2n Zygote) बनाता है, जो भ्रूण में विकसित होता है।
  2. त्रिसंलयन (Triple Fusion): दूसरा नर युग्मक केंद्रीय कोशिका में स्थित दो ध्रुवीय न्यूक्लीआई से संलयन करके त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष केंद्रक (3n PEN) बनाता है।

1.4 निषेचन-पश्च-संरचनाएँ एवं घटनाएँ

निषेचन के बाद होने वाले विकास (भ्रूणपोष, भ्रूण, बीज और फल का निर्माण)।

  1. भ्रूणपोष (Endosperm): PEN से विकसित होता है। इसका कार्य विकासशील भ्रूण को पोषण देना है। भ्रूणपोष मुक्त केंद्रकी या कोशिकीय हो सकता है (जैसे नारियल का पानी मुक्त केंद्रकी भ्रूणपोष है)।
  2. भ्रूण (Embryo): युग्मनज से विकसित होता है।
    • द्विबीजपत्री भ्रूण में दो बीजपत्र होते हैं।
    • एकबीजपत्री भ्रूण में केवल एक बीजपत्र होता है (जैसे घास में स्कुटेलम)।
  3. बीज (Seed):बीजांड निषेचन के बाद बीज में रूपांतरित हो जाता है।
    • एल्बूमिनस बीज: भ्रूणपोष बचा रहता है (उदा. गेहूँ)।
    • गैर-एल्बूमिनस बीज: भ्रूणपोष पूरी तरह से उपयोग हो जाता है (उदा. मटर)।
    • बीज प्रसुप्ति (Dormancy) में जाते हैं, जिससे उनका भंडारण संभव हो पाता है।
  4. फल (Fruit):अंडाशय निषेचन के बाद फल में विकसित होता है। अंडाशय की दीवार फलभित्ति बनाती है।
    • वास्तविक फल केवल अंडाशय से विकसित होते हैं।
    • आभासी फल (False Fruit) में पुष्पासन जैसे अन्य भाग भी शामिल होते हैं (उदा. सेब)।
    • अनिषेक्जनित फल (Parthenocarpic Fruit) बिना निषेचन के बनते हैं और बीज रहित होते हैं (उदा. केला)।

1.5 असंगजनन एवं बहुभ्रूणता

  1. असंगजनन (Apomixis): यह बिना निषेचन के बीज बनने की प्रक्रिया है। यह लैंगिक जनन का अनुकरण करने वाला अलिंगीय जनन का एक रूप है (उदा. घास, एस्ट्रेसिया)।
    • महत्व: संकर बीज उद्योग में इसका उपयोग होता है। असंगजनन से बने संकर बीज आनुवंशिक रूप से पृथक्करण नहीं दिखाते (वे क्लोन होते हैं), जिससे किसान हर साल नया बीज खरीदने से बच जाते हैं।
  2. बहुभ्रूणता (Polyembryony): एक बीज में एक से अधिक भ्रूण का होना (उदा. नींबू, आम)। यह प्रायः बीजांडकायिक कोशिकाओं के भ्रूण में विकसित होने के कारण होता है।

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